मारुति स्तोत्र
मारुती स्तोत्र हनुमान जी का
आशीर्वाद पाने का सबसे सफल और सिद्ध मन्त्र है। मारुती स्तोत्र के जाप से हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त को
निर्भयता और निरोगी होने का आशीर्वाद देतें हैं। मारुती स्तोत्र एक सिद्ध मन्त्र
है। मारुती स्तोत्र का जाप करने वाला भक्त सदा हनुमान जी के निकट रहता है। हनुमानजी सदा अपने भक्त की रक्षा करतें है।
ऐसा माना जाता है कि समर्थ गुरु
रामदास जी हनुमान जी भक्त थे और उन्हीं की भक्ति में उन्होंने मारुति स्तोत्र की
रचना की। वे एक महान संत और वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे। उनका जन्म
महाराष्ट्र में हुआ था। इसलिए उन्होंने मारुति स्तोत्र को मराठी में भी लिखा है। किसी
भी देवी-देवता के स्तोत्र में उनकी स्तुति गायी जाती है। उनके स्वरूप का गुणगान
किया जाता है। समर्थ गुरु रामदास जी ने भी मारुति स्तोत्र में भी ऐसा ही किया है।
उन्होंने स्तोत्र के पहले 13 श्लोकों में
मारुति यानि हनुमान जी का वर्णन किया है। इसके बाद अंत के चार श्लोंकों में हनुमान
के प्रति चरणश्रुति है साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि जो भक्त मारुति स्तोत्रम्
का पाठ करेगा उसे किस प्रकार के फल या लाभ प्राप्त होंगे। जो लोग मारुति स्तोत्रम्
का पाठ करते हैं, उनकी सभी परेशानियां, मुश्किलें और चिंताएं श्री हनुमान के आशीर्वाद से गायब हो जाती हैं। वे
अपने सभी दुश्मनों और सभी बुरी चीजों से मुक्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि इस
स्तोत्रम में 1100 बार पाठ करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती
हैं।
मारुती स्तोत्र
भीमरूपी महारुद्रा वज्र हनुमान
मारुती ।
वनारी अन्जनीसूता रामदूता प्रभंजना
॥1॥
महाबळी प्राणदाता सकळां उठवी बळें ।
सौख्यकारी दुःखहारी दूत वैष्णव
गायका ॥2॥
दीननाथा हरीरूपा सुंदरा जगदंतरा ।
पातालदेवताहंता भव्यसिंदूरलेपना ॥3॥
लोकनाथा जगन्नाथा प्राणनाथा पुरातना
।
पुण्यवंता पुण्यशीला पावना परितोषका
॥4॥
ध्वजांगें उचली बाहो आवेशें लोटला
पुढें ।
काळाग्नि काळरुद्राग्नि देखतां
कांपती भयें ॥5॥
ब्रह्मांडें माइलीं नेणों आंवाळे
दंतपंगती ।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा
भ्रुकुटी ताठिल्या बळें ॥6॥
पुच्छ तें मुरडिलें माथां किरीटी
कुंडलें बरीं ।
सुवर्ण कटि कांसोटी घंटा किंकिणि
नागरा ॥7॥
ठकारे पर्वता ऐसा नेटका सडपातळू ।
चपळांग पाहतां मोठें
महाविद्युल्लतेपरी ॥8॥
कोटिच्या कोटि उड्डाणें झेंपावे
उत्तरेकडे ।
मंदाद्रीसारखा द्रोणू क्रोधें
उत्पाटिला बळें ॥9॥
आणिला मागुतीं नेला आला गेला मनोगती
।
मनासी टाकिलें मागें गतीसी तूळणा
नसे ॥10॥
अणूपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे
।
तयासी तुळणा कोठें मेरु- मांदार
धाकुटे ॥11॥
ब्रह्मांडाभोंवते वेढे वज्रपुच्छें
करूं शके ।
तयासी तुळणा कैंची ब्रह्मांडीं
पाहतां नसे ॥12॥
आरक्त देखिले डोळां ग्रासिलें
सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे भेदिलें
शून्यमंडळा ॥13॥
धनधान्य पशुवृद्धि पुत्रपौत्र
समग्रही ।
पावती रूपविद्यादि स्तोत्रपाठें
करूनियां ॥14॥
भूतप्रेतसमंधादि रोगव्याधि समस्तही
।
नासती तुटती चिंता आनंदे भीमदर्शनें
॥15॥
हे धरा पंधराश्लोकी लाभली शोभली बरी
।
दृढदेहो निःसंदेहो संख्या चंद्रकला
गुणें ॥16॥
रामदासीं अग्रगण्यू कपिकुळासि मंडणू
।
रामरूपी अन्तरात्मा दर्शने दोष
नासती ॥17॥
॥इति श्री रामदासकृतं संकटनिरसनं
नाम मारुति स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥
मारुती स्तोत्र के पाठ करने से लाभ
मारुती स्तोत्र एक महान सिद्ध
मन्त्र है। मारुती स्तोत्र के नियमित जाप से हनुमान जी अवश्य प्रसन्न होतें हैं और
अपने भक्त के सभी संकटो का हरण कर लेते हैं।
मारुती स्तोत्र का पाठ करने से
हनुमान जी प्रसन्न होतें है और अपने भक्त को आशीर्वाद देतें हैं।
मारुती स्तोत्र के पाठ से भक्त के
जीवन में सभी तरह की शुख शांति मिलती है।
मारुती स्तोत्र के पाठ से भक्त के
ह्रदय से भय का नाश होता है।
मारुती स्तोत्र के पाठ से हनुमान जी
अपने भक्त के सभी कष्टों का निवारण कर देतें हैं।
मारुती स्तोत्र के पाठ से जीवन में
धन-धान्य की वृद्धि होती है।
मारुती स्तोत्र के पाठ से साधक के चारों
ओर स्थित सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है तथा
सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है।
मारुती स्तोत्र का पाठ करने से
हनुमान जी अपने भक्त के सभी रोग और कष्टों का निवारण करतें हैं।
मारुती स्तोत्र के पाठ से भक्त के शारीरिक और मानसिक शक्ति में वृद्धि
होती है।
मारुति स्तोत्र संपूर्ण ॥
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