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नवग्रह - नवग्रह मण्डल पूजन डी पी कर्मकांड भाग- ५
नवग्रह मण्डल पूजन- इससे पूर्व डी पी कर्मकांड भाग- ४ में आपने पुण्याहवाचनकर्म के विषय में पढ़ा । अब डी पी कर्मकांड भाग- ५ में आप नवग्रह मण्डल पूजन के विषय
में पढ़ेंगे ।
ग्रहों की स्थापना के लिये चित्रानुसार ईशानकोण में चार खड़ी और चार पड़ी रेखाओं का चौकोर मण्डल बनाये । इस प्रकार नौ कोष्ठक बन जायेंगे । अब बीचवाले कोष्ठक में सूर्य, आग्नेयकोण में चन्द्र, दक्षिण में मङ्गल, ईशानकोण में बुध, उत्तर में बृहस्पति, पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनि, नैऋत्यकोण में राहु और वायव्यकोण में केतु की स्थापना करे । अब हाथ में अक्षत लेकर निम्न
मन्त्र पढ़ते हुए क्रमश: अक्षत छोड़ते
हुए ग्रहों का आवाहन एवं स्थापना करे ।
१- सूर्य (मध्य में गोलाकार, लाल)
सूर्य का आवाहन (लाल अक्षत-पुष्प लेकर) -
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्यं च ।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भूवनानि पश्यन् ॥
ॐ जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम् । तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः कलिंग देशोद्भव काश्यपगोत्र रक्तवर्णा भो सूर्य ।
इहागच्छ इहतिष्ठ ॐ सूर्याय नमः, श्री सूर्यमावाहयामि स्थापयामि ॥
२- चन्द्र (अग्निकोण में, अर्धचन्द्र, श्वेत)
चन्द्र का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्पसे)
-
ॐ इमं देवा असपत्न ँ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय ।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ँ राजा ।
दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् । ज्योत्सनापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम ।
इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सोमाय नमः, सोममवाहयामि, स्थापयामि ।
३- मंगल (दक्षिण में, त्रिकोण, लाल)
मङ्गल का आवाहन (लाल फूल और अक्षत लेकर) -
ॐ अग्निर्मूर्धा दिवःककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपा ँ रेता ँ सि जिन्वति ॥
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् । कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम ।
इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ भौमाय नमः, भौममावाहयामि, स्थापयामि ।
४- बुध (ईशानकोण में, हरा, धनुष)
बुध का आवाहन (पीले, हरे अक्षत-पुष्प लेकर) -
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वभिष्टापूर्ते स ँ सृजेथामयं च ।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत ॥
प्रियंगुकलिका भासं रूपेणाप्रतिमं बुधम् । सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध ।
इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः, बुधमवाहयामि, स्थापयामि ।
५- बृहस्पति (उत्तर में पीला, अष्टदल)
बृहस्पति का आवाहन (पीले अक्षत-पुष्पसे) -
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।
यदीदयच्छवसऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा ॥
देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसन्निभम् । वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्व सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो ।
इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि, स्थापयामि ।
६- शुक्र (पूर्व में श्वेत, चतुष्कोण)
शुक्र का आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्प
से) -
ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान ँ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥
ॐ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् । सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं आवाहयाम्यहम् ॥
ॐ भुर्भूवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्रः ।
इहागच्छ, इहतिष्ठ ॐ शुक्राय नमः, शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि ।
७- शनि (पश्चिम में, काला मनुष्य)
शनि का आवाहन (काले अक्षत-पुष्प
से) -
ॐ शं नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्त्रवन्तु नः ॥
नीलांबुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छाया मार्तण्ड सम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर ।
इहगच्छ, इह तिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि ।
८ - राहु (नैऋत्यकोण में, काला मकर)
राहु का आवाहन (काले अक्षत-पुष्प
से)-
ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः । सखा कया सचिष्ठया वृता ॥
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् । सिंहिकागर्भ संभूतं राहुं आवाहयाम्यहम् ।
ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो ।
इहागच्छ, इह तिष्थ ॐ राहवे नमः, राहुमावाहयामि, स्थापयामि ।
९ - केतु (वायव्यकोण में, कृष्ण खड्ग)
केतु का आवाहन (धूमिल अक्षत-पुष्प लेकर) -
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् । रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुं आवाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो ।
इहागच्छ, इहतिष्ठ, ॐ केतवे नमः, केतुमावाहयामि, स्थापयामि ।
नवग्रह मण्डल की प्रतिष्ठा -
आवाहन और स्थापन के बाद हाथ में अक्षत लेकर डी पी कर्मकांड भाग- २ में लिखित मन्त्र से नवग्रह मण्डल की प्रतिष्ठा कर
अक्षत छोड़े ।
अस्मिन् नवग्रह मण्डले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
नवग्रह पूजन
अब आवाहन , स्थापन पश्चात नवग्रहों का डी पी कर्मकांड भाग- २ अनुसार इनकी पूजा करे । आवाहितसूर्यादिनवग्रहेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
इस नाम मन्त्र से पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर निम्नलिखित प्रार्थना करे-
प्रार्थना - ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥
इसके बाद निम्नलिखित वाक्य का उच्चारण करते हुए नवग्रह मण्डल पर अक्षत छोड़ दे और नमस्कार करे-
निवेदन और नमस्कार - 'अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्तां म मम ।
इति: डी पी कर्मकांड भाग- ५ नवग्रह मण्डल पूजनम्
शेष जारी .......पढ़े डी
पी कर्मकांड भाग- ६
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Reviewed by कर्मकाण्ड
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June 29, 2020
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