विश्वकर्मा पूजन पद्धति Vishvakarma pujan paddhati
विश्वकर्मा जी ने ही देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया था। वे महान शिल्पकार थे। ऋग्वेद में उनका उल्लेख मिलता है। दो बाहु, चार बाहु और दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूपों का वर्णन पुराणों में मिलता है। इसके अलावा भी इनके पांच स्वरूपों का वर्णन मिलता है-
१- विराट विश्वकर्मा- सृष्टि के रचयिता ।
२- धर्मवंशी विश्वकर्मा- महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र ।
३- अंगिरावंशी विश्वकर्मा- आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र ।
४- सुधन्वा विश्वकर्म- महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र ।
५- भृंगुवंशी विश्वकर्मा- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)।
विश्वकर्मा की उत्पत्ति कैसे हुई?
ब्रह्मा से धर्म तथा धर्म से वास्तुदेव हुए, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। वास्तुदेव और उनकी पत्नि अंगिरसी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। इसके अलावा भी स्कंद पुराण के अनुसार प्रभास और उनकी पत्नि भुवना ब्रह्मवादिनी (जो कि देव गुरु बृहस्पति की बहन थी) से भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ।
भगवान श्री विश्वकर्मा
पूजन पद्धति Vishvakarma pujan paddhati
सर्वप्रथम
यजमान को पूर्वा या उत्तराभिमुख बैठाकर सामने चौक बनाकर उसके ऊपर गौरी-गणेश,
नवग्रह ,
कलश स्थापित
करे । अब
पवित्रीकरण: सबसे पहले यजमान अपने ऊपर और सभी सामाग्री पर पवित्र जल छिढ़के आचार्य मंत्र पढ़े-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
आचमन: निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीन बार आचमन करें -
‘ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवाय नम: ।
फिर यह मंत्र
बोलते हुए हाथ धो लें - ॐ हृषीकेशाय नम: ।
तिलक : यजमान
को तिलक करें -
ॐ चंदनस्य
महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम ।
आपदां हरते
नित्यं लक्ष्मी: तिष्ठति सर्वदा ॥
रक्षासूत्र
(मौली) बंधन : हाथ में मौली बाँध लें -
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
दीप पूजन :
दीपक जला लें -
दीपो ज्योति:
परं ब्रम्ह दीपो ज्योति: जनार्दन: ।
दीपो हरतु में
पापं दीपज्योति: नमोऽस्तु ते ॥
गौरी- गणेश
पूजन: अक्षत-पुष्प लेकर गौरी- गणेशजी का स्मरण करें –
वक्रतुंड
महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं
कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये
शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये
त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥ (अक्षत–पुष्प चढ़ा दें )
कलश पूजन :
हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश में ‘ॐ’ वं वरुणाय नम:’ कहते हुए वरुण देवता का तथा निम्न मंत्र पढ़ते हुए तीर्थों
का आवाहन करें –
गंगे च यमुने
चैव गोदावरी सरस्वति ।
नर्मदे सिंधु
कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु ॥
(अक्षत–पुष्प कलश के सामने चढ़ा दें )
कलश को तिलक
करें , धुप व दीप दिखायें, पुष्प, बिल्वपत्र व दूर्वा, प्रसाद चढायें ।
नवग्रह: अब नवग्रह पूजन करें ।
संकल्प : हाथ
में जल, अक्षत व पुष्प लेकर संकल्प करें –
ॐ
विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः..........................अमुक गोत्र अमुक नाम अहं
ममोपात्तदुरितक्षयद्वारा श्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थं ममसम्पूर्ण मनोकामना सिध्यर्थ
गौरी-गणेश सहित श्री विश्वकर्मा प्रतिष्ठा पूर्वक पूजनं करिष्ये ।
भगवान
विश्वकर्मा पूजन पद्धति
इसके बाद मूर्ति को यजमान दाँये हाथ से स्पर्श करते हुए प्राण प्रतिष्ठा करे । आचार्य मंत्र पढ़े -
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या विश्वकर्मा प्रतिमायाः प्राणा इह प्राणाः । ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या विश्वकर्मा प्रतिमायाः जीव इह स्थितः । ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या विश्वकर्मा प्रतिमायाः सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मन्स्त्वक्चक्षुः श्रोत्राजिह्वाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ।
हॉंथों में पुष्प लेकर प्राणशक्ति का ध्यान करें-
रक्ताम्भोधिस्थपोतोल्लसदरुण सरोजाधिरूढाकराब्जै: पाशंकोदण्डमिक्षुद्भवगुणमणिमय्यंकुशंपञ्चबाणान्।
विभ्राणस्रक्कपालं त्रिनयनलसितापीनवक्षोरूहाढ्यां,देवीबालार्कवर्णभवतु सुखकरीप्राणांशक्ति: परान्न: ॥
पुनः यजमान
हाथ में फूल को लेकर निम्न मंत्र द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठापित करे-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ ॥
एष वै प्रतिष्ठानाम यज्ञो यत्रौतेन यज्ञेन यजन्ते सर्व मे प्रतिष्ठितम्भवति ।।
फूल समर्पित
करें ।
इस प्रकार प्राणप्रतिष्ठा कर विश्वकर्मा जी षोडशोपचार से पूजन करे।
भगवान विश्वकर्मा पूजन पद्धति
ध्यान- अक्षत
पुष्प लेकर भगवान विश्वकर्माजी का ध्यान करें-
भाद्रपदशुभशुक्लपक्षे
प्रतिपदाप्रतिशोभितम् मातृभुवने सुतप्रभासे सिद्धिजनकंमोहितम्।
विश्वकर्माविधिविराटं
पञ्चमुखप्रभुपूजितम् सर्वकर्मसुवन्दनंकुरु देवशिल्पीध्यायितम्॥
देवशिल्पिन्
महाभाग देवनाम् कार्यसाधक। विश्वकर्मन् नमस्तूभ्यं सर्वाभीष्टप्रदायकम्॥
पुष्प
विश्वकर्माजी को अर्पित करें ।
आवाहन-पुष्प
लेकर विश्वकर्माजी का आवाहन करें-
ॐ दंशपाल
महावीर सुचित्रकर्मकारक।विश्वकृत् विश्वधृक् च त्वं वसना मानदण्डधृक्।
भो
विश्वकर्मन्! इहागच्छ इह तिष्ठ,अत्राधिष्ठानं कुरु कुरु मम पूजा गृहाण॥
आवाहयामि
देवेशं विश्वकर्माणमिश्वरम् मूर्ताऽमूर्तकरं देवं सर्वकर्तारमद्भुतम्।
त्रैलोक्यसूत्रकर्त्तारं
द्विभुजं विश्वदर्शितम् आगच्छ विश्वकर्मस्त्वं यज्ञेऽस्मिन् सन्निधो भव॥
नानारत्नविचित्रकं रमणिकं सिंहासनं तत्रासनं रत्नसुवर्णयुक्तं मया दत्त देवं प्रतिगृहताम ॥
माणिक्यमञ्जुलमरीचिमनोज्ञपार्श्वं सान्द्रीभवन्मरकतावलिमेचकाभम् ।
इदं पाद्य मया दत्त सर्वसुगंधसंयुक्तम् । गृहीत्वा विश्वकर्मेश प्रसन्नो भव वास्तुज॥
दिव्यौषधिरसोपेतं गन्ध-पुष्पाऽक्षतै: सह। गृहाणाऽर्ध्यं मया दत्तं विश्वकर्मन्
कृपां कुरु॥
पञ्चामृतस्नान-
पञ्चामृत से स्नान कराये-
ॐ पञ्च नद्य:
सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतस: । सरस्वती तु पञ्चधा सोऽदेशे भवत्सरित् ॥
पञ्चामृतं
मयानीतं पयो दधि घृतं मधु । शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं विश्वकर्मन्
प्रतिगृह्यताम् ॥
शुद्धोदकस्नान
- शुद्ध जल से स्नान कराये-
ॐ
यक्षकर्दमकाद्यैश्च स्नानं कुरू विश्वकर्मन् ।
अन्त्यं मलहरं
शुद्धं सर्वसौगन्ध्यकारकम् ॥
गंगाजलं
समानीतं सर्वपापहरं शुभम्।
पूतं पयोऽथवा
दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
वस्त्र-
वस्त्र या मौलीधागा चढ़ाये-
वस्त्रयुग्मं
गृहाण त्वमनर्घ्यं रक्तवर्णकम् ।
लोकलज्जाहरं
चैव रचनाकर नमोऽस्तु ते ॥
उत्तरीयं
सुचित्रं वै नभस्तारांकितं यथा ।
गृहाण
सर्वसिद्धीश मया दत्तं सुभक्तितः ॥
यज्ञोपवीत-
यज्ञोपवीत चढ़ाये-
उपवीतं
विश्वकर्मन् गृहाण च ततः परम् ।
भावेन दत्तं
धर्मनन्दन तत्वं गृहाण भक्तोद्धृतिकारणाय ॥
अक्षत-
अक्षत(पीला चाँवल) समर्पित करे-
ॐ
अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत ।अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती
योजान्विन्द्र ते हरी ॥
अक्षताश्च रचनाकर कुङ्कुम्युक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
पुष्पमाला- पुष्प और पुष्पमाला समर्पित करे -
गृहाण
चम्पकमालतीनि जलपंकजानि स्थलपंकजानि भो विश्वकर्मन् ।
पुष्पोपरि
त्वं मल्लिकादि पुष्पाणि नानाविधवृक्षजानि मन्दारशमीदलानि च ॥
सौरभाणि
सुमाल्यादीनि सुपुष्प रचितानि वै। मया निवेदितान्यत्र शिल्पाचार्य सुगृह्यताम् ॥
दूर्वा-
दूर्वाङ्कुर चढाये-
ॐ
काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि । एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन
च ॥
दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् । आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण विश्वकर्मन् ॥
तुलसीदल- तुलसीदल चढाये-
ॐ इदं
व्विष्णुर्व्विचक्क्रमे ञ्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा सुरे स्वाहा ॥
तुलसीं
हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम् । भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि विश्वकर्मन् ॥
सिन्दूर अबीर
गुलाल अष्टगन्ध - नानापरिमल द्रव्य समर्पित करे –
समायुक्तं गन्धं द्वादशांगेषु ते विश्वकर्मन् लेपयामि सुचित्रवत् ॥
रक्तचन्दनसंयुक्तानथ वा
कुंकुमैर्युतान् । अक्षतान् शिल्पाचार्य त्वं गृहाण भालमण्डले ॥
धूप - धूप /हुम(दशांग)दे-
दशांग गुग्गुलं धूपं सर्वसौरभकारकम् ।
गृहाण त्वं मया दत्तं अंगिरा सुतो ॥
ॐ धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वामः ।
देवानामसि वह्नितम ँ सस्नितमं पप्रितं जुष्टतमं देवहूतमम् ॥
दीप - दीप दिखाये-
नानाजातिभवं
दीप गृहाण देवशिल्पिन् ।
अज्ञानमलजं
दोषं हरन्तं ज्योतिरूपकम् ॥
दीपं
सुवर्त्या युतमादरात्ते दत्तं मया रचनाकर।
गृहाण
नानाविधजं घृतादि -तैलादि -संभूतममोघदृष्टे ॥
हस्तप्रक्षालन
- ॐ ह्रषिकेशाय नमः' कहकर हाथ धो ले ।
नैवेद्य –नैवेद्य (प्रसाद) भगवान के आगे निवेदित करे-
चतुर्विधान्नसम्पन्नं मधुरं लड्डुकादिकम् ।
नैवेद्यं ते
मया दत्त भोजनं कुरू शिल्पी ॥
चोष्यैश्च
भक्ष्यनिवहैश्च करम्बितं ते
भोज्यं ददामि
विश्वकर्मन् दिव्यमन्नम् ॥
'नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि'
। (जल समर्पित
करे ।)
ऋतुफल- ऋतुफल नारियल अर्पित करे-
दाडिमं खर्जुरं द्राक्षां रम्भादीनि फलानि वै ।
गृहाण
देवदेवेश नानामधुरकाणि तु ॥
इदं फलं मया
देव स्थापितं पुरतस्तव । तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ॥
'फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनीय जल अर्पित करे।)
ताम्बूल- सुपारी, इलायची, लौंगसहित पान चढ़ाये-
अष्टांग देव ताम्बूलं गृहाण मुखवासनम् ।
असकृद्शिल्पराज त्वं मया दत्तं विशेषतः ॥
पुंगीफल महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
दक्षिणा – द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये-
दक्षिणां कांचनाद्यां तु नानाधातुसमुद्भवाम् ।
सौवर्ण -मुद्रादिक रत्नाद्यैः संयुतां गृहाण सकलप्रिय ॥
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
आरती- आरती
करे-
आरार्तिका
कर्पुरकादिभूतामपारदीपां प्रकरोमि पूर्णाम् ।
रचनाकर तां
गृहाण ह्यज्ञानध्वान्तौघहरां निजानाम् ॥
ॐ आ रात्रि
पार्थिव ँ रजः पितुरप्रायि धामभिः ।
दिवः सदा ँ सि
बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ॥
(आरती के बाद जल गिरा दे ।)
पूजन के
बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा करें।
अब श्रीविश्वकर्मा चालीसा व विश्वकर्माष्टकम् का पाठ करें। उसके
बाद श्री विश्वकर्मा कथा का श्रवण करें।
भगवान विश्वकर्मा पूजन पद्धति
हवन विधि
सर्वप्रथम हवन सामाग्री (जंवा,तिल आदि)एकत्र कर शांकल्य बनावे। अब यजमान हवन पात्र में अग्नि डालकर पहले अग्निदेव का स्थापन करे -
अग्नि स्थापन : पुनस्त्वाऽऽदित्या रुद्रा व्वसव: समिन्धताम्पुनर्ब्ब्रह्माणो व्वसुनीथ यज्ञै: ।
घृतेन त्वन्तन्न्वं व्वर्धयस्व सत्त्या: सन्तु यजमानस्य कामा: ॥
अग्नि प्रज्वलित करके अग्निदेव को प्रणाम करें । अब अग्निदेव का पंचोपचार पूजन करे और अग्नि के रक्षार्थ लकड़ी डालकर हवन शुरू करे ।
ॐ पावकान्गयें नम: । इसके बाद
ॐ गं गणपतये स्वाहा । (३ आहुतियाँ )
ॐ सूर्यादि नवग्रहेभ्यों देवेभ्यों स्वाहा । ( १ आहुति )
फिर इन मंत्रो से हवन करें –
ॐ विश्वकर्मणे नमः स्वाहा। ॐ विश्वात्मने नमः स्वाहा। ॐ विश्वस्माय नमः स्वाहा। ॐ विश्वधाराय नमः स्वाहा। ॐ विश्वधर्माय नमः स्वाहा। ॐ विरजे नमः स्वाहा। ॐ विश्वेक्ष्वराय नमः स्वाहा। ॐ विष्णवे नमः स्वाहा। ॐ विश्वधराय नमः स्वाहा। ॐ विश्वकराय नमः स्वाहा। ॐ वास्तोष्पतये नमः स्वाहा। ॐ विश्वभंराय नमः स्वाहा। ॐ वर्मिणे नमः स्वाहा। ॐ वरदाय नमः स्वाहा। ॐ विश्वेशाधिपतये नमः स्वाहा। ॐ वितलाय नमः स्वाहा। ॐ विशभुंजाय नमः स्वाहा। ॐ विश्वव्यापिने नमः स्वाहा। ॐ देवाय नमः स्वाहा। ॐ धार्मिणे नमः स्वाहा। ॐ धीराय नमः स्वाहा। ॐ धराय नमः स्वाहा। ॐ परात्मने नमः स्वाहा। ॐ पुरुषाय नमः स्वाहा। ॐ धर्मात्मने नमः स्वाहा। ॐ श्वेतांगाय नमः स्वाहा। ॐ श्वेतवस्त्राय नमः स्वाहा। ॐ हंसवाहनाय नमः स्वाहा। ॐ त्रिगुणात्मने नमः स्वाहा। ॐ सत्यात्मने नमः स्वाहा। ॐ गुणवल्लभाय नमः स्वाहा। ॐ भूकल्पाय नमः स्वाहा। ॐ भूलेंकाय नमः स्वाहा। ॐ भुवलेकाय नमः स्वाहा। ॐ चतुर्भुजय नमः स्वाहा। ॐ विश्वरुपाय नमः स्वाहा। ॐ विश्वव्यापक नमः स्वाहा। ॐ अनन्ताय नमः स्वाहा। ॐ अन्ताय नमः स्वाहा। ॐ आह्माने नमः स्वाहा। ॐ अतलाय नमः स्वाहा। ॐ आघ्रात्मने नमः स्वाहा। ॐ अनन्तमुखाय नमः स्वाहा। ॐ अनन्तभूजाय नमः स्वाहा। ॐ अनन्तयक्षुय नमः स्वाहा। ॐ अनन्तकल्पाय नमः स्वाहा। ॐ अनन्तशक्तिभूते नमः स्वाहा। ॐ अतिसूक्ष्माय नमः स्वाहा। ॐ त्रिनेत्राय नमः स्वाहा। ॐ कंबीघराय नमः स्वाहा। ॐ ज्ञानमुद्राय नमः स्वाहा। ॐ सूत्रात्मने नमः स्वाहा। ॐ सूत्रधराय नमः स्वाहा। ॐ महलोकाय नमः स्वाहा। ॐ जनलोकाय नमः स्वाहा। ॐ तषोलोकाय नमः स्वाहा। ॐ सत्यकोकाय नमः स्वाहा। ॐ सुतलाय नमः स्वाहा। ॐ सलातलाय नमः स्वाहा। ॐ महातलाय नमः स्वाहा। ॐ रसातलाय नमः स्वाहा। ॐ पातालाय नमः स्वाहा। ॐ मनुषपिणे नमः स्वाहा। ॐ त्वष्टे नमः स्वाहा। ॐ देवज्ञाय नमः स्वाहा। ॐ पूर्णप्रभाय नमः स्वाहा। ॐ ह्रदयवासिने नमः स्वाहा। ॐ दुष्टदमनाथ नमः स्वाहा। ॐ देवधराय नमः स्वाहा। ॐ स्थिर कराय नमः स्वाहा। ॐ वासपात्रे नमः स्वाहा। ॐ पूर्णानंदाय नमः स्वाहा। ॐ सानन्दाय नमः स्वाहा। ॐ सर्वेश्वरांय नमः स्वाहा। ॐ परमेश्वराय नमः स्वाहा। ॐ तेजात्मने नमः स्वाहा। ॐ परमात्मने नमः स्वाहा। ॐ कृतिपतये नमः स्वाहा। ॐ बृहद् स्मणय नमः स्वाहा। ॐ ब्रह्मांडाय नमः स्वाहा। ॐ भुवनपतये नमः स्वाहा। ॐ त्रिभुवनाथ नमः स्वाहा। ॐ सतातनाथ नमः स्वाहा। ॐ सर्वादये नमः स्वाहा। ॐ कर्षापाय नमः स्वाहा। ॐ हर्षाय नमः स्वाहा। ॐ सुखकत्रे नमः स्वाहा। ॐ दुखहर्त्रे नमः स्वाहा। ॐ निर्विकल्पाय नमः स्वाहा। ॐ निर्विधाय नमः स्वाहा। ॐ निस्माय नमः स्वाहा। ॐ निराधाराय नमः स्वाहा। ॐ निकाकाराय नमः स्वाहा। ॐ महदुर्लभाय नमः स्वाहा। ॐ निमोहाय नमः स्वाहा। ॐ शांतिमुर्तय नमः स्वाहा। ॐ शांतिदात्रे नमः स्वाहा। ॐ मोक्षदात्रे नमः स्वाहा। ॐ स्थवीराय नमः स्वाहा। ॐ सूक्ष्माय नमः स्वाहा। ॐ निर्मोहय नमः स्वाहा। ॐ धराधराय नमः स्वाहा। ॐ स्थूतिस्माय नमः स्वाहा। ॐ विश्वरक्षकाय नमः स्वाहा। ॐ दुर्लभाय नमः स्वाहा। ॐ स्वर्गलोकाय नमः स्वाहा। ॐ पंचवकत्राय नमः स्वाहा। ॐ विश्वलल्लभाय नमः स्वाहा।
अब अंत में
ॐ सर्वतोभद्राय नमः स्वाहा । मंत्र से आहुति दे ।
स्विष्टकृत होम : जाने-अनजाने में हवन करते समय जो भी गलती हो गयी हो, उसके प्रायश्चित के रूप में गुड़ व घृत की आहुति दें ।
मंत्र – ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम ।
बलिदान – अब यजमान अपने
सामने चौमुखा दिया जलाकर किसी पात्र मे रखे व
उड़द, दही को मिलाकर क्षेत्रपाल के लिए बलिदान देवे-
भो ! क्षेत्रपाल रक्ष बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुंबस्य आयुःकर्ता,क्षेमकर्ता, शांतिकर्ता, तुष्टि कर्ता, पुष्टि कर्ता, निर्विघ्न कर्ता वर्दोभव॥ ( उड़द, दही को आमपत्र मे लेकर दशों दिशाओ मे रखे)
पूर्णाहुति होम : एक व्यक्ति हाथ में नारियल ले ले व अन्य सभी लोग नारियल का स्पर्श कर लें । जो घी की आहुति डाल रहे थे, वह निम्न मंत्र उच्चारण करते हुए नारियल के ऊपर घी की धारा डालें-
ॐ पूर्णमद:
पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पुर्न्मेवावशिष्यते ॥
ॐ शांति: शांति: शांति: ।
भस्मधारणम :
यज्ञकुंड से स्त्रुवा (जिससे घी की आहुति दी जा रही थी ) में भस्म लेकर सभी लोग
स्वयं को तिलक करें ।
आरती : भगवान विश्वकर्मा जी की आरती करे-
भगवान विश्वकर्मा पूजन पद्धति
श्री विश्वकर्मा जी की आरती
ऊँ जय श्री
विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि
में विधि को, श्रुति उपदेश दिया । शिल्प शस्त्र का जग में,ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने
तप से, शांति नही पाई । ध्यान किया जब प्रभु का,
सकल सिद्धि आई
॥
रोग ग्रस्त
राजा ने, जब आश्रय लीना । संकट मोचन बनकर,
दूर दुख कीना
॥
जब रथकार
दम्पती, तुमरी टेर करी । सुनकर दीन प्रार्थना,
विपत्ति हरी
सगरी ॥
एकानन चतुरानन,
पंचानन राजे ।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे ॥
ध्यान धरे जब
पद का, सकल सिद्धि आवे । मन दुविधा मिट जावै,
अटल शांति
पावे ॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे । कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥
पुष्पांजलि -
पुष्पाञ्जलि अर्पित करे –
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः
सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च ।
पुष्पाञ्जलिर्मया
दत्तो गृहाण परमेश्वर ॥
प्रदक्षिणा-
सभी लोग हवनकुंड की ३ परिक्रमा करें -
ॐ ये तीर्थानि
प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः । तेषा ँ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ।
यानि कानि च
पापानि जन्मान्तरकृतानि च । तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणया पदे पदे ॥
साष्टांग
प्रणाम : सभी साष्टांग प्रणाम करेंगे ।
प्रार्थना :
विश्व कल्याण के लिए हाथ जोडकर प्रार्थना करें –
सर्वे भवन्तु
सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःखभाग भवेत् ॥
क्षमा प्रार्थना व विसर्जन : पूजन आदि में जो गलतियाँ हो गयी हों , उनके लिए हाथ जोड़कर सभी लोग क्षमा प्रार्थना करें और थोड़े-से अक्षत लेकर देव स्थापन और हवन कुंड में निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए चढायें–
ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व देवशिल्पी ॥
ॐ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर । यत्पूजितं माया देवं परिपूर्ण तदस्तु में ॥
ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर । यत्र ब्रम्हादयो देवा: तत्र गच्छ हुताशन ॥
कृतेनानेत विश्वकर्मा पूजन पद्धति कर्मणा श्रीपरमेश्वर: प्रीयताम्, न मम ।
भगवान विश्वकर्मा पूजन पद्धति
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