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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
तन्त्रोक्त देवीसूक्त
तन्त्रोक्त देवीसूक्त के पाठ से घर
में धन वैभव एवं शांति आती है। दुर्गा सप्तशती में देवी सूक्त का विशेष महत्त्व है
कहा जाता है की देवी सूक्त के पाठ करने से भक्त को देवी माँ मनोवांछित फल प्रदान
करती है। नियमित देवी सूक्त का पाठ करने
से जीवन में धन, ऐश्वर्य, वैभव,
आनंद और शांति मिलता है।
किसी भी कार्य मे आने वाली परेशानी या समस्या नियमित देवी सूक्त का पाठ
करने से शीघ्र ही दूर हो जाता है। यही नहीं यदि
मानसिक अवसाद से ग्रसित व्यक्ति भी यदि देवी सूक्त का नियमित पाठ करें तो
लाभदायक होगा। इसके भावार्थ के लिए श्रीदुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्यायः के श्लोक ९-८२
का अवलोकन करें।
तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्
Tantrokta Devi suktam
तन्त्रोक्त देवीसूक्त
तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्
तन्त्रोक्त देवी सूक्त
अथ तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं
नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः
प्रणताः स्मताम् ॥१॥
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै
धात्र्यै नमो नमः ।
ज्योत्स्ना यै चेन्दुरुपिण्यै
सुखायै सततं नमः ॥२॥
कल्याण्यै प्रणतां वृध्दै सिध्दयै
कुर्मो नमो नमः ।
नैऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै
शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥३॥
दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै
सर्वकारिण्यै ।
ख्यातै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं
नमः ॥४॥
अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो
नमः ।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै
नमो नमः ॥५॥
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति
शाध्दिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥६॥
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते
।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥७॥
या देवी सर्वभूतेषु बुध्दिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥८॥
या देवी सर्वभूतेषु निद्रारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥९॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१०॥
या देवी सर्वभूतेषु छायारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥११॥
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१२॥
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१३॥
या देवी सर्वभूतेषु क्षान्तिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१४॥
या देवी सर्वभूतेषु जातिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१५॥
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१६॥
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१७॥
या देवी सर्वभूतेषु श्रध्दारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१८॥
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥१९॥
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२०॥
या देवी सर्वभूतेषु वृत्तिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२१॥
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२२॥
या देवी सर्वभूतेषु दयारुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२३॥
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२४॥
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२५॥
या देवी सर्वभूतेषु भ्रांतिरुपेण
संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२६॥
इंद्रियाणामधिष्ठात्री भूतानं
चाखिलेषु या ।
भूतेषु सततं तस्यै व्याप्तिदेव्यै
नमो नमः ॥२७॥
चितिरुपेण या कृत्सनमेद्वयाप्य
स्थिता जगत् ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो
नमः ॥२८॥
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रया-
त्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्याभिहन्तु चापदः ॥२९॥
या सांप्रतं चोध्दतदैत्यतापितै-
रस्माभिरीशा च सुरैर्नमस्यते ।
या च तत्क्षणमेव हन्ति नः
सर्वापदो भक्ति विनम्रमूर्तिभिः
॥३०॥
॥इति तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम् समाप्त ॥
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