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नक्षत्र ज्ञान

नक्षत्र ज्ञान

प्रिय पाठक गण व नए कर्मकांडी  विप्रबंधुओं को नक्षत्रों की सामान्य जानकारी का होना परमावश्यक है अतः आपके लाभार्थ पञ्चाङ्ग नक्षत्र ज्ञान दिया जा रहा है।

नक्षत्र ज्ञान
नक्षत्र 

पंचांग नक्षत्र ज्ञान

तारा के समूह को नक्षत्र कहते हैं। नक्षत्र सूर्य से बहुत दूर स्थित  है तथा सूर्य की परिक्रमा नहीं करने के कारण वे स्थिर जान पड़ते हैं। चँद्रमा २७.३ दिन में पृथ्वी के चारों ओर इन्ही तारों के बीच से गुजर कर परिक्रमा (पृथ्वी की) करते हैं। प्रत्येक नक्षत्र एक विशेष तारामंडल या तारा के समूहों का प्रतिनिधि होता है। एक नक्षत्र ३ डिग्री २० मिनट का होता है।

नक्षत्र ज्ञाननक्षत्र परिभाषा

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार- न+क्षत्र अर्थात्- शक्तिहीन ।

निरुक्त के अनुसार- नक्षत्र शब्द की उत्पत्ति नक्ष् (अर्थात्-प्राप्त करना) धातु से हुई है।

नक्त = रात्रि, त्र = संरक्षक । अर्थात्- जो रात्रि का संरक्षक है ,उसे नक्षत्र कहते हैं।

तैत्तिरीय ब्राह्मण के अनुसार-नक्षत्रों को देवताओं का गृह(घर) माना जाता है।

निदान सूत्र के अनुसार- सूर्य प्रत्येक नक्षत्र में १३ दिन बीताता है। चँद्रमा का नक्षत्रों से मिलन नक्षत्र योग कहलाता है।

ऋग्वेद के अनुसार- नक्षत्र उन लोकों को कहा जाता है जिसका क्षय नहीं होता।

न क्षरति, न सरति इति नक्षत्र: ॥

अर्थात्- न हिलने वाला , न चलने वाला। जो स्थिर है उसे नक्षत्र कहते हैं।

यजुर्वेद के अनुसार- नक्षत्रों को चँद्रमा की अप्सराऐं कहा है।

नक्षत्र ज्ञान

विभिन्न नक्षत्र में तारों की संख्या उसके स्वामी ग्रह और पूज्य वृक्ष निम्न है-

नक्षत्र

तारों की संख्या

स्वामी ग्रह

पूज्य वृक्ष

अश्विनी

केतु

आँवला

भरणी

शुक्र

युग्म

कृत्तिका

रवि

गूलर

रोहिणी

चन्द्र

जामुन

मृगशिरा

मंगल

खैर

आर्द्रा

राहु

पाकड़

पुनर्वसु

बृहस्पति

बाँस

पुष्य

शनि

पीपल

अश्लेषा

बुध

नागकेशर

मघा

केतु

बरगद

पूर्वाफाल्गुनी

शुक्र

पलाश

उत्तराफाल्गुनी

रवि

रुद्राक्ष

हस्त

चन्द्र

रीठा

चित्रा

मंगल

बेल

स्वाती

राहु

अर्जुन

विशाखा

बृहस्पति

विकंकत

अनुराधा

शनि

मौलश्री

ज्येष्ठा

बुध

चीड़

मुल

११

केतु

साल

पुर्वाषाढ़ा

शुक्र

अशोक

उत्तराषाढ़ा

रवि

कटहल

श्रवण

चन्द्र

अकवन

धनिष्ठा

मंगल

शमी

शतभिषा

१००

राहु

कदम्ब

पूर्वभाद्रपद

बृहस्पति

आम

उत्तरभाद्रपद

शनि

नीम

रेवती

३२

बुध

महुआ

नक्षत्र ज्ञान

आकाश मण्डल में जो तारों के समूह है,उसे नक्षत्र कहते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी पर दूरी नापने के लिए किलोमीटर का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार आकाश मण्डल की दूरी नापने के लिए नक्षत्रों का उपयोग किया जाता है। सम्पूर्ण आकाश मण्डल को सत्ताईस (२७) भागों में विभक्त किया गया है। इनके अतिरिक्त एक अठ्ठाईसवां (२८)नक्षत्र भी है,जिनका कुल मान उन्नीस(१९)घटी है। नक्षत्रों के नाम निम्न है-

अश्विनी भरणी चैव कृत्तिका रोहणी मृग: ।

आर्द्रा पुनर्वसु: पुष्यस्तत: श्लेषा मघा तथा॥

पूर्वाफाल्गुनिका  तस्मादुत्तराफाल्गुनी तत: ।

हस्तश्चित्रा तथा स्वाति विशाखा तद्रनन्तरम् ॥

अनुराधा ततो ज्येष्ठा तथा मुलं निगद्यते।

पूर्वाषाढोत्तराषाढा अभिजिच्छ्रवणस्तत:॥

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी,उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मुल, पुर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती- ये अट्ठाईस (२८) नक्षत्र है।

उत्तराषाढ़ा का चौथा चरण(अंत की पंद्रह (१५) घटी) तथा श्रवण नक्षत्र के आदि का पंद्रहवाँ (१५) हिस्सा (प्रारम्भ की चार (४)घटी) को अभिजीत नक्षत्र कहते हैं। इसे ही अट्ठाईसवां (२८) नक्षत्र मानते हैं।

ज्योतिष शास्त्र का सूक्ष्मता पूर्वक अवलोकन करने के लिए प्रत्येक नक्षत्र को चार-चार भागों (चरण) में विभक्त किया गया है,जिन्हें प्रथम, द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण कहा जाता है।

नक्षत्र व नक्षत्रों के देवता-

नक्षत्र

अश्विनी

भरणी

कृत्तिका

रोहिणी

देवता

अश्विनीकुमार

यम

अग्नि

ब्रह्मा

नक्षत्र

मृगशिरा

आर्द्रा

पुनर्वसु

पुष्य

देवता

चंद्र

रुद्र

अदिती

गुरु

नक्षत्र

अश्लेषा

मघा

पूर्वाफाल्गुनी

उत्तराफाल्गुनी

देवता

सर्प

पितर

भग

अर्यमा

नक्षत्र

हस्त

चित्रा

स्वाती

विशाखा

देवता

सुर्य

त्वष्टा

वायु

इंद्राग्नि

नक्षत्र

अनुराधा

ज्येष्ठा

मुल

पुर्वाषाढ़ा

देवता

मित्र

इंद्र

निॠति

जल

नक्षत्र

उत्तराषाढ़ा

श्रवण

धनिष्ठा

शतभिषा

देवता

विश्वदेव

विष्णु

वसु

वरुण

नक्षत्र

पूर्वभाद्रपद

उत्तरभाद्रपद

रेवती

अभिजीत

देवता

अजैक चरण

अहिर्बुंधन्य

पूषा

विधि

नक्षत्रों में कर्मज्ञान

रोहिण्यश्वि मृगा: पुष्यो हस्त चित्रोत्तरात्रयम्।

रेवती श्रवणश्चैव धनिष्ठा च पुनर्वसु:॥

अनुराधा तथा स्वाती शुभान्येतानि भानि च।

सर्वाणि शुभकार्यणि सिद्धन्त्येषु च भेषु च॥

पूर्वात्रयं विशाखा च ज्येष्ठाऽऽर्द्रा मूलमेव च।

शतताराभिमेष्वेव कृत्यं साधारणं स्मृतम्॥

भरणी कृत्तिका चैव मघाऽश्लेषा तथैव च।

अत्युग्रं दुष्टकार्यं यत् प्रोक्तभेषु विधीयते॥ 

रोहणी,अश्विनी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा,तीनों उत्तरा, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु, अनुराधा और  स्वाती इन नक्षत्रों में शुभ कार्य करना चाहिए। तीनों पूर्वा, विशाखा, ज्येष्ठा, मुल, आर्द्रा और शतभिषा इन नक्षत्रों में साधारण कार्य करना चाहिए। भरणी, कृत्तिका, अश्लेषा तथा मघा इन नक्षत्रों में उग्र व दुष्ट कार्य सिद्ध होता है।

नक्षत्र व उनकी संज्ञाऐं-

नक्षत्र

संज्ञा

रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद

स्थिर व ध्रुव

पुनर्वसु, स्वाती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा

चल व चर

भरणी, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद

उग्र व क्रूर

कृत्तिका, विशाखा

मिश्र व साधारण

अश्विनी, पुष्य, हस्त, अभिजित

लघु व क्षिप्र

मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती

मृदु व मैत्र

आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा, मूल

तीक्ष्ण व दारुण

रोहिणी, पुष्य,तीनों उत्तरा,धनिष्ठा,आर्द्रा,शतभिषा, श्रवण

उर्ध्वमुख

अश्लेषा, भरणी, कृत्तिका,मघा,मूल,विशाखा, तीनों पूर्वा

अधोमुख

अश्विनी, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, रेवती, अनुराधा,मृगशिरा, ज्येष्ठा, स्वाती

तिर्यङ्मुख

अपने संज्ञा अनुसार नक्षत्र फल देता है।

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान-

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा

अन्धलोचन नक्षत्र

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा

मन्दलोचन नक्षत्र

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद

मध्यलोचन नक्षत्र

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद

सुलोचन नक्षत्र

 

नक्षत्रों के लोचन अनुसार खोई या गुम या चोरी वस्तु हुई वस्तु देखा जाता है-

अंध लोचन में यदि वस्तु खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है।

मंद लोचन में यदि वस्तु गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है।

मध्य लोचन में यदि वस्तु खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है।  ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है।

सुलोचन नक्षत्र में यदि वस्तु गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है। वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है।

नक्षत्रों के चरण अनुसार नाम अक्षर-

नक्षत्र

प्रथमचरण

द्वितीयचरण

तृतीयचरण

चतुर्थचरण

अश्विनी

चू

चे

चो

ला

भरणी

ली

लू

ले

लो

कृत्तिका

रोहिणी

वा

वी

वू

मृगशीरा

वे

वो

का

की

आर्द्रा

कू

पुनर्वसु

के

को

हा

ही

पुष्य

हू

हे

हो

डा

अश्लेषा

डी

डू

डे

डो

मघा

मा

मी

मू

मे

पूर्वाफाल्गुनी

मो

टा

टी

टू

उत्तराफाल्गुनी

टे

टो

पा

पी

हस्त

पू

चित्रा

पे

पो

रा

री

स्वाती

रु

रे

रो

ता

विशाखा

ती

तू

ते

तो

अनुराधा

ना

नी

नू

ने

ज्येष्ठा

नो

या

यी

यू

मूल

ये

यो

भा

भी

पूर्वाषाढ़ा

भू

धा

फा

ढा

उत्तराषाढ़ा

भे

भो

जा

जी

श्रवण

खी

खू

खे

खो

धनिष्ठा

गा

गी

गू

गे

शतभिषा

गो

सा

सी

सू

पूर्वाभाद्रपद

से

सो

दा

दी

उत्तराभाद्रपद

दू

रेवती

दे

दो

चा

ची

यंहा कुछ अक्षर ऐसा है जिनसे नाम नही मिलता अतः उनके स्थान पर निम्न अक्षर रखें-

ब ।    ङ ग ।    ण ड ।   र ऋ ।   स श या श्र ।    ञ ज ।

इसके अलावा अ- आ, ए- ऐ, , उ- ऊ, ओ- औ इन सभी मात्रात्मक अक्षर को एक माने।

नक्षत्रों की शांति व प्रसन्नार्थ नक्षत्र सूक्तम् का नित्य पाठ अवश्य करें-

पंचकनक्षत्र- धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्र पदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती इन पाँचों नक्षत्रों को पंचक की संज्ञा प्राप्त है।

मूलनक्षत्र - ज्येष्ठा, अश्लेषा, रेवती, अश्विनी,मूल, मघा इन छ: नक्षत्रों को मूलनक्षत्र कहा जाता है।

यदि किसी जातक का जन्म इन मूलनक्षत्र में होता है तो उनकी शांति अवश्य करावें-

मूलनक्षत्रशांति हेतु पढ़े- गण्ड-मूल दोष शांति

पंचांग नक्षत्र ज्ञान का यह भाग सम्पूर्ण हुआ ।

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