॥ श्रीसूक्तम् ॥ shri suktam
श्रीसूक्तम् - वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। श्री अर्थात लक्ष्मी। वेद मंत्रों के ऐसा समूह जिसमें धन-धान्य की अधिष्ठात्री माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए स्तुति किया जाता है, श्रीसूक्तम् या श्री सूक्त कहलाता है। श्रीसूक्तम् देवी लक्ष्मी की आराधना करने हेतु उनको समर्पित मंत्र हैं। इसे 'लक्ष्मी सूक्तम्' भी कहते हैं। यह सूक्त ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त (जो की पांचवें मण्डल के अन्त में उपलब्ध होता है) के अन्तर्गत आता है। जिस प्रकार किसी भी पूजन पद्धति में षोडशोपचार(१६) विधि से किसी भी देवी-देवता का पुजा किया जाता है। उसी प्रकार श्रीसूक्तम् में मन्त्रों की संख्या पन्द्रह है। सोलहवें मन्त्र में फलश्रुति है। अनेक देवी पूजन में इन १६ ऋचाओं को ही मंत्र रूप से पुजा किया जाता है। इसके बाद में ग्यारह मन्त्र परिशिष्ट के रूप में उपलब्ध होते हैं। इनको 'लक्ष्मीसूक्त' के नाम से जाना जाता है। श्रीसूक्तम् का चौथा मन्त्र बृहती छन्द में है। पांचवाँ और छटा मन्त्र त्रिष्टुप छन्द में है। अन्तिम मन्त्र का छन्द प्रस्तारपंक्ति है । शेष मन्त्र अनुष्टुप छन्द में है। श्रीशब्दवाच्या लक्ष्मी इस सूक्त की देवता हैं। श्रीसूक्तम् का विनियोग लक्ष्मी के आराधना, जप, हवन आदि में किया जाता है। महर्षि बोधायन, वशिष्ठ आदि ने इसके विशेष प्रयोग बतलाये हैं । श्रीसूक्तम् की फलश्रुति में भी इस सूक्त के मन्त्रों का जप तथा इन मन्त्रों के द्वारा हवन करने को कहा गया है। आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत ये चार श्रीसूक्तम् के ऋषि हैं। इन चारों को श्री का पुत्र बताया गया है। श्रीपुत्र हिरण्यगर्भ को भी श्रीसूक्तम् का ऋषि माना जाता है। जिसे लिखा गया है कि-
आनन्द: कर्दम:
श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुता: । ऋषय श्रिय: पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मता: ।।
श्रीसूक्तम् के मन्त्रों का विषय इस प्रकार है
१-भगवान से
लक्ष्मी को अभिमुख करने की प्रार्थना
२-भगवान् से
लक्ष्मी को अभिमुख रखने की प्रार्थना
३-लक्ष्मी से
सान्निध्य के लिये प्रार्थना
४-लक्ष्मी का
आवाहन
५-लक्ष्मी की
शरणागति एवं अलक्ष्मीनाश की प्रार्थना
६-अलक्ष्मी और
उसके सहचारियों के नाश की प्रार्थना
७-माङ्गल्यप्राप्ति
की प्रार्थना
८-अलक्ष्मी और
उसके कार्यों का विवरण देकर उसके नाश की प्रार्थना
९-लक्ष्मी का
आवाहन
१०-मन,
वाणी आदि की
अमोघता तथा समृद्धि की स्थिरता के लिये प्रार्थना
११-कर्दम
प्रजापति से प्रार्थना
१२-लक्ष्मी के
परिकर से प्रार्थना
१३- लक्ष्मी
के नित्य सान्निध्य के लिये पुनः भगवान से प्रार्थना
१४-पुनः
लक्ष्मी के नित्य सान्निध्य के लिये भगवान से प्रार्थना
१५-भगवान से
लक्ष्मी के आभिमुख्य की प्रार्थना
१६-फलश्रुति
परिशिष्ट
(लक्ष्मीसूक्त (श्रीसूक्तम् )) के मन्त्रों के विषय हैं-
१-सौख्य की
याचना
२-समस्त
कामनाओं की पूर्ति की याचना
३-सान्निध्य
की याचना
४-समृद्धि के
स्थायित्व के लिये प्रार्थना
५-देवताओं में
लक्ष्मी के वैभव का विस्तार
६-सोम की
याचना
७-मनोविकारों
का निषेध
८-लक्ष्मी की
प्रसन्नता के लिये प्रार्थना
९-लक्ष्मी की
वन्दना
१०-लक्ष्मीगायत्री
११-अभ्युदय के
लिये प्रार्थना
धन व दरिद्रता सम्बंधी समस्त दोषो का
शमन करने के लिए पढ़े- कनकधारा स्तोत्र
श्रीदेवी के
नाम - श्रीसूक्तम् के १५ मन्त्रों में श्री लक्ष्मी के ये नाम मिलते हैं-
१-हिरण्यवर्णा,
हरिणी,
सुवर्णरजतस्रजा,
चन्द्रा,
हिरण्मयी,
लक्ष्मी
२-अनपगामिनी
३-अश्वपूर्वा,
रथमध्या,
हस्तिनादप्रयोधिनी,
श्री,
देवी
४- कासोस्मिता,
हिरण्यप्राकारा,
आर्द्रा,
ज्वलन्ती,
तृप्ता,
तर्पयन्ती,
पद्मे स्थिता,
पद्मवर्णा
५-प्रभासा,
यशसा ज्वलन्ती,
देवजुष्टा,
उदारा,
पद्मनेमि
६-आदित्यवर्णा
७-८
कीर्तिमृद्धि
९-गन्धद्वारा,
दुराधर्षा,
नित्यपुष्टा,
करीषिणी,
ईश्वरी
१०- श्री
११-माता,
पद्ममालिनी
१२- श्रिय
१३-पुष्करिणी,
यष्टि,
पिङ्गला,
१४-पुष्टि,
सुवर्णा,
हेममालिनी,
सूर्या
१५-१६
लक्ष्मीमनपगामिनी
परिशिष्ट (श्रीसूक्तम्)
के ११ मन्त्रों में ये नाम और मिलते हैं
१-पद्मानना,
पद्मोरू,
पद्माक्षी,
पद्मसम्भवा
२-अश्वदायी,
गोदायी,
धनदायी,
महाधना,
३-पद्मविपद्मपत्रा,
पद्मप्रिया,
पद्मदलायताक्षी,
विश्वप्रिया,
विश्वमनोनुकूला
४-५-६-७-८-सरसिजनिलया,
सरोजहस्ता,
धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभा,
भगवती,
हरिवल्लभा,
मनोज्ञा,
त्रिभुवनभूतिकारी
९-विष्णुपत्नी,
क्षमा,
माधवी,
माधवप्रिया,
प्रियसखी,
अच्युत वल्लभा
१०-११ महादेवी,
विष्णुपत्नी
दीपावली या
अन्य अवसरों पर (यथा मूर्ति पूजन,व्रत,उद्यापन,वाहन,मशीनरी,व्यापार,उद्योग) माँ महालक्ष्मी पूजन के लिए पढ़े - महालक्ष्मी पूजन विधि
अथ श्रीसूक्तम् Shri suktam
हिरण्यवर्णां
हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां
हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥
हे
जातवेदा सर्वज्ञ अग्नी देव आप सोने के
समान रंग वाली किंचित हरितवर्ण से युक्त सोने व चांदी के हार पहनने वाली,चन्द्रवत
प्रसन्नकांति स्वर्ण मयी लक्ष्मी
देवी का मेरे लिये आवाहन करे ।
तां म आवह
जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां
हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥
हे अग्ने उन
लक्ष्मी देवी का जिनका कभी विनाश नहीं होता है तथा जिनके आगमन से मै सोना, गौ ,घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करू मेरे लिए आवाहन करे ।
अश्वपूर्वां
रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं
देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥
जिन देवी की
आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते है तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होते है ,उन्ही श्री देवी का मै
आवाहन करता हूँ , लक्ष्मी देवी मुझे प्राप्त हो ।
कां सोस्मितां
हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां
पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥
जो साक्षात
ब्रह्मरूपा, मंद-मंद मुस्कराने वाली,
सोने के आवरण
से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूरनकामा, भक्तानुग्रह कारिणी, कमल के आसन पर
विराजमान तथा पद्मवर्णा है, उन लक्ष्मी देवी
का मै यहाँ आवाहन करता हूँ ।
चन्द्रां
प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥
मै चन्द्रमा के समान शुभ कान्तिवाली,
सुंदर
द्युतिशालिनी, यश से दीप्तिमती, स्वर्ग लोक में देवगणो के द्वारा पूजिता, उदार शीला, पद्महस्ता लक्ष्मी देवी की शरण ग्रहण करता हूँ । मेरा दरिद्रता दूर हो जाये इस हेतु मै आपकी
शरण लेता हूँ ।
आदित्यवर्णे
तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि
तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥
हे सूर्य के समान प्रकाश स्वरूपे तपसे वृक्षों में श्रेष्ठ मंगलमय बिल्व वृक्ष
उत्पन्न हुआ उसके फल आपके अनुग्रह से
हमारे बाहरी और भीतर के दरिद्रता को दूर करे ।
उपैतु मां
देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि
राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥
हे देवी देव
सखा कुवेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापती की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हो अथार्थ मुझे
धन व यश की प्राप्ति हो । मै
इस देश में उतपन्न हुआ हूँ मुझे कीर्ति और ऋद्धि प्रदान करे ।
क्षुत्पिपासामलां
ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं
च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥८॥
लक्ष्मी
की जेष्ठ बहन अलक्ष्मी जो भूख और प्यास से
मलिन क्षीण काय रहती है उसका मै
नाश चाहता हूँ । देवी मेरा दरिद्रता
दूर हो ।
गन्धद्वारां
दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं
सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥
सुगन्धित
जिनका प्रवेशद्वार है,
जो दुराधर्षां तथा नित्य पुष्टा है और जो गोमय के बीच निवास करती है
सब भूतो की स्वामिनी उन लक्ष्मी देवी का मै अपने घर में आवाहन करता हूँ ।
मनसः
काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां
रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥
मन की कामनाओ
और संकल्प की सिद्धि एवं वाणी की सत्यता मुझे प्राप्त हो,
गो आदि पशुओ
एवं विभिन्न अन्नो भोग्य पदार्थो के रूप में था यश के रूप में श्री देवी हमारे
यहाँ आगमन करे ।
कर्दमेन
प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय
मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥
लक्ष्मी के
पुत्र कर्दम की हम संतान है । कर्दम ऋषि आप हमारे
यहाँ उत्पन्न हो तथा पद्मो की माला धारण करने वाली माता लक्ष्मी
देवी को हमारे कुल में स्थापित करे
।
आपः सृजन्तु
स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं
मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥१२॥
जल स्निग्ध
पदार्थो की सृष्टि करे । लक्ष्मी पुत्र चिक्लीत
आप भी मेरे घर में वास करे और माता लक्ष्मी देवी का मेरे कुल में निवास कराये ।
आर्द्रां
पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां
हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१३॥
हे अग्ने आर्द्र
स्वभाव, कमल हस्ता, पुष्टिरूपा, पीतवर्णा, पद्मो की माला धारण
करने वाली, चन्द्रमा के समान शुभ्र कांति से युक्त
स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी का मेरे यहाँ आवाहन करे ।
आर्द्रां यः
करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां
हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१४॥
हे अग्ने जो दुष्टों का निग्रह करने वाली होने पर भी
कोमल स्वभाव की है, जो मंगल दायिनी, अवलंबन प्रदान करनेवाली यष्टि रूपा,
सुन्दर
वर्णवाली, सुवर्णमालाधारिणी, सूर्य स्वरूपा तथा हिरण्यमयी है,
उन लक्ष्मी
देवी का मेरे लिए आवाहन करे ।
तां म आवह
जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां
हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥१५॥
हे अग्ने कभी नष्ट न होने वाली उन लक्ष्मी देवी का मेरे लिये आवाहन करे, जिनके आगमन से बहुत सा धन,
गोए,
दास,
अश्व और
पुत्रादि हमे प्राप्त हो ।
यः शुचिः
प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं
पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥
जिसे लक्ष्मी
की कामना हो, वह प्रतिदिन पवित्र और संयमशील होकर अग्नी में घी की
आहुतिया दे तथा इन पंद्रह ऋचा वाले श्री
सूक्त का निरंतर पाठ करे ।
माँ महालक्ष्मी
पुजा की सामाग्री के लिए देखें - लक्ष्मी पूजन सामग्री
लक्ष्मीसूक्तम् (श्रीसूक्तम् ) shri suktam
पद्मानने पद्म
ऊरु पद्माक्षी पद्मसम्भवे ।
त्वं मां
भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥
हे लक्ष्मी
देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है।
हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।
अश्वदायि
गोदायि धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषतां
देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥
हे देवी! अश्व,
गौ,
धन आदि देने
में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण
करें।
पद्मानने
पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये
विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥१९॥
हे लक्ष्मी
देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान,
कमल-दल के
समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी
कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके
चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
पुत्रपौत्र
धनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम् ।
प्रजानां भवसि
माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥२०॥
हे देवी! आप
सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र,
धन-धान्य,
हाथी-घोड़े,
गौ,
बैल,
रथ आदि प्रदान
करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।
धनमग्निर्धनं
वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।
धनमिन्द्रो
बृहस्पतिर्वरूणो धनमश्विना ॥२१॥
हे लक्ष्मी!
आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।
वैनतेय सोमं
पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य
सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥२२॥
हे वैनतेय
पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं,
मुझे
अमृतयुक्त धन प्रदान करें।
न क्रोधो न च
मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।
भवन्ति
कृतपुण्यानां भक्त्या श्रीसूक्तजापिनाम् ॥२३॥
इस सूक्त का
पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती,
वे सत्कर्म की
ओर प्रेरित होते हैं।
सरसिजनिलये
सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।
भगवति
हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्॥२४॥
हे त्रिभुवनेश्वरी!
हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत,
स्वच्छ वस्त्र,
चंदन व माला
से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा
करें।
विष्णुपत्नीं
क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
विष्णोः
प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥२५॥
भगवान विष्णु
की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी,
क्षमा की
मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।
महादेव्यै च
विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो
लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥२६॥
हम महादेवी
लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें,
वे देवी हमें
सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महियते ।
धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥२७॥
इस लक्ष्मी
सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व
पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।
इति: श्रीसूक्तम्
सम्पूर्ण ॥
माँ महालक्ष्मी
महिमा जानने के लिए देखें – सम्पूर्ण श्रीदुर्गासप्तशती
सम्पूटित श्रीसूक्तम् के कुछ प्रयोग निम्न है-
१- “श्रीं ह्रीं क्लीं।।
हिरण्य-वर्णा हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।
श्रीं ह्रीं क्लीं”
सोने या चाँदी से लक्ष्मी
की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से या
केवल कमलपुष्प से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में माँ
लक्ष्मी का ध्यान कर, सोने की माला या हल्दी की माला से कमल-पत्र के आसन पर बैठकर, ‘श्रीसूक्तम्’ की उक्त ‘हिरण्य-वर्णा॰॰’ ऋचा में ‘श्रीं ह्रीं क्लीं’ बीज शुरू व अंत में जोड़कर प्रातः, दोपहर और सांय एक-एक हजार (१० माला) जप करे। इस प्रकार सवा
लाख जप होने पर मधु और कमल-पुष्प से दशांश हवन करे और तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण-भोजन नियम से करे। इस प्रयोग का फल
राज-वैभव,
सुवर्ण, रत्न,
वैभव, वाहन,
स्त्री, सन्तान और सब प्रकार का सांसारिक सुख की प्राप्ति है।
२- “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं
ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।
दुर्गे! स्मृता हरसि
भीतिमशेष-जन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
ॐ ऐं हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं
लक्ष्मीं,
जातवेदो म आवह।।
दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि
का त्वदन्या,
सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले
कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।”
यह ‘श्रीसूक्तम् का एक मन्त्र सम्पुटित हुआ। इस प्रकार ‘तां म आवह′ से लेकर ‘यः शुचिः’ तक के १६ मन्त्रों को सम्पुटित कर पाठ करने से १ पाठ हुआ। ऐसे १२ हजार पाठ
करे। चम्पा के फूल,
शहद, घृत,
गुड़ का दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि,
वचन-सिद्धि प्राप्त होती है।
३- “ॐ ऐं ॐ
ह्रीं।।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरुषानहम्।।
ॐ ऐं ॐ ह्रीं ॥ ”
प्रथम में वर्णित विधि
अनुसार जप करे। यह कुल ३२ दिन का प्रयोग है। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। माँ लक्ष्मी स्वप्न में आकर धन के स्थान या
धन-प्राप्ति के जो साधन अपने चित्त में होंगे, उनकी सफलता का मार्ग बताएँगी। धन-समृद्धि स्थिर रहेगी।
४- “ॐ ह्रीं ॐ श्रीं।।
अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
ॐ ह्रीं ॐ श्रीं”
उक्त मन्त्र का प्रातः, मध्याह्न और सांय प्रत्येक काल १०-१० माला जप करे। संकल्प, न्यास, ध्यान कर जप प्रारम्भ करे। इस प्रकार ४ वर्ष करने से मन्त्र सिद्ध होता है।
प्रयोग का पुरश्चरण ३६ लाख मन्त्र-जप का है। खोया हुआ या शत्रुओं द्वारा छिना हुआ
धन प्राप्त होता है।
५- “करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।
अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
करोतु सा नः शुभ
हेतुरीश्वरी,
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।”
उक्त आधे मन्त्र का सम्पुट
कर १२ हजार जप करे। दशांश हवन, तर्पण,
मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इससे धन, ऐश्वर्य, यश बढ़ता है। शत्रु वश में होते हैं। खोई हुई लक्ष्मी, सम्पत्ति पुनः प्राप्त होती है।
६- “ॐ श्रीं ॐ क्लीं।।
कांसोऽस्मि तां
हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।
ॐ श्रीं ॐ क्लीं”
उक्त मन्त्र का पुरश्चरण
आठ लाख जप का है। जप पूर्ण होने पर पलाश, ढाक की समिधा, दूध और गाय के घी से हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोजन करे। इस प्रयोग से सभी प्रकार की समृद्धि और श्रेय मिलता है।
शत्रुओं का क्षय होता है।
७- “सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि!
एवमेव त्वया
कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।।
कांसोऽस्मि तां
हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां
तामिहोपह्वये श्रियम्।।
सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि!
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।।”
उक्त सम्पुट मन्त्र का १२
लाख जप करे। इससे धन-धान्य-समृद्धि और गया वैभव पुनः प्राप्त होता है। शत्रुओं का नाश
होता है।
८-“ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।
कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
महा-लक्ष्म्यै नमः।।
दुर्गे! स्मृता हरसि
भीतिमशेष-जन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
कांसोऽस्मि तां
हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां
तामिहोपह्वये श्रियम्।।
दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि
का त्वदन्या,
सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।
कमले
कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।।”
उक्त प्रकार से सम्पुटित
मन्त्र का १२ हजार जप करे। इस प्रयोग से वैभव, लक्ष्मी, सम्पत्ति,
वाहन, घर,
स्त्री, सन्तान का लाभ मिलता है।
९- “ॐ क्लीं ॐ वद-वद।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा
ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं
प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।
ॐ क्लीं ॐ वद-वद।।”
उक्त मन्त्र का संकल्प, न्यास, ध्यान कर एक लाख पैंतीस हजार जप करना चाहिए। यदि शीघ्र सिद्धि प्राप्त करना हो, तो तीनों काल एक-एक हजार जप करे । ४५ हजार पूर्ण होने पर
दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। ध्यान इस प्रकार है- “अक्षीण-भासां चन्द्राखयां, ज्वलन्तीं यशसा श्रियम्। देव-जुष्टामुदारां च, पद्मिनीमीं भजाम्यहम्।।” इस प्रयोग से मनुष्य धनवान होता है।
१०- “ॐ वद वद वाग्वादिनि।।
आदित्य-वर्णे! तपसोऽधिजातो
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु
मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
ॐ वद वद वाग्वादिनि”
देवी की स्वर्ण की प्रतिमा
बनवाए। चन्दन,
पुष्प, बिल्व-पत्र,
हल्दी, कुमकुम से उसका पूजन कर एक से तीन हजार तक उक्त मन्त्र का जप करे। कुल ग्यारह
लाख का प्रयोग है। जप पूर्ण होने पर बिल्व-पत्र, घी, खीर से दशांश होम, तर्पण,
मार्जन, ब्रह्म-भोजन करे। ‘ऐं
क्लीं सौः ऐं श्रीं’-
इन बीजों से कर-न्यास और हृदयादि-न्यास करे। ध्यान इस
प्रकार करे- “उदयादित्य-संकाशां, बिल्व-कानन-मध्यगाम्। तनु-मध्यां श्रियं ध्यायेदलक्ष्मी-परिहारिणीम्।।” प्रयोग-काल में फल और दूध का आहार करे। पकाया हुआ पदार्थ न
खाए। यदि सम्भव हो तो बिल्व-वृक्ष के नीचे
बैठकर जप करे। इस प्रयोग से वाक्-सिद्धि मिलती है और लक्ष्मी स्थिर रहती है।
११- “ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय, महा-माया प्रयच्छति।।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजाते, वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु, मायान्तरा ताश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय, महा-माया प्रयच्छति।।”
उक्त मन्त्र का १२००० जप
कर दशांश होम,
तर्पण करे। इस प्रयोग से जिस वस्तु की या जिस मनुष्य की
इच्छा हो,
उसका आकर्षण होता है और वह अपने वश में रहता है। राजा या
राज्य-कर्ताओं को वश करने के लिए ४८००० जप करना चाहिए।
इति: श्रीसूक्तम्
॥
श्रीसूक्तम् को English में पढ़ने के लिए shri suktam देखें।
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