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यदि शत्रु बाधाओं से ग्रसित हो कोई उपाय न सूझ रहा हो तो संकटनाशिनी महिषासुर का मर्दन करने वाली माँ महिषासुरमर्दिनि के महिषासुर मर्दिनि स्तोत्र अथवा श्रीसंकटा स्तुति का पाठ करें ।
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम्
Mahishasur mardini stotram
महिषासुरमर्दिनिस्तोत्र अथवा श्रीसंकटा स्तुति
महिषासुर मर्दिनि स्तोत्रम्
श्रीसंकटास्तुतिः
॥ महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् ॥
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि
विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि
विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि
भूरिकुटुम्बिनि भूतिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
पर्वतराज हिमालय की कन्यारूपिणी,
पृथ्वी को आनन्दित करनेवाली, संसार को हर्षित
रखनेवाली, नन्दिगण से नमस्कार की जानेवाली, गिरिश्रेष्ठ विन्ध्याचल के शिखर पर निवास करनेवाली, भगवान्
विष्णु को प्रसन्न
रखनेवाली,
इन्द्र से नमस्कृत होनेवाली, भगवान् शिव की
भार्या के रूप में प्रतिष्ठित, विशाल कुटुम्बवाली और ऐश्वर्य
प्रदान करनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय
हो, जय हो ॥१॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि
दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि
कल्मषमोषिणि घोषरते ।
दनुजनिरोषिणि दुर्मदशोषिणि
दुर्मुनिरोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
देवराज इन्द्र को समृद्धिशाली
बनानेवाली, दुर्धर तथा दुर्मुख नामक
दैत्यों का विनाश करनेवाली, सर्वदा हर्षित रहनेवाली, तीनों लोकों का पालन-पोषण करनेवाली, भगवान् शिव को
संतुष्ट रखनेवाली, पाप को दूर करनेवाली, घोर गर्जन करनेवाली, दैत्यों पर भीषण कोप करनेवाली,
मदान्धों के मद का हरण कर लेनेवाली, सदाचार से
रहित मुनिजनों पर क्रोध करनेवाली और समुद्र की कन्या महालक्ष्मी के रूप में
प्रतिष्ठित हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो,
जय हो ॥ २ ॥
अयि जगदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि
तोषिणि हासरते
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालय
शृङ्गनिजालयमध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि
महिषविदारिणि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि
शैलसुते ॥ ३ ॥
जगत्की मातास्वरूपिणी,
कदम्बवृक्ष के वन में प्रेमपूर्वक निवास करनेवाली, सदा संतुष्ट रहनेवाली, हास-परिहास में सदा रत
रहनेवाली, पर्वतों में श्रेष्ठ ऊँचे हिमालय की चोटी पर अपने
भवन में विराजमान रहनेवाली, मधु से भी अधिक मधुर स्वभाववाली,
मधु- कैटभ का संहार करनेवाली, महिष को विदीर्ण
कर डालनेवाली और रासक्रीडा में मग्न रहनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ ३ ॥
अयि निजहुंकृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलोचनधूम्रशते
समरविशोषितरोषितशोणितबीजसमुद्भवबीजलते
।
शिवशिवशुम्भनिशुम्भमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
अपने हुंकारमात्र से धूम्रलोचन तथा
धूम्र आदि सैकड़ों असुरों को भस्म कर डालनेवाली, युद्धभूमि में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न हुए अन्य रक्तबीजसमूहों का
रक्त पी जानेवाली और शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों के महायुद्ध से तृप्त किये गये
मंगलकारी शिव के भूत- पिशाचों के प्रति अनुराग रखनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय
पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ ४ ॥
अयि शतखण्डविखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्डगजाधिपते
निजभुजदण्डनिपातितचण्डविपाटितमुण्डभटाधिपते
।
रिपुगजगण्डविदारणचण्डपराक्रमशौण्डमृगाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
गजाधिपति के बिना सूँड़ के धड़ को
काट-काटकर सैकड़ों टुकड़े कर देनेवाली, सेनाधिपति
चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों को अपने भुज- दण्ड से मार-मारकर विदीर्ण कर देनेवाली,
शत्रुओं के हाथियों के गण्डस्थल को भग्न करने में उत्कट पराक्रम से
सम्पन्न कुशल सिंह पर आरूढ़ होनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ ५ ॥
धनुरनुषङ्गरणक्षणसङ्गपरिस्फुरदङ्गनटत्कटके
कनकपिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भट
शृङ्गहताबटुके ।
हतचतुरङ्गबलक्षितिरङ्गघटद्
बहुरङ्गरटद् बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
समरभूमि में धनुष धारण कर अपने शरीर
को केवल हिलाने मात्र से शत्रुदल को कम्पित कर देनेवाली,
स्वर्ण के पीले वर्ण के तीर और तरकश से युक्त भीषण योद्धाओं के सिर
काटनेवाली और [हाथी-घोड़ा, रथ, पैदल]
चारों प्रकार की सेनाओं का संहार करके रणभूमि में अनेक प्रकार की शब्दध्वनि
करनेवाले बटुकों को उत्पन्न करनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ ६ ॥
अयि रणदुर्मदशत्रुवधादधुरदुर्धरनिर्भरशक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशयदूतकृतप्रमथाधिपते
।
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतदुरन्तगते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
रणभूमि में मदोन्मत्त शत्रुओं के वध
से बढ़ी हुई अदम्य तथा पूर्ण शक्ति धारण करनेवाली, चातुर्यपूर्ण विचारवाले लोगों में श्रेष्ठ और गम्भीर कल्पनावाले
प्रमथाधिपति भगवान् शंकर को दूत बनानेवाली; पापी, दूषित कामनाओं तथा कुत्सित विचारोंवाले दुर्बुद्धि दानवों के दूतों से न
जानी जा सकनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय
हो, जय हो ॥ ७ ॥
अयि शरणागतवैरिवधूजनवीरवराभयदायिकरे
त्रिभुवनमस्तकशूलविरोधिशिरोधिकृतामलशूलकरे
।
दुमिदुमितामरदुन्दुभिनादमुहुर्मुखरीकृतदिङ्गिनकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
शरणागत शत्रुओं की स्त्रियों के वीर
पतियों को अभय प्रदान करनेवाले हाथ से शोभा पानेवाली,
तीनों लोकों को पीड़ित करनेवाले दैत्यशत्रुओं के मस्तक पर प्रहार
करनेयोग्य तेजोमय त्रिशूल हाथ में धारण करनेवाली तथा देवताओं की दुन्दुभि से ‘दुम्- दुम् ' - इस प्रकार की ध्वनि से समस्त दिशाओं को
बार-बार गुंजित करनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती !
आपकी जय हो, जय हो ॥ ८ ॥
सुरललनाततथेयितथेयितथाभिनयोत्तरनृत्यरते
कृतकुकुथाकुकुथोदिडदाडिकतालकुतूहलगानरते
।
धुधुकुटधूधुटधिन्धिमितध्वनिघोरमृदङ्गनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
देवांगनाओं के तत-था-थेयि-थेयि आदि
शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहनेवाली, कुकुथा आदि विभिन्न प्रकार की मात्राओंवाले तालों से युक्त आश्चर्यमय
गीतों को सुनने में लीन रहनेवाली और मृदंग की धुधुकुट-धूधुट आदि गम्भीर ध्वनि को
सुनने में तत्पर रहनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती !
आपकी जय हो, जय हो ॥ ९ ॥
जय जय जाप्यजये
जयशब्दपरस्तुतितत्परविश्वनुते
झणझणझिंझिमझिंकृतनूपुरशिञ्जितमोहितभूतपते
।
नटितनटार्धनटीनटनायकनाटननाटितनाट्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
हे जपनीय मन्त्र की
विजयशक्तिस्वरूपिणि! आपकी बार-बार जय हो । जय-जयकार शब्दसहित स्तुति करने में
तत्पर समस्त संसार के लोगों से नमस्कृत होनेवाली, अपने नूपुर के झणझण, झिंझिम शब्दों से भूतनाथ भगवान्
शंकर को मोहित करनेवाली और नटी-नटों के नायक प्रसिद्ध नट अर्धनारीश्वर शंकर के
नृत्य से सुशोभित नाट्य देखने में तल्लीन रहनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १० ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनःसुमनः
सुमनोरमकान्तियु
श्रितरजनीरजनीरजनीरजनीरजनीकरवक्त्रभृते
।
सुनयनविभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराभिदृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
प्रसन्नचित्त तथा संतुष्ट देवताओं के
द्वारा अर्पित किये गये पुष्पों से अत्यन्त मनोरम कान्ति धारण करनेवाली,
निशाचरों को वर प्रदान करनेवाले शिवजी की भार्या, रात्रिसूक्त से प्रसन्न होनेवाली, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और सुन्दर नेत्रवाले कस्तूरी मृगों में
व्याकुलता उत्पन्न करनेवाले भौंरों से तथा भ्रान्ति को दूर करनेवाले ज्ञानियों से
अनुसरण की जानेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती! आपकी जय
हो, जय हो ॥ ११॥
महितमहाहवमल्लमतल्लिकवल्लितरल्लितभल्लिरते
विरचितवल्लिकपालिकपल्लिकझिल्लिकभिल्लिकवर्गवृते
।
श्रुतकृतफुल्लसमुल्लसितारुणतल्लजपल्लवसल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
महनीय महायुद्ध के श्रेष्ठ वीरों के
द्वारा ( इधर-उधर) घुमावदार तथा कलापूर्ण ढंग से चलाये गये भालों के युद्ध के
निरीक्षण में चित्त लगानेवाली; कृत्रिम
लतागृह का निर्माण कर उसका पालन करनेवाली स्त्रियों की बस्ती में 'झिल्लिक' नामक वाद्य विशेष बजानेवाली भिल्लिनियों के
समूह से सेवित होनेवाली और कान पर रखे हुए विकसित सुन्दर रक्तवर्ण तथा श्रेष्ठ
कोमल पत्तों से सुशोभित होनेवाली हे भगवान् शिव की प्रियपत्नी महिषासुरमर्दिनी
पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १२ ॥
अयि सुदतीजन
लालसमानसमोहनमन्मथराजसुते
अविरलगण्डगलन्मदमेदुरमत्तमत्तङ्गजराजगते
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधिरूपपयोनिधिराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
सुन्दर दंतपंक्तिवाली स्त्रियों के
उत्कण्ठापूर्ण मन को मुग्ध कर देनेवाले कामदेव को जीवन प्रदान करनेवाली,
निरन्तर मद चूते हुए गण्डस्थल से युक्त मदोन्मत्त गजराज के सदृश
मन्थर गतिवाली और तीनों लोकों के आभूषणस्वरूप चन्द्रमा के समान कान्तियुक्त सागर-
कन्या के रूप में प्रतिष्ठित हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी
पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १३ ॥
कमलदलामलकोमलकान्तिकलाकलितामलभालतले
सकलविलासकलानिलयक्रमकेलिचलत्कलहंसकुले
।
अलिकुलसङ्कुलकुन्तलमण्डलमौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
कमलदल के सदृश वक्र,
निर्मल और कोमल कान्ति से परिपूर्ण एक कला वाले चन्द्रमा से सुशोभित
उज्ज्वल ललाट- पटलवाली, सम्पूर्ण विलासों की कलाओं की
आश्रयभूत मन्दगति तथा क्रीड़ा से सम्पन्न राजहंसों के समुदाय से सुशोभित होनेवाली
और भौंरों के सृदश काले तथा सघन केशपाश की चोटी पर शोभायमान मौलसिरी- पुष्पों की
सुगन्ध से भ्रमरसमूहों को आकृष्ट करनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १४ ॥
करमुरलीरववर्जितकूजितलज्जितकोकिलमञ्जुम
मिलितमिलिन्दमनोहरगुञ्जितरञ्जितशैलनिकुञ्जगते
।
निजगणभूतमहाशबरीगणरङ्गणसम्भृतकेलिरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
आपके हाथ में सुशोभित मुरली की
ध्वनि सुनकर बोलना बंद करके लाज से भरी हुई कोकिल के प्रति प्रिय भावना रखनेवाली,
भौंरों के समूहों की मनोहर गूँज से सुशोभित पर्वत- प्रदेश के
निकुंजों में विहार करनेवाली और अपने भूत तथा भिल्लिनी आदि गणों के नृत्य से युक्त
क्रीड़ाओं को देखने में सदा तल्लीन रहनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १५ ॥
कटितटपीतदुकूलविचित्रमयूखतिरस्कृतचण्डरुचे
जितकनकाचलमौलिमदोर्जितगर्जितकुञ्जरकुम्भकुचे
।
प्रणतसुराऽसुरमौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नखचन्द्ररुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१६ ॥
अपने कटिप्रदेश पर सुशोभित पीले रंग
के रेशमी वस्त्र की विचित्र कान्ति से सूर्य की प्रभा को तिरस्कृत कर देनेवाली,
सुमेरु पर्वत शिखर पर मदोन्मत्त गर्जना करनेवाले हाथियों के
गण्डस्थल के समान वक्षःस्थलवाली और आपको प्रणाम करनेवाले देवताओं तथा दैत्यों के
मस्तक पर स्थित मणियों से निकली हुई किरणों से प्रकाशित चरणनखों में चन्द्रमासदृश
कान्ति धारण करनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती !
आपकी जय हो, जय हो ॥ १६ ॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक
सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारकसङ्गरतारकसङ्गरतारकसूनुनुते
।
सुरथसमाधिसमानसमाधिसमानसमाधिसुजाप्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।। १७ ।।
हजारों हस्त नक्षत्रों को जीतनेवाले,
सहस्र किरणोंवाले भगवान् सूर्य की एकमात्र नमस्करणीय; देवताओं के उद्धार हेतु युद्ध करनेवाले, तारकासुर से
संग्राम करनेवाले तथा संसार सागर से पार करनेवाले शिवजी के पुत्र कार्तिकेय से
प्रणाम की जानेवाली और राजा सुरथ तथा समाधि नामक वैश्य की सविकल्प समाधि के समान समाधियों
में सम्यक् जपे जानेवाले मन्त्रों में प्रेम रखनेवाली हे भगवान् शिव की प्रिय
पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १७ ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति
योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं
न भवेत् ।
तव पदमेव परं पदमस्त्विति शीलयतो मम
किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
हे करुणामयी कल्याणमयी शिवे ! हे
कमलवासिनी कमले ! जो मनुष्य प्रतिदिन आपके चरणकमल की उपासना करता है,
उसे लक्ष्मी का आश्रय क्यों नहीं प्राप्त होगा! हे शिवे ! आपका चरण
ही परम पद (मोक्ष) है — ऐसी भावना रखनेवाले मुझ भक्त को
क्या-क्या सुलभ नहीं हो जायगा अर्थात् सब कुछ प्राप्त हो जायगा । हे भगवान् शिव की
प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती! आपकी जय हो, जय हो ॥
१८ ॥
कनकलसत्कलशीकजलैरनुषिञ्चति तेऽङ्गणरङ्गभुवं
भजति स किं न
शचीकुचकुम्भनटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि सुवाणि पथं मम
देहि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
स्वर्ण के समान चमकते घड़ों के जल से
जो आपके प्रांगण की रंगभूमि को प्रक्षालित कर उसे स्वच्छ बनाता है,
वह इन्द्राणी के समान विशाल वक्षःस्थलोंवाली सुन्दरियों का सान्निध्य-सुख
अवश्य ही प्राप्त करता है। हे सरस्वति! मैं आपके चरणों को ही अपनी शरणस्थली बनाऊँ;
मुझे कल्याणकारक मार्ग प्रदान करो। हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी
महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ १९ ॥
तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं
कलयन्ननुकूलयते
किमु
पुरुहूतपुरीन्दुमुखीसुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवमानधने भवती कृपया
किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यशैलसुते ॥२०॥
स्वच्छ चन्द्रमा के सदृश सुशोभित
होनेवाले आपके मुखचन्द्र को निर्मल करके जो आपको प्रसन्न कर लेता है,
क्या उसे देवराज इन्द्र की नगरी में रहनेवाली चन्द्रमुखी सुन्दरियाँ
सुख से वंचित रख सकती हैं ! भगवान् शिव के सम्मान को अपना सर्वस्व समझनेवाली [हे
भगवति!] मेरा तो यह विश्वास है कि आपकी कृपा से क्या-क्या सिद्ध नहीं हो जाता ! हे
भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ २० ॥
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया
भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननीति यथाऽसि मयाऽसि
तथाऽनुमतासि रमे ।
यदुचितमत्र भवत्पुरगं कुरु शाम्भवि
देवि दयां कुरु मे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥
हे उमे ! आप सदा दीन-दु:खियों पर
दया का भाव रखती हैं, अतः आप मुझ पर
कृपालु बनी रहें । हे महालक्ष्मी ! जैसे आप सारे संसार की माता हैं, वैसे ही मैं आपको अपनी भी माता समझता हूँ । हे शिवे ! यदि आपको उचित
प्रतीत होता हो तो मुझे अपने लोक में जाने की योग्यता प्रदान करें; हे देवि ! मुझ पर दया करें। हे भगवान् शिव की प्रिय पत्नी महिषासुरमर्दिनी
पार्वती ! आपकी जय हो, जय हो ॥ २१ ॥
श्रीसंकटास्तुतिः महात्म्य
स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना
नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् ।
परमया रमया स निषेव्यते
परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत् ॥ २२ ॥
जो मनुष्य शान्तभाव से पूर्णरूप से
मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र
का पाठ करता है, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा
वास करती हैं और उसके बन्धु-बान्धव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा में तत्पर रहते
हैं ॥ २२ ॥
॥ इति श्रीसंकटास्तुतिः महिषासुरमर्दिनि
स्तोत्रम् सम्पूर्णा ॥
॥ इस प्रकार श्रीसंकटास्तुति सम्पूर्ण हुई ॥
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