दत्तात्रेयतन्त्र पटल ७
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ६ में
आपने उच्चाटन प्रयोग पढ़ा,
अब पटल ७ में सर्वजनवशीकरण प्रयोग बतलाया गया है ।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् सप्तम: पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र सातवां पटल
दत्तात्रेयतन्त्र पटल ७
दत्तात्रेयतन्त्र
सप्तम पटल
सर्वजनवशीकरण
ईश्वर उवाच
अथाग्रे संप्रवक्ष्यामि
वशीकरणमुत्तमम् ।
यत्प्रयोगाद्वशं यांति भरा नार्यश्च
सर्वशः ।। १ ॥
शिवजी बोले-(हे दत्तात्रेयजी ! अब
श्रेष्ठ वशीकरण प्रयोग वर्णन करता हूं जिसके करने से सम्पूर्ण नर नारी वश में हो जाते
हैं ॥ १॥
ब्रह्मदंडीवचाकुष्ठचूर्ण
ताम्बूलमध्यत: ।
दापयेद्यं रवौ वारे स वश्यों वर्तते
सदा ।। २ ॥
रविवार के दिन ब्रह्मदंडी,
वच और कूट के चूर्ण को पान में रखकर जिसे दिलवा दे वह सदा वशीभूत
रहता है ।
गृहीत्वा बटमूलं तु जलेन सह
घर्षयेत् ।
विभूत्या संयुतं भाले तिलक लोकवश्यकृत्
॥ ३ ॥
बड की जड को जल में घिसकर विभूति
मिलाय मस्तक में तिलक लगाने से मनुष्य सब जनों को वशीभूत करता है॥३।।
पुष्ये पुनर्नबामूल करे
समभिमंत्रितम् ।
बद्ध्वा सर्वत्र पूज्योऽसौ सर्वलोकवशंकर:
।। ४ ॥
पुष्य नक्षत्र में मन्त्र से
अभिमंत्रित कर पुनर्नवा की जड को हाथ में बांधने से मनुष्य सर्वत्र पूजनीय होकर
सबको वशीभूत करता है ॥। ४ ॥।
कपिलापयसा युक्तं पिष्टवापामार्गमूलकम्
।
ललाटे तिलकं कृत्वा
वशीकुर्य्याज्जगत्रयम् ॥ ५ ॥
चिरचिटे की जड को कपिला गौ के दूध में
पीस मस्तक में तिलक लगाने से मनुष्य त्रिलोकी को वशीभूत करता है।
गृहीत्वा सहदेवीं च छायाशुष्कां तु
कारयेत् ।
ताम्बूलेन तु तच्चूर्ण
स्बलोकवशंकरम् ।। ६ ।।
सहदेई को छाया में सुखाय चूर्णकर
पान के साथ खिलाने से सब जनों को वश करता है ॥ ६ ॥।
रोचनासहदेवीभ्यां तिलको लोकवश्यकृत्
।
गृहीत्वौदुम्बरं मूलं ललाटे तिलकं
चरेत् ।। ७ ।।
गोरोचन और सहदेई का तिलक लगाने से
मनुष्य सब जनों को वशीभूत करता है ।। ७॥
गहीत्वौदुम्बरं मूलं ललाटे तिलकं
चरेत् ।
प्रियो भवति सर्वेषां दृष्टमात्रो न
संशय: ॥ ८ ॥
गूलर की जड का तिलक मस्तक में लगाने
से मनुष्य देखते ही सबको प्रिय हो जाता है और पान में रखकर गूलर की जड सेवन करने से
सबजनों को वशीभूत करता है ॥ ८ ॥
सिद्धार्थदेवदाल्योश्च गुटिकां
कारयेद्बुध: ।
मुखे निक्षिप्य भाषेत
सर्वलोकवशंकरम् ॥ ९ ॥
सरसों और देवदाली की गोली बनाय मुख में
रखकर भाषण करने से मनुष्य सब जनों को वशीभूत करता है ।
कुंकुमं नागरं कुष्ठं हरितालं
मनःशिला ।
अनामिकाया रक्तेन तिलकं
सर्ववश्यकृत् ।। १० ॥
केसर, सोंठ कूठ, हरताल और मनशिल में अनामिका अंगुली का
रक्त मिलाय मस्तक पर तिलक लगाने से मनुष्य सबको वशीभूत करता है ।। १० ॥
गोरोचनं पद्मपत्रे प्रियंगु
रक्तचन्दनम् ।
एषां तु तिलकं भाले सर्वलोकवशंकरम्
।। ११ ॥
गोरोचन,
कमलपत्र, कांगनी और लालचन्दन को मस्तक में लगाकर
मनुष्य सबको वश करता है ॥ ११॥।
गृहीत्वा श्वेतगुंजां च छायाशुष्कां
तु कारयेत् ।
कपिलापयसा सार्द्ध तिलकं
लोकबश्यकृत् ॥ १२ ॥
सफेद घुंघची को छाया में सुखाय
कपिला गौ के दूध में घिस तिलक लगाने से मनुष्य सबको वश में करता है ।
श्वेतार्क च गृहीत्वा च छायाशुष्कं
तु कारयेत् ।
कपिलापयसा सार्द्ध तिलकं
लोकबश्यकृत् ॥ १३ ॥
सफेद आक को छाया में सुखाय कपिला
गौं के दूध के साथ घिस तिलक लगाने से मनुष्य सबको वशीभूत करता है ।
श्वेतदूर्व़ा गृहीत्वा तु कपिलादुग्धमिश्रिताम्
।
लेपमात्रे शरीराणां सर्वलोकवशंकरम्
॥ १४ ॥
सफेद दूब को कपिला गौ के दूध में
मिलाय शरीर पर लेप करने से मनुष्य सबको वश करता है।
बिल्वपत्रं तु संग्राह्यां मातुलुंगं
तथैव च ।
अजादुग्धेन तिलकं सर्वलोकवंशकरम् ॥
१५ ॥
बेल की पत्ती बिजौरा नींबू के रस में
पीस बकरी का दूध मिला तिलक लगाने से मनुष्य सबको वशीभूत करता है।
कुमारीमूलमादाय विजयाबीजसंयुतम् ।
तिलकं क्रियते भाले सर्वलोकवशंकरम्
।। १६ ।।
घीक््वार की जड और भांग के बीजों का
तिलक बनाय मस्तक पर लगाने से मनुष्य सबको वशीभूत करता है ।
हरितालं चाश्वगंधा सिदूरं कदलीरसः ।
एषां तु तिलकं भाले सर्वलोकवशंकरम्
।। १७ ।।
हरताल,
असगन्ध और सिन्दूर को केले के रस में मिला मस्तक पर तिलक लगाने से
मनुष्य सब जनों को वश करता है ॥ १७ ॥
आपामार्गस्य बीजानि च्छागदुग्धेन
पेषयेत् ।
अनेन तिलकं भाले सर्वलोकवशंकरम् ।।
१८ ॥
चिरचिटे के बीजों को बकरी के दूध में
पीस उसका मस्तक पर तिलक लगाने से मनुष्य सबजनों को वश करता है।
ताम्बूलं तुलसीपत्रं
कपिलादुग्धपेषणम् ।
अनेन तिलकं भाले सर्वलोकवशंकरम् ।।
१९ ॥
पान और तुलसी के पत्तों को कपिला गौ
के दूध में पीस मस्तक पर तिलक लगाने से मनुष्य सबको वशीभूत करता है।। १९ ॥
ओं नमो नारायणाय सर्वलोकान्मम वशान्कुरु
कुरु स्वाहा ॥
(अस्य मन्त्रस्यायुतजपात्सिद्धि:)
ओं नमो नारायणाय'
से 'स्वाहा' तक
सर्वजनवशीकरण मन्त्र है। दशहजार जपने से सिद्ध होता है।
इति श्रीदत्तात्रेयमंत्रे
दत्तात्रेयेश्वरसंवादे सवंलोकवशीकरण नाम सप्तम पटल ॥ ७ ॥
आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ८ स्त्रीवशीकरण ॥
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