सत्यनारायण अष्टकं स्तोत्र
भगवान श्री सत्यनारायण भक्तों को उनकी इच्छाएं पूरी करने वाले और जीवन में सभी प्रकार के सुख देने वाले व मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इस सत्यनारायण अष्टकं स्तोत्र का भाव सहित नियमित पाठ करने से भक्तों के कष्ट दूर होते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। सत्यनारायण व्रत कथा के समय इसका पाठ अवश्य ही करें।
श्रीसत्यनारायणाष्टकम्
Shri Satyanarayan Ashtakam
श्रीसत्यनारायण अष्टक स्तोत्रम्
सत्यनारायण अष्टक भावार्थ सहित
श्रीसत्यनारायण अष्टकम् स्तोत्र
॥सत्यनारायणाष्टकम् ॥
श्रीसत्यनारायणाष्टकं
सत्यनारायण अष्टकम् स्तोत्र
आदिदेवं जगत्कारणं श्रीधरं लोकनाथं
विभुं व्यापकं शङ्करम् ।
सर्वभक्तेष्टदं मुक्तिदं माधवं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ १॥
जो आदि देव, इस जगत के कारण, श्री
(लक्ष्मी) को धारण करने वाले, सभी लोकों के नाथ (स्वामी), सर्वव्यापी,
सभी जगह फैले हुए, कल्याणकारी, सभी भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने
वाले और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, मैं उस माधव, सत्यनारायण,
विष्णु और ईश्वर का भजन करता हूँ।
सर्वदा लोक-कल्याण-पारायणं
देव-गो-विप्र-रक्षार्थ-सद्विग्रहम् ।
दीन-हीनात्म-भक्ताश्रयं सुन्दरं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ २॥
देवताओं,
गायों, और ब्राह्मणों की रक्षा के लिए और सदा संसार
के कल्याण में लगे रहनेवाले, दीन-हीन भक्तों का आश्रय, शुभ और सुंदर स्वरूप धारण
करनेवाले उन विष्णु स्वरूप ईश्वर श्री सत्यनारायण का मैं भजन करता हूँ।
दक्षिणे यस्य गङ्गा शुभा शोभते
राजते सा रमा यस्य वामे सदा ।
यः प्रसन्नाननो भाति भव्यश्च तं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ ३॥
जिनके दाहिने गंगाजी और बाएं (वाम)
ओर लक्ष्मीजी सदा सुशोभित रहती हैं,जो
प्रसन्न मुखवाले, भव्य (सुंदर) दिखते हैं, मैं उन भगवान् विष्णु स्वरूप ईश्वर श्रीसत्यनारायण का भजन करता हूँ।
सङ्कटे सङ्गरे यं जनः सर्वदा
स्वात्मभीनाशनाय स्मरेत् पीडितः ।
पूर्णकृत्यो भवेद् यत्प्रसादाच्च तं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ ४॥
संकट और संग्रह के समय पीड़ित
मनुष्य सदा स्वयं के भय के नाश के लिए जिसका स्मरण करता है,
जिनकी कृपा से मनुष्य के सभी कार्य पूर्ण होते हैं, मैं उन भगवान् विष्णु स्वरूप ईश्वर श्रीसत्यनारायण का भजन करता हूँ।
वाञ्छितं दुर्लभं यो ददाति प्रभुः
साधवे स्वात्मभक्ताय भक्तिप्रियः ।
सर्वभूताश्रयं तं हि विश्वम्भरं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ ५॥
जो ईश्वर सभी प्राणियों का आश्रय,
विश्व के पालनहार और अपने उन सभी पवित्र भक्तों की जो भक्ति भाव से
उनकी पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं, मैं
उन विष्णु स्वरूप श्रीसत्यनारायण का भजन करता हूँ।
ब्राह्मणः साधु-वैश्यश्च तुङ्गध्वजो
येऽभवन् विश्रुता यस्य भक्त्याऽमरा ।
लीलया यस्य विश्वं ततं तं विभुं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ ६॥
ब्राह्मण,
साधु वैश्य और राजा तुङ्गध्वज जिनकी भक्ति से जगविख्यात तथा अमर
हुए। जिस प्रभु ने यह सारा विश्व खेल-खेल में ही बना दिया, उस सर्वव्यापी, हर जगह मौजूद रहनेवाले, विष्णु स्वरूप ईश्वर श्रीसत्यनारायण का मैं भजन करता
हूँ।
येन चाब्रह्मबालतृणं धार्यते
सृज्यते पाल्यते सर्वमेतज्जगत् ।
भक्तभावप्रियं श्रीदयासागरं
सत्यनारायणं विष्णुमीशं भजे ॥ ७॥
जिन्होंने ब्रह्माण्ड से लेकर सभी
वस्तुओं का अर्थात् संपूर्ण जगत का निर्माण, धारण और पालन करते हैं, जो भक्तों के
प्रेमपात्र तथा दया के सागर हैं, मैं उन विष्णु स्वरूप श्रीसत्यनारायण का भजन करता
हूँ।
सर्वकामप्रदं सर्वदा सत्प्रियं
वन्दितं देववृन्दैर्मुनीन्द्रार्चितम् ।
पुत्र-पौत्रादि-सर्वेष्टदं शाश्वतं सत्यनारायणं
विष्णुमीशं भजे ॥ ८॥
जो सभी इच्छाओं को पूरा करनेवाले, सभी
के प्रिय, देवताओं और मुनियों द्वारा पूजित तथा पुत्र-पौत्र आदि सभी अभीष्ट वस्तुएँ
प्रदान करने वाले शाश्वत प्रभु हैं, मैं उन विष्णु स्वरूप
ईश्वर श्रीसत्यनारायण का भजन करता हूँ।
सत्यनारायण अष्टकम् स्तोत्र
महात्म्य
अष्टकं सत्यदेवस्य भक्त्या नरः
भावयुक्तो मुदा यस्त्रिसन्ध्यं पठेत् ।
तस्य नश्यन्ति पापानि तेनाऽग्निना
इन्धनानीव शुष्काणि सर्वाणि वै ॥ ९॥
जो मनुष्य सत्यदेव (भगवान
सत्यनारायण) की भक्ति में लीन होकर, प्रेम
और आनंद के साथ, तीन संध्याओं में इस अष्टक का पाठ करता है, उसके
सभी पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूखे ईंधनों को
अग्नि भस्म कर देती है।
इति सत्यनारायणाष्टकं सम्पूर्णम् ।

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