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नारदसंहिता अध्याय १५
नारदसंहिता अध्याय १५ में रजस्वलाविचार अथवा प्रथमार्तवविचार का वर्णन किया गया है।
नारदसंहिता अध्याय १५
अथ रजस्वलाविचारः।
अमारिक्ताष्टमीषष्टीद्वादशीप्रतिपत्स्वपि
।
परिघस्य तु पूर्वार्धे व्यतीपाते च
वैधृतौ ॥ १ ॥
संध्यासूपप्लवे विष्टयामशुभं
प्रथमार्तवम् ॥
रुग्णा पतिव्रता दुःखी पुत्रिणी
भोगभागिनी ॥
पतिप्रिया क्लेशयुक्ता
सूर्यवारादिषु क्रमात् ॥ २ ॥
अमावस्या,
रिक्ता, अष्टमी, षष्ठी,
द्वादशी, प्रतिपदा ये तिथि, परिघ योग का पूर्वार्ध व्यतीपात,वैधृति, सायंकाळ, दिग्दाह, भद्रा ऐसे
समय में प्रथम रजस्वला होय तो अशुभफल जानना और रविवार आदि जिस बारे में पहिले
रजस्वला होय उसका फल यथाक्रम से ऐसे जानना कि रोगवारी १ पतिव्रता २ दुःखिनी ३
पुत्रिणी ४ भोगभोगिनी ५ पतिप्रिया ६ क्लेश से संयुक्त ७ ऐसे ये फल सूर्यादिवारों के
जानने ॥ १ - २ ॥
श्रीयुक्ता सुभगा पुत्रवती
सौख्यान्विता स्थिरा ॥
मानी कुलाधिका नारी चाश्विन्यां
प्रथमार्तवा ॥ ३ ॥
अश्विनी नक्षत्र में प्रथम रजस्वला
होय तो श्रीयुक्त, सुभगा पुत्रवती
सौख्य से युक्त स्थिर,मानवाली कुल में अधिक पूज्य होती है ।।
३ ।।
दुःशीला स्वैरिणी वंध्या
गर्भपातनतत्परा ।
परप्रेष्या कवंध्या भरण्यां
प्रथमार्तव ॥ ४ ॥
और दुष्टस्वभाववाली,
व्यभिचारिणी, वंध्या, गर्भपात
करने में तत्पर,दासी, काकवंध्या यह
भरणी नक्षत्र में प्रथम रजस्वला के फल हैं ।
अन्यथा पुंश्चली वंध्या
गर्भपातनतत्परा ।
वेश्या मृतप्रजा चापि वह्निभे
प्रथमार्तवा ॥ ५॥
व्यभिचारिणी,
वंध्या, गर्भपात में तत्पर, वेश्या, मृतवत्सा यह फल कृत्तिका नक्षत्र में जानना
॥ ५ ॥
सुशीला सुप्रजा चान्या पतिभक्ता दृढव्रता ॥
गृहार्चनरता नित्यं धातुभे
प्रथमार्तवा ॥ ६ ॥
सुंदर स्वभाववाली,
सुन्दर सन्तानवाली, पति में भक्ति रखनेवाली,
दृढनियमवाली, हमेशा गृहपूजन में तत्पर यह फल
रोहिणी नक्षत्र में प्रथम रजस्वला हो तब जानना ॥ ६ ॥
गुणान्विता धर्मरता नारी सर्वंसहा
सती ।
पतिप्रिया सुपुत्रा या चंद्रभे
प्रथमार्तवा ॥ ७॥
गुणयुक्त,
धर्म में तत्पर, सब कुछ सहनेवाली, पतिव्रता, पति से प्यार रखनेवाली, अच्छे पुत्रोंवाली यह फल मृगशिर नक्षत्र में प्रथम रजस्वला होवे तब होता
है ॥ ७ ।
कुलटा दुभगा दुष्टा मृतपुत्रा खला
जडा ॥
दुष्टव्रतपरिभ्रष्टा रौद्रभे
प्रथमार्तवा ॥ ८॥
व्यभिचारिणी,
दुर्भगा, दुष्टा, मृतवत्सा,
क्रूरा, मूर्खा, दुष्ट
आचरणवाली, परिभष्ट, यह फल आर्द्रा
नक्षत्र में प्रथम रजस्वला होने का है ।। ८ ।।
पतिभक्ता पुत्रवती परसंतानमोदिनी ॥
कलाचारानुरक्ता या दितिभे
प्रथमार्तवा ॥ ९ ॥
पति में भक्ति रखनेवाली,
पुत्रवती, पराई संतान को भी आनंद देनेवाली,
सब कलाओं वाली, प्रियहित में रहनेवाली यह फल
पुनर्वसु नक्षत्र में प्रथम रजस्वला होने का है ॥ ९ ॥
पतिप्रिया पुत्रवती मानभोगवती शुभा
।
सुकर्मनिरता दक्षा तिष्यर्क्षे
प्रथमार्तवा ॥ १० ॥
पति से प्यार रखनेवाली,
पुत्रवती, मान भोगवाली, शुभ, सुंदर कर्म में तत्पर रहनेवाली, चतुर यह फ़ल पुष्य
नक्षत्र में प्रथम रजस्वला होने का है ।। १० ।।।
परभर्तुरता प्रेष्या कोपिनी
निर्गुणालसा ॥
मृषावादी च दुष्पुत्रा भौजंगे
प्रथमार्तवा ॥ ११ ॥
ज़ो स्त्री पहली बार आश्लेषा
नक्षत्र में रजस्वला होय वह परपुरुष से रमण करनेवाली,
दासी, क्रोधवाली , दयारहित, आलस्यसहित, झूठ बोलनेवाली, दुष्ट
संतानवाली होती है । । ११ ।। ।
निर्दे्वेर्ष्या रोगसंयुक्ता
सर्वदाज्ञा च लोलुपा ॥
पितृवेश्मरता मान्या पैतृभे
प्रथमार्तवा ॥ १२ ॥
वैररहित,
रोगवाली, सदा अज्ञानवाली, लोभ से संयुक्त, पिता के घर में मोह रखनेवाली मानवती
यह फल मघा नक्षत्र में प्रथम रजस्वला होने का है ॥ १२ ॥
परकार्यरता दीना दुष्पुत्रा
कृशभागिनी ॥
मलिनी कर्कशा कुद्धा भाग्यभे
प्रथमार्तवा ॥ १३ ॥
पराये काम में रत,
दीन, दुष्टपुत्रोंवाली, क्लेशभागिनी,
मलिन, कर्कशा, क्रोधवाली
यह फल पूर्वफल्गुनी में प्रथम रजस्वला होने का है ।। १ ३ ॥
प्रजावती धर्मरता निर्वैरा
मित्रपूजिता ।
सती मित्रगृहे सत्कार्यमर्क्षे तु
रजस्वला ॥ १४ ॥
संतानवाली,
धर्म में तत्पर, वैररहित, सम्बधी मित्रजनों से पूजित, पतिव्रत, प्यार हितवाले के घर में आसक्त यह फल प्रथम उत्तराफाल्गुनी में रजस्वला
होने का है ॥ १४ ॥
निर्दे्वेष्या भूरिविभवा पुत्राढ्या
भोगभोगिनी ॥
प्रधाना दानकुशला हस्तक्षें
प्रथमार्तवा ॥ १५॥
वैररहित,
बहुत ऐश्वर्यवाली, पुत्रोंवाली, भोगो को भोगनेवाली, मुख्य, दान
करने में निपुण, ऐसी स्त्री प्रथम हस्त नक्षत्र में रजस्वला
होनेवाली होती है । १५ ॥
चित्रकर्मा भोगिनी च कुशला
क्रयविक्रये ॥
विकीर्णकामा सुल्लक्ष्णा
त्वाष्ट्रभे प्रथमार्तवा ॥ १६ ॥
विचित्र काम करनेवाली,
भोग भागनेवाली, खरीदने बेचने के व्यवहार में
चतुर, विस्तृत कामवाली, सुंदर चतुर ऐसी
स्त्री चित्रा नक्षत्र में प्रथम रजस्वला होने से होती है ॥ १६ ॥
बहुवित्तवती न स्यात्कुशला
शिल्पकर्मणि ।
पुत्रपौत्रवती साध्वी वायुभे
प्रथमार्तवा ॥ १७ ॥
स्वाति नक्षत्र में प्रथम रजस्वला
होय तो बहुत धनवाली नहीं हो और शिल्पकर्म में चतुर पुत्र पौत्रोंवाली तथा पतिव्रता
होती है ।। १७ ।।
नीचकर्मरता दुष्टा परसक्ता परप्रिया
।
विपुत्रा मलिना क्रुद्धा द्विदैवे
प्रथमार्तवा ॥ १८॥
नीचकर्म में रत,
दुष्टा, परसक्ता, परप्रिया,
पुत्ररहित, मलिनी, क्रोधिनी
ऐेसी विशाखा नक्षत्र में जाननी ॥ १८ ॥
स्वामिपक्षार्चिता सौख्यगुणैः
सम्यग्विभूषिता ॥
सुपुत्रा शुभदा कांता मित्रर्क्षे
प्रथमाएर्तवा ॥ १९ ॥
पति के कुल से पूजित,
सुखदायक गुणों करके विभुषित, सुंदर पुत्र
पतिवाली यह अनुराधा नक्षत्र का फल जानना ॥
दुश्चरित्ररता क्लेशिन्यार्तवा
पुंश्चली व्यसुः ॥
दुःसंतानवती ज्येष्ठा नक्षत्रे
प्रथमार्तवा ॥ २० ॥
दुष्ट चरित्र में रत,
दुःखी, पैर की बीमारीवाली, व्यभिचारिणी, बलरहित, दुष्ट
संतानवाली, ऐसी स्त्री प्रथम ज्येष्ठा नक्षत्र में रजस्वला
होने से होती है ॥ २० ॥
संतानार्थगुणैरन्यैर्युक्तान्यक्लेशमोचिनी
॥
स्वकर्मनिरता नित्यं मूलभे
प्रथमार्तवा ॥ २१ ॥
संतान धन गुण से युक्त तथा अन्य
गुणों से युक्त, और अन्य जनों के दुःख को दूर
करनेवाली, अपने कर्म में तत्पर, यह मूल
नक्षत्र का फल जानना ॥ २१ ।।
प्रच्छन्नपापा दुष्पुत्रा
प्राणिहिंसनतत्परा ।
अजस्रव्यसनासक्ता तोयभे प्रथमार्तवा
॥ २२ ॥
गुप्त पाप करनेवाली,
दुष्ट संतानवाली, प्राणियों की हिंसा करने
वाली, निरंतर व्यसन में आसक्त, ऐसी
स्त्री पूर्वाषाढ में प्रथम रजस्वला हाने से होतीहै ॥ २२ ॥
कार्याकार्येषु कुशला सदा
धर्मानुवर्तिनी ॥
गुणाश्रया भोगवती विश्वभे
प्रथमार्तवा ॥ २३ ॥
कार्य अकार्यं में निपुण,
सदा धर्म में रहनेवाली, गुणों की खानि,
भोगवती यह उत्तराषाढ का फल है ॥ २३ ॥
धनधान्यवती भोगपुत्रपौत्रसमन्विता
।।
कुलानुमोदिनी मान्या विष्णुभे
प्रथमार्तया ॥ २४ ॥
धन धान्यवती,
भोग पुत्र पौत्र इनके सुखवाली, कुल को प्रसन्न
रखनेवाली, मान्य यह फल श्रवण नक्षत्र का है ॥ २४ ॥
पुत्रपौत्रान्विता भोगधनधान्यवती
सती।
स्वकर्मनिरता मान्या वसुभे
प्रथमार्तवा ॥ २५॥
पुत्र पौत्रोंवाली,
भोग धन धान्यवाली, अपने कार्य में निपुण,
मान्य यह फल धनिष्ठा नक्षत्र का है ।। २५ ।।
बहुपुत्रा धनवती स्वकर्मनिरता सती ॥
कुलानुमोदिनी मान्या वारुणे प्रथमार्तवा॥
२६ ॥
बहुत पुत्रोंवाली,
धनवती, अपने काम में निपुण, पतिव्रता, कुल को प्रसन्न करनेवाली, मान्य यह फल प्रथम शतभिषा नक्षत्र में रजस्वला होने का है ॥ २६ ॥
बंधकी बंधुविद्वेष्या नित्यं
दुष्टरता खला ।
शिल्पकार्येषु कुशलाऽजांध्रीभे
प्रथमार्तवा ॥ २७ ॥
व्यभिचारिणी,
बंधुओं से विद्वेष करनेवाली, हमेशा दुष्टजनों में
रत, दुष्ट, शिल्पकार्य में निपुण यह फल
पूर्वाभाद्रपद में जानने ॥ २७॥
आढ्या पुत्रवती मान्या सुप्रसन्ना
पतिप्रिया ।।
बंधुपूज्या धर्मवत्यहिर्बुध्न्ये
प्रथमार्तवा ॥ २८ ॥
धनाढ्या,
पुत्रवती, मान्या, सुंदर
प्रसन्न, पति से प्यार रखनेवाली, बंधुओं
से पूज्या, धर्मवाली यह उत्तराभाद्रपद का फल है ॥ २८ ॥
दृढव्रता धर्मवती
पुत्रसौख्यार्थसंयुता ॥
विशाखागुणसंपन्ना पौष्णभे
प्रथमार्तवा ॥ २९ ॥
और जो स्त्री प्रथम रेवती नक्षत्र में
रजस्वला हो वह दृढव्रतवाली, धर्मवती, पुत्र धन सुख इनसे युक्त और विशाखा नक्षत्र में कहे हुये गुण से युक्त
होती है ॥ २९ ॥
कुलीरवृषचापांत्यनृयुक्कन्यातुलाधराः
॥
राशयः शुभदा ज्ञेया नारीणां
प्रथमार्तवे ॥ ३० ॥
स्त्रियों के प्रथम रजस्वला होने में
कर्क,
वृष, धन मीन, मिथुन,
कन्या, तुला ये राशि अर्थात् लग्न शुभ कहे
हैं.॥ ३० ॥
तिथ्यर्क्षवारानिंद्याश्चेत्सेककर्म
न कारयेत् ।
दोषाधिक्ये गुणाल्पत्वे तथापि न च
कारयेत् ॥ ३१ ॥
जो तिथिवार नक्षत्र निंदित होवें और
दोष अधिक तथा गुण अल्प होवें तो अभिषेक कर्म नहीं करना चाहिये ॥ ३१ ॥
दोषाल्पत्वे गुणाधिक्ये सेककर्म
समापयेत् ।
निंद्यर्क्षे तिथिवारेषु यत्र
पुष्पं प्रदृश्यते ।। ३२ ॥
तत्र शांतिः प्रकर्तव्या
घृतदूर्वातिलाक्षतैः ।
प्रत्येकमष्टशतं च गायत्र्या
जुहुयात्ततः ॥ ३३ ॥
और दोष थोडें हो गुण अधिक होवें तब
- अभिषेक कर्म करना चाहिये। निंदित नक्षत्र और निंदित तिथि वार होवें तो घृत,
दूब, तिल, अक्षत इन्हों
करके अष्टोत्तरशत १०८गायत्री मंत्र से होम करे और पहिले जप करवा के शांति करे ॥ ३२
- ३३ ॥
स्वर्णगोतिलान्दद्यात्सर्वदोषापनुत्तये
।
भर्ता तस्यापि गमनं
वर्जयेद्रक्तदर्शनात् ॥ ३४ ॥
सुवर्ण, गौं, भूमि, तिल इनका दान करे तब सब दोष शांत होते हैं । रजस्वला होवे तव तिसके पति ने भी स्त्री त्याग करना चाहिये ।। ३४ ॥
इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां
प्रथमार्त्तवाध्यायः पंचदशः ।। १५ ।।
आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय १६ ॥
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