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अमृत संजीवन धन्वन्तरि स्तोत्रं

अमृत संजीवन धन्वन्तरि स्तोत्रं 

इस अमृत संजीवन धन्वन्तरि स्तोत्रं के पाठ करने से सभी प्रकार के रोग व बाधा दूर होता है, अल्पमृत्यु नहीं होता है तथा स्त्री के गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा होती है ।

अमृत संजीवन धन्वन्तरि स्तोत्रं

अमृतसञ्जीवन धन्वन्तरिस्तोत्रम् 

वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहाँ धन्वंतरि को अमृत कलश मिला, क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अंश माना गया। विषविद्या के संबंध में कश्यप और तक्षक का जो संवाद महाभारत में आया है, वैसा ही धन्वंतरि और नागदेवी मनसा का ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है। उन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया है -

सर्ववेदेषु निष्णातो मन्त्रतन्त्र विशारद:।

शिष्यो हि वैनतेयस्य शंकरोस्योपशिष्यक:।।

यह श्लोक भगवान धन्वंतरि का वर्णन करता है, जो वेदों और तंत्र-मंत्र में निपुण हैं, और जिन्हें गरुड़ का शिष्य और भगवान शिव का उपशिष्य माना जाता है।

अमृत संजीवन स्तोत्र

यह अमृत संजीवन स्तोत्र अथवा अमृत संजीवन विष्णु स्तोत्र भगवान विष्णु के धन्वंतरि स्वरूप को समर्पित स्तुति है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के असाध्य, कष्टसाध्य और भयानक रोग, बाधाएं और अल्पमृत्यु का नाश होता है तथा दीर्घायु की प्राप्ति होता है।

अमृतसञ्जीवनस्तोत्रम्

Amrit sanjivan stotra

अमृत संजीवन विष्णु स्तोत्र                  

अमृत सञ्जीवन स्तोत्र

अमृतसञ्जीवन धन्वन्तरि स्तोत्रम्

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं अमृतसंजीवनीसुधाधारविग्रहाय

सहस्रारकमलस्थितपरमपुरुषोत्तमाय

सुदर्शनचक्रप्रभामयजीवनप्रदाय

लक्ष्मीसंयुक्तचिदानंदरूपाय

योगीन्द्रवंदितअमृतनारायणाय

असुरम्लेच्छबाधाशक्तिनाशनाय

सच्चिदानंदविग्रहारूपसर्वव्यापिने

संजीवनीप्राणरूपाय विष्णवे

अखण्डज्योतिःस्वरूपाय श्रीपतये

अमृतबिन्दुधाराय परमात्मने

सर्वजीवसंजीवनाय हरये ह्रीं श्रीं ॐ॥

जो सहस्रार कमल में स्थित परम पुरुषोत्तम, अपने सुदर्शन चक्र की आभा से जीवन प्रदान करने वाले, लक्ष्मी से युक्त, आनंद और चेतना के रूप, योगियों द्वारा पूजित अमृत नारायण, असुरों, म्लेच्छों और बाधाओं को नष्ट करने की शक्ति रखने वाले, सच्चिदानंद, सर्वत्र व्याप्त, संजीवनी बूटी के समान प्राण रूप वाले विष्णु , अखंड ज्योति के स्वरूप श्री (लक्ष्मी) के पति, अमृत की बूंदों के धारा परमात्मा और सभी जीवों को जीवन देने वाले हरि हैं।

अमृतसञ्जीवन विष्णु स्तोत्र

अथापरमहं वक्ष्येऽमृतसञ्जीवनं स्तवम् ।

यस्यानुष्ठानमात्रेण मृत्युर्दूरात्पलायते ॥१॥

अब मैं अमृतसञ्जीवन स्तोत्र का वर्णन करूँगा। जिसका केवल पाठ करने भर से मृत्यु दूर भाग जाती है।

असाध्याः कष्टसाध्याश्च महारोगा भयङ्कराः ।

शीघ्रं नश्यन्ति पठनादस्यायुश्च प्रवर्धते ॥२ ॥

जो रोग असाध्य और कठिन हैं, जो भीषण और भयंकर हैं, वे इस स्तोत्र के पाठ से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं और आयु भी बढ़ती है।

शाकिनीडाकिनीदोषाः कुदृष्टिग्रहशत्रुजाः ।

प्रेतवेतालयक्षोत्था बाधा नश्यन्ति चाखिलाः ॥३॥

सभी प्रकार की दोषजन्य बीमारियाँ, बुरी दृष्टि, ग्रह-शत्रु, भूत-प्रेत, यक्ष आदि की बाधाएँ इस स्तोत्र के पाठ से नष्ट हो जाती हैं।

दुरितानि समस्तानि नानाजन्मोद्भवानि च ।

संसर्गजविकाराणि विलीयन्तेऽस्य पाठतः ॥४॥

सभी प्रकार के पाप और कठिनाइयाँ, जन्म-जन्मांतर से उत्पन्न दुख, और संयोगजनित रोग पाठ से समाप्त हो जाते हैं।

सर्वोपद्रवनाशाय सर्वबाधाप्रशान्तये ।

आयुःप्रवृद्धये चैतत्स्तोत्रं परममद्भुतम् ॥५॥

सभी प्रकार के संकट और बाधाओं के निवारण, और आयु वृद्धि के लिए यह स्तोत्र अत्यंत अद्भुत है।

बालग्रहाभिभूतानां बालानां सुखदायकम् ।

सर्वारिष्टहरं चैतद्बलपुष्टिकरं परम् ॥६॥

यह स्तोत्र बच्चों के लिए बहुत लाभकारी है, बच्चों की सुरक्षा करता है, सभी प्रकार के संकट नष्ट करता है और बच्चों को बल-पुष्टि प्रदान करता है।

बालानां जीवनायैतत्स्तोत्रं दिव्यं सुधोपमम् ।

मृतवत्सत्त्वहरणं चिरजीवित्वकारकम् ॥७॥

यह दिव्य स्तोत्र बच्चों के जीवन की रक्षा करता है, मृत्यु समान संकटों से भी बचाता है और दीर्घायु प्रदान करता है।

महारोगाभिभूतानां भयव्याकुलितात्मनाम् ।

सर्वाधिव्याधिहरणं भयघ्नममृतोपमम् ॥८॥

भीषण रोगों से पीड़ित और भयग्रस्त व्यक्तियों के लिए यह अमृत सदृश स्तोत्र सभी रोग और भय नष्ट करता है।

अल्पमृत्युश्चापमृत्युः पाठादस्य प्रणश्यति ।

जलाग्निविषशस्त्रारिनखिशृङ्गिभयं तथा ॥९॥

अल्पायु और अकस्मात् मृत्यु, जल, अग्नि, विष, शस्त्र, शत्रु और हाथी से होने वाले भय पाठ से नष्ट होते हैं।

गर्भरक्षाकरं स्त्रीणां बालानां जीवनप्रदम् ।

महारोगहरं नॄणामल्पमृत्युहरं परम् ॥१०॥

यह स्तोत्र गर्भवती महिलाओं और बच्चों की रक्षा करता है, जीवन प्रदान करता है, भीषण रोग नष्ट करता है और अल्पमृत्यु से भी बचाता है।

बाला वृद्धाश्च तरुणा नरा नार्यश्च दुःखिताः ।

भवन्ति सुखिनः पाठादस्य लोके चिरायुषः ॥११॥

बच्चे, वृद्ध, जवान, पुरुष और स्त्रियाँसभी इस स्तोत्र के पाठ से सुखी और दीर्घायु होते हैं।

अस्मात्परतरं नास्ति जीवनोपाय ऐहिकः ।

तस्मात्सर्वप्रयत्नेन पाठमस्य समाचरेत् ॥१२॥

इस संसार में जीवन को बचाने का इससे उत्तम उपाय नहीं है। अतः सभी को इसे पूर्ण श्रद्धा और प्रयत्न से पढ़ना चाहिए।

अयुतावृत्तिकं वाथ सहस्रावृत्तिकं तथा ।

तदर्धं वा तदर्धं वा पठेदेतच्च भक्तितः ॥१३॥

इसे दस हजार (अयुता) या एक हजार (सहस्रा) या उसका आधा या उसका भी आधा (अर्थात एक चौथाई भी पढ़ें, लेकिन यह पाठ श्रद्धा और भक्ति से करना चाहिए।

कलशे विष्णुमाराध्य दीपं प्रज्वाल्य यत्नतः ।

सायं प्रातश्च विधिवत्स्तोत्रमेतत्पठेत्सुधीः ॥१४॥

कलश में भगवान विष्णु की पूजा कर दीप प्रज्वलित करें और इसे प्रतिदिन, सुबह और शाम विधिवत् पढ़ें।

सर्पिषा हविषा वाऽपि संयावेनाथ भक्तितः ।

दशांशमानतो होमङ्कुर्यात्सर्वार्थसिद्धये ॥१५॥

सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए, घी या हविष्य (आहुति सामग्री) का उपयोग करके भक्तिपूर्वक 'दशांश' के अनुसार होम करना चाहिए।

अमृतसञ्जीवन धन्वन्तरिस्तोत्र 

नमो नमो विश्वविभावनाय नमो नमो लोकसुखप्रदाय ।

नमो नमो विश्वसृजेश्वराय नमो नमो मुक्तिवरप्रदाय ॥१६॥

जो विश्व के निर्माण और संचालनकर्ता, समस्त लोकों को सुख देने वाले, विश्व के रचयिता और सृष्टिकर्ता तथा मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, मैं उनको नमस्कार करता हूँ।

नमो नमस्तेऽखिललोकपाय नमो नमस्तेऽखिलकामदाय ।

नमो नमस्तेऽखिलकारणाय नमो नमस्तेऽखिलरक्षकाय ॥१७॥

सभी लोकों के रक्षक, सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले और सभी कारणों के मूल (उत्पत्ति का कारण), आपको नमस्कार है। 

नमो नमस्ते सकलार्तिहर्त्रे नमो नमस्ते विरुजप्रकर्त्रे ।

नमो नमस्तेऽखिलविश्वधर्त्रे नमो नमस्तेऽखिललोकभर्त्रे ॥१८॥

सभी प्रकार के दुखों को दूर करने वाले, रोगों को हरने वाले, सम्पूर्ण जगत के धारक और संपूर्ण लोकों के अधिपति, आपको नमस्कार है।

सृष्टं देव चराचरं जगदिदं ब्रह्मस्वरूपेण ते

सर्वं तत्परिपाल्यते जगदिदं विष्णुस्वरूपेण ते ।

विश्वं संह्रियते तदेव निखिलं रुद्रस्वरूपेण ते

संसिच्यामृतशीकरैर्हर महारिष्टं चिरं जीवय ॥१९॥

ब्रह्म स्वरूप से चराचर जगत की रचना करने वाले, विष्णु स्वरूप से जगत का पालन करने वाले तथा रुद्र स्वरूप से जगत का संहार करने वाले, हे देव! आप अपनी अमृत की बूंदों सदृश आशीष से सभी महा-कष्टों को दूर करें और हमें चिरंजीवी (दीर्घायु) बनाएं।

यो धन्वन्तरिसंज्ञया निगदितः क्षीराब्धितो निःसृतो

हस्ताभ्यां जनजीवनाय कलशं पीयूषपूर्णं दधत् ।

आयुर्वेदमरीरचन्द्ररतरुजां नाशाय स त्वं मुदा

संसिच्यामृतशीकरैर्हर महारिष्टं चिरं जीवय ॥२०॥

क्षीरसागर से उत्पन्न और अमृत-कलश धारण करने वाले, हे देव धन्वंतरि! आप अपनी अमृत की बूंदों सदृश आशीष से मेरे सभी भयानक रोगों अथवा मानसिक कष्टों को दूर करें और हमें चिरंजीवी (दीर्घायु) बनाएं।

स्त्रीरूपं वरभूषणाम्बरधरं त्रैलोक्यसम्मोहनं

कृत्वा पाययति स्म यः सुरगणान्पीयूषमत्युत्तमम् ।

चक्रे दैन्यगणान्सुधाविरहितान्सम्मोह्य स त्वं मुदा

संसिच्यामृतशीकरैर्हर महारिष्टं चिरं जीवय ॥२१॥

जिस प्रकार भगवान विष्णु ने सुंदर वस्त्राभूषण धारण कर त्रैलोक्य मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिलाकर जीवन दिया था, उसी प्रकार हे देव! अमृत की बूंदों से वंचित हम दुखियों को आप अपनी अमृतमय आशीष से भय और दुखों से मुक्त करें और हमें चिरंजीवी (दीर्घायु) बनाएं।

चाक्षुषोदधिसप्लावभूवेदप झषाकृते ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२२॥

हे दृष्टि और ज्ञान के समुद्र समान, मत्स्य रूप में पृथ्वी का उद्धार करने वाले, आप अपनी अमृत की बूंदों से सिंचन करके मुझे दीर्घायु प्रदान करें।

पृष्ठमन्दरनिर्घूर्णनिद्राक्ष कमठाकृते ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२३॥

जो धीमी गति वाले, आलसी या नींद में डूबे हुए हैं और जिनका स्वभाव कछुए के समान है। हे देव! उन लोगों को अमृत से सींचकर जीवित करें।

याच्ञाछलबलित्रासमुक्तनिर्जर वामन ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२४॥

हे देव! आपने वामन रूप में याचना से राजा बलि को बन्धन में डाला था और उसके बाद आपने उन्हें मुक्त कर दिया। वैसे ही आप अपने अमृत की बूंदों से सिंचन करके मुझे दीर्घायु प्रदान करें।

धरोद्धारहिरण्याक्षघातक्रोडाकृते प्रभो ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२५॥

हे पृथ्वी के रक्षक और हिरण्याक्ष नामक राक्षस के संहारक, प्रभु, आप मुझ पर अमृत वर्षा करें और मुझे अनंत जीवन प्रदान करें।

भक्तत्रासविनाशात्तचण्डत्व नृहरे विभो ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२६॥

भक्तों के भय को नष्ट करने वाले और अपने भक्तों को कष्ट पहुँचाने वालों का नाश करने वाले हे नरसिंह प्रभु! आप उन पर अमृत वर्षा करते रहें और उन्हें अनंत जीवन प्रदान करें।

क्षत्रियारण्यसञ्छेदकुठारकर रैणुक ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२७॥

क्षत्रिय रूपी जंगल के विनाशक, कुल्हाड़ी के समान शक्तिशाली, हे भगवान परशुराम! आप अपनी अमृतमय आशीष सिंचित कर हमें चिरंजीवी (दीर्घायु) बनाएं।

रक्षोराजप्रतापाब्धिशोषणाशुग राघव ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२८॥

राक्षसराज (रावण) के प्रताप रूपी समुद्र को सुखाने के लिए तीक्ष्ण बाण वाले, हे राघव! अपने अमृत कणों से सिंचन कर हमें चिरंजीवी बनाएँ।

भूभारासुरसन्दोहकालाग्ने रुक्मिणीपते ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥२९॥

पृथ्वी का भार हरने वाले और दुष्ट असुरों का नाश करने वाले, हे रुक्मिणी पति श्रीकृष्ण! आप अपनी अमृतमय आशीष से हमें अनंत जीवन प्रदान करें।

वेदमार्गरतानर्हविभ्रान्त्यै बुद्धरूपधृक् ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥३०॥

वेद मार्ग से जो भटक गए हैं, हे बुद्ध रूप धारण करने वाले भगवान, उन्हें अमृत की बूंदों से सींचकर सत्मार्ग दिखाओं और दीर्घ जीवन प्रदान करों।

कलिवर्णाश्रमास्पष्टधर्मर्द्ध्यै कल्किरूपभाक् ।

सिञ्च सिञ्चामृतकणैश्चिरं जीवय जीवय ॥३१॥

कलयुग के कलंक और अस्पष्ट धर्मों से युक्त युग के अंत में, कल्कि रूपधारी भगवान विष्णु अमृत के कणों से सिंचन कर हमें दीर्घायु प्रदान करें।

असाध्याः कष्टसाध्या ये महारोगा भयङ्कराः ।

छिन्धि तानाशु चक्रेण चिरं जीवय जीवय ॥३२॥

असाध्य, कष्टसाध्य और भयानक महारोगों को अपने चक्र से नष्ट करो और लम्बी आयु प्रदान करो।

अल्पमृत्युं चापमृत्युं महोत्पातानुपद्रवान् ।

भिन्धि भिन्धि गदाघातैश्चिरं जीवय जीवय ॥३३॥

अल्पमृत्यु, अपमृत्यु (अकाल मृत्यु), बड़े-बड़े उत्पात और उपद्रवों को अपने गदा के प्रहारों से नष्ट-नष्ट कर दो और हमें दीर्घायु प्रदान करें।

अहं न जाने किमपि त्वदन्यत्समाश्रये नाथ पदाम्बुजं ते ।

कुरुष्व तद्यन्मनसीप्सितं ते सुकर्मणा केन समक्षमीयाम् ॥३४॥

हे प्रभु! मैं आपके अलावा किसी और आश्रय को नहीं जानता। जो कुछ भी मेरे मन में है उसे आप पूर्ण करें, क्योंकि मैं नहीं जानता कि मैं अपने कर्मों के फल को कैसे आपके सामने प्रस्तुत कर सकता हूँ।

त्वमेव तातो जननी त्वमेव त्वमेव नाथश्च त्वमेव बन्धुः ।

विद्याधनागारकुलं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥३५॥

हे देवों के देव! आप ही मेरे पिता, माता, नाथ, बंधु हैं। आप ही मेरी विद्या, धन, घर और कुल हैं। आप ही मेरे सब कुछ हैं।

न मेऽपराधं प्रविलोकय प्रभोऽपराधसिन्धोश्च दयानिधिस्त्वम् ।

तातेन दुष्टोऽपि सुतः सुरक्ष्यते दयालुता तेऽवतु सर्वदाऽस्मान् ॥३६॥

हे प्रभु, मेरे अपराधों को मत देखिए, क्योंकि आप दया के सागर हैं। जैसे एक पिता दुष्ट पुत्र की भी रक्षा करता है, वैसे ही आपकी दयालुता हमेशा हमारी रक्षा करे।

अहह विस्मर नाथ च मां सदा करुणया निजया परिपूरितः ।

भुवि भवान् यदि मे नहि रक्षकः कथमहो मम जीवनमत्र वै ॥३७॥

हे नाथ! मुझे कभी न भूलें। अपनी करुणा से मेरी रक्षा करें। यदि आप मेरी रक्षा नहीं करेंगे तो मेरा जीवन कैसे सुरक्षित रहेगा?

दह दह कृपया त्वं व्याधिजालं विशालं

हर हर करवालं चाल्पमृत्योः करालम् ।

निजजनपरिपालं त्वां भजे भावयालं

कुरु कुरु बहुकालं जीवितं मे सदाऽलम् ॥३८॥

हे प्रभु! अपनी करुणा से विशाल व्याधि-जाल (बीमारियों के जाल) को नष्ट करें और अल्पमृत्यु का भी हरण करें। मेरे प्रियजनों की रक्षा करें तथा मुझे सदा लंबी आयु प्रदान करें।

न यत्र धर्माचरणं च दानं व्रतं न यागो न च विष्णुचर्चा ।

न पितृगोविप्रवरामरार्चा स्वल्पायुषस्तत्र जना भवन्ति ॥३९॥

जहाँ धर्म, दान, व्रत, यज्ञ, भगवान विष्णु की चर्चा, पितरों की पूजा, गौ पूजा, ब्राह्मणों का सम्मान और देवताओं की पूजा नहीं होती, वहाँ के लोग अल्पायु होते हैं।

क्लीं श्रीं क्लीं श्रीं नमो भगवते जनार्दनाय सकलदुरितानि नाशय

नाशय क्ष्रौं आमारोग्यं कुरु कुरु ह्रीं दीर्घमायुर्देहि देहि स्वाहा ।

अस्य धारणतो जापादल्पमृत्युः प्रशाम्यति ।

गर्भरक्षाकरं स्त्रीणां बालानां जीवनं परम् ॥४०॥

भगवान जनार्दन के इस मंत्र सहित स्तोत्र को धारण करने से सभी प्रकार के रोग, बाधा और अल्पमृत्यु का नाश होता हैं तथा आरोग्य और दीर्घायु प्राप्त होता है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों की रक्षा और सुरक्षित जीवन देता है।

शतं पञ्चाशतं शक्त्याथवा पञ्चाधिविंशतिम् ।

पुस्तकानां द्विजेभ्यस्तु दद्याद्दीर्घायुषाप्तये ॥४१॥

दीर्घायु प्राप्त करने के लिए, १५० या २५, जो भी संभव हो, इस स्तोत्र की पुस्तक अथवा लिखकर द्विजों (ब्राह्मणों) को दान कर देना चाहिए।

भूर्जपत्रे विलिख्येदं कण्ठे वा बाहुमूलके ।

सन्धारयेद्गर्भरक्षा बालरक्षा च जायते ॥४२॥

इसे भुजपत्र पर लिखकर या गले में या भुजा हथेली पर धारण करने से गर्भस्थ शिशु और संतान की रक्षा होती है।

सर्वे रोगा विनश्यन्ति सर्वा बाधा प्रशाम्यति ।

कुदृष्टिजं भयं नश्येत्तथा प्रेतादिजं भयम् ॥४३॥

सभी रोग और सभी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। नजर आदि दोष और भुत, प्रेतों का भय भी नष्ट हो जाता है।

मया कथितमेतत्तेऽमृतसञ्जीवनं परम् ।

अल्पमृत्युहरं स्तोत्रं मृतवत्सत्त्वनाशनम् ॥४४॥

अमृततुल्य जीवन देने वाला यह अमृतसञ्जीवन स्तोत्र मैंने तुम्हें बताया। जो अल्प-मृत्यु (कम उम्र में मृत्यु) को दूर करने वाला और मृतवत्सा (जिन बच्चों की मृत्यु हो चुकी हो) के कष्टों को दूर करने वाला है।

इति: सुदर्शनसंहितोक्तं अमृतसञ्जीवन धन्वन्तरि स्तोत्रम् ॥

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