पंचलोकपाल पूजा
इससे पूर्व डीपी कर्मकांड भाग-६ में अपने पढ़ा कि नवग्रह मण्डल के परिधि में ही क्रमश: अधिदेवताओं व प्रत्यधि देवताओं का स्थापन किया जाता है। अब डी पी कर्मकांड भाग-७ में आप पंचलोकपाल पूजा के विषय में पढ़ेंगे । गणेशजी, दुर्गाजी, वायु, आकाश और अश्विनीकुमारों को ही पञ्चलोकपाल कहते हैं। नवग्रह मण्डल में ही क्रमश: केतू के पास गणेशजी और दुर्गाजी का तथा बृहस्पति के पास वायु, आकाश और अश्विनीकुमारों का आवाहन और स्थापन कर पूजन करें । इनके उपरांत बुध के पास क्रमश: वासतोष्पति व क्षेत्रपाल का आवाहन-स्थापन कर पूजन करें ।
पञ्चलोकपाल पूजा
Pancha Lokapal pooja
पंच लोकपाल पूजा
बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने
हाथ से छोड़ते हुए पञ्चलोकपालों का आवाहन एवं स्थापन करे ।
१۔ गणेशजी का आवाहन और स्थापन ۔
ॐ गणानां त्वा गणपति ঌ हवामहे
प्रियाणां त्वा प्रियपतिঌ हवामहे
निधीनां त्वा निधिपतिঌ हवामहे वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ॥
लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं
चतुर्भुजम् ।
आवाहयाम्यहं देवं गणेशं
सिद्धिदायकम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः गणपते ! इहागच्छ
इहतिष्ठ गणपतये नमः,
गणपतिमावाहयामिस्थापयामि॥
२۔ दुर्गाजी का आवाहन और स्थापन ۔
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति
कश्चन ।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां
काम्पीलवासिनीम् ॥
पत्तने नगरे ग्रामे विपिने पर्वते
गृहे ।
नाना जाती कुलेशानीं
दुर्गमवाहयाम्याहम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः दुर्गे ! इहागच्छ
इहतिष्ठ दुर्गायै नमः,
दुर्गामावाहयामिस्थापयामि॥
३- वायु का आवाहन और स्थापन ۔
ॐआ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वरঌ सहस्त्रिणीभिरुप
याहि यज्ञम् ।
वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं
पात स्वस्तिभिः सदा नः॥
आवाहयाम्यहं वायुं भूतानां
देहधारिणम् ।
सर्वाधारं महावेगं मृगवाहनमीश्वरम्
॥
ॐ भूभुर्वः स्वः वायो ! इहागच्छ
इहतिष्ठ वायवे नमः,
वायुमावाहयामिस्थापयामि॥
४ ۔ आकाश का आवाहन और स्थापन ۔
ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां
वसापावानः
पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।
दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो
दिग्भ्यः स्वाहा ॥
अनाकारं शब्दगुणं
द्यावाभूम्यन्तरस्थितम् ।
आवाहयाम्यहं देवमाकाशं सर्वगं शुभम्
॥
ॐ भूभुर्वः स्वः आकाश ! इहागच्छ
इहतिष्ठ आकाशाय नमः,
आकाशमावाहयामिस्थापयामि॥
५ ۔ अश्विनीकुमारों का आवाहन और स्थापन ۔
ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना
सुनृतावती ।
तया यज्ञं मिमिक्षतम् ।
उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वैष ते
योनिर्माध्वीभ्यां त्वा ॥
देवतानां च भैषज्ये सुकुमारो
भिषग्वरौ ।
आवाहयाम्यहं देवावश्विनौ
पुष्टिवर्द्धनौ ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः अश्विनौ! इहागच्छ
इहतिष्ठ अश्विभ्यां नमः,
अश्विनावाहयामिस्थापयामि॥
प्रतिष्ठा - तदनन्तर 'ॐ मनो०' इस मन्त्र से अक्षत छोड़ते हुए पञ्चलोकपाल की प्रतिष्ठा करे। इसके बाद 'पञ्चलोकपालेभ्यो नमः' इस नाम-मन्त्र से यथालब्धोपचार पूजन कर 'अनया पूजया पञ्चलोकपालाः प्रीयन्ताम्, न मम' ऐसा उच्चारण कर अक्षत छोड़ दे ।
पञ्चलोकपाल पूजन
वासतोष्पति का आवाहन और
स्थापन ۔
ॐ वासतोष्पते
प्रतिजानीह्यस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवा नः ।
यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व शं
नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥
वासतोष्पतिं विदिक्कायं
भूशय्याभिरतं प्रभुम् ।
आवाहयाम्यहं देवं सर्वकर्मफलप्रदम्
॥
ॐ भूभुर्वः स्वः वासतोष्पते!
इहागच्छ इहतिष्ठ वासतोष्पतये नमः,
वासतोष्पतिमावाहयामिस्थापयामि॥
क्षेत्रपाल का आवाहन स्थापन ۔
ॐ नहि
स्पशमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुर एतारमग्नेः ।
एमेनमवृधन्नमृता अमर्त्यं वैश्वानरं
क्षैत्रजित्याय देवाः ॥
भूतप्रेतपिशाचाद्यैरावृतं
शूलपाणिनम् ।
आवाहये क्षेत्रपालं कर्मण्यस्मिन्
सुखाय नः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः क्षेत्राधिपते!
इहागच्छ इह तिष्ठ क्षेत्राधिपतये नमः,
क्षेत्राधिपतिमावाहयामि,
स्थापयामि ।
आवाहन-स्थापन उपरांत 'ॐ मनो जूति०' इस मन्त्र से
प्रतिष्ठाकर 'ॐ
वासतोष्पतिदेवताभ्यो नमः' 'ॐ क्षेत्रपालाय नमः' इस
नाम-मन्त्र द्वारा गन्धादि उपचारों से पूजा करे ।
विशेष – यहाँ
वासतोष्पति एवं क्षेत्रपाल देवताओं को नवग्रह मण्डल के ही अंग मान कर उनका पूजन
दिया गया और आने वाले समय में इनका पृथक पूजन विधि दिया जाएगा। यज्ञादि अनुष्ठानों
में वासतोष्पति एवं क्षेत्रपाल देवताओं का अलग-अलग वेदी बनाकर उनकी पूजा करें।
इति: डी पी कर्मकांड भाग- ७
पञ्चलोकपाल पूजा विधि:
शेष जारी .......पढ़े डी पी कर्मकांडभाग- 8
0 $type={blogger} :
Post a Comment