मंगलाष्टक
मंगलाष्टक अर्थात् मंगल की कामना ।
मंगलाष्टकम्
मंगलाष्टक उसे कहते हैं जिसमें कि
मंगल श्लोकों द्वारा यजमान की मंगलमय भविष्य के निमार्ण की प्रार्थना अथवा मंगल का
आशीष दिया जाय ।
मंगलाष्टक अथवा शाखोच्चार
विवाह के समय वर-वधू के लिए मंगल
कामना करते हुए दिव्य मन्त्रों में सभी श्रेष्ठ शक्तियों से मंगलमय वातावरण,
मंगलमय भविष्य के निमार्ण की प्रार्थना की जाती है। इसमें मंगलाष्टक
के अतिरिक्त वर-वधू के शाखा अर्थात् वंश परंपरा का महिमा कहा जाता है ,अतः इन्हें
ही मंगलाचरण अथवा मंगलाष्टक अथवा शाखोच्चार कहा जाता है। पाठकों के लाभार्थ यहाँ कालिदास
विरचित मंगलाष्टक अर्थ सहित दिया जा रहा है।
मंगलाचरण अथवा मंगलाष्टक अथवा शाखोच्चार
Mangalashtakam
कालिदास विरचित मंगलाष्टक अर्थ सहित
कालिदासकृतं मंगलाष्टकम्
ॐ मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ वायुमर्हेन्द्रोऽनलः ।
चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रेतादिपाद्या ग्रहाः ॥
प्रद्युम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः ।
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः,
कुवर्न्तु वो मंगलम्॥१॥
कमल के ऊपर विराजमान विष्णु भगवान्
अपनी पत्नी लक्ष्मीजी के साथ और श्री शंकरजी, वायु
देवता, महेन्द्र, अग्नि देवता, चन्द्रमा, सूर्य, सुन्दर
वेशभूषा वाले कुबेर, वरुण देवता, प्रेत
और शनि आदि बुरे ग्रह, प्रद्युम्न, नलकूवर,
ऐरावत, चिंतामणि और कौस्तुभ मणियां, शक्तिधारी एवं लांगुलधारी स्वामी सभी आपका कल्याण करें ॥ १ ॥
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ ।
गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः॥
गायत्री गरुड़ो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी ।
गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलगणाः,
कुवर्न्तु वो मंगलम्॥२॥
गंगाजी,
गोमती नदी, गोस्वामी, गुणों
के स्वामी श्री गणेशजी (जो सबसे पहले पूजे जाते हैं), गोविन्द
माधव श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत, गीता
(जो श्रीकृष्ण के मुख से निकलकर संसार को पवित्र करने वाली है), गोमय (गाय का गोबर जो अनेक कामों में पवित्र मानकर व्यवहार में लाया जाता
है ), गौरी के पुत्र स्वामी कार्तिकेयजी (उनके दूसरे पुत्र
गणेशजी का नाम पहले ही आ चुका है) हिमालय पर्वत की पुत्री पार्वतीजी, गंगा को अपने सिर पर धारण करनेवाले शंकरजी, गौतम ऋषि,
गायत्री देवी, गरुड़, गदाधर,
गया नाम का तीर्थ, पवित्र और गहरी गोदावरी नदी,
गंधर्व, ग्रह, गोप आदि
गोकुल के निवासी और गण आदि देवता आप लोगों का कल्याण करें ॥२॥
नेत्राणां त्रितयं शिवं पशुपतिं
वह्नित्रयं पावनम् ।
यत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने
ख्यातं च रामत्रयम् ॥
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं वेदत्रयं
ब्राह्मणम् ।
संध्यायास्त्रितयं द्विजैरवियुतं
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ३ ॥
तीन नेत्रों वाले शिवजी जो कि
पशुपति कहे जाते हैं, गार्हपत्य आहवनेय
आदि तीनों यज्ञों की अग्नियां जो कि अत्यन्त पवित्र मानी गई हैं, विष्णु के तीनों लोक जो प्रसिद्ध हैं ये, उस
त्रिभुवन में प्रसिद्ध तीनों राम (अर्थात् १. रामचन्द्र, २.
परशुराम और ३. बलराम) गंगा नदी जो कि त्रिपथगा कही जाती है अर्थात् जिसकी धाराएं
तीनों लोकों में बहती हैं, अत्यन्त पवित्र वेद (यद्यपि वेदों
की संख्या निम्न प्रकार से चार मानी गई है – १. ऋग्वेद,
२. यजुर्वेद, ३. सामवेद और ४. अथर्ववेद। (
लेकिन यहां पर शुरू के तीन मुख्य वेद ही लिए गए हैं), (ब्राह्मण
तुलसीदास ने भी ब्राह्मण की बड़ी ही महिमा गाई है, वे तो
यहां तक कहते हैं—सापत ताड़त पुरुष कहंता, विप्र पूज्य अस गावहिं संता) तीनों (सवेरे, दोपहर और
शाम की) संख्याएं, द्विज और सूर्य देवता आप सबका कल्याण करें
।। ३ ।।
वाल्मीकिः सनकः सनंदनमुनिर्व्यासो
वशिष्ठोभृगुः ।
जाबालिर्जमदग्निरामजनको गंगाधरो
गौतमो ॥
मान्धाता भरतो नृपश्चसगरो धन्यो
दिलीपोनृपः ।
विप्र पुण्याधर्मसुतो ययातिनहुषः
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ४ ॥
वाल्मीकि मुनि जो कि आदि कवि कहे
जाते हैं। सनक, सनन्दन, सनातन,
सनत्कुमार आदि चारों मुनि, जिनके बारे में यह प्रसिद्ध
है कि ये सदैव बालक ही बने रहते हैं, वेदव्यास मुनि जो अठारह
पुराणों के रचयिता कहे जाते हैं, वशिष्ठ मुनि जो रघुवंशियों
के राजपुरोहित थे, भृगु मुनि जिन्होंने भृगु संहिता लिखी है
और जो परशुराम के पर बांबा थे, जाबालि मुनि, परशुराम के पिता जमदग्नि, मुनि परशुराम, जनक राजा, गंगा को धारण करने वाले भगवान् शंकर,
गौतम मुनि जो अहिल्या के पति थे, मान्धाता जो
प्रतापी राजा थे, भरत राजा जिनके कारण यह देश भरतखण्ड या
भारतवर्ष कहा जाता है, सगर, राजा दिलीप
जिन्होंने नन्दिनी की सेवा करके पुत्र प्राप्त किया था, पवित्र
धर्मपुत्र युधिष्ठिर, प्रतापी राजा यताति, नहुष आदि सभी आप लोगों का कल्याण करें ॥ ४ ॥
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा भूमिः
प्रपूर्णाशुभा ।
सावित्री च सरस्वती च सुरभी
सत्यव्रतारुन्धती ॥
स्वाहाजाम्बवती च रुक्मभगिनी
दुःस्वप्नविध्वंसिनी ।
बेला चाम्बुनिधिः समीनमकरा कुर्वन्तु
वो मंगलम् ॥ ५ ॥
गिरिजा,
कुटुम्ब के पूजनीय इष्ट देवता, सुन्दर रत्नों
से भरी हुई और पूरी भरी पृथ्वी, सावित्री और सरस्वती देवियां,
कामधेनु जिसे कि सम्पूर्ण मनोकामनाओं को पूरा करनेवाला कहा जाता है,
सत्यव्रत का पालन करने वाली अरुन्धती देवी जो कि प्रसिद्ध मुनि
वशिष्ठ की पत्नी है, स्वाहा देवी जो कि अग्नि की पत्नी कही
जाती है, जाम्बवती और रुक्म की बहिन जो बुरे स्वप्नों का नाश
करनेवाली हैं, मछलियों और मगरों से भरी हुई सागर के तट की
भूमि, ये वस्तुएं आप लोगों को आनन्द दें ॥ ५ ॥
शेषास्तक्षक कालकूट कुमुदाः
पद्मस्तथा वासुकिः ।
कर्कोऽनन्तकपद्मशंखनिधियः
ख्याताश्चतेपन्नगाः ॥
अन्ये काननगह्वरेषु जलधौ
सम्प्राप्तरक्षास्तथा ।
विप्रा यत्स्मरणेन नन्दनवने
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ६ ॥
पद्म, शंख आदि महानिधियां, शेषनाग, तक्षक,
कालकूट, कुमुद, पद्म,
वासुकि, कर्क, अनन्त आदि
जो-जो प्रसिद्ध नाग हैं वे सभी नाग, इन नागों के सिवा गरुड़
के डर से और बाकी जिन नागों ने जंगलों की गुफाओं एवं समुद्र आदि में शरण प्राप्त
कर ली है, वे भी नाग एवम् ब्राह्मण लोग जिस देवता के स्मरण
करते ही, अनेक सुखों को प्राप्त करते हैं एवं जिनके ध्यान से
उनको नन्दन वन के जो कि देवताओं का है, सारे आराम प्राप्त हो
जाते हैं, ये सभी नाग और प्रसिद्ध देवता आप लोगों का कल्याण
करें और आपकी अनिष्ट आपत्तियों से रक्षा करते हुए सदैव आपका मंगल करें ॥ ६ ॥
गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना
गोदावरी नर्वदा ।
कावेरी सरयू महेन्द्र तनया
चर्मण्वती वेदिका ॥
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता
चा या गंडकी ।
पूर्णाः पूर्णजलैः समुद्रसहिताः
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ७ ॥
जाह्नवी,
सिंधु, सरस्वती, यमुना,
गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, सरयू, महानदी, चर्मण्वती
(चम्बल), वेदिका, शिप्रा, प्रसिद्ध देवताओं की नदी जो कि गंडकी नाम से प्रसिद्ध है ये सभी प्रसिद्ध
नदियां अपने पवित्र जल से आप लोगों के चित्त में शान्ति का संचार करती हुई तथा
आपके क्लेशों और पापों को धोती हुई समुद्र के साथ ही आप का कल्याण करें ॥७॥
लक्ष्मी:कौस्तुभपारिजातक सुराः
धन्वन्तरिश्चंद्रमा ।
गावः कामदुधा सुरेश्वरगजा रम्भादि
देवांगनाः ॥
अश्वः सप्तमुखोसुधा हरिधनुः शंखो
विषंचाम्बुधे ।
रत्नानीतिचतुर्दश प्रतिदिनं
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ८ ॥
श्री महालक्ष्मी,
कौस्तुभ मणि जो विष्णु भगवान् के गले में विराजमान रहती है, पारिजात वृक्ष, देवता, धन्वन्तरि
वैद्य जो समुद्र मंथन के समय निकले थे और जो अति वैद्य माने जाते हैं, चन्द्रमा, कामधेनु आदि गाएं जो सभी कामनाओं और
आवश्यकताओं को पूरा करनेवाली हैं, इन्द्र का हाथी ऐरावत,
रम्भा आदि अप्सराएं, सात मुखों वाला
उच्चैःश्रवा नाम का घोड़ा जो इंद्र के पास है, सुधा यानी
अमृत जिसके कलश को धन्वन्तरि लेकर आए थे, इन्द्र धनुष और
समुद्र से निकले हुए शंख एवं विष आदि ये सभी चौदह रत्न जो समुद्र से निकले थे,
आप लोगों का कल्याण करें ॥८ ॥
ब्रह्मज्ञान रसायनं
सुरधनुर्वेदस्तथा ज्योतिषम् ।
व्याकरणं च धनुर्धरं सुखकर
वैद्यस्तथा चापरम् ॥
कोकत्वाहिनवाजिनं नटनृतं सम्बोधनं
चातुरी ।
विद्यानां हि चतुर्दशः प्रतिदिनं
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ९ ॥
ब्रह्मज्ञान अर्थात् ब्रह्मवास का
शास्त्र,
रसायन विद्या जिसे आजकल अंग्रेजी में कैमिस्ट्री (Chemistry)
कहते हैं, देवताओं के द्वारा भी सीखा जानेवाला
धनुर्वेद, ज्योतिष शास्त्र, व्याकरण,
छन्द शास्त्र आदि प्राणियों को आरोग्य दान करनेवाला वैद्यक या
आयुर्वेद नाम का शास्त्र कोकशास्त्र आरभटी अभिचार या सम्मोहन, मारण, मोहन, उच्चाटन आदि की
विद्याएं, नाट्य शास्त्र और नृत्य कला, बोलचाल की चतुराई इत्यादि जो चौदह विद्याएं कही जाती हैं वे सदैव प्रतिदिन
आपका कल्याण करें। ये सभी विद्याएं आप लोगों को सदैव याद रहें और आप इन सभी
विद्याओं में शीघ्र ही कुशल हो जाएं और उनसे कल्याण प्राप्त करें। ॥ ९ ॥
विद्याओं से कल्याण उसी दशा में
प्राप्त किया जा सकता है। यह कहा गया है कि बिना पढ़े नर पशु कहावे'
भर्तृहरि भी कहते हैं:--
साहित्य संगीतकलाविहीनः,
साक्षात्पशु पुच्छविषाणहीनः ।
तृणन्न खादन्नपि जीवमानस्तदूभागधेय
हरमं पशूनाम् ॥
ब्राह्मी चन्दनमालिका भगवती देवी
रमा द्रोपदी ।
कौशल्याच मृगावतीच शुलभा सीता
सुभद्रा शिवा ॥
कुन्ती शीलवती च कण्वदुहिता चूला
प्रभावत्यपि ।
पद्मावत्यपि सुन्दरी प्रतिदिनं
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ १० ॥
ब्राह्मी आदि प्रमुख जड़ी बूटियां,
चन्दन आदि मांगलिक वस्तुएं, मालिका-जाती आदि
औषधियां, भगवती देवी, रमा अर्थात्
लक्ष्मी, द्रुपद की पुत्री द्रोपदी, कौशल्या,
मृगावती, सुलभा, सीता,
सुभद्रा,
कुन्ती, शीलवती, शकुन्तला,
चूला और प्रभावती तथा पद्मावती, आदि रूप गुण
वाली प्रसिद्ध सती देवियां जिनके पुण्य कर्मों का भारत देश को अभिमान है, आप लोगों का मंगल करें ॥ १० ॥
ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः
सूर्यो ग्रहाणांपतिः ।
शुकोदेवपतिर्नलो नरपतिः
स्कन्दश्चसेनापतिः ॥
विष्णुर्यज्ञपतिर्यमो
पितृपतिस्तारापतिश्चन्द्रमा ।
इत्येतेपतयः सुपर्णसहिताः कुर्वन्तु
वो मंगलम् ॥ ११ ॥
वेदों के रचयिता होने के कारण
ब्रह्मा उनके पति अर्थात् स्वामी हैं। शिवजी पशुपति कहे जाते हैं। सूर्य सभी
ग्रहों में शिरोमणि होने के कारण उनका स्वामी माना जाता है। इन्द्र देवताओं के पति
माने जाते हैं। नल मनुष्यों के राजा हैं। स्कन्द अर्थात् शिवजी के पुत्र स्वामी
कार्तिकेय देवताओं की सेना के स्वामी हैं। विष्णु यज्ञपति के नाम से पूजे जाते
हैं। यमराज को पितरों का स्वामी बतलाया जाता है। चन्द्रमा तारागणों का स्वामी माना
गया है। ये सभी पति लोग सुपर्ण अर्थात् गरुड़ के साथ आप लोगों का मंगल करें ॥ ११ ॥
अश्वत्थो वटवृक्षचंदनतरुः
मन्दराकल्पद्रुमौ ।
जम्बूनिम्बकदम्बचूतसरला वृक्षाश्च
ये क्षीरिणः ॥
ते सर्वे फलमिश्रिता वृतभुवः
वन्याश्चये क्षीरिणः ।
रम्ये चैत्ररथे सनन्दनवने कुर्वन्तु
वो मंगलम् ॥ १२॥
अश्वत्थ अर्थात् पीपल नाम का पूजनीय
वृक्ष,
बरगद का वृक्ष, चन्दन का पेड़ और मन्दार
कल्पद्रुम आदि देवताओं के वृक्ष, जामुन, नीम, कदम्ब, आम, देवदारु और जो दूधवाले वृक्ष हैं, वे सभी अपने-अपने
फलों के साथ आपका कल्याण करें। पृथ्वी को ढकनेवाले जो जंगजी वृक्ष हैं, वे सब भी आपका मंगल करें अर्थात् उनसे आपको कोई कष्ट न हो। कुबेर का मनोहर
चैत्ररथ नाम का उद्यान एवं इन्द्र का नन्दन वन का रमणीय बाग ये सब भी आपका कल्याण
करें ॥ १२ ॥
पद्म स्कन्दविहंग शक्तिमनसो
ब्रह्माण्डलिंगाग्नयः ।
कूर्मो वामननारदादिसहिता,
आब्रह्मवैवर्तकम् ॥
मार्कण्डेययुत पुराणपटलं रम्य च
रामायणम् ।
श्रीमद्भगवतं सदासुखकरं कुर्वन्तु
वो मंगलम् ॥ १३ ॥
पद्म पुराण,
स्कन्द पुराण, गरुड़ पुराण, शक्ति पुराण, मानस पुराण, ब्रह्माण्ड
पुराण, लिंग पुराण, अग्नि पुराण,
सूर्य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण, ब्रह्मवैवर्तक पुराण और मार्कण्डेय
पुराण आदि प्रसिद्ध पुराण और पुराण जिनमें कि श्रीमद्भागवत प्रधान पुराण माना जाता
है तथा जिनमें कि मुख्य अठारह पुराण माने गए हैं वे सभी पुराण तथा रमणीय रामायण
आदि पूजनीय ग्रन्थ आप लोगों का कल्याण करें ॥ १३॥
हेरम्बः सुरपूजितो गुणमयो लम्बोदरः
श्रीयुतः ।
सुण्डाढ्यो गजकर्णको गजमुखोगम्भीर
विद्योगुणी ॥
गौरीसूनु गणेश्वरो हरसुतो
गोविंदपूजाकृतो ।
यात्रा जन्मविवाहकार्यसमये कुयत्सदामंगलम्
॥ १४॥
देवताओं से पूजित हेरम्ब,
गुणों से युक्त श्रीमान् लम्बोदर, सूंड से
सुशोभित, हाथी के से कानवाले, हाथी के
से मुखवाले पार्वती के पुत्र, गुणों के स्वामी शंकरजी के
बेटे, जिनकी पूजा गोविंद आदि सभी देवता किसी भी कार्य में
सबसे प्रथम करते हैं वे गणेशजी यात्रा, जन्म और विवाह आदि
कार्यों के समय हमेशा आपका कल्याण करें ॥ १४॥
शैलेन्द्रो मणिभिर्युतो मुखकरो
विन्ध्याचलः शोभनः ।
चन्द्रो द्रोणमहेन्द्र नीलगिरयो
यत्रागतेचन्दनः ।।
शोभाढ्योमृगपक्षिभिश्चसीहता ने
वित्तशांतिप्रदा ।
सर्वेते गिरयः सुमेरुसहिता कुर्वन्तु
वो मंगलम् ॥ १५ ॥
पर्वतों में प्रधान हिमालय जो
रत्नों और मणियों से भरा पड़ा है, शोभा से भरा
हुआ विन्ध्याचल चन्द्रगिरि द्रोणाचल जहां से हनुमान संजीवनी बूटी लेने गए थे और
औषधि को न पहचान जिस पर्वत को ही उखाड़ लाए थे, महेन्द्रगिरि
और नीलगिरि जहां पर चन्दन उत्पन्न होता है। जो पर्वत अपनी रमणीय शोभा में बड़े ही
धनी हैं, नाना प्रकार के जंगली जीव जन्तु जिनमें निवास करते
हैं, जिन पर नाना प्रकार के पक्षी मधुर राग गाया करते हैं
तथा जिनकी शोभा चित्त को शांति देनेवाली है। वे सभी पर्वत सुमेरु नाम के स्वर्ण
पर्वत के साथ आप लोगों का कल्याण करें ।। १५ ।
सिद्धार्थाः कविकालिदासकविता कुम्भः
प्रपूर्णोजलैः ।
पुण्यश्चन्दनचर्चितो गुणमयो गोरोचनः
श्रीफलम् ॥
विप्रा वेदविधौ प्रभात समये
संलग्नचित्तस्तथा ।
दूर्वामंगलतण्डुली प्रतिदिनं
कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ १६ ॥
कालिदास कवि की कविता,
जो अर्थ से भरी हुई है, पवित्र जल से भरा हुआ
कुम्भ, पुण्य चन्दन-सा श्रेष्ठ गोरोचन, श्रीफल, प्रातः काल में वेद के विधान के अनुसार
कार्यों में चित्त लगाते हुए ब्राह्मण, दूब और मंगलमय अक्षत
(चावल) ये सभी मंगल की वस्तुएं सदैव ही आपका कल्याण करें ॥ १६ ॥
इत्येवं वरमंगलाष्टकमिदं प्राप्नोति
पुण्यं महत् ।
पुण्यं सम्प्रति कालिदासकविता।
प्राप्तामनोज्ञा सदा ॥
यः प्रातः श्रवणात्समाहितमनो दत्वा
द्विजान् दक्षिणम् ।
गंगासागरसंगमोद्भवकलं प्राप्नोति
पुण्यं महत् ॥ १७॥
इस प्रकार यह कालिदास की मनोहर
कविता जो नितांत ही पवित्र है, आज आप लोगों
को सुनने को मिल रही है। जो यह सुन्दर अष्टक पढ़ता, सुनता है
उसे बड़ा पुण्य मिलता है। जो सवेरे ही पवित्र ब्राह्मणी को दक्षिणा आदि यथाविधि
देकर इस आशीर्वाद को प्राप्त करता है उसे गंगासागर के संगम में स्नान करने से जो
पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य
मिलता है॥ १७ ॥
॥ इति श्री कालिदासकृतं मंगलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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