राधा कृष्ण शाखोच्चार
राधा और कृष्ण के शाखोच्चार का अर्थ
है,
उनके विवाह के समय किए जाने वाले मंत्रोच्चार या धार्मिक अनुष्ठान,
जो ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, भांडीरवन में ब्रह्माजी द्वारा संपन्न कराए गए थे ।
राधा कृष्ण शाखोच्चार
राधा-कृष्ण शाखोच्चार के विषय में
कुछ महत्वपूर्ण बातें :
१. ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग
संहिता में राधा और कृष्ण के विवाह का उल्लेख मिलता है,
जहाँ ब्रह्माजी ने खुद उनके विवाह का आयोजन किया था ।
२. यह माना जाता है कि राधा और
कृष्ण का विवाह ब्रज के भांडीरवन में हुआ था, जो
मथुरा से लगभग 30 किलोमीटर दूर है ।
३. ब्रज के भांडीरवन में एक मंदिर
है,
जहाँ श्रीकृष्ण और राधा की मूर्ति है, जिसमें
दोनों दूल्हा-दुल्हन के रूप में हैं और ब्रह्माजी उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं ।
४. प्रतिवर्ष, यह दिव्य विवाह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी-मार्च के महीने में आता है।
राधा कृष्ण शाखोच्चार
Radha Krishna Shakhochar
राधा-कृष्ण के विवाह का शाखोच्चार
राधा कृष्ण शाखोच्चार
अथ राधा-कृष्ण के विवाह का
शाखोच्चार
प्रथमहि सुमिरन मैं करूं गौरी पुत्र
गणेश ।
विष्णु व्यापक सूर्य फिर दुर्गा और
महेश ॥ १ ॥
पाँच देव को ध्याय के शाखा कहूँ
बनाय ।
राधाकृष्ण विवाह की सुनियो सब
चितलाय ॥ २ ॥
जो सुनके सुख होयगो सब ही के मनमाँय
।
दुःख मिटे संकट कटे सकल पाप मिट जाय
॥ ३ ॥
एक समय लायक गुणी बालक नन्द कुमार ।
उनको मिल गये भाग्य से गुणगण के
भंडार ॥ ५ ॥
जैसी थीं श्री राधिका सुन्दरता की
सार ।.
वैसा ही वर मिल गया कृष्ण रूप भरतार
॥ ६ ॥
लग्न लेय पण्डित चल्यो आयो गोकुल
गाँव ।
नन्दराय जी ने उसे दी हा सुन्दर ठाँव
॥ ७ ॥
विप्र देव राजी हुए बरसाने फिर आय ।
कही सकल बातें तुरत हरषि कृष्ण
गुणगाय ॥ ८ ॥
ब्याह दिवस आयो तभी सजकर चली बरात ।
हाथी घोड़ा रथ सज्या मारग नहीं समात
॥ ९ ॥
नर नारी देखें सभी मन में अति हरषाय
।
सो छवि कृष्ण बरात की हमसे कही न
जाय ॥ १० ॥
सामेला पूजा हुई लग्न समय दिखलाय ।
चंवरी मांडी प्रेम से वेदी रुचिर
बनाय ॥ ११ ॥
फेरा खावें राधिका कृष्णचन्द्र
भगवान ।
फिर बढ़ार जीमण हुयो बण्या बहुत
पकवान ॥ १२ ॥
लाडू घेवर फीणियां बढ़िया मोतीचूर ।
रसगुल्ला चोखा घृणा ओ रससूं भरपूर ॥
१३ ॥
पूड़ी और कचौरियाँ परस करें मनवार ।
जीमजूद राजी हुया सब जानी सरदार ॥ १४
॥
श्री राधा की भेंट दे विनय करें
वृषभान ।
नन्दराय तुम हो बड़े मोहि दास कर
मान ॥ १५ ॥
ऐसी विनती कर घणी दीन्हां पान अधाय
।
हाथी घोड़ा रथ सभी दीन्हे सजा सजाय ॥
१६ ॥
बहुत दासियां दान दीं गहने वस्त्र
सजाय ।
वृपमान के दान की गिनती कही न जाय ॥
१७ ॥
होय बिदा घर को चले बड़े खुशी
नंदराय ।
तब सुन्दर बाजा बज्या ध्वजा फरकती
जाय ॥ १८ ॥
शाखा कृष्ण विवाह की जो गुणले
चितलाय ।
मन का दुःख जाता रहे सकल काम हो जाय
॥ १६ ॥
चिरंजीव हो वर वधू,
ही आनँद अधिकाय ।
राधा कृष्ण विवाह को जो सुनते मन
लाय ॥ २० ॥
।। इति कृष्ण विवाह का शाखोचार सम्पूर्ण ।।
आगे जारी..... मंगलाष्टक शाखोच्चार
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