महालक्ष्मी स्तोत्र
अगस्त ऋषि द्वारा की गई इस महालक्ष्मी स्तोत्र स्तुति का जो सदा भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन्हें कभी सन्ताप और दरिद्रता नहीं होता और लक्ष्मीजी के सामीप्य की प्राप्ति होता है। यह स्तोत्र स्कन्दपुराण के काशीखण्ड-पूर्वार्ध में श्लोक ८०-८७ में वर्णित है।
महालक्ष्मी स्तोत्र
अगस्तिरुवाच।।
मातर्नमामि कमले कमलायताक्षि
श्रीविष्णुहृत्कमलवासिनि विश्वमातः ।।
क्षीरोदजे कमलकोमलगर्भ गौरि लक्ष्मि
प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ।। 4.1.5.८० ।।
कमल के समान विशाल नेत्रोंवाली मातः
कमले ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आप भगवान् विष्णु के हृदयकमल में निवास करनेवाली
तथा सम्पूर्ण विश्व की जननी हैं। कमल के कोमल गर्भ के सदृश गौर वर्णवाली क्षीरसागर
की पुत्री महालक्ष्मी ! आप अपनी शरण में आये हुए प्रणतजनों का पालन करनेवाली हैं।
आप सदा मुझ पर प्रसन्न हो ।
त्वं श्रीरुपेंद्रसदने
मदनैकमातर्ज्योत्स्नासि चंद्रमसि चंद्रमनोहरास्ये।
सूर्ये प्रभासि च जगत्त्रितये
प्रभासि लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये।। ८१ ।।
मदन की एकमात्र जननी रुक्मिणीरूपधारिणी
लक्ष्मी ! आप भगवान् विष्णु के वैकुण्ठधाम में श्री नाम से प्रसिद्ध हैं। चन्द्रमा
के समान मनोहर मुखवाली देवि ! आप ही चन्द्रमा में चाँदनी हैं,
सूर्य में प्रभा हैं और तीनों लोकों में आप ही प्रभासित होती हैं।
प्रणतजनों को आश्रय देनेवाली माता लक्ष्मी ! आप सदा मुझपर प्रसन्न हों ।
त्वं जातवेदसि सदा
दह्नात्मशक्तिर्वेधास्त्वया जगदिदं विविधं विदध्यात् ।।
विश्वंभरोपि बिभृयादखिलं भवत्या
लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ।। ८२ ।।
आप ही अग्नि में दाहिका शक्ति हैं।
ब्रह्माजी आपकी ही सहायता से विविध प्रकार के जगत् की रचना करते हैं । सम्पूर्ण
विश्व का भरण-पोषण करनेवाले भगवान् विष्णु भी आपके ही भरोसे सबका पालन करते हैं।
शरण में आकर चरण में मस्तक झुकानेवाले पुरुषों की निरन्तर रक्षा करनेवाली माता
महालक्ष्मी ! आप मुझपर प्रसन्न हों।
त्वत्त्यक्तमेतदमले हरते हरोपि त्वं
पासि हंसि विदधासि परावरासि ।।
ईड्यो बभूव हरिरप्यमले त्वदाप्त्या
लक्ष्मि प्रसीद सततं नमतां शरण्ये ।। ८३ ।।
निर्मल स्वरूपवाली देवि ! जिनको
आपने त्याग दिया है। उन्हीं का भगवान् रुद्र संहार करते हैं। वास्तव में आप ही जगत्
का पालन,
संहार और सृष्टि करनेवाली हैं। आप ही कार्य-कारणरूप जगत् हैं।
निर्मलस्वरूपा लक्ष्मी ! आपको प्राप्त करके ही भगवान् श्रीहरि सबके पूज्य बन गये ।
माँ! आप प्रणतजनों का सदैव पालन करनेवाली हैं, मुझपर प्रसन्न
हों ।
शूरः स एव स गुणी ,
बुधः धन्यो मान्यः स एव कुलशील कलाकलापैः ।।
एकः शुचिः स हि पुमान्सकलेपि लोके
यत्रापतेत्तव शुभे करुणाकटाक्षः ।। ८४ ।।
शुभे ! जिस पुरुष पर आपका
करुणापूर्ण कटाक्षपात होता है, संसार में
एकमात्र यही शूरवीर, गुणवान्, विद्वान्,
धन्य, मान्य कुलीन, शीलवान्,
अनेक कलाओं का ज्ञाता और परम पवित्र माना जाता है।
यस्मिन्वसेः क्षणमहोपुरुषे गजेऽश्वे
स्त्रैणे तृणे सरसि देवकुले गृहेऽन्ने।।
रत्ने पतत्त्रिणि पशौ शयने धरायां
सश्रीकमेव सकले तदिहास्तिनान्यत् ।। ८५ ।।
देवि ! आप जिस किसी पुरुष हाथी,
घोड़ा, नपुंसक, तिनका,
सरोवर, देवमन्दिर, गृह,
अन्न, रत्न, पशु-पक्षी,
शय्या और भूमि में क्षणभर भी निवास करती है। समस्त संसार में केवल वही
शोभासम्पन्न होता है, दूसरा नहीं ।
त्वत्स्पृष्टमेव सकलं शुचितां लभेत
त्वत्त्यक्तमेव सकलं त्वशुचीह लक्ष्मि ।।
त्वन्नाम यत्र च सुमंगलमेव तत्र
श्रीविष्णुपत्नि कमले कमलालयेऽपि ।। ८६ ।।
हे श्रीविष्णुपत्नि ! हे कमले ! हे
कमलालये ! हे माता लक्ष्मी ! आपने जिसका स्पर्श किया है,
वह पवित्र हो जाता है और आपने जिसे त्याग दिया है। वही सब इस जगत
में अपवित्र है । जहाँ आपका नाम है, वहीं उत्तम मङ्गल है ।
लक्ष्मीं श्रियं च कमलां कमलालयां च
पद्मां रमां नलिनयुग्मकरां च मां च।
क्षीरोदजाममृतकुंभकरामिरां च
विष्णुप्रियामिति सदाजपतां क्व दुःखम् ।। ८७ ।।
जो लक्ष्मी,
श्री, कमला, कमलालया,
पद्मा, रमा, नलिनयुग्मकरा (दोनों हाथों
में कमल धारण करनेवाली), माँ, क्षीरोदजा, अमृतकुम्भकरा ( हाथों में अमृत का कलश धारण करनेवाली ), इरा और विष्णुप्रिया-इन नामों का सदा जप करते हैं उनके लिये कहाँ दुःख है।
महालक्ष्मी स्तोत्र समाप्त।।
0 Comments