नवार्ण मंत्र रहस्य
श्रीदुर्गा तंत्र यह दुर्गा का
सारसर्वस्व है । इस तन्त्र में देवीरहस्य कहा गया है,
इसे मन्त्रमहार्णव(देवी खण्ड) से लिया गया है। श्रीदुर्गा तंत्र इस
भाग ४ (२) में नवार्ण मंत्र रहस्य बतलाया
गया है।
नवार्णमंत्ररहस्यम्
अथ नवार्णमंत्रफलश्रुति:
नवार्णमंत्रप्रयोग से आगे
तथा च :
एवं ध्यात्वा जपेल्लक्षचतुष्कं
तद्दशांशतः ।
पायसात्नेन जुहुयात्यूजिते हेमरेतसि
॥ १॥
एवं सिद्धे मनौ मन्त्री
भवेत्सौभाग्यभाजनम् ।
नव बीजविशुद्धोयं
मन्त्रस्त्रैलोक्यपावनः ॥ २ ॥
एवं जपति यो मन्त्री फल तस्य
वदाम्यहम् ।
वश्या भवन्ति कामिन्यो राजानोऽनुचरा
इव ॥ ३॥
न हस्तिसर्पदावाग्निचोरशत्रुभयं
भवेत् ।
सर्वाः समृद्धयस्तस्य जायन्ते
चण्डिकाज्ञया ॥ ४॥
नश्यन्ति दारुणा रोगाः सत्यं सत्यं
न संशयः ।
इस प्रकार ध्यान करके चार लाख जप
तथा उसका दशांश खीर से अग्नि में होम करे । इस प्रकार मन्त्र के सिद्ध होने पर
साधक सौभाग्य का पात्र हो जाता है । नव बीजों से विशुद्ध तीनों लोकों को पवित्र
करने वाला यह मन्त्र है । इस प्रकार जो साधक जप करता है उसका फल मैं कह रहा हूं। स्त्रियाँ
उसके वश में हो जाती हैं । राजे उसके दास हो जाते हैं । उसे हाथी,
सर्प, दावाग्नि, चोर और
शत्रु का भय नहीं रहता । चण्डिका की आज्ञा से सभी समृद्धियाँ उसे प्राप्त होती हैं
। दारुण रोग नष्ट हो जाते हैं । यह सत्य है, सत्य है इसमें
कोई संशय नहीं है।
अनेन विधिना नित्य यः
कुर्याच्चण्डिकार्चनम् ॥ ५ ॥
तस्य तुष्टा महालक्ष्मीर्यच्च
दद्याच्छृणुष्व तत् ।
महदैश्चर्यमतुलं त्रैलोक्ये तस्य
जायते ॥ ६॥
धर्मराजसमायुक्तं
पुत्रपौत्रसमाकुलम् ।
तं करोति महालक्ष्मीर्ब्रह्मविष्णुशिवोपमम्
॥ ७॥
रिपवः संक्षयं यान्ति तत्स्थानाच्छतयोजनम्
।
तेनैकेन वसन्तोपि न तं पश्यन्ति
दस्यवः ॥ ८॥
तस्य स्मरणमात्रेण विघ्नानां जायते
क्षयः ।
त्रिषु लोकेषु यत्किञ्चितसुरासुरदुर्लभम्
॥ ९ ॥
तत्तत्सर्व॑ समायाति
महालक्ष्मीप्रसादत: ।
यो जपेत्परया भक्त्या महालक्ष्मी तु
पूजयन् ॥ १०॥
स नरो लभते नित्यं पूजाफलमनुत्तमम्
।
सहस्त्रमस्य मन्त्रस्य नवबीजस्य यो
जले ॥ ११ ॥
नाभिमात्रे जपेत्सम्यक् कवित्वं
लभते ध्रुवम् ॥ १२ ॥
अयुतं नवतत्त्वस्य राजबन्धनसङ्कटै:
।
जपेत्तदाशु मुच्येत यो मन्त्री
चण्डिकाज्ञया ॥१३ ॥
अस्मिन्नवाक्षरे मन्त्रे महालक्ष्मीर्व्यवस्थिता
।
तस्मात्सुसिद्धः सर्वेषा सर्वदिक्षु
प्रदीपकः ॥ १४॥
इस विधि से नित्य चण्डिका का पूजन
करने से सन्तुष्ट महालक्ष्मी क्या-क्या देती हैं, उसे तुम सुनो । तीनों लोकों में भारी, अतुल ऐश्वर्य
उसको प्राप्त होता है महालक्ष्मी उसे पुत्र-पौत्र से भरापूरा धर्मराज, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के समान बना देती हैं । शत्रु
सब उसके स्थान से सौ योजन दूर ही विनष्ट हो जाते हैं । अकेले रहते हुए भी शत्रु
उसे नहीं पाते । उसके स्मरणमात्र से विघ्नों का नाश हो जाता है । तीनों लोकों में
देवों और असुरों के लिए जो दुर्लभ है वह सब महालक्ष्मी के प्रसाद से उसके पास चला
आता है । जो भक्ति से महालक्ष्मी की पूजा करता हुआ जप करता है, वह मनुष्य पूजा का सर्वोत्तम फल प्राप्त करता है । जो मनुष्य नाभिमात्र जल
में इस नवबीज मन्त्र का जप करता है वह सम्यक कवित्व शक्ति को निश्चित रूप से
प्राप्त करता है । जो मनुष्य इस नव तत्वात्मक मन्त्र का दश लाख जप करता है वह
चण्डिका की आज्ञा से राज बन्धन और संकटों से शीघ्र मुक्त हो जाता है । इस नवाक्षर
मन्त्र में महालक्ष्मी निवास करती हैं । इसलिए सिद्ध किया हुआ यह मन्त्र सबके लिए
सभी दिशाओं में प्रदीपक के समान है ।
अन्यत्रापि नवार्णस्य बिल्वमूले
मासं जपः ।
बिल्वदलैर्मधुरत्रययुतैर्मांसहोम: ।
दशांशेन क्षीरसंयुतैः कमलैर्होमो वा
लक्ष्मीप्राप्ति: ॥ १५ ॥
अन्यत्रापि मार्कण्डेयपुराणोक्तं
नित्यं चण्डीस्तवं पठन्।
पुटितं मूलमन्त्रेण जपन्नाप्नेति वाञ्छितम्
॥ १६॥
आश्विनस्य सिते पक्षे आरंभ्याग्नितिथिं
सुधीः ।
अष्टम्यं तं जपेल्लक्ष दशांश होममाचरेत् ॥ १७॥
प्रत्यहं पूजयेद्देवीं
पठेत्सप्तशतीमपि ।
विप्रानाराध्य मन्त्री स्वमिष्टार्थं
लभतेऽचिरात् ॥१८॥
सार्थस्मृतिं पठेच्चण्डिस्तवं
स्पष्टपदाक्षरम् ।
समाप्तौ तु महालक्ष्मीं ध्यात्वा
कृत्वा षडङ्गकम् ॥१९॥
अष्टोत्तरशतं मूलं देवतायै
निवेदयेत् ।
एवं यः कुरुते स्तोत्रं नावसीदति
जातुचित् ॥२०॥
चण्डिकां प्रभजन्मर्त्यो धनैर्धान्यैर्यशश्चयै:
।
पुत्रै: पौत्रे रुचारोग्यैर्युक्तो
जीवेच्छतं समाः ॥ २१॥
अन्यत्र भी; नवार्ण का बेल के नीचे
एक मास जप करना चाहिये । घी, मधु और शक्कर
युक्त बेलपत्रों से एक मास तक होम करना चाहिये । दुग्ध से युक्त कमलों से दशांश
होम लक्ष्मी प्राप्ति का हेतु है । अन्यत्र भी; “मार्कण्डेय
पुराणोक्त मूलमन्त्र से सम्पुटित चण्डीस्तोत्र को नित्य पढ़तें हुए जप करने वाला
मनोवांछित फल पाता है। अश्विन के शुक्लपक्ष में पच्चमी तिथि से लेकर सुधी साधक
अष्टमी पर्यन्त एक लाख मन्त्र जप करे और उसका दशांश होम करे । प्रतिदिन देवी की
पूजा करे और सप्तशती का पाठ भी करे । विप्रों का स्वागत - सत्कार करके साधक शीघ्र
अपना अभीष्ट प्राप्त करता है । अर्थस्मरण सहित स्पष्टक्षर चण्डी स्तव का पाठ करे ।
समाप्ति में महालक्ष्मी का ध्यान तथा षडङ्ग पूजन करके एक सौ आठ मूलमन्त्र देवता को
निवेदित करे । जो इस प्रकार स्तोत्र पाठ करता है; वह कभी
दुःख नहीं पाता । चण्डिका का भजन करता हुआ मनुष्य धन-धान्य और यश की राशियों,
पुत्रों, पौत्रों, तेज
तथा आरोग्य से युक्त होकर सौ वर्ष तक जीता है।
आगे जारी.....
शेष आगे जारी.....श्रीदुर्गा तंत्र कार्यपरत्व नवार्णमंत्रप्रयोग भाग ४ (३) ।
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