कलश स्थापन- डी पी कर्मकांड भाग-३
"कलश स्थापन" - डी पी कर्मकांड के भाग-२ में आपने पढ़ा की सर्व पूजन मे पहले गणपति का पश्चात् माता गौरी का पूजन होता है। इनके बाद "कलश पुजा" का विधान होता है। अतः इस भाग में हम "कलश पूजन" पढ़ते है।
कलश स्थापन डी पी कर्मकांड भाग ३
D P karmakanda chapter 3 Kalash sthapan
सर्वप्रथम "कलश "में कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर
"कलश" में तीन धागावाली मौली
लपेटकर एक ओर रख लेते हैं । अब जंहा पर "कलश" स्थापित कर रखना है,वंहा पर गोबर से लीप कर हल्दी,कुमकुम या आटा से
अष्टदल कमल की आकृति बनाते हैं। अब पूजन प्रारम्भ करते हैं।
डी पी कर्मकांड भाग ३ कलश स्थापन
भूमि का स्पर्श
- जिस जगह "कलश स्थापन" होना है , निम्न
मन्त्र से उस भूमि का स्पर्श करे-
ॐ भूरसि भूमिरस्त्यदितिरसि
विश्वधाया विश्वस्य
भुवनस्य धर्त्री ।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ঌ ह पृथिवीं मा हि ঌ सीः ॥
धान्यप्रक्षेप
- इसके उपरांत निम्न मन्त्र से पूजित भूमि
पर सप्तधान्य(जौ, धान, तिल, कँगनी, मूँग, चना, साँवा) अथवा गेहूँ , या
चावल रखें -
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय
त्वो
दानाय त्वा व्यानाय त्वा ।
दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो
वः सविता
हिरण्यपाणिः प्रति
गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना
चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि ॥
"कलश
स्थापन" - अब इस धान्य पर नीचे लिखे
मन्त्र द्वारा "कलश की स्थापना"
करें -
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा
विशन्त्विन्दवः ।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः
सहस्त्रं धुक्ष्वोरुधारा
पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः ॥
जल
- इस मन्त्र से "कलश" में जल भरें-
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य
स्कम्भसर्जनी
स्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि
वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ॥
चन्दन
–
अब कलश में निम्न मंत्र से चन्दन छोड़े-
ॐ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां
बृहस्पतिः ।
त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्
यक्ष्मादमुच्यत ॥
सर्वौषधि
- अब इस मन्त्र से कलश में सर्वौषधि (मुरा, जटामांसी,
वच, कुष्ठ, हल्दी,
दारु हल्दी, सठी, चम्पक,
मुक्ता आदि) छोड़े-
ॐ या ओषधीः पुर्वा जाता
देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा ।
मनै नु बभ्रूणामहঌशतं धामानि सप्त च
॥
दूब
–
इसके बाद मंत्र द्वारा कलश में दूर्वा (दूब)डाले-
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः
परुषस्परि ।
एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्त्रेण
शतेन च ॥
कलश पर पञ्चपल्लव
–
इन मंत्रों से कलश में पञ्चपल्लव (बरगद, गूलर,
पीपल, आम, पाकर)
लगा दे –
ॐ अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो
वसतिष्कृता ।
गोभाज इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम् ॥
कुश–
अब कलश में निम्न मंत्र द्वारा पवित्री (कुश) डाले-
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः
प्रसव
उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण
सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य
यत्कामः पुने तच्छकेयम् ॥
सप्तमृत्तिका
- इन मंत्रों से कलश में सप्तमृत्तिका (घुड़साल, हाथी
खाना, बांबी, संगम नदियों की मिट्टी,
तालाब, गौशाला और राजमहल के द्वार की
मिट्टी)छोड़े -
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा
निवेशनी ।
यच्छा नः शर्म सप्रथाः ।
सुपारी
- कलश में नीचे लिखे मंत्र से सुपारी डाल देवें-
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च
पुष्पिणीः ।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वঌहसः ॥
पञ्चरत्न
–
अब कलश में पञ्चरत्न(सोना, हीरा, मोती, पद्मराग, नीलम)मंत्र
पढ़कर छोड़ दे-
ॐ परि वाजपतिः
कविरग्निर्हव्यान्यक्रमीत् ।
दधद्रत्नानि दाशुषे ।
द्रव्य
- कलश में मंत्र पढ़ते हुए द्रव्य(पैसा या रूपिया) छोड़े –
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य
जातः पतिरेक आसीत् ।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै
देवाय हविषा विधेम ॥
वस्त्र
–
अब निम्न मन्त्र पढ़कर कलश को वस्त्र से अलंकृत करे-
ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म
वरूथमाऽसदत्स्वः ।
वासो अग्ने विश्वरूप ঌसं व्ययस्व
विभावसो ॥
पूर्णपात्र
–
अब मंत्र पढ़ते हुए धान्य या चाँवल से भरे पूर्णपात्र को कलश पर
स्थापित कर दें-
ॐ पूर्णा दर्वि परा पत सुपूर्णा
पुनरा पत ।
वस्नेव विक्रीणावहा इषमूर्ज ঌशतक्रतो ॥
कलश पर नारियल
–
अब कलश में रखे पूर्णपात्र पर लाल कपड़ा या मौली लपेटे हुए नारियल को
निम्न मन्त्र पढ़कर रखे-
ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च
पुष्पिणीः ।
बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ঌहसः ॥
वरुण का ध्यान और आवाहन
- अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से कलश में जलाधिपति वरुणदेव
का आवाहन करे-
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा
वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ঌस मा न आयुः प्र
मोषीः ॥
अस्मिन् कलशे वरुणाय साङ्गाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय आवाहयामि ।
ॐ भूर्भुवः स्व भो वरुण इहागच्छ,
इहतिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि
।
'ॐ अपां पतये वरुणाय
नमः' कहकर अक्षत-पुष्प
कलश पर छोड़ दे ।
देवी-देवताओं का आवाहन-
फिर हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश में वेदों, तीर्थों,
नदों, नदियों, सागरों,
देवि- देवताओं के आवाहन करे-
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुदः
समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये
मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा
वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो
ह्यथर्वणः ॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु
समाश्रिताः ।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः
पुष्टिकरी तथा ॥
आयान्तु देवपूजार्थं
दुरितक्षयकारकाः ।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति
।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन्
संनिधिं कुरु ॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा
नदाः ।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं
दुरितक्षयकारकाः ॥
कलश स्थापन- डी पी कर्मकांड भाग-३
प्रतिष्ठा-
इसके बाद हाथ में अक्षत -पुष्प लेकर निम्न मन्त्र से कलश की प्रतिष्ठा करे-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञঌ समिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ
॥
कलशे वरुनाद्यावाहितदेवताः
सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः । (अक्षत-पुष्प
कलश के पास छोड़ दे)
ध्यान
- कलश के पास पुष्प समर्पित करे-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि ।
आसन
–
कलश को अक्षत चढ़ाये-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
पाद्य
- कलश के पास हाथ मे जल लेकर चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
अर्घ्य
–
पुनः कलश के पास जल चढ़ाये-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।
स्नानीय जल
–
स्नान के लिए कलश को जल चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
स्नानीयं जलं समर्पयामि ।
आचमन
- स्नान उपरांत कलश को आचमनीय जल चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
पञ्चामृतस्नान –
अब कलश को पञ्चामृत से स्नान कराये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
गन्धोदक स्नान
- अब कलश को जल में मलयचन्दन या अष्टगंध मिलाकर स्नान कराये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
शुद्धोदक स्नान
–
पुनः कलश को शुद्ध जल से स्नान कराये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
आचमन
- स्नान उपरांत पुनः कलश को आचमनीय जल चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
वस्त्र
–
अब कलश को वस्त्र चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
वस्त्रं समर्पयामि ।
आचमन
- वस्त्र उपरांत पुनः कलश को आचमनीय जल चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत
- अब कलश को यज्ञोपवीत (जनेऊ)पहना दें-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
आचमन -
पुनः कलश को आचमनीय जल चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
उपवस्त्र
- अब कलश को उपवस्त्र (मौलीधागा)चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
उपवस्त्रं (उपवस्त्रार्थे रक्तसूत्रम् ) समर्पयामि ।
आचमन
- पुनः कलश को आचमनीय जल चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
चन्दन
- कलश को चन्दन लगाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
चन्दनं समर्पयामि ।
अक्षत -
कलश को अक्षत समर्पित करे –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
अक्षतान् समर्पयामि ।
पुष्प (पुष्पमाला)
- कलश को पुष्प चढ़ाये और पुष्पमाला पहना दें-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
पुष्पं (पुष्पमालाम्) समर्पयामि ।
नानापरिमल द्रव्य
- कलश को विविध परिमल द्रव्य (गुलाल,बंदन,कुमकुम आदि) समर्पित करे-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।
सुगन्धित द्रव्य
- कलश को सुगन्धित द्रव्य (इत्र आदि) चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
सुगन्धितद्रव्यं समर्पयामि ।
धूप
–
कलश के पास धूप (हूम या दसांग)दें-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
धूपमाघ्रापयामि ।
आचमन -
पुनः कलश को आचमनीय जल चढ़ाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
धूपान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
दीप -
कलश को दीप दिखाये –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
दीपं दर्शयामि ।
हस्तप्रक्षालन
- दीप दिखाकर हाथ धो ले ।
नैवेद्य
- कलश के पास नैवेद्य (प्रसाद)चढ़ावें -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
सर्वविधं नैवेद्यं निवेदयामि ।
आचमन आदि
- इसके बाद आचमनीयं एवं पानीय तथा मुख और
हस्त प्रक्षालन के लिए जल चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
आचमनीयं जलं, मध्ये पानीयं जलम, उत्तरापोऽशने, मुखप्रक्षालनार्थे, हस्तप्रक्षालनार्थे च जलं समर्पयामि ।
करोद्वर्तन
-करोद्वर्तन के लिये कलश को गन्ध समर्पित करे-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
करोद्वर्तनं समर्पयामि ।
ताम्बूल –
कलश मे आवाहित देवों के लिए सुपारी, इलायची,
लौंगसहित पान चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
ताम्बूलं समर्पयामि ।
दक्षिणा
–
कलश के पास द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
कृतायाः पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।
आरती
–
कलश की आरती करे –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
आरार्तिकं समर्पयामि ।
पुष्पाञ्जलि –
कलश को पुष्पाञ्जलि समर्पित करे –
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
प्रदक्षिणा
–
कलश की प्रदक्षिणा करे-
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
अब हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना
करे -
प्रार्थना
–
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो
विष्णुना स्वयम् ॥
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवाः सर्वे
त्वयि स्थिताः ।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि
प्राणाः प्रतिष्ठिताः ॥
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं
च प्रजापतिः ।
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः
सपैतृकाः ॥
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः
कामफलप्रदाः ।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे
जलोद्भव ।
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव
सर्वदा ॥
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय
सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय ।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो
नमस्ते ॥
'ॐ अपां पतये वरुणाय
नमः ।'
नमस्कार
- पुष्प लेकर कलश को प्रणाम करते हुए पुष्प समर्पित करे -
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः,
प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि ।
समर्पण
-अब हाथ में जल लेकर निम्नलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुए
समस्त पूजन-कर्म भगवान् वरुणदेव को निवेदित करे-
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः
प्रीयन्तां न मम ।
॥इति: डी पी कर्मकांड भाग-३ "कलश स्थापन",पूजनम् ॥
शेष जारी .......पढ़े डी पी कर्मकांड भाग-४
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