नारदसंहिता अध्याय १८

नारदसंहिता अध्याय १८            

नारदसंहिता अध्याय १८ में चौलकर्म, मंगलांकुरार्पण का वर्णन किया गया है।  

नारदसंहिता अध्याय १८

नारदसंहिता अध्याय १८      

अथ चौलकर्म ।

तृतीये पंचमाब्द वा स्वकुलाचारतोपि वा ।

बालानां जन्मतः कार्यं चौलमावत्सरत्रयात् ॥ १ ॥

तीसरे वा पांचवें वर्ष में अथवा अपने कुलाचार के अनुसार बालकों का चौलकर्म ( बाल उतराने चाहियें ) शुभ है। विशेष करके तीन वर्ष का बालक हुए पहिले करना ।। १ ।।

सौम्यायनेनास्तगोसुरासुरमंत्रिणोः॥

अपर्वरिक्ततिथिषु शुक्रे ज्ञे ज्येंदुवासरे ॥ २ ॥

उत्तरायण सूर्य हो, गुरु शुक्र का अस्त नहीं हो पूर्णमासी, रिक्ता तिथि इनको त्याग दे शुक्र, बुध, बृहस्पति, चंद्रवार ये शुभ हैं ।। २ ।।

दस्रादितीज्यचंद्रेद्रपूषाभानि शुभान्यतः ॥

चौलकर्माणि हस्तर्क्षास्रीणित्रीणि च विष्णुभात् ॥ ३॥

पट्टबंधनचौलन्नप्राशने चोपनायने ।

शुभदं जन्मनक्षत्रमशुभं त्वन्यकर्मणि ॥ ४ ॥

अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, मृगशिर,ज्येष्ठा रेवती ये नक्षत्र शुभ हैं और चौलकर्म में हस्त नक्षत्र से तीन नक्षत्र अथवा श्रवण से तीन नक्षत्रों तक जन्म नक्षत्र होय तो चौल कर्म, पट्टबंधन, अन्नप्राशन, उपनयन कर्म इनमें शुभदायक है अन्य कर्म में जन्म नक्षत्र अशुभ जानना ।। ३ - ४ ॥

अष्टमे शुद्धिसंयुते शुभलग्ने शुभांशके ।

न नैधने भे शीतांशौ षष्ठेन्ये तु विवर्जयेत् ॥ ५ ॥

शुभलग्न शुभ नवांशक अष्टम स्थान शुद्ध अर्थात् ८वें स्थान में कोई यह नहीं हो और ६ । ८ ५ १२ चंद्रमा नहीं हो ।। ५॥

धनत्रिकोणकेंद्रस्थैः शुभैरूयायारिगैः परैः ।

अभ्यक्ते संध्ययोर्नीते निशि भोक्तुर्न चाहवे ॥ ६ ॥

शुभग्रह २ । ९ । ५।१। ४। ७ । १ ० इन घरों में हों और क्रूर यह ३ । ११ । ६ घरों में से तब तेल आदि की मालिश करके क्षौरकर्म कराना शुभ है तथा संध्या समय, भोजन का अंत, रात्रि, युद्ध इनमें क्षौर नहीं कराना ॥ ६ ॥

नोत्कटे भूषिते नैव न याने नवमेह्नि च ॥

क्षौरकर्म महीशानां पंचमेपंचमेहनि ॥ ७ ॥

कर्त्तव्यं क्षौरनक्षत्रे दृश्यस्योदयेऽष्टम् ।।

नृपविभाज्ञया यज्ञे मरणे बंदिमोक्षणे ।।

उद्वाहेखिलबारर्क्षतिथिषु क्षौरमिष्टदम् ॥ ८ ॥

अत्यंत विकराल होकर आभूषण धारण करके तथा सवारी पर बैठ के क्षौर नहीं कराना राजाओं ने नवमें २ दिन तथा पांचवें२दिन भी क्षौर नहीं करना चाहिये । क्षौर कराने के योग्य नक्षत्रों में क्षौर करना और मांगलीक जन्मोत्सवादिक में कराना, राजा तथा ब्राह्मण की आज्ञा से, यज्ञ, मरण, कैद से छूटना, विवाह इन विषे संपूर्ण तिथि वारों में क्षौर करावे कुछ मुहूर्त नहीं देखे । ७ - ८ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां चौलाध्यायो: ।।

नारदसंहिता अध्याय १८      

कर्तव्यं मंगलेष्वादौ मंगलेष्वंकुरार्पणम् ।

नवमे सप्तमे मासि पंचमे दिवसेपि वा ॥ १ ॥

मंगल कर्मों में पहिले दूव आदि मंगलांकुर अर्पण करने चाहियें नवम में अथवा सातवां महीने में अथवा पांचवें दिन ॥ । १ ।।

तृतीये बीजनक्षत्रे शुभवारे शुभोदये ॥

सम्यग्गृहाण्य वितानध्वजतोरणैः ॥ २ ॥

तथा तीसरे महीने में गर्भाधान के नक्षत्र विषे शुभवार और शुभनक्षत्र विषे अच्छे लग्न विषे अच्छे प्रकार से घरों को मंडप, ध्वजा, तोरण आदिकों से विभूषितकर ॥ २ ।।

आशिषो वाचनं कार्यं पुण्यं पण्यांगनादिभिः ।

महावादित्रनृत्याद्यैर्गता प्रागुत्तरां दिशम् ॥ ३ ॥

स्वस्तिवाचन करवाना, सौभाग्यवती स्त्रियों से अच्छे प्रकार मंगल गायन करवाना, महान् बाजे नृत्यआदिकों की शोभा से युक्त होकर ईशान कोण में जावे ।। ३ ॥

तत्र मृसिकतां श्लक्ष्णां गृहीत्वा पुनरागतः ।

मृन्मयेष्वथवा वैणवेषु पात्रेषु पूरयेत् ॥

अनेकबीजसंयुक्तं तोयं पुष्पोपशोभितम् ॥ ४ ॥

तहां से बालू रेत को लाकर मृत्तिका के पात्र में अथवा बांस आदि के पात्रों में भर देना चाहिये फिर तिसमें सब प्रकार के बीजों को बोवे और जल छिडक देवे तथा सुंदर पुष्प डालकर शोभित कर देवे ॥ । ४ ।।

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां मंगलांकुरार्पणं नामाध्यायस्रयोऽष्टदशः ।। १८ ।।

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय १९ ॥ 

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