दश दिक्पाल - Dash Digpal pujan

दश दिक्पाल 

दश दिक्पाल पूजन - डी पी कर्मकांड भाग-७ में आपने पढ़ा की  नवग्रह मण्डल में वेदी के अंदर पञ्चलोकपाल, वासतोष्पति व क्षेत्रपाल का आवाहन-स्थापन कर पूजन किया जाता है ।अब डी पी कर्मकांड भाग-८ के भाग में आप पढ़ेंगे कि नवग्रह मण्डल में परिधि के बाहर चित्रानुसार क्रमश: दसों दिशाओं  में दिशाओं के अधिपति देवता जिन्हे कि  दश दिक्पाल कहा जाता है,अक्षत छोड़ते हुए आवाहन एवं स्थापन व पूजन किया जाता है-

दश दिक्पाल - Dash Digpal pujan

(पूर्व में) इन्द्र का आवाहन और स्थापन -

ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र ँ हवे हवे सुहव ँ शूरमिन्द्रम् ।

ह्रयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्र ँ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः ॥

इन्द्रं सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम् । आवाहये यज्ञसिद्ध्यै शतयज्ञाधिपं प्रभुम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्र ! इहागच्छ , इह तिष्ठ इन्द्राय नमः, इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ।

(आग्नेयकोण में) अग्नि का आवाहन और स्थापन -

ॐ अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे । देवॉं२ आ सादयादिह ॥

त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकम् । षण्नेत्रं च चतुःश्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अग्ने ! इहागच्छ , इह तिष्ठ अग्नये नमः, अग्निमावाहयामि, स्थापयामि ।

(दक्षिण में) यम का आवाहन और स्थापन- 

ॐ यमाय त्वाऽङ्गिरस्वते पितृमते स्वाहा । स्वाहा घर्माय स्वाहा घर्मः पित्रे ॥

महामहिषमारूढं दण्डहस्ते महाबलम् । यज्ञसंरक्षणार्थाय यममावहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः यम ! इहागच्छ इह तिष्ठ यमाय नमः यममावाहयामिस्थापयामि ।                                                                                

(नैर्ऋत्यकोण में) निर्ऋति का आवाहन और स्थापन-

ॐ असुन्वन्तमयजमानमिच्छ स्तेनस्येत्यामन्विहि तस्करस्य ।

अन्यमस्मदिच्छ सा त इत्या नमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु ॥

सर्वप्रेताधिपं देवं निर्ऋतिं नीलविग्रहम् । आवाहये यज्ञसिद्धयै नरारूढं वरप्रदम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः निर्ऋते ! इहागच्छ , इह तिष्ठ निर्ऋतये नमः, निर्ऋतिमावाहयामि, स्थापयामि ।

(पश्चिम में) वरुण का आवाहन और स्थापन-

ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।

अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ँ स मा न आयुः प्रमोषीः ॥

शुद्धस्फटिकसंकाशं जलेशं यादसां पतिम् । आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण ! इहागच्छ , इह तिष्ठ वरुणाय नमः, वरुणमावाहयामि, स्थापयामि ।

(वायव्यकोण में) वायु का आवाहन और स्थापन-

ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर ँ सहस्त्रिणीभिरुप याहि यज्ञम् ।

वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥

मनोजवं महातेजं सर्वतश्चारिणं शुभम् । यज्ञसंरक्षणार्थाय वायुमावाहयाम्यहम् ॥ 

ॐ भूर्भुवः स्वः वायो ! इहागच्छ इह तिष्ठ वायवे नमःवायुमावाहयामिस्थापयामि ।                                                              

(उत्तर में) कुबेर का आवाहन और स्थापन-

ॐ कुविदङ्ग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूय ।

इहेहैषां कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति ॥

उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्ण ।

एष ते योनिस्तेजसे त्वा वीर्याय त्वा बलाय त्वा ॥

आवहयामि देवेशं धनदं यक्षपूजितम् । महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेर ! इहागच्छ , इह तिष्ठ कुबेराय नमः, कुबेरमावाहयामि, स्थापयामि ।

(ईशानकोण में) ईशान का आवाहन और स्थापन -

ॐ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम् ।

पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॥

सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम् । आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः ईशान ! इहागच्छ , इह तिष्ठ ईशानाय नमः, ईशानमावाहयामि, स्थापयामि।

(ईशान-पूर्व के मध्य में) ब्रह्मा का आवाहन और स्थापन- 

ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः । 

स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः ॥ 

पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम् । आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञसंसिद्धिहेतवे ॥ 

ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मन् ! इहागच्छ इह तिष्ठ ब्रह्मणे नमःब्रह्माणमावाहयामिस्थापयामि ।

                                                                       

(नैर्ऋत्य-पश्चिम के मध्य में) अनन्त का आवाहन और स्थापन-

ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी । यच्छा नः शर्म सप्रथाः ।

अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरूपिणम् । जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्त ! इहागच्छ , इह तिष्ठ अनन्ताय नमः, अनन्तमावाहयामि, स्थापयामि ।

प्रतिष्ठा - 

इस प्रकार आवाहन, स्थापन कर 'ॐ मनो०' इस मन्त्र से अक्षत छोड़ते हुए दश दिक्पाल का प्रतिष्ठा करे । 

उसके बाद निम्न मन्त्र से यथालब्धोपचार पूजन करे- 'ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः ।'

पुन: इसके बाद 'अनया पूजया इन्द्रादिदशदिक्पालाः प्रीयन्ताम्, न मम' ऐसा उच्चारण कर अक्षत दश दिक्पाल मण्डल पर छोड़ दे ।

इति: डी पी कर्मकांड भाग- ८   दश दिक्पाल-पूजन विधि:

शेष जारी .......पढ़े डी पी कर्मकांड भाग- ९


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