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पुण्याहवाचन- डी पी कर्मकांड भाग-४
पुण्याहवाचन |
पुण्याहवाचन अर्थात् पुण्यदायिनी श्लोकों द्वारा यजमान की मंगल कमाना या मंगल आशीर्वाद
।
पुण्याहवाचन करने के वाले
यजमान को सबसे पहले आचार्य या ब्राह्मण का वरण करना चाहिए।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ……………………………………………………….अहं अस्मिन् पुजा हेतु: अमुक नाम व अमुक
गोत्रोत्तपन्ने आचार्यादिब्राह्मणान् युष्मान् वृणे।
अब हाथ जोड़ कर ब्राह्मण से
प्रार्थना करें-
अस्य पूजन कर्मस्य निष्पत्तौ
भवन्तोभ्यर्थिता मया ।सुप्रसन्ने प्रकर्तव्यं
विधिपूर्वकम् ॥
ब्राह्मणा: सन्तु शास्तार:
पापात्पांतु समाहिता: । वेदानां चैव दातार: पातार: सर्वदेहिनाम् ॥
जपयज्ञैस्तथा होमैर्दानैश्च
विविधै: पुनः। देवनाम् च ऋषीनां च तृप्त्यर्थम् याजका: स्मृता: ॥
येषाम् देहे स्थिता वेदा:
पावयन्ति जगत्त्रयं। रक्षन्तु सततं तदे मां जपयज्ञे व्यवस्थिता: ॥
अब वरण किए ब्राह्मण का
अक्षत,कुमकुम,यज्ञोपवीत,दक्षिणा आदि
द्वारा पूजन करें-
ॐ नमो ब्रह्मण्यदेव्याय गोब्राह्मणहिताय च ।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ॥
इसके उपरांत पुण्याहवाचन कर्म करें। डी पी
कर्मकांड भाग-३ मे पूजे हुए वरुण-कलश के पास ही जल से भरा एक पात्र (कलश) भी रख कर उनका भी पूजन कर लिया जाना चाहिए,
क्योंकि पुण्याहवाचन का कर्म इसी से किया जाता है । यजमान के दाहिनी ओर पुण्याहवाचन- कर्म के लिए वरण किये हुए युग्म ब्राह्मणों को, जिनका मुख उत्तर की ओर हो, बैठना चाहिए । सबसे पहले यजमान वरुण देव की प्रार्थना करे ।
वरुण प्रार्थना - ॐ पाशपाणे नमस्तुभ्यं पद्मिनीजीवनायक ।
पुण्यावाचनं यावत् तावत् त्वं सुस्थिरो भव ॥
इसके बाद यजमान घुटने टेककर कमल की तरह अञ्जलि बनाकर सिर से लगाकर प्रणाम करे । अब आचार्य अपने दाहिने हाथ से उस जलपात्र (लोटे) को यजमान की अञ्जलि मे रख दे । यजमान उसे सिर से लगाकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर ब्राह्मणों से अपनी दीर्घ आयु का आशीर्वाद मांगे -
यजमान - ॐ दीर्घा नागा नद्यो गिरयस्त्रीणि विष्णुपदानि च ।
तेनायुः प्रमाणेन पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ॥
यजमान की इस प्रार्थना पर ब्राह्मण निम्नलिखित आशीर्वचन बोले-
ब्राह्मण - अस्तु दीर्घमायुः ।
अब यजमान ब्राह्मणों से फिर आशीर्वाद मांगे -
यजमान - ॐ त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः । अतो धर्माणि धारयन् ॥
तेनायुः प्रमाणेन पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ।
यजमान और ब्राह्मणों का यह संवाद इसी आनुपूर्वी से दो बार और होना चाहिये । अर्थात् आशीर्वाद मिलने के बाद यजमान कलश को सिर से हटाकर कलश के स्थान पर रख दे । फिर इस कलश को सिर से लगाकर-
'ॐ दीर्घा नागा नद्यो.... रस्तु' बोले इसके बाद ब्राह्मण 'दीर्घमायुरस्तु' बोलें । इसके बाद यजमान पहले की तरह कलश को कलश-स्थान पर रखकर फिर सिर से लगाकर 'ॐ दीर्घा नागा....रस्तु' कहकर आशीर्वाद मांगे और ब्राह्मण 'दीर्घमायुरस्तु' यह कहकर आशीर्वाद दें ।
यजमान - ॐ अपां मध्ये स्थिता देवाः सर्वमप्सु प्रतिष्ठितम् ।
ब्राह्मणानां करे न्यस्ताः शिवा आपो भवन्तु नः ॥
ॐ शिवा आपः सन्तु । ऐसा कहकर यजमान ब्राह्मणों के हाथों में जल दे ।
ब्राह्मण - सन्तु शिवा आपः ।
अब यजमान निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर ब्राह्मणों के हाथों में पुष्प दे -
यजमान - लक्ष्मीर्वसति पुष्पेषु लक्ष्मीर्वसति पुष्करे ।
सा मे वसतु वै नित्यं सौमनस्यं सदास्तु मे ॥ सौमनस्यमस्तु ।
ब्राह्मण - 'अस्तु सौमनस्यम्' ऐसा कहकर ब्राह्मण पुष्प को स्वीकार करें ।
अब यजमान निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर ब्राह्मणों के हाथ में अक्षत दे-
यजमान - अक्षतं चास्तु मे पुण्यं दीर्घमायुर्यशोबलम् ।
यद्यच्छ्रेयस्करं लोके तत्तदस्तु सदा मम ॥ अक्षतं चारिष्टं चास्तु ।
ब्राह्मण - 'अस्त्वक्षतमरिष्टं च' । -ऐसा बोलकर ब्राह्मण अक्षत को स्वीकार करें । इसी प्रकार आगे यजमान ब्राह्मणों के हाथों में चन्दन, अक्षत, पुष्प आदि देता जाय और ब्राह्मण इन्हें स्वीकार करते हुए यजमान की मङ्गल कामना करें ।
यजमान - (चन्दन) गन्धाः पान्तु ।
ब्राह्मण - सौमङ्गल्यं चास्तु ।
यजमान - (अक्षत) अक्षताः पान्तु ।
ब्राह्मण - आयुष्यमस्तु ।
यजमान - (पुष्प) पुष्पाणि पान्तु ।
ब्राह्मण - सौश्रियमस्तु ।
यजमान - (पान सुपारी) सफलताम्बूलानि पान्तु ।
ब्राह्मण - ऐश्वर्यमस्तु ।
यजमान - (दक्षिणा) दक्षिणाः पान्तु ।
ब्राह्मण - बहुदेयं चास्तु ।
यजमान - (जल) आपः पान्तु ।
ब्राह्मण - स्वर्चितमस्तु ।
यजमान - (हाथ जोड़कर) दिर्घमायुः शान्तिः पुष्टिस्तुष्टिः श्रीर्यशो विद्या विनयो वित्तं बहुपुत्रं बहुधनं चायुष्यं चास्तु ।
ब्राह्मण - 'तथास्तु' - ऐसा कहकर ब्राह्मण यजमान के सिर पर कलश का जल छिड़ककर निम्नलिखित वचन बोलकर आशीर्वाद दें-
ॐ दीर्घमायुः शान्तिः पुष्टिस्तुष्टिश्चास्तु ।
यजमान - (अक्षत लेकर) यं कृत्वा सर्ववेदयज्ञक्रियाकरणकर्मारम्भाः शुभाः शोभनाः प्रवर्तन्ते, तमहमोङ्कारमादिं कृत्वा यजुराशीर्वचनं बहुऋषिमतं समनुज्ञातं भवद्भिरनुज्ञातः पुण्यं पुण्याहं वाचयिष्ये ।
ब्राह्मण - 'वाच्यताम्' - ऐसा कहकर निम्न मन्त्रों का पाठ करे -
ॐ द्रविणोदाः पिपीषति जुहोत प्र च तिष्ठत । नेष्ट्रादृतुभिरिष्यत ॥
सविता त्वा सवाना ँ
सुवतामग्निर्गृहपतीना ँ सोमो वनस्पतीनाम् ।
बृहस्पतिर्वाच इन्द्रो ज्यैष्ठ्याय रुद्रः पशुभ्यो मित्रः सत्यो वरुणो धर्मपतीनाम् ।
न तद्रक्षा ँ सि न पिशाचास्तरन्ति देवानामोजः प्रथमज ँह्येतत् ।
यो बिभर्ति दाक्षायण ँ
हिरण्य ँ स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः ।
उच्चा ते जातमन्धसो दिवि सद्भूम्या ददे । उग्र ँ शर्म महि श्रवः ॥
उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे । अभि देवॉं२ इयक्षते ।
यजमान - व्रतजपनियमतपः स्वाध्यायक्रतुशमदमदयादानविशिष्टानांसर्वेषां ब्राह्मणानां मनः समाधीयताम् ।
ब्राह्मण - समाहितमनसः स्मः ।
यजमान - प्रसीदन्तु भवन्तः ।
ब्राह्मण - प्रसन्नाः स्मः ।
इसके बाद यजमान पहले से रखे गये दो सकोरों (थाली)मे से पहले सकोरे में आम के पल्लव या दूब से थोड़ा जल कलश से डाले और ब्राह्मण बोलते जाय -
पहले पात्र (सकोरे) में- ॐ शान्तिरस्तु । ॐ पुष्टिरस्तु । ॐ तुष्टिरस्तु । ॐ वृद्धिरस्तु । ॐ अविघ्नमस्तु ।
ॐ आयुष्यमस्तु । ॐ आरोग्यमस्तु । ॐ शिवमस्तु । ॐ शिवं कर्मास्तु । ॐ कर्म समृद्धिरस्तु ।
ॐ धर्म समृद्धिरस्तु । ॐ वेद समृद्धिरस्तु । ॐ शास्त्रसमृद्धिरस्तु । ॐ धनधान्य समृद्धिरस्तु ।
ॐ पुत्रपौत्रसमृद्धिरस्तु । ॐ इष्टसंपदस्तु ।
दूसरे पात्र (सकोरे) मे- ॐ अरिष्टनिरसनमस्तु । ॐ यत्पापं रोगोऽशुभमकल्याणं तद् दूरे प्रतिहतमस्तु ।
पुनः पहले पात्र में -ॐ यच्छ्रेयस्तदस्तु । ॐ उत्तरे कर्मणि निविघ्नमस्तु ।ॐ उत्तरोत्तरमहरहरभिवृद्धिरस्तु ।
ॐ उत्तरोत्तराः क्रियाः शुभाः शोभनाः संपद्यंताम् । ॐ तिथिकरणमुहुर्तनक्षत्रग्रहलग्नसंपदस्तु ।
ॐ तिथिकरणमुहुर्तनक्षत्रग्रहलग्नाधिदेवताः प्रीयंताम् । ॐ तिथिकरणे
समुहुर्ते सनक्षत्रे सग्रहे सलग्ने साधिदैवते प्रीयेताम् । ॐ दुर्गा पाञ्चाल्यौ प्रीयेताम् । ॐ अग्निपुरोगा विश्वेदेवाः प्रीयंताम् । ॐ इंद्रपुरोगा मरुद्गणः प्रीयंताम् । ॐ वसिष्ठ पुरोगा ऋषिगणाः प्रीयेताम् ।ॐ माहेश्वरी पुरोगा उमा मातरः प्रीयन्ताम् । ॐ अरुंधति पुरोगा एकपत्न्यः प्रीयंताम् । ॐ ब्रह्म पुरोगा सर्वे वेदाः प्रीयंताम् । ॐ विष्णु पुरोगा सर्वे देवाः प्रीयंताम् ।
ॐ ऋषयश्छंदांस्याचार्या वेदा देवा यज्ञाश्च प्रीयंताम् ।ॐ ब्रह्म च ब्राह्मणाश्च प्रीयंताम् । ॐ श्रीसरस्वत्यौ प्रीयेताम् । ॐ श्रद्धामेधे प्रीयेताम् । ॐ भगवती कात्यायनी प्रीयताम् । ॐ भगवती माहेश्वरी प्रीयताम् ।
ॐ भगवती ऋद्धिकरी प्रीयताम् ।
ॐ भगवती वृद्धिकरी प्रीयताम् । ॐ भगवती पुष्टिकरी प्रीयताम् ।
ॐ भगवती तुष्टिकरी प्रीयताम् । ॐ भगवंतौ विघ्नविनायकौ प्रीयेताम् । ॐ सर्वाः कुलदेवताः प्रीयंताम् ।
ॐ सर्वा ग्रामदेवताः प्रीयंताम् । ॐ सर्वा इष्टदेवताः प्रीयन्ताम् ।
दूसरे पात्र में - ॐ हताश्च ब्रह्मद्विषः । ॐ हताश्च परिपंथिनः । ॐ हताश्च कर्मणो विघ्नकर्तारः ।
ॐ शत्रवः पराभवं यांतु । ॐ शाम्यंतु घोराणि । ॐ शाम्यंतु पापानि । ॐ शाम्यंत्वीतयः ।
ॐ शाम्यन्तूपद्रवाः ॥
पहले पात्र में - ॐ शुभानि वर्धंताम् । ॐ शिवा आपः संतु । ॐ शिवा ऋतवः संतु । ॐ शिवा ओषधयः संतु ।
ॐ शिवा वनस्पतयः संतु । ॐ शिवा अतिथयः संतु । ॐ शिवा अग्नयः संतु । ॐ शिवा आहुतयः संतु ।
ॐ अहोरात्रे शिवेस्यताम् । ॐ निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥ ॐ शुक्रांगारकबुधबृहस्पतिशनैश्चरराहुकेतुसोमसहिता आदित्य पुरोगा सर्वे ग्रहाः प्रीयंताम् ।
ॐ भगवान् नारायणः प्रीयताम् । ॐ भगवान् पर्जन्यः प्रीयताम् । ॐ भगवान् स्वामी महासेनः प्रीयताम् ।
ॐ पुरोऽनुवाक्यया यत्पुण्यं तदस्तु । ॐ याज्यया यत्पुण्यं तदस्तु । ॐ वषट्कारेण यत्पुण्यं तदस्तु । ॐ प्रातः सूर्योदये यत्पुण्यं तदस्तु ।
इसके बाद यजमान कलश को कलश के स्थान पर रखकर पहले पात्र में गिराये गये जल से मार्जन करे । परिवार के लोग भी मार्जन करें । इसके बाद इस जल को घर में चारों तरफ छिड़क दे । द्वितीय पात्र में जो जल गिराया गया है, उसको घर से बाहर एकान्त स्थान में गिरा दे ।
अब यजमान हाथ जोड़कर ब्राह्मणों से प्रार्थना करे -
यजमान - ॐ एतत्कल्याणयुक्तं पुण्यं पुण्याहं वाचयिष्ये ।
ब्राह्मण - वाच्यताम् ।
इसके बाद यजमान फिर से हाथ जोड़कर प्रार्थना करे -
यजमान - ॐ ब्राह्मं पुण्यमहर्यच्च सृष्ट्युत्पादनकारकम् ।
(पहली बार) वेदवृक्षोद्भवं नित्यं तत्पुण्याहं ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ पुण्याहम् ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम ...करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः
(दूसरी बार) पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ पुण्याहम् ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम ...करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः
(तीसरी बार) पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ पुण्याहम् ।
ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः ।
पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥
यजमान - पृथिव्यामुद्धृतायां तु यत्कल्याणं पुरा कृतम् ।
(पहली बार) ऋषिभिः सिद्धगन्धर्वैस्तत्कल्याणं ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः कल्याणं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ कल्याणम् ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(दूसरी बार) करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः कल्याणं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ कल्याणम् ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(तीसरी बार) करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः कल्याणं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ कल्याणम् ।
ॐ यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः । ब्रह्मराजन्याभ्या ँ शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च । प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृद्धयतामुप मादो नमतु ।
यजमान - ॐ सागरस्य तु या ऋद्धिर्महालक्ष्म्यादिभिः कृता ।
(पहली बार) सम्पूर्णा सुप्रभावा च तामृद्धिं प्रबुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः ऋद्धिं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ ऋद्धयताम् ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(दूसरी बार) करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः ऋद्धिं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ ऋद्धयताम् ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(तीसरी बार) करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः ऋद्धिं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ ऋद्धयताम् ।
ॐ सत्रस्य ऋद्धिरस्यगन्म ज्योतिरमृता अभूम ।
दिवं पृथिव्या अध्याऽरुहामाविदाम देवान्त्स्वर्ज्योतिः ॥
यजमान - ॐ स्वस्तिस्तु याऽविनाशाख्या पुण्यकल्याणवृद्धिदा ।
(पहिली बार) विनायकप्रिया नित्यं तां च स्वस्तिं ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे करिष्यमाणाय अमुककर्मणे स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ आयुष्मते स्वस्ति ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(दूसरी बार) करिष्यमाणाय अमुककर्मणे स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ आयुष्मते स्वस्ति ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(तीसरी बार) करिष्यमाणाय अमुककर्मणे स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ आयुष्मते स्वस्ति ।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
यजमान - ॐ समुद्रमथनाज्जाता जगदानन्दकारिका ।
(पहली बार) हरिप्रिया च माङ्गल्या तां श्रियं च ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः श्रीरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ अस्तु श्रीः ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(दूसरी बार ) करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः श्रीरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ अस्तु श्रीः ।
यजमान - भो ब्राह्मणाः । मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे
(तीसरी बार ) करिष्यमाणस्य अमुककर्मणः श्रीरस्तु इति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण - ॐ अस्तु श्रीः ।
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् । इष्णन्निषानामुं म इषाण सर्वलोकं म इषाण ॥
यजमान - ॐ मृकण्डुसूनोरायुर्यद् ध्रुवलोमशयोस्तथा ।
आयुषा तेन संयुक्ता जीवेम शरदः शतम् ॥
ब्राह्मण - ॐ शतं जीवन्तु भवन्तः ।
ॐ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥
यजमान - ॐ शिवगौरीविवाहे या या श्रीरामे नृपात्मजे ।
धनदस्य गृहे या श्रीरस्माकं सास्तु सद्मनि ॥
ब्राह्मण - ॐ अस्तु श्रीः ।
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीय ।
पशूना ँ रूपमन्नस्य रसो यशः श्रीः श्रयतां मयि स्वाहा ॥
यजमान - प्रजापतिर्लोकपालो धाता ब्रह्मा च देवराट् ।
भगवाञ्छाश्वतो नित्यं नो वै रक्षतु सर्वतः ॥
ब्राह्मण - ॐ भगवान् प्रजापतिः प्रीयताम् ।
ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव ।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वय ँ स्याम पतयो रयीणाम् ॥
यजमान - आयुष्मते स्वस्तिमते यजमानाय दाशुषे ।
श्रिये दत्ताशिषः सन्तु ऋत्विग्भिर्वेदपारगैः ॥
देवेन्द्रस्य यथा स्वस्ति यथा स्वस्तिगुरोर्गृहे ।
एकलिङ्गे यथा स्वस्ति तथा स्वस्ति सदा मम ॥
ब्राह्मण - ॐ आयुष्मते स्वस्ति ।
ॐ प्रति पन्थामपद्महि स्वस्तिगामनेहसम् ।
येन विश्वाः परि द्विषो वृणक्ति विन्दते वसु ॥
ॐ पुण्याहवाचनसमृद्धिरस्तु ॥
यजमान - अस्मिन् पुण्याहवाचने न्यूनातिरिक्तो यो विधिरुपविष्टब्राह्मणानां वचनात्
श्रीमहागणपतिप्रसादाच्च परिपूर्णोऽस्तु ।
दक्षिणा का संकल्प - कृतस्य पुण्याहवाचनकर्मणः समृद्धयर्थं पुण्याहवाचकेभ्यो ब्राह्मणेभ्य इमां दक्षिणां विभज्य अहं दास्ये ।
ब्राह्मण - ॐ स्वस्ति ।
अभिषेक
पुण्याहवाचनोपरान्त कलश के जल को पहले पात्र में गिरा ले । अब ब्राह्मण उत्तर या पश्चिम मुख होकर दुब और पल्लव के द्वारा इस जल से यजमान का अभिषेक करे । अभिषेक के समय यजमान अपनी पत्नी को बायी तरफ कर ले । परिवार भी वहां बैठ जाय । अभिषेक के मन्त्र निम्नलिखितहै-
ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ॥
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ॥
ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः ।
पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यम् ।
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्टवा साम्राज्येनाभिषिञ्चाम्यसौ ।
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर्यन्त्रेणाग्नेः साम्राज्येनाभिषिञ्चामि ॥
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।
अश्विनोर्भैषज्येन तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभि षिञ्चामि सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्यायान्नाद्यायाभि षिञ्चामीन्द्रस्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसेऽभि षिञ्चामि ॥
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव । यद्भद्रं तन्न आ सुव ॥
ॐ धामच्छदग्निरिन्द्रो ब्रह्मा देवो बृहस्पतिः ।
सचेतसो विश्वे देवा यज्ञं प्रावन्तुः नः शुभे ॥
ॐ त्वं यविष्ठ दाशुषौ नॄँ पाहि शृणधी गिरः ।
रक्षा तोकमुत त्मना ।
ॐ अन्नपतेऽन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः । प्र प्र दातारं तारिष ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे ॥
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ।
सुशान्तिर्भवतु ।
सरितः सागराः शैलास्तीर्थानि जलदा नदाः ।
एते त्वामभिषिञ्चन्तु सर्वकामार्थसिद्धये ॥
शान्तिः पुष्टिस्तुष्टिश्चास्तु । अमृताभिषेकोऽस्तु ॥
दक्षिणादान - ॐ अद्य...कृतैतत्पुण्याहवाचनकर्मणः साङ्गतासिद्धयर्थं तत्सम्पूर्णफलप्राप्त्यर्थं च पुण्याहवाचकेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो यथाशक्ति मनसोद्दिष्टां दक्षिणां विभज्य दातुमहमुत्सृजे ।
जिन्हे संक्षिप्त में पुण्याहवाचन करवाना
हो उन्हे नीचे दिए गए विधी का प्रयोग करना चाहिये۔
संक्षिप्त पुण्याहवाचन
यजमान-
ब्राह्मं पुण्यं महर्यच्च सृष्ट्युत्पादनकारकम् । वेदवृक्षोद्भवं नित्यं तत्पुण्याहं ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः पुण्याहं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण -
ॐ पुण्याहम्, ॐ पुण्याहम्, ॐ पुण्याहम् ।
ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥
यजमान-
पृथिव्यामुद्धृतायां तु यत्कल्याणं पुरा कृतम् । ऋषिभिः सिद्धगन्धर्वैस्तत्कल्याणं ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः कल्याणं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण -
ॐ कल्याणम्, ॐ कल्याणम्, ॐ कल्याणम् ।
ॐ यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः । ब्रह्मराजन्याभ्या ँ शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च ।
प्रियो देवानां दक्षिणायै दातुरिह भूयासमयं मे कामः समृद्धयतामुप मादो नमतु ।
यजमान -
सागरस्य तु या ऋद्धिर्महालक्ष्म्यादिभिः कृताः । सम्पूर्णा सुप्रभावा च तां च ऋद्धिं बुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः ऋद्धिं भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण -
ॐ कर्म ऋद्धयताम् , ॐ कर्म ऋद्धयताम् , ॐ कर्म ऋद्धयताम् ।
ॐ सत्रस्य ऋद्धिरस्यगन्म ज्योतिरमृता अभूम । दिवं पृथिव्याम् अध्याऽरुहामाविदाम देवान्त्स्वर्ज्योतिः ॥
यजमान -
स्वस्तिस्तु याऽविनाशाख्या पुण्यकल्याणवृद्धिदा । विनायकप्रिया नित्यं तां च स्वस्तिं ब्रुवन्तु नः ॥
भो ब्राह्मणाः मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणे स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मण -
ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति ।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।
यजमान -
ॐ मृकण्डुसूनोरायुर्यद् ध्रुवलोमशयोस्तथा । आयुषा तेन संयुक्ता जीवेम शरदः शतम् ॥
ब्राह्मण -
जीवन्तु भवन्तः, जीवन्तु भवन्तः, जीवन्तु भवन्तः ।
ॐ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥
यजमान -
समुद्रमथनाज्जाता जगदानन्दकारिका । हरिप्रिया च माङ्गल्या तां श्रियं च ब्रुवन्तु नः ॥
शिवगौरीविवाहे तु या श्रीरामे नृपात्मजे । धनदस्य गृहे या श्रीरस्माकं सास्तु सद्मनि ॥
ब्राह्मण-
अस्तु श्रीः, अस्तु श्रीः, अस्तु श्रीः ।
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीय । पशूना ँ रूपमन्नस्य रसो यशः श्रीः श्रयतां मयि स्वाहा ॥
यजमान -
प्रजापतिर्लोकपालो धाता ब्रह्मा च देवराट् । भगवाञ्छाश्वतो नित्यं नो वै रक्षतु सर्वतः ॥
योऽसौ प्रजापतिः पूर्वे यः करे पद्मसम्भवः । पद्मा वै सर्वलोकानां तन्नोऽस्तु प्रजापते ॥
-पश्चात हाथ में जल लेकर छोड़ दे और कहे-
भगवान प्रजापतिः प्रीयताम् ।
ब्राह्मण -
ॐ प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा रूपाणि परि ता बभूव ।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तुत्वयममुष्य पितासावस्य पिता वय ँ स्याम पतयो रयीणाम् ँ स्वाहा ॥
आयुष्मते स्वस्तिमते यजमानाय दाशुषे । कृताः सर्वाशिषः सन्तु ऋत्विग्भिर्वेदपारगैः ॥
या स्वस्तिर्ब्रह्मणो भूता या च देवे व्यवथिता । धर्मराजस्य या पत्नी स्वस्तिः शान्ति सदा तव ॥
देवेन्द्रस्य यथा स्वस्तिर्यथा स्वस्तिर्गुरोर्गृहे । एकलिंगे यथा स्वस्तिस्तथा स्वस्तिः सदा तव ॥
ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति ।
ॐ प्रति पन्थामपद्महि स्वस्तिगामनेहसम् । येनविश्वाः परि द्विषो वृणक्ति विन्दते वसु ।
पुण्याहवाचनकर्मणः समृद्धिरस्तु ।
॥इति: डी पी कर्मकांड भाग- ४ पुण्याहवाचनकर्म॥
शेष जारी
.......पढ़े डी पी कर्मकांड भाग- ५
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Reviewed by कर्मकाण्ड
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May 21, 2020
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