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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
दत्तात्रेयतन्त्रम् प्रथम पटल
जो कार्य सहस्त्रश: व्रत करने पर भी
सिद्ध नहीं होता वही कार्य तंत्र शास्त्र की केवल एक क्रिया से हो सरलतापूर्वक हो
सकता है । योगिराज श्रीदत्तात्रेय प्रणीत यह ग्रन्थ यन्त्र-मन्त्राकांक्षियों
कौतुकियों और रसायनिकों के हितार्थ अद्वितीय है । इसमें-अनेक प्रकारके उपयोगी तथा
सिद्धि देनेवाले मन्त्र, मोहन, मारण, उच्चाटन, वशीकरण,
स्तम्भनादि अनेक प्रकार के प्रयोग उत्तमतापूर्वंक वर्णित हैं । दत्तात्रेयतन्त्रम्
प्रथम पटल में ग्रंथोपक्रम अथवा ईश्वर दत्तात्रेय संवाद है ।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् प्रथमः पटलः
दत्तात्रेय तन्त्रम् पटल १
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम्
अथ प्रथमः पटलः ।
श्रीदत्तात्रेय उवाच
कैलाशशिखरासीनं देवदेव जगद्गुरुम् ।
दत्तात्रेयस्तु पप्रच्छ शंकरं
लोकशंकरम् ॥ १॥
कृतांजलिपुटो भूत्वा पृच्छते
भक्तवत्सलम्।
भक्तानां च हितार्थाय तन्त्रकल्पश्च
कथ्यताम् ॥ २॥
कैलास पर्वंत की चोटी पर विराजमान
देवदेव जगत् के गुरु संसार के कल्याण करनेवाले श्रीशंकर भगवान से दत्तात्रेयजी
हाथ जोडकर पूछते* हुए कि हे भक्तवत्सल ! भक्तो के हित के लिये आप कल्पतंत्र को
कहिये ॥१- २॥
कलौ सिद्धिप्रदं कल्पं
तन्त्रविधाविधानकम् ।
कथयस्व महादेव देवदेव महेश्वर ॥ ३॥
हे महादेव ! हे देवदेव ! हे महेश्वर
! कलिकाल में सिद्धि देनेवाले महा कल्पतन्त्र को विधि से कहिये ॥ ३ ॥
सन्ति नानाविधा लोके
यन्त्रमन्त्राभिचारकाः ।
आगमोक्ताः पुराणोक्ता वेदोक्ता
डामरे तथा ॥ ४॥
उड्डीशे मेरुतन्त्रे च
कालीचण्डीश्वरे मते ।
राधातन्त्रे च उच्छिष्टे
धारातन्त्रे मृडेश्वरे ॥ ५॥
है प्रभो ! लोक में अनेक प्रकार के
आगमोक्त,
पुराणोक्त और वेदोक्त, डामर, उड्डीश, मेरुतंत्र, कालीतन्त्र, चण्डेश्वर,
राघातन्त्र, उच्छिष्टतन्त्र, धारातन्त्र और मृडेश्वर आदि तंत्रों में यंत्र मन्त्र एवं अभिचार के
प्रयोगों का वर्णन है ।। ४- ५॥
ते सर्वे कीलिताश्चैव कलौ
वीर्यविवर्जिताः ।
ब्राह्मणाःक्रामक्रोधाढ्या
एतस्मादेव कारणात् ॥ ६॥
सो वे सब- कीलकर कलियुग में
शक्तिहीन कर दिये गये क्योंकि ब्राह्मण कामी और क्रोघी हो गये हैं ॥ ६ ॥
विना कीलकमन्त्राश्च तन्त्राश्च
कथिताः शिव
तन्त्रविद्यां
क्षणात्सिद्धिः कथयस्व मम प्रभो ॥ ७॥
हे शिव ! हे प्रभो ! विना कीले हुए
मन्त्र और तन्त्र जो कहे हैं सो और क्षणमात्र में सिद्धि देनेवाली तन्त्रविद्या को
मुझसे कहिये ।। ७ ।।
ईश्वर उवाच
श्रृणु सिद्धिं महायोगिन्!
सर्वयोगविशारद ।
तन्त्रविद्यां महागुह्यां देवानामपि
दुर्लभाम् ॥ ८॥
शिवजी बोले-हे महायोगिन्
(दत्तात्रेयजी) ! हे सर्व योगविशारद ! तंत्रविद्या परमगुप्त होने के कारण देवताओं को
भी दुर्लभ है ।। ८ ॥
तवाग्रे कथ्यते देव तन्त्रविद्याशिरोमणिः
।
गुह्याद्गुह्या महागुह्या गुह्या गुह्या
पुनः पुनः ॥ ९॥
हे देव ! तुमसे तन्त्रविद्याशिरोमणि
को कहता हूं यह गुप्त से गुप्त महागुप्त है अतएव वारंवार इसको गुप्त ही रखना
चाहिये ।। ९ ।।
गुरुभक्ताय दातव्या नाभक्ताय कदाचन
।
मम भक्त्येकमनसे दृढचित्तयुताय च ॥
१०॥
जो मेरी भक्ति में लीन,
दृढचित्त एवं गुरु का भक्त हो उसको तन्त्र विद्या देनी चाहिये अभक्त
को नहीं दे ॥ १० ।।
शिरो दद्यात्सुतं दद्यान्न
दद्यात्तन्त्रकल्पकम् ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं नान्यथा मम
भाषितम् ॥ ११॥
समय पडने पर अपना शिर दे दे,
पुत्र दे दे, परन्तु हरएक को यह तन्त्रकल्प
नहीं दे यह मेरा सत्य वचन मानों ॥ ११ ॥
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि दत्तात्रेय!
तथा श्रृणु ।
कलौ सिद्धमहामन्त्रो विना कीलेन कथ्यते
॥ १२॥
हे दत्तात्रेयजी ! अब में कलियुग में सिद्धि देनेवाले बिना कीले हुए मन्त्रों को कहता हूँ उनको सुनो ॥ १२ ॥
न तिथिर्न च नक्षत्रनियमो नास्ति वासरः
।
न व्रतं नियमो होमः कालबल विवर्जितम्
॥ १३॥
केवलं तन्त्रामात्रेण ह्योषधी:
सिद्धिरूपिणी ।
यस्याः साधनमात्रेण
क्षणात्सिद्धिश्च जायते ॥ १४॥
जिसके साधन में तिथि,
नक्षत्र, दिन, ब्रत,
नियम, हवन और समय के विचार की भी आवश्यकता
नहीं है । उसमें केवल तन्त्रमात्र से औषधि सिद्धि-रूपिणी हो जाती है, जिसके प्रयोग से मनुष्य क्षणभर में सिद्धि प्राप्त करता है ।। १३ - १४ ॥
मारणं मोहनं स्तम्भो
विद्वेषोच्चाटने वशम् ।
आकर्षणं चेन्द्रजालं यक्षिणीं च
रसायनम् ॥ १५॥
मारण, मोहन, स्तंभन, विद्वेषण,
उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण,
इन्द्रजाल, यक्षिणीसाधन, रसायनविद्या ।।१५॥
कालज्ञानमनाहारं साहारं निधिदर्शनम्
।
बन्ध्या पुत्रवतीयोगं मृतवत्सासुजीवनम्
॥ १६॥
कालज्ञान,
अनाहार, आहार, निधिदर्शन,
वन्ध्यापुत्रवतीयोग, मृतवत्सा-सुतजीवन ॥ १६ ॥
जयवादं वाजिकरणं भूतग्रहनिवारणम् ।
सिंहव्याघ्र्भयं सर्पवृश्चिकानां
तथैव च ॥ १७॥
निवारणं भयात्तेषां नान्यथा मम
भाषितं ।
गोप्यं गोप्यं महागोप्यं गोप्यं
गोप्यं पुनः पुनः ॥ १८॥
जयवाद,
वाजीकरण, भूतग्रहनिवारण, सिंह, व्याघ्र, सर्प और बीछी
आदि के भय निवारण के इस तन्त्र में सत्य प्रयोग कहे हैं सो इनको यत्न से गुप्त रक्खे
॥ १७- १८ ॥
अथ सर्वोपरि मन्त्रः
ॐ परब्रह्मपरमात्मने नमः ।
उत्पत्तिस्थितिप्रलयकराय ब्रह्महरिहराय
त्रिगुणात्मने
सर्वकौतुकानि दर्शय दर्शय दत्तात्रेयाय
नमः ।
तन्त्रसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।
अयुतजपात्सिद्धिर्भवति । अष्टोत्तरशतजपात्कार्यसिद्धिर्भवति
॥
उपरोक्त ॐ परब्रह्मपरमात्मने,
से 'स्वाहा' तक सर्वोपरि
मन्त्र है । इसे दश हजार जपकर प्रथम सिद्ध कर ले पीछे अष्टोत्तरशत जपने से कार्य
सिद्ध होता है ।
इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे
दत्तात्रेयेश्वरसंवादे तन्त्रविषयसर्वोपरिमन्त्रकथन नाम प्रथम: पटल: ॥ १॥
आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल २ मारणप्रयोग ॥
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