दत्तात्रेयतन्त्रम् तृतीय पटल

दत्तात्रेयतन्त्रम् तृतीय पटल

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् द्वितीय पटल में आपने मारणप्रयोग पढ़ा, अब तृतीय पटल में मोहन प्रयोग वर्णित है ।

दत्तात्रेयतन्त्रम् तृतीय पटल

दत्तात्रेयतन्त्र पटल ३ 

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् तृतीय पटलः

दत्तात्रेयतन्त्र तीसरा पटल

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम्

अथ तृतीयः पटलः

मोहनप्रयोगाः अथवा मोहनाभिधानः

ईश्वर उवाच

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि प्रयोगं मोहनाभिधम् ।

सद्यः सिद्धिकरं नृणां श्रृणु योगीन्द्र यत्नतः ॥ १॥

शिवजी बोले-हे योगींद्र ! अब मोहन के प्रयोग का कहता हूं जिसके सुनने से मनुष्यों को शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती  है उसको तुम यत्न से सुनों ॥ १।।

तुलसीबीजचूर्णं तु सहदेव्या रसेन च ।

रवौ यस्तिलकं कुर्यान्मोहयेत्सकलं जगत् ॥ २॥

रविवार के दिन तुलसी के बीजों का चूर्ण सहदेवी के रस में मिलाकर तिलक लगाने से मनुष्य सब जगत्‌ को मोह लेता है । २ ॥

हरितालं चाश्वगन्धां पेषयेत्कदलीरसैः।

गोरोचनेन संयुक्तं तिलकं लोकमोहनम् ॥ ३॥

हरताल, असगन्ध और गोरोचन को केले के रस में पीस तिलक लगाने से मनुष्य सबको मोहित करता है ॥ ३ ॥

श्रृंगी चन्दनसंयुक्तोवचाकुष्ठसमन्वितम्‌ ।

धूपौ देहे तथा वस्त्रे मुखे चैव विशेषतः ॥४ ॥

राजप्रजापक्षिपशुदर्शनान्मोहकारकम्‌ ।

गृहीत्वा मूलताम्बूलं तिलकं लोकमोहनम् ॥ ५॥

काकडासिंघी, चंदन, वच और कूठकी धूप शरीर में, मुख में और वस्त्रों में दे तो देखते ही राजा, प्रजा और पशु, पक्षी मोहित हो जाते हैं। पान की जड को पीस तिलक लगाने से भी सब मोहित हो जाते हैं ॥४ - ५ ॥

सिन्दूरं कुंकुमं चैव गोरोचनसमन्वितम् ।

धात्रीरसेन सम्पिष्टं तिलकं लोकमोहनम् ॥ ६॥     

सिन्दूर, केशर और गोरोचन को आमले के रस में पीस तिलक लगाने से सब मोहित हो जाते हैं ।। ६ ॥

मनःशिलाञ्च कर्पूरं पेषयेत्कदली रसे: ।

तिलकं मोहनं नृणां नान्यथा मम भाषितम्‌ ॥ ७ ।।

मनशिल, कपूर को केले के रस में पीस तिलक लगाने से सब मनुष्यों को मोहित करता है यह मेरा सत्य वचन जानो ।। ७ ॥

सिन्दूरञ्च वचां श्वेतां ताम्बुलरसपेषिताम्‌ ।

अनेनैव तु मन्त्रेण तिलकं लोकमोहनम्‌ ।। ८ ।।

सिन्दूर और सफेद वच को पान के रस में पीसकर मंत्र से अभिमंत्रित कर तिलक लगाने से सबको मोह लेता है ।। ८ ।।

भृड्गराजो ह्यपामार्गों लाजा च सहदेविका ।

एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रेलोक्यं मोहयेन्नर: ।। ९ ॥

भांगरा, अपामार्ग, लज्जावंती और सहदेवी को पीस तिलक लगाकर मनुष्य त्रिलोकी को मोह लेता है ॥ ९ ।।

श्वेतदूर्वा गृहीत्वा तु हरितालञ्च पेषयेत्‌ ।

एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं  मोहयेन्नर: ॥ १० ॥

सफेद दूर्वा को हरिताल के साथ पीस तिलक लगाकर मनुष्य त्रिलोकी को मोह लेता है ॥ १० ॥

गृहीत्वौदुम्बरं पुष्पं वर्ति कृत्वा विचक्षण:।

नवनीतेन प्रज्वाल्य कज्जलं कारयेन्नीशि ॥ ११ ॥।

कज्जलं चाञ्जयेन्नेत्रे मोहनं सर्वतो जगत ।   

यस्मै कस्मै न दात्तव्यं देवानामपि दुर्लभभ्‌ ॥ १२ ॥

बुद्धिमान्‌ मनुष्य गूलर के फूल की बत्ती बनाय मक्खन से दीपक रात्रि में जलाकर काजल पारे । उस काजल को नेत्रों में लगाने से मनुष्य सब जगत्‌ को मोहित करता है, यह प्रयोग देवताओं को भी दुर्लभ हैं अतएव हरएक को न दे॥ ११- १२॥

श्वेतगुञ्जारसे पेष्यं ब्रह्मदण्डीयमूलकम्‌ ।

लेपमात्रे शरीराणां मोहनं सर्वतो जगत्‌ ॥ १३ ।॥॥

ब्रह्मदण्डी को सफेद घुंघुची के रस में पीस शरीर में लेपमात्र करने से सब जगत्‌ को मोहित करता है ।। १३ ॥

बिल्वपत्रं गृहीत्वा तु छायाशुष्कं तु कारयेत्‌ ।

कपिलापयसा युक्तं वटीं कृत्वा तु गोलकम्‌ ।॥ १४ ॥।

एभिस्तु तिलकं कृत्वा मोहनं सर्वतो जगत्‌ ।

क्षणेन मोहनं याति प्राणैरपि धनैरपि॥ १५॥

बेल के पत्तों को ले छाया में सुखांय कपिला गौ के दूध में पीस गोली बनावे। इस गोली के तिलक लगाने से सम्पूर्ण जगत्‌ प्राण और धन से मोहित हो जाता है।। १४ - १५ ॥

श्वेतार्कमूलमादाय श्वेतचन्दनसंयुतम्‌ ।

अनेन लेपयेद्वेहं मोहनं सर्वतो जगत्‌ ॥ १६ ॥

सफेद आक की जड को सफेद चंदन में मिलाकर शरीर में लगाने से सब जगत्‌ मोहित हो जाता है ॥ १६ ॥

विजयापत्रमादाय शवेतसर्षसंयुतम्‌ ।

अनेन लेपयेदेहे मोहनं सर्वतो जगत्‌ ॥ १७ ॥        

भांग को सफेद सरसों में मिला शरीर में लेप करने से जगत्‌ मोहित हो जाता है ।१७॥

गृहीत्वा तुलसीपत्रं छायाशुष्कं तु कारयेत्‌ ।

अश्वगंधासमायुक्तं विजया बीजसंयुतम्‌ ॥ १८ ॥

कपिलादुग्धसार्द्धन बटी टंकप्रमाणत: ।

भक्षिता प्रातरुत्थाय मोहनं सर्वतो जगत्‌ ॥ १९ ॥

तुलसी के पत्तों को छाया में सुखाय असगंध और भांग मिलाकर कपिला गौ के दूध के साथ चार मासे की गोली बनावे। यह गोली प्रात: समय खाने से मनुष्य सब जगत्‌ को मोह लेता है ॥ १८ - १९॥

कटुतुम्बीबीजतैलं ज्वालयेत्पटर्वत्तिकाम्‌ ।

कज्जलं चाञ्जयज्नेत्रे मोहनं सर्वतो जगत्‌ ॥। २० ॥

कडुई तोंबी के तेल में कपडे की बत्ती डाल दीपक 'जलाय काजल वारे फिर उसे नेत्रों में लगाने से सब जग को मोह लेता है ॥ २० ॥

पंचांगदाडमी पिष्ट्वा श्वेतगुंजासमन्विताम्‌ ।

एभिस्तु तिलकं कृत्वा मोहनं सर्वतो जगत्‌ ॥ २१। 

दाडमी के पंचांगों को सफेद घुंघुची के साथ पीसकर तिलक लगाने से सब जगत को मोह लेता है ॥ २१ ॥

इतिश्रीदत्तात्रेयतंत्रे दत्तात्रेयेश्वरसंवादे मोहनप्रयोग कथनंनाम तृतीय:पटल: ६

आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ४ ॥

About कर्मकाण्ड

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 $type={blogger} :

Post a Comment