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- दुर्गा सहस्रनाम
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- ब्रह्महृदय स्तोत्र
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- अग्निपुराण अध्याय १५२
- अग्निपुराण अध्याय १५१
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- ब्रह्म शतनाम स्तोत्र
- ब्रह्म कवच
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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
दुर्गा सहस्रनाम
रुद्रयामलतन्त्रोक्त देवीरहस्यम् उत्तरार्द्ध के पटल ४९ में दुर्गापञ्चाङ्ग निरूपण अंतर्गत् दुर्गा सहस्रनाम के विषय में बतलाया गया है।
दुर्गासहस्रनामस्तोत्रम्
Shri Devi Rahasya Patal 49
देवीरहस्य पटल ४९ दुर्गा सहस्र नाम स्तोत्र
अथैकोनपञ्चाशत्तमः पटलः
दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम्
श्रीभैरव उवाच
अधुना शृणु वक्ष्यामि
दुर्गासर्वस्वमीश्वरि ।
रहस्यं मम देवानां दुर्लभं
जन्मिनामपि ॥ १ ॥
श्रीदुर्गात्तत्त्वमुद्दिष्टसारं
त्रैलोक्यकारणम् ।
मन्त्रनामसहस्रं च दुर्गायाः
पुण्यदं परम् ॥ २ ॥
यं पठित्वा शिवे धृत्वा
देवीनामसहस्रकम् ।
इह भोगी परत्रापि जीवन्मुक्तो
भवेन्नरः ॥ ३ ॥
इदं नामसहस्रं ते मन्त्रगर्भ
रहस्यकम् ।
अश्वमेधायुतात् पुण्यं लोके
सौभाग्यवर्धनम् ॥४॥
श्रेयस्करं विश्ववन्द्यं सर्वदेवनमस्कृतम्
।
गुह्यं गोप्यतमं देवि पठनात्
सिद्धिदायकम् ॥५ ॥
सहस्रनाममाहात्म्य - हे देवि! सुनो,
अब मैं दुर्गासर्वस्व का वर्णन करता हूँ, जो
देवों के लिये रहस्यमय है और मनुष्यों के लिये दुर्लभ है। यह श्री दुर्गातत्त्व का
सार, त्रैलोक्य का कारण, दुर्गा
मन्त्रगर्भित सहस्रनाम श्रेष्ठ पुण्यप्रद है। इसका साधक संसार में सभी सुखों को
भोगकर परलोक में जीवन्मुक्त होता है। यह मन्त्रगर्भित सहस्त्रनाम रहस्य दश हजार
अश्वमेध यज्ञ का पुण्यफल देने वाला एवं सौभाग्यवर्धक है। यह विश्ववन्द्य, श्रेयष्कर और सभी देवों द्वारा नमस्कृत है। यह गुह्य एवं गोप्यतम है। हे
देवि! इसके पाठ से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ।। १-५ ।।
दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्र विनियोगः
अस्य श्रीदुर्गानामसहस्त्रपाठस्य
श्रीमहेश्वर ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीदुर्गा देवता, दुं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं, धर्मार्थकाममोक्षार्थे
सहस्रनामपाठे विनियोगः ।
विनियोग—इस दुर्गासहस्रनाम पाठ के श्रीमहेश्वर ऋषि, अनुष्टुप्
छन्द, श्रीदुर्गा देवता, दुं बीज,
ह्रीं शक्ति एवं ॐ कीलक है। धर्म, अर्थ,
काम एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु इसका सहस्रनाम पाठ में विनियोग किया
जाता है।
दुर्गा ध्यानम्
दूर्वानिभां त्रिनयनां
विलसत्किरीटां शङ्खाब्जखड्गशरखेटकशूलचापान् ।
संतर्जनीं च दधती महिषासनस्थां
दुर्गा नवारकुलपीठगतां भजेऽहम् ॥
ध्यान- श्रीदुर्गा का वर्ण दूर्वा
के समान है। तीन नेत्र हैं। माथे पर किरीट शोभित है। हाथों में शङ्ख,
पद्म, खड्ग, वाण,
मुशल, त्रिशूल, धनुष और
तर्जनी है। महिष के आसन पर आसीन हैं। नवयोनि पीठगत दुर्गा का हम ध्यान करते हैं।
दुर्गासहस्रनाम
ॐ ह्रीं दुं जगदम्बा भा भद्रिका
भद्रकालिका ।
प्रचण्डा चण्डिका चण्डी
चण्डमुण्डनिसूदिनी ॥ ६ ॥
अनसूया तुटिस्तारा कृत्तिका
कुब्जिका लया ।
प्रलया स्थितिः
संभूतिर्विभूतिर्भयनाशिनी ॥७॥
महामाया महाविद्या मूलविद्या
चिदीश्वरी ।
मदालसा मदोत्तुङ्गा मदिरा मदनप्रिया
॥८ ॥
आलिर्व्यालप्रसूः पुण्या पवित्रा परमेश्वरी।
आदिदेवी कला कान्ता त्रिपुरा
जगदीश्वरी ॥ ९ ॥
मनोन्मना महालक्ष्मीः सिद्धलक्ष्मी
सरस्वती ।
सरित्कादम्बरी गोधा गुह्यकाली गणेश्वरी
॥ १० ॥
गणाम्बिका जया तापी तपना तापहारिणी
।
तपोमयी दुरालम्बा दुष्टग्रहनिवारिणी
॥। ११ ॥
दुःखहा सुखदा साध्वी परमामृतसूः
सुरा ।
सुधा सुधांशुनिलया प्रलयानलसन्निभा
॥ १२ ॥
समस्ता सम्पदम्भोजनिलया कर्णिकालया
।
विद्येश्वरी विश्वमयी विराट् छन्दो
गतिर्मतिः ॥ १३ ॥
भूतिदा दाम्भिकी दोला लोपामुद्रा
पटीयसी ।
गरिष्ठारिष्टहाऽदुष्टा कृषा काशी
कुलाकुला ।। १४ ।।
अकुलस्था पदन्यासा न्यासरूपा
विरूपिणी ।
विरूपाक्षी कोटराक्षी
कुलकान्तापराजिता ॥ १५ ॥
अजिता कुलिका लम्पा लम्पटा त्रिपुरेश्वरी
।
त्रितयी (१००) वेदविन्यासा संन्यासा
सुमतिर्भया ॥ १६ ॥
सहस्त्रनाम- ॐ ह्रीं दुं जगदम्बा,
भा भद्रिका, भद्रकालिका, प्रचण्डा, चण्डिका, चण्डी,
चण्डमुण्डनिसूदिनी, अनसूया, तुटि, तारा, कृत्तिका, कुब्जिका, लया, प्रलया,
स्थिति, सम्भूति, विभूति,
भयनाशिनी, महामाया, महाविद्या,
मूलविद्या, चिदीश्वरी, मदालसा,
मदोत्तुङ्गा, मदिरा, मदनप्रिया,
आलि, व्यालप्रसू, पुण्या,
पवित्रा परमेश्वरी, आदिदेवी, कला, कान्ता, त्रिपुरा,
जगदीश्वरी, मनोन्मना, महालक्ष्मी,
सिद्धलक्ष्मी, सरस्वती, सरित्कादम्बरी,
गोधा, गुह्यकाली, गणेश्वरी,
गणाम्बिका, जया, तापी,
तपना, तापहारिणी, तपोमयी,
दुरालम्बा, दुष्टग्रह- निवारिणी, दुःखहा, सुखदा, साध्वी,
परमामृतसू, सुरा, सुधा,
सुधांशुनिलया, प्रलयानलसन्निभा, समस्ता, सम्पदम्भोजनिलया, कर्णिकालया,
विद्येश्वरी, विश्वमयी, विराट,
छन्द, गति, मति, भूतिदा, दाम्भिकी, दोला,
लोपामुद्रा, पटीयसी, गरिष्ठा-
रिष्टहा, अदुष्टा, कृषा, काशी, कुलाकुला, अकुलस्था,
पदन्यासा, न्यासरूपा, विरूपिणी,
विरूपाक्षी, कोटराक्षी, कुलकान्ता,
अपराजिता, अजिता, कुलिका,
लम्पा, लम्पटा, त्रिपुरेश्वरी,
त्रितयी, वेदविन्यासा, संन्यासा,
सुमति, भया ।। ६-१६ ।।
अभया स्वर्मुखा देवी महौषधिरलम्बुसा
।
चपला चन्द्रिका चण्डा
चण्डमुण्डनिसूदिनी ॥ १७ ॥
चापलाक्षी मदाविष्टा मदिरारुणलोचना
।
पुरी त्रिपुरसू रास्ना रसा रामा
मनोहरा ।। १८ ।।
संध्या संध्याभ्रशीला च शाला
श्यामपयोधरा ।
शशाङ्कमुकुटा श्यामा सुरा
सुन्दरलोचना ।। १९ ।।
विषमाक्षी विशालाक्षी वाशा
वागीश्वरी शिला ।
मनःशिला च कस्तूरी
मृगनाभिर्मृगेक्षणा ॥ २० ॥
मृगारिवाहना माध्वी मानदा मत्तभाषिणी
।
नारसिंही वामदेवी वामा
वामश्रुतिप्रिया ॥ २१ ॥
पुण्या पुण्यगतिः पुण्या पुत्री
पुण्यजनप्रिया ।
चामुण्डा चोप्रचण्डा च
महाचण्डाऽतमाऽतमाः ॥ २२ ॥
तमस्विनी प्रभा ज्योत्स्ना
महज्ज्योतिः स्वरूपिणी ।
सुरूपा सद्गतिः साध्वी
सदसद्रूपराजिता ॥ २३ ॥
सृष्टिः स्थितिः क्षेमकरी क्षमा
क्षामोन्नतस्तनी ।
क्षोणी क्षयकरी क्षीणा शर्वस्था
शिववल्लभा ॥ २४ ॥
दन्तुरा दाडिमप्रीतिर्दया
दाम्भिकसूदिनी ।
राक्षसी डाकिनी योग्या योगिनी
योगवल्लभा ॥ २५ ॥
कबन्धा कन्धरा कृष्णा कृत्तिका
कण्ठकान्तका ।
कलङ्करहिता काली कम्पा
काश्मीरवल्लभा ॥ २६ ॥
काशी कीर्तिप्रदा काञ्ची काश्मीरी
कोकिलस्वना ।
प्रभावती ( २००) महारौद्री
रुद्रपत्नी रुजापहा ॥ २७॥
अभया, स्वर्मुखा, देवी, महौषधि,
अलम्बुषा, चपला, चन्द्रिका,
चण्डा, चण्ड- मुण्डनिसूदिनी, चापलाक्षी, मदाविष्टा, मदिरारुणलोचना,
पुरी, त्रिपुरसू, रास्ना,
रसा, रामा, मनोरमा,
सन्ध्या सन्ध्याभ्रशीला, शाला, श्यामपयोधरा, शशांकमुकुटा, श्यामा,
सुरा, सुन्दरलोचना, विषमाक्षी,
विशालाक्षी, वाशा, वागीश्वरी,
शिला, मनःशिला, कस्तूरी
मृगनाभि मृगेक्षणा, मृगारिवाहना, माध्वी,
मानदा मत्तभाषिणी, नारसिंही, वामदेवी, वामा, वामश्रुतिप्रिया,
पुण्या, पुण्यगति, पुण्या,
पुत्री, पुण्यजनप्रिया, चामुण्डा,
उग्रचण्डा, महाचण्डा, अतमा,
तमा, तमस्विनी, प्रभा,
ज्योत्स्ना, महज्ज्योतिस्वरूपिणी सुरूपा,
सद्गति, साध्वी, सदसद्रूपराजिता,
सृष्टि, स्थिति, क्षेमकरी,
क्षमा, क्षामोन्त्रतस्तनी, क्षोणी, क्षयकरी, क्षीणा,
शर्वस्था, शिववल्लभा, दन्तुरा,
दाड़िमप्रीति, दया, दाम्भिकसूदिनी,
राक्षसी, डाकिनी, योग्या,
योगिनी, योगवल्लभा, कबन्धा,
कन्धरा, कृष्णा, कृत्तिका,
कण्ठकान्तका, कलङ्करहिता, काली, कम्पा, काश्मीरवल्लभा,
काशी, कीर्तिप्रदा, काञ्ची,
काश्मीरी, कोकिलस्वना, प्रभावती,
महारौद्री रुद्रपत्नी, रुजापहा । । १७-२७।।
रतिः स्तुतिस्तरीस्तुर्या तोतुलाऽ
तलवासिनी ।
तपः प्रिया शरच्छ्रेष्ठा पङ्गपुत्री
यमस्वसा ॥ २८ ॥
यामी यमान्तका याम्या यमुना
स्वर्नदी तडित् ।
नारायणी विश्वमाता भवानी पापनाशिनी
॥ २९ ॥
विगता विगतप्रश्ना कृष्णा
कृष्टासिधारिणी ।
वारी वारा वरधरा वरदा वीरसूदिनी ॥
३० ॥
वीरसूर्वामनाकारा दीर्घसूत्रा
दयावती ।
दरी धनप्रदा धात्री धात्रीवल्ली
महोदरी ॥ ३१ ॥
गणेश्वरी गया काञ्ची
काञ्चीकिङ्किणिघण्टिका ।
माया मायावती मत्ता प्रमत्ता प्रवरेश्वरी
॥३२॥
पौरन्दरी शची शीता शीतातपस्वभावजा ।
स्वाभाविकगुणा गण्या
गाम्भीर्यगुणभूषणा ॥ ३३ ॥
सूति: सूर्यकला सुप्ता
सप्तसप्तिस्वरूपिणी ।
तेजस्विनी सदानन्दा
सभासन्तोषवर्धिनी ॥ ३४ ॥
तर्पणा कर्षणा होता सङ्कल्पा
शुभमन्त्रिका ।
दर्भा द्रोणिकला श्रान्ता समिद्धा
सुरवेदिका ॥ ३५ ॥
धूम्राहुतिश्चरमतिश्चामीकररुचिश्चिता
।
चिन्तानलेश्वरी नेलाकरा नीलसरस्वती
॥ ३६ ॥
अपर्णा सुफला यज्ञा सभया निर्भयाभया
।
भीमस्वना भर्गशिखा भास्वती भाकरा
विभा ॥ ३७॥
विभावरी नदी नन्द्या
नन्द्यावर्तप्रवर्तिनी ।
पृथ्वीधरा विश्वधरा ( ३०० )
विश्वगर्भा प्रवर्तिका ॥ ३८ ॥
रति, स्तुति, तरी, तुर्या, तोतुला, अतलवासिनी, तपः प्रिया,
शरच्छ्रेष्ठा, पगुपुत्री, यमस्वसा, यामी, यमान्तका,
याम्या, यमुना, स्वर्नदी,
तड़ित, नारायणी, विश्वमाता,
भवानी, पापनाशिनी, विगता,
विगतप्रश्ना, कृष्णा, कृष्टासिधारिणी,
वारी, वारा, वरधरा,
वरदा, वीरसूदिनी, वीरसूः,
वामनाकारा, दीर्घसूत्रा, दयावती, दरी, धनप्रदा, धात्री, धात्रीवल्ली, महोदरी,
गणेश्वरी, गया, काञ्ची,
काञ्चीकि- ङ्किणीघण्टिका, माया, मायावती, मत्ता, प्रमत्ता,
प्रवरेश्वरी, पौरन्दरीद्ध शची, शीता, शीतातपस्वभाव वाभाविकगुणा, गण्या, गाम्भीर्यगुणभूषणा, सूति,
सूर्यकला, सुप्ता, सप्तसप्तिस्वरूपिणी,
तेजस्विनी, सदानन्दा, सभासन्तोषवर्धिनी,
तर्पणा, कर्षणा, होता,
सङ्कल्पा, शुभमन्त्रिका, दर्भा, द्रोणिकला, श्रान्ता,
समिद्धा, सुर-वेदिका, धूम्राहुति,
चरमति, चामीकररुचि, चित्ता,
चिन्तानलेश्वरी, नेलाकाला, नील- सरस्वती, अपर्णा, सुफला,
यज्ञा, सभया, निर्भया,
अभया, भीमस्वना, भर्गशिखा,
भास्वती, भाकरा, विभा,
विभावरी, नदी, नन्द्या,
नन्द्यावर्तप्रवर्तिनी, पृथ्वीधरा, विश्वधरा विश्वगर्भा, प्रवर्तिका ।। २८-३८।।
विश्वमाया विश्वमाला
विश्वम्भरविलासिनी ।
उरगेशा पद्मनागा पद्मनाभप्रसूः प्रजा
।। ३९ ।।
तोरणा तुलसी दीक्षा दक्षा दाक्षायणी
द्युतिः ।
संपुटा शयना शय्या शासना शमनान्तका
॥ ४० ॥
श्यामाकवर्णा शार्दूली शम्पा
शीलांशुवल्लभा ।
एकोनपञ्चाशत्तमः पटल:
दुर्गासहस्रनाम
स्तुत्या प्रणीता नियतिः कम्पना
कम्पहारिणी ॥ ४१ ॥
चम्पकाभा चरा चीना दीना दीनजनप्रिया
।
वसुन्धरा वासवेशी वसुनाथा वटेश्वरी
॥४२॥
समुद्रा सङ्गमा पूर्णाऽन्तराला
तरुवासिनी ।
पार्वती पामरी मान्या माननीया
मधुप्रिया ॥ ४३ ॥
माधवी मधुपानस्था मन्दिरा मन्दुरा
मृगी ।
मोमुषा रूरुषा रेवा रेवती रमणी रमा
॥४४॥
ऋद्धिहस्ता सिद्धिहस्ता अन्नपूर्णा
महेश्वरी ।
अन्नरूपा जगज्ज्योतिः
समस्तासुरघातिनी ॥४५ ॥
गारुडी गगनालम्बा लम्बमानकचप्रिया ।
पीताम्बरा पीतपुष्पा पूतना
गीतवल्लभा ॥ ४६ ॥
बलाका जगदन्ता च जरा जयवरप्रदा ।
प्रीतिः कठोरवदना करालरदना रसा ॥४७।।
जिह्वाहस्ता च बगला प्रणया
विनयप्रदा ।
किरी करालवपुषी शेमुषी मक्षिका मषी
॥ ४८ ॥
उत्तीर्णा तर्णिका तीक्ष्णा
श्लक्ष्णा कामेश्वरी शिवा ।
शिवपत्नी सरोजाक्षी पद्महस्ता ( ४००
) सरस्वती ॥ ४९ ॥
विश्वमाया,
विश्वमाला, विश्वम्भरविलासिनी, उरगेशा, पद्मनागा, पद्मनाभप्रसूः,
प्रजा, तोरणा, तुलसी,
दीक्षा, दक्षा, दाक्षायणी,
द्युतिः, सम्पुटा, शयना,
शय्या, शासना शमनान्तका, श्यामाकवर्णा, शार्दूली, शम्पा,
शीलांशुवल्लभा, स्तुत्या, प्रणीता, नियति, कम्पना,
कम्पहारिणी, चम्पकाभा, चरा,
चीना अदीना, दीनजन-प्रिया, वसुन्धरा, वासवेशी, वसुनाथा,
बटेश्वरी, समुद्रा, सङ्गमा,
पूर्णा, अन्तराला, तरुवासिनी,
पार्वती, पामरी, मान्या,
माननीया, मधुप्रिया, माधवी,
मधुपानस्था, मन्दिरा, मन्दुरा,
मृगी, मोमुषा, रूरुषा,
रेवा, रेवती, रमणी,
रमा, ऋद्धिहस्ता, सिद्धिहस्ता,
अन्नपूर्णा, महेश्वरी, अन्नरूपा,
जगज्ज्योति, समस्तासुरघातिनी, गारुडी, गगनालम्बा, लम्बमानक-
चप्रिया, पीताम्बरा, पीतपुष्पा,
पूतना, गीतवल्लभा, बलाका,
जगदन्ता, जरा, जयवर-
प्रदा, प्रीति, कठोरवदना, करालरदना, रसा, जिह्वाहस्ता,
बगला, प्रणया, विनयप्रदा,
किरी करालवपुषी, शेमुषी, मक्षिका, मषी, उत्तीर्णा,
तर्णिका, तीक्ष्णा श्लक्ष्णा, कामेश्वरी, शिवा, शिवपत्नी,
सरोजाक्षी, पद्महस्ता, सरस्वती
।। ३९-४९ ।।
कमलाक्षी कमलजा करवालविहारिणी ।
कविपूज्या कविगतिः कविरूपा
कविप्रिया ॥ ५० ॥
कदली कदलीरूपा कदलीवनवासिनी ।
कलप्रीता कलहदा कलहा कलहातुरा ।। ५१
।।
कस्तूरीमृगसंस्था च कस्तूरीमृगरूपिणी
।
कठोरा करमाला च कठोरकुचधारिणी ॥ ५२
॥
यज्ञमाता यज्ञभोक्त्री यज्ञेशी यज्ञसम्भवा
।
यज्ञसिद्धिः
क्रियासिद्धिर्यज्ञाङ्गी यज्ञरक्षिका ॥५३॥
वैष्णवी विष्णुरूपा च
विष्णुमातृस्वरूपिणी ।
विष्णुमाया विशालाक्षी
विशालनयनोज्ज्वला ॥५४॥
शिवमाता शिवाख्या च शिवदा शिवरूपिणी
।
गायत्री चैव सावित्री ब्रह्माणी
ब्रह्मरूपिणी ॥५५ ॥
दुर्गस्था दुर्गरूपा च दुर्गा
दुर्गतिनाशिनी ।
माहेश्वरी च सर्वाद्या शर्वाणी
सर्वमङ्गला ॥ ५६ ॥
सूर्यकोटिसहस्राभा
चन्द्रकोटिनिभानना ।
समुद्रकोटिगम्भीरा वायुकोटिमहाबला ॥
५७ ॥
सोमसूर्याग्निमध्यस्था
मणिमण्डलवासिनी ।
द्वादशारसरोजस्था सूर्यमण्डलवासिनी
॥ ५८ ॥
अकलङ्कशशाङ्काभा षोडशारनिवासिनी ।
हृत्पद्मनिलयाऽ भीमा महाभैरवनादिनी
॥५९ ॥
वर्णाढ्या वर्णरहिता
पञ्चाशद्वर्णभेदिनी ।
भवानी भूतिदा भूतिर्भूतिदात्री च
भैरवी ॥६०॥
भैरवाचारनिरता भूतभैरवसेविता ।
कामेश्वरी कामरूपा कामतापविमोचिनी ॥
६१ ॥
गणेशजननी देवी गणेशवरदायिनी ।
दीनदुःखहरा दीनतापनिर्मूलकारिणी ।
गतिदा गतिहा गीता गौतमी गुरुसेविता
॥६२॥
दयाशीला दयासारा दयासागरसंस्थिता ॥ ६३
॥
नृत्यप्रिया नृत्यरता नर्तकी
नर्तकप्रिया ।
नारायणी नरेन्द्रस्था
नरमुण्डास्थिमालिनी ॥ ६४ ॥
भैरवी भैरवाराध्या भीमा भीमवरप्रदा
( ५०० ) ।
कमलाक्षी,
कमलजा, करवालविहारिणी, कविपूज्या,
कविगति, कविरूपा, कविप्रिया,
कदली, कदलीरूपा, कदलीवनवासिनी,
कलप्रीता, कलहदा, कलहा,
कलहातुरा, कस्तूरीमृगसंस्था, कस्तूरीमृगरूपिणी, कठोरा, करमाला,
कठोरकुच- धारिणी, यज्ञमाता, यज्ञभोक्त्री यज्ञेशी, यज्ञसम्भवा, यज्ञसिद्धि क्रियासिद्धि, यज्ञाङ्गी, यज्ञरक्षिका, वैष्णवी, विष्णुरूपा,
विष्णुमातृस्वरूपिणी, विष्णुमाया, विशालाक्षी, विशालनयनोज्ज्वला, शिवमाता, शिवाख्या, शिवदा,
शिवरूपिणी, गायत्री, सावित्री,
ब्रह्माणी, ब्रह्मरूपिणी, दुर्गस्था, दुर्गरूपाणी, दुर्गा,
दुर्गतिनाशिनी, माहेश्वरी, सर्वाद्या, शर्वाणी, सर्वमङ्गला,
सूर्यकोटिसहस्राभा, चन्द्रकोटिनिभानना,
समुद्रकोटिगम्भीरा, वायुकोटिमहाबला, सोमसूर्याग्निमध्यस्था, मणिमण्डलवासिनी, द्वादशारसरोजस्था, सूर्यमण्डलवासिनी, अकलङ्कशशाङ्काभा, षोडशारनिवासिनी, हृत्पद्मनिलया, अभीमा, महाभैरवनादिनी,
वर्णाढ्या, वर्णरहिता, पञ्चाशद्वर्णभेदिनी, भवानी, भूतिदा, भूति, भूतिदात्री, भैरवी, भैरवाचारनिरता,
भूतभैरवसेविता, कामे- श्वरी, कामरूपा, कामतापविमोचिनी, गणेशजननी,
देवी, गणेशवरदायिनी, गतिदा,
गतिहा, गीता, गौतमी,
गुरुसेविता, दीनदुःखहरा, दीनतापनिर्मूलकारिणी, दया- शीला, दयासारा, दयासागरसंस्थिता, नृत्यप्रिया,
नृत्यरता, नर्तकी, नर्तकप्रिया,
नारायणी, नरेन्द्रस्था, नरमुण्डास्थिमालिनी,
भैरवी, भैरवाराध्या, भीमा,
भीम- वरप्रदा ।।५०६४।।
भुवना भुवनाराध्या भवानी
भूतिवर्धिनी ॥ ६५ ॥
महिषासुरहन्त्री च रक्तबीजविनाशिनी
।
धनुर्बाणधरा नित्या धूम्रलोचननाशिनी
।। ६६ ।।
कुलीना कुलमार्गस्था
कुलमार्गप्रकाशिनी ।
पञ्चाशद्वर्णबीजाढ्या
पञ्चाशन्मुण्डमालिका ॥६७॥
षडङ्गयुवतीपूज्या षडङ्गरूपवर्जिता ।
कालमाता कालरात्रि: काली कमलवासिनी
।। ६८ ।।
कमला कान्तिरूपा च कामराजेश्वरी
क्रिया ।
माया मतिर्महामाया भयदा भयहारिका ।।
६९ ।।
नारी नारायणी गण्या नारायणगृहप्रिया
।
मदिरापानसन्तुष्टा मदिरामोदधारिणी
॥७०॥
तथ्या पथ्या कृती रथ्या रथस्था
विततस्वरा ।
महती रागिणी भार्गी शुचिहासा
हरीश्वरी ॥ ७१ ॥.
हरिद्रांशुलसिता लक्ष्मीनायकसुन्दरी
।
अम्बालिकाम्बा देवेशी अनघाग्निशिखा
श्रुतिः ॥ ७२ ॥
अलसाल्पगतिश्चान्त्यानन्तानन्तगुणाश्रया
।
आद्या चादित्यसङ्काशा
आदित्यकुलसुन्दरी ॥७३॥
आत्मरूपाधिशमनी आदिमायादिदेवता ।
इन्द्रप्रसूरिनद्योतिरिनाग्निशशिलोचना
॥७४ ।।
इन्द्रावरजसंस्तुत्या इला
चेक्षुरसप्रिया ।
ईश्वरी ईशवनिता ईशा केशववल्लभा ॥ ७५
॥
उमा उर्वी उरुभुजा उत्तुङ्गा
चोक्षवाहना ।
उत्तङ्का चोत्तमा ध्येया उल्लासा
चोरुगर्विणी ॥ ७६ ॥
ऊष्मा ऊणा च गुर्वङ्गी ऊर्ध्वाक्षी
ऊर्ध्वमस्तका ।
ऋद्धिर्ऋचा ऋवर्णेशी ऋणहर्त्री
ऋवान्तकी ॥७७॥
ऋढिजा चारुवस्त्रा च ऋणिवासा महालया
।
भुवना,
भुवनाराध्या, भवानी, भूतिवर्धिनी,
महिषासुरहन्त्री, रक्तबीजविनाशिनी, धनुर्वाणधरा, नित्या, धूम्रलोचननाशिनी,
कुलीना, कुलमार्गस्था, कुलमार्गप्रकाशिनी,
पञ्चाशद्वर्णबीजाढ्या, पञ्चाशन्मुण्डमालिका,
षडङ्गयुवतीपूज्या, षडङ्गरूपवर्जिता, कालमाता, कालरात्रि, काली,
कमलवासिनी, कमला, कान्तिरूपा,
कामराजेश्वरी, क्रिया, माया,
मति, महामाया, भयदा,
भयहारिका, नारी, नारायणी,
गण्या, नारायणगृहप्रिया, मदिरापानसन्तुष्टा, मदिरामोदधारिणी, तथ्या, पथ्या, कृती, रथ्या, रथस्था, विततस्वरा,
महती, रागिणी, भार्गी,
शुचिहासा, हरीश्वरी, हरिद्रत्नांशुल-
सिता, लक्ष्मी, नायकसुन्दरी, अम्बालिका, अम्बा, देवेशी,
अनघाग्निशिखा, श्रुति, अलसा,
अल्पगति, अन्त्या, अनन्ता,
अनन्तगुणाश्रया, आद्या, आदित्यसङ्काशा,
आदित्यकुलसुन्दरी, आत्मरूपा, अधिशमनी, आदिमाया, आदिदेवता
इन्द्रप्रसू इनद्योति, इनाग्नि, शशिलोचना,
इन्द्रावरजसंस्तुत्या, इला, इक्षुरसप्रिया, ईश्वरी, ईशवनिता,
ईशा, केशववल्लभा, उमा,
उर्वी, उरुभुजा, उत्तुङ्गा,
उक्षवाहना, उत्तङ्का, उत्तमा,
ध्येया, उल्लासा, उरुगर्विणी,
ऊष्मा ऊणा, गुर्वङ्गी, ऊर्ध्वाक्षी,
ऊर्ध्वमस्तका, ऋद्धि, ऋचा,
ऋवर्णेशी, ऋणहन्त्री, ऋवान्तकी,
ऋढिजा, चारुवस्त्रा, ऋणिवासा,
महालया । ६५-७७।।
लकारा लक्कुरा लीना लृकारा वरधारिणी
॥ ७८ ॥
एणाङ्कमुकुटा चेहा चारुचन्द्रकला
कला ।
ऐकारगतिरैश्वर्यदायिनी चैश्वरी गतिः
॥७९॥
ॐ कारा बीजरूपा च औत्रिकी
वेत्रधारिणी ।
अम्बिका लम्पिका पम्पा अः
स्वरोद्गाररूपिणी ॥८०॥
काली च भद्रकाली च कालिका कालवल्लभा
।
कदम्बनिलया कन्था
काञ्चीमण्डनमण्डिता ॥८१॥
कलङ्करहिता कूर्मा काञ्चनाभा करीरगा
।
कनकाचलवासा च कारुण्याकुलमानसा ॥८२॥
कुलस्था कौलिनी कुल्या कुरुकुल्ला
कपालिनी ।
कपालकुलनिर्विण्णा क्लींकारा
कञ्जलोचना ॥८३॥
खञ्जनाक्षी खड्गधरा खेटकायुधभूषणा ।
खर्पराठ्या च खलहा खेटिनी खेचरी खगा
॥८४॥
खगायुधा खगगतिः खकाराक्षरभूषणा ।
गणाध्यक्षा गजगतिर्गणेशजननी गदा
॥८५॥
गोधा गदाधरा प्राज्या गगनेशी मही
मला ।
घुर्घुरा घटभूर्घूका घुसृणाभा
गणेश्वरी ॥८६॥
घनसारप्रिया साम्या घवर्णकृत भूषणा
।
ङान्ता ङवर्णमुकुटा कवर्गकृत भूषणा
॥८७॥
चान्द्री चान्द्रिस्तुता चार्वी
चन्द्रिका चण्डनिःस्वना ।
चञ्चरीकस्वना देवी चचच्चामीकराङ्गदा
॥८८॥
छत्रिका छुरिका छच्छा छत्रचामरभूषणा
।
ज्रकारी जलजिह्वा च जृम्भिका
जलयोगिनी ॥ ८९ ॥
जटाजूटधरा जातिर्जातीपुष्पसमानना ।
जलेश्वरी जगध्येया जानकी जननी जटा ॥
९० ॥
झञ्झा झरी झरत्कारी
झरत्काञ्चीरकिङ्किणी । ऌकारा, ऌक्कुरा,
लीना, लृकारा, वरधारिणी,
एणांकमुकुटा, इहा, चारु-
चन्द्रकला, कला, ऐकारगति, ऐश्वर्यदायिनी, ईश्वरी गति ॐकारा, बीजरूपा, औत्रिकी, वेवारिणी,
अम्बिका, लम्पिका, पम्पा,
अः स्वरोद्गाररूपिणी, काली, भद्र- काली, कालिका, कालवल्लभा
कदम्बनिलया, कन्या, काञ्चीमण्डनमण्डिता,
कलङ्करहिता, कूर्मा, काञ्चनाभा,
करीरगा, कनकाचलवासा, कारुण्याकुलमानसा,
कुलस्था, कौलिनी, कुल्या,
कुरुकुल्ला, कपालिनी, कपालकुलनिर्विण्णा,
क्लीङ्कारा, कञ्जलोचना,
खञ्जनाक्षी, खड्गधरा, खेटकायुधभूषणा,
खर्पराढ्या, खलहा, खेटिनी,
खेचरी, खगा, खगायुधा,
खगगति, खकाराक्षरभूषणा, गणाध्यक्षा,
गजगति, गणेशजननी, गदा,
गोधा, गदाधरा, प्राज्या,
गगनेशी, मही, मला,
घुर्धुरा, घटभू घूका, घुसृणाभा,
गणेश्वरी, घनसारप्रिया, साम्या,
घवर्णकृतभूषणा, ङान्ता, ङवर्ण-
मुकुटा, कवर्गकृतभूषणा, चान्द्री,
चान्द्रिस्तुता, चार्वी, चन्द्रिका, चण्डनि: स्वना, चञ्चरीकस्वना,
देवी, चामीकराङ्गदा, चञ्चा,
छत्रिका, छुरिका, छंछा,
छत्रचामरभूषणा, जङ्कारी, जलजिह्वा, जृम्भिका, जलयोगिनी,
जटाजूटधरा, जाति, जातीपुष्पसमानना,
जलेश्वरी, जगध्येया, जानकी,
जननी, जटा, झंझा,
झरी, झरत्कारी।।७८-९० ।।
झिण्टिका झम्पकृद् झम्पा
झम्पत्रासनिवारिणी ॥ ९१ ॥
ञाणुरूपा ञङ्कहस्ता ञवर्णाक्षरसंमता
।
टङ्कायुधा महातथ्या टङ्कारकरुणा टसी
॥९२॥
ठकुरा ठत्करा ठानी डिण्डीरवसना ढला
।
ढढानिलमयी ढण्डा ढणत्कारकरा ढसा ॥
९३ ॥
णान्ता णीलायुधा नम्रा
णवर्णाक्षरभूषणा ।
तरुणी तुन्दिला तोन्दा तामसी
तामसप्रिया ॥ ९४ ॥
ताम्रानना ताम्रकरा ताम्राम्बरधरा
तुला ।
तापत्रयहरा तापी तैलासक्ता
तिलोत्तमा ॥ ९५ ॥
स्थाणुपत्नी स्थली स्थूला स्थितिः
स्थैर्यधरा स्थुला ।
दन्तिनी दन्तुरा दार्वी देवकी
देवनायिका ।। ९६ ।।
दमिनी शमिनी दण्ड्या दण्डहस्ता
दुरानतिः ।
दुर्वारा दुर्गतिर्द्राक्षी
द्राक्षा द्राविडवासिनी ॥ ९७ ॥
दूरस्था दुन्दुभिध्वाना दरदा दरनाशिनी
।
दुःखघ्नी द्रुतगाऽदुष्टा दया
दाम्भिक्यनाशिनी ॥ ९८ ॥
धर्म्या धर्मप्रसूर्धन्या धनदा
धातृवल्लभा ।
धनुर्धरा धनुर्वल्ली
धानुष्कवरदायिनी ।। ९९ ।।
धूमाली धूम्रवदना धूमश्रीर्धूम्रलोचना
।
नलिनी नर्तकी नान्ता नङ्गा
नलिनलोचना ॥ १०० ॥
निर्मला निगमाचारा निम्नगा नगजा
निमिः ।
नीलग्रीवा निरीहा च नीपोपवनवासिनी ॥
१०१ ॥
निरञ्जना जनी जन्या ( ८०० )
निद्रालुनरवासिनी ।
झिण्टिका,
झम्पकृत्, झम्पा, झम्पत्रासनिवारिणी,
आणुरूपा, जङ्कहस्ता, जवर्णाक्षरसंमता,
टङ्कायुधा, महातथ्या, टङ्कारकरुणा,
टसी, ठकुरा, ठत्करा,
ठानी, डिण्डीरवसना, कुला,
ढण्ढानिलमयी, ढण्डा, ढणत्कारकरा,
ढसा णान्ता, णीलायुधा, नम्रा,
णवर्णाक्षरभूषणा, तरुणी, तुन्दिला, तोन्दा, तामसी,
तामसप्रिया, ताम्रानना, ताम्रकरा,
ताम्राम्बरधरा, तुला, तापत्रयहरा,
तापी, तैलासक्ता, तिलोत्तमा,
स्थाणुपत्नी स्थली, स्थूला, स्थिति, स्थैर्यधरा, स्थुला,
दन्तिनी, दन्तुरा, दार्वी,
देवकी, देवनायिका, दामिनी,
शमिनी, दण्ड्या, दण्डहस्ता,
दुरानति, दुर्वारा, दुगति,
द्राक्षी, द्राक्षा, द्राविड़वासिनी,
दूरस्था, दुन्दुभिध्वाना, दरदा, दर नाशिनी, दुःखघ्नी,
द्रुतगा, अदुष्टा, दया,
दाम्भिक्यनाशिनी, धर्म्या, धर्मप्रसू, धन्या, धनदा,
धातृवल्लभा, धनुर्धरा, धनुर्वल्ली,
धानुष्कवरदायिनी, धूमाली, धूम्रवदना, धूमश्री, धूम्रलोचना,
नलिनी, नर्तकी, नान्ता,
नङ्गा, नलिनलोचना, निर्मला,
निगमाचारा, निम्नगा, नगजा,
निमि, नीलग्रीवा, निरीहा,
नीपोपवनवासिनी, निरञ्जना, जनी, जन्या, निद्रालु, नीरवासिनी । । ९१- १०१ ।।
नटिनी नाट्यनिरता नवनीतप्रियाऽनिला
॥१०२॥
नारायणी निराकारा निर्लेपा
नित्यवल्लभा ।
पद्मावती पद्मकरा पुत्रदा
पुत्रवत्सला ॥ १०३ ॥
परोत्तरा पुरी पाठा पीनश्रोत्रा
पुलोमजा ।
पुष्पिणी पुस्तककरा पटुः पाठीनवाहना
।। १०४ ।।
पापघ्नी शम्पिनी पाली पल्ली
परमसुन्दरी ।
पिशाची च पिशाचघ्नी पानपात्रधरा
पुटा ॥ १०५ ॥
पूर्णिमा पञ्चमी पौत्री
पुरूरववरप्रदा ।
पञ्चयज्ञा पञ्चशरी पञ्चाशतिमनुप्रिया
॥ १०६ ॥
पाञ्चाली पञ्चमुद्रा च पूजा
पूर्णमनोरथा ।
फलिनी फलदात्री च फल्गुहस्ता
फणिप्रिया ॥ १०७ ॥
फिरङ्गहा स्फीतमतिः स्फीतिः
स्फीतिमती स्फुरा ।
बलमाया बलस्तुत्या बिल्वसेना बलाबला
॥ १०८ ॥
बगलेश्वरपूज्या च बलिनी बलवर्धिनी ।
बुद्धमाता बौद्धमतिर्बद्धा
बन्धनमोचिनी ॥ १०९ ॥
भगिनी भगमाला च भगलिङ्गामृतद्रवा ।
भीमेश्वरी च भेरुण्डा भगेशी
भगसर्पिणी ॥ ११० ॥
भगलिङ्गस्थिता भग्या भाग्यदा
भगमालिनी ।
मत्ता मनोहरा मीना मैनाकजननी मुरी
।। १११ ।।
मुरली मानवी होत्री महस्विजनमोहिता
।
मत्तमातङ्गगा माद्री मरालगतिरञ्चला
॥। ११२ ।।
यक्षेश्वरेश्वरी यज्ञा यजुर्वेदप्रियाश्रिता
।
यशोवती यतिस्था च यतात्मा यतिवल्लभा
।।१९३।।
यवनी यौवनस्था च यवा यक्षजनाश्रया ।
यज्ञसूत्रप्रदा ज्येष्ठा यज्ञभू (
९००)र्यूपमूलिनी ।। ११४ ।।
नटिनी,
नाट्यनिरता, नवनीतप्रिया, अनिला, नारायणी, निराकारा,
निर्लेपा, नित्यवल्लभा, पद्मावती,
पद्मकरा, पुत्रदा, पुत्रवत्सला,
परा, उत्तरा, पुरी,
पाठा, पीनश्रोत्रा, पुलोमजा,
पुष्पिणी, पुस्तककरा, पटु,
पाठीनवाहना, पापघ्नी, शम्पिनी,
पाली, पल्ली, परमसुन्दरी,
पिशाची, पिशाचघ्नी, पानपात्रधरा,
पुटा, पूर्णिमा, पञ्चमी,
पौत्री, पुरूरववरप्रदा, पञ्चयज्ञा,
पञ्चशरी, पञ्चाशतिमनुप्रिया, पाञ्चाली, पञ्चमुद्रा, पूजा,
पूर्णमनोरथा, फलिनी, फलदात्री,
फल्गुहस्ता, फणिप्रिया, फिरङ्गहा,
स्फीतमति, स्फीति, स्फीतिमती,
स्फुरा, बलमाया, बलस्तुत्या,
बिल्वसेना, बला- बला, बगलेश्वरपूजिता,
बलिनी, बलवर्धिनी, बुद्धमाता,
बौद्धमति बद्धा, बन्धन- मोचिनी, भगिनी, भगमाला, भगलिङ्गामृतद्रवा
भीमेश्वरी, भेरुण्डा, भगेशी, भग- सर्पिणी, भगलिङ्गस्था, भग्या,
भाग्यदा, भगमालिनी, मत्ता,
मनोहरा, मीना, मैनाक-
जननी, मुरी, मुरली, मानवी होत्री, महस्विजनमोदिता, मत्तमातङ्गगा, माद्री, मराल-
गतिरञ्चला, यज्ञेश्वरेश्वरी, यज्ञा,
यजुर्वेदप्रियाश्रिता, यशोवती यतिस्था,
यतात्मा, यतिवल्लभा, यवनी,
यौवनस्था, यवा यक्षजनाश्रया, यज्ञसूत्रप्रदा, ज्येष्ठा, यज्ञभू,
यूपमूलिनी।। १०२-११४।।
रञ्जिता राजपत्नी च रासूयफलप्रदा ।
रजोवती रजश्चित्रा राज्यदा
राज्यवर्धिनी ॥ ११५ ॥
राज्ञी रात्रिचरेशानी रोगघ्नी
त्रिपुरेश्वरी ।
लुलिता लतिका लाप्या लोपा ललनलालसा
।। ११६ ।।
लाटीरद्रुमवासा च पाटीरद्रुमवर्तिनी
।
लङ्का ललज्जटाजूटा लङ्घिता
लोकसुन्दरी ॥ ११७ ॥
लोकेशवरदा लेया लयकर्त्री महालया ।
वेदिर्विलग्ना वाणी च वीणा
वेणुर्वनेश्वरी ॥११८ ।।
वन्दमाना ववर्णाढ्या वाराही
वीरमातृका ।
शङ्खिनी शङ्खवलया शङ्खायुधधरा शमा
।। ११९ ।।
शशिमण्डलमध्यस्था शीतलाम्बुनिवासिनी
।
श्मशानस्था महाघोरा
श्मशाननिलनेश्वरी ॥ १२० ॥
सिन्धुः सूत्रधरा सत्रा
समस्तकुलचारिणी ।
सप्तमी सात्त्विकी सत्त्वा
सत्रस्थाऽसुरसूदिनी ॥ १२१ ॥
सुरेश्वरी सम्पदाद्या
समस्ताचलचारिणी ।
समदा संमितिः संमा सवना सवनेश्वरी
॥१२२॥
हंसी हरप्रिया हास्या हरिनेत्रा
हराम्बिका ।
हेषा हटेश्वरी हेरा हलिनी हलदायिनी
॥ १२३ ॥
हेहा हाहारवा हाला हालाहलहताशया ।
क्षमा क्षेमप्रदा क्षामा
क्षौमाम्बरधरा क्षया ।। १२४ ।।
क्षितिः क्षीरप्रिया लक्ष्मी:
क्षितिभृत्तनया क्षुधा ।
क्षत्रियी ब्राह्मणी क्षेत्रा क्षपा
क्षः बीजमण्डिता ॥। १२५ ।।
कंक्षः बीजस्वरूपा च
क्षकाराक्षरमातृका ।
दुर्गन्धनाशिनी दूर्वा दुर्गमा
दुर्गवासिनी ॥ १२६ ॥
दुर्गा दुर्गार्तिशमनी ॐ ह्रीं
दुंबीजमण्डिता ( १०००)।
रञ्जिता,
राजपत्नी, राजसूयफलप्रदा, रजोवती, रजश्चित्रा, राज्यदा
राज्यवर्धिनी, राज्ञी, रात्रिंचरेशानी,
रोगघ्नी, त्रिपुरेश्वरी, लुलिता, लतिका, लाप्या,
लोपा, ललन- लालसा, लाटीरद्रुमवासा,
पाटीरद्रुमवर्तिनी, लङ्का, ललज्जटाजूटा, लड़िता, लोक-
सुन्दरी, लोकेशवरदा, लेया, लयकर्त्री, महालया वेदिविलग्ना, वाणी, वीणा, वेणु, वनेश्वरी, वन्दमाना, ववर्णाढ्या,
वाराही, वीरमातृका, शङ्खिनी,
शङ्खवलया, शङ्खायुधधरा, शमा,
शशिमण्डलमध्यस्था, शीतलाम्बुनिवासिनी, श्मशानस्था, महाघोरा, श्मशाननिलनेश्वरी,
सिन्धु सूत्रधरा, सत्रा, समस्तकुलचारिणी, सप्तमी, सात्विकी,
सत्त्वा, सत्रस्था, असुरसूदिनी,
सुरेश्वरी, सम्पदाद्या, समस्ताचलचारिणी,
समदा, संमिति, संमा,
सवना, सवनेश्वरी, हंसी,
हरप्रिया, हास्या, हरिनेत्रा,
हराम्बिका, हेषा, हटेश्वरी,
हेरा, हलिनी, हलदायिनी,
हेहा, हाहारवा, हाला,
हालाहलहताशया, क्षमा, क्षेमप्रदा,
क्षामा, क्षौमाम्बरधरा, क्षया,
क्षिति, क्षीरप्रिया, लक्ष्मी,
क्षितिभृत्तनया, क्षुधा, क्षत्रियी, ब्राह्मणी, क्षेत्रा,
क्षपा, क्षः बीजमण्डिता, ळंक्ष: बीजस्वरूपा, क्षकाराक्षरमातृका, दुर्गन्धनाशिनी, दूर्वा, दुर्गमा,
दुर्गवासिनी, दुर्गा, दुर्गार्ति
शमनी, ॐ ह्रीं दुं बीजमण्डिता ।। ११५-१२६ ।।
दुर्गासहस्रनामस्तोत्रम् फलश्रुतिः
इति नामसहस्रं तु मन्त्रगर्भं
महाफलम् ॥१२७॥
दुर्गाया दुर्गतिहरं
सर्वदेवनमस्कृतम् ।
सर्वमन्त्रमयं दिव्यं
देवदानवपूजितम् ॥ १२८ ॥
श्रेयस्करं महापुण्यं महापातकनाशनम्
।
यः पठेत् पाठयेद्वापि शृणोति
श्रावयेदपि ॥ १२९ ॥
स महापातकैर्मुक्तो देवदानवसेवितः ।
इह लोके श्रियं भुक्त्वा परत्र
त्रिदिवं व्रजेत् ॥ १३० ॥
फलश्रुति-दुर्गा का यह मन्त्रगर्भित
सहस्रनाम महाफलदायक है। यह दुर्गतिहर है। सभी देव इसे नमस्कार करते हैं। यह
सर्वमन्त्रमय, दिव्य, देव-दानवपूजित
है। श्रेयष्कर, महापुण्यप्रद एवं महापापों का विनाशक है जो
इसका पाठ स्वयं करता है। या दूसरे से पाठ करवाता है, जो इसे
सुनता है या सुनवाता है, वह महापापों से मुक्त होकर देव-दानव
सेवित होता है। संसार के समस्त वैभव का भोग करके अन्त में स्वर्ग में वास करता है
।। १२७-१३० ।।
दुर्गानामसहस्त्रं तु
मूलमन्त्रैकसाधनम् ।
अर्धरात्रे पठेद्वीरो मधुरस्मयसेवितः
॥ १३१ ॥
त्रिवारं वर्मपूर्व तु
भवेद्वागीशसन्निभः ।
यः पठेद् देवि मध्याह्ने स्त्रीयुतो
मुक्तकुन्तलः ।। १३२ ।।
तस्य वैरिकुलं त्रस्येद् दर्शनाद्
दैत्यसूदिनि ।
दहनादिव देवेशि पतङ्गकुलमद्रिजे
।।१३३।।
यः पठेद्वेतसीमूले सायं पूजित भैरवः
।
तस्यास्यकुहराद् वाणी
निःसरेद्गद्यपद्यभाक् ॥ १३४॥
दुर्गानामसहस्र मूल मन्त्र का साधन
है। मधुरस्मय सेवित जो वीर आधी रात में कवच का पाठ करके इसका तीन पाठ करता है,
वह वागीश्वर के समान हो जाता है। जो स्त्री के साथ खुले केश होकर
मध्याह्न में इसका पाठ करता है, उसके शत्रु दैत्यमर्दिनी के
दर्शन से वैसे ही भयभीत होते हैं, जैसे पतङ्गे अग्नि से
भयभीत होते हैं। सायंकाल में भैरव की पूजा करके अतसी-मूल में जो इसका पाठ करता है,
उसके मुखकुहर से गद्य-पद्यमयी वाणी धाराप्रवाह निकलती है ।। १३१-१३४
।।
यः पठेत् सततं देवि शयने
स्त्रीरताकुलः ।
स भवेद्वैरिविध्वंसी धनेन धनदोपमः ॥१३५॥
वाग्भिर्वागीशसदृशः कवित्वेन
सितोपमः ।
तेजसा सूर्यसङ्काशो यशसा शशिसन्निभः
॥१३६ ।।
बलेन वायुतुल्योऽपि लक्ष्म्या
गीर्वाणनायकः ।
देवि किं बहुनोक्तेन स
भवेद्भैरवोपमः ॥१३७॥
जो प्रत्येक रात में सोने के समय
स्त्रीरताकुल होकर इसका पाठ करता है, वह
कुबेर के समान धनी होता है। वागीश के समान वक्ता, शुक्र के
समान कवि सूर्य के समान तेजस्वी, चन्द्रमा जैसा यशस्वी,
वायुतुल्य बलवान, लक्ष्मी से गीर्वाण नायक
होता है। हे देवि ! बहुत क्या कहें, वह भैरवतुल्य होता है ।।
१३५-१३७।।
स्तम्भनाकर्षणोच्चाट- वशीकरणकक्षमः ।
रवौ भूर्जे लिखेद् देवि निशीथे
वाष्टगन्धकैः ॥ १३८ ॥
सस्तन्यरेतोराजस्कैः साधको
मन्त्रसाधकः ।
लिखित्वा
वेष्टयेन्नामसहस्त्रमणिमीश्वरि ॥ १३९ ॥
श्वेतसूत्रेण संवेष्ट्य लाक्षया परिवेष्टयेत्
।
सुवर्णरजताद्यैश्च वेष्टयेत्
पीतसूत्रकैः ॥ १४० ॥
सम्पूज्य गुटिकां देवि शुभेऽह्नि
साधकोत्तमः ।
इस सहस्रनाम के पाठ से साधक स्तम्भन,
आकर्षण, उच्चाटन, वशीकरण
में सक्षम होता है। रविवार की रात में भोजपत्र पर अष्टगन्ध, स्त्रीस्तन
के दूध, वीर्य, रज से मन्त्र लिखकर इस
सहस्रनाममणि को श्वेत सूत्र से वेष्टित करके लाह से वेष्टित करे। सोना-चाँदी के
ताबीज में भरने के लिये इसे पीले सूत्र से लपेटे । शुभ दिन में इस गुटिका का पूजन
करे ।। १३८-१४० ।।
धारयेन्मूर्ध्नि वा बाहौ गुटिकां
कामदायिनीम् ॥ १४१ ॥
रणे रिपून् विजित्याशु कल्याणी
गृहमाविशेत् ।
वन्ध्या वामभुजे धृत्वा कृत्वा
साधकपूजनम् ॥१४२॥
पुत्रान् लभेन्महादेवि साक्षाद्वैश्रवणोपमान्
।
गुटिकैषा महादिव्या गोप्या
कामफलप्रदा ।। १४३ ।।
मूर्धा में या बाँह में इसे धारण
करे। यह गुटिका कामदायिनी है। इस गुटिका को धारण करके साधक यदि युद्ध में जाय तो
शत्रु को जीतकर वापस अपने घर आ जाता है। इसका पूजन करके कोई बाँझ स्त्री यदि वाम
भुजा में धारण करे तो उसे कुबेर के समान पुत्र प्राप्त होता है। यह गुटिका महा
दिव्य,
गोप्य और काम-फलदायिनी है ।। १३९-१४३।।
साधकैः सततं पूज्या साक्षाद्
दुर्गास्वरूपिणी ।
योऽर्चयेत् साधको दुर्गां गुटिकां
धारयेत् प्रिये ॥१४४ ।।
पठेद्वर्म शिवे मन्त्रनामसाहस्रिकीं
पराम् ।
अङ्गस्तोत्रं फलं तस्य देवि
वक्ष्येऽधुना शृणु ॥ १४५ ।।
वने राजकुले वापि दुर्भिक्षे
शत्रुसङ्कटे ।
अरण्ये प्रान्तरे दुर्गे श्मशाने
सिन्धुसङ्कटे ॥ १४६ ॥
वात्ये यक्षपिशाचादिभूतप्रेतभये तथा
।
वीरो विगतभीर्देवि सर्वत्र विजयी
भवेत् ॥ १४७ ॥
साक्षात् दुर्गास्वरूपिणी इस गुटिका
का पूजन साधक बराबर करे। जो साधक दुर्गा का अर्चन करता है,
इस गुटिका को धारण करता है, कवच का पाठ करता
है, सहस्रनाम का पाठ करता है और स्तोत्र का पाठ करता है;
उसके फल का अब वर्णन करता हूँ। हे देवि ! सुनो; वन में, राजदरबार में, अकाल
में, शत्रुसंकट में, जङ्गल में
प्रान्तर में, किला में, श्मशान में,
समुद्री संकट में तूफान में वह भयरहित होता है। सर्वत्र विजयी होता
है।। १४४-१४७।।
स्तम्भयेद्वातसूर्याम्बुचन्द्रादीन्
साधकोत्तमः ।
मोहयेत् त्रिजगत् सद्यः
कान्ताश्चाकर्षयेद् ध्रुवम् ॥ १४८ ।।
मारयेदखिलाञ्छत्रूनुच्चाटयति वैरिणः
।
वशयेद् देवताः सद्यः कं
पुनर्मानवांश्छिवे ॥ १४९ ॥
शमयेदखिलान् रोगान्
महोत्पातानुपद्रवान् ।
किं किं न लभते वीरो
दुर्गापञ्चाङ्गपूजनात् ॥ १५० ॥
वह उत्तम साधक वायु,
सूर्य, जल और चन्द्रादि को स्तम्भित कर सकता
है। तीनों लोकों को मोहित कर सकता है। सुन्दरियों को आकर्षित कर सकता है। सभी
शत्रुओं का संहार कर सकता है। सभी वैरियों का उच्चाटन कर सकता है। शीघ्र ही
देवताओं को वश में कर सकता है। तब मनुष्यों की क्या हस्ति हैं, जो उसके वश में न हों। वह सभी रोगों का शमन करता है, वह महा उत्पातों और उपद्रवों का शमन करता है। दुर्गापञ्चाङ्ग के पूजन से
वीर साधक क्या नहीं प्राप्त कर सकता है अर्थात् सब कुछ प्राप्त कर सकता है ।। १४८-
१५० ।।
इदं रहस्यं दुर्गाया अष्टाक्षर्या
महेश्वरि ।
सर्वस्वं सारतत्त्वं च मूलविद्यामयं
परम् ॥१५१ ।।
महाचीनक्रमस्थानां साधकानां
यशस्करम् ।
पठेत् संपूजयेद् देव्या
मन्त्रनामसहस्रकम् ।।१५२।।
इदं सारं हि तन्त्राणां तत्त्वानां
तत्त्वमुत्तमम् ।
दुर्गानामसहस्त्रं तु तव भक्त्या
प्रकाशितम् ॥१५३॥
अभक्ताय न दातव्यं गोप्तव्यं
पशुसङ्कटे ।
अभक्तेभ्योऽपि पुत्रेभ्यो दत्त्वा
नरकमाप्नुयात् ॥ १५४ ॥
हे महेश्वरि! अष्टाक्षरा
दुर्गामन्त्र का यह रहस्यसर्वस्व है, सारतत्त्व
है, मूल विद्यामय है। महाचीनाचारी साधकों के लिये यह यशस्कर
है। देवी का पूजन करके मन्त्रनामसहस्त्र का पाठ करना चाहिये। यह तन्त्रों का सार
है तत्त्वों में उत्तम तत्त्व है। तुम्हारी भक्ति के कारण ही इस दुर्गानामसहस्त्र
का प्रकाशन मैंने किया है। इसे अभक्तों को नहीं देना चाहिये। पशुसाधकों के निकट
इसे गुप्त रखे। अभक्त पुत्र को भी इसे देने से नरकगामी होना पड़ता है।। १५१-१५४ ।।
दीक्षिताय कुलीनाय गुरुभक्तिरताय च ।
शान्ताय भक्तियुक्ताय देयं
नामसहस्रकम् ॥ १५५ ॥
विना दानं न गृह्णीयान्न दद्याद्
दक्षिणां विना ।
दत्त्वा गृहीत्वाप्युभयोः
सिद्धिहानिर्भवेद् ध्रुवम् ।। १५६ ।।
इदं नामसहस्रं ते गुप्तं गोप्यतमं
शिवे ।
तत्त्वं भक्त्या मयाख्यातं गोपनीयं
स्वयोनिवत् ॥ १५७ ॥
दीक्षित,
कुलीन, गुरुभक्ति में रत, शान्त, भक्त को ही यह सहस्रनाम देना चाहिये। शिष्य
बिना दान के इसे ग्रहण न करे गुरु बिना दक्षिणा लिये इसे शिष्य को न दे। विना
दक्षिणा लिये देना और विना दान किये लेना दोनों ही सिद्धि के लिये हानिकारक हैं।
यह सहस्रनाम गुप्त, गोप्यतम है। तुम्हारी भक्तिवश इसका वर्णन
मैंने किया है। इसे अपनी योनि के समान ही गुप्त रखना चाहिये ।। १५५ १५७।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये दुर्गासहस्रनामनिरूपणं नामैकोनपञ्चाशत्तमः पटलः ॥ ४९ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में दुर्गासहस्रनाम निरूपण नामक एकोनपञ्चाशत्तम पटल
पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 50
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