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कर्मकाण्ड

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अधिदेवता प्रत्यधि देवता Adhidevta and pratyadhidevta

अधिदेवता प्रत्यधि देवता

अधिदेवता प्रत्यधि देवता - इससे पूर्व डी पी कर्मकांड भाग- ५  में आपने नवग्रह मण्डल पूजन के विषय में पढ़ा । अब आप डी पी कर्मकांड भाग- ६  में अधिदेवता व प्रत्यधि देवता का स्थापन के विषय में पढ़ेंगे । नवग्रह मण्डल के परिधि में ही अधिदेवता व प्रत्यधि देवता का स्थापन किया जाता है।

 

अधिदेवता प्रत्यधि देवता Adhidevta and pratyadhidevta
  

अधिदेवताओं की स्थापना

(हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए चित्रानुसार नियत स्थानों पर अधिदेवताओं के आवाहन-स्थापन पूर्वक अक्षत-पुष्पों को छोड़ता जाय ।)

1-  ईश्वर  (सूर्य के दायें भाग में) आवाहन-स्थापन-

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे  सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मूक्षीय मामृतात् ॥

 एह्येहि विश्वेश्वर नस्त्रिशूलकपालखट्वाङ्गधरेण सार्धम् ।

 लोकेश यक्षेश्वर यज्ञसिद्धयै गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः ईश्वराय नमःईश्वर मावाहयामिस्थापयामि ।                                                                                                                                                                              

२-उमा (चन्द्रमा के दायें भाग में ) आवाहन स्थापन-

ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्नयावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।

इष्णन्निषाणामुं म इषाण सर्वलोकं म इषाण । 

हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शङ्करप्रियाम् । लम्बोदरस्य जननीमुमामावाहयाम्याहम् ॥ 

ॐ भूर्भुवः स्वः उमायै नमःउमामावाहयामिस्थापयामि ।

                                                                                                                              ३- स्कन्द (मङ्गल के दायें भाग में) आवाहन-स्थापन-                                             

ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात् ।

श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन् ॥

रुद्रतेजःसमुत्पन्नं देवसेनाग्रगं विभुम् । षण्मुखं कृत्तिकासूनुं स्कन्दमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः स्कन्दाय नमःस्कन्दमावाहयामिस्थापयामि ।


४- विष्णु (बुध के दायें भाग में) आवाहन - स्थापन-

ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रे स्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि ।

 वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ॥

देवदेवं जगन्नाथं भक्तानुग्रहकारकम् । चतुर्भुजं रमानाथं विष्णुमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवे नमःविष्णुमावाहयामिस्थापयामि ।                                                                   

५- ब्रह्मा (बृहस्पति के दायें भाग में) आवाहन- स्थापन-

ॐ आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥

कृष्णाजिनाम्बरधरं पद्मसंस्थं चतुर्मुखम् । वेदाधारं निरालम्बं विधिमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि, स्थापयामि ।


६- इन्द्र (शुक्र के दायें भाग में) आवाहन -स्थापन-

ॐ सजोषा इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान् ।

जहि शत्रूँ२रप मृधो नुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः ।

देवराजं गजारूढं शुनासीरं शतक्रतुम् । वज्रहस्तं महाबाहुमिन्द्रवाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः, इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ।


७-यम (शनि के दायें भाग में) आवाहन- स्थापन-

ॐ यमाय त्वाऽङ्गिरस्वते पितृमते स्वाहा । स्वाहा घर्माय स्वाहा घर्मः पित्रे ॥

धर्मराजं महावीर्यं दक्षिणादिक्पतिं प्रभुम् । रक्तेक्षणं महाबाहुं यममावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमःयममावाहयामिस्थापयामि ।                                                                                         

८-काल (राहु के दायें भाग में) आवाहन स्थापन-

ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वा क्षित्या उन्नयामि । समापो अद्भिरग्मत समोषधीभिरोषधीः ॥

अनाकारमनन्ताख्यं वर्तमानं दिने दिने । कलाकाष्ठादिरूपेण कालमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः कालाय नमः, कालमावाहयामि, स्थापयामि ।


९-चित्रगुप्त (केतु के दायें भाग में) आवाहन-स्थापन-

ॐ चित्रावसो स्वस्ति ते पारमशीय । धर्मराजसभासंस्थं कृताकृतविवेकिनम् ।

आवाहये चित्रगुप्तं लेखनीपत्रहस्तकम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः चित्रगुप्ताय नमः, चित्रगुप्तमावाहयामि, स्थापयामि ।


प्रत्यधि देवताओं का स्थापन 

बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से नवग्रहों के बायें भाग में मन्त्र को उच्चारण करते हुए नियत स्थानों पर अक्षत छोड़ते हुए  एक-एक प्रत्यधिदेवता का आवाहन-स्थापन करे-

१-  अग्नि (सूर्य के बायें भाग में) आवाहन-स्थापन 

ॐ अग्निं दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुप ब्रुवे । देवॉं २ आ सादयादिह ॥                                                                                                                                                                          रक्तमाल्याम्बरधरं रक्तपद्मासनस्थितम् ।  वरदाभयदं देवमग्निमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमःअग्निमावाहयामिस्थापयामि ।

२-  अप् (जल) (चन्द्रमा के बायें भाग में) आवाहन - स्थापन-

ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन । महे रणाय चक्षसे ॥

आदिदेवसमुद्भूतजगच्छुद्धिकराः शुभाः । ओषध्याप्यायनकरा अप आवाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अद्भ्यो नमःअप आवाहयामिस्थापयामि । 

३-  पृथ्वी (मंगल के बायें भाग में) आवाहन - स्थापन -

ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ॥

शुक्लवर्णां विशालाक्षीं कूर्मपृष्ठोपरिस्थिताम् । सर्वशस्याश्रयां देवीं धरामावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः पृथिव्यै नमःपृथिवीमावाहयामिस्थापयामि ।

४-  विष्णु (बुध के बाये भाग में) आवाहन - स्थापन-

ॐ इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम् । समूढमस्य पा ँ सुरे स्वाहा ॥ 

शङ्खचक्रगदापद्महस्तं गरुडवाहनम् । किरीटकुण्डलधरं विष्णुमावाहयाम्यहम् ॥ 

ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवे नमःविष्णुमावाहयामिस्थापयामि । 

५- इन्द्र (बृहस्पति के बायें भाग में) आवाहन स्थापन-

ॐ इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः ।

देवसेनानामभिभञ्जतीनां जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रम् ॥

ऐरावतगजारूढं सहस्त्राक्षं शचीपतिम् । वज्रहस्तं सुराधीशमिन्द्रमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमःइन्द्रमावाहयामिस्थापयामि ।

६- इन्द्राणी (शुक्र के बायें भाग में) आवाहन स्थापन- 

ॐ अदित्यै रास्नाऽसीन्द्राण्या उष्णीषः । पूषाऽसि घर्माय दीष्व ॥

प्रसन्नवदनां देवीं देवराजस्य वल्लभाम् । नानालङ्कारसंयुक्तां शचीमावाहयाम्यहम् । ।

ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राण्यै नमःइन्द्राणीमावाहयामिस्थापयामि ।

७- प्रजापति (शनिके बायें भागमें) आवाहन - स्थापन- 

ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव । 

यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वय ँ स्याम पतयो रयीणाम् ॥ 

आवाहयाम्यहं देवदेवेशं च प्रजापतिम् । अनेकव्रतकर्तारं सर्वेषां च पितामहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः प्रजापतये नमःप्रजापतिमावाहयामिस्थापयामि ।

८- सर्प (राहु के बायें भाग में) आवाहन- स्थापन- 

ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु । ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥

अनन्ताद्यान् महाकायान् नानामणिविराजितान् ।

आवाहयाम्यहं सर्पान् फणासप्तकमण्डितान् ॥  

ॐ भूर्भुवः स्वः सर्पेभ्यो नमःसर्पानामावाहयामिस्थापयामि ।

९-  ब्रह्मा (केतु के बायें भाग में) आवाहन- स्थापन-

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः । 

स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्चः योनिमसतश्च विवः ॥

हंसपृष्ठसमारूढं देवतागणपूजितम् । आवाहयाम्यहं  देवं ब्रह्माणं कमलासनम् ॥ 

ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे नमःब्रह्माणमावाहयामिस्थापयामि । 

नवग्रहों के समान ही अधिदेवता व  प्रत्यधिदेवता का स्थापन पश्चात प्रतिष्ठापूर्वक पाद्यादि उपचारों से पूजन करना चाहिये ।

इति: डी पी कर्मकांड भाग- ६  अधिदेवता  प्रत्यधिदेवता  स्थापन कर्म: 

 शेष जारी .......पढ़े डी पी कर्मकांड भाग- ७  

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