दत्तात्रेयतन्त्रम् पंचम पटल
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ४ में
आपने स्तम्भन प्रयोग पढ़ा,
अब पंचम पटल में विद्वेषण प्रयोग बतलाया गया है ।
दत्तात्रेयतन्त्र पटल ५
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पंचम: पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र पांचवां पटल
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम्
अथ पंचम पटल
विद्वेषण
इंश्वर उवाच
विद्वेषं नरनारीणां विद्वेषं राजमन्त्रिणो:
।
महाकौतुकविद्वेषं श्रृणु सिद्धिं
प्रयत्नत: ॥ १॥
शिवजी बोले-हे दत्तात्रेयजी ! पुरुष
स्त्रियों का विद्वेष, राजा और मंत्रियों
का विद्वेष और महाकौतुककारी विद्वेष की सिद्धि को यत्न से सुनो ॥ १॥
एकहस्ते काकपक्षमुल्लूपक्षं करेऽपरे
।
मंत्रयित्वा मिलत्यग्रे
कृष्णसूत्रेण वेष्टयेत् ।
यद्गृहे निखनेद्भूमौ विद्वेषतस्य
जायते ॥ २ ॥
एक हाथ में कौआ का पंख और दूसरे हाथ
में उल्लू के पंख को ले दोनों के अग्रभाग को मिलाये काले सूत से लपेटकर जिसके घर में
गाडे उसको विद्वेष होता है ।। २ ॥
गृहीत्वा गजकेशं च गृहीत्वा
सिहकेशकम्.।
गृहीत्वा मृत्तिकां पादतलाद्धि
निखनेद्भुवि ॥ ३ ॥
तदुपरि स्थापयेदग्नि मालतीपुष्पं
होमयेत् ।
विद्वेषं कुरुते तस्य नान्यथा
शंकरोदितम् ॥ ४ ॥
हाथी के बाल और सिंह के बाल लेकर शत्रु
के पैर के नीचे की मट्टी ले पृथ्वी में गाड़ दे । तिसके ऊपर अग्नि को स्थापित कर
मालती फूलों से जिनके नाम से हवन करे उनमें विद्वेष हो जाता है ।। ३-४ ।।
मार्जारकमूषकयोर्विष्ठामादाय यत्नतः
।
विद्वेष्यपादतलतो मृदमादाय मिश्रयेत्
॥ ५ ॥
जपेन्मन्त्रशतं कुर्यान्नर
पुत्तलिकां शुभाम् ।
नीलवस्त्रेण संवेष्टय तद्गृहे
निखनेद्यदि ।
विद्वेषो जायते शीघ्रं
पुत्रपित्रोरपि ध्रुवम् ॥ ६ ॥
बिल्ली और चूहे की विष्ठा को लेकर
जिनमें वैर कराना हो उनके पैर तले की मट्टी लेकर मिलावे । फिर उस मट्टी को सौ बार
मन्त्र से अभिमंत्रित कर मनुष्य के आकार की पुतली बनावे फिर नीले कपडे से पुतली को
लपेट घर में गाड़ देने से पुत्र और पिता में भी वैर हो जाता है ॥ ५-६ ॥
चिताभस्मयुतं ब्रभ्रू सर्पयोर्दन्तचूर्णकम्
।
पृथक् पुत्तलिकां कृत्वा
तत्तन्नाम्नाभिमंत्रिताम् ।
उद्याने निखनेद्भूमौ विद्वेषो जायते
ध्रुवम् ॥ ७ ॥
चिता की भस्म में नेवले और सर्प के
दांतों का चूर्ण मिलाय दो पुतली बनावे फिर जिनमें वैर कराना है उनके नाम से
अभिमन्त्रित कर दोनों पुतलियों को अलग २ बगीचे की भूमि में गाड दे तो दोनों में वैर
हो जाता
है ॥ ७ ॥
गजकेसरिणोर्दन्तान्नवनीतेन पेषयेत्
।
यन्नाम्ना हुयते चाग्नौ तयोर्विद्वेषणं
भवेत् ॥ ८ ॥
हाथी और सिंह के दांतों का चूर्ण
मक्खन में मिलाकर जिनके नाम से हवन किया जाय उनमें वैर हो जाता है।
अश्वकेशं गृहीत्वा च
माहिषकेशसंयुतम् ।
सभायां दीयते धूपो विद्वेषो जायते
क्षणात् ॥ ९ ॥
घोडे और भैंसे के बालों की जिनके
नाम से सभा में धूप दे तो उनमें वैर हो जाता है ॥॥ ९ ॥
गृहीत्वा सल्लकीकण्टं निखनेद्भुवि
द्वारके ।
कलहो जायते नित्यं तद्गृहे नात्र
संशय: ॥ १० ॥
सेही के कांटे को लेकर जिसके द्वार पर
गाडे तो उस घर में नि:संदेह कलह होता है ॥ १० ॥
यस्य कस्य भवेद्द्वेषो यावज्जीवं
भवेत्तदा ।
तत्पादमृत्तिकायुक्तां शत्रुपांसुसमन्विताम्
॥ ११ ॥
पुत्तली क्रियते सम्यक् श्सशाने
निखनेद्भुवि ।
विद्वेषो जायते सत्यं सिद्धयोग उदाह्रतः
॥ १२ ॥
जिस किसी में जन्मभर वैर कराना हो
तो उन दोनों के पैर तले की मिट्टी को ले परस्पर में मिलाय दो पुतली बनाकर चिता की
भूमि में पृथक् २ शत्रु के नाम से अभिमन्त्रित कर गाड देने से निश्चय इस सिद्धयोग
से विद्वेष हो जाता है॥ ११- १२॥
मंत्र:-ॐ नारदाय अमुकस्य अमुकेन सह
।
विद्वेषं कुरु कुरु स्वाहा ।
लक्षेकजपात्सिद्धि: ॥
उपरोक्त विद्वेषकारक मन्त्र एक लाख
जपने से सिद्ध हो जाता है ।।
इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे
दत्तात्रेयेश्वरसंवादे विद्वेषणप्रयोगो नाम पञ्चम: पटल: ॥। ५ ॥।
आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ६ उच्चाटन ॥
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