नारदसंहिता अध्याय १६

नारदसंहिता अध्याय १६

नारदसंहिता अध्याय १६ में आधानप्रकरण, पुंसवनप्रकरण, सीमंतोन्नयन का वर्णन किया गया है। 

नारदसंहिता अध्याय १६

नारदसंहिता अध्याय १६ 

रजोदर्शनतोऽस्पृष्टा नार्यो दिनचतुष्टयम् ।

ततः शुद्धक्रियावैताः सर्ववर्णेष्वयं विधिः॥ १ ॥

रजस्वला होने के बाद चार दिन स्त्री स्पर्श करने योग्य नहीं रहती है फिर शुद्ध होती है सब वर्णो में यही विधि है ॥ १॥

ओजराश्यंशगे चंद्रे लग्ने पुंग्रहवीक्षिते ॥

उपवीती युग्मतिथौ सुस्नातां कामयोस्त्रियम् ॥ २ ॥

चंद्रमा, मेष, मिथुन आदि विषमराशि के नवांशक में स्थित हो। ओर लग्न भी विषम राशि के नवांशक में स्थित हो और पुरुष ग्रहों की दृष्टि से युक्त हो तब युग्मतिथि विषे शुद्ध स्नान कर चुकी हुई स्त्री को सव्य हुआ पुरुष प्राप्त होवै ॥ २ ।।

पुत्रार्थी पुरुषं त्यक्वा पौष्णमूलाहिंपैतृभम् ॥

युग्मभेषु शशांके च लग्नेऽस्त्रीग्रहवीक्षिते ॥ ३ ॥

और पुत्र की इच्छावाली स्त्री रेवती, मूळ, आश्लेषा, मघा इन नक्षत्रों में तथा युग्म राशि पर चंद्रमा होवे और लग्न स्त्री ग्रहों करके दृष्ट होय तब पति संग त्याग देवे ।। ३ ।।

अयुग्मे दिवसे भार्यां कन्यार्थी कामयेत्पतिः ॥

निर्बीजानामिमे योगाः सर्वदा निष्फलप्रदाः ॥ ४ ॥

और रजस्वला के दिन से विषम दिनों में स्त्री को प्राप्त होवे तो कन्या जन्म हो ये सब योग निर्बीज पुरुषों के हैं सदा निष्फल हैं अर्थात् इनमें स्त्री संग करने से पुत्री संतान नहीं हो सकती ॥ ४ ।।

पुंग्रहाः सूर्यभौमार्याः स्त्रीग्रहौ शशिभार्गवौ ॥

नपुंसकौ सौम्यसौरी शिरोमात्रं विधुंतुदः ॥५ ॥

सूर्य, मंगल, गुरु ये पुरुष ग्रह हैं । चंद्रमा, शुक्र स्त्री ग्रह हैं । बुध शनि नपुंसक हैं राहु का शिर मात्र नपुंसक है ।। ५॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायामाधानाध्यायः ।।

नारदसंहिता अध्याय १६ 

प्रसिद्धविषमे गर्भे तृतीये वाथ मासि च ।

कुर्यात्पुंसवनं कर्म सीमंतं च यथा तथा ॥ १ ॥

गर्भ से विषम मास में अथवा तीसरे महीने में पुंसवन कर्म तथा सीमंतकर्म करना चाहिये ।। १ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां पुंसवनाध्यायः ॥

नारदसंहिता अध्याय १६ 

चतुर्थे मासि षष्ठे वाप्यष्टमे वा तदीश्वरे ।

बलसंपन्नदंपत्योर्चंद्रताराबलान्विते ॥ १॥

चौथे महीने में, अथवा छठे महीने में, तथा आठवें महीने में अष्टम मासपति ग्रह बलयुक्त होय और स्त्री पुरुष को चंद्र तारा का पूर्ण बल होय तब ।। ३ ।।

अरिक्तानपर्वदिवसे कुजजीवार्कवासरे ॥

तीक्ष्णमिश्रोग्रवर्जेषु पुंसंज्ञभांशके शशी ॥ २ ॥

रिक्ता, अमावस्या, पूर्णिमा, मंगल, बृहस्पति, रवि, तीक्ष्ण, मिश्र, उग्र इन संज्ञाओं वाले नक्षत्र, इन सबों को वर्जकर(वर्जित) पुरुष संज्ञक राशि के नवांशक पर चंद्रमा स्थित होय ॥ २ ॥

शुद्धेऽष्टमे जन्मलग्नात्तयोर्लग्नेन नैधने ॥

शुभग्रहयुते दृष्टे पापखेटयुतेक्षिते ॥ ३ ॥

लग्न की तथा अष्टम स्थान की शुद्धि होवे इन दोनों स्थानों पर शुभग्रहों की दृष्टि हो और पापग्रहों की दृष्टि नहीं होवे ।। ३ ।।

मासेष्टके चतुर्भिर्वा दृष्टके बीजपूरकैः ।

स्त्रीणां तु प्रथमे गर्भे सीमंतोन्नयनं शुभम् ॥ ४ ॥

आठवां महीना हो तथा बलवीर्य को पूर्ण करनेवाले चार ग्रहों करके सूर्यं दृष्ट होवे तब स्त्रीयों का प्रथम गर्भ विषे सीमंतकर्म वरना शुभ है ।।

शुभग्रहेषु धीधर्मकेंद्रेष्वरिभवे त्रिषु ।

पापेषु सत्सु चंद्रेंत्यनिधनाद्यारिवर्जिते ।। ५॥

शुभग्रह पांचवें, नवमें तथा केंद्र स्थान में होवें और पापग्रह छठे, ग्यारहवें, तीसरे होवें तव और बारहवें, आठवें लग्न में चंद्रमा नहीं हो तब सीमंतकर्म करना चाहिये ।। ५ ।।

क्रूरग्रहाणामेकोपि लग्नादैत्यात्मजाष्टगाः ।

सीमंतिनीनां सद्गर्भं बली हंति न संशयः ॥ ६॥

और क्रूर ग्रहों के मध्य में एक भी ग्रह लग्न से बारहवें, पांचवें, आठवें स्थान होय तो स्त्रियों का उत्तम गर्भ को नष्ट करता है वह ग्रह बली है इसमें संदेह नहीं ।। ६ ।।

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां सीमंतोन्नयनाध्यायो षोडशः ।। १६ ।।  

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय १७ ॥ 

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