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मूल शांति पूजन विधि
तन्त्रोक्त लक्ष्मी कवच
तन्त्रोक्त श्रीलक्ष्मीकवचम् अथवा श्री कमला कवचम्
विनियोगः
हाथ में जल लेकर
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीकवचस्तोत्रस्य,
श्रीईश्वरो देवता,
अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीलक्ष्मीप्रीत्यर्थे पाठे विनियोगः ।
इस तन्त्रोक्त श्रीलक्ष्मी कवच
के ईश्वर देवता हैं, अनुष्टुप् इसके छन्द
हैं और माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस कवच का पाठ तथा विनियोग
किया जा रहा है। (हाथ का जल पृथ्वी में छोड़ दें।)
तन्त्रोक्त लक्ष्मी कवच
लक्ष्मी मे चाग्रतः पातु कमला पातु
पृष्ठतः ।
नारायणी शीर्षदेशे सर्वाङ्ग
श्रीस्वरूपिणी ॥1 ॥
लक्ष्मी मेरे अग्र भाग की रक्षा
करें;
कमला मेरे पृष्ठ देश की रक्षा करें । मस्तक भाग में नारायणी एवं
श्रीस्वरूपिणी देवी मेरे समस्त अंगों की रक्षा करें ।।1।।
रामपत्नी तु प्रत्यङ्गे रामेश्वरी
सदाऽवतु ।
विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी
तथा ॥ 2 ॥
जयदात्री धनदात्री पाशाक्ष मालिनी
शुभा ।
हरिप्रिया हरिरामा जयङ्करी महोदरी ॥3॥
कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्ण
मनोमोहिनी ।
जयङ्करी महारौद्री सिद्धिदात्री
शुभङ्करी ॥4॥
सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूट -
निवासिनी ।
भयं हरतु भक्तानां भवबन्धं
विमुञ्चतु ॥5॥
रामपत्नी रामेश्वरी मेरे प्रत्यङ्ग
(उपाङ्ग) की सर्वदा रक्षा करें। विशालाक्षी, योगमाया,
कौमारी, चक्रिणी, जयदात्री,
धनदात्री, शुभा, पाशाक्षमालिनी,
हरिप्रिया, हरिरामा, जयङ्करी,
महोदरी, कृपा-परायण देवी, कृष्ण-मनोमोहिनी, जयङ्करी, महारौद्री
सिद्धिदात्री, शुभङ्करी, सुखदा,
मोक्षदा, चित्रकूट निवासिनी देवी ये भक्तों के
भय का हरण करें एवं संसार-बन्धन का मोचन करें ।।2-5।।
तन्त्रोक्त श्रीलक्ष्मीकवचम् महात्म्य
कवचं तन्महापुण्यं यः पठेद्भक्तिसंयुतः
।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा मुच्यते सर्वसङ्कटात्
॥6॥
जो व्यक्ति भययुक्त होकर इस
महापुण्यजनक कवच को तीन सन्ध्याओं में या एक सन्ध्या में पाठ करता है,
वह समस्त संकट (विपद् ) से मुक्त हो जाता है ।।6।।
कवचस्यास्य पठनं धनपुत्रविवर्धनम् ।
भीतिविनाशनं चैव त्रिषु लोकेषु
कीर्तितम् ॥7 ॥
भूर्जपत्रे समालिख्य रोचनाकुङ्कमेन
तु ।
धारणाद् गलदेशे च
सर्वसिद्धिर्भविष्यति ॥8॥
लोकों में ख्यात इस कवच का पाठ,
धन एवं पुत्र का वर्धक है एवं तीनों लोकों में भय का नाशक है। रोचना
एवं कुङ्कुम के द्वारा इस कवच को भूर्जपत्र पर लिखकर, कण्ठ
में धारण करने पर समस्त विषयों में सिद्धि प्राप्त होती ।।7-8।।
अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी लभते
धनम् ।
मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति
कवचस्यास्य प्रसादतः ॥ 9 ॥
इस कवच के माहात्म्य से अपुत्रक
पुत्र को,
धनार्थी धन को एवं मोक्षार्थी मोक्ष को प्राप्त होता है ।।9।।
गर्भिणी लभते पुत्रं वन्ध्या च
गर्भिणी भवेत् ।
धारयेद् यदि कण्ठे च अथवा वामबाहुके
॥10॥
यदि गर्भिणी इस कवच को कण्ठ में
धारण करती है अथवा इसे वामबाहु में धारण करती है, तो वह पुत्र लाभ करती है और यदि वन्ध्या इसे कण्ठ में या वाम बाहु में
धारण करती है, तो वह गर्भवती बनती हैं ।।10।।
यः पठेन्नियतो भक्त्या स एव
विष्णुवद् भवेत् ।
मृत्युव्याधिभयं तस्य नास्ति
किञ्चिन्महीतले ॥11॥
जो नियम-परायण बनकर भक्तिपूर्वक इस
कवच का पाठ कता है, वह विष्णु
के समान बन जाता है । इस पृथिवी पर उसे मृत्यु भय या रोगभय – किंचिन्मात्र भी नहीं रहता है ।।11।।
पठेद् वा पाठयेद् वापि
शृणुयाच्छ्रावयेदपि ।
सर्वपाप विमुक्तः स लभते परमां
गतिम् ।।1 2 ।।
जो व्यक्ति इस कवच का स्वयं पाठ
करता है या दूसरे को पाठ कराता है; इसे
स्वयं सुनता है या दूसरे को सुनाता है; वह समस्त पापों से
मुक्त होकर परम गति अर्थात् मोक्ष का लाभ करता है ।।12।।
सङ्कटे विपदे घोरे तथा च गहने वने ।
राजद्वारे च नौकायां तथा च रणमध्यतः
।
पठनाद्धारणादस्य जयमाप्नोति
निश्चितम् ॥13 ॥
इस कवच का पाठ या धारण करने से
सङ्कट में, भयङ्कर विपत्ति में, घोर अरण्य में, राजगृह में, नौका
में एवं युद्ध में उसे निश्चितरूप से जय प्राप्त होती है ।।13।।
अपुत्रा च तथा वन्ध्या त्रिपक्षं
शृणुयाद् यदि ।
सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं
यशस्विनम् ॥14॥
पुत्रहीना स्त्री या वन्ध्या स्त्री
यदि तीन पक्ष पर्यन्त इस कवच का श्रवण करता है, तो
वह दीर्घायु यशस्वी एवं सुपुत्र का लाभ करता है ।।14।।
शृणुयाद् यः शुद्धबुद्धया द्वौ मासौ
विप्रवक्त्रतः ।
सर्वान् कामानवाप्नोति
सर्वबन्ध्याद्विमुच्यते ॥15॥
जो व्यक्ति शुद्धचित्त से ब्राह्मण
के मुख से दो महीने पर्यन्त इस कवच का श्रवण करता है,
वह समस्त काम्यों को प्राप्त होता है एवं समस्त बन्धन से विमुक्त हो
जाता है ।।15।।
मृतवत्सा जीववत्सा त्रिमासं श्रवणं
यदि ।
रोगी रोगाद् विमुच्येत,
पठनान्मास-मध्यतः ॥16॥
जिस स्त्री का पुत्र मर जाता है,
वह यदि इस कवच का श्रवण तीन महीने पर्यन्त करे, तो उसका पुत्र (उसके बाद) नहीं मरता है, बल्कि जीवित
रहता है। रोगी इस कवच का श्रवण करने पर एक महीने के अन्दर रोग से मुक्त हो जाता है
।।16।।
लिखित्वा भूर्जपत्रे च अथवा
ताड़पत्रके ।
स्थापयेन्नियतं गेहे नाग्निचौरभयं
क्वचित् ॥17॥
इस कवच को भूर्जपत्र या ताड़ पत्र
पर लिखकर यदि नियमित रूप से (स्थिर रूप से) गृह में रखा जाता है,
तो अग्निभय एवं चौर भय कदापि नहीं रहता ।।17।।
शृणुयाद्धारयेद्वापि पठेद्वा
पाठयेदपि ।
यः पुमान् सततं तस्मिन् प्रसन्नाः
सर्वदेवताः ॥18॥
जो पुरुष प्रतिदिन इस कवच का श्रवण
करता है अथवा धारण करता है अथवा पाठ कराता है, उसके
ऊपर समस्त देवतागण प्रसन्न हो जाते हैं ।।18।।
बहुना किमिहोक्तेन
सर्वजीवेश्वरेश्वरी ।
आद्या शक्तिः सदा
लक्ष्मीर्भक्तानुग्रह कारिणी ॥
धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद्
ध्रुवम् ॥19॥
और अधिक बताने का क्या प्रयोजन ?
जो व्यक्ति इस कवच को धारण करता है या पाठ करता है, समस्त जीवों के ईश्वर के भी ईश्वरी, आद्याशक्ति,
भक्ति के प्रति अनुग्रहकारिणी लक्ष्मीदेवी सर्वदा निश्चलरूप से
स्थिर बनकर, उसमें वास करती हैं ।।19।।
इति तन्त्रोक्तं लक्ष्मीकवचं समाप्त ॥
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