दुर्गा पूजन विधि Durga pujan vidhi

दुर्गा पूजन विधि Durga pujan vidhi     

दुर्गम नामक दैत्य के वध के कारण ही आदिशक्ति पराशक्ति  माँ भगवती का नाम दुर्गा पड़ा। वैसे तो माँ दुर्गा पूजन किन्ही भी अवसर पर किया जा सकता है किन्तु नवरात्रि के समय इनका पूजन विशेष रूप से किया जाता है। नवरात्र शक्ति उपासना का पर्व है। इस अवधि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजन  की जाती है। दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा श्रद्धा ,आस्था,विश्वास  से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियाँ जिन्हे की नवदुर्गा कहा जाता है,जागृत होकर नवग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। परिणामस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता। दुर्गा की इन नवों शक्तियों को जागृत करने के लिए दुर्गा के 'नवार्ण मंत्र' का जाप किया जाता है। माता को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा चालीसादुर्गा कवचदुर्गा सहस्त्रनाम, माँ दुर्गा के 32 नाम स्तोत्र, दुर्गा सप्तशतीश्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा, महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् , श्री भगवती स्तोत्रम् , सिद्धकुञ्चिकास्तोत्रम् , सप्तश्लोकी दुर्गा आदि का पाठ किया जाता है।

दुर्गा पूजन विधि Durga pujan vidhi


अथ दुर्गा पूजन विधि Durga pujan vidhi

सबसे पहले पूजनकर्ता शुभ आसन पर उत्तर या पूर्व मुख कर निम्न मंत्र द्वारा आचमन करें- 

केशवाय नम: नारायणाय नम: माधवाय नम:  

ॐ हृषीकेशाय नमः मंत्र से हाथ धो लें। 

दाहिने हाथ में कुशा का निम्न मंत्र द्वारा पवित्री धारण करें-  

पवित्रोस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव ऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि: ॥ 

तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम्

अब तीन बार प्राणायाम मंत्र द्वारा करें तथा अपने व पूजा सामग्री पर निम्न मंत्र से पवित्र जल छिड़के-

अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा

: स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं बाह्याभ्यन्तर: शुचि:

पुण्डरीकाक्ष: पुनातु पुण्डरीकाक्ष: पुनातु पुण्डरीकाक्ष: पुनातु

तत्पश्चात स्वस्तिवाचन कर सङ्कल्प करें-

सङ्कल्प:

देशकालौ सङ्कीर्त्य, “अमुकगोत्र:  अमुकशर्माऽहं (अमुकवर्माऽहम, अमुकगुप्तोऽहम् ) मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य सर्वविध-बाधानिवृत्तिपूर्वकं धन-धान्य-पुत्र-पौत्र-दीर्घायुरारोग्यैश्वर्यादिप्राप्त्यर्थं धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीदुर्गादेव्या: प्रीत्यर्थं यथोपचारै: दुर्गापूजनमहं करिष्ये

अब  गणपति और गौरी  की पूजा, लश स्थापन, नवग्रह मण्डल पूजन, पञ्चलोकपाल पूजा, दश दिक्पाल-पूजन, नान्दीश्राद्ध ,षोडशमातृकापूजन, सप्तघृतमातृका पूजन, चतुःषष्टियोगिनी पूजन, आचार्यादिवरणम् आदि पूजन कर वेदोक्त रीति से दुर्गा पूजन विधि Durga pujan vidhi प्रारम्भ करें-

ध्यानम् -सर्वप्रथम यजमान हाथ मे अक्षत-पुष्प लेकर दुर्गाजी का ध्यान करे  - 

खड्गं चक्रगदेषुचापपरिधाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरशङ्खं सन्दधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्

नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां  यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ॥१॥

अक्षस्नक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां  दण्डं शक्तिमसिं चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्

शूलं पाशसुदर्शने दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां  सेवे सैरिभमदिंनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥२॥

घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनु: सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्

गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ॥३॥

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: श्री दुर्गां ध्यायामि । अक्षत-पुष्प दुर्गाजी को अर्पित करें ।

आवाहनम् -अब पुष्प लेकर दुर्गाजी का आवाहन करे व चढ़ावे  - 

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह

आगच्छ वरदे देवि दैत्यदर्पनिषूदिनि पूजां गृहाण सुमुखि नमस्ते शङ्करप्रिये

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: आवाहनं समर्पयामि आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि

आसनम्-पुनः अक्षत लेकर माताजी को आसन प्रदान करें-

तां आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्

अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम् कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: आसनं. समर्पयामि आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि

पाद्यम् जल से पाँव धुलावे-

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्

गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम् तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम्

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: पाद्यं समर्पयामि  

अर्ध्यम्- अब हाथ में अष्टगंध युक्त जल लेकर अर्घ्य देवें -  

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्                                          

पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्

गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्ध्यं सम्पादितं मया गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: अर्ध्यं समर्पयामि

मधुपर्क:- अब दही,घी और शहद मिलाकर मधुपर्कं बनाकर दुर्गा जी को अर्पित करे-

यन्मधुनो मधव्यं परमर्ठ० रूपमन्नाद्यम्

तेनाहं मधुनो मधव्येन परमेण रूपेणानाद्येन परमो मधव्योऽन्नादोऽसानि

दधिमध्वाज्यसंयुक्तं पात्रयुग्मसमन्वितम् मधुपर्कं गृहाण त्वं वरदा भव शोभने

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: मधुपर्कं समर्पयामि

आचमनम् - आचमन के लिए  जल छोड़े-

आचम्यतां त्वया देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु ईप्सितं मे वरं देहि परत्र पराङ्गतिम्

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: आचमनीयं जलं समर्पयामि

स्नानम् - जल से स्नान करावे  -                                                                                                                                                                                                 

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्

तां पद्मनीमीं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे

जाह्नवीतोयमानीतं शुभं कर्पूरसंयुतम् स्नापयामि सुरश्रेष्ठे त्वां पुत्रादिफलप्रदाम्

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: स्नानीयं जलं समर्पयामि

पञ्चामृतस्नानम्  पञ्चामृत(दूध,दही,घी,शहद,शक्कर) से स्नान कराये-

पञ्च नद्य: सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतस: सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित्

पयो दधि घृतं क्षौद्रं सितया समन्वितम् पञ्चामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि  

पञ्चामृतस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि

शुद्धोदकस्नानम्- शुद्ध जल से दुर्गाजी को स्नान कराये-

शुद्धबाल: सर्वशुद्धवालो मणिवालस्त ऽआश्विना:

श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णा यामा  ऽअवलिप्ता रौद्रा नभोरूपा: पार्ज्जन्या:

परमानन्दबोधाब्धनिमग्ननिजमूर्तये साङ्गोपाङ्गमिदं स्नानं कल्पयाम्यहमीशिते

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि

शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि

यदि माँ दुर्गा की धातु से निर्मित प्रतिमा का पूजन कर रहे हों तो श्रीदेव्यथर्वशीर्षम् से अभिषेक करें।

वस्त्रम् माताजी को पहनने योग्य वस्त्र(साड़ी,लहंगा,ब्लाउज आदि)चढ़ाये-

सुजातो ज्योतिषा सह शर्म्म वरूथ मासदत्स्व:

वासो ऽअग्ने विश्वरूपर्ठ० संव्ययस्व विभावसो

वस्त्रञ्च सोमदैवात्यं लज्जायास्तु निवारणम् मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व दुर्गादेव्यै नम: वस्त्रं समर्पयामि आचमनीयं जलं समर्पयामि

उपवस्त्रम् चुनरी आदि समर्पित करें-

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्व:

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्मा अलक्ष्मी:

यामाश्रित्य महामाया जगत्सम्मोहिनी सदा तस्यै ते परमेशायै कल्पयाम्युत्तरीयकम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: उपवस्त्रं समर्पयामि  आचमनीयं जलं समर्पयामि                        

यज्ञोपवीवम् - यज्ञोपवीत या कुंवारी धागा चढ़ाये-

उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रे ऽस्मिन् कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे

स्वर्णसूत्रमयं दिव्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  यज्ञोपवीतं समर्पयामि यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि

सौभाग्यसूत्रम्-गले में पहनने के लिए दुर्गाजी को कण्ठमाला निवेदित करें-

सौभाग्यसूत्रं वरदे ! सुवर्ण-मणि-संयुतम् कण्ठे बध्नामि देवेशि ! सौभाग्यं देहि मे सदा

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: सौभाग्यसूत्रं समर्पयामि

हरिद्राचूर्णम्-पीसी हल्दी माताजी को भेंट करें-

क्षुप्तिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् अभूतिमसमृद्धिं सर्वां निर्णुद मे गृहात्

तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततर्ठ० सं जभार

वदेदयुक्त हरित सधस्थादादात्री वासस्तनुते सिमस्मै

हरिद्रारञ्जिते देवि सुख-सौभाग्यदायिनि तस्मात्त्वां पूजयाम्यत्र सुखं शान्तिं प्रयच्छ मे

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  हरिद्राचूर्णं समर्पयामि

गन्ध: चन्दनम् केशर युक्त रक्त चन्दन लगाएँ-

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम्  विलेपनं देवेशि चन्दनं प्रतिगृह्यताम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: गन्धं समर्पयामि

अक्षता:- अक्षत समर्पित करे-

अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया ऽअधूषत्

अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती वोजान्विन्द्रते हरी

अक्षतान्निर्मलान् दिव्यान् कुङ्कुमाक्तान् सुशोभनान् गृहाणेमान् महादेवि प्रसीद परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: अक्षतान् समर्पयामि

कुङ्कुमम् कुमकुम माताजी की मूर्ति को लगाएँ-

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम् कुङ्कुमेनार्चिते देवि प्रसीद परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: कुङ्कुमं समर्पयामि

सिन्दूरम्-दुर्गाजी को सिन्दूर निवेदित करें-

सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो  वातप्रमिय: पतयन्ति वह्वा:

घृतस्य धारा अरुषो वाजी  काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभि: पिन्वमान:

सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम् पूजिताऽसि मया देवि प्रसीद परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  सिन्दूरं समर्पयामि

कज्जलम् - मूर्ति के आँख में काजल लगाए-

व्वृत्त्रस्यासि कनीनकश्चक्षुर्द्दा असि चक्षुर्म्मे देहि

चक्षुर्भ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे शान्तिकारकम् कर्पूरज्योतिरुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: कज्जलं समर्पयामि                                               

दूर्वाङ्कुरा:-दुर्वादल चढ़ाये- 

काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुष: परुषस्परि एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन

दूर्वादले श्यामले त्वं महीरूपे हरिप्रिये दूर्वाभिराभिर्भवतीं पूजयामि सदा शिवे

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि

बिल्वपत्राणि बेलपत्ता अर्पित करें-

नमो बिल्मिने कवचिने नमो वर्मिणे वरूथिने च नम: 

श्रुताय श्रुतसेनाय   नमो दुन्दुभ्याय चाहनन्याय

अमृतोद्भव: श्रीवृक्षो महादेवप्रिय: सदा बिल्वपत्रं प्रयच्छामि पवित्रं ते सुरेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: बिल्वपत्राणि समर्पयामि

आभूषणम्- पहनने के लिए आभूषण माताजी को भेंट करें-

मनस: काममाकूर्ति व्वाच: सत्यमशीमहि पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्री: श्रयतां यशा:

हार-कङ्कण-केयूर-मेखला-कुण्डलादिभि: रत्नाढयं कुण्डलोपेतं भूषणं प्रतिगृह्यताम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: आभूषणं समर्पयामि

फलमालाम्-फल (नीबू आदि)का माला पहनावे-

याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वर्ठ० हसः

शरत्काले समुद्भूतां निशुम्भासुरमर्द्दिनी ।फलमालां वरां देवि !गृहाण सुरपूजिते ॥

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: फलमालां समर्पयामि

पुष्पमाला- पुष्प भेंट कर पुष्पमाला दुर्गाजी को पहना देवें-

श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्

इष्णन्निषाणामुम्म इषाण सर्वलोकं इषाण

सुरभि: पुष्पनिचयै: ग्रथितां शुभमालिकाम् ददामि तव शोभार्थं गृहाण परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: पुष्पमालां समर्पयामि

नानापरिमलद्रव्याणि-गुलाल,अष्टगंध लगाए-

अहिरिव भोगै: पर्वेति बाहुँ ज्या हेतिं परिबाधमान:

हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमार्ठ० सं परिपातु विश्वत:

अवीरं गुलालं हरिद्रादिसमन्वितम् नानापरिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: नानापरिमलद्रव्याणि समर्पपामि

सौभाग्यद्रव्याणि -सिंगार पेटिका माताजी को भेंट करें-

कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्

हरिद्रा कुङ्कुमं चैव सिन्दूरादिसमन्वितम् सौभाग्यद्रव्यमेतद्वै गृहाण परमेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: सौभाग्यद्रव्यं समर्पयामि

सुगन्धिद्रब्यम्  इत्र आदि सुगन्धिद्रब्य समर्पित कर देवें-

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयमाऽमृतात्

चन्दनागुरुकर्पूरै: संयुतं कुङ्कुमं तथा कस्तूर्यादिसुगन्धांश्च सर्वाङ्गेषु विलेपनम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि

अङ्गपूजनम्- अब अष्टगंध मिश्रित अक्षत चढ़ाते हुए दुर्गाजी  के सभी अंगो का स्मरण करते हुए पूजन करें – 

ॐदुर्गायै नम: पादौ पूजयामि । ॐमहकाल्यै नम:गुल्फौ पूजयामि । ॐमंगलायै नम: जानुनी: पूजयामि । ॐशिवायै नम: कटिं पूजयामि ।  ॐभद्रकाल्यै नम: नाभिं पूजयामि ।ॐकमलवासिन्यै नम: उदरं पूजयामि । ॐक्षमायै नम: हृदयं पूजयामि । ॐकौमार्यै नम: हस्तौ पूजयामि ।  ॐउमायै नम: बाहु पूजयामि । ॐमहागौर्यै नम: कण्ठं पूजयामि । ॐवैष्णव्यै नम: मुखं पूजयामि । ॐरमायै नम: नेत्रे पूजयामि । ॐस्कन्दमात्रे नम: ललाटं पूजयामि ।  ॐमहिषासुरमर्दिन्यै नम: नासिकां पूजयामि । ॐसिंहवाहिन्यै नम: श्रोत्रे पूजयामि । ॐमाहेश्वर्यै नम: शिर: पूजयामि । ॐ कात्यायन्यै नम: सर्वाङ्गं पूजयामि

नाम पूजनम्  श्री दुर्गा जी के ३२  नाम स्तोत्र पढ़ते हुए प्रत्येक नाम से  अष्टगंध मिश्रित अक्षत व पुष्प चढ़ावे।  

वाहन पूजनम् -   अब अष्टगंध मिश्रित अक्षत चढ़ाते हुए दुर्गाजी  के वाहन (सिंह) का पूजन करें – 

ॐ खड्गो वैश्वदेव: श्वा कृष्ण: कर्णो गर्दभस्तरक्षुस्ते रक्षसामिन्द्राय सूकर: सिंहो मारुत: कृकलास: पिप्पका शकुनिस्ते शरव्यायै विश्वेषां  देवानां पृषत: ॥                                              

आवरणपूजनम् अब माताजी के आवरण का पूजन करें –

प्रथम आवरण- यन्त्र के षट्कोण में पश्चिमकोण- 

महालक्ष्मीपृष्ठभागे सरस्वतीब्रह्मभ्यां नम:, सरस्वतीब्रह्माणौवाहयामि॥१॥  

नैऋत्यकोण-गौरीरुद्राभ्यां नम:, गौरीरूद्रौ आवाहयामि ॥२॥  

वायुकोण-लक्ष्मीहृषीकेशाभ्यां नम:, लक्ष्मीहृषीकेशौ आवाहयामि ॥३  

पूर्वकोण-अष्टादशभुजायै नम:, अष्टादशभुजा आवाहयामि ॥४  

अग्निकोण--दशाननायै नम:, दशाननाआवाहयामि ॥५॥  

ईशानकोण-अष्टभुजायै नम:, अष्टभुजाआवाहयामि ॥६  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं प्रथमावरणार्चनम्  

अनेन प्रथमावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

द्वितीय आवरण- पुन: षट्कोणेषु प्रागादिषु

नं नन्दजायै नम:, नन्दजामावाहयामि ॥१॥   रं रक्तदन्तिकायै नम:, रक्तदन्तिकामावाहयामि ॥२ ॥ 

  शां शाकम्भर्यै नम:, शाकम्भरीमावाहयामि ॥३॥   दुं दुर्गायै नम:, दुर्गामावाहयामि ॥४

भीं भीमायै नम:, भीमामावाहयामि ॥५॥ ॐ भ्रां भ्रामर्यै नम:, भ्रामरीमावाहयामि ॥६॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं द्वितीयावरणार्चनम्  

अनेन द्वितीयावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

तृतीय आवरण-षट्कोणाद् बहिराग्नेयादिचतुर्भागेषु-

जं जयायै नम:, जयामावाहयामि ॥१॥   विं विजयायै नम:, विजयामावाहयामि ॥२॥  

जं जयन्त्यै नम:, जयन्तीमावाहयामि ॥ ३॥   अं अपराजितायै नम:, अपराजितामावाहयामि ॥४॥ 

षट्कोण-पार्श्वयो: दक्षिणभागे- सिंहाय नम:, सिंहामावाहयामि ॥५॥ 

उत्तरभागे- महिषाय नम:, महिषमावाहयामि ॥६॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं तृतीयावरणार्चनम्  

अनेन तृतीयावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

चतुर्थ आवरण- अष्टपत्रेषु प्रागादिषु

ब्रां ब्राह्म्यै नम:, ब्राह्मीमावाहयामि ॥१॥   मां माहैश्वर्यै नम:, माहैश्वरीमावाहयामि ॥२॥  

कौं कौमार्यै नम:, कौमारीमावाहयामि ॥३॥   वैं वैष्णब्यै नम:, वैष्णवीमावाहयामि ॥४॥ 

वां वाराह्यै नम:, वाराहीमावाहयामि ॥५॥ ॐ नां नारसिंह्यै नम:, नारसिंहीमावाहयामि ॥६॥ 

ऐं ऐन्द्रयै नम:, ऐन्द्रीमावाहयामि ॥७॥ ॐ शिं शिवदूत्यै नम:, शिवदूतीमावाहयामि ॥८॥ 

चां चामुण्डायै नम:, चामुण्डामावाहयामि ॥९॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं चतुर्थावरणार्चनम्  

अनेन चतुर्थावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

पञ्चम आवरण-पुनरष्टदलेषु प्रागादिषु-

अं असितांगभैरवाय नम:, असितांगभैरवमावाहयामि ॥१॥ ॐ रूं रुरुभैरवाय नम:, रुरुभैरवमावाहयामि ॥ २॥ 

चं चण्डभैरवाय नम:, चण्डभैरवमावाहयामि ॥३॥ ॐ क्रों क्रोधभैरवाय नम:, क्रोधभैरवमावाहयामि ॥४॥ 

उं उन्मत्तभैरवाय नम:, उन्मत्तभैरवमावाहयामि ॥५॥ ॐ कं कपालभैरवाय नम:, कपालभैरवमावाहयामि ॥६॥ 

भीं भीषणभैरवाय नम:, भीषणभैरवमावाहयामि ॥७॥   सं संहारभैरवाय नम:, संहारभैरवमावाहयामि ॥८॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं पञ्चमावरणार्चनम् ॥  

अनेन पञ्चमावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

षष्ठ आवरण-चतुर्विंशतिदलेषु प्रागादिक्रमेण

विं विष्णुमायायै नम:, विष्णुमायामावाहयामि ॥१॥ ॐ चें चेतनायै नम:, चेतनामावाहयामि ॥२॥ 

बुं बुद्धयै नम:, बुद्धिमावाहयामि ॥३॥ ॐ निं निद्रायै नम:, निद्रामावाहयामि ॥४॥ 

क्षुं क्षुधायै नम:, क्षुधामावाहयामि ॥५॥ ॐ छां छायायै नम:, छायामावाहयामि ॥६॥  

शं शक्त्यै नम:, शक्तिमावाहयामि ॥७॥ ॐ तृं तृष्णायै नम:, तृष्णामावाहयामि ॥८॥ 

क्षां क्षान्त्यै नम:, क्षांतिमावाहयामि ॥९॥ ॐ जां जात्यै नम:, जातिमावाहयामि ॥१०॥ 

लं लज्जायै नम:, लज्जामावाहयामि ॥११॥ ॐ शां शान्त्यै नम:, शान्तिमावाहयामि ॥१२॥

 ॐ श्रं श्रद्धायै नम:, श्रद्धामावाहयामि ॥१३॥ ॐ कां कान्त्यै नम:, कान्तिमावाहयामि ॥१४॥ 

लं लक्ष्म्यै नम:, लक्ष्मीमावाहयामि ॥१५॥ ॐ धृं धृत्यै नम:, धृतिमावाहयामि ॥१६॥ 

वृं वृत्त्यै नम:, वृत्तिमावाहयामि ॥१७॥ ॐ स्मृं स्मृत्यै नम:, स्मृतिमावाहयामि ॥१८॥ 

दं दयायै नम:, दयामावाहयामि ॥१९॥ ॐ तुं तुष्टयै नम:, तुष्टिमावाहयामि ॥२०॥ 

पुं पुष्टयै नम:, पुष्टिमावाहयामि ॥२१॥ ॐ मां मात्रे नम:, मातरमावाहयामि ॥२२॥ 

भ्रां भ्रान्त्यै नम:, भ्रांतिमावाहयामि ॥२३॥ ॐ चिं चित्यै नम:, चित्तिमावाहयामि ॥२४॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं षष्ठाख्यावरणार्चनम् ॥  

अनेन षष्ठावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

सप्त आवरण-भूगृहरव्युदयप्रागादिषु

लं इन्द्राय नम:, इन्द्रमावाहयामि ॥१॥ ॐ रं अग्नये नम:, अग्निमावाहयामि ॥२॥ 

मं यमाय नम:, यममावाहयामि ॥३॥ ॐ क्षां निर्ऋतये नम:, निर्ऋतिमावाहयामि ॥४॥  

वं वरुणाय नम:, वरुणमावाहयामि ॥५॥ ॐ यं वायवे नम:, वायुमावाहयामि ॥६॥ 

सं सोमाय नम:, सोममावाहयामि ॥७॥ ॐ हं रुद्राय नम:, रुद्रमावाहयामि ॥८॥ 

ऐशानीप्रागन्तराले- आं ब्रह्मणे नम:, ब्राह्मणमावाहयामि ॥९॥   

वरुणनिर्ऋत्यन्तराले- ह्रीं शेषाय नम:, शेषमावाहयामि ॥१०॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं सप्तमावरणार्चनम् ॥  

अनेन सप्तमावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

अष्टम आवरण-पुनस्तेनैव क्रमेण

वं वज्राय नम:, वज्रमावाहयामि ॥१॥ ॐ शं शक्त्यै नम:, शक्तिमावाहयामि ॥२॥ 

दं दण्डाय नम:, दण्डमावाहयामि ॥३॥ ॐ खं खड्गाय नम:, खड्गमावाहयामि ॥४॥ 

पां पाशाय नम:, पाशमावाहयामि ॥५॥ ॐ अं अंकुशाय नम:, अंकुशमावाहयामि ॥६॥

 ॐ गं गदायै नम:, गदामावाहयामि ॥७॥ ॐ त्रिं त्रिशूलाय नम:, त्रिशूलमावाहयामि ॥८॥ 

पं पद्माय नम:, पद्मामावाहयामि ॥९॥ ॐ चं चक्राय नम:, चक्रमावाहयामि ॥१०॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं अष्टमावरणार्चंनम् ॥  

अनेन अष्टमावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

नवम आवरण-भूगृहाद् बहि: प्रागादि-दिक्षु-

गं गणपतये नम:, गणपतिमावाहयामि ॥१॥ ॐ क्षें क्षेत्रपालाय नम:, क्षेत्रपालमावाहयामि ॥२॥

 ॐ वं बटुकाय नम:, बटुकमावाहयामि ॥३॥ ॐ यों योगिन्यै नम:, योगिनीमावाहयामि ॥४॥  

ॐ दयाब्धे त्राहि संसारसर्पान्मां शरणागतम् भक्त्या समर्पये तुभ्यं नवमावरणार्चंनम् ॥  

अनेन नवमावरणार्चनेन भगवत्य:  श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेव्यै  प्रीयन्ताम्

अब निम्न मंत्र द्वारा सभी आवरणदेवता का पञ्चोपचार विधि से पूजन करें-  

आवरणदेवताभ्यो नम:                                                

देव्या: दक्षिणे- कालाय नम: रुद्राय नम:

देव्या: वामे- मृत्यवे नम: विनायकाय नम: इत्यावरणपूजनम्

धूप:- अब श्रीदुर्गा जी की प्रसन्नता के लिए धूप देकर आचमन करें-

धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं वोऽस्मान् धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वाम:

देवानामसि वह्नितमर्ठ० सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम् ॥ 

दशाङ्गुग्गुलं धूपं चन्दनागुरुसंयुतम् समर्पितं मया भक्त्या महादेवि प्रगृह्यताम् ॥ 

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: धूपमाघ्रापयमि

दीप: -श्रीदुर्गा जी को दीप दिखाए-

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्व्वो ऽअजायत श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत

घृतवर्तिसमायुक्तं महातेजो महोज्ज्वलम् दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीता भव सर्वदा

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: दीपं सर्शयामि

नैवेद्यम् - नाना प्रकार से भक्क्ष-भोज्य पदार्थ का भोग लगाए-

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्यमालिनीम् चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह

अन्नं बहुविधं स्वादु रसै: षड्भि: समन्वितम् नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  नैवेद्यं निवेदयामि

घण्टा बजाए और  ग्रासमुद्रा दिखावे

प्राणाय स्वाहा अपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा समानाय स्वाहा ।ॐ उदानाय स्वाहा

मध्ये-मध्ये आचमनीयं जलं समर्पयामि उत्तरापोशनार्थे जलं समर्पयामि पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि

करोद्वर्त्तनम् - करोद्वर्तन के लिये गन्ध समर्पित करे-

अर्ठ० सुनाते अर्ठ० शु: पृच्यतां परुषा परु: गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युत:

करोद्वर्त्तनकं देवि ! सुगन्धै: परिवासितै: गृहीत्वा मे वरं देहि परत्र परां गतिम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  करोद्वर्त्तनार्थे गन्धं समर्पयामि हस्तप्रक्षालनार्थं जलं समर्पयामि

ऋतुफलानि- केला,सेब आदि ऋतुफल व नारियल चढ़ाये-

वा: फलिनीर्वा अफला अपुष्पावाश्च पुष्पिणी: बृहस्पतिप्रसूतास्तानो मुञ्चन्त्वर्ठ० हस:

नारिकेलं नारिङ्गं कलिङ्गं मञ्जिरं तथा उर्वारुकं देवेशि फलान्येतानि गृह्मताम्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: ऋतुफलानि समर्पयामि                                              

ताम्बूलम् - मुख शुद्धि के लिए भगवती को लौंग-इलायची-सुपाड़ी आदि मिलाकर पान चढ़ावें -

उत स्मास्य द्रवतस्तुरण्यत: पर्ण न वेरनुवाति प्रगर्धिन:

श्येनस्येव ध्रजतो अङ्कसम्परि दधिक्राब्ण: सहोर्जा तरित्रत: स्वाहा

एला-लवङ्ग-कस्तूरी-कर्पूरै: पुष्पवासिताम् वीटिकां मुखवासार्थमर्पयामि सुरेश्वरि

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि

दक्षिणा- अब देवीजी को द्रव्य-दक्षिणा अर्पित करें-

हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्

दाधार पृथिवीं द्यामुते मां कस्मै देवाय हविषा विधेम्

पूजाफलसमृद्धयर्थं तवाग्रे परमेश्वरि अर्पितं तेन मे प्रीता पूर्णान् कुरु मनोरथान्

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  दक्षिणां समर्पयामि

आरार्तिक्यम् सुगंधित दीप आदि से माँ की आरती करें-

इदर्ठ० हवि: प्रजननं मे अस्तु दशवीरर्ठ० सर्वगणर्ठ० स्वस्तये

आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि

अग्नि: प्रजां बहुलां मे करोत्त्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त ॥१॥

रात्रि पार्थिवर्ठ० रज: पितुरप्रायि धामभि:                                                     

दिव: सदार्ठ० सि बृहती वि तिष्ठस त्त्वेषं वर्त्तते तम: ॥२॥

अग्निर्द्देवता वातो देवता सूर्व्वो देवता चन्द्रमा देवता  वसवो देवता रुद्द्रा देवताऽऽदित्या देवता मरुतो 

देवता विश्वे देवा देवता बृहस्पतिर्द्देवतेन्द्रो देवता वरूणो देवता ॥३॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि

नमस्कार:-माताजी को नमस्कार करें-

आर्द्रां : करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो आवह

नम: सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे नमस्ते जगतां धात्रि नसस्ते भक्तवत्सले

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  नमस्कारं समर्पयामि

यदि समयाभाव हो तो श्रीदुर्गा मानस पूजा या  देवीचतुःषष्ट्युपचारपूजास्तोत्रम् अथवा परा मानिसिका पूजा के मंत्रों से दुर्गा पूजन विधि Durga pujan vidhi करें।   

अब नवरात्रि व्रत कथा नवदुर्गा स्तोत्र-कवच आदि का पाठ या दुर्गा सप्तशती,बीजात्मक सप्तशती का पाठ करें ।

हवन प्रारम्भ                                                                                                                                

सर्वप्रथम हवन सामाग्री (जंवा,तिल आदि)एकत्र कर शांकल्य बनावे। अब यजमान हवन पात्र को सामने रखकर उसमे " रं "बीज अंकित कर देवे और फिर  हवन पात्र मे अग्नि डालकर पहले अग्निदेव का स्थापन,आवाहन  उसके बाद पंचोपचार पूजन करपहले सर्वतोभद्र आदि वेदी का उसके बाद दुर्गा सप्तशती के मंत्रो द्वारा हवन करें                                                                                                                 

श्रीअम्बेजी की आरती


श्रीअम्बेजी की आरती                        

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामागौरी                                                                       

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री जय अम्बे० ॥१॥

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृदमदको उज्ज्वलसे दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको जय अम्बे० ॥२॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै रक्तपुष्प गलमाला, कण्ठनपर साजै ॥जय अम्बे० ॥३॥

केहरि बाहन राजत, खडग खपरधारी सुर-नर-मुनि-जनसेवत, तिनके दुःखहारी ॥जय अम्बे० ॥४॥

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योर्ता ॥जय अम्बे० ॥५॥

शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर-घाती धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय अम्बे० ॥६॥

चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीजहरे मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥जय अम्बे० ॥७॥

बह्माणी रुद्राणी, तुम कमलारानी आगम-निगम-बखानी, तुम शिवपटरानी ॥जय अम्बे० ॥८॥

चौंसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरुँ बाजत ताल मृदंगा, बाजत डमरू ॥जय अम्बे० ॥९॥

तुम ही जगकी माता, तुम ही हो भरता भक्तनकी दुख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥जय अम्बे० ॥१०॥

भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥जय अम्बे० ॥११॥

कंचन थाल विराजत अगर कपुर बाती श्रीमालकेतुमें राजत कोटिरतन ज्योती ॥जय अम्बे० ॥१२॥

श्रीअम्बेजी की आरती जो कोई नर गावे कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावे ॥जय अम्बे० ॥१३॥

प्रदक्षिणा - अब आरती पश्चात प्रदक्षिणा करें-

तां आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्

यस्यां हिरण्यं प्रभूतिं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्  

ये तीर्थांनि प्रचरन्ति सृका हस्ता निषङ्गिण: तेषा र्ठ० सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि

यानि कानि पापानि जन्मान्तरकृतानि तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम: प्रदक्षिणां समर्पयामि

पुष्पाञ्जलि:-अक्षत-पुष्प हाथों में लेकर पुष्पाञ्जलि दुर्गाजी को अर्पण करें-

: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् सूक्तं पञ्चदशर्चं श्रीकाम: सततं जपेत्

यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्म्माणि प्रथमान्यासन्

ते नाकं महिमान: सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्ति देवा:

राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे  

मे कामान् कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:

स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्टयं  राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्

सार्वभौम: सार्वायुष आन्तादापरार्धात्, पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति

तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे                                     

आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतस्पात्  

सम्बाहुभ्यां धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव ऽएक:

दुर्गागायत्री कात्यायन्यै विद्यहे कन्यकुमारी धीमहि तन्नो दुर्गि: प्रचोदयात्

सेवन्तिकावकुल-चम्पक-पाटलाब्जै: पुन्नाग-जाति-करवीर-रसाल-पुष्पै:

बिल्व-प्रवाल-तुलसीदल-मञ्जरीभि: त्वां पूजयामि जगदीश्वरि मे प्रसीद

भूर्भुव: स्व: दुर्गादेव्यै नम:  मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि

प्रणाम:-श्री भगवती को दण्डवत प्रणाम करें-

दुर्गां शिवां शान्तिकरीं ब्रह्माणीं ब्रह्मण: प्रियाम् सर्वलोकप्रणेत्रीं प्रणमामि सदा शिवाम् ॥१॥

नमस्ते देव-देवेशि! नमस्ते ईप्सितप्रदे नमस्ते जगतां धात्रि! नमस्ते शङ्करप्रिये ॥२॥

नमस्ते सर्वहितार्थायै जगदाधारहेतवे साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रसन्नेन मया कृत: ॥३॥

क्षमाप्रार्थना-अब हाथ जोड़ कर क्षमाप्रार्थना करें-

आवाहनं जानामि जानामि विसर्जनम् पूजां चैव जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥१॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥२॥

कर्मणा मनसा वाचा पूजनं यन्मया कृतम् तेन तुष्टिं समासाद्य प्रसीद परमेश्वरि ॥३॥

पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसम्भव: पाहि मां सर्वदा मात: सर्वापापहरा भव ॥४॥                   दुर्गास्तुति:-अंत में माताजी की स्तुति करते हुए पूजन समपन्न करें-

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोस्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि

दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥१॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥२॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे  सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३॥

त्वमेव माता पिता त्वमेव  त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥४॥

इति दुर्गा पूजन विधि: Durga pujan vidhi

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