नारदसंहिता अध्याय १३
नारदसंहिता अध्याय १३ में चंद्रबल तथा ताराबल का वर्णन किया गया है।
नारदसंहिता अध्याय १३
अथ चंद्रबल
शुक्लपक्षादिदिवसे चंद्रो यस्य
शुभप्रदः ।
स पक्षस्तस्य शुभदः
कृष्णपक्षोऽन्यथा शुभः॥ १॥
शुक्लपक्षादि दिनों में जिसके चंद्रमा
बलवान होता है वह पक्ष उसको शुभदायक होता है और कृष्णपक्ष अन्यथा शुभ है अर्थात्
कृष्णपक्ष में ताराबल देखना शुभ है ।। १॥
शुक्लपक्षे शुभश्चंद्रो
द्वितीयनवपंचके ॥
रिपुमृत्यंबुसंस्थश्च न विद्धो
गगनेचरैः ॥ २ ॥
शुक्लपक्ष में दूसरा नवमां पांचवाँ
चंद्रमा शुभ है परंतु छठे आठवें चौथे कोई ग्रह नहीं होना चाहिये अर्थात् जन्मराशि से
इन स्थानों में बुध बिना कोई ग्रह होय तो चंद्रमा का वेध हो जाता है ।। २ ।। ।
अथ ताराः
जन्मसंपद्विपत्क्षेमप्रत्यरिस्साधको
वधः ॥
मित्रं परममित्रं च जन्मभाच्च पुनः
पुनः ॥ ३ ॥
जन्म १ संपत् २ विपत् ३ क्षेम ४
प्रत्यरि ५ साधक ६ वध ७ मित्र ८ परममित्र ९ ये नव तारा कहे हैं । तहां यथाक्रम से
जन्म के नक्षत्र से गिनने चाहियें ९ से अधिक होंय तो ९ का भाग देना ।। ३ ।।
जन्मत्रिपंचसप्ताख्या तारा
नेष्टफलप्रदाः ।
अनिष्टपरिहाराय दद्यादेतद्विजातये ॥
४ ॥
तहां जन्म,
तीसरा, पांचवां, सातवां
ये तारा शुभ नहीं है अशुभ तारा की शांति के वास्ते यह आगे कहे हुए दान ब्राह्मण के
वास्ते देना चाहिये ॥ ४ ॥
शाकं गुडं च लवणं सतिलं कांचनं
क्रमात् ।
कृष्णे बलवती तारा शुक्लपक्षे बली
शशी ॥ ४ ॥
शाक, गुड, ळवण, तिल, सुवर्ण ये यथाक्रम से देने योग्य हैं कृष्णपक्ष में तारा बलवान होता है और
शुक्लपक्ष में चंद्रमा बलवान होता है ॥ ५ ॥
चंद्रस्य द्वादशावस्था दिवा रात्रौ
यथाक्रमात् ॥
यत्रोद्वाहादिकार्येषु संज्ञा तुल्यफलप्रदा॥
६॥
दिनरात्रि में यथाक्रम से चंद्रमा की
बारह अवस्था कही हैं तहां विवाह आदि कार्यं में संज्ञा के तुल्य फल जानना ।। ६ ।।
षष्टिध्नं चंदनक्षत्रं
तत्कालघटिकान्वितम् ।
वेदनमिषुवेदाप्तमवस्थाभानुभाजिताः ॥
७ ॥
अश्विनी आदि गत नक्षत्रों को साठ से
गुना कर लेवे फिर वर्तमान नक्षत्र की घटी मिला देवे फिर उनको चार गुना करके तिसमें
पैतालीस ४५ का भाग देना तहां १२ से ज्यादा बचें तो बारह का भाग देना ।। ७ ।।
प्रवासनष्टाख्यमृता जया हास्या
रतिर्मुदा ॥
सुप्तिर्मुक्तिज्वराकंपमुस्थितिर्नामसंनिभाः
॥ ८ ॥
इति श्रीनारदीयसंहितायां
चंद्रबलाध्यायत्रयोदशः॥१३॥
फिर प्रवास १ नष्ट २ मरण ३ जया ४
हास्या ५ रति ६ मुदा ७ सुप्ति ८ भुक्ति ९ ज्वर १० कंप ११ सुस्थिति १२ ये बारह
अवस्था नाम के सदृश फलदायक जानना । तहां मेषराशि वाले पुरुष को प्रवास आदि संज्ञा
और वृषराशि वाले को नष्ट आदि संज्ञा मिथुनराशि वाले को मरण आदि ऐसे गिन लेना
चाहिये।। ८ ॥
इति श्रीनारदसंहिताभाषाटीकायां
चंद्रवलाध्यायत्रयोदशः ।। १३ ।।
आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय १४
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