जैमिनी ज्योतिष अध्याय ८
जैमिनी ज्योतिष अध्याय ८ के इस भाग में जैमिनी चर दशा में पदों की गणना का वर्णन किया गया है।
जैमिनी ज्योतिष अध्याय ८
Jaimini
Astrology chapter 8
जैमिनी ज्योतिष आठवाँ अध्याय
जैमिनी
ज्योतिष
जैमिनी ज्योतिष अष्टमोऽध्यायः
अथ अष्टमोऽध्यायः
जैमिनी चर दशा में पदों का अपना
महत्वपूर्ण स्थान है। पद की गणना के विषय में कई मतभेद हैं। आपके सामने पद
निर्धारण में केवल वही नियम लगाएँ अथवा बताए जाएँगें जो अधिक प्रचलित हैं। कई
विद्वान पद लग्न अथवा आरुढ़ लग्न और उप-पद की ही गणना करते हैं। जबकि सभी सातों
ग्रहों की गणना तथा सभी बारह राशियों की गणना महत्वपूर्ण हैं। पदों की गणना का
क्रम निम्न प्रकार से है :-
सबसे पहले देखें कि लग्न भाव से
लग्नेश कौन से भाव में स्थित है। आप लग्न से गिनती करते हुए लग्न के स्वामी ग्रह
तक गिनें। उसके बाद लग्न से जितने भाव दूर लग्नेश है,
उतने ही भाव आगे आप फिर गिनें। जिस भाव तक गणना आती है, उस भाव में लग्न पद लिख दें अथवा आरुढ़ लग्न लिख दें।
उदाहरण के तौर पर हम पाठ दो की
कुण्डली का आंकलन करते हैं। पाठ दो की उदाहरण कुण्डली के अनुसार लग्न में कर्क
राशि उदित है। कर्क राशि का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है। अब हम लग्न से चन्द्रमा तक
सव्य क्रम में गणना करेगें। लग्न से चन्द्रमा तक गिनती करने पर चन्द्रमा पाँचवें
भाव में स्थित है। अब हम पाँचवें भाव से फिर से गणना शुरु करेगें और पाँच भाव आगे
तक गिनेगें। चन्द्रमा से पाँच भाव आगे नवम भाव तक गणना पूर्ण होती है। इसका अर्थ
यह हुआ कि लग्न का पद नवम भाव में आता है। इसे आरुढ़ लग्न भी कहते हैं। नवम भाव
में आप अपनी पहचान के लिए पद-लग्न लिख सकते हैं या 1P
लिख दें।
उपरोक्त तरीकें से ही अन्य सभी
भावों में स्थित राशियों से गणना आरम्भ करके राशि स्वामी तक गिनेंगें। इसमें एक
बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि राशि से राशि स्वामी जितने भाव आगे है उतने भाव
आगे फिर से गणना करनी है। जिस भाव में गणना खत्म होगी उस भाव में पद को चिन्हित कर
दें। पाठ दो की उदाहरण कुण्डली के अनुसार द्वित्तीय भाव में सिंह राशि आती है।
सिंह राशि का स्वामी सूर्य अपने भाव से सात भाव आगे अष्टम भाव में स्थित है। अब
अष्टम भाव से सात भाव आगे गणना आरम्भ करेगें। अष्टम भाव से सात भाव आगे गिनने पर
द्वित्तीय पद दूसरे भाव में ही पड़ता है। इस प्रकार दूसरे भाव में 2P
आता है।
बाकी पदों की गणना भी इसी प्रकार की
जाएगी। सभी बारह पदों की गणना में पद - लग्न, दारा-पद तथा उप-पद महत्वपूर्ण होता है। लग्न की गणना से पद लग्न बनता है। सप्तम
भाव की गणना जिस भाव में पूर्ण होती है उस भाव में दारा-पद आता है। बारहवें भाव की
राशि का पद जिस भाव में आता है उस भाव में उप-पद आता है। भविष्यवाणियों में पद -
लग्न अथवा उप - पद की गणना का विशेष महत्व है।
आगे जारी- जैमिनी ज्योतिष अध्याय 9
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