अन्नपूर्णा स्तोत्र
जो मनुष्य इस अन्नपूर्णा स्तोत्र को
पढ़ता है उसके घर में लक्ष्मी स्थिर हो जाती है, उसको अन्न की समृद्धि प्राप्त
होती है। जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है ।
अन्नपूर्णास्तोत्रम्
ॐ नमः कल्याणदे देवि नमः शङ्करवल्लभे
।
नमो मुक्तिप्रदे देवि ह्यन्नपूर्णे
नमोऽस्तु ते।।१।।
नमो मायागृहीताङ्गि नमः शङ्करवल्लभे
।
माहेश्वरि नमस्तुभ्यमन्नपूर्णे नमोऽस्तु
ते।।२।।
अन्नपूर्णे हव्यवाहपत्नीरूपे
हरप्रिये।
कलाकाष्ठास्वरूपे च ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु
ते ।। ३ ।।
उद्यद्भानुसहस्राभे नयनत्रयभूषिते ।
चन्द्रचूडे महादेवि ह्यन्नपूर्णे
नमोऽस्तु ते ।। ४ ।।
विचित्रवसने देवि त्वन्नदानरतेऽनघे ।
शिवनृत्यकृतामोदे ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु
ते।।५।।
षट्कोणपद्ममध्यस्थे षडङ्गयुवतीमये ।
ब्रह्माण्यादिस्वरूपे च ह्यन्नपूर्णे
नमोऽस्तु ते ।।६।।
देवि चन्द्रकलापीठे
सर्वसाम्राज्यदायिनि ।
सर्वानन्दकरे देवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु
ते ।। ७ ।।
साधकाभीष्टदे देवि भवदु: ख विनाशिनि
।
कुचभारनते देवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु
ते ।। ८ ।।
इन्द्राद्यर्चित पादाब्जे
रुद्रादिरूपधारिणि ।
सर्वसम्पत्प्रदे देवि ह्यन्नपूर्णे
नमोऽस्तु ते ।। ६।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र फलश्रुति
पूजाकाले पठेद्यस्तु
स्तोत्रमेतत्समाहित:।
तस्य गेहे स्थिरा लक्ष्मीर्जायते
नात्र संशय: ।। १० ।।
जो पूजा के समय समहित चित्त होकर इस
स्तोत्र पढ़ता है उसके घर में लक्ष्मी स्थिर हो जाती है इसमें संशय नहीं है।
प्रातःकाले पठेद्यस्तु
मन्त्रजापपुरःसरम् ।
तस्यैवान्नसमृद्धिः
स्याद्वर्द्धमाना दिनेदिने ।।११।।
जो प्रातःकाल मन्त्र जाप के साथ इसे
पढ़ता है उसको अन्न की समृद्धि प्राप्त होती है, और वह दिनों दिन बढ़ती रहती है।
यस्मै कस्मै न दातव्यं न प्रकाश्यं
कदाचन ।
प्रकाशात्सिद्धि-
हानिस्तद्गोपायेद्यत्नतः सुधीः ।। १२ ।।
जिस किसी को यह स्तोत्र नहीं बताना
चाहिये। इसे प्रकाशित करने से सिद्धि की हानि होती है इसीलिये बुद्धिमान व्यक्ति
को इसे गुप्त रखना चाहिये।
इति श्रीभैरवतन्त्रेष्न्ञपूर्णास्तोत्रं समाप्तम् ।।
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