दुर्गा तंत्र
श्रीदुर्गा तंत्र- यह दुर्गा का
सारसर्वस्व है । इस तन्त्र में देवीरहस्य कहा गया है और दुर्गानाम प्राप्ति को इस
भाग में बतलाया गया है इसे मन्त्रमहार्णव(देवी खण्ड) से लिया गया है।
श्रीदुर्गातंत्र
श्रीगणेशाय नमः ॥
अथ श्रीदुर्गातंत्रप्रारंभः
॥ श्रीदेव्युवाच ॥
भगवन्सर्वतंत्रज्ञ साधकानां जयावह ॥
यत्पुरा सूचितम देव
दुर्गापंचांगमुत्तमम् ॥१॥
सर्वस्वं सर्वदेवानां रहस्यं
सर्वमंत्रिणाम् ॥
तदद्य कृपया ब्रूहि यद्यस्ति मयि ते
दया ॥ २॥
पार्वती ने पूछा : हे भगवन ! आप सब
तन्त्रों को जानने वाले और साधकों को जय देने वाले हैं। आपने पहले मुझे जिस उत्तम
दुर्गा - पञ्चाग के सम्बन्ध में संकेत किया था कि वह सब देवताओं का सर्वत्र है,
सब मन्त्र - साधकों का रहस्य है, उसे आज यदि
मुझ पर आपकी दया हो तो आप बताये।
भैरव उवाच ॥
एतद्गुह्यतमं देवि पंचांगं
तत्त्वलक्षणम् ॥
दुर्गायाः सारसर्वस्वं न कस्य कथितं
मया॥३॥
तव स्नेहात्प्रवक्ष्यामि
दुर्गापंचांग मीश्वरि ।
गुह्यं गोप्यतमं गुह्यं न देयं
ब्रह्मवादिभिः॥४॥
या देवी देत्यदमनी
दुर्गेत्यष्टाक्षरात्मिका ॥
देवेराराधिता पूर्व
ब्रह्माच्युतपुरःसरेः ।। ॥५॥
पुरंदरहितार्थाय वधार्थाय
सुरद्विषाम्
सैवं सृजति भूतानि राजसी परमेश्वरी
॥६॥
साविकी रक्षति प्रान्ते संहरिष्यति
तामसी॥
इत्थं गुणत्रयीरूपा
सृष्टिस्थितिलयात्मिका ॥ ७ ॥
अष्टाक्षरी महाविद्या संध्यातीता
परारिमका ॥
तस्याः पंचांगमधुना रहस्य
त्रिदिवौकसाम् ॥८॥
वक्ष्यामि परमप्रीत्या न चाख्येयं
दुरात्मने ॥
अभक्ताय न दातव्यमित्याज्ञा
पारमेश्वरी ॥९॥
भैरव ने
कहा : दे देवि ! यह तत्त्वलक्षणों वाला पञ्चाग अत्यन्त गुह्या है । यह दुर्गा का
सारसर्वस्व है । मैंने इसे किसी को भी नहीं बताया है। हे ईश्वरि ! तुम्हारी प्रीति
के कारण तुम्हें बताऊँगा । ब्रह्मवादियों को चाहिये कि वे इसे अत्यन्त गोप्य समझ
कर सदा गुप्त रक्खें, किसी को न देवें । जो
देवी, दैत्यदमनी' दुर्गा आठ अक्षरों
वाली है, पूर्वकाल में ब्रह्मा, विष्णु
आदि देवों ने इन्द्र के हित की रक्षा के लिए तथा राक्षसों के विनाश के लिये जिसकी
आराधना की थी, हे परमेश्वरि ! वही राजसी प्रकृति से समस्त
प्राणियों की सृष्टि करती है, सात्विकी प्रकृति से उनकी
रक्षा करती है तथा तामसी प्रकृति से उनका विनाश करती है । इस प्रकार वह देवी तीनों
गुणों के रूप से सृष्टि, स्थिति तथा विनाश करने वाली है । वह
अष्टाक्षरी, महाविद्या, सन्ध्यातीता
तथा परात्मिका है। मैं इस समय देवताओं के लिये भी जो रहस्य है, उसे परम प्रीति से तुम्हें बता रहा हूँ । जो भक्त न हो, जो दुरात्मा हो उसे तुम इस रहस्य को न बताना, यह
परमेश्वर की आज्ञा है ।
दुर्गा तंत्र - दुर्गानाम प्राप्तिः
अथ दुर्गानाम प्राप्तिः
(देवीरहस्यतंत्रे )
"तत्रैव च वधिष्यामि
दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥
दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम
भविष्यति" ॥१०॥
(हिंगुलाद्रि तखंडे उत्तरसंहितायाम्
)
आश्विने तु सिताष्टम्यां संगवे तु
हतोऽसुरः ॥
तया देव्या
महाविष्णोखेलोक्यसुखहेतवे ॥ ११॥
रुरुदत्यस्य पुत्रो यो
दुर्गसंज्ञोऽतितापदः ॥
तन्नाशकरणेनेव दुगानामाऽभवत्किल ॥
१२ ॥
देवी रहस्य में कहा गया है कि “वहीं पर मैं दुर्ग नामक महाराक्षस को मारूँगी, उससे
मेरा 'दुर्गा' यह नाम संसार में
विख्यात होगा ।'” उत्तर संहिता के हिंगुलादि खण्ड में कहा
गया है : महाविष्णु के तीनों लोकों की सुख - शान्ति के लिये आश्विन शुक्लपक्ष की
अष्टमी को देवी द्वारा राक्षस मारा गया जो कि रुरु नामक दैत्य का पुत्र था। उसका
नाम दुर्ग था। वह समस्त प्राणियों को बहुत त्रास देता था। उस राक्षस का नाश करने
से ही निश्चय करके देवी का दुर्गा' यह नाम
हुआ।
दुर्गा तंत्र – दुर्गा पटल
तत्रादौ दुर्गापटलप्रारंभः ॥
दृष्ट्वा तंत्राण्य नेकानि पुराणानि
विशेषतः॥
जगन्मातुश्च दुर्गायाः पटलं
कथयाम्यहम् ॥ १३ ॥
नामूलं लिख्यते किंचिदिह विज्ञेयमाद
रात् ॥
नैवात्र संशयः कार्यों
नानाभेदविधानके ॥ १४ ॥
तंत्रांतरेष्वनेकानि विधानानि
मुनीश्वरैः ॥
कथितानीह दुर्गायाः प्रसिद्धानि च
संति वै॥ १५ ॥
देशादेशाच्च तेषां वै संग्रहः
क्रियते मया ॥
साधकानां हितार्थाय श्रीदुर्गायाः प्रसादतः
॥ १६ ॥
अनेक तन्त्रों और पुराणों को विशेष
रूप से देखकर जगन्माता दुर्गा का पटल यहाँ मैं कर रहा हूँ। मैं यहाँ मूल के
विरुद्ध कुछ नहीं लिख रहा हूँ। यद्यपि विधिविधानों में कुछ भिन्नता हो सकती है तो
भी उसमें संशय नहीं करना चाहिये, क्योंकि तंत्रों
में मुनियों ने अनेक प्रकार के विधान कहे हैं । देश- देशान्तर से दुर्गा के
प्रसिद्ध विधानों का यहाँ संग्रह किया जा रहा है । दुर्गाजी की कृपा से इससे
साधकों को लाभ होगा।
(देवीरहस्यतत्रैकपंचाशत्तमे पटले)
भैरव उवाच ॥
श्रीशैलराजशिखरे नानाद्रुमलताकुले ॥
वसंतलक्ष्मीनिलये समासीनमुमापतिम्
॥१७॥
एकदा देवमाशानं शशिशेखरमुत्तमम् ॥
उमाश्रिताधवपुर्ष देवदानवसेवितम् ॥
१८ ॥
ध्यानासक्काक्षित्रितयं जटाजूट
लतारुणम् ॥
भस्मांगरागवलं नारायणनमस्कृतम् ॥१९॥
ब्रह्मादिदेवप्रणतं गंधर्वजनवंदितम्
॥
यक्षराक्षसनागेन्द्रगन्धर्वकुल पूजितम्
॥ २०॥
भैरवं भैरवाकारं गिरीशं परमेश्वरम्
॥
उत्थाय विनता भूत्वा पर्यपृच्छत
पार्वती ॥ २१॥
देवीरहस्य तन्त्र के इक्यावनवें पटल
में इस प्रकार दुर्गा तन्त्र का वर्णन है
भैरव बोले : नाना प्रकार के
वृक्षलता - गुल्मों से परिव्याप्त पर्वतराज हिमालय पर वसन्तलक्ष्मी- निलय में
स्वस्थ चित्त बैठे ईशान, शशिशेखर, उत्तम देव अर्धनारीश्वर, देव - दानवों से सेवित,
तीनों नेत्रों से ध्यानमग्न, पिङ्गल जटाजूट
वाले, शरीर में भस्म रमाने के कारण धवल वर्ण वाले, विष्णु द्वारा नमस्कृत, ब्रह्मादि देवों द्वारा
पूजित, गन्धर्वजनों द्वारा वन्दित यक्ष, राक्षस तथा नागेन्द्र एवं उनके कुलों द्वारा पूजित, भैरव,
भैरवाकार, गिरीश, परमेश्वर,
शिवजी से विनम्र होकर पार्वतीजी ने उठकर प्रश्न किया ।
श्रीदेव्युवाच ॥
भग वन्सर्वलोकेश सर्वलोकनमस्कृत ॥
गुणातीत गणाध्यक्ष भूतेश्वर महेश्वर
॥२२॥
सृजस्यवासे नित्यं त्वं संहरस्पखिलं
जमत् ॥
चराचरं तत्त्वमेव किंपुनर्जपसि
प्रभो ॥ २३॥
किं ध्यायसि महादेव सततं भकवत्सल ॥
वद शीघ्र दयांभोधे यद्यहं प्रेयसी
तव ॥ २४ ॥
श्रीपार्वतीजी ने कहा : हे भगवन !
सर्वलोकेश, सर्वलोकनमस्कृत, गुणातीत, गुणाध्यक्ष, भूतेश्वर, महेश्वर ! आप सदा सृष्टि करते हैं, संसार का पालन
करते हैं तथा अन्त में समस्त जगत का संहार करते हैं। चराचर सब आप ही हैं, तब आप किसका जप करते हैं ? हे भक्तवत्सल, महादेव, दयानिधे, आप निरन्तर
किसका ध्यान करते हैं ? यदि आपकी मैं प्रियपात्री हूँ तो आप
मुझे शीघ्र बतायें।
ईश्वर उवाच ॥
देवि किं ते प्रवक्ष्यामि
रहस्यमिदमद्भुतम् ॥
सर्वस्वं सारभूतं मे सर्वेषां
तत्त्वमुत्तमम् ॥ २५॥
लक्षवारसहस्त्राणि वारि तासि पुनः
पुनः ॥
स्त्रीस्वभावान्महादेवि पुनस्त्वं
परिपृच्छसि ॥ २६॥
अद्य भक्त्या तव स्नेहावक्ष्यामि
परमाद्भुतम् ॥
देवीरहस्य तंत्रोक्तं तंत्रराज
महेश्वरि ॥ २७॥
सर्वागमैकमुकुटं सर्वसारमयं ध्रुवम्
॥
सर्वतंत्रमयं दिव्यं पटलं
कथयाम्यहम् ॥ २८ ॥
अनुक्रमणिकां दिव्यां शृणु तंत्रस्य
पार्वति ॥
यस्याः श्रवणमात्रेग कोटिपूजाफलं लभेत्
॥ २९ ॥
शिवजी बोले : हे देवि! उस अद्भूत
रहस्य को मैं तुम्हें क्या बताऊँ जो कि मेरा सर्वस्व एवं सारभूत सबसे उत्तम तत्व
है। करोड़ों बार मैंने तुमको मना किया है किन्तु तुम नहीं मानती हो और
स्त्रीस्वभाव से पुनः पूछती हो। इसलिए अब मैं तुम्हारी भक्ति से तथा तुम्हारे
स्नेह के कारण इस परम अदूभुत रहस्य को बताऊँगा । हे महेश्वरि ! देवीरहस्य तन्त्र
में कहा गया, समस्त आगमों का शिरमौर, सबका निश्चित सार, तन्त्रराज, सर्वतन्त्रमय दिव्य पटल मैं कह रहा हूँ। हे पार्वती ! उस तन्त्र की
अनुक्रमणिका सुनो, जिसके श्रावणमात्र से मनुष्य करोड़ों पूजा
का फल प्राप्त करता है।
श्रीविद्यानिर्णयो देवि मंत्र
साधनकोऽपरः ॥
शिवमंत्रप्रकाशाख्यो
दीक्षाविधिरनुत्तमः ॥ ३०॥
पुरश्चर्याविधिदेवि
पंचरलेश्वरीक्रमः॥
होमसाधनकश्चैव यंत्रपूजा विधिः परः
॥ ३१॥
आचारनिर्णयो देवि सर्वमेव
प्रकाशितम् ॥
तत्रादौ देवि वक्ष्येऽहं
दुर्गाभुवनमुत्तमम् ॥ ३२ ॥
हे देवि ! श्रीविद्यानिर्णय,
मन्त्रसाधन, शिव मन्त्र प्रकाश, दीक्षा विधि, पुरश्चरणविधि, पच्चरत्नेश्वरीक्रम,
होमसाधन, यन्त्र पूजाविधि, आचारनिर्णय, यह सब प्रकाशित करुँगा । हे देवि !
उसमें प्रारम्भ में उत्तम दुर्गाभुवन का वर्णन करूँगा ।
दुर्गाभुवन वर्णन पूर्व में दिया जा
चुका है वहां से अवलोकन करें ।
इति: दुर्गा तंत्र प्रथम भाग ॥
शेष जारी.......दुर्गा तंत्र दूसरा भाग दुर्गाष्टाक्षरमंत्रप्रयोग ॥
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