recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

उच्चाटन प्रयोग

उच्चाटन प्रयोग

श्रीदुर्गा तंत्र यह दुर्गा का सारसर्वस्व है । इस तन्त्र में देवीरहस्य कहा गया है, इसे मन्त्रमहार्णव(देवी खण्ड) से लिया गया है। श्रीदुर्गा तंत्र इस भाग ४ (६) में नवार्ण मंत्र से षट्कर्म प्रयोग में उच्चाटन प्रयोग बतलाया गया है।

उच्चाटन प्रयोग

उच्चाटन प्रयोगः           

षट्कर्म मोहन प्रयोग से आगे         

(षट्प्रयोगा उच्चाटनप्रयोगो यथा ।)

कर्त्तव्यदिवसात्पूर्व॑स्रानार्थ चिन्तयेद्बुधः ।

दिनानि विंशति वामे पूर्व कार्यो विधिस्तनोः  १३२॥

शरीरशोधनं कार्य मदिराक्षि विनिश्चितम्‌ ।

नन्दीपादजलं वामे कूपत्रयजलं तथा  १३३॥

तडागादेकमानीय निःक्षिपेत्काष्ठजे घटे ।

बदरीबर्बुरयोः पत्रं चिंचिणीकाफलातसम्‌ ॥ १३४ ॥

ऊरूथदुग्घे संपेष्य स्रात्वा तूच्चाटने द्विजः ।

कर्तव्य दिन से पूर्व सुधी स्नान के लिए चिन्तन करे । हे वामे ! बीस दिन तक शरीर शोधन की विधि करनी चाहिये । हे मदिराक्षि ! निश्चित रूप से शरीर शोधन करना चाहिये । हे वामे ! बैल के पैर का जल, तीन कूओं का जल, एक तालाब का जल लाकर काठ के घड़े में डाले । बेर और बबूल के पत्ते, इमली का फल, तीसी उरुथ के दूध में पीसकर ब्राह्मण उच्चाटन में स्नान करे।

श्रृणुष्व चापरं कर्म भूमिशोधनमुत्तमम्‌ ॥ १३५॥

नीलपत्रं च विजया अर्कपत्रं यवं तथा ।

एक कूपोद्धृतं तोयं पद्भयां चैव समुद्धृतम्‌ ॥१३६॥

गोमयं बालवत्साया वाल्मीकाच्चा मृदं तथा ।

एभिर्विशोधयेद्भूभिं वर्तुलाकारनिर्मिताम्‌ ॥ १३७॥

त्रिपुंड्र धारणं कृत्वा ललाटे रक्तचन्दनैः ।

रक्तवस्त्रासनं प्रोक्त रक्तवस्त्रविभूषितः ॥ १३८॥

तिष्ठेत्तत्र त्रिकोणां वै दक्षिणस्यां मुखे कृते।

स्ववामपार्श्वज॑ रक्त संगृह्य यत्र साधकः ॥१३९॥

निम्बकाष्ठं बिल्वकाष्ठं वदरीकाष्ठमेव च ।

श्रृङ्गवे‌ररसं हिंगुवाटिकारसमेव च  ॥१४० ॥

एतान्सर्वान्सिमानीय मिश्रितं कारयेद्बुधः ।

लेखनी दाडिमी कार्यो प्रमाणे द्वादशांगुलम्‌ ॥ १४१॥

तया लिखेत्स्वयं नग्नो वामहस्तेन निश्चितम्‌।

भूमिशोधनरूप उत्तम दूसरा कर्म सुनो। नील के पत्ते, भाँग, सफेद मदार के पत्ते, जव तथा एक कुएँ से पैर से निकाला गया पानी, बछिया का गोबर, बांबी की मिट्टी, इन सब से गोल बनाई गई भूमि का शोधन करे । ललाट में लाल चन्दन से त्रिपुण्ड्र धारण करके लाल आसन, लाल परिधान से विभूषित त्रिकोण पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे। अपने बाएँ बगल से साधक रक्त लेकर नीम की लकड़ी, बेल की लड़की, बेर की लकड़ी, अदरक का रस, हींग, हिंगुपत्री (वाटिका) का रस, सुधी इन सब को लाकर पीस कर मित्रण तैयार करे। बारह  अंगुल आकार की अनार की कलम बनवाये । उससे स्वयं नङ्गे होकर बाएँ हाथ से लिखे ।

पूजनं यन्त्रराजस्य जगन्मातुश्शुभे शृणु ॥ १४२॥

हरिद्रा चन्दनं श्वेतं हरितालं जलं वचम्‌ ।

कुशानि पञ्च सम्बद्ध्वा कदलीतन्तुना प्रिये ॥ १४३ ॥

स्रापयेत्प्रीतियुक्तेन यन्त्रं शक्तेस्तनुं शुभाम्‌।

पीतपुष्पं तथा पीतचदन्नं पीत तण्डुलम्‌ ॥ १४४ ॥

सूत्र पीतं च सिन्दूरमजादुग्धं तथैव च ।

एभिः प्रीत्या प्रपूज्येमं यन्त्रराजं विचक्षण: ॥ १४५ ॥

विस्तृतं न मयोक्तं वै सामान्यं कथितं शुभे ।

हे शुभे ! जगन्माता का तथा यत्रराज का पुजन सुनो । हल्दी, सफेद चन्दन, हरिताल, जल, वचा, केले के रेशे से एक में बँधे पाँच कुश इनसे शक्ति के शुभ शरीररूपी यन्त्र को प्रीतियुक्त मन से नहलाये । (स्नानमन्त्र : ॐ करोतु स्नानः शुभहेतुरीश्वरीशुभानि भद्राण्यर्भिहान्तुचापद:) । पीले फूल, पीला चन्दन, पीला चावल, पीला सूत, सिन्दूर, बकरी का दूध इनसे बुद्धिमान साधक प्रेमपूर्वक मन्त्रराज की पूजा करे । हे शुभे ! मैंने विस्तार से नहीं कहा है, सामान्य ही कहा है ।

अतःपरं श्रृणुष्वाद्य विधि धपूस्य निर्मलम्‌ ॥१४६॥

साधकानां ध्रुवं सिद्धिर्धूप एव प्रजायते ।

प्रयोग कारणं देवि धूपएव निगद्यते ॥१४७॥

इसके बाद धूप की निर्मल विधि सुनो । साधकों को निश्चित रूप से सिद्धि धूप से ही प्राप्त होती है। प्रयोग में कारण हे देवि! धूप को ही कहा जाता है।

धूपमाहात्म्यमतुलं डामरे कथित मया ।

धूपवार्तां न जानन्ति डामरे विमुखा नराः ॥१४८॥

कथं सिद्धिर्भवेत्तेषां विपरीते शुभानने ।

मधूकफलपुष्पैश्च गुग्गुलुं चन्दनद्वयम्‌ ॥१४९॥

हरिद्रा हरितालं च देवदारू च नागरम्‌ ।

सिता लवङ्गं कर्पूरं सुरा वालक्षरं मधु ॥१५० ॥

मेषीघृतं गोधूतं च॑ महिषीघृतमेव च ।

एतान्सर्वाश्च सम्पेष्य कारयेद्धूपमुत्तमम्‌ ॥१५१॥

धूपयेद्धूपमन्त्रेण कार्यसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम्‌ ।

चतुर्वारे पठेन्मन्त्रं साधको गद्गदाकृतिः ।

एकचितं समाधाय धूपं कुर्याद्विचक्षण: ॥१५२॥

मैंने डामर तन्त्र में धूप का अतुल महात्म्य कहा है। डामर से विमुख मनुष्य धूपवार्ता नहीं जानते। हे शुभानने ! उनके विपरीत होने से कैसे सिद्धि प्राप्त हो महुए के फल और फूल, गुग्गुल, दोनों चन्दन, हल्दी, हरिताल, देवदारु, नागरमोथा, चीनी, लवङ्ग, कपूर, शराब, बालछड़ मधु, भेड़ी का घी, गाय का घी, भैंस का घी, इन सबको पीसकर उत्तम धूप बनाये । धूप मंत्र से देवता को धूप देने से निश्चित रूप से कार्य सिद्धि होती है। साधक गद्गदाकृति होकर चार बार मंत्र को पढ़ें । एकचित्त होकर सुधी धूपदान करे। (धूपमन्त्र : ॐ मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेधेक्लीं।)

मृन्मयो दीपक: कार्यस्तैलं चामलकोद्भवम्‌ ।

ऐरण्डतैलं तैलं च मधूकस्य वरानने ॥१५३॥

वर्तिका पीतवस्त्रस्य अंगुलत्रयसम्मिता ।

लेपयेत्प्रृथिवीं वामे गोमयेन मृदा युताम्‌ ॥१५४॥

त्रितयांगुलसंयुक्तॉल्लिखेद्यन्त्रं सुधीः प्रिये ।

वामपार्श्वे दाडिमस्यथ करणीया च लेखनी ॥१५५॥

गोधूमचूर्णमध्वाक्तसर्पिषा गौरिकं जतु ।

एभिर्यन्तं लिखेद्वामे स्थापयेत्पूर्वदक्षिणे ॥१५६॥

पंचागुल्समायुक्ते पूजयेद्रक्तचन्दनै: ।

दीपमध्ये सदा ध्यायेदुर्गां दुर्गतिनाशिनीम्‌ ॥१५७

एवं स्तवाभियुक्तानां देवानां तत्र पार्वती ।

एवं दीपो मया प्रोक्तो मालायाश्च विधि श्रुणु ॥१५८॥

हे वरानने ! मिट्टी का दीपक बनाना चाहिये । आँवले का तेल, एरेंड का तेल, महुए का तेल, पीलेवस्त्र की बत्ती तीन अंगुल परिमाण की बनाये । गोबर, मिट्टी से भूमि को लिपे । हे प्रिये ! तीन अंगुलियों से बायीं ओर सुधी यन्त्र लिखे । अनार की कलम बनानी चाहिये । मधु तथा घी युक्त गेहूं का आटा, गेरू, लाख, इनसे बाएँ ओर यन्त्र लिखे और पूर्वदक्षिण ओर स्थापित करे । पाँचों अंगुलियों से लाल चन्दन से पूजा करे । दीप के बीच, हे पार्वति ! दुर्गतिनाशिनी दुर्गा का ध्यान करे। 'एवं स्तवाभियुक्तानां देवानां तत्र पार्वती । इस मन्त्र से दीप दे । इस प्रकार मैंने दीप की विधि बतला दिया । अब माला की विधि सुनो ।

उच्चाटने प्रवालस्य ऊर्णसूत्रेण ग्रंथिता ।

चण्डिकाया यन्त्रराजे अर्चयित्वा च वीटकम्‌ ॥१५९॥

पश्चादेकैकमुद्धृत्य चर्वयेच्छनैकः सुधीः ।

यावज्जपसमाप्तिः स्यात्तावत्ताम्बूलचर्वणम्‌ ॥१६०॥॥

कार्य विचक्षणनैव चण्डिकाकिङ्गरेण वै ।

चतुर्विशतलिक्षं तु वैश्ये द्वाद्वशलक्षकम्‌ ॥१६१॥

ब्राह्मणे द्विगुणं देवि शुद्राणामर्द्धार्द्धकम्‌ ।

स्त्रीणां च द्विगुणं प्रोक्तं यतः सा शक्तिरूपिणी ॥१६२॥

जपान्ते तद्दशांशेन नित्यहोमं च कारयेत्‌ ।

उच्चाटन में मूँगे की माला ऊन के धागे में गूथकर चण्डिका के यन्त्रराज में पान के बीड़ा की पूजा करने के बाद एक-एक बीड़ा निकाल कर सुधी धीरे-धीरे चबाये । जब तक जप समाप्त न हो तब तक विचक्षण चण्डिका-भक्त को पान चबाना चाहिये । मन्त्र को चौबीस लाख जप कहा गया है । (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे देवदत्त फट्‌ उच्चाटनं कुरुकुरु स्वाहेति मन्त्र जपेत्‌) । वैश्य में बारह लाख; हे देवि ! ब्राह्मण में दूना, शूद्रों में चौथाई, तथा स्त्रियों में दूना कहा गया है क्योंकि वह शक्तिरूपिणी हैं। जप के बाद दशांश से नित्य होम करना चाहिये ।

गोघृतं महिषीदुग्धं तण्डुलं पीतसर्षमम्‌ ॥१६३॥

देवदारू लवङ्ग च श्रीफलस्य रसस्तथा ।

कुण्ड कृत्वा पश्चकोणं काष्टबर्बुरमेव च ॥१६४॥।

सप्तांगुलमितान् कृत्वा जुहुयात्प्रेमतत्परः ।

मन्त्रं नवार्णवं प्रोक्तं षट्प्रयोगेषु आहुतौ ॥१६५॥।

उच्चाटने यवस्यैव चूर्ण कृत्वा तिलस्य च ।

गुडमिश्रितसंस्कार्या एतैश्व करपट्टिका ॥१६६॥

राजमाषस्य द्विदलं हरिद्रादिविवर्जितम्‌ ।

भोक्तव्यं वामहस्तेन तृतीयप्रहरे शुभे ॥१६७॥।

अभावे भोजनं देव्या यत्तप्राप्तं तदेव हि ।

भोजने क्लेशसंकर्तुः प्रयोगोऽफलदो भवेत्‌ ॥१६८॥

विधिर्वै मन्त्रराजस्य कथितः प्राणवल्लभे ।

शैवेन शाक्तविप्रेण कर्त्तव्यं निश्चितं प्रिये ॥१६९॥

गाय की घी, भैंस का दूध, चावल पीली सरसों, देवदारु, लवङ्ग, बेल का रस, पश्चकोण कुण्ड बनाकर सात अंगुल लम्बी बबूर की समिधाओं से भक्तिभाव से होम करे । छ: प्रयोगों में आहुति के लिये नवार्णमन्त्र कहा गया है। उच्चाटन में जौ तथा तिल का चूर्ण गुड़ से मिलाकर रोटी बनाकर राजमाष की दाल हल्दी के बिना बाएँ हाथ से, हे शुभे तीसरे पहर खाना चाहिये । देवी के भोजन के अभाव में जो मिले वही खाना चाहिये । भोजन में क्लेश करने वाले का प्रयोग असफल हो जाता है । हे प्राणवल्लभे ! यह मन्त्रराज की विधि मैंने कह दी है। शैव तथा शाक्त विप्रों को निश्चित रूप से इसे करना चाहिये ।

इत्युच्चाटनम्‌ ॥३॥।

आगे जारी.....

शेष आगे जारी.....श्रीदुर्गा तंत्र नवार्णमंत्र षट्कर्म में वशीकरणप्रयोग भाग ४ (७) ।

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]