डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन Saptaghrit matrika pujan

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन Saptaghrit matrika pujan  

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन Saptaghrit matrika pujan हिन्दुओं के शाक्तसंप्रदाय में  सप्तघृतमातृकाओं का उल्लेख महाशक्ति की सककारी सात देवियों के लिए हुआ है । ये देवियाँ हैं۔ ब्राह्मणी, वैष्णवी ,माहेश्वरी ,इंद्राणी, कौमारी ,वाराही और चामुंडा अथवा नरसिंही ।  इन्हें ही मातृका या मातर भी कहते हैं । किसी۔ किसी संप्रदाय में मातृकाओं की संख्या आठ (अष्टमातृका) बतायी गई है । नेपाल में अष्टमातृकाओं का पूजन होता है । वहीं दक्षिण भारत में सप्तमातृकाएँ ही पूजित है । कुछ विद्वान इन्हें शैविदेवी भी कहते हैं ।

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन Saptaghrit matrika pujan

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृत मातृका पूजन Saptaghrit matrika pujan

किसी पट्ट, शिला या दीवार पर सिन्दूर से बिंदिया नीचे से ऊपर की ओर ७,, ,,, , १ संख्या में बनावें उनके ऊपर १,,१ क्रम से स्तूप बनावें (स्तूप में चार बिन्दु अगल-बगल में ३, ३) बनावें । इन मातृकाओं की बांयी- ओर गणेश, गौत्र (नीचे ३ फिर २,,१) तथा दाहिनी ओर कालाभैरव मन्दिर या नीचे ३ फिर २,,१ आकृति बनावें । कुल ५२ बिन्दु होते है।

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन Saptaghrit matrika pujan

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृत मातृका पूजनं (वसोद्वारा)

आग्नेय कोण में किसी पाटा या पीढ़ा पर पहले सिंदूर से स्वास्तिक बनाकर श्रीः लिखें । इसके नीचे एक बिन्दु , और नीचे दो बिन्दु दक्षिण से उत्तर की ओर बनायें । इसी प्रकार सात बिन्दु क्रम से बनायें । इसके बाद नीचे वाले सात बिन्दुओं पर घी की सात धाराएँ निम्न मंत्र से दें ۔

घृत देने का मंत्र -

ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्र धारम् ।

देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधरेण सुप्वा कामधुक्षः ।।

तत्पश्चात् सातों बिन्दुओं को गुड़ से एकीकृत करें, कुंकुमादि से अलंकारित करें। हाथ में अक्षत लेकर एक-एक देवी की प्रतिष्ठा करें।

कीर्ति लक्ष्मी धृतिर्मेधा सिद्धिः प्रज्ञा सरस्वती ।

मांगल्येषु प्रपूज्यन्ते सप्तैताः घृतमारः ।

अन्यच्चः श्रीश्च लक्ष्मीघृति मेधा स्वाहा प्रज्ञा सरस्वती ।

मांगल्येषु प्रयूज्यन्ते ..... ।

मतांतरे - श्रीश्च लक्ष्मी धृतिर्मेघा पुष्टि श्रद्धा सरस्वती।

मांगल्येषु.. ।

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृत मातृका पूजन

श्रीप्रतिष्ठापनम्-

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचःसत्यमशीय पशूना

रूपमन्नस्य रसोयशः श्रीः श्रयतां मयि स्वाहा ॥१ ॥

("मयि" पदभेदेन - रुपमन्नस्य मयि श्री श्रयतायश:)

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियै नमः श्रियम् आवाह्यामि स्थापयामि ।

लक्ष्मीप्रतिष्ठापनम्-

ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्चपत्कन्या वहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि

रूपमश्विनौ व्यात्तम इष्णन्निषाणा मुम्मऽइषाण सर्वलोकम्मऽइषाण ॥ २ ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्मै नमः । लक्ष्मीम् आवाह्यामि स्थापयामि ।

धृतिप्रतिष्ठापनम्

ॐ भद्रंकर्णेभिः शृणुयामदेवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिरैरंगैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥३॥

ॐ भूर्भुवः स्वः धृत्यैनमः । धृतिमावहयामि स्थापयामि ।

मेधाप्रतिष्ठापनम् -

ॐ मेधाम्मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापति ।

मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधान्धाता ददातु मे स्वाहा ॥४॥

ॐ भूर्भुवः स्वः मेधायै नमः । मेधाम् आवाह्यामि स्थापयामि।

स्वाहाप्रतिष्ठापनम् –

ॐ प्राणय स्वाहा: ऽपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा

चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा मनसे स्वाहा ॥५॥

ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहाये नमः । स्वाहाम् आवाह्यामि स्थापयामि ।

प्रज्ञाप्रतिष्ठापनम्-

ॐ आयंगौ पृश्निर क्रमीद सदन्मान्तरम्पुरः ।

पितरंचप्रयन्तस्वः ॥६॥

ॐ भूर्भुवः स्वः प्रज्ञायै नमः। प्रज्ञाम् आवाह्यामि स्थापयामि ।

सरस्वतीप्रतिष्ठापनम् -

ॐ पावकानः सरस्वतीवाजेमि र्वाजिनीवति ।

यज्ञवष्टुधियावसुः ॥ ७॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वतै नमः । सरस्वतीम् आवाह्यामि स्थापयामि ।

डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृका पूजन

प्रतिष्ठा -सामूहिक रूप से चावल चढाते हुये निम्न मंत्रों से प्रतिष्ठा करें। -

ॐ मनोजुतिर्जुषतामाज्यस्येती मनसावाऽइद सर्वमाप्त तन्मनसेवैतत्सर्वमाप्नोति बृहस्पतिर्यामिमन्तो त्वरिष्टं यज्ञ समीमंद घातृवीतीयद्विवृढंऽतत्संदधाती विश्वेदेवा सऽइहमादयंता मिति सर्वं वैविश्वेदेवाः सर्वेणैवै तत्संदधाति सयदि कामेयत्ब्रुयात्ब्रुयुः प्रतिष्ठेति । एषवै प्रतिष्ठा नाम यज्ञो यत्रैतेने यज्ञेनयजन्ते सर्वमेव प्रतिष्ठतं भवति ।।

गणेश गौत्र प्रतिष्ठापनम्-

ॐ भूर्भुवः स्वः गणेश गौत्र देवेभ्यो आवाह्यामि स्थापयामि ।

भैरव प्रतिष्ठापनम् –

वसोर्द्धारा के दाहिनी ओर बं बटुकाय नमः । काल भैरवाय नमः । गौर भैरवाय नमः । से प्रतिष्ठापन करें।

तत्पश्चात् सर्वेभ्यो देवेभ्यो गंधादिभिः पूजयेत् ।

पूजन –

ॐ भूभुर्व: स्व: सप्तघृतमातृकेभ्यो नम: ॥

इस नाम मंत्र से यथालब्धोपचार पूजन करे ।

प्रार्थना निम्न मंत्र पढ़ते हुए हाथ जोड़कर प्रार्थना करें

ॐ यदङ्गत्वेन भो देव्य: पूजिता विधिमार्गत: ।

कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन क्रतूद्भवम् ॥

निवेदन और नमस्कार - इसके बाद निम्नलिखित मंत्र  का उच्चारण करते हुए मण्डल पर अक्षत छोड़ दे और नमस्कार करे-

'अनया पूजया वसोर्धारादेवता : प्रीयन्तां म मम ।

इति: डी पी कर्मकांड भाग ११ सप्तघृतमातृकापूजनम् ॥

आगे जारी- डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग 12

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