नवरात्रि व्रत कथा Navratri vrat katha
प्रात:
नित्यकर्म से निवृत हो, स्नान कर, मंदिर में या घर पर ही नवरात्रि में दुर्गा जी का ध्यानकरके यह कथा करनी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष लाभदायक है। श्री जगदम्बा
की कृपा से सब विध्न दूर हो जाते हैं तथा सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अथ नवरात्रि
व्रत कथा प्रारम्भ Navratri vrat
katha
एक समय
बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से बोले- हे प्रभु ! चैत्र, आश्विन,माघ और आषाढ़
मास के शुक्लपक्ष में नवरात्रि का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है?
इस व्रत का
क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है?
पहले इस व्रत
को किसने किया? सो विस्तार से कहिये।
बृहस्पतिजी का
ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से
तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा,
महादेव,
सूर्य और
नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्रि व्रत संपूर्ण कामनाओं को
पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र,
धन चाहने वाले
को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख
मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। कारगार में पड़ा मनुष्य
बंधन से छूट जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में
समृद्धि होती है, बन्ध्या और काकबंध्या को पुत्र प्राप्त होता है। समस्त
पापों से छुटकारा मिल जाता है और सारे मनोरथ सिद्ध हो जाता है। जो मनुष्य मानव देह
पाकर भी इस नवरात्र व्रत को नहीं करता वह अनेक दुखों को भोगता है और कष्ट व रोग से
पीड़ित हो अंगहीनता को प्राप्त होता है, उसके संतान नहीं होती और वह धन-धान्य से रहित हो,
भूख और प्यास
से व्याकूल घूमता-फिरता है तथा संज्ञाहीन हो जाता है। जो सुहागिन स्त्री इस व्रत
को नहीं करती वह पति सुख से वंचित हो नाना प्रकार के दुखों को भोगती है। यदि व्रत
करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और बंधु-बान्धवों
सहित देवी का पूजन कर नवरात्र व्रत की कथा का श्रवण करे।
हे बृहस्पते!
जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ तुम सावधान होकर
सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण मनुष्यों
का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहिये मैं सावधान होकर सुन रहा
हूँ। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो।
ब्रह्माजी
बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक
अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में
अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में
चंद्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया
करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी
सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को
पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट
पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा
विवाह करूंगा।
पिता का ऐसा
वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिताजी ! मैं आपकी कन्या
हूँ तथा सब तरह आपके आधीन हूँ जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से,
कुष्टी से,
दरिद्र से
अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है। मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही
फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन
है।
जैसे अग्नि
में पड़े तृणादि उसको और अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता
से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के
साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-जाओं अपने कर्म का फल भोगो,
देखें भाग्य
के भरोसे रहकर क्या करती हो? पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी-
अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार
करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन
वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।
उस गरीब
बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से
कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूँ,
तुम जो चाहो
सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं
वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति
भगवती हूँ और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूँ। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों
का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूँ। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व
जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ।
तुम्हारे पूर्व
जन्म का वृतांत सुनाती हूँ सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और
अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों
को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको
और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ
खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी!
उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर
देती हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
इस प्रकार
दुर्गाजी के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं
आपको प्रणाम करती हूँ कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों
तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए
अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।
ब्रह्मा जी
बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग
करने की इच्छा से ठीक है ऐसा वचन कहा। तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति
कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी-
हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली,
समस्त दु:खों
को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली,
प्रसन्न हो
मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे!
मुझ निरअपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल
दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूँ,
आपने मेरा इस
विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूँ। मुझ दीन की रक्षा करो।
ब्रह्मा जी
बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और
ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान,
धनवान,
कीर्तिवान और
जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर
कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा
वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर
मुझे नवरात्रि व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि व्रत कथा की विधि Navratri vrat katha method -
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियाँ स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें।
बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें।
खांड, घी, गेहूँ, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूँ से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे।
इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। हे बृहस्पते! यह इस दुर्लभ व्रत का माहात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का माहात्म्य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! यह देवी भगवती शक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।
इतिश्री नवरात्रि
व्रत कथा
बोलो दुर्गा माता
की जय।
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