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मूर्तिस्तोत्र एवं द्वादशाक्षर स्तोत्र
चतुर्विंशति मूर्तिस्तोत्र एवं द्वादशाक्षर स्तोत्र- अग्नि पुराण के इस अध्याय ४८में बारह श्लोक स्तुति के हैं । प्रत्येक श्लोक में भगवान् की दो-दो मूर्तियों का स्तवन हुआ तथा इन बारहों श्लोकों के आदि का एक-एक अक्षर जोड़ने से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ यह द्वादशाक्षर मन्त्र बनता है । इसीलिये इसे द्वादशाक्षर-स्तोत्र एवं चौबीस मूर्तियों का स्तोत्र कहते हैं ।
चतुर्विंशति-मूर्तिस्तोत्र एवं द्वादशाक्षर स्तोत्र
॥ श्रीभगवानुवाच ॥
ॐरूपः केशवः पद्मशङ्खचक्रगदाधरः ।
नारायणः शङ्खपद्मगदाचक्री
प्रदक्षिणम् ॥ १ ॥
श्रीभगवान् हयग्रीव कहते हैं –
ब्रह्मन् ! ओंकारस्वरूप केशव अपने हाथों में पद्य, शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले हैं । नारायण शङ्ख,
पद्म, गदा और चक्र धारण करते हैं, मैं प्रदक्षिणापूर्वक उनके चरणों में नतमस्तक होता हूँ ।
नतो गदो माधवोरिशङ्खपद्मी नमामि तम्
।
चक्रकौमोदकीपद्मशङ्खी गोविन्द
ऊर्जितः ॥ २ ॥
माधव गदा,
चक्र, शङ्ख और पद्म धारण करनेवाले हैं,
मैं उनको नमस्कार करता हूँ । गोविन्द अपने हाथों में क्रमश: चक्र,
गदा, पद्म और शङ्ख धारण करनेवाले तथा बलशाली
हैं ।
मोक्षदः श्रीगदी पद्मी शङ्खी
विष्णुश्च चक्रधृक् ।
शङ्खचक्राब्जगदिनं मधुसूदनमानमे ॥ ३
॥
श्रीविष्णु गदा,
पद्म, शङ्ख एवं चक्र धारण करते हैं, वे मोक्ष देनेवाले हैं । मधुसूदन शङ्ख, चक्र,
पद्म और गदा धारण करते हैं । मैं उनके सामने भक्तिभाव से नतमस्तक
होता हूँ ।
भक्त्या त्रिविक्रमः पद्मगदी चक्री
च शङ्ख्यपि ।
शङ्खचक्रगदापद्मी वामनः पातु मां
सदा ॥ ४ ॥
त्रिविक्रम क्रमशः पद्य,
गदा, चक्र एवं शङ्ख धारण करते हैं । भगवान्
वामन के हाथों में शङ्ख, चक्र, गदा एवं
पद्म शोभा पाते हैं, वे सदा मेरी रक्षा करें ।
गदितः श्रीधरः पद्मी चक्रशार्ङ्गी
च शङ्ख्यपि ।
हृषीकेशो गदाचक्रौ पद्मी चक्रशङ्खी
च पातु नः ॥ ५ ॥
श्रीधर कमल,
चक्र, शाङ्ग धनुष एवं शङ्ख धारण करते हैं । वे
सबको सद्गति प्रदान करनेवाले हैं । हृषीकेश गदा, चक्र,
पद्म एवं शङ्ख धारण करते हैं, वे हम सबकी
रक्षा करें ।
वरदः पद्मनाभस्तु शङ्खाब्जारिगदाधरः
।
दामोदरः पद्मशङ्खगदाचक्रौ नमामि तम्
॥ ६ ॥
वरदायक भगवान् पद्मनाभ शङ्ख,
पद्म, चक्र और गदा धारण करते हैं । दामोदर के
हाथों में पद्म, शङ्ख, गदा और चक्र
शोभा पाते हैं, मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ ।
तेने गदी शङ्खचक्री
वासुदेवोब्जभृज्जगत् ।
सङ्कर्षणो गदी शङ्खी पद्मी चक्री च
पातु वः ॥ ७ ॥
गदा, शङ्ख, चक्र और पद्म धारण करनेवाले वासुदेव ने ही
सम्पूर्ण जगत् का विस्तार किया है । गदा, शङ्ख, पद्म और चक्र धारण करनेवाले संकर्षण आपलोगों की रक्षा करें ।
वादी चक्री शङ्खगदी प्रद्युम्नः
पद्मभृत् प्रभुः ।
अनिरुद्धश्चक्रगदी शङ्खी पद्मी च
पातु नः ॥ ८ ॥
वाद (युद्ध)-कुशल भगवान् प्रद्युम्न
चक्र,
शङ्ख, गदा और पद्य धारण करते हैं । अनिरुद्ध
चक्र, गदा, शङ्ख और पद्म धारण करनेवाले
हैं, वे हमलोगों की रक्षा करें ।
सुरेशोर्यब्जशङ्खाढ्यः श्रीगदी
पुरुषोत्तमः ।
अधोऽक्षजः पद्मगदी शङ्खी चक्री च
पातु वः ॥ ९ ॥
सुरेश्वर पुरुषोत्तम चक्र,
कमल, शङ्ख और गदा धारण करते हैं, भगवान् अधोक्षज पद्म, गदा, शङ्ख
और चक्र धारण करनेवाले हैं । वे आपलोगों की रक्षा करें ।
देवो नृसिंहश्चक्राब्जगदाशङ्खी
नमामि तम् ।
अच्युतः श्रीगदी पद्मी चक्री शङ्खी
च पातु वः ॥ १० ॥
नृसिंहदेव चक्र,
कमल, गदा और शङ्ख धारण करनेवाले हैं, मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ । श्रीगदा, पद्म,
चक्र और शङ्ख धारण करनेवाले अच्युत आपलोगों की रक्षा करें ।
बालरूपी शङ्खगदी उपेन्द्रश्चक्रपद्म्यपि
।
जनार्दनः पद्मचक्री शङ्खधारी गदाधरः
॥ ११ ॥
शङ्ख, गदा, चक्र और पद्म धारण करनेवाले बालवटुरूपधारी वामन,
पद्म, चक्र, शङ्ख और गदा
धारण करनेवाले जनार्दन रक्षा करें ।
यज्ञः शङ्खी पद्मचक्री च हरिः
कौमोदकीधरः ।
कृष्णः शङ्खी गदी पद्मी चक्री मे
भुक्तिमुक्तिदः ॥ १२ ॥
शङ्ख, पद्म, चक्र और गदाधारी यज्ञस्वरूप श्रीहरि तथा शङ्ख,
गदा, पद्म एवं चक्र धारण करनेवाले श्रीकृष्ण
मुझे भोग और मोक्ष देनेवाले हों ।
आदिमूर्तिर्वासुदेवस्तस्मात् सङ्कर्षणोऽभवत्
।
सङ्कर्षणाच्च प्रद्युम्नः
प्रद्युम्नादनिरुद्धकः ॥ १३ ॥
आदिमूर्ति भगवान् वासुदेव हैं ।
उनसे संकर्षण प्रकट हुए । संकर्षण से प्रद्युम्न और प्रद्युम्न से अनिरुद्ध का
प्रादुर्भाव हुआ ।
केशवादिप्रभेदेन ऐकैकस्य
त्रिधाक्रमात् ॥ १४ ॥
इनमें से एक-एक क्रमशः केशव आदि
मूर्तियों के भेद से तीन-तीन रूपों में अभिव्यक्त हुआ । (अतः कुल मिलाकर बारह
स्वरूप हुए)। तात्पर्य यह है कि वासुदेवसे
केशव, नारायण और माधव की, संकर्षण से
गोविन्द, विष्णु और मधुसदन की, प्रद्युम्न
से त्रिविक्रम, वामन और श्रीधर की तथा अनिरुद्ध से हृषीकेश,
पद्मनाभ एवं दामोदर की अभिव्यक्ति हुई ।
द्वादशाक्षरकं स्तोत्रं
चतुर्विंशतिमूर्तिमत् ।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि निर्मलः
सर्वमाप्नुयात् ॥ १५ ॥
चौबीस-मूर्तियों की स्तुति से युक्त
इस द्वादशाक्षर स्तोत्र का जो पाठ अथवा श्रवण करता है,
वह निर्मल होकर सम्पूर्ण मनोरथों को प्राप्त कर लेता है ।
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'श्रीहरिकी चौबीस मूर्तियोंके स्तोत्रका वर्णन' नामक अड़तालीसवां अध्याय पूरा हुआ॥४८॥
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