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कर्मकाण्ड

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बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अर्थात् दुर्गा सप्तशती के सभी ७०० श्लोकों का बीजमंत्र रूप ।

।। बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ।।

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

ब्रह्माण्ड में तीन मुख्य तत्व है- सत्, रज् व तम्। उसी प्रकार देवों में भी तीन ही मुख्य हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश। सप्तशती को भी तीन ही मुख्य भागों में बांटा गया है प्रथम चरित्र ,मध्यम चरित्र व उत्तम चरित्र । सप्तशती के तीन मुख्य देवता है- महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती। सप्तशती में जप किया जाने वाला मंत्र नवार्णमन्त्र भी ३×३ ही है और इनके तीन ही मुख्य बीज है- ऐं , ह्रीं और क्लीं। इनका विस्तार सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् में दिया गया है। यहाँ ऐं- वाग बीज है जो ज्ञान अर्थात् सरस्वती का बोधक है। ह्रीं- माया बीज है जो धन अर्थात् महालक्ष्मी का बोधक है। क्लीं - काम बीज है जो गतिशीलता अर्थात् महाकाली का बोधक है। हमारे धर्म शास्त्रों में बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती को इन्ही तीन मुख्य बीज ऐं, ह्रीं और क्लीं को आधार बनाते हुए और दुर्गा सप्तशती के सभी ७०० श्लोकों को  तीन मुख्य भाग में बाँट कर बनाया गया है अर्थात् नवार्णमन्त्र के जो प्रथम बीजाक्षर ऐं है उनको प्रारम्भ में रख ह्रीं बीज का विस्तार करते हुए दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक श्लोक का एक मुख्य बीज मंत्र बनाया गया है।जैसे महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती तीन अलग-अलग देवी होते हुए भी एक ही पराशक्ति है । अब अंत में क्लीं जो कामबीज है उसे नम: रूप से कार्य करते बनाया गया है। इस प्रकार तीन मुख्य भागों में सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती को बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती बनाया गया है और प्रारम्भ में महाशून्य अर्थात् ॐ प्रणव लिखा गया है । यहाँ मै उन महान ज्ञानी आचार्यों जिन्होने अपने ज्ञान व अथक परिश्रम से इस प्रकार कि कृति हमारे बीच रखा - पं॰ शिवदत्त शास्त्रीजी, पं॰ गिरीशचंद्र जी, पं॰ भैरव प्रसाद जी, पं॰ रामचंद्र पुरी जी महाराज व अन्य पूज्यपाद वैदिक आचार्यों को नमन करते हुए बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती वेदों के प्रचार-प्रसार उद्देश्य से रखता हूँ। यह बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती उन कर्मकांडी  आचार्यों के लिए बहुत ही प्रभावी है जिन्हे कि  नवरात्रि या अन्य अवसरो में एक से अधिक बार सप्तशती का पाठ करना होता है इनके अलावा भी जिन साधकों को  सप्तशती के बड़े श्लोकों को पढ़ने में दिक्कत होती है और विशेष कर तंत्रिकों के लिए विशेष लाभप्रद है।   

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती के पाठ में षडंग (कवच, अर्गला, कीलक, प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य तथा मूर्ति रहस्य) पाठ की आवश्यकता नहीं है। सबसे पहले दुर्गाजी का पूजन कर शापोद्धार आदि की क्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए। अब तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम् का पाठ कर  आदि एवं अन्त में नर्वाण मंत्र का 108 बार जप करें व अंत में देवीसूक्तम् का पाठ करें।

बीज तंत्रात्मक दुर्गा सप्तशती

बीज मन्त्रात्मक दुर्गा सप्तशती

मंत्र दुर्गा सप्तशती

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

शापोद्धार मंत्र- शापोद्धार के लिए नीचे वर्णित मंत्र का  ७ बार आदि व अन्त में जप करना चाहिये।

'ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा'

उत्कीलन मंत्र-  शापोद्धार के बाद  उत्कीलन-मंत्र का २१ बार आदि व अन्त में जप करना चाहिये।

ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा'

मृतसंजीवनी मंत्र - उत्कीलन के उपरान्त मृतसंजीवनी मंत्र का ७ बार आदि व अन्त में पाठ करना चाहिये।

'ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा'

शापोद्धारादि के पश्चात् तंत्र दुर्गासप्तशती के निम्नांकित तंत्रोक्त रात्रिसूक्त का पाठ  करना चाहिये।

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

तन्त्रोक्तं रात्रिसूक्तम्

ॐ ऐं ह्रीं नमः॥१॥ ॐ ऐं स्रां(स्त्रां) नमः॥२॥ ॐ ऐं स्लूं नमः॥३॥ ॐ ऐं क्रैं नमः॥४॥  ॐ ऐं त्रां नम:॥५॥ ॐ ऐं फ्रां नम:॥६॥  ॐ ऐं जीं नम:॥७॥  ॐ ऐं लूं नमः॥८॥ ॐ ऐं स्लूं नमः॥९॥  ॐ ऐं नों नम:॥१०॥ ॐ ऐं स्त्रीं नमः॥११॥  ॐ ऐं प्रूं नमः॥१२॥  ॐ ऐं सूं नमः॥१३॥ ॐ ऐं जां नमः॥१४॥  ॐ ऐं बौं नमः॥१५॥ ॐ ऐं ओं नमः॥१६॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

नवार्णमन्त्र जपविधि:

तांत्रिक रात्रिसूक्त के पाठ या जप के उपरान्त नवार्ण मंत्र का कम से कम १०८ बार जप किया जाना चाहिये । नवार्ण मंत्र के जप के पहले विनियोग, न्यास आदि सम्पन्न करें।

नवार्ण मंत्र का विनियोग-न्यासादि

विनियोग:---

ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषय:, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छदांसि, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवता:, ऐं बीजम्, ह्रीं शक्ति:, क्लीं कीलकम्, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।

तत्पश्चात् मंत्रों द्वारा इस भावना से की शरीर के समस्त अंगों में मंत्ररूप से देवताओं का वास हो रहा है , न्यास करें। ऐसा-करने से पाठ या जप करने वाला व्यक्ति मंत्रमय हो जाता है तथा मंत्र में अधिष्ठित देवता उसकी रक्षा  करते हैं | इसके अतिरिक्त न्यास द्वारा उसके बाहर-भीतर की शुद्धि होती है और साधना निर्विघ्न पूर्ण होती है । ऋष्यादिन्यास ,करन्यास, हृदयादिन्यास, अक्षरन्यास, तथा दिडन्यास के लिए सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती देखें।

ऋष्यादिन्यास:---

ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नम: शिरसि । गायत्र्युष्णिण-गनुष्टुप्छन्दोभ्यो नम: मुखे । महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वतीदेवताभ्यो नम: हृदि । ऐं बीजाय नम: गुह्ये । ह्रीं शक्तये नम: पादयो:। क्लीं कीलकाय नम: नाभौ । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै सर्वाङ्गे।

करन्यास:---

ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नम: । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नम: । ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नम: । ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नम:। ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नम: । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतल-करपृष्ठाभ्यां नम: ।

हृदयादिन्यास:---

ॐ ऐं हृदयाय नम: । ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्लीं शिखायै वषट् । ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम् । ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् ।

अक्षरन्यास:---

ॐ ऐं नम: शिखायाम् । ॐ ह्रीं नम: दक्षिणनेत्रे । ॐ क्लीं नम: वामनेत्रे । ॐ चां नम: दक्षिणकर्णे । ॐ मुं नम: वामकर्णे । ॐ डां नम: दक्षिणनासायाम् । ॐ यैं नम: वामनासायाम् । ॐ विं नम: मुखे । ॐ च्चें नम: गुह्ये ।

एवं विन्यस्य ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे  इति नवार्णमन्त्रेण अष्टवारं व्यापकं कुर्यात् ।

दिङ्न्यास:---

ॐ ऐं प्राच्यै नम: । ॐ ऐं आग्नेय्यै नम: । ॐ ह्रीं नैऋत्यै नम: ।  ॐ क्लीं प्रतीच्यै नम: । ॐ क्लीं वायव्यै नम: । ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नम: । ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नम: । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नम: । ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नम: ।

ध्यानम्

खड्‌गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः

शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।

नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां

यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ॥१॥

अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां

दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।

शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां

सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥२॥

घण्टाशूलहलानि शङ्‌खमुसले चक्रं धनुः सायकं

हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ।

गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-

पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम् ॥३॥

माला प्रार्थना

फिर "ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः" इस मन्त्र से माला की पूजा करके प्रार्थना करें-

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि ।

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥

ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे ।

जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये ॥

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि

साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।

इसके बाद "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" इस मन्त्र का १०८ बार जप करें और-

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।

सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥

इस श्लो्क को पढ़कर देवी के वामहस्त में जप निवेदन करें ।

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती न्यासः

विनियोगः-

प्रथममध्यमोत्तरचरित्राणां ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसि, नन्दाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः, रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो बीजानि, अग्नि वायु सूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्यजुः सामवेदा ध्यानानि, सकलकामनासिद्धये श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।

इसे पढ़कर जल गिरायें ।

अंगन्यासः-

ॐ ऐं स्लूं अंगुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ ऐं फ्रें तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ ऐं क्रीं मध्यमाभ्यां नमः।

ॐ ऐं म्लूं अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ ऐं घ्रें कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ ऐं श्रूं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

ऋष्यादिन्यासः-

ॐ ऐं स्लूं हृदयाय नमः।

ॐ ऐं फ्रें शिरसे स्वाहा ।

ॐ ऐं क्रीं शिखायै वषट् ।

ॐ ऐं म्लूं कवचाय हुं।

ॐ ऐं घ्रें नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ ऐं श्रूं अस्त्राय फट् ।

।।ध्यानमंत्र।।

या चण्डी मधुकैटभादि दैत्यदलनी या महिषोन्मूलिनी,

या धूम्रेक्षणचण्डमुण्ड मथनी या रक्तबीजाशिनी ।

शक्तिः शुम्भनिशुम्भदैत्यदलनी या सिद्धि लक्ष्मीः परा,

सा दुर्गा नवकोटि मूर्तिसहिता मां पातु विश्वेश्वरी ।।

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती

॥ अथ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती प्रारम्भ

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय १

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

।।प्रथम चरित्र।।

।।प्रथमोऽध्यायः।।

विनियोगः-ॐ प्रथमचरित्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, महाकाली देवता, गायत्री छन्दः,नन्दा शक्तिः, रक्तदन्तिका बीजम्, अग्निस्तत्त्वम्,ऋग्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहाकालीप्रीत्यर्थे प्रथमचरित्रजपे विनियोगः।

ध्यानम्

ॐ खड्‌गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः

शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम् ।

नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां

यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम् ॥

भगवान् विष्णु के सो जानेपर मधु और कैटभ को मारने के लिये कमलजन्मा ब्रह्माजी ने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवीका मैं सेवन करता हूँ। वे अपने दस हाथों में खड्ग , चक्र, गदा , बाण, धनुष , परिध , शूल , भुशुण्डि , मस्तक और शंख धारण करती है । उनके तीन नेत्र हैं । वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान है तथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त हैं ।

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।’ ‘ॐ  बीजाक्षरायै विद्महे तत् प्रधानायै धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात्।

ॐ ऐं श्रीं नमः॥१॥ ॐ ऐं ह्रीं नम:॥२॥ ॐ ऐं क्लीं नम:॥३॥ ॐ ऐं श्रीं नम:॥४॥ ॐ ऐं प्रीं नम:॥५।। ॐ ऐं ह्रां नम:॥६॥ ॐ ऐं ह्रीं नम:॥७॥ ॐ ऐं स्रौं नमः॥८।।  ॐ ऐं प्रें नम:॥९॥ ॐ ऐं  म्रीं नमः॥१०।। ॐ ऐं ह्लीं नमः॥११॥ ॐ ऐं म्लीं नमः॥१२॥ ॐ ऐं स्त्रीं नमः॥१३॥ ॐ ऐं क्रां नमः॥१४॥  ॐ ऐं ह्स्लीं नमः॥१५॥ ॐ ऐं  क्रीं नमः॥१६॥ ॐ ऐं चां नमः॥१७॥  ॐ ऐं भें नमः॥१८॥ ॐ ऐं क्रीं नमः॥१९॥  ॐ ऐं वैं नमः॥२०॥ ॐ ऐं ह्रौं नमः॥२१॥  ॐ ऐं युं नमः॥२२॥ ॐ ऐं जुं नमः॥२३॥ ॐ ऐं हं नमः॥२४॥  ॐ ऐं शं नमः॥25॥ ॐ ऐं रौं नमः॥26॥ ॐ ऐं यं नमः॥2७॥ ॐ ऐं विं नमः॥२८॥ ॐ ऐं वैं नमः॥२९॥  ॐ ऐं चें नमः॥३०॥ ॐ ऐं  ह्रीं नमः॥३१॥  ॐ ऐं क्रूं नमः॥३२॥ ॐ ऐं सं नमः॥३३॥ ॐ ऐं कं नमः॥३४॥  ॐ ऐं श्रां नमः॥३५॥ ॐ ऐं  त्रों नमः॥३६॥ ॐ ऐं स्त्रां नमः॥३७॥ ॐ ऐं ज्यं नमः॥३८॥  ॐ ऐं रौं नमः॥३९॥ ॐ ऐं द्रों नमः॥४०॥ ॐ ऐं ह्रां नमः॥४२॥ ॐ ऐं द्रूं नमः॥४३॥  ॐ ऐं शां नमः॥४४॥ ॐ ऐं म्रीं नमः॥४५॥ ॐ ऐं श्रौं नमः॥४६॥  ॐ ऐं जुं नमः॥४७॥ ॐ ऐं ह्ल्रूं नमः॥४८॥ ॐ ऐं श्रूं नमः॥४९॥ ॐ ऐं प्रीं नमः॥५०॥ ॐ ऐं  रं नमः॥५१॥ ॐ ऐं वं नमः॥५२॥ ॐ ऐं व्रीं नमः॥५३॥ ॐ ऐं ब्लूं नमः॥५४॥ ॐ ऐं स्त्रौं नमः॥५५॥  ॐ ऐं व्लां नमः॥५६॥ ॐ ऐं लूं नमः॥५७॥ ॐ ऐं सां नमः॥५८॥  ॐ ऐं रौं  नमः॥५९॥ ॐ ऐं स्हौं नमः॥६०॥  ॐ ऐं क्रूं नमः॥६१॥ ॐ ऐं शौं नमः॥६२॥  ॐ ऐं श्रौं नमः॥६३॥  ॐ ऐं वं नमः॥६४॥ ॐ ऐं त्रूं  नमः॥६५॥ ॐ ऐं क्रौं नमः॥६६॥ ॐ ऐं क्लूं  नमः॥६७॥ ॐ ऐं क्लीं नमः॥६८॥  ॐ ऐं श्रीं नमः॥६९॥  ॐ ऐं ब्लूं नमः॥७०॥ ॐ ऐं ठां नमः॥७१॥ ॐ ऐं ठ्रीं  नमः॥७२॥ ॐ ऐं स्त्रां नमः॥७३॥  ॐ ऐं स्लूं नमः॥७४॥ ॐ ऐं  क्रैं नमः॥७५॥  ॐ ऐं च्रां नमः॥७६॥ ॐ ऐं फ्रां नमः॥७७॥  ॐ ऐं ज्रीं नमः॥७८॥ ॐ ऐं लूं नमः॥७९॥ ॐ ऐं स्लूं नमः॥८०॥  ॐ ऐं नों नमः॥८१॥ ॐ ऐं स्त्रीं नमः॥८२॥ ॐ ऐं प्रूं नमः॥८३॥  ॐ ऐं स्रूं नमः॥८४॥ ॐ ऐं ज्रां नमः॥८५॥ ॐ ऐं वौं नमः॥८६॥ ॐ ऐं ओं नमः॥८७॥ ॐ ऐं श्रौं नमः॥८८॥  ॐ ऐं ऋं नमः॥८९॥  ॐ ऐं रूं  नमः॥९०॥ ॐ ऐं क्लीं नमः॥९१॥ ॐ ऐं दुं नमः॥९२॥ ॐ ऐं ह्रीं  नमः॥९३॥ ॐ ऐं गूं नमः॥९४॥ ॐ ऐं लां नमः॥९५॥ ॐ ऐं ह्रां नमः॥९६॥ ॐ ऐं गं  नमः॥९७॥ ॐ ऐं ऐं नमः॥९८॥ ॐ ऐं श्रौं नमः॥९९॥  ॐ ऐं जूं नमः॥१००॥  ॐ ऐं डें नमः॥१०१॥ ॐ ऐं श्रौं नमः॥१०२॥  ॐ ऐं छ्रां नमः॥१०३॥ ॐ ऐं क्लीं नमः॥१०४॥

ॐश्रीं क्लीं ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ॥

इति: प्रथमोध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय २

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

।।मध्यम चरित्र।।

।।द्वितीयोऽध्यायः।।

विनियोगः-

ॐ मध्यमचरित्रस्य विष्णुर्ऋषिः, महालक्ष्मीर्देवता, उष्णिक् छन्दः, शाकम्भरी शक्तिः, दुर्गा बीजम्, वायुस्तत्त्वम्, यजुर्वेदः स्वरूपम्, श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं मध्यमचरित्रजपे विनियोगः।

ध्यानम्

ॐ अक्षस्रक्‌परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां

दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम् ।

शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां

सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम् ॥

मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुखवाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ, जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दण्ड, शक्ति, खड्ग, ढ़ाल, शंख, घंटा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं ।

ॐ ऐं श्रौं नमः॥१॥  ॐ ऐं श्रीं नमः॥२॥  ॐ ऐं ह्सूं नमः॥३॥  ॐ ऐं हौं नमः॥४॥  ॐ ऐं ह्रीं नमः॥५॥ ॐ ऐं अं नमः॥६॥  ॐ ऐं क्लीं नमः॥७॥  ॐ ऐं चां नमः॥८॥  ॐ ऐं मुं नमः॥९॥  ॐ ऐं डां नमः॥१०॥ ॐ ऐं यैं नमः॥११॥  ॐ ऐं विं नमः॥१२॥ ॐ ऐं च्चें नमः॥१३॥  ॐ ऐं ईं नमः॥१४॥ ॐ ऐं सौं नमः॥१५॥  ॐ ऐं व्रां नमः॥१६॥  ॐ ऐं त्रौं नमः॥१७॥  ॐ ऐं लूं नमः॥१८॥  ॐ ऐं वं नमः॥१९॥  ॐ ऐं ह्रां नमः॥२०॥ ॐ ऐं क्रीं नमः॥२१॥  ॐ ऐं सौं नमः॥२२॥  ॐ ऐं यं नमः॥२३॥  ॐ ऐं ऐं नमः॥२४॥  ॐ ऐं मूं नमः॥२५॥  ॐ ऐं सं नमः॥२६॥  ॐ ऐं हं नमः॥२७॥  ॐ ऐं सं नमः॥२८॥  ॐ ऐं सों नमः॥२९॥ ॐ ऐं शं नमः॥३०॥ ॐ ऐं हं नमः॥३१॥  ॐ ऐं ह्रौं नमः॥३२॥  ॐ ऐं म्लीं नमः॥३३॥  ॐ ऐं युं नमः॥३४॥ ॐ ऐं त्रूं नमः॥३५॥  ॐ ऐं स्त्रीं नमः॥३६॥ ॐ ऐं आं नम:॥३७॥  ॐ ऐं प्रें नम:॥३८॥  ॐ ऐं शं नमः॥३९॥  ॐ ऐं ह्रां नम:॥४०॥  ॐ ऐं स्लूं नमः॥४१॥  ॐ ऐं ऊं नमः॥४२॥  ॐ ऐं गूं नमः॥४३॥  ॐ ऐं व्यं नमः॥४४॥ ॐ ऐं ह्रं नमः॥४५॥ ॐ ऐं भैं नमः॥४६॥  ॐ ऐं ह्रां नमः॥४७॥  ॐ ऐं क्रूं नमः॥४८॥  ॐ ऐं मूं नमः॥४९॥  ॐ ऐं ल्रीं नमः॥५०॥ ॐ ऐं श्रां नमः॥५१॥  ॐ ऐं द्रूं नमः॥५२॥  ॐ ऐं ह्रूं नमः॥५३॥  ॐ ऐं ह्सौं नमः॥५४॥  ॐ ऐं क्रां नमः॥५५॥ ॐ ऐं स्हौं नमः॥५६॥  ॐ ऐं म्लूं नमः॥५७॥  ॐ ऐं श्रीं नमः॥५८॥  ॐ ऐं गैं नमः॥५९॥  ॐ ऐं क्रीं नमः॥६०॥  ॐ ऐं त्रीं नमः॥६१॥  ॐ ऐं क्सीं नमः॥६२॥  ॐ ऐं कं नमः॥६३॥  ॐ ऐं फ्रौं नमः॥६४॥  ॐ ऐं ह्रीं नमः॥६५॥ ॐ ऐं शां नमः॥६६॥  ॐ ऐं क्ष्म्रीं नमः॥६७॥  ॐ ऐं रों नमः॥६८॥  ॐ ऐं ङूं नमः॥६९॥

 ॐ ऐं क्रीं क्रां सौं स: फट् स्वाहा ॥

 इति द्वितीयोऽध्यायः।।

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ३

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

॥ तृतीयोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां

रक्तालिप्तपयोधरां जपवटीं विद्यामभीतिं वरम् ।

हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं

देवीं बद्धहिमांशुरत्ननमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थिताम् ॥

जगदम्बा के श्रीअंगों की कान्ति उदयकाल के सहस्त्रों सुर्यों के समान है । वे लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गले में मुण्डमाला शोभा पा रही है । दोनों स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप लगा है । वे अपने कर - कमलों में जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं । तीन नेत्रों में सुशोभित मुखारविन्द की बड़ी शोभा हो रही है । उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमल के आसन पर विराजमान हैं । ऐसी देवी को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ ।

ॐ ऐं श्रौं नमः॥१॥  ॐ ऐं क्लीं नमः॥२॥  ॐ ऐं सां नम:॥३॥  ॐ ऐं त्रों नम:॥४॥  ॐ ऐं प्रूं नमः॥५॥ ॐ ऐं म्लीं नमः॥६॥  ॐ ऐं क्रौं नम:॥७॥  ॐ ऐं व्रीं नम:॥८॥  ॐ ऐं स्लीं नम:॥९॥  ॐ ऐं ह्रीं नमः॥१०॥  ॐ ऐं ह्रौं नम:॥११॥ ॐ ऐं श्रां नमः॥१२॥  ॐ ऐं ग्रों नमः॥१३॥  ॐ ऐं क्रूं नम:॥१४॥ ॐ ऐं क्रीं नमः॥१५॥ ॐ ऐं यां नम:॥१६॥  ॐ ऐं द्लूं नमः॥१७॥ ॐ ऐं द्रूं नम:॥१८॥  ॐ ऐं क्षं नमः॥१९..  ॐ ऐं ओं नमः॥२०॥ ॐ ऐं क्रौं नमः॥२१॥  ॐ ऐं क्ष्म्क्ल्रीं नम:॥२२॥ ॐ ऐं वां नम:॥२३॥  ॐ ऐं श्रूं नमः॥२४॥  ॐ ऐं ब्लूं नमः॥२५॥ ॐ ऐं ल्रीं नमः॥२६॥  ॐ ऐं प्रें नम:॥२७॥  ॐ ऐं हूं नम:॥२८॥  ॐ ऐं ह्रौं नमः॥२९॥  ॐ ऐं दें नम:॥३०॥ ॐ ऐं नूं नमः॥३१॥  ॐ ऐं आं नमः॥३२॥  ॐ ऐं फ्रां नम:॥३३॥  ॐ ऐं प्रीं नम:॥३४॥  ॐ ऐं दूं नम:॥३५॥  ॐ ऐं फ्रीं नमः॥३६॥  ॐ ऐं ह्रीं नम:॥३७॥  ॐ ऐं गूं नम:॥३८॥  ॐ ऐं श्रौं नम:॥३९॥  ॐ ऐं सां नम:॥४०॥  ॐ ऐं श्रीं नम:॥४१॥  ॐ ऐं जुं नम:॥४२॥  ॐ ऐं हं नम:॥४३॥  ॐ ऐं सं नम:॥४४॥ 

'ॐ ह्रीं श्रीं कुं फट् स्वाहा'

इति तृतीयोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ४

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

॥चतुर्थोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां

शड्‌खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।

सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं

ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥

सिद्धि की इच्छा रखनेवाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओर से घेरे रहते हैं , उन जया नामवाली दुर्गादेवी का ध्यान करे । उनके श्रीअंगों की आभा काले मेघ के समान श्याम है । वे अपने कटाक्षों से शत्रुसमूह को भय प्रदान करती हैं । उनके मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा शोभा पाती है । वे अपने हाथों में शंख , चक्र , कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं । उनके तीन नेत्र हैं । वे सिंह के कंधेपर चढ़ी हुई हैं और अपने तेज से तीनों लोकोंको परिपूर्ण कर रही हैं ।

ॐ ऐं श्रौं नमः॥१॥ ॐ ऐं सौं नमः॥२॥  ॐ ऐं दों नम:॥३॥  ॐ ऐं प्रें नमः॥४॥  ॐ ऐं यां नम:॥५॥ ॐ ऐं रूं नमः॥६॥  ॐ ऐं भं नम:॥७॥  ॐ ऐं सूं नमः॥८॥  ॐ ऐं श्रां नमः॥९॥  ॐ ऐं औं नमः॥१०॥  ॐ ऐं लूं नमः॥११॥  ॐ ऐं डूं नमः॥१२॥  ॐ ऐं जूं नमः॥१३॥  ॐ ऐं धूं नम:..१४॥  ॐ ऐं त्रें नमः॥१५॥  ॐ ऐं ह्रीं नमः॥१६॥  ॐ ऐं श्रीं नमः॥१७॥  ॐ ऐं ईं नमः॥१८॥ ॐ ऐं ह्रां नमः॥१९॥  ॐ ऐं ह्ल्रुं नमः॥२०॥ ॐ ऐं क्लूं नम:॥२१॥  ॐ ऐं क्रां नमः॥२२॥ ॐ ऐं ल्लूं नम:..२३॥  ॐ ऐं फ्रें नम:॥२४॥  ॐ ऐं क्रीं नम:॥२५॥  ॐ ऐं म्लूं नम:॥२६॥  ॐ ऐं घ्रें नम:॥२७॥ ॐ ऐं श्रौं नम:॥२८॥ ॐ ऐं ह्रौं नम:॥२९॥  ॐ ऐं व्रीं नम:॥३०॥  ॐ ऐं ह्रीं नम:॥३१॥  ॐ ऐं त्रौं नम:॥३२॥  ॐ ऐं हसौं नम:॥३३॥  ऐं गीं नम:॥३४॥  ॐ ऐं यूं नमः ॥३५॥  ॐ ऐं ह्रीं नमः ॥३६॥  ॐ ऐं ह्लूं नमः॥३७॥  ॐ ऐं श्रौं नम:॥३८॥  ॐ ऐं ओं नम:॥३९॥  ॐ ऐं अं नम:॥४०॥ ॐ ऐं म्हौं नम:॥४१॥  ॐ ऐं प्रीं नम:॥४२॥ 

ॐ अं ह्रीं श्रीं हंसः फट् स्वाहा'

इति चतुर्थोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ५

॥बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥उत्तरचरित्र॥

॥पञ्चमोऽध्यायः॥

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीउत्तरचरित्रस्य रूद्र ऋषिः, महासरस्वती देवता, अनुष्टुप् छन्दः, भीमा शक्तिः, भ्रामरी बीजम्, सूर्यस्तत्त्वम्, सामवेदः स्वरूपम्, महासरस्वतीप्रीत्यर्थे उत्तरचरित्रपाठे विनियोगः।

ध्यानम्   

ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्‌खमुसले चक्रं धनुः सायकं

हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।

गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-

पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥

जो अपने कर कमलों में घण्टा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, शरद ऋतु के शोभा सम्पन्न चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर कान्ति है, जो तीनों लोकों की आधारभूता और शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करनेवाली हैं तथा गौरी के शरीरसे जिनका प्राकट्य हुआ है, उन महासरस्वती देवी का मैं निरन्तर भजन करता हूँ ।

ॐ ऐं श्रौं नमः१॥ ॐ ऐं प्रीं नमः२॥ ॐ ऐं आं नम:३। ॐ ऐं ह्रीं नम:४। ॐ ऐं ल्रीं नम:५। ॐ ऐं त्रों नम: । ॐ ऐं क्रीं नम:। ॐ ऐं ह्सौं नमः८। ॐ ऐं ह्रीं नमः। ॐ ऐं श्रीं नमः१०। ॐ ऐं हूं नमः११। ॐ ऐं क्लीं नमः१२।ॐ ऐं रौं' नमः१३। ॐ ऐं स्त्रीं नमः१४। ॐ ऐं म्लीं नमः१५। ॐ ऐं प्लूं नमः१६। ॐ ऐं स्हां नमः१७। ॐ ऐं स्त्रीं नमः१८। ॐ ऐं. ग्लूं नमः१९ । ॐ ऐं व्रीं नम:२०। ॐ ऐं सौं नम:२१ । ॐ ऐं लूं नमः२२। ॐ ऐं ल्लूं नमः२३। ऐं द्रां नमः२४। ॐ ऐं क्सां नम:२५ । ॐ ऐं क्ष्म्रीं नम:२६। ॐ ऐं ग्लौं नमः२७। ॐ ऐं स्कूं नमः२८। ॐ ऐं त्रूं नम:२९ । ॐ ऐं स्क्लूं नमः३०। ॐ ऐं क्रौं नम:३१ । ॐ ऐं छ्रीं नम:३२॥ ॐ ऐं म्लूं नम:३३ । ॐ ऐं क्लूं नमः३४। ॐ ऐं शां नम:३५। ॐ ऐं ल्हीं नम:३६ । ॐ ऐं स्त्रूं नम:३७। ॐ ऐं ल्लीं नमः३८॥ ॐ ऐं लीं नम:३९। ॐ ऐं सं नम:४०। ॐ ऐं लूं नमः ४१। ॐ ऐं ह्सूं नमः४२। ॐ ऐं श्रूं नम:४३। ॐ ऐं जूं नम:४४। ॐ ऐं ह्स्ल्रीं नम:४५। ॐ ऐं स्कीं नम:४६ । ॐ ऐं क्लां नम:४७। ॐ ऐं श्रूं नम:४८। ॐ ऐं हं नम:४९। ॐ ऐं ह्लीं नम:५०। ॐ ऐं क्स्रूं नमः५१। ॐ ऐं द्रौं नम:५२। ॐ ऐं क्लूं नम:५३। ॐ ऐं गां नम:५४। ॐ ऐ सं नम:५५। ॐ ऐं ल्स्रां नम:५६। ॐ ऐं फ्रीं नम:५७ । ॐ ऐं स्लां नम:५८। ॐ ऐं ल्लूं नमः५९। ॐ ऐं फ्रें नमः६०। ॐ ऐं ओं नमः६१ । ॐ ऐं स्म्लीं नमः६२। ॐ ऐं ह्रां नम:६३। ॐ ऐं ओं नम:६४। ॐ ऐं ह्लूं नम:६५। ॐ ऐं हूं नम:६६। ॐ ऐं नं नम:६७। ॐ ऐं स्रां नम:६८। ॐ ऐं वं नमः६९। ॐ ऐं मं नम:७०। ॐ ऐं म्क्लीं नम:७१ । ॐ ऐं शां नम:७२। ॐ ऐं लं नम:७३। ॐ ऐं भैं नम:७४। ॐ ऐं ल्लूं नम:७५ । ॐ ऐं हौं नम:७६।। ॐ ऐं ईं नम:७७। ॐ ऐं चें नम:७८। ॐ ऐं ल्क्रीं नम:७९। ॐ ऐं ह्ल्रीं नम:८०। ॐ ऐं क्ष्म्ल्रीं नम:८१। ॐ ऐं यूं नमः८२। ॐ ऐं श्रौं नम:८३। ॐ ऐं ह्रौं नमः८४। ॐ ऐं भ्रूं नमः८५। ॐ ऐं क्स्त्रीं नमः८६ । ॐ ऐं आं नमः८७। ॐ ऐं क्रूं नम:८८। ॐ ऐं त्रूं नमः८९। ॐ ऐं डूं नम:९०। ॐ ऐं जां नम:९१ । ॐ ऐं ह्ल्रूं नम:९२। ॐ ऐं फ्रौं नमः९३। ॐ ऐं क्रौं नम:९४। ॐ ऐं किं नम:९५। ॐ ऐं ग्लूं नमः९६ ।ॐ ऐं छ्रक्लीं नम:९७। ॐ ऐं रं नमः९८॥ ॐ ऐं क्सैं नमः९९। ॐ ऐं स्हुं नमः१००। ॐ ऐं श्रौं नमः१०१। ॐ ऐं ह्श्रीं नमः१०२। ॐ ऐं ओं नमः१०३। ॐ ऐं लूं नमः१०४। ॐ ऐं ल्हूं नमः१०५। ॐ ऐं ल्लूं नमः१०६। ॐ ऐं स्क्रीं नम:१०७। ॐ ऐं स्स्रौं नमः१०८। ॐ ऐं स्श्रूं नमः१०९। ॐ ऐं क्ष्म्क्लीं नम:११०। ॐ ऐं व्रीं नम:१११। ॐ ऐं सीं नमः११२। ॐ ऐं भ्रूं नमः११३। ॐ ऐं लां नमः११४। ॐ ऐं श्रौं नमः११५। ॐ ऐं स्हैं नमः११६ । ॐ ऐं ह्रीं नमः११७। ॐ ऐं श्रीं नमः११८। ॐ ऐं फ्रें नमः११९। ॐ ऐं रूं नमः१२०॥ ॐ ऐं च्छूं नमः१२१। ॐ ऐं ल्हूं नमः१२२। ॐ ऐं कं नमः१२३। ॐ ऐं द्रें नमः१२४। ॐ ऐं श्रीं नमः१२५। ॐ ऐं सां नमः१२६ । ॐ ऐं ह्रीं नमः१२७। ॐ ऐं ऐं नमः१२८। ॐ ऐं स्क्लीं नमः१२९॥

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा॥

इति पंचमोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ६

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

॥षष्ठोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ नागाधीश्वसरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली-

भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम् ।

मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां

सर्वज्ञेश्वारभैरवाङ्‌कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये ॥

मैं सर्वज्ञेश्वर भैरव के अंक में निवास करनेवाली परमोत्कृष्ट पद्मावती देवी का चिन्तन करता हूँ । वे नागराज के आसन पर बैठी हैं , नागों के फणों में सुशोभित होनेवाली मणियों की विशाल माला से उनकी देहलता उद्भासित हो रही है । सुर्य के समान उनका तेज है , तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं । वे हाथों में माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं तथा उनके मस्तक में अर्धचन्द्र का मुकुट सुशोभित है।

ॐ ऐं श्रौं नमः। ॐ ऐं ओं नमः। ॐ ऐं त्रूं नम:। ॐ ऐं ह्रौं नम:४। ॐ ऐं क्रौं नम:५। ॐ ऐं श्रौं नमः । ॐ ऐं त्रीं नम:। ॐ ऐं क्लीं नम:८ । ॐ ऐं प्रीं नम:। ॐ ऐं ह्रीं नम:१०। ॐ ऐं ह्रौं नम:११। ॐ ऐं श्रौं नमः१२। ॐ ऐं ऐं नम:१३। ॐ ऐं ओं नमः१४। ॐ ऐं श्रीं नमः१५। ॐ ऐं क्रां नमः१६ । ॐ ऐं हूं नम:१७। ॐ ऐं छ्रां नमः१८। ॐ ऐं क्ष्म्क्ल्रीं नमः१९। ॐ ऐं ल्लूं नमः२०। ॐ ऐं सौं नमः२१। ॐ ऐं ह्लौं नमः२२। ॐ ऐं क्रूं नमः२३। ॐ ऐं सौं नम:२४।

'ॐ श्रीं यं ह्रीं क्लीं ह्रीं फट् स्वाहा ॥

इति षष्ठोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ७

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥सप्तमोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्‌गीं

न्यस्तैकाङ्‌घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम् ।

कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां

मातङ्‌गीं शङ्खमपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम् ॥

मैं मातंगी देवी का ध्यान करता हूँ । वे रत्नमयी सिंहासन पर बैठकर पढ़ते हुए तोते का मधुर शब्द सुन रही हैं । उनके शरीर का वर्ण श्याम है । वे अपना एक पैर कमलपर रखे हुए हैं और मस्तकपर अर्धचन्द्र धारण करती हैं तथा कह्लार- पुष्पों की माला धारण किये वीणा बजाती हैं । उनके अंग में कसी हुई चोली शोभा पा रही है । वे लाला रंग की साड़ी पहने हाथ में शंखमय पात्र लिये हुए हैं । उनके वदन पर मधु का हलका- हलका प्रभाव जान पड़ता है और ललाट में बेंदी शोभा दे रही है ।

ॐ ऐं श्रौं नमः। ॐ ऐं कूं नमः। ॐ ऐं ह्लीं नम:३। ॐ ऐं ह्रं नम:४। ॐ ऐं मूं नम:। ॐ ऐं त्रौं नमः६ । ॐ ऐं ह्रौं नम:। ॐ ऐं ओं नमः । ॐ ऐं ह्सूं नमः। ॐ ऐं क्लूं नमः१०। ॐ ऐं कें नमः११। ॐ ऐं नें नमः१२। ॐ ऐं लूं नमः१३। ॐ ऐं ह्स्लीं नमः१४। ॐ ऐं प्लूं नमः१५। ॐ ऐं शां नमः१६। ॐ ऐं स्लूं नमः१७। ॐ ऐं प्लीं नमः१८। ॐ ऐं प्रैं नमः१९। ॐ ऐं अं नम:२० । ॐ ऐं औं नम:२१ । ॐ ऐं म्ल्रीं नम:२२। ॐ ऐं श्रां नम:२३। ॐ ऐं सौं नम:२४। ॐ ऐं श्रौं नम:२५। ॐ ऐं प्रीं नम:२६ । ॐ ऐं ह्स्व्रीं नम:२७।

 'ॐरं रं रं कं कं कं जं जं जं चामुण्डायै फट् स्वाहा'

इति सप्तमोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ८

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥अष्टमोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ अरुणां करुणातरङ्‌गिताक्षीं

धृतपाशाङ्‌कुशबाणचापहस्ताम् ।

अणिमादिभिरावृतां मयूखै-

रहमित्येव विभावये भवानीम् ॥

मैं अणिमा आदि सिद्धिमयी किरणों से आवृत भवानी का ध्यान करता हूँ । उनके शरीर का रंग लाल है, नेत्रों में करूणा लहरा रही है तथा हाथों में पाश, अंकुश, बाण और धनुष शोभा पाते हैं ।

ॐ ऐं श्रौं नमः१ । ॐ ऐं म्ह्ल्रीं नम:२। ॐ ऐं प्रूं नम:३। ॐ ऐं ऐं नम:४। ॐ ऐं क्रों नम:५। ॐ ऐं ईं नमः६। ॐ ऐं ऐं नम:७। ॐ ऐं ल्रीं नमः८। ॐ ऐं फ्रौं नमः९। ॐ ऐं म्लूं नमः१०॥ ॐ ऐं नों नमः११। ॐ ऐं हूं नमः१२। ॐ ऐं फ्रीं नमः१३। ॐ ऐं ग्लौं नमः१४। ॐ ऐं स्मौं नमः१५। ॐ ऐं सौं नमः१६ । ॐ ऐं श्रीं नमः१७। ॐ ऐं स्हौं नमः१८। ॐ ऐं ख्सें नमः१९। ॐ ऐं क्ष्म्लीं नम:२०। ॐ ऐं ह्रां नम:२१। ॐ ऐं वीं नम:२२ । ॐ ऐं लूं नम:२३। ॐ ऐं ल्सीं नमः२४। ॐ ऐं ब्लों नमः२५। ॐ ऐं त्स्रों नमः२६ । ॐ ऐं ब्रूं नम:२७। ॐ ऐं श्ल्कीं नमः२८॥ ॐ ऐं श्रूं नम:२९। ॐ ऐं ह्रीं नमः३०। ॐ ऐं शीं नम:३१। ॐ ऐं क्लीं नम:३२। ॐ ऐं क्लौं नमः३३। ॐ ऐं प्रूं नम:३४। ॐ ऐं ह्रूं नम:३५। ॐ ऐं क्लूं नम:३६ । ॐ ऐं तौं नम:३७। ॐ ऐं म्लूं नमः३८। ॐ ऐं हं नम:३९। ॐ ऐं स्लूं नमः४०॥ ॐ ऐं औं नम:४१। ॐ ऐं ल्हीं नम:४२॥ ॐ ऐं.श्ल्रीं नम:४३॥ ॐ ऐं यां नम:४४। ॐ ऐं थ्लीं नम:४५। ॐ ऐं ल्हीं नम:४६ । ॐ ऐं ग्लौं नम:४७। ॐ ऐं ह्रौं नम:४८। ॐ ऐं प्रां नम:४९। ॐ ऐं क्रीं नम:५०। ॐ ऐं क्लीं नम:५१। ॐ ऐं नस्लूं नम:५२। ॐ ऐं हीं नम:५३। ॐ ऐं ह्लौं नमः५४। ॐ ऐं ह्रैं नम:५५। ॐ ऐं भ्रं नम:५६। ॐ ऐं सौं नम:५७। ॐ ऐं श्रीं नम:५८ । ॐ ऐं सूं नमः५९। ॐ ऐं द्रौं नम:६०। ॐ ऐं स्स्रां नमः६१।  ॐ ऐं ह्स्लीं नम:६२। ॐ ऐं स्ल्ल्रीं नमः६३।

'ॐ शां सं श्रीं श्रं अं अः क्लीं ह्लीं फट् स्वाहा'

इत्यष्टमोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ९

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥नवमोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ बन्धूककाञ्चननिभं रुचिराक्षमालां

पाशाङ्कुशौ च वरदां निजबाहुदण्डैः।

बिभ्राणमिन्दुशकलाभरणं त्रिनेत्र-

मर्धाम्बिकेशमनिशं वपुराश्रयामि ॥

मैं अर्धनारीश्वर के श्रीविग्रह की निरन्तर शरण लेता हूँ । उसका वर्ण बंधूक पुष्प और सुवर्ण के समान रक्त- पीतमिश्रित है। वह अपनी भुजाओं में सुन्दर अक्षमाला, पाश, अंकुश और वरद- मुद्रा धारण करता है; अर्धचन्द्र उसका आभूषण है तथा वह तीन नेत्रों से सुशोभित है ।

ॐ ऐं रौं नमः। ॐ ऐं क्लीं नमः । ॐ ऐं म्लौं नम:। ॐ ऐं श्रौं नम:४। ॐ ऐं ग्लीं नम:५। ॐ ऐं ह्रौं नम:६ । ॐ ऐं ह्सौं नम:। ॐ ऐं ईं नम:८ । ॐ ऐं ब्रूं नम:। ॐ ऐं श्रां नमः१०। ॐ ऐं लूं नम:११। ॐ ऐं आं नमः१२। ॐ ऐं श्रीं नमः१३। ॐ ऐं क्रौं नमः१४। ॐ ऐं प्रूं नमः१५। ॐ ऐं क्लीं नम:१६ । ॐ ऐं भ्रं नमः१७। ॐ ऐं ह्रौं नम:१८। ॐ ऐं क्रीं नम:१९। ॐ ऐं म्लीं नम:२०॥ ॐ ऐं ग्लौं नमः२१। ॐ ऐं ह्सूं नम:२२ । ॐ ऐं ल्पीं नम:२३। ॐ ऐं ह्रौं नम:२४। ॐ ऐं ह्स्रां नम:२५। ॐ ऐं स्हौं नमः२६। ॐ ऐं ल्लूं नम:२७। ॐ ऐं क्स्लीं नम:२८। ॐ ऐं श्रीं नम:२९। ॐ ऐं स्तूं नमः३०। ॐ ऐं च्रें नम:३१। ॐ ऐं वीं नम:३२। ॐ ऐं क्ष्लूं नमः३३। ॐ ऐं श्लूं नम:३४। ॐ ऐं क्रूं नम:३५। ॐ ऐं क्रां नमः३६ । ॐ ऐं ह्रौं नमः३७। ॐ ऐं क्रां नम:३८। ॐ ऐं स्क्ष्लीं नम:३९। ॐ ऐं सूं नमः४०। ॐ ऐं फ्रूं नम:४१।।

'ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं फट् स्वाहा'

इति नवमोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय १०

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती ॥

॥दशमोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ उत्तप्तहेमरुचिरां रविचन्द्रवह्नि-

नेत्रां धनुश्शरयुताङ्‌कुशपाशशूलम् ।

रम्यैर्भुजैश्चर दधतीं शिवशक्तिरूपां

कामेश्वभरीं हृदि भजामि धृतेन्दुलेखाम् ॥

मैं मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करनेवाली शिवशक्ति स्वरूपा भगवती कामेश्वरी का हृदय में चिन्तन करता हूँ । वे तपाये हुए सुवर्ण के समान सुन्दर हैं । सुर्य, चन्द्रमा और अग्नि- ये ही तीन उनके नेत्र हैं तथा वे अपने मनोहर हाथों में धनुष- बाण, अंकुश, पाश और शूल धारण किये हुए हैं ।

ॐ ऐं श्रौं नमः। ॐ ऐं ह्रीं नम:। ॐ ऐं ब्लूं नमः३। ॐ ऐं ह्रीं नम:४। ॐ ऐं म्लूं नमः। ॐ ऐं श्रौं नम:६ । ॐ ऐं ह्रीं नम:। ॐ ऐं ग्लीं नम:८। ऐं श्रौं नमः। ॐ ऐं ध्रूं नमः१०। ॐ ऐं हुं नमः११। ॐ ऐं द्रौं नमः१२। ॐ ऐं श्रीं नमः१३।  ॐ ऐं श्रूं नमः१४। ऐ ब्रूं नमः१५। ॐ ए फ्रें नमः१६। ऐं ह्रां नमः१७। ॐ ऐं जुं नमः१८। ॐ ऐं स्रौं नमः१९। ॐ ऐं स्लूं नमः२० । ॐ ऐं प्रें नम:२१ । ॐ ऐं ह्स्वां नम:२२॥ ॐ ऐं प्रीं नम:२३। ॐ ऐं फ्रां नमः२४। ॐ ऐं क्रीं नमः२५॥ ॐ ऐं श्रीं नम:२६ । ॐ ऐं क्रां नमः२७। ॐ ऐं सः नम:२८। ॐ ऐं क्लीं नम:२९। ॐ ऐं व्रें नमः३०। ॐ ऐं ईं नमः३१। ॐ ऐं ज्स्ह्ल्रां नमः३२॥ ॐ ऐं ञ्स्ह्लीं नमः३३। 

ॐ ऐं ह्रीं नमः क्लीं ह्रीं फट् स्वाहा'

इति दशमोऽध्यायः ॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय ११

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥एकादशोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकिरीटां

तुङ्‌गकुचां नयनत्रययुक्ताम् ।

स्मेरमुखीं वरदाङ्‌कुश-

पाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

मैं भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता हूँ । उनके श्रीअंगों की आभा प्रभात काल के सुर्य के समान है और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है । वे उभरे हुए स्तनों और तीन नेत्रों से युक्त हैं । उनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती है और हाथों में वरद, अंकुश, पाश एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं ।

ॐ ऐं श्रौं नम:। ॐ ऐं क्रूं नमः। ॐ ऐं श्रीं नम:३। ॐ ऐं ल्लीं नम:४। ॐ ऐं प्रें नम:५। ॐ ऐं सौं नमः६ । ॐ ऐं स्हौं नम:। ॐ ऐं श्रूं नमः८। ॐ ऐं क्लीं नम:। ॐ ऐं स्क्लीं नमः१०। ॐ ऐं प्रीं नम:११। ॐ ऐं ग्लौं नमः१२। ॐ ऐ ह्ह्रीं नमः१३। ॐ ऐं स्तौं नमः१४। ॐ ऐं क्लीं नम:१५। ॐ ऐं म्लीं नमः१६ । ॐ ऐं स्तूं नमः१७। ॐ ऐं ज्स्ह्रीं नमः१८। ॐ ऐं फ्रूं नमः१९। ॐ ऐं क्रूं नम:२०। ॐ ऐं ह्रीं नमः२१ । ॐ ऐं ल्लूं नम:२२ । ॐ ऐं क्ष्म्रीं नम:२३। ॐ ऐं श्रूं नम:२४। ॐ ऐं इं नमः२५। ॐ ऐं जुं नमः२६ । ॐ ऐं त्रैं नम:२७। ॐ ऐं द्रूं नमः२८। ॐ ऐं ह्रौं नम:२९। ॐ ऐं क्लीं नम:३०॥ ॐ ऐं सूं नम:३१ । ॐ ऐं हौं नमः३२। ॐ ऐं श्व्रं नमः३३। ॐ ऐं व्रूं नम:३४। ॐ ऐं फां नम:३५। ॐ ऐं ह्रीं नम:३६ । ॐ ऐं लं नम:३७। ॐ ऐं ह्सां नमः३८। ॐ ऐं सें नम:३९। ॐ ऐं ह्रीं नम:४०। ॐ ऐं ह्रौं नम:४१। ॐ ऐं विं नम:४२। ॐ ऐं प्लीं नम:४३। ॐ ऐं क्ष्म्क्लीं नम:४४। ॐ ऐं त्स्रां नम:४५। ॐ ऐं प्रं नम:४६ । ॐ ऐं म्लीं नम:४७। ॐ ऐं स्रूं नम:४८। ॐ ऐं क्ष्मां नम:४९। ॐ ऐं स्तूं नम:५०। ॐ ऐं स्ह्रीं नम:५१। ॐ ऐं थ्प्रीं नम:५२। ॐ ऐं क्रौं नम:५३। ॐ ऐं श्रां नम:५४। ॐ ऐं म्लीं नम:५५।

'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सौं नमः फट् स्वाहा'

इति एकादशोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय १२

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥द्वादशोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां

कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम् ।

हस्तैश्च क्रगदासिखेटविशिखांश्चातपं गुणं तर्जनीं

बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ॥

मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवी का ध्यान करता हूँ, उनके श्रीअंगों की प्रभा बिजली के समान है । वे सिंह के कंधेपर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं । हाथों में तलवार और ढ़ाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवा में खड़ी हैं ।वे अपने हाथों में चक्र, गदा, तलवार, ढ़ाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं । उनका स्वरूप अग्निमय है तथा वे माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करती हैं ।

ॐ ऐं ह्रीं नमः। ॐ ऐ ओं नम:२। ॐ ऐं श्रीं नम:। ॐ ऐं ईं नम:४। ॐ ऐं क्लीं नम:। ॐ ऐं क्रूं नमः६। ॐ ऐं श्रूं नम:। ॐ ऐं प्रां नमः८। ॐ ऐं क्रूं नमः। ॐ ऐं दिं नमः१०। ॐ ऐं फ्रें नमः११। ॐ ऐं हं नम:१२। ॐ ऐं सः नमः१३। ॐ ऐं चें नम:१४। ॐ ऐं सूं नमः१५। ॐ ऐं प्रीं नमः१६ । ॐ ऐं ब्लूं नमः१७। ॐ ऐं आं नमः१८। ॐ ऐं औं नमः१९। ॐ ऐं ह्रीं नमः२० । ॐ ऐं क्रीं नम:२१ । ॐ ऐं द्रां नमः२२॥ ॐ ऐं श्रीं नम:२३। ॐ ऐं स्लीं नम:२४। ॐ ऐं क्लीं नम:२५। ॐ ऐं स्लूं नम:२६ । ॐ ऐं ह्रीं नम:२७। ॐ ऐं ब्लीं नम:२८। ॐ ऐं त्रों नमः२९। ॐ ऐं ओं नमः३० । ॐ ऐं श्रौं नम:३१। ॐ ऐं ऐं नम:३२। ॐ ऐं प्रें नम:३३। ॐ ऐं द्रूं नम:३४। ॐ ऐं क्लूं नम:३५। ॐ ऐं औं नम:३६ । ॐ ऐं सूं नम:३७। ॐ ऐं चें नम:३८। ॐ ऐं हैं नम:३९। ॐ ऐं प्लीं नम:४०। ॐ ऐं क्षां नम:४१ ।

'ॐ यं यं यं रं रं रं ठं ठं ठं फट् स्वाहा'

इति द्वादशोऽध्यायः॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती अध्याय १३

॥ बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

॥त्रयोदशोऽध्यायः॥

ध्यानम्

ॐ बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम् ।

पाशाङ्‌कुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे ॥

जो उदयकाल के सुर्यमण्डलकी- सी कान्ति धारण करनेवाली हैं, जिनके चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं तथा जो अपने हाथों में पाश, अंकुश, वर एवं अभय की मुद्रा धारण किये रहती हैं, उन शिवादेवी का मैं ध्यान करता हूँ ।

ॐ ऐं श्रौं नमः। ॐ ऐं व्रीं नमः। ॐ ऐं ओं नमः३। ॐ ऐं औं नम:४। ॐ ऐं ह्रां नम:५। ॐ श्रीं नम:। ॐ ऐं श्रां नम:। ॐ ऐं ओं नमः८। ॐ ऐं प्लीं नम:। ॐ ऐं सौं नमः१०। ॐ ऐं ह्रीं नम:११। ॐ ऐं क्रीं नमः१२। ॐ ऐं ल्लूं नमः१३। ॐ ऐं क्लीं नमः१४। ॐ ऐं ह्रीं नमः१५। ॐ ऐं प्लीं नमः१६। ॐ ऐं श्रीं नम:१७। ॐ ऐं ल्लीं नमः१८। ॐ ऐं श्रूं नमः१९। ॐ ऐं ह्रीं नम:२०। ॐ ऐं त्रूं नम:२१ । ॐ ऐं हूं नम:२२। ॐ ऐं प्रीं नम:२३। ॐ ऐं ओं नमः२४। ॐ ऐं सूं नम:२५। ॐ ऐं श्रीं नम:२६ । ॐ ऐं ह्लौं नमः२७। ॐ ऐं यौं नमः२८ । ॐ ऐं ओं नम:२९॥

'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' स्वाहा॥

इति त्रयोदशोऽध्यायः॥

इसके बाद पुनः सप्तशती न्यास आदि करने उपरांत नवार्ण मंत्र का जप करके देवी सूक्तम् का पाठ करें।

॥ अथ देवी सूक्तम् ॥                                                                      

ॐ ऐं ह्रीं नमः॥१॥ ॐ ऐं श्रीं नमः॥२॥  ॐ ऐं हूं नमः॥३॥  ॐ ऐं क्लीं नमः॥४॥ ॐ ऐं रौं' नमः॥५॥ ॐ ऐं स्त्रीं नमः॥६॥  ॐ ऐं म्लीं नमः॥७॥  ॐ ऐं प्लूं नमः॥८॥  ॐ ऐं स्हां नमः॥९॥  ॐ ऐं स्त्रीं नमः॥१०॥  ॐ ऐं. ग्लूं नमः॥११॥  ॐ ऐं व्रीं नम:॥१२॥  ॐ ऐं सौं नम:॥१३॥  ॐ ऐं लूं नमः॥१४॥  ॐ ऐं ल्लूं नमः॥१५॥  ॐ ऐं द्रां नमः॥१६॥  ॐ ऐं क्सां नम:॥१७॥  ॐ ऐं क्ष्म्रीं नम:॥१८॥  ॐ ऐं ग्लौं नमः॥१९॥  ॐ ऐं स्कूं नमः॥२०॥ ॐ ऐं त्रूं नम:॥२१॥  ॐ ऐं स्क्लूं नमः॥२२॥  ॐ ऐं क्रौं नम:॥२३॥  ॐ ऐं छ्रीं नम:॥२४॥  ॐ ऐं म्लूं नम:॥२५॥ ॐ ऐं क्लूं नमः॥२६॥  ॐ ऐं शां नम:॥२७॥  ॐ ऐं ल्हीं नम:॥२८॥  ॐ ऐं स्त्रूं नम:॥२९॥  ॐ ऐं ल्लीं नमः॥३०॥ ॐ ऐं लीं नम:॥३१॥  ॐ ऐं सं नम:॥३२॥  ॐ ऐं लूं नमः ॥३३॥  ॐ ऐं ह्सूं नमः॥३४॥  ॐ ऐं श्रूं नम:॥३५॥  ॐ ऐं जूं नम:॥३६॥  ॐ ऐं ह्स्ल्रीं नम:॥३७॥  ॐ ऐं स्कीं नम:॥३८॥  ॐ ऐं क्लां नम:॥३९॥  ॐ ऐं श्रूं नम:॥४०॥ ॐ ऐं हं नम:॥४१॥  ॐ ऐं ह्लीं नम:॥४२॥  ॐ ऐं क्स्रूं नमः॥४३॥  ॐ ऐं द्रौं नम:॥४४॥  ॐ ऐं क्लूं नम:॥४५॥ ॐ ऐं गां नम:॥४६॥  ॐ ऐ सं नम:॥४७॥  ॐ ऐं ल्स्रां नम:॥४८॥  ॐ ऐं फ्रीं नम:॥४९॥  ॐ ऐं स्लां नम:॥५०॥ ॐ ऐं ल्लूं नमः॥५१॥  ॐ ऐं फ्रें नमः॥५२॥  ॐ ऐं ओं नमः॥५३॥  ॐ ऐं स्म्लीं नमः॥५४॥  ॐ ऐं ह्रां नम:॥५५॥ ॐ ऐं ओं नम:॥५६॥  ॐ ऐं ह्लूं नम:॥५७॥  ॐ ऐं हूं नम:॥५८॥  ॐ ऐं नं नम:॥५९॥  ॐ ऐं स्रां नम:॥६०॥ ॐ ऐं वं नमः॥६१॥  ॐ ऐं मं नम:॥६२॥  ॐ ऐं म्क्लीं नम:॥६३॥  ॐ ऐं शां नम:॥६४॥  ॐ ऐं लं नम:॥६५॥ ॐ ऐं भैं नम:॥६६॥  ॐ ऐं ल्लूं नम:॥६७॥ ॐ ऐं हौं नम:॥६८॥  ॐ ऐं ईं नम:॥६९॥  ॐ ऐं चें नम:॥७०॥ ॐ ऐं ल्क्रीं नम:॥७१॥  ॐ ऐं ह्ल्रीं नम:॥७२॥ ॐ ऐं क्ष्म्ल्रीं नम:॥७३॥  ॐ ऐं यूं नमः॥७४॥

इति देवी सूक्तम्॥

॥ हवन विधि-बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक बीज मंत्र के अंत में स्वाहा लगाकर हवन करें तथा प्रथम अध्याय के अंत में निम्न मंत्र से हवन करें-

ॐ ऐं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै वाग्बीजाधिष्ठात्र्यै महाकालिकायै नमः अहमाहुति समर्पयामि स्वाहा ।

द्वितीय से लेकर चतुर्थ  अध्याय तक  के अंत में निम्न मंत्र से हवन करें-

ॐ ह्रीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै  हृल्लेखाबीजाधिष्ठात्र्यै महालक्ष्म्यै नमः अहमाहुति समर्पयामि स्वाहा ।

पंचम से लेकर त्रयोदश अध्याय तक के अंत में निम्न मंत्र से हवन करें-

ॐ क्लीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै कामबीजाधिष्ठात्र्यै महासरस्व्त्यै नमः अहमाहुति समर्पयामि स्वाहा । ॥

इति: श्री बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती सम्पूर्ण ॥

बीजात्मक तंत्र दुर्गा सप्तशती  Bijatmak tantra  Durga saptashati को pdf में download करने के लिए click करें-   Downlod 

1 comment:

  1. कर्मकाण्ड के लिए अक्सर हम आपके ब्लॉग को विजिट करते हैं, और यहाँ पर सबसे अलग और सटीक जानकारी मुझे मिलती है। बीजात्मक तंत्र श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का एक प्रमुख अंग है, इसे गुप्त नवरात्रि में साधक विशेष रूप से पढ़ते हैं।

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