नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri
नवरात्र में
सातवें दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि
नवदुर्गा में दुर्गाजी की सातवीं शक्ति है । माँ का यह स्वरूप देखने में भले ही
अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देती है। इसी से इन्हे ‘शुभंकारी’ नाम से भी जाना जाता है।
एकवेणी
जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता । लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा
। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी ॥
काल अर्थात
समय,अंधेरा,मृत्यु । कालरात्रि का मतलब ऐसा रात्रि जो हमारे जीवन की
अँधेरों को समाप्त कर दे। जब मृत्यु अर्थात जरा,रोग,व्याधि का भय न हो,जीवन में ऐसा समय जहाँ शुभ ही शुभ हो।
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri की कथा
पौराणिक कथा अनुसार जब महाबली दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज के अत्याचार से तीनों
लोक में भय व्याप्त हो गया । तब देवतागण भयभीत होकर भगवान शंकर के पास पहुंचे। तब भगवान शंकर ने
देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कहा। भगवान
शंकर के आदेश से पार्वती जी ने माँ दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध
किया। उसके बाद माँ दुर्गा ने रक्तबीज को मारने के लिए प्रहार किया । माता के
प्रहार से रक्तबीज के शरीर से रक्त की बूंदे धरती पर गिरने लगी और उनसे लाखों
रक्तबीज उत्पन्न हो गए। तब माँ दुर्गा ने कालरात्रि के रूप में अवतार लिया। कालरात्रि ने रक्तबीज के शरीर से निकलने वाले
रक्त को धरती पर गिरने से पूर्व ही खप्पर में लेकर पी लिया और इस प्रकार माता ने
रक्तबीज का वध किया ।
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri का स्वरुप
माँ कालरात्रि
का रूप बड़ा ही भयानक ही। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के
बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इस देवी के तीन
नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि
निकलती रहती है।माताजी की चार भुजा है। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा
भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बाएं
हाथ में लोहे का चमकता हुआ कांटेदार अस्त्र तथा कटार है। गर्दभ(गधा) इनकी सवारी
हैं।
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri के पूजन से लाभ
मां कालरात्रि बेहद शक्तिशाली हैं, जो लोग विधि विधान से माँ की पूजा अर्चना करता है,
उसे संकटों से
मुक्ति मिल जाती है। आग, जीव-जंतु, भूतप्रेत का भय से साधक मुक्त हो जाता है। शत्रु बाधा सदा
के लिए समाप्त जाता है। रोजी-रोजगार से संबन्धित परेशानिया दूर होती है तथा साधक
की आर्थिक परेशानी भी समाप्त हो जाती है। । साधक का ‘सहस्रार’ चक्र जागृत हो जाती है तथा ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का
द्वार खुलने लगता है।
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri पूजन विधि
नवरात्र में उपवास ग्रहण कर माता कालरात्रि का पूजन करें । आचमन, गौरी-गणेश, नवग्रह, मातृका व योगिनी, कलश, नान्दी श्राद्ध, सर्वतोभद्र आदि के बाद माँ कालरात्रि की मूर्ति का पूजन करें । माँ को कुमकुम व लाल फूल अर्पित करें। साथ ही गुड़ का भोग लगायेँ। इसके बाद माँ को नींबुओं की माला पहनाऐ और उनके आगे तेल का दीपक जलाऐ। माँ कालरात्रि की विशेष पूजा रात्रि में करने का विधान है, इसीलिए सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही गई है। मन्त्रों का जाप या सप्तशती का पाठ करें।
नवदुर्गा –
कालरात्रि Kalaratri
का पूजन,
ध्यान,
स्तोत्र,
कवच आदि इस
प्रकार है-
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri का ध्यान
करालवंदना
धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम् ।
कालरात्रिं
करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम ॥
दिव्यं
लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम् ।
अभयं वरदां
चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम ॥
महामेघ प्रभां
श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा ।
घोरदंश
कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम् ॥
सुख पप्रसन्न
वदना स्मेरान्न सरोरूहाम् ।
एवं
सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम् ॥
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri का स्तोत्र
ह्रीं
कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती ।
कालमाता
कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता ॥
कामबीजजपान्दा
कमबीजस्वरूपिणी ।
कुमतिघ्नी
कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी ॥
क्लीं ह्रीं
श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी ।
कृपामयी
कृपाधारा कृपापारा कृपागमा ॥
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि ।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी ॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम ।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी ॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि ।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी ॥
नवदुर्गा – कालरात्रि Kalaratri की आरती
कालरात्रि जय जय महाकाली काल के मुंह से बचाने वाली
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा महा चंडी तेरा अवतारा
पृथ्वी और आकाश पर सारा महाकाली है तेरा पसारा
खंडा खप्पर रखने वाली दुष्टों का लहू चखने वाली
कलकत्ता स्थान तुम्हारा सब जगह देखूं तेरा नजारा
सभी देवता सब नर नारी गावे स्तुति सभी तुम्हारी
रक्तदंता और अन्नपूर्णा कृपा करे तो कोई भी दुःख ना
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी ना कोई गम ना संकट भारी
उस पर कभी कष्ट ना आवे महाकाली मां जिसे बचावे
तू भी 'भक्त' प्रेम से कह कालरात्रि मां तेरी जय
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