हवनात्मक दुर्गासप्तशती

हवनात्मक दुर्गासप्तशती

यहाँ हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती की क्रमश: आहुतियों के विषय में दिया जा रहा है ।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

Havanatmak Durga saptashati

यहाँ हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती की संक्षिप्त विधि दिया जा रहा है और नीचे क्रमश: अध्याय अनुसार क्रमवार आहुतियों के विषय में कहा गया है ।

दुर्गा सप्तशती की आहुतियाँ देते समय जहां भी पाठ में उवाच शब्द आया है वहाँ फूलों की आहुतियाँ दी जाती है।

अब क्रमश:

अध्याय 3 मंत्र 38 मधु की आहुति दें ।

अध्याय 4 प्रथम से 23 मंत्र तक पेड़ा या खीर की आहुति दें।

अध्याय 4 मंत्र 24, 25, 26, 27 की आहुति न दें। यहां केवल नमण्डिकायै स्वाहा बोलकर आहुति दें।

अध्याय 4 मंत्र 30 श्वेत पुष्प की(या धूपाहूति दें) आहुति दें।

अध्याय 5 मंत्र 9 से 82 तक खीर की आहुति दें तो उत्तम है ।

अध्याय 5 मंत्र 94 कमलगट्टा, 100 रेशम, 103 सीताफल, 110 खीर, 121 काजल की आहुति दें ।

अध्याय 6 मंत्र 13 गुग्गल, 16, 17 केशर की आहुति दें ।

अध्याय 7 मंत्र 5 कस्तूरी, 15, 16, 17 केवड़ा, 27 केला की आहुति दें ।

अध्याय 8 मंत्र 55, 56, 57 रक्त चंदन की आहुति दें ।

अध्याय 11 मंत्र 1, 2 खीर, 27 श्वेत सरसों, 29 गुग्गल, 32 सरसों, 33 इन्द्र जौ, हरड़, 39 काली मिर्च, 44 दाडम अनार, 49 पालक , 52 सरसों की आहुति दें ।

अध्याय 12 मंत्र 6 बिल्वफल, 14 इलाइची, 16 सरसों, 17 वच, 20 धूप, 23 सरसों, 39 सेब, 41 धूप की आहुति दें ।

नोट- जिस अध्याय व मंत्र के विषय में निर्देश नहीं किया गया है वहाँ सभी में घी और शांकल्य की आहुति दें । 

अध्याय की समाप्ति पर उल्टे पान पर शांकल्य,घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा,1 सुपारी,2 लौंग,1 इलायची, गुगगल, शहद सभी को स्रुवी में रखकर खड़े होकर निम्न मंत्र से आहुति दें-

ॐ प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा ।

ॐ अम्बेऽअम्बिकेऽम्बालिके नमानयति कश्चन ।

ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां कांपील-वासिनी स्वाहा।।

फिर स्रुवा से घी छोड़ें-

ॐ ॐ घृतं  घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः ।

पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।                                                 

दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥                                                                              

अध्याय की आहूति उपरान्त

ॐ जय जय मार्कण्डेय पुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवी माहात्म्ये सत्या सन्तु (यजमानस्य कामा:) जगदम्बार्पणमस्तु ।

ऐसा कहकर जल छोड़ें।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती की सम्पूर्ण आहूति विस्तारपूर्वक वर्णन-  

हवनात्मक दुर्गा सप्तशती

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती - निर्मित कुण्ड में अष्टदल के अन्दर अग्नि की सप्तजिह्वा को बनाकर हवनकर्ता आसन की कुशाओं के अग्रभाग को पूर्व या उत्तर की ओर करके बिछकर उस पर बैठें और आचमन प्रणायाम आदि सामान्य कर्म करके संकल्प करें-  

'ॐ विष्णु.......दुर्गापूजनकर्माङ्गभूतहोमकर्मांगभूतकुण्डपूजनादिपूर्वकभूशोधनपूर्वकपंचभूसंस्कारादिसहितः 'कुण्डे अग्निस्थापनं हवन करिष्ये'

अब वैदिक विधि से अग्नि स्थापना करके स्वस्ति वाचन करे। तत्पश्चात् लकड़ियों को अग्नि पर स्थापित कर कुण्ड के मध्य अथवा नैर्ऋत्य में अग्नि की पूजा करें। अग्नि के दक्षिण दिशा में कुशा का आसन बिछाये और उस पर कर्मज्ञाता चतुर्वेदी श्रोत्रिय ब्राह्मण को ब्रह्मा नामक ऋत्विक् के कर्म के लिये वरण कर उन्हें बिठायें । ब्रह्मासन के समीप में यजमान का आसन बिछाये। तथा हवन प्रारम्भ करें-

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

अथ होम प्रकरणम्

सबसे पहले अग्नि में निम्न मंत्र से घी की धारा छोड़ें-

ॐ प्रजापतये (स्वाहा) । इदं प्रजापतये न मम (मनसा) ।

'ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय न मम । '

'ॐ अग्नये स्वाहा । इदमग्नये न मम।'

'ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय न मम।'

इसके पश्चात गणेशाम्बिका,  नवग्रह, अधिदेवता प्रत्यधिदेवता, पंच लोकपाल, दशदिक्पालदेवता का होम करें ।

अथ प्रधान होम:

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती होमविधि

प्रधान होम (सप्तशती होम) के विषय ध्यान दे -

प्रधान आहुतियों में प्रयुक्त द्रव्य के विषय में देवीरहस्य और मारीचकल्पतन्त्र में यह कहा गया है-

'गर्ज गर्जेति मन्त्रेण सुरां दद्यात्प्रयत्नतः । अथवा माक्षिकं दद्याद्विशेषेण सुरेश्वरि ।। '

अर्थात् हे सुरेश्वरि ! हवन के समय गर्ज गर्ज (3.38) इस मन्त्र से प्रयत्न पूर्वक सुरा की आहुति दे अथवा विशेष तौर पर शहद की आहुति दे ।

'शूलेनेति चतुर्मन्त्रैर्नाहुतिं कश्चिदाचरेत् । यदि मोहाच्चरेद्वापि तस्य नाशो न संशयः ।। '

अर्थात् शूलेन इत्यादि तैरस्मान्रक्ष तक के चार मन्त्रों (4.24-27 ) से कोई भी साधक शाकल्य की आहुति न दे। यदि कोई साधक मोह वश शाकल्य की आहुति देता है तो निश्चय ही वह नष्ट हो जायेगा। किन्तु

'महालक्ष्मीत्यनेनैव चतुर्धा हवनं चरेत् । एवं स्तुता सुरैर्दिव्यैर्मन्त्रोणानेन साधकः ।।

गन्धपुष्पाणि सन्दद्यात्पूजयेज्जगदम्बिकाम् ।'

अर्थात् चारों श्लोक का पाठ कर 'ॐ महालक्ष्म्यै स्वाहा' इस मन्त्र से ही चार सामान्य आहुति प्रदान करे। एवं स्तुता (4.29 ) मन्त्र से गन्ध और पुष्प की ही आहुति देकर जगदम्बिका का पूजन करे।

'ततः कोपं च मन्त्रेण मसिं दद्यान्महेश्वरि ।। '

अर्थात् हे महेश्वरि! ततः कोपं ( 7.5) इस मन्त्र से मसी (कपूर युक्त काजल) की आहुति दे ।

'मुखेन काली मन्त्रान्ते रक्तं दद्यात्पशोरपि । अथवा कपिकाष्ठं च विकल्पेनैव होमयेत् ।।'

अर्थात् मुखेन काली (8.57) इस मन्त्र से पशु (बकरा अथवा भैंसा) के रक्त की आहुति दे अथवा विकल्प में लालचन्दन से हवन करे ।

'भक्षयन्त्याश्च मनुना दाडिमीकुसुमेन च । ततोऽहमिति मन्त्रेण शाकं दद्यात्तथोत्तमम् ।।'

अर्थात् भक्षयन्त्याश्च (11.44 ) इस मन्त्र से अनार अथवा अनार के पुष्प की आहुति दे । ततोऽहं (11.48) इस मन्त्र से शाक (पालक, सोआपालक, चौलाई) की आहुति दे ।

'यदा यदेति मन्त्रेण सिद्धार्धानपि होमयेत् । तदन्ते हवनं कुर्यात्प्रतिश्लोकेन पायसैः ।।'

अर्थात् इत्थं यदा यदा (11.54) इस मन्त्र से खीर का हवन करे। 11 वें अध्याय के अन्तिम मन्त्र (11.55 ) से भी मिश्रित शाकल्य की ही आहुति दे । शेष समस्त श्लोकों से हवन पायस से ही करें।' इनके बाद प्रत्येक अध्याय के अन्त में दी जानेवाली महा आहुति के बारे में विशेष बताये हैं। जो साधक मांस से परहेज नहीं करते हैं उन केलिये पहले बता रहे हैं

'छागं तु प्रथमे दद्यात् द्वितीये माहिषं तथा । तृतीये कारणेनैव सर्वकामार्थसिद्धये ।।'

अर्थात् प्रथम अध्याय के अन्त में बकरी का मांस, द्वितीय अध्याय के अन्त में भैंस का मांस, तृतीय अध्याय के अन्त में सकल कामनाओं की सिद्धि के लिये दारु की आहुति दे ।

'चतुर्थे तूर्यमांसेन लक्ष्मीकामार्थसिद्धये। पंचमे शशमांसेन मोहनार्थं महेश्वरि ।।'

अर्थात् हे महेश्वरि ! चौथे अध्याय के अन्त में लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये सूखा मांस और पांचवें अध्याय के अन्त में मोहन प्रयोग के लिये खरगोश के मांस की आहुति दे ।

' षष्ठे च सप्तमे देवि खड्गेनैव हुनेत्तथा । अष्टमे तु महेशानि वन्यवाराहकेण च ।।'

अर्थात् हे देवि ! छठे और सातवें अध्याय के अन्त में गैंडे के मांस की आहुति दे और हे महेशानि ! आठवें अध्याय के अन्त में जंगली सूअर के मांस की आहुति दे ।

'नवमे मार्जारमांसेन दशमे गोधया तथा । रौद्रे कुक्कुटमांसेन सर्वकामार्थसिद्धये ।। '

अर्थात् नौवें अध्याय के अन्त में समस्त कामनाओं की सिद्धि केलिये बिल्ली के मांस की आहुति दे, दसवें अध्याय का अन्त में गोह के मांस की आहुति दे और ग्यारहवें अध्याय के अन्त में मुर्गा के मांस की आहुति दे ।

'आदित्ये तु महेशानि जम्बुकेन तथैव च । त्रयोदशेऽश्वमांसेन विधिना साधकोत्तमः ।।'

अर्थात् हे महेशानि ! बारहवें अध्याय के अन्त में सियार के मांस से आहुति दे और तेरहवें अध्याय के अन्त में घोड़े के मांस से हवन करें।

जिन साधकों को मांस से परहेज हैं (यानि प्रयोग नहीं करना चाहते हैं ) उन केलिये विकल्प बता रहे हैं –

'प्रथमे मधुना कुर्याद् द्वितीये गुग्गुलेन च । तृतीये च प्रकर्तव्य माहिषेण घृतेन च ।। '

अर्थात् प्रथम अध्याय के अन्त में शहद, द्वितीय अध्याय के अन्त में गुग्गुल, तृतीय अध्याय के अन्त में भैंस के घी की आहुति दे ।

'शक्रादीनां स्तुतौ कुर्याद् गन्धाक्षतसमन्वितैः । कदली वेक्षुदण्डैश्च बबाण षष्ठे च सप्तमे ।।'

अर्थात् चौथे अध्याय के अन्त में मिश्रित गन्ध व अक्षत और पांचवें, छठे और सातवें अध्याय के अन्त में पके केले के टुकड़े अथवा गन्ने की आहुति दे ।

'रक्तबीजवधे कुर्याद् रक्तचन्दनमिश्रितम् । कुर्याद्धोमं प्रयत्नेन नानाद्रव्यैः समन्वितम् ।।'

अर्थात् आठवें अध्याय के अन्त में नाना सुगन्धित द्रव्यों से युक्त लाल चन्दन के चूरे की आहुति दे ।

'नवमे दशमे चैव नारायणिस्तुतौ तथा । गन्धपुष्पैः प्रकर्तव्यं पायसेन समन्वितम् ।।'

अर्थात् नौवे, दसवें और ग्यारहवें अध्याय के अन्त में खीर से युक्त गन्ध और पुष्प से आहुति दे ।

'शतपत्रैश्च कर्तव्यं गोरोचनसमन्वितम् । द्वादशे त्रयोदशे चैव कर्तव्यं तु यथाविधिः ।।'

अर्थात् बारहवें और तेरहवें अध्याय के अन्त में गोरोचन मिश्रित गेंदे के पत्तों से हवन करें । तत्पश्चात् रहस्यादि के विषय में कहा गया है कि-

'पंचखाद्येन कर्तव्यं रहस्यादि यथाक्रमम् । एतत्क्रमेण कर्तव्यं द्रव्यं चैव मनोहरम् ।। '

अर्थात् तीनों रहस्यों के मन्त्रों से तिल, जौ, चावल, चीनी और घी इन पांच खाद्यों का ही आहुति दें। इस क्रम से ही मनोहर द्रव्यों को संपादन कर हवन करना चाहिये ।

'आद्यन्ते च प्रकर्तव्यं पायसं शर्करान्वितम् । नीलव्रीहियवश्चैव होतव्यं च घृताप्लुतम् ।।

अन्यथा कुरुते यस्तु तत्सर्वं निष्फलं भवेत् ।।'

अर्थात् आदि और अन्त में नवार्ण मन्त्र की आहुति में चीनी और घी से मिश्रित तिल, चावल और जौ की आहुति दें। इसके विपरीत जो साधक हवन करता है उसके समस्त कार्य निष्फल होते हैं।

विशेष सूचना:- साधकों की सुविधा के लिये लोकाचार और उक्त के अनुसार हवन को करने में न हो इसलिये प्रत्येक मन्त्र में सुनिश्चित आहुति द्रव्य को मन्त्र से पहले दर्शाया जा रह है। दर्शायी गयी सामग्री को अर्ध्वयु/ यजमान / प्रतिनिधि द्वारा ही डाला जायेगा। शेष उपस्थित होतृगण और आहुति देने वाले अन्य सभी केवल शाकल्य की ही आहुति देंगे।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। मधुकैटभ वधः ।।

।। प्रथमाध्याये आहुतयः । ।

अथ विनियोगः -

ॐ अस्य प्रथमचरित्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, महाकाली देवता, नन्दा शक्तिः, रक्तदन्तिका बीजम्, अग्निस्तत्त्वम्, ऋग्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहाकालीप्रीत्यर्थे प्रथमचरित्रहोमे विनियोगः ।

(जल छोड़े)

अथ ध्यानम् :-

खड्गं चक्रगदेशुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः,

शंखं सन्दधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम् ।

नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां,

यामस्तत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ।। ॐ महाकाल्यै नमः ।

1.लाजा (खील) ।

ॐ ऐं मार्कण्डेय उवाच ।। 1 ।।

2. अर्क (आंक)

सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः । निशामय तदुत्पत्तिं विस्तराद् गदतो मम ।।2।।

3.अर्क ।

महामायानुभावेन यथा मन्वन्तराधिपः । स बभूव महाभागः सावर्णिस्तनयो रवेः ।।3।।

4. पायस (खीर), घृत (घी)।

स्वरोचिषेऽन्तरे पूर्वं चैत्रवंशसमुद्भवः । सुरथो नाम राजाऽभूत् समस्ते क्षितिमण्डले ।।4।।

5. अपामार्ग, शमी ।

तस्य पालयतः सम्यक्प्रजाः पुत्रानिवौरसान् । बभूवुः शत्रवो भूपाः कोलाविध्वंसनस्तथा ।।5।।

6.कुशा, शमी ।

तस्य तैरभवद्युद्धमतिप्रबलदण्डिनः । न्यूनैरपि स तैर्युद्धे कोलाविध्वंसिभिर्जितः ।। 6 ।।

7. खदिर (खैर) ।

ततः स्वपुरमायातो निजदेशाधिपोऽभवत् । आक्रान्तः स महाभागस्तैस्तदा प्रबलारिभिः ।। 7 ।।

8. पायस (खीर), घृत (घी)।

अमात्यैर्बलिभिर्दुष्टैदुर्बलस्य दुरात्मभिः । कोषो बलं चापहृतं तत्रापि स्वपुरे ततः ।। 8 ।।

9. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो मृगया व्याजेन हृतस्वाम्यः स भूपतिः । एकाकी हयमारुह्य जगाम गहनं वनम् ।।9।।

10. दूर्वा, कुशा ।

स तत्राश्रममद्राक्षीद् द्विजवर्यस्य मेधसः । प्रशान्तश्वापदाकीर्णं मुनिशिरष्योपशोभितम् ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्थौ कंचित्स कालं च मुनिना तेन सत्कृतः । इतश्चेतश्च विचरंस्तस्मिन् मुनिवराश्रमे ।।11।।

12. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सोऽचिन्तयत् तदा तत्र ममत्वाकृष्टचेतनः । मत्पूर्वैः पालितं पूर्वं मया हीनं पुरं हि तत् ।। 12 ।।

13. पायस (खीर), घृत (घी)।

मद्भृत्यैस्तैरसद्वृत्तैर्धर्मतः पाल्यते न वा । न जाने स प्रधानो मे शूरहस्ती सदामदः ।।13।।

14. पायस (खीर), घृत (घी)।

मम वैरिवशं यातः कान्भोगानुपलप्स्यते । ये ममानुगता नित्यं प्रसादधनभोजनैः ।।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अनुवृत्तिं ध्रुवं तेऽद्य कुर्वन्त्यन्यमहीभृताम् । असम्यग्व्ययशीलैस्तैः कुर्वद्भिः सततं व्ययम् ।।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी) ।

संचितः सोऽतिदुःखेन क्षयं कोशो गमिष्यति । एतच्चान्यच्च सततं चिन्तयामास पार्थिवः ।। 16 ।।

17. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तत्र विप्राश्रमाभ्यासे वैश्यमेकं ददर्श सः । स पृष्टस्तेन कस्त्वं भो हेतुश्चागमनेऽत्र कः ।।17।।

18. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सशोक इव कस्मात्त्वं दुर्मना इव लक्ष्यसे । इत्याकर्ण्य वचस्तस्य भूपतेः प्रणयोदितम् ।।18।।

19. पायस (खीर), घृत (घी) ।

प्रत्युवाच स तं वैश्यः प्रश्रयावनतो नृपम् ।।19।।

20. शाकल्य ।

वैश्य उवाच ।। 20 ।।

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

समाधिर्नाम वैश्योऽहमुत्पन्नो धनिनां कुले ।।21।।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पुत्रदारैर्निरस्तश्च धनलोभादसाधुभिः । विहीनश्च धनैर्दारैः पुत्रैरादाय मे धनम् । । 22 ।।

23. पायस (खीर), घृत (घी) ।

वनमभ्यागतो दुःखी निरस्तश्चाप्तबन्धुभिः । सोऽहं न वेद्मि पुत्राणां कुशलाकुशलात्मिकाम् ।। 23 ।।

24. पायस (खीर), घृत (घी) ।

प्रवृत्तिं स्वजनानां च दाराणां चात्र संस्थितः । किं नु तेषां गृहे क्षेममक्षेमं किं नु साम्प्रतम् ।। 24।।

25. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कथं ते किं नु सद्वृत्ताः दुर्वृत्ताः किं नु मे सुताः ।। 25।।

26. गोरोचन, चन्दन ।

राजोवाच ।।26 ।।

27. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यैर्निरस्तो भवांल्लुब्धैः पुत्रदारादिभिर्धनैः ।। 27 ।।

28. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तेषु किं भवतः स्नेहमनुबध्नाति मानसम् ।।28।।

29. शाकल्य ।

वैश्य उवाच ।। 29 ।।

30. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एवमेतद्यथा प्राह भवानस्मद्गतं वचः ।।30 ।।

31. पायस (खीर), घृत (घी) ।

किं करोमि न बध्नाति मम निष्ठुरतां मनः । यैः सन्त्यज्य पितृस्नेहं धनलुब्धैर्निराकृतः ।। 31 ।।

32. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पतिस्वजनहार्दं च हार्दि तेष्वेव मे मनः । किमेतन्नाभिजानामि जानन्नपि महामते ।। 32 ।।

33. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यत्प्रेमप्रवणं चित्तं विगुणेष्वपि बन्धुषु । तेषां कृते मे निःश्वासो दौर्मनस्यं च जायते ।।33।।

34. पायस (खीर), घृत (घी) ।

करोमि किं यन्न मनस्तेष्वप्रीतिषु निष्ठुरम् ।।34।।

35. लाजा (खील) ।

मार्कण्डेय उवाच ।। 35।।

36. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततस्तौ सहितौ विप्र तं मुनिं समुपस्थितौ । समाधिर्नाम वैश्योऽसौ स च पार्थिवसत्तमः ।।36।।

37. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कृत्वा तु तौ यथान्यायं यथार्हं तेन संविदम् ।। 37।।

38. पायस (खीर), घृत (घी) ।

उपविष्टौ कथाः काश्चिच्चक्रतुर्वैश्यपार्थिवौ ।।38 ।।

39. गोरोचन, चन्दन ।

राजोवाच ।।39 ।।

40. पायस (खीर), घृत (घी) ।

भगवांस्त्वामहं प्रष्टुमिच्छाम्येकं वदस्व तत् ।। 40 ।।

41. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दुःखाय यन्मे मनसः स्वचित्तायत्ततां विना । ममत्वं गतराज्यस्य राज्यांगेष्वखिलेष्वपि ।। 41 ।।

42. पायस (खीर), घृत (घी) ।

जानतोऽपि यथाऽज्ञस्य किमेतन्मुनिसत्तम । अयं च निकृतः पुत्रैर्दारैर्भृत्यैस्तथोज्झितः ।। 42 ।।

43. लौंग ।

स्वजनेन च सन्त्यक्तस्तेषु हार्दी तथाप्यति । एवमेष तथाहं च द्वावप्यत्यन्तदुःखितौ ।। 43 ।।

44. लौंग ।

दृष्टदोषोऽपि विषये ममत्वाकृष्टमानसौ । तत्किमेतन्महाभाग यन्मोहो ज्ञानिनोरपि ।।44 ।।

45. लौंग ।

ममास्य च भवत्येषा विवेकान्धस्य मूढता ।। 45 ।।

46. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 46 ।।

47. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ज्ञानमस्ति समस्तस्य जन्तोर्विषयगोचरे ।।47।।

48. पायस (खीर), घृत (घी)।

विषयश्च महाभाग याति चैवं पृथक्पृथक्। दिवान्धाः प्राणिनः केचिद्रात्रान्धास्तथापरे ।। 48।।

49. पायस (खीर), घृत (घी) ।

केचिद् दिवा तथा रात्रौ प्राणिनस्तुल्यदृष्टयः । ज्ञानिनो मनुजाः सत्यं किन्नु ते न हि केवलम् ।। 49 ।।

50. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यतो हि ज्ञानिनः सर्वे पशुपक्षिमृगादयः । ज्ञानं च तन्मनुष्याणां यत्तेषां मृगपक्षिणाम् ।। 50 ।।

51. चावल, जौ ।

मनुष्याणां च यत्तेषां तुल्यमन्यत्तथोभयोः । ज्ञानेऽपि सति पश्यैतान् पतंगाञ्छावचंचुषु ।।51।।

52. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कणमोक्षादृतान्मोहात्पीड्यमानानपि क्षुधा । मानुषा मनुजव्याघ्र साभिलाषाः सुतान्प्रति ।। 52 ।।

53. पायस (खीर), घृत (घी) ।

लोभात्प्रत्युपकाराय नन्वेतान् किन्न पश्यसि । तथापि ममतावर्ते मोहगर्ते निपातिताः ।। 53।।

54. विजया (भांग) ।

महामायाप्रभावेण संसारस्थितिकारिणा । तन्नात्र विस्मयः कार्यों योगनिद्रा जगत्पतेः ।। 54।।

55. विजया (भांग), छोटी इलायची ।

महामाया हरेश्चैतत्तथा संमोह्यते जगत् । ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।।55।।

56. शर्करा (चीनी) ।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति । तया विसृज्यते विश्वं जगदेतच्चराचरम् ।।56।।

57. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सैषा प्रसन्ना वरदा नृणां भवति मुक्तये । सा विद्या परमा मुक्तेर्हेतुभूता सनातनी ।। 57 ।।

58. पायस (खीर), घृत (घी) ।

संसारबन्धहेतुश्च सैव सर्वेश्वरेश्वरी ।।58 ।।

59. गोरोचन, चन्दन ।

राजोवाच ।।59 ।।

60. पायस (खीर), घृत (घी) ।

भगवन् का हि सा देवी महामायेति यां भवान् ।। 60 ।।

61. पायस (खीर), घृत (घी)।

ब्रवीति कथमुत्पन्ना सा कर्मास्याश्च किं द्विज । यत्प्रभावा च सा देवी यत्स्वरूपा यदुद्भवा ।।61।।

62. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि त्वत्तो ब्रह्मविदां वर ।। 62 ।।

63. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।63।।

64. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम् ।। 64।।

65. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम । देवानां कार्यसिद्ध्यर्थमाविर्भवति सा यदा ।। 65 ।।

66. मिश्री ।

उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते । योगनिद्रां यदा विष्णुर्जगत्येकार्णवीकृते ।। 66 ।।

67. पीपलपत्ता, कमलगट्टे ।

आस्तीर्य शेषमभजत् कल्पान्ते भगवान् प्रभुः । तदा द्वावसुरौ घोरौ विख्यातौ मधुकैटभौ ।।67।।

68. समुद्री झाग, उड़द ।

विष्णुकर्णमलोद्भूतौ हन्तुं ब्रह्माणमुद्यतौ । स नाभिकमले विष्णोः स्थितो ब्रह्मा प्रजापतिः ।। 68 ।।

69. कमलगट्टे ।

दृष्ट्वा तावसुरौ चोग्रौ प्रसुप्तं च जनार्दनम् । तुष्टाव योगनिद्रां तामेकाग्रहृदयस्थितः ।। 69 ।।

70. कमलगट्टे

विबोधनार्थाय हरेर्हरिनेत्रकृतालयाम् । विश्वेश्वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम् ।। 70 ।।

71. कमलफूल, हल्दी ।

निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजसः प्रभुः ।।71।।

72. कमलफूल, हल्दी ।

ब्रह्मोवाच ।। 72 ।।

73. कमलफूल ।

त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कारः स्वरात्मिका ।। 73 ।।

74. दूर्वा, कुशा।

सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता । अर्द्धमात्रा स्थिता नित्या यानुच्चार्य विशेषतः ।।74 ।।

75. मिश्री ।

त्वमेव सन्ध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा । त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत् ।। 75।।

76. पायस (खीर), घृत (घी) ।

त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा । विसृष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने ।। 76।।

77. राई ।

तथा संहतिरूपान्ते जगतोऽस्य जगन्मये । महाविद्या महामाया माहामेधा महास्मृतिः ।। 77 ।।

78. राई ।

महामोहा च भवती महादेवी महेश्वरी । प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी।। 78 ।।

79. लाजा, मिश्री, शहद, सहदेवी।

कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा । त्वं श्रीस्त्वमीश्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिबोधलक्षणा ।। 79।।

80. पायस (खीर), घृत (घी) ।

लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शान्तिः क्षान्तिरेव च । खड्गिनी शूलिनी घोरागदिनीचक्रिणी तथा ।।80।।

81. पायस (खीर), घृत (घी)।

शंखिनी चापिनी बाणभुशुण्डी परिघायुधा । सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी ।। 81 ।।

82. पायस (खीर), घृत (घी) ।

परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी । यच्च किंचित्क्वचिद्वस्तु सदसद्वाखिलात्मिके ।।82 ।।

83. राई, हल्दी, घृत ।

तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा । यया त्वया जगत्स्रष्टा जगन्पात्यत्ति यो जगत् ।। 83 ।।

84. जायफल, भांग ।

सोऽपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः । विष्णुः शरीरग्रहणमहमीशान एव च ।।84।।

85. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कारितास्ते यतोऽतस्त्वां कः स्तोतुं शक्तिमान्भवेत् । सा त्वमित्थं प्रभावैः स्वैरुदारैर्देवि संस्तुता ।। 85 ।।

86. पायस (खीर), घृत (घी) ।

मोहयैतौ दुराधर्षावसुरौ मधुकैटभौ । प्रबोधं च जगत्स्वामी नीयतामच्युतो लघु ।। 86 ।।

87. विजया (भांग) ।

बोधश्च क्रियतामस्य हन्तुमेतौ महासुरौ ।।87।।

88. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 88 ।।

89. कमलगट्टे ।

एवं स्तुता तदा देवी तामसी तत्र वेधसा ।।89।।   

90. पायस (खीर), घृत (घी) ।

विष्णोः प्रबोधनार्थाय निहन्तुं मधुकैटभौ । नेत्रास्यनासिका - बाहु - हृदयेभ्यस्तथोरसः ।। 90 ।।

91. पायस (खीर), घृत (घी) ।

निर्गम्य दर्शने तस्थौ ब्रह्मणोऽव्यक्तजन्मनः । उत्तस्थौ च जगन्नाथस्तया मुक्तो जनार्दनः ।। 91।।

92. रक्तगुंजा, राई ।

एकार्णवेऽह्निशयनात्ततः स ददृशे च तौ । मधुकैटभौ दुरात्मानावतिवीर्यपराक्रमौ ।। 92 ।।

93. पायस (खीर), घृत (घी) ।

क्रोधरक्तेक्षणावत्तुं ब्रह्माणं जनितोद्यमौ । समुत्थाय ततस्ताभ्यां युयुधे भगवान् हरिः ।।93।।

94. राई ।

पंचवर्षसहस्राणि बाहुप्रहरणो विभुः । तावप्यतिबलोन्मत्तौ महामायाविमोहितौ ।। 94 ।।

95. पायस (खीर), घृत (घी) ।

उक्तवन्तौ वरोऽस्मत्तो व्रियतामिति केशवम् ।।95 ।।

96. शाकल्य ।

भगवानुवाच ।।96।।

97. पायस (खीर), घृत (घी)।

भवेतामद्य मे तुष्टौ मम वध्यावुभावपि ।।97 ।।

98. पायस (खीर), घृत (घी) ।

किमन्येन वरेणात्र एतावद्धि वृतं मम ।।98 ।।

99. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 99 ।।

100. कर्पूर ।

वंचिताभ्यामिति तदा सर्वमापोमयं जगत् ।। 100 ।।

101. कमलगट्टे ।

विलोक्य ताभ्यां गदितो भगवान् कमलेक्षणः । आवां जहि न यत्रोर्वी सलिलेन परिप्लुता ।।101।।

102. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।102 ।।

103. शंखपुष्पी, गुग्गुल, शहद, केला ।

तथेत्युक्त्वा भगवता शंखचक्रगदाभृता । कृत्वा चक्रेण वै छिन्ने जघने शिरसी तयोः ।।103 ।।

104. कमलफूल ।

एवमेषा समुत्पन्ना ब्रह्मणा संस्तुता स्वयम् । प्रभावमस्या देव्यास्तु भूयः शृणु वदामि ते ।।104 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये प्रथमः ।

हरिः ॐ तत्सत्। सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

105. अथ प्रथमाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि - स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै, सपरिवारायै, सवाहनायै, सायुधायै, सशक्तिकायै, वाग्भवकूटबीजाधिष्ठात्र्यै प्रथमाध्यायाधिष्ठात्र्यै प्रथमचरित्राधिष्ठात्र्यै च महाकाल्यै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेय पुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये प्रथमाध्यायाधिष्ठात्री

प्रथमचरित्राधिष्ठात्री च महाकाली सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।105 ।। (जल छोड़े)

।।1 एका महाहुति सहित 49 एकोनपंचाशत् विशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 50 पंचाशत् ।। ।। पंचपंचाशत्सामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 105 पंचाधिकं शतं । । ।। मधुकैटभ वधः । । इति प्रथमाध्याये आहुतयः । ।

हवनात्मक दुर्गा सप्तशती

।। महिषासुरसैन्य वधः । ।

।। द्वितीयाध्याये आहुतयः । ।

अथ विनियोगः- 

ॐ अस्य मध्यमचरित्रस्य विष्णुऋषिः, उष्णिक्छन्दः, महालक्ष्मी देवता, शाकम्भरी शक्तिः, दुर्गा बीजम् वायुस्तत्त्वम्, यजुर्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थे मध्यमचरित्रहोमे विनियोगः ।

अथ ध्यानम् :-

ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां,

दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।

शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां,

सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ।। ॐ श्रीलक्ष्म्यै नमः ।।

1.लौंग ।

ॐ ह्रीं ऋषिरुवाच ।। 1 ।।

2.जिमिकन्द, गुग्गुल ।

देवासुरमभूद्युद्धं पूर्णमब्दशतं पुरा। महिषेऽसुराणामधिपे देवानां च पुरन्दरे । । 2 ।।

3.पायस (खीर), घृत (घी) ।

तत्रासुरैर्महावीर्यैर्देवसैन्यं पराजितम् । जित्वा च सकलान्देवानिन्द्रोऽभून्महिषासुरः ।।3।।

4. पायस (खीर), घृत (घी)।

ततः पराजिता देवाः पद्मयोनिं प्रजापतिम् । पुरस्कृत्य गतास्तत्र यत्रेशगरुडध्वजौ ।।4।।

5. पायस (खीर), घृत (घी)।

यथावृत्तं तयोस्तद्वन्महिषासुरचेष्टितम् । त्रिदशाः कथयामासुर्देवाभिभवविस्तरम् ।।5।।

6. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सूर्येन्द्राग्न्यनिलेन्दूनां यमस्य वरुणस्य च । अन्येषां चाधिकारान्स स्वयमेवाधितिष्ठति ।।6।।

7.पायस (खीर), घृत (घी) ।

स्वर्गान्निराकृताः सर्वे तेन देवगणा भुवि । विचरन्ति यथा मर्त्या महिषेण दुरात्मना ।। 7 ।।

8.पायस (खीर), घृत (घी) ।

एतद्वः कथितं सर्वममरारिविचेष्टितम् । शरणं वः प्रपन्नाः स्मो वधस्तस्य विचिन्त्यताम् ।।8।।

( इदमधिकं - लौंग । ऋषिरुवाच ।। 8 ।। )

9. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इत्थं निशम्य देवानां वचांसि मधुसूदनः । चकार कोपं शम्भुश्च भ्रुकुटीकुटिलाननौ ।। 9 ।।

10. नीम, गिलोय, आंवला, जायफल ।

ततोऽतिकोपपूर्णस्य चक्रिणो वदनात्ततः । निश्चक्राम महत्तेजो ब्रह्मणः शंकरस्य च ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अन्येषां चैव देवानां शक्रादीनां शरीरतः । निर्गतं सुमहत्तेजस्तच्चैक्यं समगच्छत ।।11।।

12. कर्पूर ।

अतीव तेजसः कूटं ज्वलन्तमिव चर्वतम् । ददृशुस्ते सुरास्तत्र ज्वालाव्याप्तदिगन्तरम्।।12।।

13. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेवशरीरजम् । एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा । । 13 ।।

14. जटामांसि, विष्णुक्रान्ता ।

यदभूच्छाम्भवं तेजस्तेनाजायत तन्मुखम् । याम्येन चाभवन् केशा बाहवो विष्णुतेजसा ।।14।।

15. विष्णुक्रान्ता, आम्रफल, आम्रपत्र ।

सौम्येन स्तनयोर्युग्मं मध्यं चैन्द्रेण चाभवत् । वारुणेन च जङ्घोरू नितम्बस्तेजसा भुवः ।।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ब्रह्मणस्तेजसा पादौ तदङ्गुलयोऽर्कतेजसा । वसूनाञ्च कराङ्गुल्यः कौबेरेण च नासिका ।।16।।

17. कर्पूर ।

तस्यास्तु दन्ताः सम्भूताः प्राजापत्येन तेजसा । नयनत्रितयं जज्ञे तथा पावकतेजसा ।।17।।

18. रक्तचन्दन ।

भ्रुवौ च सन्ध्ययोस्तेजः श्रवणावनिलस्य च । अन्येषां चैव देवानां सम्भवस्तेजसां शिवा ।।18।।

19. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः समस्तदेवानां तेजोराशिसमुद्भवाम् । तां विलोक्य मुदं प्रापुरमरा महिषार्दिताः । । 19 ।।

20. लौंग ।

 (इदमधिकं पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो देवा ददुस्तस्यै स्वानि स्वान्यायुधानि च । ऊचुर्जयजयेत्युच्चैर्जयन्तीं ते जयैषिणः ।।20 ।। )

शूलं शूलाद्विनिष्कृत्य ददौ तस्यै पिनाकधृक् । चक्रं च दत्तवान् कृष्णः समुत्पाद्य स्वचक्रतः ।। 20।।

21. शंखपुष्पी ।

शङ्खञ्च वरुणः शक्तिं ददौ तस्यै हुताशनः । मारुतो दत्तवांश्चापं बाणपूर्णे तथेशुधी ।।21।।

22. लौंग ।

वज्रमिन्द्रः समुत्पाद्य कुलिशादमराधिपः । ददौ तस्यै सहस्राक्षो घण्टामैरावताद् गजात् ।। 22 ।।

23. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कालदण्डाद्यमो दण्डं पाशं चाम्बुपतिर्ददौ । प्रजापतिश्चाक्षमालां ददौ ब्रह्मा कमण्डलुम्।। 23।।

24. पायस (खीर), घृत (घी) ।

समस्तरोमकूपेषु निजरश्मीन्दिवाकरः । कालश्च दत्तवान्खड्गं तस्याश्चर्म च निर्मलम् । । 24।।

25. पुष्प, शाकल्य ।

क्षीरोदश्चामलं हारमजरे च तथाम्बरे । चूडामणिं तथा दिव्यं कुण्डले कटकानि च ।।25 ।।

26. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अर्धचन्द्रं तथा शुभ्रं केयूरान् सर्वबाहुषु । नूपुरौ विमलौ तद्वद् ग्रैवेयकमनुत्तमम् ।। 26 ।।

27. स्वर्णमुद्रा, अंगूठी ।

अङ्गुलीयकरत्नानि समस्तास्वङ्गुलीषु च । विश्वकर्मा ददौ तस्यै परशुञ्चातिनिर्मलम् ।। 27 ।।

28. कर्पूर ।

अस्त्राण्यनेकरूपाणि तथाभेद्यं च दंशनम् । अम्लानपङ्कजां मालां शिरस्युरसि चापराम्।।28।।

29. कमलगट्टे ।

अददज्जलधिस्तस्यै पङ्कजं चातिशोभनम् । हिमवान् वाहनं सिंहं रत्नानि विविधानि च ।। 29 ।।

30. शहद।

ददावशून्यं सुरया पानपात्रं धनाधिपः । शेषश्च सर्वनागेशो महामणिविभूषितम् । ।30 ।।

31. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नागहारं ददौ तस्यै धत्ते यः पृथिवीमिमाम् । अन्यैरपि सुरैर्देवी भूषणैरायुधैस्तथा । । 31।।

32. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सम्मानिता ननादौच्चैः साट्टहासं मुहुर्मुहुः । तस्या नादेन घोरेण कुत्स्नमापूरितं नभः ।। 32 ।।

33. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अमायतातिमहता प्रतिशब्दो महानभूत्। चुक्षुभुः सकला लोकाः समुद्राश्च चकम्पिरे ।।33।।

34. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चचाल वसुधा चेलुः सकलाश्च महीधराः । जयेति देवाश्च मुदा तामूचुः सिंहवाहिनीम् ।।34 ।।

35. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तुष्टुवुर्मुनयश्चैनां भक्तिनम्रात्ममूर्तयः । दृष्ट्वा समस्तं संक्षुब्धं त्रैलोक्यममरारयः ।। 35 ।।

36. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सन्नद्धाखिलसैन्यास्ते समुत्तस्थुरुदायुधाः । आः किमेतदिति क्रोधादाभाष्य महिषासुरः ।। 36 ।।

37. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अभ्यधावत तं शब्दमशेषैरसुरैर्वृतः । स ददर्श ततो देवीं व्याप्तलोकत्रयं त्विषा ।।37 ।।

38. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पादाक्रान्त्या नतभुवं किरीटोल्लिखिताम्बरम् । क्षोभिताशेषपातालां धनुर्ज्यानिः स्वनेन ताम् ।। 38 ।।

39. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दिशो भुजसहस्रेण समन्ताद्व्याप्य संस्थिताम् । ततः प्रववृते युद्धं तया देव्या सुरद्विषाम् ।। 39 ।।

40. पायस (खीर), घृत (घी) ।

शस्त्रास्त्रैर्बहुधा मुक्तैरादीपितदिगन्तरम् । महिषासुरसेनानीश्चिक्षुराख्यो महासुरः ।। 40 ।।

41. पायस (खीर), घृत (घी) ।

युयुधे चामरश्चान्यैश्चतुरङ्गबलान्वितः । रथानामयुतैः षड्भिरुदग्राख्यो महासुरः ।।41।।

42. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अयुध्यतायुतानाञ्च सहस्रेण महाहनुः । पञ्चाशद्भिश्च नियुतैरसिलोमा महासुरः ।।42 ।।

43. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अयुतानां शतैः षड्भिर्वाष्कलो युयुधे रणे। गजवाजिसहस्रौघैरनेकैरुग्रदर्शनः ।। 43 ।।

44. पायस (खीर), घृत (घी) ।

वृतो रथानां कोट्या च युद्धे तस्मिन्नयुध्यत । बिडालाक्षोऽयुतानाञ्च पञ्चाशद्भिरथायुतैः ।। 44 ।।

(इदमधिकं पायस (खीर), घृत (घी) ।

वृतः कालो रथानाञ्च रणे पञ्चाशतायुतैः । युयुधे संयुगे तत्र रथानां परिवारितः ।। 44क ।। )

45. पायस (खीर), घृत (घी) ।

युयुधे संयुगे तत्र तावद्भिः परिवारितः । अन्ये च तत्रायुतशो रथनागहयैर्वृतः ।। 45 ।।

46. पायस (खीर), घृत (घी) ।

युयुधुः संयुगे देव्या सह तत्र महासुराः । कोटिसहस्रैस्तु रथानां दन्तिनां तथा ।।46 ।।

47. पायस (खीर), घृत (घी) ।

हयानाञ्च वृतो युद्धे तत्राभून्महिषासुरः । तोमरैर्भिन्दिपालैश्च शक्तिभिर्मुसलैस्तथा ।। 47 ।।

48. पायस (खीर), घृत (घी) ।

युयुधुः संयुगे देव्या खड्गैः परशुपट्टिशैः । केचिच्च चिक्षिपुः शक्ती: केचित्पाशांस्तथापरे ।। 48 ।।

49. पायस (खीर), घृत (घी) ।

देवीं खड्गप्रहारैस्तु ते तां हन्तुं प्रचक्रमतुः । सापि देवी ततस्तानि शस्त्राण्यस्त्राणि चण्डिका।।49।।

50. पायस (खीर), घृत (घी) ।

लीलयैव प्रचिच्छेद निजशस्त्रास्त्रवर्षिणी । अनायस्तानना देवी स्तूयमाना सुरर्षिभिः ।।50 ।।

51. पायस (खीर), घृत (घी) ।

मुमोचासुरदेहेषु शस्त्राण्यस्त्राणि चेश्वरी । सोऽपि क्रुद्धो धुतसटो देव्या वाहनकेसरी ।। 51 ।।

52. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चचारासुरसैन्येषु वनेष्विव हुताशनः । निःश्वासान्मुमुचे यांश्च युध्यमाना रणेऽम्बिका ।। 52 ।।

53. पायस (खीर), घृत (घी) ।

त एव सद्यः सम्भूता गणाः शतसहस्रशः । युयुधुस्ते परशुभिर्भिन्दिपालासिपट्टिशैः ।। 53 ।।

54. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नाशयन्तोऽसुरगणान् देवीशक्त्युपबृंहिताः । अवादयन्त पटहान् गणाः शंखांस्तथापरे ।। 54।।

55. पायस (खीर), घृत (घी) ।

मृदंगाश्च तथैवान्ये तस्मिन् युद्धमहोत्सवे । ततो देवी त्रिशूलेन गदया शक्तिवृष्टिभिः ।।55।।

56. पायस (खीर), घृत (घी) ।

खड्गादिभिश्च शतशो निजघान महासुरान् । पातयामास चैवान्यान् घण्टास्वनविमोहितान् ।। 56 ।।

57. हरताल ।

असुरान् भुवि पाशेन बद्ध्वा चान्यानकर्षयत् । केचिद् द्विधा कृतास्तीक्ष्णैः खड्गपातैस्तथापरे ।। 57 ।।

58. पायस (खीर), घृत (घी) ।

विपोथिता निपातेन गदया भुवि शेरते । वेमुश्च केचिदुधिरं मुसलेन भृशं हताः ।।58 ।।

59. पायस (खीर), घृत (घी) ।

केचिन्निपातिता भूमौ भिन्नाः शूलेन वक्षसि । निरन्तराः शरौघेण कृताः केचिद्रणाजिरे ।। 59 ।।

60. सरसों ।

शैलानुकारिणः प्राणान् मुमुचुस्त्रिदशार्दनाः । केषाञ्चिद्बाहवश्छिन्नग्रीवास्तथापरे ।।60 ।।

61. पायस (खीर), घृत (घी) ।

शिरांसि पेतुरन्येषामन्ये मध्ये विदारिताः । विच्छिन्नजङ्घास्त्वपरे पेतुरूर्व्यां महासुराः ।।61 ।।

62. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एकबाह्रक्षिचरणाः केचिद्देव्या द्विधा कृताः । छिन्नेऽपि चान्ये शिरसि पतिताः पुनरुत्थिताः ।। 62 ।।

63. कटहल ।

कबन्धा युयुधुर्देव्या गृहीतपरमायुधाः । ननृतुश्चापरे तत्र युद्धे तूर्यलयाश्रिताः ।। 63 ।।

64. कटहल, पेठा ।

कबन्धाश्छिन्नशिरसः खड्गशक्त्यृष्टिपाणयः । तिष्ठ तिष्ठेति भाषन्तो देवीमन्ये महासुराः ।। 64।।

(इदमधिकं - पायस (खीर), घृत (घी) ।

रुधिरौघविलुप्ताङ्गाः संग्रामे लोमहर्षणे ।। 64क ।। )

65. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पातितै रथनागाश्वैरसुरैश्च वसुन्धरा । अगम्या साऽभवत् तत्र यत्राभूत्स महारणः ।।65 ।।

66. पायस (खीर), घृत (घी) ।

शोणितौघा महानद्यः सद्यस्तत्र विसुस्रुवुः । मध्ये चासुरसैन्यस्य वारणासुरवाजिनाम् ।। 66 ।।

67. कर्पूर, दर्भ, सफेद चन्दन, राई ।

क्षणेन तन्महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका । निन्ये क्षयं यथा वह्निस्तृणदारुमहाचयम् ।।67 ।।

68. पायस (खीर), घृत (घी) ।

स च सिंहो महानादमुत्सृजन्धुतकेसरः । शरीरेभ्योऽमरारीणामसूनिव विचिन्वति ।। 68 ।।

69. बिल्वफल, गुग्गुल ।

देव्या गणैश्च तैस्तत्र कृतं युद्धं तथाऽसुरैः । यथैषां तुतुषुर्देवाः पुष्पवृष्टिमुचो दिवि ।। 69 ।।

।। जय-जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये द्वितीयः । हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

70. अथ द्वितीयाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै, सपरिवारायै, सवाहनायै, सायुधायै, सशक्तिकायै, द्वितीयाध्यायाधिष्ठात्र्यै च लक्ष्म्यै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर- अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये द्वितीयाध्यायाधिष्ठात्री लक्ष्मी सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।70।। (जल छोड़े)

।।1 एका महाहुति सहित 22 द्वाविंशति विशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 23 त्रयोविंशतिः ।।

।। 47 सप्तचत्वारिंशत्सामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 70 सप्ततिः । ।

।। महिषासुरसैन्यवधः ।। इति द्वितीयोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। महिषासुर वधः । ।

।। तृतीयाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां,

रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम् ।

हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं,

देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम् ।। ॐ श्रीविजयायै नमः ।।

1.लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।1।।

2. पायस (खीर), घृत (घी) ।

निहन्यमानं तत्सैन्यमवलोक्य महासुरः। सेनानीश्चिक्षुरः कोपाद्ययौ योद्धुमथाम्बिकाम् ।। 2 ।।

3.पायस (खीर), घृत (घी) ।

स देवीं शरवर्षेण ववर्ष समरेऽसुरः । यथा मेरुगिरेः शृङ्गं तोयवर्षेण तोयदः ।। 3 ।।

4. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्य च्छित्त्वा ततो देवी लीलयैव शरोत्करान् । जघान तुरगान् बाणैर्यन्तारं चैव वाजिनम् ।।4।।

5. पायस (खीर), घृत (घी)।

चिच्छेद च धनुः सद्यो ध्वजं चातिसमुच्छ्रितम् । विव्याध चैव गात्रेषु च्छिन्नधन्वानामाशुगैः ।। 5 ।।

6. नींबू ।

स च्छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः । अभ्यधावत तां देवीं खड्गचर्मधरोऽसुरः ।।6।।

7. पायस (खीर), घृत (घी)।

सिंहमाहत्य खड्गेन तीक्ष्णधारेण मूर्द्धनि । आजघान भुजे सव्ये देवीमप्यतिवेगवान् ।। 7 ।।

8.पायस (खीर), घृत (घी)।

तस्याः खड्गो भुजं प्राप्य चफाल नृपनन्दन । ततो जग्राह शूलं स कोपादरुणलोचनः ।। 8 ।।

9. शृंगार, रत्न, आभूषण, मणि, कर्पूर, दर्पण, लौंग ।

चिक्षेप च ततस्तत्तु भद्रकाल्यां महासुरः । जाज्वल्यमानं तेजोभी रविबिम्बमिवाम्बरात्।।9।।

10. कागजी नींबू, लौंग ।

दृष्ट्वा तदापतच्छूलं देवी शूलममुञ्चत। तच्छूलं शतधा तेन नीतं स च महासुरः ।।10।।

11. मैनशिल ।

हते तस्मिन् महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ । आजगाम गजारूढश्चामरस्त्रिदशार्दनः । ।11।।

12. गुग्गुल ।

सोऽपि शक्तिं मुमोचाथ देव्यास्तामम्बिका द्रुतम् । हुंकाराभिहतां भूमौ पातयामास निष्प्रभाम् ।।12।।

13. पायस (खीर), घृत (घी) ।

भग्नां शक्तिं निपतितां दृष्ट्वा क्रोधसमन्वितः । चिक्षेप चामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्।।13।।

14. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः सिंहः समुत्पत्य गजकुम्भान्तरे स्थितः । बाहुयुद्धेन युयुधे तेनोच्चैस्त्रिदशारिणा ।।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी) ।

युध्यमानो ततस्तौ तु तस्मान्नागान्महीं गतौ । युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहारैरतिदारुणैः ।।15।।

16. पालक ।

ततो वेगात्खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा । करप्रहारेण शिरश्चामरस्य पृथक्कृतम् ।।16।।

17. शिलाजीत, मैनशिल ।

उदग्रश्च रणे देव्या शिलावृक्षादिभिर्हतः । दन्तमुष्टितलैश्चैव करालश्च निपातितः ।। 17 ।।

18. पायस (खीर), घृत (घी) ।

देवी क्रुद्धा गदापातैश्चूर्णयामास चोद्धतम् । वाष्कलं भिन्दिपालेन बाणैस्ताम्रं तथान्धकम् ।।18।।

19. लौंग ।

उग्रास्यमुग्रवीर्यञ्च तथैव च महाहनुम् । त्रिनेत्रा च त्रिशूलेन जघान परमेश्वरी।।19।।

20. सरसों ।

बिडालस्यासिना कायात्पातयामास वै शिरः । दुर्द्धरं दुर्मुखं चोभौ शरैर्निन्ये यमक्षयम् ।।20।।

( अधिके द्वे - पायस (खीर), घृत (घी) ।

कालं च कालदण्डेन कालरात्रिरपातयत् । उग्रदर्शनमत्युग्रैः खड्गपातैरताडयत् ।। 20क ।।

पायस (खीर), घृत (घी) ।

असिनैवासिलोमानमच्छिदत् सा रणोत्सवे । गणैः सिंहेन देव्या च जयक्ष्वेडाकृतोत्सवैः ।। 20ख।।)

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एवं संक्षीयमाणे तु स्वसैन्ये महिषासुरः । माहिषेण स्वरूपेण त्रासयामास तान् गणान् ।।21।।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कांश्चित्तुण्डप्रहारेण खुरक्षेपैस्तथापरान्। लाङ्गूलताडितांश्चान्यान् शृङ्गाभ्याञ्च विदारितान्।। 22 ।।

23. पायस (खीर), घृत (घी) ।

वेगेन कांश्चिदपरान् नादेन भ्रमणेन च । निःश्वासपवनेनान्यान् पातयामास भूतले ।। 23 ।।

24. पायस (खीर), घृत (घी) ।

निपात्य प्रमथानीकमभ्यधावत सोऽसुरः । सिंहं हन्तुं महादेव्याः कोपं चक्रे ततोऽम्बिका ।। 24।।

25. खिरनी (फैन्नी), पेड़ा।

सोऽपि कोपान्महावीर्यः खुरक्षुण्णमहीतलः । शृङ्गाभ्यां पर्वतानुच्चैश्चिक्षेप च ननाद च ।। 25।।

26. गन्ना ।

वेगभ्रमणविक्षुण्णा मही तस्य व्यशीर्यत । लाङ्गूलेनाहतश्चाब्धि: प्लावयामास सर्वतः ।। 26 ।।

27. सिंघाड़ा।

धुतशृङ्गविभिन्नश्च खण्डं खण्डं ययुर्घनाः । श्वासानिलास्ताः शतशो निपेतुर्नभसोऽचलाः ।। 27 ।।

28. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इति क्रोधसमाध्मातमापतन्तं महासुरम् । दृष्ट्वा सा चण्डिका कोपं तद्बधाय तदाकरोत् ।। 28 ।।

29. हरताल ।

साक्षिप्त्वा तस्य वै पाशं तं बबन्ध महासुरम् । तत्याज माहिषं रूपं सोऽपि बद्धो महामृधे ।।  29 ।।

30. पायस (खीर), घृत (घी)।

ततः सिंहोऽभवत् सद्यो यावत्तस्याम्बिका शिरः । छिनत्ति तावत्पुरुषः खड्गपाणिरदृश्यत ।। 30 ।।

31. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तत एवाशु पुरुषं देवी चिच्छेद सायकैः । तं खड्गचर्मणा सार्द्धं ततः सोऽभून्महागजः ।।31।।

32. पायस (खीर), घृत (घी) ।

करेण च महासिंहं तं चकर्ष जगर्ज च । कर्षतस्तु करं देवी खड्गेन निरकृन्तत ।। 32 ।।

33. शर्करा, घृत, शहद (त्रिमधु) ।

ततो महासुर भूयो माहिषं वपुरास्थितः । तथैव क्षोभयामास त्रैलोक्यं सचराचरम् ।।33।।

34. शर्करा, घृत, शहद (त्रिमधु) ।

ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम् । पपौ पुनः पुनश्चैव जहासारुणलोचना ।। 34 ।।

35. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ननर्द चासुरः सोऽपि बलवीर्यमहोद्धतः । विषाणाभ्याञ्च चिक्षेप चण्डिकां प्रति भूधरान् ।।35।।

36. वच ।

सा च तान् प्रहितांस्तेन चूर्णयन्ती शरोत्करैः । उवाच तं मदोद्भूतमुखरागाकुलाक्षरम् ।। 36।।

37. रक्तकनेर, कमलफल, लौंग ।

देव्युवाच ।।37 ।।

38. शहद।

गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत्पिबाम्यहम् । मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः ।।38 ।।

39. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।39 ।।

40. शिलाजीत, काली उड़द, गोखरू, काली मूसली, कालीकरौंजी, सरसों ।

एवमुक्त्वा समुत्पत्य सारूढा तं महासुरम् । पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत् ।। 40 ।।

41. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः सोऽपि पदाक्रान्तस्तया निजमुखात्ततः । अर्द्धनिष्क्रान्त एवासीद् देव्या वीर्येण संवृतः ।।41।।

42. सालम पंजा, मूसली, लौकी, पेठा, कालीमिर्च, लौंग, उड़द, लौकी / पेठा ।

अर्द्धनिष्क्रान्त एवासौ युध्यमानो महासुरः । तया महासिना देव्या शिरक्छित्त्वा निपातितः ।। 42 ।।

(अधिके द्वे - पायस (खीर), घृत (घी) ।

एवं स महिषो नाम ससैन्यः ससुहृद्गणः । त्रैलोक्यं मोहयित्वा तु तया देव्या विनाशितः ।। 42क ।।

पायस (खीर), घृत (घी) ।

त्रैलोक्यस्थैस्तदा भूतैर्महिषे विनिपातिते । जयेत्युक्तं ततः सर्वैः सदेवासुरमानवैः ।।42ख ।। )

43. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत् । प्रहर्षञ्च परं जग्मुः सकला देवतागणाः ।। 43 ।।

44. गुलाल ।

तुष्टुवुस्तां सुरा देवीं सह दिव्यैर्महर्षिभिः । जगुर्गन्धर्वपतयो ननृतुश्चाप्सरोगणाः ।। 44 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये तृतीयः । हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

45. अथ तृतीयाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै, सपरिवारायै, सवाहनायै, सायुधायै, सशक्तिकायै, तृतीयाध्यायाधिष्ठात्र्यै विजयायै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये तृतीयाध्यायाधिष्ठात्री विजया सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।45।। (जल छोड़ें)

।।1 एका महाहुति सहित 19 एकोनविंशतिविशेषाहुतयः, समुदिताहुतय: 20 विंशतिः । ।। 25 पंचविंशतिसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतय: 45 पंचचत्वारिंशत् ।। 

।। महिषासुर वधः ।। इति तृतीयोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। शक्रादिस्तुतिः ।।

।। चतुर्थाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां,

शंखं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम् ।

सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं,

ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः ।। ॐ श्रीदुर्गायै नमः ।।

1. लौंग ।

ॐ ह्रीं ऋषिरुवाच ।।1।।

(इदमधिकं- पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः सुरगणाः सर्वे देव्या इन्द्रपुरोगमाः । स्तुतिमारेभिरे कर्तुं निहते महिषासुरे । । 1क । । )

2.पायस (खीर), घृत (घी) ।

शक्रादयः सुरगणा निहतेऽतिवीर्ये, तस्मिन्दुरात्मनि सुरारिबले च देव्या ।

तां तुष्टुवुः प्रणतिनम्रशिरोधरांसा, वाग्भिः प्रहर्षपुलकोद्गमचारुदेहाः ।।2।।

(इदमधिकं- पायस (खीर), घृत (घी) । देवा ऊचुः । 12क । । ) 

3.केला ।

देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या, निःशेषदेवगणशक्ति समूहमूर्त्या ।

तामम्बिकामखिलदेव महर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ।।3।।

4. केसर ।

यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्म हरश्च नहि वक्तुमलं बलं च ।

सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय, नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ।।4।।

5.विष्णुक्रान्ता, बिल्वफल ।

या श्रीः स्वयं सुकृतीनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धां सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा, तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ।।5।।

6.पायस (खीर), घृत (घी)।

किं वर्णयाम तव रूपमचिन्त्यमेतत् किं चातिवीर्यमसार क्षयकारि भूरि ।

किं चाहवेषु चरितानि तवाद्भुतानि, सर्वेषु देव्यसुरदेवगणादिकेषु ।।6।।

7. बिल्वफल ।

तुः समस्तजगतां त्रिगुणापि दोषैर्न ज्ञायसे हरिहरादिभिरप्यपारा ।

सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूतमव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या ।।7।।

8. हलुवा, मालपूवा, पक्वन्नादि, श्वेतचन्दन ।

यस्याः समस्तसुरता समुदीरणेन, तृप्तिं प्रयाति सकलेषु मखेषु देवि ।

स्वाहासि वै पितृगणस्य च तृप्तिहेतुरुच्चार्यसे त्वमत एव जनैः स्वधा च ।। 8 ।।

9.पायस (खीर), घृत (घी) ।

या मुक्तिहेतुरविचिन्त्यमहाव्रता त्वमभ्यस्यसे सुनियतेन्द्रियतत्त्वसारैः ।

मोक्षार्थिभिर्मुनिभिरस्तसमस्तदोषैर्विद्यासि सा भगवती परमा हि देवि ।।9।।

10. कर्पूर ।

शब्दात्मिका सुविमलर्ग्यजुषां निधानमुद्गीथरम्यपदपाठवतां च साम्नाम्।

देवी त्रयी भगवती भवभावनाय, वार्ता च सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री । ।10।।

11. ब्राह्मी, कर्पूर ।

मेधासि देवि विदिताखिलशास्त्रसारा, दुर्गासि दुर्गभवसागरनौरसङ्गा ।

श्रीः कैटभारिहृदयैककृताधिवासा, गौरी त्वमेव शशिमौलिकृतप्रतिष्ठा ।।11।।

12. बीजौरा नींबू ।

ईषत्सहासममलं परिपूर्णचन्द्रबिम्बानुकारि कनकोत्तमकान्तिकान्तम् ।

अत्यद्भुतं प्रहृतमात्तरुषा तथापि वक्त्रं विलोक्य सहसा महिषासुरेण ।।12।।

13. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दृष्ट्वा तु देवि कुपितं भ्रुकुटीकरालमुद्यच्छशाङ्कसदृशच्छवि यन्त्र सद्यः ।

प्राणान्मुमोच महिषस्तदतीव चित्रकैर्जीव्यते हि कुपितान्तकदर्शनेन ।।13।।

14. रक्त कनेरपुष्प ।

देवि प्रसीद परमा भवती भवाय, सद्यो विनाशयसि कोपवती कुलानि ।

विज्ञातमेतदधुनैव यदस्तमेतन्नीतं बलं सुविपुलं महिषासुरस्य ।।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः ।

धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा, येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना ।।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी)।

धर्म्याणि देवि सकलानि सदैव कर्माण्यत्यादृतः प्रतिदिनं सुकृती करोति ।

स्वर्ग प्रयाति च ततो भवतीप्रसादाल्लोकत्रयेऽपि फलदा ननु देवि तेन ।।16 ।।

17. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः, स्वस्थै: स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि ।

दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता । ।17।।

18. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एभिर्हतैर्जगदुपैति सुखं तथैते, कुर्वन्तु नाम नरकाय चिराय पापम् ।

संग्राममृत्युमधिगम्य दिवं प्रयान्तु, मत्वेति नूनमहितान् विनिहंसि देवि ।।18।।

19. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दृष्ट्वैव किं न भवती प्रकरोति भस्म, सर्वासुरानरिषु यत्प्रहिणोषि शस्त्रम् ।

लोकान् प्रयान्तु रिपवोऽपि शस्त्रपूता, इत्थं मतिर्भवति तेष्वपि तेऽतिसाध्वी ।।19।।

20. पायस (खीर), घृत (घी) ।

खड्ग प्रभानिकरविस्फुरणैस्तथोग्रैः, शूलाग्रकान्तिनिवहेन दृशोऽसुराणाम् । 

यन्नागता विलयमंशुमदिन्दुखण्डयोग्याननं तव विलोकयतां तदेतत् ।। 20 ।।

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दुर्वृत्तवृत्तशमनं तव देवि शीलं रूपं तथैतदविचिन्त्यमतुल्यमन्यैः ।

वीर्यं च हन्तृ हृतदेवपराक्रमाणां, वैरिष्वपि प्रकटितैव दया त्वयेत्थम् । । 21 । ।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

केनोपमा भवतु तेऽस्य पराक्रमस्य रूपं च शत्रुभयकार्यतिहारि कुत्र ।

चित्ते कृपा समरनिष्ठुरता च दृष्टा, त्वय्येव देवि वरदे भुवनत्रयेऽपि । । 22।।

23. कमलगट्टे, रक्तकनेरपुष्प, कद्दू, सरीफा।

त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन त्रातं त्वया समरमूर्धनि तेऽपि हत्वा ।

नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्तमस्माकमुन्मदसुरारिभवं नमस्ते ।। 23 ।।

24. हाथ जोड़े, आहुति नहीं डालनी है।

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।

घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च।। 24।।

25. हाथ जोड़े, आहुति नहीं डालनी है।

प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे ।

भ्रमणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि । । 25।।

26. हाथ जोड़े, आहुति नहीं डालनी है।

सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते ।

यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम् ।। 26 ।।

27. हाथ जोड़े, आहुति नहीं डालनी है।

खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके ।

करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मिन् रक्ष सर्वतः । । 27 ।।

अब चार बार केवल 'घी' की आहुति देनी है "ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा " मन्त्र से ।

28. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।28।।

29. हल्दी, चन्दन, इत्र, सुगन्धितद्रव्य ।

एवं स्तुता सुरैर्दिव्यैः कुसुमैर्नन्दनोद्भवैः ।

अर्चिता जगतां धात्री तथा गन्धानुलेपनैः ।। 29 ।।

30. गुग्गुल, अष्टांगधूप ।

भक्त्या समस्तैस्त्रिदशैर्दिव्यैर्धूपैस्तु धूपिता ।

प्राह प्रसादसुमुखी समस्तान् प्रणतान् सुरान् ।।30।।

31. कमलफूल, लौंग ।

देव्युवाच ।।31।।

32. पायस (खीर), घृत (घी) ।

व्रियतां त्रिदशाः सर्वे यदस्मत्तोऽभिवाञ्छितम् ।।32 ।।

(इदं सार्धश्लोकमधिकं -पायस (खीर), घृत (घी) ।

ददाम्यहमतिप्रीत्या स्तवैरेभिः सुपूजिता ।

कर्तव्यमपरं यच्च दुष्करं तन्त्र विद्महे ।। 32क ।।

इत्याकर्ण्य वचो देव्याः प्रत्यूचुस्ते दिवौकसः । )

33. शाकल्य ।

देवा ऊचुः ।। 33 ।।

34. राई, गुग्गुल ।

भगवत्या कृतं सर्वं न किञ्चिदवशिष्यते । ।34।।

35. गुग्गुल, जायफल ।

यदयं निहतः शत्रुरस्माकं महिषासुरः ।

यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि ।।35।।

36. पंचमेवा, मिश्री, गुग्गुल, गुलकन्द ।

संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः ।

यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने । 36।।

37. बिल्वफल।

तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम् ।

वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके ।। 37 ।।

38. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।38 ।।

39. नाना प्रकार के पुष्प ।

इति प्रसादिता देवैर्जगतोऽर्थे तथाऽऽत्मनः ।

तथेत्युक्त्वा भग्रकाली बभूवान्तर्हिता नृप ।।39 ।।

40. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इत्येतत्कथितं भूप सम्भूता सा यथा पुरा ।

देवी देवशरीरेभ्यो जगत्त्रयहितैषिणी ।।40 ।।

41. भोजपत्र, रक्तकनेरपुष्प ।

पुनश्च गौरीदेहात्सा समुद्भूता यथाभवत् ।

वधाय दुष्टदैत्यानां तथा शुम्भनिशुम्भयोः ।। 41 ।।

42. आंवला, मधु, धूप, गुग्गुल ।

रक्षणाय च लोकानां देवानामुपकारिणी ।

तच्छृणु व मयाऽऽख्यातं यथावत्कथयामि ते ।।42 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये चतुर्थः । हरिः ॐ तत्सत् ।

सत्या सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

43. अथ चतुर्थाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि- स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै, सपरिवारायै, सवाहनायै, सायुधायै, सशक्तिकायै, कामकूटबीजाधिष्ठात्र्यै चतुर्थाध्यायाधिष्ठात्र्यै दुर्गायै मध्यम- चरित्राधिष्ठात्र्यै महालक्ष्म्यै च महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये कामकूटबीजाधिष्ठात्री चतुर्थाध्यायाधिष्ठात्री दुर्गा मध्यमचरित्राधिष्ठात्री महालक्ष्मी च सांगाभ्याम् सपरिवाराभ्याम् सायुधाभ्याम् सशक्तिकाभ्याम् सवाहनाभ्याम् प्रीयेताम् ।।43।। (जल छोड़)

।।1 एका महाहुति सहित 22 द्वाविंशतिविशेषाहुतयः, समुदिताहुतय: 23 त्रयेविंशतिः । ।। 20 विंशतिसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 43 त्रयश्चत्वारिंशत् । । ।। शक्रादि स्तुतिः ।। इति चतुर्थोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। देव्या दूतसंवादः ।।

।। पंचमाध्याये आहुतयः । ।

अथ विनियोगः -

ॐ अस्य श्री उत्तरचरित्रस्य रुद्र ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, महासरस्वती देवता, भीमा शक्तिः, भ्रामरी बीजम्, सूर्यस्तत्त्वम्,सामवेदः स्वरूपम्, श्रीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे उत्तरचरित्रहोमे विनियोगः ।

अथ ध्यानम् :-

ॐ घण्टाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं,

हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।

गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-

पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ।। ॐ श्री धूम्राक्ष्यै नमः ।।

1.लॉंग ।

ॐ क्लीं ऋषिरुवाच ।।1।।

2. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पुरा शुम्भनिशुम्भाभ्यामसुराभ्यां शचीपतेः ।

त्रैलोक्यं यज्ञभागाश्च हृता मदबलाश्रयात् ।।2।।

3. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तावेव सूर्यतां तद्वदधिकारं तथैन्दवम् ।

कौबेरमथ याम्यं च चक्राते वरुणस्य च ।।3।।

4. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तावेव पवनर्द्धिच चक्रतुर्वह्निकर्म च ।

(अन्येषाञ्चाधिकारान्स स्वयमेवाधितिष्ठति- इत्यधिकं क्वचित्)

ततो देवा विनिर्धूता भ्रष्टराज्याः पराजिताः ।। 4 ।।

5. पायस (खीर), घृत (घी) ।

हृताधिकारास्त्रिदशास्ताभ्यां सर्वे निराकृताः ।

महासुराभ्यां तां देवीं संस्मरन्त्यपराजितम् ।।5।।

6. शाकल्य ।

तयास्माकं वरो दत्तो यथाऽऽपत्सु स्मृताखिलाः ।

भवतां नाशयिष्यामि तत्क्षणात्परमापदः ।।6।।

7. विष्णुक्रान्ता ।

इति कृत्वा मतिं देवा हिमवन्तं नगेश्वरम् ।

जग्मुस्तत्र ततो देवीं विष्णुमायां प्रतुष्टुवुः ।।7।।

8. शाकल्य ।

देवा ऊचुः ।।8।।

9. गुग्गुल, पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।9।।

10. हल्दी, आंवला, भोजपत्र, गुग्गुल ।

रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।

( नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः । - इत्यधिकं क्वचित्)

ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमः ।।10।।

11. शाकल्य ।

कल्याण्यै प्रणतां वृद्ध्यै सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः ।

नैर्ऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ।।11।।

12. कुशा, दूर्वा ।

दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।

ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ।।12।।

13. दारूहल्दी ।

अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।

नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः । । 13 ।।

14. विष्णुक्रान्ता ।

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता ।

नमस्तस्यै ।।14।।

15. विष्णुक्रान्ता ।

नमस्तस्यै ।।15।।

16. विष्णुक्रान्ता ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।16 ।।

17. आंवला ।

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।

नमस्तस्यै । 117 ।।

18. आंवला ।

नमस्तस्यै ।।18।।

19. आंवला ।

नमस्तस्यै नमो नमः । । 19 ।।

20. ब्राह्मी ।

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।।20 ।।

21. ब्राह्मी ।

नमस्तस्यै ।।21।।

22. ब्राह्मी ।

नमस्तस्यै नमो नमः । । 22 ।।

23. नीमगिलोय, कालीहल्दी ।

या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 23 ।।

24. नीमगिलोय, कालीहल्दी ।

नमस्तस्यै ।। 24।।

25. नीमगिलोय, कालीहल्दी ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।25 ।।

26. पंचमेवा ।

या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 26 ।।

27. पंचमेवा ।

नमस्तस्यै ।।27 ।।

28. पंचमेवा ।

नमस्तस्यै नमो नमः । । 28 ।।

29. शतावरी ।

या देवी सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 29 ।।

30. शतावरी ।

नमस्तस्यै ।।30 ।।

31. शतावरी ।

नमस्तस्यै नमो नमः । ।31।।

32. सोंठ, जायफल ।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 32 ।।

33. सोंठ, जायफल ।

नमस्तस्यै ।।33 ।।

34. सोंठ, जायफल ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।34 ।।

35. गुलाबजल, ठंड़ाई ।

या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 35।।

36. गुलाबजल, ठंड़ाई ।

नमस्तस्यै ।।36।।

37. गुलाबजल, ठंड़ाई ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।37 ।।

38. पायस (खीर), घृत (घी) ।

या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 38 ।।

39. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै ।।39 ।।

40. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।40 ।।

41. पायस (खीर), घृत (घी) ।

या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 41 ।।

42. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै ।। 42 ।।

43. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै नमो नमः । 143 ।।

44. लाजा (खील), पुष्प ।

या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 44 ।।

45. लाजा (खील), पुष्प ।

नमस्तस्यै ।।45 ।।

46. लाजा (खील), पुष्प ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।46 ।।

47. कमलफूल ।

या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 47 ।।

48. कमलफूल ।

नमस्तस्यै ।।48।।

49. कमलफूल ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।49 ।।

50. कमलफूल ।

या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 50 ।।

51. कमलफूल ।

नमस्तस्यै ।।51 ।।

52. कमलफूल ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।52।।

53. अभ्रक, अभीर, कुकुंम, गुलाल ।

या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 53।।

54. अभ्रक, अभीर, कुकुंम, गुलाल ।

नमस्तस्यै ।।54।।

55. अभ्रक, अभीर, कुकुंम, गुलाल ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।55 ।।

56. बिल्वफल, कमलगट्टे ।

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 56 ।।

57. बिल्वफल, कमलगट्टे, मिश्री ।

नमस्तस्यै ।।57।।

58. बिल्वफल, कमलगट्टे, मिश्री ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।58 ।।

59. त्रिमधु ।

या देवी सर्वभूतेरूषु वृत्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 59 ।।

60. त्रिमधु ।

नमस्तस्यै ।।60 ।।

61. त्रिमधु ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।61 ।।

52. ब्राह्मी, विजया ।

या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 62 ।।

53. ब्राह्मी, विजया ।

नमस्तस्यै ।।63।।

54. ब्राह्मी, विजया ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।64 ।।

65. सहदेवी ।

या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 65 ।।

66. सहदेवी ।

नमस्तस्यै ।।66।।

67. सहदेवी ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।67 ।।

68. मालपुए, पक्वान्न ।

या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 68 ।।

69. मालपुए, पक्वान्न ।

नमस्तस्यै ।।69 ।।

70. मालपुए, पक्वान्न ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।70 ।।

71. लालकनेर, केसर ।

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै । । 71 ।।

72. लालकनेर, केसर ।

नमस्तस्यै ।।72 ।।

73. लालकनेर, केसर ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।73 ।।

74. पायस (खीर), घृत (घी) ।

या देवी सर्वभूतेषु भ्रान्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै ।। 74।।

75. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै ।।75 ।।

76. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।76 ।।

77. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इन्द्रियाणामधिष्ठात्री भूतानां चाखिलेषु या ।

भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै नमो नमः ।। 77 ।।

78. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चितिरूपेण या कृत्स्नमेतद् व्याप्य स्थिता जगत् ।

नमस्तस्यै ।। 78 ।।

79. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै ।।79 ।।

80. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नमस्तस्यै नमो नमः ।।80 ।।

81. मिश्री ।

स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रया तथा सुरेन्द्रेण दिनेशु सेविता ।

करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।। 81 ।।

82. गुग्गुल ।

या साम्प्रतं चोद्धतदैत्यतापितैरस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते ।

याच स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति नः सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभिः ।।82 ।।

83. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।83 ।।

84. गंगाजल, गुलाबजल और जावित्री ।

एवं स्तवादियुक्तानां देवानां तत्र पार्वती ।

स्नातुमभ्याययौ तोये जाह्नव्या नृपनन्दन ।।84।।

85. दालचीनी ।

साऽब्रवीत्तान् सुरान् सुभ्रूर्भवद्भिः स्तूयतेऽत्र का ।

शरीरकोशतश्चास्याः समुद्भूताब्रवीच्छिवा ।।85।।

86. भोजपत्र ।

स्तोत्रं ममैतत् क्रियते शुम्भदैत्यनिराकृतैः ।

देवैः समेतैः समरे निशुम्भेन पराजितैः । ।86 ।।

87. जावित्री, भोजपत्र, दालचीनी ।

शरीरकोशाद्यत्तस्या पार्वत्या निःसृताम्बिका ।

कौशिकीति समस्तेषु ततो लोकेषु गीयते । ।87 ।।

88. दारूहल्दी ।

तस्यां विनिर्गतायां तु कृष्णाभूत्सापि पार्वती ।

कालिकेति समाख्याता हिमाचलकृताश्रया।।88।।

89. आम्रफल, आम्रपल्लव, सिराली ।

ततोऽम्बिकां परं रूपं बिभ्राणां सुमनोहरम् ।

ददर्श चण्डो मुण्डश्च भृत्यै शुम्भनिशुम्भयोः ।।89।।

90. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ताभ्यां शुम्भाय चाख्याता अतीव सुमनोहरा ।

काप्यास्ते स्त्री महाराज भासयन्ती हिमाचलम् ।।90 ।।

91. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नैव तादृक्क्वचिद्रूपं दृष्टं केनचिदुत्तमम् ।

ज्ञायतां काप्यसौ देवी गृह्यतां चासुरेश्वर ।।91 ।।

92. कर्पूर ।

स्त्रीरत्नमतिचार्वङ्गी द्योतयन्ती दिशस्त्विषा ।

सा तु तिष्ठति दैत्येन्द्र तां भवान्द्रष्टुमर्हति ।। 92 ।।

93. रत्न, आभूषण, मणि ।

यानि रत्नानि मणयो गजाश्वादीनि वै प्रभो ।

त्रैलोक्ये तु समस्तानि साम्प्रतं भान्ति ते गृहे ।।93 ।।

94. बिल्वफल।

ऐरावतः समानीतो गजरत्नं पुरन्दरात् ।

पारिजाततरुश्चायं तथैवोच्चैःश्रवा हयः ।।94 ।।

95. रक्तगुंजा, आभूषण ।

विमानं हंससंयुक्तमेतत्तिष्ठति तेऽङ्गने ।

रत्नभूतमिहानीतं यदासीद्वेधसोऽद्भुतम् ।।95।।

96. कमलगट्टे ।

निधिरेष महापद्मः समानीतो धनेश्वरात् ।

किंजल्किनीं ददौ चाब्धिर्मालाम्लानपंकजाम् ।।96।।

97. भोजपत्र, कमलफूल ।

छत्रं ते वारुणं गेहे कांचनस्रावि तिष्ठति ।

तथायं स्यन्दनवरो यः पुरासीत्प्रजापतेः । ।97।।

98. भोजपत्र ।

मृत्योरुत्क्रान्तिदा नाम शक्तिरीश त्वया हृता ।

पाशः सलिलराजस्य भ्रातुस्तव परिग्रहे ।।98 ।।

99. कमलगट्टे, भोजपत्र ।

निशुम्भस्याब्धिजाताश्च समस्ता रत्नजातयः ।

वह्निरपि ददौ तुभ्यमग्निशौचे च वाससी ।।99 ।।

100. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एवं दैत्येन्द्र रत्नानि समस्तान्याहृतानि ते ।

स्त्रीरत्नमेषा कल्याणी त्वया कस्मान्न गृह्यते ।।100।।

101. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।101।।

102. पायस (खीर), घृत (घी)।

निशाम्येति वचः शुम्भः स तदा चण्डमुण्डयोः ।

प्रेषयामास सुग्रीवं दूतं देव्या महासुरः ।।102 ।।

(क्वचिद् - शुम्भ उवाच ।।102क ।।)

103. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इति चेति च वक्तव्या सा गत्वा वचनान्मम ।

यथा चाभ्येति संप्रीत्या तथा कार्यं त्वया लघु ।।103।।

104. मैनशिल ।

स तत्र गत्वा यत्रास्ते शैलोद्देशेऽतिशोभने ।

तां च देवीं ततः प्राह श्लक्ष्णं मधुरया गिरा ।।104 ।।

105. (मनसा) शाकल्य ।

दूत उचाव ।।105 ।।

106. पायस (खीर), घृत (घी) ।

देवि दैत्येश्वरः शुम्भस्त्रैलोक्ये परमेश्वरः ।

दूतोऽहं प्रेषितस्तेन त्वत्सकाशमिहागतः ।।106 ।।

107. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अव्याहताज्ञः सर्वासु यः सदा देवयोनिषु ।

निर्जिताखिलदैत्यारिः स यदाह शृणुष्व तत् ।।107 ।।

108. पायस (खीर), घृत (घी) ।

मम त्रैलोक्यमखिलं मम देवा वशानुगाः ।

यज्ञभागानहं सर्वानुपाश्नामि पृथक्पृथक् ।।108 ।।

109. पायस (खीर), घृत (घी) ।

त्रैलोक्ये वररत्नानि मम वश्यान्यशेषतः ।

तथैव गजरलं च हृत्वा देवेन्द्रवाहनम् ।।109 ।।

110. पायस (खीर), घृत (घी) ।

क्षीरोदमथनोद्भूतमश्वरत्नं ममामरैः ।

उच्चैःश्रवससंज्ञं तत्प्रणिपत्य समर्पितम् । ।110 ।।

111. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यानि चान्यानि देवेषु गन्धर्वेषूरगेषु च ।

रत्नभूतानि भूतानि तानि मय्येव शोभने । । 111।।

112. पायस (खीर), घृत (घी) ।

स्त्रीरत्नभूतां त्वां देवि लोके मन्यामहे वयम् ।

सा त्वमस्मानुपागच्छ यतो रत्नभुजो वयम् ।।112 ।।

113. पायस (खीर), घृत (घी) ।

मां वा ममानुजं वापि निशुम्भमुरुविक्रमम् ।

भज त्वं चंचलापाङ्गि रत्नभूतासि वै यतः ।।113।।

114. लाजा I

परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यसे मत्परिग्रहात् ।

एतबुद्धया समालोच्य मत्परिग्रहतां व्रज ।।114 ।।

115. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।115 ।।

116. ब्राह्मी, वच, खस, भोज पत्र, शमीपत्र, दूर्वा, पान, बेल ।

इत्युक्ता सा तदा देवी गम्भीरान्तः स्मिता जगौ ।

दुर्गा भगवती भद्रा ययेदं धार्यते जगत् । ।116 ।।

117. रक्तकनेर, कमलफूल, शमीपत्र, लौंग, दूर्वा ।

श्रीदेव्युवाच ।।117 ।।

118. शमीपत्र ।

सत्यमुक्तं त्वया नात्र मिथ्या किंचित्त्वयोदितम् ।

त्रैलोक्याधिपतिः शुम्भो निशुम्भश्चापि तादृशः ।। 118।।

119. पायस (खीर), घृत (घी) ।

किं त्वत्र यत्प्रतिज्ञातं मिथ्या तत्क्रियते कथम् ।

श्रूयतामल्पबुद्धित्वात् प्रतिज्ञा या कृता पुरा ।।119।।

120. शिलाजीत, लाजा, बड़ी इलायची, लौंग, काजल, करौंजी ।

यो मां जयति संग्रामे यो मे दर्प व्यपोहति ।

यो मे प्रतिबलो लोके स मे भर्ता भविष्यति ।। 120 ।।

121. हिंगुल, पंचमेवा, लाजा, शमीपत्र ।

तदागच्छतु शुम्भोऽत्र निशुम्भो वा महासुरः ।

मां जित्वा किं चिरेणात्र पाणिं गृह्णातु मे लघु ।।121।।

122. (मनसा) शाकल्य ।

दूत उवाच ।।122 ।।

123. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अवलिप्तासि मैवं त्वं देवि ब्रूहि ममाग्रतः ।

त्रैलोक्ये कः पुमांस्तिष्ठेदग्रे शुम्भनिशुम्भयोः ।। 123 ।।

124. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अन्येषामपि दैत्यानां सर्वे देवा न वै युधि ।

तिष्ठन्ति सम्मुखे देवि किं पुनः स्त्री त्वमेकिका ।।124।।

125. इन्द्रजौ, जटामांसी ।

इन्द्राद्याः सकला देवास्तस्थुर्येषां न संयुगे ।

शुम्भादीनां कथं तेषां स्त्री प्रयास्यसि सम्मुखम् ।।125।।

126. जटामांसी ।

सा त्वं गच्छ मयैवोक्ता पार्श्व शुम्भनिशुम्भयोः ।

केशाकर्षणनिर्धूतगौरवा मा गमिष्यसि ।।126 ।।

127. रक्तकनेर, कमलफूल, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।127 ।।

128. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एवमेतद् बलो शुम्भ निशुम्भश्चातिवीर्यवान् ।

किं करोमि प्रतिज्ञा मे यदनालोचिता पुरा । 1129 ।।

129. गन्ना (इक्षुदण्ड ) ।

स त्वं गच्छ मयोक्तं ते यदेतत्सर्वमादृतः ।

तदाचक्ष्वासुरेन्द्राय स च युक्तं करोतु तत् ।।129 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये पंचमः ।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः । ।

130. अथ पंचमाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि- स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी,छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै, सपरिवारायै, सवाहनायै, सायुधायै, सशक्तिकायै, पंचमाध्यायाधिष्ठात्र्यै धूम्राक्ष्यै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये पंचमाध्यायाधिष्ठात्री धूम्राक्षी सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम्।। 130 ।। (जल छोड़े)

।।1 एका महाहुति सहित 90 नवतिविशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 91 एकनवतिः ।

।। 39 एकोनचत्वारिंशत्सामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतय: 130 त्रिंशदधिकं शतं । ।

।। देव्या दूत संवादः ।। इति पंचमोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। धूम्रलोचनवधः ।।

।। षष्ठाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली-

भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम् ।

मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां,

सर्वज्ञेश्वर भैरवांकनिलयां पद्मावतीं चिन्तये ।। ॐ श्रीधूमावत्यै नमः ।।

1. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।1 ।।

2. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः ।

समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात् ।। 2 ।।

3.पायस (खीर), घृत (घी)।

तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः ।

सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम् ।। 3 ।।

4. राई, जटामांसी, गुग्गुल ।

हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः ।

तामानय बलाद् दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम् ।।4।।

5.पायस (खीर), घृत (घी)।

तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः ।

स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा ।।5।।

6. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।6।।

7. मसूर, जटामांसी।

तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः ।

वृतः षष्ट्या सहस्राणामसुराणां दुतं ययौ ।।7।।

8.पायस (खीर), घृत (घी) ।

स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम् ।

जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः ।। 8 ।।

9. जटामांसी।

न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति ।

ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम् ।।9।।

10. रक्तकनेर, कमलफूल, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान् बलसंवृतः ।

बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम् ।।11।।

12. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।12।।

13. सुरमा ।

इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः ।

हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः ।। 13 ।।

14. उड़द, मसूर ।

अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका ।

ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः ।।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम् ।

पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः । ।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी) ।

काश्चित्करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान् ।

आक्रम्य चाधरेणान्यान्स जघान महासुरान् ।।16।।

17. केसर ।

केषाञ्चित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी ।

तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान् पृथक् ।। 17 ।।

18. केसर, राई, रक्तचन्दन ।

विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे ।

पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः ।।18।।

19. राई, रक्तचन्दन ।

क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना ।

तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना ।।19 ।।

20. केसर, राई ।

श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम् ।

बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवी केसरिणा ततः ।। 20।।

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चुकोप दैतयाधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः ।

आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ ।।21।।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ ।

तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु ।। 22 ।।

23. राई, जटामांसी ।

केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि ।

तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम् ।। 23 ।।

24. केसर, लौंग, इक्षुदण्ड (गन्ना) ।

तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते ।

शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम् ।। 24।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये षष्ठः ।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यममानस्य (मम) कामाः ।।

25. अथ षष्ठाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि - स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी,छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को सुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै, सपरिवारायै, सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै षष्ठाध्यायाधिष्ठात्र्यै धूमावत्यै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये षष्ठाध्यायाधिष्ठात्री धूमावती सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।। 25।। (जल छोड़ें)

111 एका महाहुति सहित 15 पंचदशविशेषाहुतयः समुदिताहुतयः 16 षोडश ।। ।। 9 नवसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 25 पंचविंशतिः । । ।। धूम्रलोचनवधः । । इति षष्ठोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक दुर्गा सप्तशती

।। चण्डमुण्डवधः । ।

।। सप्तमाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

ध्यायेयं रत्नपीठे शुक्रकलपठितं शृण्वतीं श्यामलांगीं,

यस्तैकांग्री सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम् ।

कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां,

मातंगीं शंखपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम् ।। ॐ श्रीचामुण्डायै नमः ।

1. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 1 ।।

2.पायस (खीर), घृत (घी) ।

आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्चण्डमुण्डपुरोगमाः ।

चतुरङ्गबलोपेता ययुरभ्युद्यतायुधाः ।। 2 ।।

3. स्वर्ण ।

ददृशुस्ते ततो देवीमीषद्धासां व्यवस्थिताम् ।

सिंहस्योपरि शैलेन्द्रशृङ्गे महति कंचने ।।3।।

4. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ते दृष्टा तां समादातुमुद्यमं चक्रुरुद्यताः ।

आकृष्टचापासिधरास्तथान्ये तत्समीपगाः।।4।।

5. काजल, कस्तूरी, सरला, कालीहल्दी, शिलाजीत ।

ततः कोपं चकारोच्चैरम्बिका तानरीन् प्रति ।

कोपेन चास्या वदनं मषीवर्णमभूत्तदा । ।5।।

6. कालीमिर्च, शिलाजीत ।

भ्रुकुटीकुटिलात्तस्या ललाटफलकाद् द्रुतम् ।

काली करालवदना विनिष्क्रान्तासिपाशिनी ।।6।।

7.रक्त व श्वेतचन्दन, कालीमिर्च, जिमीकन्द ।

विचित्रखट्वाङ्गधरा नरमालाविभूषणा ।

द्वीपिचर्मपरीधाना शुष्कमांसातिभैरवा ।। 7 ।।।

8.रक्तचन्दन, कुंकुम, केसर ।

अतिविस्तारवदना जिह्वाललनभीषणा ।

निमग्नारक्तनयना नादापूरितदिङ्मुखा ।।8।।

9. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सा वेगेनाभिपतिता घातयन्तीमहासुरान् ।

सैन्ये तत्र सुरारीणामभक्षयत तद्द्बलम् । 19 ।।

10. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पार्ष्णिग्रहाङ्कुशग्राहि योधघण्टासमन्वितान् ।

समादायैकहस्तेन मुखे चिक्षेप वारणान् ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तथैव योधं तुरगै रथं सारथिना सह ।

निक्षिप्य वक्त्रे दशनैश्चर्वयन्त्यतिभैरवम् ।।11।।

12. पीलीसरसों ।

एकं जग्राह केशेषु ग्रीवायामथ चापरान् ।

पादेनाक्रम्य चैवान्यमुरसान्यमपोथयत्।।12।।

13. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तैर्मुक्तानि च शस्त्राणि महास्त्राणि तथासुरैः ।

मुखेन जग्राह रुषा दशनैर्मथितान्यपि । । 13 ।।

14. कालीहल्दी, कालीमिर्च ।

बलिनां तद् बलं सर्वमसुराणां दुरात्मनाम् ।

ममर्दाभक्षयच्चान्यानन्यांश्चाताडयत्तथा ।।14।।

15. वज्रदन्ती, गुग्गुल ।

असिना निहताः केचित्केचित्खट्वाङ्गताडिताः ।

जग्मुर्विनाशमसुरा दन्ताग्राभिहता रणे ।।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी) ।

क्षणेन तन्महासैन्यमसुराणां निपातितम् ।

दृष्ट्वा चण्डोऽभिदुद्राव तां कालीमतिभीषणाम् ।।16।।

17. पायस (खीर), घृत (घी) ।

शरवर्षैर्महाभीमैर्भीमाक्षीं तां महासुरः ।

छादयामास चक्रैश्च मुण्डः क्षिप्तैः सहस्रशः ।।17 ।।

18. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तानि चक्राण्यनेकानि विशमानानि तन्मुखम् ।

बभुर्यथार्कबिम्बानि सुबहूनि घनोदरम्।।18।।

19. वज्रदन्ती, कर्पूर ।

ततो जहासातिरुषा भीमं भैरवनादिनी ।

काली करालवक्त्रान्तर्दुर्दर्शदशनोज्ज्वला ।।19।।

20. जटामांसि, दर्भ, दूर्वा, केला, सरसों ।

उत्थाय च महासिंहं देवी चण्डमधावत ।

गृहीत्वा चास्य केशेशु शिरस्तेनासिनाच्छिनत्।। 20।।

(इदमधिकं - छिन्ने शिरसि दैत्येन्द्रश्चक्रे नादं सुभैरवम् ।

तेन नादेन महता त्रासितं भुवनत्रयम् । 120क ।।)

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अथ मुण्डोऽभ्यधावत्तां दृष्ट्वा चण्डं निपातितम् ।

तमप्यपातयद् भूमौ सा खड्गाभिहतं रुषा । । 21।।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

हतशेषं ततः सैन्यं दृष्ट्वा चण्डं निपातितम् ।

मुण्डं च सुमहावीर्यं दिशो भेजे भयातुरम् ।।22।।

23. बिजौरानींबू ।

शिरश्चण्डस्य काली च गृहीत्वा मुण्डमेव च ।

प्राह प्रचण्डाट्टहासमिश्रमभ्येत्य चण्डिकाम् ।। 23।।

24. गन्ना ।

मया तवात्रोपहृतौ चण्डमुण्डौ महापशू ।

युद्धयज्ञे स्वयं शुम्भं निशुम्भं च हनिष्यसि । । 24।।

25. लौंग ।

ऋषिरुवाच । । 25।।

26. कमलगट्टे, पान, जायफल ।

तावानीतौ ततो दृष्ट्वा चण्डमुण्डौ महासुरौ ।

उवाच कालीं कल्याणी ललितं चण्डिका वचः ।। 26।।

27. मैनाफल, माजूफल, जायफल ।

यस्माच्चण्डं च मुण्डं च गृहीत्वा त्वमुपागता ।

चामुण्डेति ततो लोके ख्याता देवि भविष्यसि । । 27 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये सप्तमः ।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

28. अथ सप्तमाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि- स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरल, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान,सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः स्म प्रणताः ताम् ।।

ॐ सांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै सप्तमाध्यायाधिष्ठात्र्यै चामुण्डायै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये सप्तमाध्यायाधिष्ठात्री चामुण्डा सांगा सपरिवारा

सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।28।।

(जल छोड़ें)

।।1 एका महाहुति सहित 14 चतुर्दशविशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 15 पंचदश ।।

।। 13 त्रयोदशसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 28 अष्टाविंशतिः । ।

।। चण्डमुण्डवधः ।। इति सप्तमोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गा सप्तशती

।। रक्तबीजवधः ।।

।। अष्टमाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

अरुणां करुणातरंगिताक्षीं धृतपाशांकुशबाणचापहस्ताम् ।

अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्येव विभावये भवानीम् ।। ॐ श्रीरक्तदन्तिकायै नमः ।

1. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 1।।

2.पायस (खीर), घृत (घी) ।

चण्डे च निहते दैत्ये मुण्डे च विनिपातिते ।

बहुलेषु च सैन्येषु क्षयितेष्वसुरेश्वरः ।। 2 ।।

3.पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः कोपपराधीनचेताः शुम्भः प्रतापवान् ।

उद्योगं सर्वसैन्यानां दैत्यानामादिदेश ह ।।3।।

4.पायस (खीर), घृत (घी) ।

अद्य सर्वबलैर्दैत्याः षडशीतिरुदायुधाः ।

कम्बूनां चतुरशीतिर्निर्यान्तु स्वबलैर्वृताः ।। 4 ।।

5.राई ।

कोटिवीर्याणि पंचाशदसुराणां कुलानि वै ।

शतं कुलानि धौम्राणां निर्गच्छन्तु ममाज्ञया ।।5।।

6.राई ।

कालका दौर्हृदा मौर्याः कालकेयास्तथासुराः ।

युद्धाय सज्जा निर्यान्तु आज्ञया त्वरिता मम ।।6।।

7.पायस (खीर), घृत (घी) ।

इत्याज्ञाप्यसुरपतिः शुम्भो भैरवशासनः ।

निर्जगाम महासैन्यसहस्रैर्बहुभिर्वृतः । । 7 ।।

8. रक्तकनेर, गुग्गुल, दूर्वा ।

आयान्तं चण्डिका दृष्ट्वा तत्सैन्यमतिभीषणम् ।

ज्यास्वनैः पूरयामास धरणीगगनान्तरम् ।। 8 ।।

9.रक्तकनेर, गुग्गुल, दूर्वा ।

स च सिंहो महानादमतीव कृतवान्नृप ।

घण्टास्वनेन तन्नादमम्बिका चाप्यबृंहयत् ।।9 ।।

10. शिलाजीत, दूर्वा, कालीहल्दी, गुग्गुल ।

धनुर्ज्यासिंहघण्टानां नादापूरितदिङ्मुखा ।

निनादैर्भीषणैः काली जिग्ये विस्तारितानना ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तं निनादमुपश्रुत्य दैत्यसैन्यैश्चतुर्दिशम् ।

देवी सिंहस्तथा काली सरोषैः परिवारिताः ।।11।।

12. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एतस्मिन्नन्तरे भूप विनाशाय सुरद्विषाम् ।

भवायामरसिंहानामतिवीर्यबलान्विताः ।। 12 ।।

13. शाकल्य ।

ब्रह्मेशगुहविष्णूनां तथेन्द्रस्य च शक्तयः ।

शरीरेभ्यो विनिष्क्रम्य तद्रूपैश्चण्डिकां ययुः ।।13।।

14. रक्तगुंजा ।

यस्य देवस्य यद्रूपं यथाभूषणवाहनम् ।

तद्वदेव हि तच्छक्तिरसुरान् योद्धुमाययौ ।।14।।

15. ब्राह्मी ।

हंसयुक्तविमानाग्रे साक्षसूत्रकमण्डलुः ।

आयाता ब्रह्मण: शक्तिर्ब्रह्माणी साभिधीयते ।।15।।

16. जटामांसी।

माहेश्वरी वृषारूढा त्रिशूलवरधारिणी ।

महाहिवलया प्राप्ता चन्द्रलेखाविभूषणा ।।16।।

17. मोरपंख ।

कौमारी शक्तिहस्ता च मयूरवरवाहना ।

योद्धुमभ्याययौ दैत्यानम्बिका गुहरूपिणी ।।17 ।।

18. शंखपुष्पी, विष्णुक्रान्ता ।

तथैव वैष्णवी शक्तिर्गरुडोपरि संस्थिता ।

शंखचक्रगदाशार्ङ्ग खड्गहस्ताभ्युपाययौ ।।18।।

19. वज्रदन्ती ।

जज्ञे वाराहमतुलं रूपं या बिभ्रती हरेः ।

शक्तिः साप्याययौ तत्र वाराहीं बिभ्रती तनुम् ।।19।।

20. गोखरू ।

नारसिंही नृसिंहस्य बिभ्रती सदृशं वपुः ।

प्राप्ता तत्र सटाक्षेपक्षिप्तनक्षत्रसंहतिः । । 20।।

21. वज्रदन्ती, पुष्प ।

वज्रहस्ता तथैवैन्द्री गजराजोपरि स्थिता ।

प्राप्ता सहस्रनयना यथा शक्रस्तथैव सा ।। 21 ।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः परिवृतस्ताभिरीशानो देवशक्तिभिः ।

हन्यन्तामसुराः शीघ्रं मम प्रीत्याऽऽह चण्डिकाम् ।। 22 ।।

23. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो देवीशरीरात्तु विनिष्क्रान्तातिभीषणा ।

चण्डिकाशक्तिरत्युग्रा शिवाशतनिनादिनी ।। 23 ।।

24. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सा चाह धूम्रजटिलमीशानमपराजिता ।

दूत त्वं गच्छ भगवन् पार्श्व शुम्भनिशुम्भयोः ।। 24।।

25. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ब्रूहि शुम्भ निशुम्भं च दानवावतिगर्वितौ ।

ये चान्ये दानवास्तत्र युद्धाय समुपस्थिताः ।। 25।।

26. पायस (खीर), घृत (घी) ।

त्रैलोक्यमिन्द्रो लभतां देवाः सन्तु हविर्भुजः ।

यूयं प्रयात पातालं यदि जीवितुमिच्छथ । । 26 ।।

27. पापड़ ।

बलावलेपादथ चेद्भवन्तो युद्धकांक्षिणः ।

तदागच्छत तृप्यन्तु मच्छिवाः पिशितेन वः । । 27 ।।

28. जटामांसी, विजया (भांग) ।

तो नियुक्तो दौत्येन तया देव्या शिवः स्वयम् ।

शिवदूतीति लोकेऽस्मिंस्ततः सा ख्यातिमागता । । 28 ।।

29. आंवला, हल्दी ।

तेऽपि श्रुत्वा वचो देव्याः शर्वाख्यातं महासुराः ।

अमर्षापूरिता जग्मुर्यत्र कात्यायनी स्थिता ।। 29 ।।

30. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः प्रथममेवाग्रे शरशक्त्यृष्टिवृष्टिभिः ।

ववर्षुरुद्धतामर्षस्तां देवीममरारयः ।। 30 ।।

31. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सा च तान्प्रतिहतान्बाणाञ्छूलशक्तिपरश्वधान् ।

चिच्छेद लीलयाऽऽध्मातधनुर्मुक्तैर्महेषुभिः ।। 31 ।।

32. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्याग्रतस्तथा काली शूलपातविदारितान् ।

खट्वाङ्गपोथितांश्चारीन् कुर्वतो व्यचरत्तदा । । 32 ।।

33. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कमण्डलुजला क्षेपहतवीर्यान् हतौजसः ।

ब्रह्माणी चाकरोच्छत्रून्येन येन स्म धावति । । 33 ।।

34. पायस (खीर), घृत (घी) ।

माहेश्वरी त्रिशूलेन तथा चक्रेण वैष्णवी ।

दैत्याञ्जघान कौमारी तथा शक्त्यातिकोपना ।। 34 ।।

35. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ऐन्द्रीकुलिशपातेन शतशो दैत्यदानवाः ।

पेतुर्विदारिताः पृथ्व्यां रुधिरौघप्रवर्षिणः ।। 35 ।।

36. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तुण्डप्रहारविध्वस्ता दंष्ट्राग्रक्षतवक्षसः ।

वाराहमूर्त्या न्यपतंश्चक्रेण च विदारिताः ।। 36 ।।

37. पायस (खीर), घृत (घी) ।

नखैर्विदारितांश्चान्यान्भक्षयन्ती महासुरान् ।

नारसिंही चचाराजौ नादापूर्णदिगन्तरा ।।37 ।।

38. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चण्डाट्टहासैरसुराः शिवदूत्यभिदूषिताः ।

पेतुः पृथिव्यां पतितान्तांश्चखादाथ सा तदा ।। 38 ।।

39. सरसों ।

इति मातृगणं क्रुद्धं मर्दयन्तं महासुरान् ।

दृष्ट्वाभ्युपायैर्विविधैर्नेशुर्देवारिसैनिकाः ।। 39 ।।

40. रक्तगुंजा, रक्तचन्दन ।

पलायनपरान्दृष्ट्वा दैत्यान्मातृगणार्दितान् ।

योद्धुमभ्याययौ क्रुद्धो रक्तबीजो महासुरः ।। 40 ।।

41. पायस (खीर), घृत (घी) ।

रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरतः ।

समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणो महासुरः ।। 41 ।।

42. पायस (खीर), घृत (घी) ।

युयुधे स गदापाणिरिन्द्रशक्त्या महासुरः ।

ततश्चैन्द्री स्ववज्रेण रक्तबीजमताडयत् ।। 42 ।।

43. रक्तगुंजा ।

कुलिशेनाहतस्याशु बहु सुस्राव शोणितम् ।

समुत्तस्थुस्ततो योधास्तद्रूपास्तत्पराक्रमाः ।।43 ।।

44. रक्तगुंजा ।

यावन्तः पतितास्तस्य शरीराद्रक्तबिन्दवः ।

तावन्तः पुरुषा जातास्तद्वीर्यबलविक्रमाः ।। 44 ।।

45. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ते चापि युयुधुस्तत्र पुरुषा रक्तसम्भवाः ।

समं मातृभिरत्युग्रशस्त्रपातातिभीषणम् ।। 45 ।।

46. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पुनश्च वज्रपातेन क्षतमस्य शिरो यदा ।

ववाह रक्तं पुरुषास्ततो जाताः सहस्रशः ।। 46 ।।

47. पायस (खीर), घृत (घी) ।

वैष्णवी समरे चैनं चक्रेणाभिजघान ह ।

गदया ताडयामास ऐन्द्री तमसुरेश्वरम् ।।47 ।।

48. पायस (खीर), घृत (घी) ।

वैष्णवीचक्रभिन्नस्य रुधिरस्रावसम्भवैः ।

सहस्रशो जगद्व्याप्तं तत्प्रमाणैर्महासुरैः ।। 48 ।।

49. रक्तचन्दन ।

शक्त्या जघान कौमारी वाराही च तथासिना ।

माहेश्वरी त्रिशूलेन रक्तबीजं महासुरम् ।।49 ।।

50. पायस (खीर), घृत (घी) ।

स चापि गदया दैत्यः सर्वा एवाहनत् पृथक् ।

मातृः कोपसमाविष्टो रक्तबीजो महासुरः ।। 50 ।।

51. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्याहतस्य बहुधा शक्तिशमलादिभिर्भुवि ।

पपात यो वै रक्तौघस्तेनासञ्छतशोऽसुराः ।। 51।।

52. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तैश्चासुरासृक्सम्भूतैरसुरैः सकलं जगत् ।

व्याप्तमासीत्ततो देवा भयमाजग्मुरुत्तमम् ।।52 ।।

53. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तान्विषण्णान्सुरान्दृष्ट्वा चण्डिका प्राह सत्वरा ।

उवाच कालीं चामुण्डे विस्तीर्ण वदनं कुरु ।। 53।।

54. रक्तचन्दन ।

मच्छस्त्रपातसम्भूतान् रक्तबिन्दून्महासुरान् ।

रक्तबिन्दोः प्रतीच्छ त्वं वक्त्रेणानेन वेगिना ।। 54।।

55. रक्तचन्दन ।

भक्षयन्ती चर रणे तदुत्पन्नान् महासुरान् ।

एवमेष क्षयं दैत्यः क्षीणरक्तो गमिष्यति । ।55।।

56. पायस (खीर), घृत (घी) ।

भक्ष्यमाणास्त्वया चोग्रा न चोत्पत्स्यन्ति चापरे ।

(इदमधिकं - ऋषिरुवाच । 156क ।।)

त्युक्त्वा तां ततो देवी शूलेनाभिजघान तम् ।।56 ।।

57. रक्तचन्दन ।

मुखेन काली जगृहे रक्तबीजस्य शोणितम् ।

ततोऽसावाजघानाथ गदया तत्र चण्डिकाम् ।।57।।

58. पायस (खीर), घृत (घी) ।

न चास्या वेदनां चक्रे गदापातोऽल्पिकामपि ।

तस्याहतस्य देहात्तु बहु सुस्राव शोणितम् ।।58 ।।

59. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यतस्ततः स्ववक्त्रेण चामुण्डा सम्प्रतीच्छति ।

मुखे समुद्भूता येऽस्या रक्तपातान्महासुराः ।।59।।

60. रक्तचन्दन ।

तांश्चखादाथ चामुण्डा पपौ तस्य च शोणितम् ।

देवी शूलेन चक्रेण बाणैरसिभिरृष्टिभिः ।।60 ।।

61. रक्तचन्दन ।

जघान रक्तबीजं तं चामुण्डापीतशोणितम् ।

स पपात महीपृष्ठे शस्त्रसंहतितो हतः ।।61 ।।

62. बिजौरानींबू ।

नीरक्तश्च महीपाल रक्तबीजो महासुरः ।

ततस्ते हर्षमतुलमवापुस्त्रिदशा नृप ।।62 ।।

63. शाकल्य ।

तेषां मातृगण जातो ननर्तासृङ्मदोद्धतः ।।63।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये अष्टमः । हरिः ॐ तत्सत् ।

सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

64. अथ अष्टमाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को सुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्वायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै अष्टमाध्यायाधिष्ठात्र्यै रक्तदन्तिकायै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये अष्टमाध्यायाधिष्ठात्री रक्तदन्तिका सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।64।। (जल छोड़ें)

।।1 एका महाहुति सहित 30 त्रिंशद्विशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 31 एकत्रिंशत् । । ।। 33 त्रयस्त्रिंशत्सामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 64 चतुष्षष्ठी ।।

।। रक्तबीजवधः । । इति अष्टमोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। निशुम्भवधः ।।

।। नवमाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

बन्धूककांचननिभं रुचिराक्षमालां, पाशांकुशौ च वरदां निजबाहुदण्डैः ।

बिभ्राणमिन्दुशकलाभरणं त्रिनेत्रमर्धाम्बिकेशमनिशं वपुराश्रयामि ।।

ॐ श्रीतारायै नमः ।।

1.गोरोचन, चन्दन ।

राजोवाच ।।1।।

2. बिजौरानींबू ।

विचित्रमिदमाख्यातं भगवन् भवता मम ।

देव्याश्चरितमाहात्म्यं रक्तबीजवधाश्रितम् ।। 2 ।।

3. रक्तगुंजा ।

भूयश्चेच्छाम्यहं श्रोतुं रक्तबीजे निपातिते ।

चकार शुम्भो यत्कर्म निशुम्भश्चातिर्कापनः ।। 3 ।।

4. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 4 ।।

5. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चकार कोपमतुलं रक्तबीजे निपातिते ।

शुम्भासुरो निशुम्भश्च हतेष्वन्येषु चाहवे ।।5।।

6. पायस (खीर), घृत (घी) ।

हन्यमानं महासैन्यं विलोक्यामर्षमुद्वहन् ।

अभ्यधावन्निशुम्भोऽथ मुख्ययासुरसेनया ।।6।।

7.पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्याग्रतस्तथा पृष्ठे पार्श्वयोश्च महासुराः ।

संदष्टौष्ठपुटाः क्रुद्धा हन्तुं देवीमुपाययुः ।।7।।

8. पायस (खीर), घृत (घी) ।

आजगाम महावीर्यः शुम्भोऽपि स्वबलैर्वृतः ।

निहन्तुं चण्डिकां कोपात्कृत्वा युद्धं तु मातृभिः । । 8 ।।

9. पायस (खीर), घृत (घी)।

ततो युद्धमतीवासीद्देव्या शुम्भनिशुम्भयोः ।

शरवर्षमतीवोग्रं मेघयोरिव वर्षतोः ।। 19 ।।

10. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चिच्छेदास्ताञ्छरांस्ताभ्यां चण्डिका स्वशरीरोत्करैः ।

ताडयामास चांगेषु शस्त्रौघैरसुरेश्वरौ ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

निशुम्भो निशितं खड्गं चर्म चादाय सुप्रभम् ।

अताडयन्मूर्ध्नि सिंहं देव्या वाहनमुत्तमम् ।।11।।

12. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ताडिते वाहने देवी क्षुरप्रेणासिमुत्तमम् ।

निशुम्भस्याशु चिच्छेद चर्म चाप्यष्टचन्द्रकम् ।।12।।

13. पायस (खीर), घृत (घी) ।

छिन्ने चर्मणि खड्गे च शक्तिं चिक्षेप सोऽसुरः ।

तामप्यस्य द्विधा चक्रे चक्रेणाभिमुखागताम् ।।13।।

14. पायस (खीर), घृत (घी) ।

कोपाध्मातो निशुम्भोऽथ शूलं जग्राह दानवः ।

आयातं मुष्टिपातेन देवी तच्चाप्यचूर्णयत् । ।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अथादाय गदां सोऽपि चिक्षेप चण्डिकां प्रति ।

सापि देव्या त्रिशूलेन भिन्ना भस्मत्वमागता ।।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः परशुहस्तं तमायान्तं दैत्यपुंगवम् ।

आहत्य देवी बाणौघैरपातयत भूतले ।।16।।

17. कपीठ चूक, कस्तूरी ।

तस्मिन्निपतिते भूमौ निशुम्भे भीमविक्रमे ।

भ्रातर्यतीव संक्रुद्धः प्रययौ हन्तुमम्बिकाम् ।।17।।

18. पायस (खीर), घृत (घी) ।

स रथस्थस्तथात्युच्चैर्गृहीतपरमायुधैः ।

भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं बभौ नभः ।। 18 ।।

19. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तमायान्तं समालोक्य देवी शंखमवादयत् ।

ज्याशब्दं चापि धनुषश्चकारातीव दुःसहम् ।।19।।

20. केसर ।

पूरयामास ककुभो निजघण्टास्वनेन च ।

समस्तदैत्यसैन्यानां तेजोवधविधायिना ।।20।।

21. केला, आकाशबेल ।

ततः सिंहो महानादैस्त्याजितेभमहामदैः ।

पूरयामास गगनं गां तथैव दिशो दश । । 21 ।।

22. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः काली समुत्पत्य गगनं क्ष्मामताडयत् ।

कराभ्यां तन्निनादेन प्राक्स्वनास्ते तिरोहिताः ।। 22 ।।

23. पायस (खीर), घृत (घी) ।

अट्टाट्टहासमशिवं शिवदूती चकार ह ।

तैः शब्दैरसुरास्त्रेसुः शुम्भः कोपं परं ययौ ।। 23 ।।

24. आकाशबेल ।

दुरात्मस्तिष्ठ तिष्ठेति व्याजहाराम्बिका यदा ।

तदा जयेत्यभिहितं देवैराकाशसंस्थितैः ।। 24।।

25. पायस (खीर), घृत (घी) ।

शुम्भेागत्य या शक्तिर्मुक्ता ज्वालातिभीषणा ।

आयान्ती वह्निकूटाभा सा निरस्ता महोल्कया ।।25।।

26. सिराली ।

सिंहनादेन शुम्भस्य व्याप्तं लोकत्रयान्तरम् ।

निर्घातनिःस्वनो घोरो जितवानवनीपते । । 26 ।।

27. पायस (खीर), घृत (घी) ।

शुम्भमुक्ताञ्छरान्देवी शुम्भस्तत्प्रहिताञ्छरान् ।

चिच्छेद स्वशरैरुग्रैः शतशेऽथ सहस्रशः । । 27 ।।

28. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः सा चण्डिका क्रुद्धा शूलेनाभिजघान तम् ।

स तदाभिहतो भूमौ मूर्च्छितो निपपात ह।।28।।

29. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो निशुम्भः सम्प्राप्य चेतनामात्तकार्मुकः ।

आजघान शरैर्देवीं कालीं केसरिणं तथा ।। 29 ।।

30. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पुनश्च कृत्वा बाहूनामयुतं दनुजेश्वरः ।

चक्रायुधेन दितिजश्छादयामास चण्डिकाम् ।।30 ।।

31. रक्तकनेर, दूर्वा, पपीता ।

ततो भगवती क्रुद्धा दुर्गा दुर्गार्तिनाशिनी ।

चिच्छेद तानि चक्राणि स्वशरैः सायकांश्च तान् ।। 31।।

32. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो निशुम्भो वेगेन गदामादाय चण्डिकाम् ।

अभ्यधावत वै हन्तुं दैत्यसेनासमावृतः ।।32 । ।

33. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्यापतत एवाशु गदां चिच्छेद चण्डिका ।

खड्गेन शितधारेण स च शूलं समाददे ।।33 ।।

34. लौंग ।

शूलहस्तं समायान्तं निशुम्भममरार्दनम् ।

हृदि विव्याध शूलेन वेगाविद्धेन चण्डिका ।। 34 ।।

35. बिजौरानींबू ।

भिन्नस्य तस्य शूलेन हृदयान्निःसृतोऽपरः ।

महाबलो महावीर्यस्तिष्ठेति पुरुषो वदन् ।।35।।

36. गुग्गुल, इन्द्रजौ ।

तस्य निष्क्रामतो देवी प्रहस्य स्वनवत्ततः ।

शिरश्चिच्छेद खड्गेन ततोऽसावपतद् भुवि ।। 36 ।।

37. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः सिंहश्चखादोग्रं दंष्ट्राक्षुण्णशिरोधरान् ।

असुरांस्तांस्तथा काली शिवदूती तथापरान् ।।37।।

38. मोरपंख, ब्राह्मी ।

कौमारीशक्तिनिर्भिन्नाः केचिन्नेशुर्महासुराः ।

ब्रह्माणीमन्त्रपूतेन तोयेनान्ये निराकृताः । । 38 ।।

39. पपीता ।

माहेश्वरीत्रिशूलेन भिन्नाः पेतुस्तथापरे ।

वाराहीतुण्डघातेन केचिच्चूर्णीकृता भुवि । ।39 ।।

40. गन्ना, उड़द, कूष्माण्ड, बेलगिरि ।

खण्डं खण्डं च चक्रेण वैष्णव्या दानवाः कृताः ।

वज्रेण चैन्द्रीहस्ताग्रविमुक्तेन तथापरे ।।40 ।।

41. बेलगिरि ।

केचिद्विनेशुरसुराः केचिन्नष्टा महाहवात् ।

भक्षिताश्चापरं कालीशिवदूतीमृगाधिपैः ।। 41 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये नवमः । हरिः ॐ तत्सत् ।

सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

42. अथ नवमाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि- स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारीछोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्वायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।

ॐसांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिवायै नवमाध्यायाधिष्ठात्र्यै तारादेव्यै महाहुतिं समर्पयामि स्वाहा ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये नवमाध्यायाधिष्ठात्री तारा सांगा सपरिवारा

सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयन्ताम् ।। 42 ।। (जल छोड़े)

।।1 एका महाहुति सहित 15 पंचदशविशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 16 षोडश ।।

।। 26 षड्विंशतिसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 42 द्विचत्वारिंशत् । ।

।। निशुम्भवधः । । इति नवमोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। शुम्भवधः ।।

।। दशमाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् –

उत्तप्तहेतरुचिरां रविचन्द्रवह्नि - नेत्रां धनुश्शरयुतांकुशपाशशूलम् ।

रम्यैर्भुजैश्च दधतीं शिवशक्तिरूपां कामेश्वरीं हृदि भजामि धृतेन्दुलेखाम् ।।

ॐ श्री कामेश्वर्यै नमः।।

1. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।1।।

2.वच, केसर, कस्तूरी।

निशुम्भं निहतं दृष्ट्वा भ्रातरं प्राणसम्मितम् ।

हन्यमानं बलं चैव शुम्भः क्रुद्धोऽब्रवीद्वचः ।। 2 ।।

3.पायस (खीर), घृत (घी) ।

बलावलेपाद् दुष्टे त्वं मा दुर्गे गर्वमावह ।

अन्यासां बलमाश्रित्य युध्यसे यातिमानिनी ।। 3 ।।

4.रक्तकनेर, कमलपुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।4।।

5.सेव, रक्तगुंजा ।

एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा ।

पश्यैता दुष्ट मय्येव विशन्त्यो मद्विभूतयः ।।5।।

6. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।6।।

7. कमलपुष्प ।

ततः समस्तास्ता देव्यो ब्रह्माणीप्रमुखा लयम् ।

तस्या देव्यास्तनौ जग्मुरेकैवासीत्तदाम्बिका ।।7।।

8. रक्तकनेर, कमलपुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।8।।

9.शाकल्य ।

अहं विभूत्या बहुभिरिह रूपैर्यदास्थिता ।

तत्संहृतं मयैकैव तिष्ठाम्याजौ स्थिरो भव ।।9 ।।

10. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।।10।।

11. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः प्रववृते युद्धं देव्याः शुम्भस्य चोभयोः ।

पश्यतां सर्वदेवानामसुराणां च दारुणम् ।।11।।

12. धनुषबाण ।

दिव्यान्यस्त्राणि शतशो मुमुचे यान्यथाम्बिका ।

बभञ्ज तानि दैत्येन्द्रस्तत्प्रतीघातकर्तृभिः।।12।।

13. स्वर्ण ।

मुक्तानि तेन चास्त्राणि दिव्यानि परमेश्वरी ।

बभञ्ज लीलयैवोग्रहुंकारोच्चारणादिभिः ।।13।।

14. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः शरशतैर्देवीमाच्छादयत सोऽसुरः ।

सा च तत्कुपिता देवी धनुश्चिच्छेद चेषुभिः ।।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी)।

छिन्ने धनुषि दैत्येन्द्रस्तथा शक्तिमथाददे ।

चिच्छेद चक्रेण तामप्यस्य करे स्थिताम् । ।15।।

16. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततः खड्गमुपादाय शतचन्द्रं च भानुमत् ।

अभ्यधावत्तदा देवीं दैत्यानामधिपेश्वरः ।।16।।

17. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्यापतत एवाशु खड्गं चिच्छेद चण्डिका ।

धनुर्मुक्तैः शितैर्बाणैश्चर्म चार्ककरामलम् ।।17।।

18. पायस (खीर), घृत (घी) ।

( अश्वांश्च पातयामास रथं सारथिना सह । - इदमधिकं । )

हताश्वः स तदा दैत्यश्छिन्नधन्वा विसारथिः ।

जग्राह मुद्गरं घोरमम्बिकानिधनोद्यतः ।। 18 ।।

19. पायस (खीर), घृत (घी) ।

चिच्छेदापततस्तस्य मुद्गरं निशितैः शरैः ।

तथापि सोऽभ्यधावत्तां मुष्टिमुद्यम्य वेगवान्।।19।।

20. पायस (खीर), घृत (घी) ।

स मुष्टिं पातयामास हृदये दैत्यपुंगवः ।

देव्यास्तं चापि सा देवी तलेनोरस्यताडयत् ।।20 ।।

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तल प्रहाराभिहतो निपपात महीतले ।

स दैत्यराजः सहसा पुनरेव तथोत्थितः । । 21 ।।

22. आकाशबेल ।

उत्पत्य च प्रगृह्योच्चैर्देवीं गगनमास्थितः ।

तत्रापि सा निराधारा युयुधे तेन चण्डिका ।।22।।

23. आकाशबेल ।

नियुद्धं खे तदा दैत्यश्चण्डिका च परस्परम् ।

चक्रतुः प्रथमं सिद्धमुनिविस्मयकारकम् ।। 23।।

24. पायस (खीर), घृत (घी) ।

ततो नियुद्धं सुचिरं कृत्वा तेनाम्बिका सह ।

उत्पात्य भ्रामयामास चिक्षेप धरणीतले । । 24।।

25. पायस (खीर), घृत (घी)।

सक्षिप्तो धरणीं प्राप्य मुष्टिमुद्यम्य वेगितः ।

अभ्यधावत दुष्टात्मा चण्डिकानिधनेच्छया । । 25।।

26. केला ।

तमायान्तं ततो देवी सर्वदैत्यजनेश्वरम् ।

जगत्यां पातयामास भित्त्वा शूलेन वक्षसि । 126 ।।

27. भोजपत्र, केला ।

स गतासुः पपातोर्व्यां देवीशूलाग्रविक्षतः ।

चालयन् सकलां पृथ्वीं साब्धिद्वीपां सपर्वताम् ।। 27 ।।

28. भोजपत्र, पीलीसरसों ।

ततः प्रसन्नमखिलं हते तस्मिन् दुरात्मनि ।

जगत्स्वास्थ्यमतीवाप निर्मलं चाभवन्नभः।।28।।

29. पायस (खीर), घृत (घी) ।

उत्पातमेघाः सोल्का ये प्रागासंस्ते शमं ययुः ।

सरितो मार्गवाहिन्यस्तथासंस्तत्र पातिते । । 29 ।।

30. वटपत्र, कपूर, गुग्गुल, कमलगट्टे, इन्द्रजौ ।

ततो देवगणाः सर्वे हर्षनिर्भरमानसाः ।

बभूवुर्निहते तस्मिन् गन्धर्वा ललितं जगुः ।।30 ।।

31. वटपत्र, कपूर, गुग्गुल, कमलगट्टे, इन्द्रजौ ।

अवादयंस्तथैवान्ये ननृतुश्चाप्सरोगणाः ।

ववुः पुण्यास्तथा वाता: सुप्रभोऽभूद्दिवाकरः ।। 31।।

32. वटपत्र, कपूर, गुग्गुल, कमलगट्टे, इन्द्रजौ ।

जज्वलुश्चाग्नयः शान्ताः शान्ता दिग्जनितस्वनाः ।। 32 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये दशमः।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामा ।।

33. अथ दशमाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि-

 स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान,सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्वायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै दशमाध्यायाधिष्ठात्र्यै कामेश्वर्यै उत्तरचरित्राधिष्ठत्र्यै महासरस्वत्यै च महाहुतिं समपर्यामि ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये दशमाध्यायाधिष्ठात्री कामेश्वरी सांगाभ्याम् सपरिवाराभ्याम् सायुधाभ्याम् सशक्तिकाभ्याम् सवाहनाभ्याम् प्रीयेताम् ।।33।। (जल छोड़ें)

111 एका महाहुति सहित 15 पंचदशविशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 16 षोडश ।। ।। 17 सप्तदशसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 33 त्रयस्त्रिंशत् । ।

।। शुम्भवधः ।। इति दशमोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। देवीस्तुतिः ।।

।। एकादशाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम् ।

स्मेरमुखीं वरदांकुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ।।

ॐ श्री भुवनेश्वर्यै नमः।।

1.लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 1 ।

2.पायस (खीर), घृत (घी)।

देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्तान् ।

कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभाद्विकाशिवक्त्राब्जविकाशिताशाः ।। 2 ।।

3. दूर्वांकुर ।

( इदमधिकं देवा ऊचुः । । 3क ।। )

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।

प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।।3।।

4.पायस (खीर), घृत (घी) ।

आधारभूता जगतस्त्वमेका महीस्वरूपेण यतः स्थितासि ।

अपां स्वरूपस्थितया त्वयैतदाप्याय्यते कृत्स्नमलयवीर्ये ।।4।।

5. अंजीर, बिजौरानींबू, विष्णुक्रान्ता ।

त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया ।

सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ।।5।।

6. भोजपत्र, मालकांगनी ।

विद्याः समस्तास्तव देविभेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।

वैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ।।6 ।।

7.पायस (खीर), घृत (घी)।

सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी ।

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ।। 7 ।।

8. पायस (खीर), घृत (घी) ।

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।

स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते । ।8।।

9.पायस (खीर), घृत (घी) ।

कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनी ।

विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ।।9।।

10. पेठा, अनानास, गुग्गुल, दूर्वा, केसर, मिश्री, छोटी इलायची ।

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।10।।

11. मेहंदी।

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।

गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ।।11।।

12. दूर्वा, इत्र, गुग्गुल, कमलगट्टे ।

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते । । 12 ।।

13. ब्राह्मी, कुशा ।

हंसयुक्तविमानस्थे ब्रह्माणीरूपधारिणि ।

कौशाम्भःक्षरिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।13।।

14. कर्पूर ।

त्रिशूलचन्द्राहिघरे महावृषभवाहिनि ।

माहेश्वरीस्वरूपेण नारायणि नमोऽस्तु ते । ।14।।

15. मोरपंख ।

मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेऽनघे ।

कौमारीरूपसंस्थाने नारायणि नमोऽस्तु ते ।।15।।

16. शंख, शंखपुष्पी ।

शंखचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।

प्रसीद वैष्णवीरूपे नारायणि नमोऽस्तु ते । ।16।।

17. वज्रदन्ती पंचांग ।

गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे ।

वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तु ते । ।17 ।।

18. गोखरू ।

नृसिंहरूपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे ।

त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमोऽस्तु ते ।।18।।

19. पुष्प, शाकल्य ।

किरीटिन महावज्रे सहस्रनयनोज्ज्वले ।

वृत्रप्राणहरे चैन्द्रि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।19।।

20. शिवलिंगी, जटामांसी, जायफल ।

शिवदूतिस्वरूपेण हतदैत्यमहाबले ।

घोररूपे महारावे नारायणि नमोऽस्तु ते ।।20।।

21. नीमगिलोय ।

दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे ।

चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते । । 21 ।।

22. लौंग, मिश्री, गुग्गुल ।

लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टे स्वधे ध्रुवे ।

महारात्रे महामाये नारायणि नमोऽस्तु ते ।। 22 ।।

23. वच, पुष्प, पान ।

मेघे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि ।

नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोऽस्तु ते ।। 23 ।।

( इदमधिकं सर्वतः पाणिपादान्ते सर्वतोक्षिशिरोमुखे ।

सर्वतः श्रवणघ्राणे नारायणि नमोऽस्तु ते । । 23क । । )

24. रक्तकनेर, दूर्वा, पुष्प ।

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ।। 24।।

25. बहेड़ा।

एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् ।

पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ।। 25।।

26. नीमगिलोय, बहेड़ा ।

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।

त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ।।26 ।।

27. पायस (खीर), घृत (घी) ।

हिनस्ति दैतेयतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।

सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ।। 27 ।।

28. रक्तचन्दन, उड़द, मसूर, दही, गुडुची, गिलोय, औषधियां ।

असुरासृग्वसापङ्कचर्चितस्ते करोज्ज्वलः ।

शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ।।28।।

29. राई, सरसों, आंवला, कालीमिर्च, नीमगिलोय, सभी मूसलियां ।

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान्सकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।29 ।।

30. कालीमिर्च ।

एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य धर्मद्विषां देवि महासुराणाम् ।

रूपैरनेकैर्बहुधाऽऽत्ममूर्तिं कृत्वाम्बिके तत्प्रकरोति कान्या । । 30 ।।

31. भोजपत्र, मालकांगनी, हल्दी ।

विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपे वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या ।

ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ।।31 ।।

32. हल्दी, दर्भ, कुशा, भोजपत्र ।

रक्षांसि यत्रोग्रविशाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।

दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ।।32।।

33. मिश्री, पुष्प ।

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम् ।

विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः । । 33 ।।

34. गुग्गुल, मिश्री ।

देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।

पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ।। 34।।

35. कर्पूर ।

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।

त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ।।35।।

36. रक्तकनेर, कमलपुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।36 ।।

37. लाजा, शमीपत्र ।

वरदाहं सुरगणा वरं यन्मनसेच्छथ ।

तं वृणुध्वं प्रयच्छामि जगतामुपकारकम् ।।37।।

38. विष्णुक्रान्ता ।

देवा ऊचुः ।।38 ।।

39. कालीमिर्च, सरसों, दालचीनी, शिलाजीत ।

सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ।।37 ।।

40. रक्तकनेर, कमलपुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।40 ।।

41. सरसों ।

वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे ।

शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ ।।41 ।।

42. मक्खन, मिश्री ।

नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा ।

ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनि ।। 42 ।।

43. जायफल, शाकल्य ।

पुनरप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतलं ।

अवतीर्य हनिष्यामि वैप्रचित्तांस्तु दानवान् ।।43 ।।

44. अनारदाना आदि पंचांग ।

भक्षयन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचित्तान्सुदानवान् ।

रक्तदन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ।। 44 ।।

45. अनार, मंजीठा ।

ततो मां देवताः स्वर्गे मर्त्यलोके च मानवाः ।

स्तुवन्तो व्यावहरिष्यन्ति सततं रक्तदन्तिकाम् ।।45।।

46. आकाशबेल, नारंगी ।

भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि ।

मुनिभिः संस्तुता भूमौ संभविष्याम्ययोनिजा ।।46 ।।

47. कमलगट्टे, संतरा ।

ततः शतेन नेत्राणां निरीक्ष्यामि यन्मुनीम् ।

कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः ।। 47 ।।

48. इन्द्रजौ, पालक, हरी सब्जियां ।

ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः ।

भरिष्यामि पुरा: शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः ।।48 ।।

49. पालक ।

शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि ।

तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ।।49।।

50. रक्तकनेर, दूर्वांकुर ।

दुर्गा देवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।

पुनश्चाहं यदा भीमं रूपं कृत्वा हिमालये ।। 50 ।।

51. पायस (खीर), घृत (घी) ।

रक्षांसि भक्षयिष्यामि मुनीनां त्राणकारणात् ।

तदा मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः ।। 51 ।।

52. रक्तगुंजा ।

भीमा देवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।

यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति । । 52 ।।

53. रक्तकनेर, पालक ।

तदाऽहं भ्रामरं रूपं कृत्वाऽसंख्येयषट्पदम् ।

त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम् ।।53।।

54. रक्तगुंजा ।

भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति सर्वतः ।

इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।।54 ।।

55. कालीमिर्च, सरसों, गुग्गुल ।

तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।55।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये एकादशः ।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

56. अथ एकादशाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि-

स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै एकादशाध्यायाधिष्ठात्र्यै भुवनेश्वर्यै महाहुतिं समर्पयामि ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये एकादशाध्यायाधिष्ठात्री भुवनेश्वरी सांगा

सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।56।। (जल छोड़ें)

111 एका महाहुति सहित 47 सप्तचत्वारिंशद्विशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 48 अष्टाचत्वारिंशत् ।। ।। 8 अष्टसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 56 षट्पंचाशत् ।।

।। देवीस्तुतिः ।। इति एकादशोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। फलस्तुतिः ।

।। द्वादशाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम्-

विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां, कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।

हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गा त्रिनेत्रां भजे ॥ ।

ॐ श्रीवैष्णव्यै नमः ।

1. रक्तकनेर, कमलपुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।1।।

2. नागकेसर, आंवला, हल्दी, गुग्गुल, सुपारी ।

एभि: स्तवैश्च मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः ।

तस्याहं सकलां बाधां नाशयिष्याम्यसंशयम् ।।2 ।।

3. दर्भ, कुशा ।

मधुकैटभनाशं च महिषासुरघातनम् ।

कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वधं शुम्भनिशुम्भयोः ।।3।।

4.भोजपत्र ।

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ।

स्तोष्यन्ति चैव ये भक्त्या मम माहात्म्यमुत्तमम् ।।4।।

5. गुग्गुल, मिश्री ।

न तेषां दुष्कृतं किंचिद् दुष्कृतोत्था न चापदः ।

भविष्यति न दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम् ।। 5 ।।

6. हल्दी, दूर्वा ।

शत्रुतो न भयं तस्य दस्युतो वा न राजतः ।

न शस्त्रानलतोयौघात्कदाचित्सम्भविष्यति ।।6।।

7.गुग्गुल ।

तस्मन्ममैतन्माहात्म्यं पठितव्यं समाहितैः ।

श्रोतव्यं च सदा भक्त्या परं स्वस्त्ययनं महत् । 17 ।।

8.मिश्री ।

उपसर्गानशेषांस्तु महामारीसमुद्भवान् ।

तथा त्रिविधमुत्पातं माहात्म्यं शमयेन्मम ।। 8 ।।

9. मधु, मिश्री, बहेड़ा ।

यत्रैतत्पठ्यते सम्यङ् नित्यमायतने मम ।

सदा न तद्विमोक्ष्यामि सांनिध्यं तत्र मे स्थितम् ।।9।।

10. कूष्माण्ड, गन्ना, केला, पेड़ा ।

बलिप्रदाने पूजायामग्निकार्ये महोत्सवे ।

सर्वं ममैतच्चरितमुच्चार्यं श्राव्यमेव च ।।10।।

11. कूष्माण्ड, गन्ना, केला ।

जाता जाता वापि बलिपूजां तथा कृताम् ।

प्रतीच्छिष्याम्यहं प्रीत्या वह्निहोमं तथा कृतम् ।।11।।

12. मावा, मिश्री ।

शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी ।

तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः ।। 12 ।।

13. मिश्री, हल्दी, पीलीसरसों, पायस, कालीमिर्च ।

सर्वबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसमन्वितः ।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ।।13।।

14. दूर्वा ।

श्रुत्वा ममैतन्माहात्म्यं तथोत्पत्तीः पृथक्छुभाः ।

पराक्रमं च युद्धेषु जायते निर्भयः पुमान् ।।14।।

15. राई, गुग्गुल ।

रिपवः संक्षयं यान्ति कल्याणं चोपपद्यते ।

नन्दते च कुलं पुंसां माहात्म्यं शृणुयान्मम ।।15।।

16. गंगाजल ।

शान्तिकर्मणि सर्वत्र तथा दुःस्वप्नदर्शने ।

ग्रहपीडासु चोग्रासु माहात्म्यं शृणयान्मम ।।16 ।

17. आंक, पलाश, शलीपत्र, भोजपत्र, खैर ।

उपसर्गाः शमं यान्ति ग्रहपीडाश्च दारुणाः ।

दुःस्वप्नं च नृभिर्दृष्टं सुस्वप्नमुपजायते । ।17 ।।

18. राई, गुग्गुल, प्रियंगु के फूल, आशापुरी धूप ।

बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम् ।

संघातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम् ।।18।।

19. कूष्माण्ड बलि ।

दुर्वृत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम् ।

रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेव नाशनम् । ।19।।

20. शाकल्य ।

सर्वं ममैतन्माहात्म्यं मम सन्निधिकारकम् ।

पशुपुष्पार्घ्यधूपैश्च गन्धदीपैस्तथोत्तमैः । । 20।।

21. धूप, मिश्री, केसर, कपूर, बिजौरा नींबू / खीर, पक्वान्न ।

विप्राणां भोजनैर्होमैः प्रोक्षणीयैरहर्निशम् ।

अन्यैश्च विविधैर्भोगैः प्रदानैर्वत्सरेण या ।।21।।

22. पायस (खीर), घृत (घी), पक्वान्न, जायफल ।

प्रीतिर्मे क्रियते सास्मिन् सकृत्सुचरिते श्रुते ।

श्रुतं हरति पापानि तथाऽऽरोग्यं प्रयच्छति ।। 22 ।।

23. शाकल्य ।

रक्षां करोति भूतेभ्यो जन्मनां कीर्तनं मम ।

युद्धेषु चरितं यन्मे दुष्टदैत्यनिबर्हणम् ।। 23 ।।

24. पायस (खीर), घृत (घी) ।

तस्मिञ्श्रुते वैरिकृतं भयं पुंसां न जायते ।

युष्माभिः स्तुतयो याश्च याश्च ब्रह्मर्षिभिः कृता । । 24।।

25. दर्भ, भोजपत्र ।

ब्रह्मणा च कृतास्तास्तु प्रयच्छन्ति शुभां गतिम् ।

अरण्ये प्रान्तरे वापि दावाग्निपरिवारितः । । 25।।

26. पायस (खीर), घृत (घी) ।

दस्युभिर्वा वृतः शून्ये गृहीतो वापि शत्रुभिः ।

सिंहव्याघ्रानुयातो वा वने वनहस्तिभिः । । 26।।

27. पायस (खीर), घृत (घी) ।

राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा ।

आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे । । 27 ।।

28. पायस (खीर), घृत (घी) ।

पतत्सु चापि शस्त्रेषु संग्रामे भृशदारुणे ।

सर्वाबाधासु घोरेषु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा ।।28।।

29. हरताल, गुग्गुल ।

स्मरन्ममैतच्चरितं नरो मुच्येत संकटात् ।

मम प्रभावात्सिंहाद्या दस्यवो वैरिणस्तथा ।।29 ।।

30. सरसों, गुग्गुल, लौंग ।

दूरादेव पलायन्ते स्मरतश्चरितं मम ।।30 ।।

31. लौंग ।

ऋषिरुवाच ।। 31 ।।

32. वच, कपूर ।

इत्युक्त्वा सा भगवती चण्डिका चण्डविक्रमा ।।32 ।।

33. सर्वोषधि, पान ।

पश्यतामेव देवानां तत्रैवान्तरधीयत ।

तेऽपि देव्या निरातंका: स्वाधिकारान् यथा पुरा ।।33।।

34. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यज्ञभागभुजः सर्वे चक्रुर्विनिहतारयः ।

दैत्याश्च देव्या निहते शुम्भे देवरिपौ युधि ।।34।।

35. पायस (खीर), घृत (घी) ।

जगद्विध्वंसके तस्मिन् महोग्रेऽतुलविक्रमे ।

निशुम्भे च महावीर्ये शेषाः पातालमाययुः ।।35।।

36. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एवं भगवती देवी सा नित्यापि पुनः पुनः ।

सम्भूय कुरुते भूप जगतः परिपालनम् ।। 36 ।।

37. मिश्री, अमर बेल ।

तयैतन्मोह्यते विश्वं सैव विश्वं प्रसूयते ।

सा याचिता च विज्ञानं तुष्टा ऋद्धिं प्रयच्छति ।। 37 ।।

38. पायस (खीर), घृत (घी) ।

व्याप्तं तयैतत्सकलं ब्रह्माण्डं मनुजेश्वर ।

महाकालया महाकाले महामारीस्वरूपया ।।38 ।।

39. अनार के छिलके, गंगाजल ।

सैव काले महामारी सैव सृष्टिर्भवत्यजा ।

स्थितिं करोति भूतानां सैव काले सनातनी ।।39 ।।

40. मिश्री, चन्दन, धूप, गन्ध ।

भवकाले नृणां सैव लक्ष्मीर्वृद्धिप्रदा गृहे ।

सैवाभावे तथाऽलक्ष्मीर्विनाशायोपजायते ।।40 ।।

41. मिश्री, चन्दन, धूप, गन्ध ।

स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगन्धादिभिस्तथा ।

ददाति वित्तं पुत्रांश्च मतिं धर्मे गतिं शुभाम् । ।41 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये द्वादशः ।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

42. अथ द्वादशाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि –

स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै द्वादशाध्यायाधिष्ठात्र्यै वैष्णव्यै महाहुतिं समर्पयामि ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये द्वादशाध्यायाधिष्ठात्री वैष्णवी सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् ।।42 ।।

(जल छोड़ें)

111 एका महाहुति सहित 33 त्रयस्त्रिंशद्विशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 34 चतुस्त्रिंशत् ।। ।। 8 अष्टसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 42 द्विचत्वारिंशत् ।।

।। फलस्तुतिः । । इति द्वादशोऽध्यायः ।। 

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।। सुरथवैश्ययोर्वरप्रदानम् ।।

।। त्रयोदशाध्याये आहुतयः । ।

अथ ध्यानम् -

बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम् ।

पाशांकुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे ।।

ॐ श्री त्रिपुरभैरव्यै नमः ।

1. लौंग ।

ऋषिरुवाच।।1।।

2. पायस (खीर), घृत (घी) ।

एतत्ते कथितं भूप देवीमाहात्म्यमुत्तमम् ।

एवं प्रभावा सा देवी ययेदं धार्यते जगत् ।। 2 ।।

3. विष्णुक्रान्ता ।

विद्या तथैव क्रियते भगवद्विष्णुमायया ।

तथा त्वमेष वैश्यश्च तथैवान्ये विवेकिनः ।। 3 ।।

4. पायस (खीर), घृत (घी) ।

मोह्यन्ते मोहिताश्चैव मोहमेष्यन्ति चापरे ।

तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम् ।।4।।

5.पायस (खीर), घृत (घी)।

आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा ।।5।।

6.लाजा (खील) ।

मार्कण्डेय उवाच ।।6।।

7.पायस (खीर), घृत (घी) ।

इति तस्य वचः श्रुत्वा सुरथः स नराधिपः ।। 7 ।।

8.पायस (खीर), घृत (घी) ।

प्रणिपत्य महाभागं तमृषिं शंसितव्रतम् ।

निर्विण्णोऽतिममत्वेन राज्यापहरणेन च ।।8 ।।

9.शाकल्य ।

जगाम सद्यस्तपसे स च वैश्यो महामुने।

संदर्शनार्थमम्बाया नदीपुलिनसंस्थितः ।।9 ।।

10. सुगन्धितद्रव्य, गन्ध, लाल चन्दन ।

स च वैश्यस्तपस्तेपे देवीसूक्तं परं जपन् ।

तौ तस्मिन् पुलिने देव्याः कृत्वा मूर्ति महीमयीम् ।।10।।

11. इक्षुदण्ड ।

अर्हणां चक्रतुस्तस्याः पुष्पधूपाग्नितर्पणैः ।

निराहारौ यतात्मानौ तन्मनस्कौ समाहितौ ।।11।।

12. पेड़ा।

ददतुस्तौ बलिं चैव निजगात्रासृगुक्षितम् ।

एवं समाराधयतोस्त्रिभिर्वर्षैर्यतात्मनोः । । 12 ।।

13. पायस (खीर), घृत (घी) ।

परितुष्टा जगद्धात्री प्रत्यक्षं प्राह चण्डिका ।। 13 ।।

14. रक्तकनेर, कमलपुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, लौंग ।

श्रीदेव्युवाच ।।14।।

15. पायस (खीर), घृत (घी) ।

यत्प्रार्थ्यते त्वया भूप त्वया च कुलनन्दन ।

मत्तस्तत्प्राप्यतां सर्वं परितुष्टा ददामि तत् ।।15।।

16. लाजा (खील)।

मार्कण्डेय उवाच ।।16।।

17. कालीमिर्च, गुग्गुल, अशोकपुष्प, जिमीकन्द ।

ततो वव्रे नृपो राज्यमविभ्रंश्यन्यजन्मनि ।

अत्रैव च निजं राज्यं हतशत्रुबलं बलात् । । 17 ।।

18. शमीपत्र, दूर्वा, कनेरपुष्प ।

सोऽपि वैश्यास्ततो ज्ञानं वव्रे निर्विण्णमानसः ।

ममेत्यहमिति प्राज्ञः संगविच्युतिकारकम् ।।18।।

19. अशोकपंचांग, रक्तकनेर, कमलपत्र ।

श्रीदेव्युवाच ।।19।।

20. सरसों, गुग्गुल ।

स्वल्पैरहोभिर्नृपते स्वं राज्यं प्राप्स्यते भवान् ।। 20 ।।

21. पायस (खीर), घृत (घी) ।

हत्वा रिपूनस्खलितं तव तत्र भविष्यति । । 21 ।।

22. अर्क,कपूर।

मृतश्च भूयः सम्प्राप्य जन्म देवाद्विवस्वतः ।। 22 ।।

23. पुष्प, फल, शाकल्य ।

सावर्णिको नाम मनुर्भवान् भुवि भविष्यति ।। 23 ।।

24. भोजपत्र ।

वैश्यवर्य त्वया यश्च वरोऽस्मत्तोऽभिवाञ्छितः ।। 24।।

25. शाकल्य ।

तं प्रयच्छामि संसिद्ध्यै तव ज्ञानं भविष्यति । । 25 ।।

26. लाजा (खील)।

मार्कण्डेय उवाच ।। 26।।

27. पायस (खीर), घृत (घी) ।

इति दत्त्वा तयोर्देवी यथाभिलषितं वरम् । । 27 ।।

28. शाकल्य ।

बभूवान्तर्हिता सद्यो भक्त्या ताभ्यामभिष्टुता ।

एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः ।।28।।

29. अर्क, कपूर, गन्ध ।

सूर्याज्जन्म समासाद्य सावर्णिर्भविता मनुः ।। 29 ।।

30. सुपारी।

एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः ।

सूर्याज्जन्म समासाद्य सावर्णिर्भविता मनुः ।।30 ।।

।। जय जय श्रीमार्कण्डेयमहापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे त्रयोदशः ।

हरिः ॐ तत्सत् । सत्याः सन्तु यजमानस्य (मम) कामाः ।।

31. अथ त्रयोदशाध्यायस्य महाहुतिद्रव्याणि

स्वर्ण एवं रजत मुद्रा सहित नवरत्न, आभूषण, लौंग, पत्र, पुष्प, फल, पान, सुपारी, छोटी इलायची, जायफल और जावित्री । इन सामग्रियों को स्रुचि में रखकर खड़े होकर महाहुति दें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।

नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।

ॐ सांगायै सपरिवारायै सवाहनायै सायुधायै सशक्तिकायै त्रयोदशाध्यायाधिष्ठात्र्यै त्रिपुरभैरव्यै महाहुतिं समर्पयामि ।

आचमनीय में जल लेकर-

अनेन होमेन श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये त्रयोदशाध्यायाधिष्ठात्री त्रिपुरभैरवी सांगा सपरिवारा सायुधा सशक्तिका सवाहना प्रीयताम् । । 31 ।।

(जल छोड़े)

11 एका महाहुति सहित 20 विंशतिविशेषाहुतयः, समुदिताहुतयः 21 एकविंशतिः । । ।। 10 दशसामान्याहुतयश्च सहिता कुलसमुदिताहुतयः 31 एकत्रिंशत् ।।

।। सुरथवैश्ययोर्वरप्रदानं ।। इति त्रयोदशोऽध्यायः ।।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

अब पीठदेवताओं के लिए आहुति दें-

पीठदेवतानां होममन्त्राः

01. ॐ पूर्वपीठाय स्वाहा । 02. ॐ पं पूर्णपीठाय स्वाहा । 03. ॐ कं कमलपीठाय स्वाहा । 

04. ॐ उं उड्याणपीठाय स्वाहा । 05. ॐ मां मातृपीठाय स्वाहा । 06. ॐ जं जालन्धरपीठाय स्वाहा । 07. ॐ कं कोल्हापुरोपपीठाय स्वाहा । 08. ॐ पूं पूर्णगिरिपीठाय स्वाहा । 09. ॐ सौं सौहारोपपीठाय स्वाहा । 10. ॐ कं कोल्हागिरिपीठाय स्वाहा । 11. ॐ कं कामरूपपीठाय स्वाहा । 12. ॐ गुं गुरुभ्यो स्वाहा । 13. ॐ पं परमगुरुभ्यो स्वाहा । 14. ॐ पं परात्परगुरुभ्यो स्वाहा । 15. ॐ पं परमेष्ठिगुरुभ्यो स्वाहा । 16. ॐ मातापितृभ्यां स्वाहा । 17. ॐ उपमन्युनारदसनकव्यासादिभ्यो स्वाहा । 18. ॐ गं गणपतये स्वाहा । 19. ॐ दुं दुर्गायै स्वाहा । 20. ॐ सं सरस्वत्यै स्वाहा । 21. ॐ क्षं क्षेत्रपालाय स्वाहा । 22. ॐ गुं गुरुभ्यो स्वाहा । 23. ॐ पं परमगुरुभ्यो स्वाहा । 24. ॐ पं परात्परगुरुभ्यो स्वाहा । 25. ॐ पं परमेष्ठिगुरुभ्यो स्वाहा । 26. ॐ गं गणपतये स्वाहा । 27. ॐ दुं दंर्गायै स्वाहा ।   28. ॐ क्षं क्षेत्रपालाय स्वाहा । 29. ॐ आं आधारशक्त्यै स्वाहा । 30. ॐ मूं मूलप्रकृत्यै स्वाहा । 31. ॐ कां कालाग्निरुद्राय स्वाहा । 32. ॐ मं महामण्डूकाय स्वाहा । 33. ॐ आं आदिकूर्माय स्वाहा । 34. ॐ आं आदिवराहाय स्वाहा । 35. ॐ अं अनन्ताय स्वाहा । 36. ॐ पं पृथिव्यै स्वाहा (ॐ भू भूम्यै स्वाहा ) । 37. ॐ अं अमृतार्णवाय स्वाहा । 38. ॐ रं रत्नद्वीपाय स्वाहा । 39. ॐ हं हेमगिरये स्वाहा । 40. ॐनं नन्दनोद्यानाय स्वाहा ।41. ॐ मं मणिभूम्यै स्वाहा । 42. ॐ रं रत्नमण्डपाय स्वाहा ( ॐ दिं दिव्यमण्डपाय स्वाहा) । 43. ॐ कं कल्पतरवे स्वाहा 44. ॐ रं रत्नसिंहासनाय स्वाहा । 45. ॐ सं स्वर्णवेदिकायै स्वाहा । ( ॐ कं कल्पवृक्षाय स्वाहा ) । 46. ॐ धं धर्माय स्वाहा । 47. ॐ ज्ञां ज्ञानाय स्वाहा । 48. ॐ वैं वैराग्याय स्वाहा । 49. ॐ ऐं ऐश्वर्याय स्वाहा । 50. ॐ अं अधर्माय स्वाहा । 51. ॐ अं अज्ञानाय स्वाहा । 52. ॐ अं अवैराग्याय स्वाहा । 53. ॐ अं अनैश्वर्याय स्वाहा । 54. ॐ आं ब्रह्मणे स्वाहा । 55. ॐ अनन्ताय स्वाहा । 56. ॐ वां वास्तुपुरुषाय स्वाहा । 57. ॐ सं सत्त्वाय स्वाहा । 58. ॐ प्रं प्रबोधात्मने स्वाहा । 59. ॐ रं रजसे स्वाहा । 60. ॐ प्रं प्रकृत्यात्मने स्वाहा । 61. ॐ तं तमसे स्वाहा । 62. ॐ मं मोहात्मने स्वाहा । 63. ॐ मं मायातत्त्वाय स्वाहा । 64. ॐ विं विद्यातत्त्वाय स्वाहा । 65. ॐ शं शिवतत्त्वाय स्वाहा । 66. ॐ व्रं ब्रह्मणे स्वाहा । 67. ॐ मं महेश्वराय स्वाहा । 68. ॐ नं नीलाय स्वाहा । 69. ॐ पं पद्माय स्वाहा । 70. ॐ मं महापद्माय स्वाहा । 71. ॐ रं रत्नेभ्यो स्वाहा । 72. ॐ उड्याणपीठेश्वरसहितायै उद्याणपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 73. ॐ मातृकापीठेश्वरसहितायै मातृकापीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 74. ॐ जालन्धरपीठेश्वरसहितायै जालन्धरपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 75. ॐ कोल्हागिरिपीठेश्वरसहितायै कोल्हागिरिपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 76. ॐ पूर्णागिरिपीठेश्वरसहितायै पूर्णागिरिपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 77. ॐ संहारगिरिपीठेश्वरसहितायै संहारगिरिपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 78. ॐ कोल्हापुरपीठेश्वरसहितायै कोल्हापुरपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 79. ॐ कामरूपपीठेश्वरसहितायै कामरूपपीठेश्वर्यम्बायै स्वाहा । 80. ॐ गं गणेशाय स्वाहा । 81. ॐ क्षं क्षेत्रपालाय स्वाहा । 82. ॐ पां पादुकाभ्यो स्वाहा । 83. ॐ वं वटुकेभ्यो स्वाहा । 84. ॐ जं जयायै स्वाहा । 85. ॐ विं विजयायै स्वाहा । 86. ॐ जं जयन्त्यै स्वाहा । 87. ॐ अं अपराजितायै स्वाहा । 88. ॐ अग्निमुखवेतालाय स्वाहा । 89. ॐ प्रेतवाहनवेतालाय स्वाहा । 90. ॐ ज्वालामुखवेतालाय स्वाहा । 91. ॐ धूम्राक्षवेतालाय स्वाहा । 92. ॐ आनन्दकन्दाय स्वाहा । 93. ॐ संविन्नालाय स्वाहा । 94. ॐ दलेभ्यो स्वाहा । 95. ॐ केसरेभ्यो स्वाहा । 96. ॐ कर्णिकायै स्वाहा । 97. ॐ अं सूर्यमण्डलाय स्वाहा । 98. ॐ उं सोममण्डलाय स्वाहा। 99. ॐ मं वह्निमण्डलाय स्वाहा । 100. ॐ आं आत्मने स्वाहा । 101. ॐ अं अन्तरात्मने स्वाहा । 102. ॐ पं परमात्मने स्वाहा । 103. ॐ ज्ञां ज्ञानात्मने स्वाहा । 104. ॐ विं विष्णुमायायै स्वाहा । 105. ॐ नं नन्दायै स्वाहा । 106. ॐ भं भगवत्यै स्वाहा । 107. ॐ रं रक्तदन्तिकायै स्वाहा । 108. ॐ शां शाकम्बयै स्वाहा । 109. ॐ दुं दुर्गायै स्वाहा । 110. ॐ भीं भीमायै स्वाहा । 111. ॐ कां कालिकायै स्वाहा । 112. ॐ शिं शिवदूत्यै स्वाहा । 113. ॐ चें चेतनायै स्वाहा । 114. ॐ बुं बुद्ध्यै स्वाहा । 115. ॐ निं निद्रायै स्वाहा । 116. ॐ क्षं क्षुधायै स्वाहा । 117. ॐ छां छायायै स्वाहा । 118. ॐ शं शक्त्यै स्वाहा । 119. ॐ तूं तृष्णायै स्वाहा । 120. ॐ क्षां क्षान्त्यै स्वाहा । 121. ॐ जां जात्यै स्वाहा । 122. ॐ लं ललितायै स्वाहा । 123. ॐ शां शान्त्यै स्वाहा । 124. ॐ श्रं श्रद्धायै स्वाहा । 125. ॐ कां कान्त्यै स्वाहा । 126. ॐ लं लक्ष्म्यै स्वाहा । 127. ॐ धृ धृत्यै स्वाहा । 128. ॐ वृं वृद्धयै स्वाहा । 129. ॐ स्मृ स्मृत्यै स्वाहा । 130. ॐ दं दयायै स्वाहा । 131. ॐ तुं तुष्ट्यै स्वाहा । 132. ॐ पुं पुष्ट्यै स्वाहा । 133. ॐ मां मातृकायै स्वाहा । 134. ॐ भ्रां भ्रान्त्यै स्वाहा । 135. ॐ ह्रीं सर्वशक्तिकमलासनाय स्वाहा । 136. ॐ सर्वात्मसंसर्गयोगपीठात्मने स्वाहा ।137. ॐ शक्तिसहितपीठस्थदेवताभ्यो स्वाहा ।

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन पीठस्थदेवताः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम ।

-ऐसा कहकर जल छोड़ें।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

अब आवरण देवताओं के लिए आहुति दें-

आवरणदेवतानां होम:

1. प्रथमावरणदेवतामन्त्राः -

ॐ गुरवे स्वाहा । ॐ परमगुरवे स्वाहा । ॐ परात्परगुरवे स्वाहा । ॐ परमेष्ठिगुरवे स्वाहा । ॐ ऐं हृदयाय स्वाहा । ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा स्वाहा । ॐ क्लीं शिखायै वषट् स्वाहा । ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् स्वाहा । ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् स्वाहा । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् स्वाहा । ॐ अं स्वरया सह विधात्रे स्वाहा । ॐ इं श्रिया सह विष्णवे स्वाहा । ॐ उं उमया सह शिवाय स्वाहा । ॐ क्षं / सिं सिंहाय स्वाहा । ॐ हुं / मं महिषाय स्वाहा । अथवा ॐ सरस्वतीब्रह्मभ्यां स्वाहा । ॐ गौरीरुद्राभ्यां स्वाहा । ॐ लक्ष्मीहृषीकेशाभ्यां स्वाहा । ॐ अष्टादशभुजायै स्वाहा । ॐ दशाननायै स्वाहा । ॐ अष्टभुजायै स्वाहा।

2. द्वितीयावरणदेवतामन्त्राः

ॐ नं नन्दजायै स्वाहा । ॐ दुं दुर्गायै स्वाहा । ॐ शां शाकम्बयै स्वाहा । ॐ रं रक्तदन्तिकायै स्वाहा । ॐ भीं भीमायै स्वाहा । ॐ भ्रां भ्रामर्यै स्वाहा ।

3. तृतीयावरणदेवतामन्त्राः

ॐ जं जयायै स्वाहा । ॐ विं विजयायै स्वाहा । ॐ जं जयन्त्यै स्वाहा । ॐ अं अपराजितायै स्वाहा ।

4. चतुर्थावरणदेवतामन्त्राः

ॐ ब्रां ब्राह्मयै स्वाहा । ॐ मां माहेश्वर्यै स्वाहा । ॐ कौं कौमार्यै स्वाहा । ॐ वैं वैष्णव्यै स्वाहा । ॐ वां वारायै स्वाहा । ॐ नां नारसिंहयै स्वाहा । ॐ ऐं ऐन्द्रयै स्वाहा । ॐ चां चामुण्डायै स्वाहा । ॐ शिं शिवदूत्यै स्वाहा । (अथवा ॐ श्रीं लक्ष्म्यै स्वाहा ।)

5. पंचमावरणदेवतामन्त्राः

ॐ अं असितांगभैरवाय स्वाहा । ॐ रुं रुरुभैरवाय स्वाहा । ॐ चं चण्डभैरवाय स्वाहा । ॐ क्रों क्रोधभैरवाय स्वाहा । ॐ उं उन्मत्तभैरवाय स्वाहा । ॐ कं कपालभैरवाय स्वाहा । ॐ भीं भीषणभैरवाय स्वाहा । ॐ सं संहर भैरवाय स्वाहा ।

6. षष्ठावरणदेवतामन्त्राः -

ॐ विं विष्णुमायायै स्वाहा । ॐ चें चेतनायै स्वाहा । ॐ बुं बुद्ध्यै स्वाहा । ॐ निं निद्रायै स्वाहा । ॐ भुं क्षुधायै स्वाहा । ॐ छां छायायै स्वाहा । ॐ शं शक्त्यै स्वाहा । ॐ तूं तृष्णायै स्वाहा । ॐ क्षां क्षान्त्यै स्वाहा । ॐ श्रं श्रद्धायै स्वाहा । ॐ वं वृत्त्यै स्वाहा। ॐ पुं पुष्ट्यै स्वाहा।

7. सप्तमावरणदेवतामन्त्राः -

ॐ लं इन्द्राय स्वाहा । ॐ मं यमाय स्वाहा । ॐ वं वरुणाय स्वाहा । ॐ सं सोमाय स्वाहा । ॐ व्रं (अं) ब्रह्मणे स्वाहा । ॐ जां जात्यै स्वाहा । ॐ लं लज्जायै स्वाहा । ॐ शां शान्त्यै स्वाहा । ॐ कां कान्त्यै स्वाहा । ॐ लं लक्ष्म्यै स्वाहा । ॐ धं धृत्यै स्वाहा । ॐ स्मृ स्मृत्यै स्वाहा । ॐ दं दयायै स्वाहा । ॐ तुं तृष्ट्यै स्वाहा । ॐ मां मात्रे स्वाहा । ॐ भ्रां भ्रान्त्यै स्वाहा । ॐ चिं चित्त्यै स्वाहा । ॐ रं अग्नये स्वाहा । ॐ क्षां निर्ऋतये स्वाहा । ॐ यं वायवे स्वाहा । ॐ हं रुद्राय स्वाहा । ( ॐ ईं ईशानाय स्वाहा) ॐ ह्रीं शेषाय स्वाहा । (अनन्ताय स्वाहा।)

8. अथ अष्टमावरणदेवतामन्त्राः

ॐ वं वज्राय स्वाहा । ॐ शं शक्त्यै स्वाहा । ॐ दं दण्डाय स्वाहा । ॐ पां पाशाय स्वाहा । ॐ अं अंकुशाय स्वाहा । ॐ गं गदायै स्वाहा । ॐ खं खड्गाय स्वाहा । ॐ त्रिं त्रिशूलाय स्वाहा । ॐ पं पद्माय स्वाहा । ॐ चं चक्राय स्वाहा ।

देवी के अन्य अस्त्रों के नाममन्त्रों से भी हवन करें-

ॐ अं अक्षमालाय स्वाहा । ॐ सुं सुराभाजनाय स्वाहा । ( ॐ कुं कुण्डिकाय स्वाहा ।) ॐ शं शंखाय स्वाहा । ॐ पं परशवे स्वाहा । ॐ धं धनुषे स्वाहा। ॐ सां सायकाय स्वाहा । ॐ घं घण्टायै स्वाहा ।

9. नवमावरणदेवतामन्त्राः --

ॐ गं गणपतये स्वाहा । ॐ क्षे क्षेत्रपालाय स्वाहा । ॐ वं वटुकाय स्वाहा । ॐ यों योगिन्यै स्वाहा । ॐ दुं दुर्गायै स्वाहा । ॐ चं चर्माय स्वाहा । ॐ विं विष्णवे स्वाहा । ॐ शिं शिवाय स्वाहा । ॐ सूं सूर्याय स्वाहा। ॐ गं गणेशाय स्वाहा । अथवा ॐ वज्रहस्तायै गजारूढायै कादम्बरीदेव्यै स्वाहा । ॐ शक्तिहस्तायै अजवाहनायै उल्कादेव्यै महिषारूढायै करालीदेव्यै स्वाहा । ॐ खड्गहस्तायै शववाहनायै रक्ताक्षीदेव्यै स्वाहा । ॐ पाशहस्तायै मकरवाहनायै श्वेताक्षीदेव्यै स्वाहा । ॐ अंकुशहस्तायै मृगवाहनायै हरिता क्षीदेव्यै स्वाहा । ॐ गदाहस्तायै सिंहारूढायै यक्षिणीदेव्यै स्वाहा । ॐ शूलहस्तायै वृषभवाहनायै कालीदेव्यै स्वाहा । ॐ पद्महस्तायै हंसवाहनायै सुरज्येष्ठादेव्यै स्वाहा । ॐ चक्रहस्तायै सर्पवाहनायै सर्पराज्ञीदेव्यै स्वाहा । ॐ यन्त्रस्थावाहितेभ्यो आवरणदेवताभ्यो स्वाहा । ॐ कालाय स्वाहा । ॐ रुद्राय स्वाहा । ॐ मृत्यवे स्वाहा । ॐ विनायकाय स्वाहा ।

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन आवरणदेवताः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम ।

-ऐसा कहकर जल छोड़ें।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

अब देवी के108 नाम से आहुति दें-

अष्टोत्तरशतनामावलि (108) होममन्त्राः

अथवा (यदि समय व सामर्थ्य है तो सहस्रनामावली (1000) से ही हवन करना चाहिये। उस के लिये देवी के नामावली में 'नमः' को हटाकर 'स्वाहा' जोड़ लें।)

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन अष्टोत्तरशतदेवताः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम ।

-ऐसा कहकर जल छोड़ें।

तर्पणं-

बड़े बर्तन (परात) में दूध अथवा जल अथवा दूध मिश्रित जल ग्रहण कर कुशा अथवा दर्भों से न्यूनतम 108 बार तर्पण करें- ॐ दुर्गां तर्पयामि'

मार्जनं –

उसी सामग्री (दूध / जल / दूध मिश्रित जल) से मार्जन करें - 'ॐ दुर्गां मार्जयामि'

हाथ धोकर आचमन व प्राणायाम करें।

अब वास्तु देवताओं के लिए आहुति दें-

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

वास्तुदेवतानाम् होम मन्त्राः

ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्त्स्वावेशोऽअनमीवो भवानः ।

यत्त्वेमहे प्रतितन्नौ जुषस्व शन्नौ भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥

ॐ नमो भगवते वास्तुपुरुषाय महाबलपराक्रमाय सर्वाधिवासाश्रितशरीराय ब्रह्मपुत्राय सकल ब्रह्माण्डधारिणे

भूभारार्पितमस्तकाय पुरपत्तनप्रासादगृहवापिसरकूपादेः सन्निवेशसान्निध्यकराय सर्वसिद्धिप्रदाय प्रसन्नवदनाय विश्वम्भराय परमपुरुषाय शक्रवरदाय वास्तोष्पते नमस्ते ।

अब वास्तु देवताओं के नाम में 'नमः' को हटाकर 'स्वाहा' जोड़ आहुति दें।

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन शिखिन्यादिसप्तसप्ततिवास्तुदेवताः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम । -ऐसा कहकर जल छोड़ें।

अब 64 योगिनी के लिए आहुति दें-

अथ चतुःषष्टिः योगिनी होम मन्त्राः

64 योगिनी के नाम में 'नमः' को हटाकर 'स्वाहा' जोड़ आहुति दें।

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन दिव्ययोगिन्यादिचतुष्षष्ठियोगिन्यः साङ्गाः सपरिवारा: सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम । -ऐसा कहकर जल छोड़ें।

अब क्षेत्रपाल देवताओं के लिए आहुति दें-

क्षेत्रपाल होम मन्त्राः ।।

क्षेत्रपालों के नाम में 'नमः' को हटाकर 'स्वाहा' जोड़ आहुति दें।

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन अजराद्येकोनपन्चाशद् क्षेत्रपालाः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम । -ऐसा कहकर जल छोड़ें।

अब सर्वतोभद्रमण्डल देवताओं के लिए आहुति दें-

सर्वतोभद्र मण्डपस्थ देवतानां होम मन्त्राः

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन सर्वतोभद्रमण्डपस्थब्रह्मादिसप्तपञ्चाशत्देवताः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम । -ऐसा कहकर जल छोड़ें।

अब एकलिंगतो भद्रमण्डल देवताओं के लिए आहुति दें-

एकलिंगतोभद्रदेवतानां होममन्त्राः

आहूति उपरान्त

अनेन होमेन एकलिंगतोभद्रमण्डलस्थासितांगभैरवाद्यष्टत्रिंशदेवताः साङ्गाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः सवाहनाः प्रीयन्ताम् न मम ।-ऐसा कहकर जल छोड़ें।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

फलादीनां होम: (फलीकरणहोम: )

हाथ में जल लेकर -

'ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य शुभपुण्यतिथौ मया प्रारब्धस्य सग्रहमखदुर्गापूजनांगभूत सप्तशती होमाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थमाचारात्फलहोमं करिष्ये' जल छोड़ें।

नवग्रह के मंत्र के लिए देखें-डीपी कर्मकांड भाग-5

1.स्रुचि के मध्ये में घी के साथ द्राक्षा धारणकर सूर्य का ध्यान करें।

2. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ गन्ना धारण कर चन्द्रमा का ध्यान करें।

3. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ सुपारी धारण कर मंगल का ध्यान करें।

4. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ सन्तरा धारण कर बुध का ध्यान करें।

5. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ नींबू धारण कर बृहस्पति का ध्यान करें।

6. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ बिजौरा नींबू धारण कर शुक्र का ध्यान करें।

7. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ उत्तति धारण कर शनि का ध्यान करें।

8. स्रुचि के मध्ये घी के साथ नारियल धारण कर राहु का ध्यान करें।

9. स्रुचि के मध्ये में घी के साथ अनार धारण कर केतु का ध्यान करें।

गुग्गुलहोम: -

हाथ में जल लेकर अद्य ' इत्यादि उच्चार्य 'मम गृहे भूतादिसमग्रदोषपरिहारार्थं त्र्यम्बकमिति-मन्त्रेण गुग्गुलहोमहं करिष्ये' जल छोड़ें और गुग्गुल से हवन करें-

'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। स्वाहा।

सर्षपहोम: -

हाथ में जल लेकर 'अद्य ' इत्यादि उच्चार्य 'मम सर्वारिष्टशान्त्यर्थं शत्रुक्षयार्थं च जातवेदसे इत्यादि मन्त्रेण सर्षपहोमहं करिष्ये' जल छोड़ें और सरसों से हवन करें -

'ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः।

स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वानावेव सिन्धुन्दुरितात्यग्निः । ।

ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि । एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् । स्वाहा ।

लक्ष्मीहोम : -

हाथ में जल लेकर 'अद्य . ' इत्यादि उच्चार्य 'मम गृहेऽअलक्ष्मीविनाशनार्थं दशविधलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं च लक्ष्मीहोमहं करिष्ये' जल छोड़ें और एक पात्र में धारित सीताफल, केला, अनार, दूध, घी, शहद, चीनी, दूर्वा, शमी, चावल और पान के पत्ता से हवन करें (ध्यान दें - बीच बीच में स्वाहा शब्द सुनाई देने पर सामग्री को अग्नि में न डालें, किन्तु अन्त में एक साथ एक बार में ही डालें)

'ॐ सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् । सनिम्मे धामयाषि स्वाहा । ।

याम्मेधान्देवगणाः पितरश्चोपासते । तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ।।

मेधाम्मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः । मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधान्धाता ददातु मे स्वाहा ।।

इदं मे ब्रह्म च क्षत्रं चोभे श्रियमश्नुताम् । मयि देवा दधतु श्रियमुत्तमान्तस्ये ते स्वाहा ।।

मम गृहे लक्ष्मीः स्थिरा भवतु स्वाहा।।'

स्थापितदेवतानामुत्तरपूजनम् –

हाथ में जल लेकर 'मया आरब्धस्य दुर्गापूजनसहितहवनाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थं पितादेवतानामुत्तरपूजामहं करिष्ये। जल छोड़ें ।

आग्नेयकोण में-

1. गणपति पूजन-ॐ गणानान्त्वा... श्रीगणपतये नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।।

2. सर्वमातृका पूजन -'ॐ समख्ये देव्या धिया सन्दक्षिणयोरुचक्षसा । मामऽआयुः प्रमोषीर्मोऽअहन्तव वीरं विदेय तव देवि सन्दृशि । । ॐ भूर्भुवः स्वः सगणेशगौर्याद्यावाहितसकलमातृकाभ्यो नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।।

3.घृतमातृका पूजन-'ॐ श्रीश्च... श्रयादिघृतमातृकाभ्यो ( वसोर्धारादेवताभ्यो नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।।

नैर्ऋत्यकोण में वास्तुपुरुषपूजन-'ॐ वास्तेष्पते... वास्तुपुरुषाय नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।

पुनः

आग्नेयकोण में गौर्यादिमातृकाओं के दक्षिणभाग में योगिनी पूजन

'ॐ योगे... चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः,सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।

वायव्यकोण में-

1.क्षेत्रपाल पूजन-'ॐ नहिस्पश.... क्षेत्रपालदेवताभ्यो नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।

2.अग्नि पूजन – ॐ अग्ने नय सुपथा रायेऽस्मान्विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।

3. ब्रह्म पूजन-युयोध्यस्मा... ब्रह्मणे नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।

ईशान कोण में नवग्रह पूजन

'ॐ ग्रहाऽऊर्जाहुतयो व्यन्तो विप्रापमतिम् ।

तेषां विशिप्रियाणां वोहमिषमूर्ज समभागमुपयाम गृहीतोसीन्द्राय

त्त्वा जुष्टं गृहाणाम्येष ते योनिरिन्द्रय त्त्वा जुष्टतमम् ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिनवग्रहमण्डलदेवेभ्यो नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।

मध्य में

ॐ ब्रह्म यज्ञानम्प्रथमम्पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः ।

स बुद्धयाऽउपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः।।

ॐ भूर्भुवः स्वः सर्वतोभद्रमण्डल / एकलिंगतोभद्रमण्डलस्थदेवतासमन्विताय सांगाय सपरिवाराय दुर्गादेव्यै नमः, सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, धूपमाघ्रापयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, दीपं दर्शयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, गुखवासार्थे पूगीफलं तूम्बूलं च समर्पयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नम:, यथाशक्ति प्रत्येकं महादक्षिणां समर्पयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवताभ्यो नमः, सफलं विशेषार्घ्यं समर्पयामि ।

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगणपत्यादिस्थापितदेवाः प्रीयन्ताम् न मम ।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

अथ सर्वप्रायश्चित्तसंज्ञकवारुणहोमः

1.ॐ त्वन्नोऽग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासिसीष्ठाः ।

यजिष्ठोवहिनतमः शोशुचानो विश्वा द्वेषासि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा ।

इदमग्निवरुणाभ्याम् न मम ।

2.ॐ सत्वन्नो अग्ने वमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसौ व्युष्ठौ ।

अवयक्ष्वनो वरुणथरराणो वीहि मृडीक सुहवो न एधि स्वाहा ।

इदमग्निवरुणाभ्याम् न मम ।

3.ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्त्वमित्त्वमया असि ।

अयानो यज्ञं वहास्य यानो धेहि भेषज स्वाहा ।

इदमग्नये असे न मम ।

4.ॐ ये ते शतं वरुण ये सहस्त्रं यज्ञियाः पाशाः वितताः महान्तः ।

तेभिर्नो अद्य सवितो विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा ।

इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यश्च न मम ।

5. ॐ उदुत्तमं वरुण पाशमस्मद् वाधमं विमध्यम श्रथाय ।

अथा वयमादित्यव्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा । इदं वरुणाय न मम ।

6.ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये न मम । ( मनसा )

व्याहृतिहोम:

।। इति प्रायश्चित्त संज्ञकः होम: ।।

ॐ भूः स्वाहा, इदमग्नये न मम ।

ॐ भुवः स्वाहा, इदं वायवे न मम ।।

ॐ स्वः स्वाहा, इदं सूर्याय न मम ।

अथ (ब्रह्मणः) प्रायश्चित्त आहुति:-

ब्रह्मा (अभाव में अन्य ऋत्विक्) हाथ में जल लेकर संकल्प करें-

ॐ अस्मिन्दुर्गापूजनसहितग्रहमाखयुक्तकर्मणि प्रारम्भतः आसमाप्तिर्देशतः कालतः तन्त्रतो मन्त्रतश्च ज्ञानतोऽज्ञानतश्च तत्तत्कर्मणि प्रधानांगदेवतानां च विहित-समिधादिहवनीयद्रव्याणां न्यूनाधिकान्यथाकरण जनित प्रत्यवायपरिहारार्थं होमद्रव्येषु कृमिकीटादिसम्भव जनितप्रत्यवाय परिहारार्थं बहिःसंचरतां कृमिकीटादीनामग्नौ पतनजनित प्रत्यवायपरिहारार्थं होमप्रदानसमयेऽग्नौ स्वाहाकारोत्तराव्यवहिताहुतिप्रक्षेपाभावजनितप्रत्यवायपरिहारार्थं प्रणीताग्न्योर्मध्ये गमनजनितप्रत्यवायपरिहारार्थं कदाचित्परिस्तरणादीनां दाहजनितप्रत्यवायपरिहारार्थ होमप्रदाने हवनीयदव्याणां कुण्डाद् बहिः पतनजनितप्रत्यवायपरिहारार्थ होम प्रदाने तत्तदेवतामन्त्राणामुच्चारणे ह्रस्वदीर्घप्लुतस्वरितोदात्तानुदात्तादीनां व्यत्ययोच्चारणजनितप्रत्यवायपरिहारार्थं कृतस्य कर्मणः साद्गुण्यार्थं प्रायश्चित्तं होष्ये । '

जल छोड़ें, फिर जुहू में घी लेकर-

ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदमग्नये स्विष्टकृते न मम ।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

बलिदानम्

बलिदान कब करें?

देवीपुराण में कहा गया है-

'बलिदाने कृतेऽष्टम्यां पुत्रभंगो भवेन्नृप । '

और कालिकापुराण में भी कहा है-

'अष्टम्यां बलिदानेन पुत्रनाशो भवेद् ध्रुवम् ।'

अर्थात् हे राजन्! अष्टमी तिथि में बलिदान करने पर निश्चित ही पुत्र का नाश होता है।

अत: कालिका पुराण के अनुसार-

'नवम्यां बलिदानं तु कर्तव्यं वै यथाविधि । जपं होमं च विधिवत् कुर्यात्तत्र विभूतये ।।

नवम्यामपराह्नेन बलिदानं प्रशस्यते । दशमीं वर्जयेत्तत्र नात्र कार्या विचारणा । । '

अर्थात् ऐश्वर्य की प्राप्ति केलिये जप और पाठ का समापन कर नवमी तिथि को ही हवन करके यथाविधि बलिदान करना चाहिये। नवमी तिथि में भी दोपहर 12 बजे के बाद बलिदान करना श्रेष्ठ है। दशमी तिथि को तो बलिदान नहीं करना चाहिये, इस विषय में विचार करना ही नहीं चाहिये ।

बलिदान में प्रतिनिधि द्रव्य –

कालिका पुराण में बलिदान द्रव्य के विषय में कहा है

'कूष्माण्डमिक्षुदण्डश्च मद्यं सारद्यमेव च। एते बलिसमाः प्रोक्तास्तृप्तौ छागसमाः सदा ।।

अवश्यं विहितं यत्र मद्यं तत्र द्विजः पुनः । नारिकेलजलं कांस्ये ताम्रे वा विसृजेन्मधु ।।'

तथा कुलचूडामणितन्त्र में भी कहा है-

'यत्रावश्यं विनिर्दिष्टं मदिरापानपूजनम् । ब्राह्मणाः ताम्रपात्रे च मधु मद्यं प्रकल्पयेत् ।।'

अर्थात् कूष्माण्ड, गन्ना, शहद और जिमीकन्द-ये सब बकरे की बलि के समान कहे गये हैं और इनसे ही सभी देवी-देवताओं की तृप्ति कही गयी है तथा जिस कर्म में मदिरा दान करना आवश्यक कहा गया है वहां कांसे के पात्र में नारियल के पानी को अथवा तांबे के पात्र में शहद को समर्पित करे एवं इसी बात को कुलचूडामणितन्त्र में भी कहा है। जहां पूजन में मदिरा पान को अवश्य कहा गया है वहां ब्राह्मण ताम्र पात्र में शहद को डालकर अर्पित करें।

विधिः - यजमान हाथ में जल लेकर –

'मया प्रारब्धस्य सग्रहमखदुर्गापूजनाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थं दशदिक्पालदेवतानां तथा चान्येषां स्थापितदेवतादीनां पूजनपूर्वक बलिदानं करिष्ये ।'

जल छोड़ें। दहि उड़द से दशदिक्पाल देवताओं के लिए बलि दें-                     

दशदिक्पालदेवतानां बलिदानम् -

दशदिक्पाल देवताओं के लिए बलिदान मंत्र के लिए पूर्व के अंकों में से देखें । 

आहूति उपरान्त

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन दशदिक्पालदेवता: प्रीयताम् न मम ।।-ऐसा कहकर जल छोड़ें।

अथवा दशदिक्पाल देवताओं के लिये एकतन्त्र से बलि दे सकते है

'ॐ प्राच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहा ऽर्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा।। ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्रादिदशदिक्पालान्सांगान्सपरिवारान्सायुधान्सशक्तिकान् एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यः सांगेभ्यः सपरिवारेभ्यः सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्य इमं सदीपं आसादितं बलं समर्पयामि । भो इन्द्रादिदशदिक्पालाः दिशं रक्षत इमं बलिं गृह्वीत । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य ) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारः निर्विघ्नकर्तारः कल्याणकर्तारः वरदा भवत ।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन इन्द्रादिदशदिक्पालाः प्रीयन्ताम् न मम ।। '

स्थापितदेवतानां बलिदानम् –

आग्नेय में गणपति के लिये बलि –

1.'ॐ गणानान्त्वा गणपति हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति हवामहे निधीनान्त्वा

निधि पति हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ।। ॐ भूर्भुवः स्वः गणपतिं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । गणपतये सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो गणपते दिशं रक्ष बलिं भक्ष मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्ता क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता निर्विघ्नकर्ता कल्याणकर्ता वरदो भव । अनेन पूजनपूर्वककृत बलिदानेन गणपतिः प्रीयताम् न मम ।।

2.उसके दक्षिण भाग में गणेशगौर्यादिषोडशमातृकाओं के लिये बलि –

'ॐ समख्ये देव्या धिया न्दक्षिणयोरुचक्षसा । मामऽआयुः प्रमोषीर्मोऽअहन्तव वीरं विदेय तव देवि सन्दृशि ।।

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशगौर्यादिमातृः सांगाः सपरिवाराः सायुधा: सशक्तिका: एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि।

गणेशगौर्यादिमातृभ्यः सांगाभ्यः सपरिवाराभ्यः सायुधाभ्यः सशक्तिकाभ्यः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो गणेशगौर्यादिमातरः दिशं रक्षता इमं बलिं गृह्णीत । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्त्यः क्षेमकर्च्यः शान्तिकर्यः पुष्टिकर्त्यः तुष्टिकर्त्यः निर्विघ्नकर्त्यः कल्याणकः वरदा भवत। अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन गणेशगौर्यादिमातरः प्रीयन्ताम् न मम । ।

3. सप्मस्थलमातृकासहित श्रयादिसप्तघृतमातृकाओं के लिये बलि

ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ।। ॐ भूर्भुवः स्वः सप्तस्थलमातृकासहिताश्रयादिसप्तघृतमातृका: सांगाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिका: एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि। सप्तस्थलमातृकासहिताश्रयादिसप्तघृतमातृकाभ्यः सांगाभ्यः सपरिवाराभ्यः सायुधाभ्यः सशक्तिकाभ्यः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो सप्तस्थलमातृकासहिता- श्रयादिसप्तघृतमातृकाः दिशं रक्षत इमं बलिं गृह्णीत । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्त्यः क्षेमकर्त्यः शान्तिकर्त्यः पुष्टिकर्त्यः तुष्टिकर्त्यः निर्विघ्नकर्त्यः कल्याणकर्च्यः वरदा भवत । अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन सप्तस्थलमातृकासहितश्रयादि सप्तघृतमातृकाः प्रीयन्ताम् न मम ।।

4 नैर्ऋत्य में वास्तोष्पति के लिये बलि

'ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्स्वावेशोऽनमीवो भवानः । यत्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ।। ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मादिवास्तुमण्डलदेवतासहितं वास्तुपुरुषं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । ब्रह्मादिवास्तुमण्डलदेवतासहिताय वास्तुपुरुषाय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो ब्रह्मादिवास्तुमण्डलदेवतासहितवास्तुपुरुष दिशं रक्ष इमं बलिं गृहाण । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्ता क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता निर्विघ्नकर्ता कल्याणकर्ता वरदो भव । अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन ब्रह्मादिवास्तुमण्डलदेवतासहितः वास्तुपुरुषः प्रीयताम् न मम ।।

5. आग्नेय में योगिनियों के लिये बलि -

'ॐ योगे योगे तवस्तरं वाजे वाजे हवामहे । सखाय इन्द्रमूतये ।। ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहा- सरस्वतीसहिता गजाननादिचतुःषष्टियोगिनी: सांगाः सपरिवाराः सायुधाः सशक्तिकाः एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीसहिताभ्यो गजाननादिचतुःषष्टियोगिनीभ्यः सांगाभ्यः सपरिवाराभ्यः सायुधाभ्यः सशक्तिकाभ्यः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो श्रीमहाकालीमहा- लक्ष्मीमहासरस्वतीसहिता गजाननादिचतुःषष्टियोगिन्यः दिशं रक्षत इमं बलिं गृह्णीत। मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरुत । आयुः कः क्षेमकर्त्यः शान्तिकर्त्यः पुष्टिकर्त्यः तुष्टिकर्त्यः निर्विघ्नकर्त्यः कल्याणकर्त्यः वरदा भवत । अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीसहिता गजाननादिचतुःषष्टियोगिन्यः प्रीयन्ताम् न मम ।।

6. ईशान्य में नवग्रहों के लिये बलि (प्रत्येक के लिये अलग-अलग बलि दें)-

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन ईश्वराग्निरूपा- धिदेवताप्रत्यधिदेवतासहितसूर्यः प्रीयताम् न मम । ।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन उमाग्निरूपाधिदेवताप्रत्यधिदेवतासहितचन्द्रः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन स्कन्दापरूपाधिदेवता- प्रत्यधिदेवतासहितमंगलः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन विष्णुपृथिवीरूपाधि देवताप्रत्यधिदेवतासहितबुधः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन ब्रह्माविष्णुरूपाधिदेवताप्रत्यधिदेवतासहितबृहस्पतिः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन इन्द्रेन्द्राणी रूपाधिदेवताप्रत्यधिदेवतासहितशुक्रः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन यमप्रजापति रूपाधिदेवताप्रत्यधिदेवतासहितशनिः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन यमसर्परूपाधि देवताप्रत्यधि देवतासहितराहुः प्रीयताम् न मम ।।

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन चित्रगुप्तब्रह्मारूपाधिदेवताप्रत्यधिदेवतासहितकेतुः प्रीयताम् न मम।।

अथवा एकतन्त्र से नवग्रहों के लिये बलि-

'ॐ ग्रहाऽऊर्जाहुतयो व्यन्तो विप्राय मतिम् । तेषां विशिप्रियाणां वोहमिषमूर्ज समग्रभमुपयाम गृहीतोसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्।। ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्यादिनवग्रहमण्डलस्थदेवतान् सांगान्सपरिवारान्सायुधान्सशक्तिकान् एभिर्गन्धा- द्युपचारैर्युष्मानहं पूजयामि। सूर्यादिनवग्रहमण्डलस्थ देवताभ्यः सांगेभ्यः सपरिवारेभ्यः सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्यः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो सूर्यादिनवग्रहमण्डलस्थदेवाः दिशं रक्षत इमं बलिं गृह्णीत। मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारः निर्विघ्नकर्तारः कल्याणकर्तारः वरदा भवत । अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन सूर्यादिनवग्रह- मण्डलस्थदेवाः प्रीयन्ताम् न मम ।।

7.पंचलोकपालों के लिये बलि-

अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन पंचलोकपाल: प्रीयताम् न मम ।।

8. असंख्यातरुद्रों के लिये बलि- 'नमस्ते रुद्रमन्यवऽउतोतऽइषवे नमः । बाहुभ्यामुतते नमः ।। ॐ भूर्भुव: स्व: रुद्रान् सांगान् सपरिवारान् सायुधान् सशक्तिकान् एभिर्गन्धाद्युपचारैर्युष्मानहं पूजयामि। रुद्रेभ्यः सांगेभ्यः सपरिवारायेभ्यः सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्यः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो रुद्राः दिशं रक्षध्वम् बलिं गृहाण मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारः निर्विघ्नकर्तारः कल्याणकर्तारः वरदा भवत । अनेन पूजनपूर्वककृत बलिदानेन रुद्राः प्रीयन्ताम् न मम ।।

9. विष्णु के लिये बलि- 'इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पासुरे स्वाहा ।। ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णुं सांग सपरिवार सायुधं सशक्तिकम् एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि। विष्णवे सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो विष्णो दिशं रक्ष बलिं भक्ष मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्ता क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता निर्विघ्नकर्ता कल्याणकर्ता वरदो भव । अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन विष्णुः प्रीयताम् न मम ।।

10. वायव्य में क्षेत्रपाल के लिये बलि - ॐ नहिस्पशमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुरऽएतारमग्नेः । एमेनमवृधन्नमृताऽअमर्त्य वैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः । । ॐ भूर्भुवः स्वः क्षेत्रपालसहिता नजराद्येकपंचाशत्क्षेत्रपाल देवतान्सांगान्स- परिवारान्सायुधान्सशक्तिकान् एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । क्षेत्रपालसहितेभ्योऽजराद्येकपंचाश- त्क्षेत्रपालदेवताभ्यो सांगेभ्यः सपरिवारेभ्यः सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्यः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो क्षेत्रपालसहिता अजराद्येकोनपंचाशत्क्षेत्रपाल देवता दिशं रक्षत इमं बलिं गृह्णीत। मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारः निर्विघ्नकर्तारः कल्याणकर्तारः वरदा भवत । अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन क्षेत्रपालसहिताऽअजराद्येकपंचाशत्क्षेत्र- पालदेवताः प्रीयन्ताम् न मम ।।

11. सपरिवार मध्यपीठस्थप्रधानदेवता के लिये बलि - ॐ ब्रह्म यज्ञानम्प्रथमम्पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः । सुबुध्न्याऽउपमाऽअस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ।। ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मादिसर्वतोभद्रमण्डल- स्थदेवतासमन्वितां / गौरीतिलकमण्डलस्थदेवतासमन्वितां पीठयन्त्रावरणदेवतासहितां दुर्गा सांगां सपरिवारां सायुधां सशक्तिकाम् एभिर्गन्धाद्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । ब्रह्मादिसर्वतोभद्रमण्डलस्थदेवतासमन्वितायै / गौरीतिलकमण्डलस्थ देवतासमन्वितायै पीठयन्त्रावरणदेवतासहितायै दुर्गायै सांगायै सपरिवारायै सायुधायै सशक्तिकायै नमः इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो ब्रह्मादिसर्वतोभद्रमण्डलस्थदेवतासमन्विते / गौरीतिलकमण्डलस्थदेवतासमन्विते पीठयन्त्रावरणदेवतासहिते दुर्गे दिशं रक्ष इमं बलिं गृहाण । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्त्री क्षेमकर्त्री शान्तिकर्त्री पुष्टिकर्त्री तुष्टिकर्त्री निर्विघ्नकर्त्री कल्याणकर्त्री वरदा भव । अनेन पूजनपूर्वक कृतबलिदानेन ब्रह्मादिसर्वतोभद्रमण्डलस्थदेवतासमन्विता / गौरीतिलकमण्डलस्थदेवतासमन्विता पीठयन्त्रावरणदेवतासहिता दुर्गा प्रीयताम् न मम ।।

12. महाक्षेत्रपाल के लिये बलि-

(एक बांस की टोकरे में यथाशक्ति संपूर्ण बलि को रखके मध्य में चार मुंहवाला एक बड़ा दीपक प्रज्वलित कर मण्डप के बाहर बलि दें, पहले हाथ में जल लेकर )

'ॐ मया प्रारब्धस्य सग्रहमखदुर्गापूजनाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थं भूतप्रेतपिशाचडाकिनीसमन्वितस्य सपरिवारस्य क्षेत्रपालस्य बलिदानं करिष्ये । जल छोड़ें, गन्धाक्षपुष्पादि से बलिपात्र में ही पूजन करें-

 ॐ नहिस्पशमविदन्नन्न्र्यमस्माद्वैश्वानरात्पुरऽएतारमग्नेः । एमेनमवृधन्नमृताऽअमर्त्यं वैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः।। 

ॐ भूर्भुवः स्वः भूतप्रेतपिशाचडाकिन्यादिसमन्वितं महाक्षेत्रपालं सांगं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकं एभिर्गन्धा- द्युपचारैस्त्वामहं पूजयामि । भूतप्रेतपिशाचडाकिन्यादिसमन्विताय महाक्षेत्रपालाय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय इमं सदीपं आसादितं बलिं समर्पयामि । भो महाक्षेत्रपाल दिशं रक्ष इमं बलिं गृहाण । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य (यजमानस्य) अभ्युदयं कुरु । आयुः कर्ता क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता निर्विघ्नकर्ता कल्याणकर्ता वरदो भव । '

प्रार्थना करें-

'नमामि क्षेत्रपाल त्वां भूतप्रेतगणावृत । पूजां बलिं गृहाणेमं सौम्यो भवतु सर्वदा ।।

आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि त्वं सर्वदा मम । मा विघ्नं मा च मे पापं मा सन्तु परिपन्थिनः । 

सर्वदा सर्वकार्येषु क्षेत्रपालसमन्विताः । सौम्या भवन्तु तृप्ताश्च भूतप्रेताः सुखावहाः । । '

पुन: हाथ में जल लेकर 'अनेन पूजनपूर्वककृतबलिदानेन भूतप्रेतपिशाचडाकिन्यादिसमन्वितः महाक्षेत्रपालः प्रीयताम् न मम।।' जल छोड़े।

तत्पश्चात् बिना पीछे मुड़कर देखे चलने का निर्देश देकर दुर्ब्राह्मण/नाई / किसी अन्य शूद्र पुरुष द्वारा चौराहे पर रखवायें। ले जाते उस पुरुष के पीछे अपने द्वार पर्यन्त जल छिड़कते जायें व अन्त में यजमान पर भी छिड़कें –

'ॐ हिंकाराय स्वाहा हिंकृताय स्वाहा क्रन्दते स्वाहावक्रन्दाय स्वहा प्रोथते स्वाहा प्रप्रोथाय स्वाहा गन्धाय स्वाहा घ्राताय स्वाहा निविष्टाय स्वाहोपविष्टाय स्वाहा सन्दिताय स्वाहा वल्गते स्वाहासीनाय स्वाहा शयानाय स्वाहा स्वपते स्वाहा जाग्रते स्वाहा कूजते स्वाहा प्रबुद्धाय स्वाहा विजृम्भमानाय स्वाहा विवृत्ताय स्वाहा सहानाय स्वाहोपस्थिताय स्वाहायनाय स्वाहा प्रायणाय स्वाहा ।।' मयाकारितस्य सग्रहमखदुर्गापूजनाख्यकर्मणः सांगतासिद्धयर्थं मानसोत्कल्पितदक्षिणां आचार्यप्रभृतिसर्वेषां ब्राह्मणानां नानागोत्रकाणां यथा यथा विभज्य दातुमहं उत्सृजे ।

सपत्नीक यजमान हाथ पैर धोकर पुनः मण्डप / यज्ञस्थल लौटें, आचमन प्राणायाम करें।

पूर्णाहुति मन्त्राः –

हाथ में जल लेकर 'ॐ मया प्रारब्धस्य सग्रहमखदुर्गापूजनाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थं वसोर्धारासमन्वितं पूर्णाहुतिहोमं करिष्ये ।' जल छोड़ें ।

आचार्य / विप्र उठकर आज्यस्थाली में शेष घी को भरें और आज्यस्थाली को अग्नि पर (अधिश्रयणं) गरम करें। उसके बाद एक साथ स्रुक् और स्रुवा को ग्रहण कर पहले जैसे अधोमुख कर तपायें व सम्मार्जन कुशाओं से पूर्ववत् संस्कार कर पश्चिम दिशा में रखें। तदनन्तर आज्यस्थाली को उठाकर पवित्रियों / हथेली से उत्पवन करके आज्य आवेक्षण करें। अपद्रव्य को हटायें यदि है तो । प्रणीता पात्र में पवित्री को रखें। उसके बाद स्रुचि के मध्य में स्रुवा से चार बार घी डालें व उसके ऊपर मौली बांधे हुये नारियल को रखें तथा गन्धाक्षतपुष्पादि से उसकी पूजाकर हल्दी, कुंकुम, पुष्पमाला आदि से अलंकृत करें। अब उसके ऊपर स्रुवा को अधोमुख कर धारण करें और सपत्नीक यजमान बैठकर अथवा खड़े होकर-

ॐ समुद्रादूर्मिर्मधुमाँ 2ऽउदारदुपाशुना सममृतत्त्वमानट् ।

घृतस्य नाम गुह्यं यदस्ति जिह्वा देवासनाममृतस्य नाभिः ।। 1 ।।

वयन्नाम प्रब्रवामा घृतस्यास्मिन्यज्ञे धारयामा नमोभिः ।

उप ब्रह्मा श्रृणवच्छस्यमानं चतुः श्रृंगोऽअवमीद् गौर ऽएतत् ।। 2 ।।

चत्वारि श्रृंगा यो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासोऽअस्य ।

त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्या 2ऽआविवेश ।।3।।

त्रिधा हितं पणिभिर्गृह्यमानं गवि देवासो घृतमन्वविन्दन् ।

इन्द्र एक सूर्य एकं जजान वेनादेक स्वधया निष्टृतक्षुः ।। 4 ।।

एता अर्षन्ति हृद्यात्समुद्राच्छतव्रजा रिपुणा नावचक्षे ।

घृतस्य धाराऽअभिचाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्यऽआसीत् । ।5।।

समरूक् स्रवन्ति सरितो न धेनाऽअन्तर्हृदा मनसा पूयमानाः ।

एतेऽअर्षन्त्यूर्मयो घृतस्य मृगाऽइव क्षिपणोरीषमाणाः ।।6।।

सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

घृतस्य धाराऽअरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानाः ।। 7 ।।

अभिप्रवन्त समनेव योषाः कल्याण्य : स्मयमानासो अग्निम् ।

घृतस्य धाराः समिधो नसन्त ता जुषाणो हर्षति जातवेदाः ।। 8 ।।

कन्याऽइव वहतुमेतवाऽअंज्यंजानाऽअभिचाकशीमि ।

यत्र सोमः सूयते यत्र यज्ञो घृतस्य धाराऽअभि तत्पवन्ते ।।9।।

अभ्यर्षत सुष्टुतिं गव्यमाजिमस्मासु भद्रा द्रविणानि धत्त ।

इमं यज्ञन्नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते । ।10।।

धामन्ते विश्वं भवनमधि श्रितमन्तः समुद्रे हृद्यन्तरायुषि ।

अपामनीके समिथे य आभृतस्तमश्याम मधुमन्तन्तऽऊर्मिम् ।।11।।

पुनस्त्वादित्या रुद्रा वसवः समिन्धताम्पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञैः ।

घृतेन त्वन्तन्वं वर्द्धयस्व सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः ।।12।।

मूर्द्धानं दिवोऽअरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृतऽआजातमग्निम् ।

कवि सम्प्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवा ।।13।।

पुनस्त्वाऽऽदित्या रुद्रा वसव समिन्धतां पुनर्वब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञै ।

वस्त्रेव विक्रीणावहाऽइषमूर्ज शतक्रतो स्वाहा ।।14।।

ॐ अग्निश्च पृथिवी च सन्नते ते मे सन्नमतामदोवायुश्चान्तरिक्षञ्च

सन्नते ते मे सन्नमतामद आदित्यश्च द्यौश्च सन्नते ते मे सन्नमतामद

आपश्च्च वरुणश्च सन्नते ते मे सन्नमतामदः ।

सप्तसथसदोऽअष्टमीभूत साधनी ।

सकामाँ2ऽअध्वनस्क्कुरुसंज्ञानमस्तुमेमुना स्वाहा ॥15 ॥

इदमग्नये वैश्वानराय वसुरुद्रादित्येभ्यः शतक्रतवे सप्तवते अग्नयेऽद्भ्यश्च न मम ।।

इति यजमानस्त्यजेत् ।

वसोर्धारा होममन्त्राः - ( प्रथम पक्ष के मन्त्रसमूह में 9 मन्त्र हैं)

'ॐ समास्त्वाग्नऽऋतवो वर्धयन्तु संवत्सराऽऋषयो यानि सत्या ।

सं दिव्येन दीदिहि रोचनेन विश्वाऽआभाहि प्रदिशश्चतस्रः ।। 1 ।।

सं चेध्यस्वाग्ने प्रच बोधयैनमुच्च तिष्ठ महते सौभगाय ।

माचरिषदुपसत्ता ते अग्ने ब्रह्माणस्ते यशसः सन्तु मान्ये । । 2 ।।

त्वामग्ने वृणुते ब्राह्मणाऽइमे शिवोऽअग्ने संवरणे भवानः ।

सपत्नहा नोऽअभिमातिजिच्च स्वे गये जागृह्य प्रयच्छन् ।।3।।

इहैवाग्रेऽअधि धारया रयिं मा त्वा निक्रन् पूर्वचितों निकारिणः ।

क्षत्रमग्रे सुयममस्तु तुभ्यमुपसत्ता वर्धतां तेऽअनिष्टतः ।।4।।

क्षत्रेणाग्रे स्वायुः सरभस्व मित्रेणाग्ने मित्रधेये यतस्व ।

सजातानां मध्यमस्थाएधि राज्ञामग्रे विहव्यो दीदिहीह ।।5 ।।

निहोऽतिनिधोऽअत्यचितिमत्यरातिमग्ने ।

अति विश्वा ह्यग्ने दुरिता सहस्वाथाऽस्मभ्य सह वीरा रयिं दाः ।।6।।

अनाधृष्यो जातवेदाऽअनिष्टतो विराडग्रे क्षत्रभृद् दीदिहीह ।

विश्वाऽआशाः प्रमुचन्मानुषीभिर्यः शिवेभिरद्य परिपाहिनो वृधे ।। 7 ।।

बृहस्पते सवितर्बोधर्यैनस शितं चित्सन्तरास शिशाधि ।।

वर्धयैनं महते सौभगाय विश्वऽएनमनुमदन्तु देवाः ।। 8 ।।

अमुत्र भूयादध वद्यमानस्य बृहस्पतेऽअभिशस्तेरमुंचः ।

प्रत्यैहितामश्विना मृत्युमस्माद् देवानामग्रे भिषजा शचीभिः ।।9।।

अथवा (द्वितीय पक्ष के मन्त्रसमूह में 8 मन्त्र हैं)

'ॐ विष्णोर्नु कं वीर्याणि प्रवोचं यः पार्थिवानि विममे रजासि । योऽअस्कभायदुत्तर१९सधस्थंविचक्रमाणस्त्रेधोरुगायो विष्णवे त्वा ।।1।।

दिवो वा विष्णऽउत वा पृथिव्या महो वा विष्णऽउरोरन्तरिक्षात् ।

भाहिस्ता वसुना पूणस्वाप्रपच्छ दक्षिणादेत सव्याद्विष्णवे त्वा ।।2।।

प्रतद्विष्णुस्तव ते वीर्येण मृगो न भीमः कुचरो गिरिष्ठाः ।

यस्योरुषु त्रिषु विक्रमणेष्वधिक्षियनित भुवनानि विश्वा ।।3।।

विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रे स्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्धुवोऽसि ।

वैष्णवमसि विष्णवे त्वा । । 4 ।।

देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽअश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।

आददे नार्यसीदमहरक्षसाङ्ग्रीवाऽपि कृन्तामि ।

वहन्नसि बृहद्रवा बृहतीमिन्द्राय वाचं वद ।।5।।

आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम् ।

भवा वाजस्य संगथे ।। 6।।

सन्ते पयासि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः ।

आप्यायमानोऽअमृताय सोम दिवि श्रवा स्युत्तमानि धिष्व ।।7।।

आप्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिरशुभिः ।

भवां नः सप्रथस्तमः सखां वृधे ।। 8 ।। '

अथवा (तृतीय पक्ष के मन्त्रसमूह में 10 मन्त्र हैं)

'ॐ सप्त तेऽअग्ने समिधः सप्त जिह्वाः सप्तऋषयः सप्त धाम प्रियाणि ।

सप्त होत्राः सप्तधा त्वा यजन्ति सप्त योनीरापृणस्वाघृतेन स्वाहा ।।1।।

शुक्रज्योतिश्च चित्रज्योतिश्च सत्यज्योतिश्च ज्योतिमाँ 2 श्च ।

शुक्रश्च ऋतपाश्चात्यहाः ।। 2 ।।

ईदृङ्चान्यादृङ् च सदृङ् च प्रतिदृङ् च ।

मितश्च सम्मितश्च सभराः ।। 3 ।।

ऋतश्च सत्यश्च ध्रुवश्च धरुणश्च ।

धर्ता च विधर्ता च विधारयः ।।4।।

ऋतजिच्च सत्यजिच्च सेनजिच्च सुषेणश्च ।

अन्तिमित्रश्च दूरेऽअमित्रश्च गणः ।।5।।

ईदृक्षास एतादृक्षास ऊषुणः सदृक्षासः प्रतिसदृक्षास एतन ।

मितासश्च सम्मितासो नो अद्य सभरसो मरुतो यज्ञेऽअस्मिन् ।। 6 ।।

स्तवाँश्च प्रघासी च सान्तपनश्च गृहमेधी च ।

क्रीडी च शाकी चोज्जेषी ।। 7 ।।

इन्द्रन्दैववीर्विशो मरुतोऽअभवन्यथेन्द्रन्दैवीर्विशो मरुतोऽअनुवर्त्मानोऽअभवन् ।

एवमिमं यजमानन्दैवीश्च विशो मानुषीश्चानुवर्त्मनो भवन्तु ।। 8 ।।

इम स्तनमूर्जस्वन्तं घयापां प्रपीनमग्रे सरीरस्य मध्ये ।

उत्सं जुषस्व मधुमतमर्वन्त्समुद्रिय सदनमाविशस्व ।।9।।

घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्बस्यधाम ।

अनुष्वधामावह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ।।10।।

(तीनों ही पक्ष के अन्त में कुछ विद्वानों के मत में रुद्री का चमक अध्याय, अग्निसूक्त, विष्णुसूक्त, शतरुद्री और इन्द्रसूक्त का पाठ किया जाता है।) किन्तु सभी के मत में इस मन्त्र का पाठ अन्त अवश्य करना है -

'वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् ।

देवस्य त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ।

स्वाहा ।। इदमग्नये वैश्वानराय न मम ।।'

पूर्णपात्रदानं -

ब्रह्मा को पूर्णपात्र का दान करने प्रणीतोदक को हाथ में लेकर संकल्प करें –

'मया कृतस्य संग्रहमखदुर्गापूजनाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थं ब्रह्मन् इदं पूर्णपात्रं सदक्षिणकं तुभ्यमहं संप्रददे

संकल्पजल, सदक्षिणा पूर्णपात्र को ग्रहण करने केलिये निवेदन कर उन्हें दें – 'प्रतिगृह्यताम्',

ब्रह्मा ग्रहण करते हुये कहें-

'प्रतिगृह्णामि, द्यौस्त्वा ददातु पृथिवी त्वा प्रतिगृह्णातु'

तदनन्तर ब्रह्मग्रन्थि को खोलें ।

भस्म धारणम् -

हवनकुण्ड / स्थण्डिल के ईशान कोण से स्रुवा से भस्म को लेकर प्रथम अपने शरीर में फिर यजमान के शरीर के अंगों पर क्रमशः भस्म लेपन करें।

ललाट पर - 'ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः',

गले में- 'कश्यपस्य त्र्यायुषम्',

दाहिने बाहुमूल में-यद् देवेषु त्र्यायुषम्',

हृदय पर- 'तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषम्', 'श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम् ।

तेज आयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन । ।

संस्रवप्राशनादिकम् -

संस्रव प्राशन कर कुशपवित्रों से मार्जन करें। तदनन्तर अग्नि में पवित्रों का प्रक्षेप कर पवित्रप्रतिपत्ति कर्म करें।

प्रणीताविमोकादिः -

विप्र अग्नि के पश्चिम भाग में जाकर प्रणीता का विमोक करें और उपयमन कुशाओं से यजमान पर मार्जन करें-

'ॐ आपः शिवाः शिवतमाः शान्ताः शान्ततमास्ते कृण्वन्तु भेषजम्'

तत्पश्चात् उन उपयमनकुशाओं को अग्नि में प्रक्षेप करें।

अग्नेः प्रदक्षिणा

'ॐ अग्ने नय सुपथा रायेऽअस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।

युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम ।। 1 ।।

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे ।। 12 ।।

गोदानादिकम् -

आचार्य के लिये गोदान और प्रधानपीठादि का दान दें; ब्रह्मा के लिये बछड़ा, घोड़ा, रथ/पालकी का दान दें तथा अन्य ब्राह्मणों केलिये छायापात्र सहित यथाशक्ति वस्त्रादि सहित दक्षिणा दान दें।

श्रेयः सम्पादनम् -

अब वरण किये गये समस्त ब्राह्मणों सहित आचार्य उत्तराभिमुख बैठकर दाहिने हाथ में जल लेकर यजमान के लिये-

श्रेय:संपादन का संकल्प करें- 

'कृतस्य सग्रहमखदुर्गापूजनाख्यकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थं तत्संपूर्णफलप्राप्त्यर्थं च यजमानाय श्रेयोदानं करिष्ये'

और यजमान के दाहिने हाथ में जल दें –

'ॐ शिवाः आपः सन्तु'

पुष्पादि को क्रमश: दें।

सर्वप्रथम पुष्प – ॐ सौमनस्यमस्तु', गन्ध - 'ॐ गन्धाः पान्तु', अक्षत 'ॐ अक्षताः पान्तु'

आचार्य यजमान के हाथ पर तीन बार जल घुमाकर जमीन पर छोड़ें –

ॐ यत्पापंरोमशुभमकल्याणं तदूरे प्रतिहतमस्तु'

पुन: आचार्य अपने हाथ में जल गन्धाक्षतपुष्पफल ग्रहण कर –

'भवन्नियोगेन मया एभिर्ब्राह्मणैः सह दुर्गापूजनाख्यकर्मणि यत्कृतमाचार्यत्वं यत्कृतं ब्रह्मत्वं गाणपत्यं सादस्य तथा च एभिर्ब्राह्मणैः सह यः कृतो जपः पाठः होमश्च तत्तत्कर्मभ्यो यदुत्पन्नं श्रेयोः तत्तुभ्यं सम्प्रददे । तेन श्रेयसा त्वं श्रेयसी भव'

कर्मारम्भ काल में वरणी के साथ दिये गये अक्षत और सुपारी सहित जलादि को आचार्य सहित सभी ब्राह्मण यजमान के हाथ में दें। यजमान स्वीकार करते कहे -' भवामि ।

जल पीकर शेष को रख लें।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

अथ अभिषेक:-

विप्र एक पात्र में प्रधानकलश एवं अन्यकलशों के जल को मिलाकर दूर्वा, कुशा व पंचपल्लवों से सपरिवार यजमान को पूर्वाभिमुख बिठाकर निम्न मन्त्रों से अभिषेक करें - 

( सर्वप्रथम नवग्रह के मन्त्रों से अभिषेक करें)

(अब निम्न 13 वैदिक मन्त्रों से-)

ॐ देवस्य... इस मंत्रों के लिए मूलशांति विधि में देखें ।

(तदनन्तर वैदिक मार्जन मन्त्रों से - )

'ॐ आपोहिष्ठा मयोभुवः ।1। ॐ ता न ऊर्जे दधातन । 2। ॐ महेरणाय चक्षसे । 3। ॐ यो वः शिवतमो रसः ।4।

ॐ तस्य भ्राजयते हनः ।5। ॐ उशतीरिव मातरः ।6 । ॐ तस्मा अरंगमाम वः । 7 । ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ ।8 ।

ॐ आपो जनयथा च नः । 9 ।'

(तत्पश्चात् वैदिक शान्त्यादि मन्त्रों से -)

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।

वनस्पतयः शातिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः

शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।। 1 ॥

यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरु ।

शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ।। 2 ।।

पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः ।

पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ।।3 ।।

आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम् ।

भवा वाजस्य संगथे ।।4।।

पंचनद्यः सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतसः।

सरस्वती तु पंचधा सो देशेऽअभवत्सरित् ।।5।।

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।

यद् भद्रं तन्न आसुव ।।6।।

(पौराणिक मार्जनमन्त्रों से -)

सुरास्त्वामभिसिंचन्तु ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । वासुदेवो जगन्नाथः तथा संकर्षणो विभुः ।1।

प्रद्युम्नश्चानिरुद्धश्च भवन्तु विजयाय ते । अखण्डलोऽग्निर्भगवान् यमो वै निर्ऋतिस्तथा । 2 ।

वरुणः पवनश्चैव धनाध्यक्षस्तथा शिवः । ब्रह्मणा सहिताः सर्वे दिक्पालाः पान्तु ते सदा । 3 ।

कीर्तिलक्ष्मीर्धृतिर्मेधा पुष्टिः श्रद्धा क्रिया मतिः । बुद्धिर्लज्जा वपुः शान्तिः कान्तिस्तुष्टिश्च मातरः ।4 ।

एतास्त्वामभिसिंचन्तु देवपन्यैः समागताः । आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधजीवसितार्कजाः ।5 ।

ग्रहास्त्वामभिसिंचन्तु राहुकेतुश्च पूजिताः । देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ।6 ।

ऋषयो मुनयो गावो देवमातर एव च । देवपल्यो द्रुमा नागा दैत्यश्चाप्सरसां गणाः ।7।

अस्त्राणि सर्वशस्त्राणि राजानो वाहनानि च । सरितः सागराः शैलाः तीर्थानि जलदा नदाः ।8 ।

एते त्वामभिसिंचन्तु सर्वकामार्थसिद्धये । सिद्धिर्भवतु ते देव यशो वीर्यं च सर्वदा । 9 ।

अमृताभिषेकोऽस्तु । ॐ शन्तिः शान्तिः शान्तिः । । '

अवभृथस्नानं -

आचार्यादि ब्राह्मणों सहित यजमान नदी, तालाब आदि अथवा स्वगृह में यथासंभव प्रधान कलश के जल को बाल्टी आदि में गृहीत सामान्य जल में मिश्रण कर स्नान करे।

क्षमाप्रार्थना-

'पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः । त्राहि मां देवि चण्डेशि सर्वपापहरा भव ।।1।।

वाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि । । 2 ।।

यत्पूजितं मया देवि भक्तिश्रद्धाविवर्जितम् । तत्सर्वं प्रतिगृह्णन्तु दुर्गाद्याः सर्वदेवताः ।।3।।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ।। 4 ।।

जपच्छिद्रं तपश्च्छिद्रं यच्छिद्रं यज्ञकर्मणि । सर्वं भवतु मेऽच्छिद्रं ब्राह्मणानां प्रसादतः ।।5।।

अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । तस्मात्कारुण्यभावेन क्षमस्व परमेश्वरि । 16 ।।

अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया । दासोऽयमिति मे मत्त्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।। 7 ।।

देवादिसहितदेवीविसजर्नम् -

'ॐ उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे । उप प्रयन्तु मरुतः सुदानवऽइन्द्र प्राशूर्भवा सचा ।।1।।

यज्ञ यज्ञं गच्छ यज्ञपतिं गच्छ स्वां योनिं गच्छ स्वाहा ।

एष ते यज्ञो यज्ञपते सहसूक्तवाकः सर्वं वीरस्तं जुषस्व स्वाहा ।। 2 ।।

समुद्रं गच्छ स्वाहा अन्तरिक्षं गच्छ स्वाहा देव सवितारं गच्छ स्वाहा मित्रावरुणौ गच्छ स्वाहाऽअहोरात्रे गच्छ स्वाहा छन्दासि गच्छ स्वाहा द्यावापृथिवी गच्छ स्वाहा यज्ञं गच्छ स्वाहा सोमं गच्छ स्वाहा दिव्यं नभो गच्छ स्वाहाऽअग्निं वैश्वानरं गच्छ स्वाहा मनो मे हार्दि गच्छ स्वाहा दिवं ते धूमो गच्छतु स्वर्ज्योतिः पृथिवीं भस्मनापूण स्वाहा ।। 3 ।।

' उत्तिष्ठ देवि चण्डेशि शुभां पूजां प्रगृह्य च । कुरुष्व मम कल्याणमष्टाभिः शक्तिभिः सह । । 1 । ।

दुर्गे देवि जगन्मातः स्वस्थानं गच्छ पूजिते । यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ।। 2 ।।

पूजामिमां मया देवि यथाशक्त्युपपादिताम् । रक्षार्थं त्वं समादाय व्रज स्वस्थानमुत्तमम् ।।3।।

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामिकाम्। इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ।।4।।

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वरि । यत्र ब्रह्मादयो देवा तत्र गच्छ हुताशन ।।। 5 ।।

प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद्विष्णोः संपूर्ण स्यादिति श्रुतिः ।।6।।

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु । न्यूनं संपूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ।।7।।

ॐ विष्णवे नमः । ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । '

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

यजमान के तिलक, रक्षाबन्धन व आशीर्वादः

अथ तिलक:-

'आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः । तिलकं ते प्रयच्छन्तु कामधर्मार्थसिद्धये ।।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधात्पवमानं महीयते । धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ।।'

तिलक पर अक्षत लगायें

येऽक्षताः क्षतहन्तारो हन्तारोऽखिलवैरिणाम् । तांस्ते मूर्ध्नि प्रयच्छामि तेन ते शं सदा भवेत् ।। '

अथ रक्षाबन्धनम् -

'ॐ यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्य शतानीकाय सुमनस्य मानाः।

तन्मऽ आबध्नामि शतशारदायायुष्माञ्जरदष्टिर्यथासम् ।।'

अथ आशीर्वादः -

'ॐ पुनस्त्वा दित्या रुद्रा वसवः समिन्धतां पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञैः ।

घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः ।।1।।

दीर्घायुस्त ओषधे खनिता यस्मै च त्वा खनाम्यहम् ।

अथो त्वं दीर्घायुर्भूत्वा शतवल्शा विरोहतात् ।। 2 ।।

विवस्वन्नादित्यैष ते सोमपीथस्तस्मिन्मत्स्व ।

श्रद्धस्मै नरो वचसे दधातन यदाशीर्दा दम्पती वामश्नुतः ।

पुमान्पुत्रो जायते विन्दते वस्वधा विश्वाहारप एधते गृहे ।। 3 । ।

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।

स्वास्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।4।।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महीयते ।

धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ।। 5 ।।

शान्तिरस्तु शिवं चास्तु शुभं चास्तु धनं तथा ।

ऋद्धिरस्तु वृद्धिरस्तु ब्राह्मणानां प्रसादतः ।। 6 ।।

अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।

निर्धनाः सधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।7।।

मन्त्रार्थाः सफलाः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ।

शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव ।।8।।

आयुष्कामो यशस्कामो पुत्रपौत्रस्तथैव च ।

आरोग्यं धनकामश्च सर्वे कामा भवन्तु ते ।।9।।

यजमानपत्नी का रक्षाबन्धन व आशीर्वादः -

अथ रक्षाबन्धनम् -

'ॐ तं पत्नीभिरनुगच्छेम देवाः पुत्रैर्भ्रातृभिरुत वा हिरण्यैः ।

नाकं गृभ्णानाः सुकृतस्य लोके तृतीये पृष्ठेऽअधिरोचने दिवः ।।'

अथ आशीर्वादः -

ॐ अनाधृष्टा पुरस्तादग्नेराधिपत्यऽआयुर्मे दाः पुत्रवती दक्षिणतऽइन्द्रस्याधिपत्ये

प्रजां मे दाः सुषदा पश्चाद् देवस्य सवितुराधिपत्ये चक्षुर्मे दाऽआश्रुतिरुत्तरतो धातुराधिपत्ये रायस्पोषं मे दाः ।

विधृतिरुपरिष्टाद् बृहस्पतेराधिपत्यऽओजो मे दा विश्वाभ्यो मा नाष्ट्राभ्यस्पाहि मनोरश्वासि । ।1।।

यावती द्यावापृथिवी यावच्च सप्त सिन्धवो वितस्थिरे ।

तावन्तमिन्द्र ते ग्रहमूर्जां गृह्णम्यक्षतिं मयि गृह्णम्य क्षतिम् ।। 2 ।।

श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पल्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।

इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाण सर्वलोकं मऽइषाण ।। 3 ।। '

ब्राह्मणभोजनम् ।

।। इति होम विधिः ।।

हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती

।।  देवी की आरती ॥

जगजननी जय ! जय !! (मा! जगजननी जय ! जय !! )

भयहारिणि, भवतारिणि भवभामिनि जय ! जय !! जग.

तू ही सत् चित् सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा । सत्य सनातन सुन्दर पर शिव सुर- भूपा ॥ 1 ॥ जग.

आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी । अमल अनन्त अगोचर अज आनन्दराशी ॥12 ॥ जग.

अविकारी अघहारी, अकल, कलाधारी । कर्त्ता विधि, भर्त्ता हरि हर संहारकारी ॥। 3 ॥ जग.

तू विधिवधू, रमा तू, तू उमा, महामाया । मूलप्रकृति विद्या तू, तू जननी, जाया ॥ 4 ॥ जग.

राम, कृष्ण तू, सीता, व्रजरानी राधा । तू वांछा- कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा ॥ 5 ॥ जग.

दश विद्या, नवदुर्गा, नाना शस्त्रकरा । अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा ।। 6 ।। जग.

तू परमधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू । तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू ।। 7 ।। जग.

सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या तू शोभाऽऽधारा । विवसन विकट स्वरुपा, प्रलयमयी धारा ॥ 8 ॥ जग.

तू ही स्नेहसुधामयि, तू अति गरलमना । रत्नविभूषित तू ही तू ही अस्थि-तना ॥ 9 ॥ जग.

मूलाधार - निवासिनि, इह पर सिद्धिप्रदे । कालातीता काली, कमला तू वरदे ॥ 10 ॥ जग.

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी । भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदयत्री ॥ 11 ॥ जग.

हम अति दीनदुखी मा! विपत जाल घेरे । हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे ॥ 12 ॥ जग.

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै । करुणा कर करुणामयि ! चरण-शरण दीजै ॥ 13 ॥ जग.

जगजननी जय ! जय !! (मा! जगजननी जय ! जय ! )

भयहारिणि, भवतारिणि भवभामिनि जय ! जय !! जग!!.

इति: हवनात्मक श्रीदुर्गासप्तशती सम्पूर्ण:

श्रीदुर्गासप्तशती में आगे पढ़ें- महा-तन्त्री क्रम दुर्गा सप्तशती

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