चंडिकामाला मंत्र प्रयोग
श्रीदुर्गा तंत्र यह दुर्गा का
सारसर्वस्व है । इस तन्त्र में देवीरहस्य कहा गया है, इसे मन्त्रमहार्णव(देवी
खण्ड) से लिया गया है। को श्रीदुर्गा तंत्र इस भाग ३ में चंडिकामाला मंत्र
प्रयोग बतलाया गया है।
दुर्गा तंत्र - श्रीचंडिकामालामंत्रप्रयोगः
श्रीगणेशाय नमः ॥
अथ श्रीचंडिकामालामंत्रप्रयोगः॥
(उक्तं चाथर्वणागमसंहितायाम् )
मंत्रो यथा-
"ॐ ह्रः ॐ सौं ॐ ह्रौं ॐ श्रीं
ह्रीं क्लीं श्रीर्जयजय चंडिका चामुंडे चंडिके त्रिदशमुकुटकोटिसंघट्टितचरणारविंदे
गायत्रि सावित्रि सरस्वति अहिकृताभरणे भैरवरूपधारिणि प्रकटितदंष्ट्रोग्रवदने
घोरानननयने ज्वलज्ज्वाळासहस्र परिवृते महाट्टहहासधवलीकृतदिगंतरे सर्वयुगपरिपूर्णे
कपालहस्ते गजाजिनोत्तरीय भूत- वेताल परिवृते अकम्पित धराधरे
मधुकैटभमहिषासुरधूम्रलोचनचंडमुंडरक्तबीजशुंभनिशुंभदैत्यनिकृंते कालरात्रि महामाये
शिवे नित्ये ॐ ऐं ह्रीं ऐंद्रि आग्नेयि याम्ये नैर्ऋति वारुणि वायवि कौवेरि ऐशानि
ब्रह्मविष्णुशिवस्थिते त्रिभुवनधराधरे वामे ज्येष्ठे रोद्रि अंबिके
ब्राह्मीमाहेश्वरी कौमारी वैष्णवी वाराहींद्राणी ईशानी महालक्ष्मीः इति स्थिते
महोग्रविष महाविषो रगफणामणिमुकुटरत्न
महाज्वालामलमणिमहाहिहारबाहुकहोत्तमांगनवरत्ननिधि- कोटितत्व बाहू जिह्वा वाणी
शब्दस्पर्श रूपरसगंधात्मिके क्षितिसाहसमध्यस्थिते महोज्ज्वलमहाविषोपविषगंधर्वविद्याधराधिपते
ॐ ऐंकारा ॐ ह्रींकारा ॐ क्लींकाराहस्ते ॐ आँ ह्रीं क्रौं अनग्नेनग्नेपाते प्रवेशय
२ ॐ द्राँ द्रीं शोषय २ ॐ द्राँ द्रीं मोहय
२ ॐ क्लाँ क्लीं दीपय २ ॐ ब्लूं ब्लूं संतापय २ ॐ सौं सौं उन्मादय २ ॐ म्लैं म्लैं
मोहय २ ॐ खाँ खाँ शोधय २ ॐ द्याँ द्याँ उन्मादय २ ॐ ह्रीं ह्रीं आवेशय २ ॐ स्त्रीं
स्त्रीं उच्छादय २ ॐ स्त्रीं स्त्रीं आकर्षय २ ॐ हुँ हुँ आस्फोटय २ ॐ त्रूँ त्रूँ त्रोटय
२ ॐ छाँ छाँ छेदय २ ॐ कूँ कूँ उच्चाटय २ ॐ हूँ हूँ हन २ ॐ ह्रां ह्रां मारय २ ॐ घ्नीं
घ्नीं घर्षय २ ॐ स्वीं स्वीं विध्वंसय २ ॐप्लूँ प्लूँ प्लावय २ ॐ भ्रां म्रां भ्रामय
२ ॐ म्रां म्रां दर्शय २ ॐ दां दां दिशां बंधय २ ॐ दीं दीं वर्तिनामेकाग्रचित्ताविशिकुरुतेंगये
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्र: ॐ फ्रां फ्रीं फ्रूं फ्रैं फ्रौं फ्र: ॐ
चामुंडायै विच्चे स्वाहा मम सकलमनोरथं देहि सर्वोपद्रवं निवारय २ अमुकं वशे कुरु २
भूतप्रेतपिशाचब्रह्मपिशाच ब्रह्मराक्षसयक्षयमदूतशाकिनीडाकिनीसर्वश्वापदतस्करादिकं
नाशय २ मारय २ भंजय २ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वाहा" ।
इति मालामंत्रः अस्य विधानम् ।
चंडिकामाला मंत्र प्रयोग
॥ विनियोग॥
ॐ अस्य श्रीचंडिकामालामंत्रस्य
मार्कंडेय ऋषिः । अनुष्टप् छंदः । श्रीचंडिका देवता । ॐ ह्र: बीजम् । ॐ सौं शक्तिः
ॐ कीलकम् । मम श्रीचंडिकाप्रसादसिद्धयर्थ सकलजनवश्यार्थं श्रीचंडिकामालामंत्रजपे
विनियोगः ॥
॥ ऋष्यादिन्यास॥
ॐ मार्कंडेयऋषये नमः शिरसि ॥१॥ ॐ
अनुष्टुप्छंदसे नमः मुखे ॥२॥ ॐ श्रीचंडिकादेवतायै नमः हृदि ॥ ३॥ ॐ ह्रः बीजाय नमः
गुझे ॥४॥ ॐ सौं शक्तये नमः पादयोः॥५॥ ॐ ह्रौं कीलकाय नमः नाभौ ॥६॥ ॐ विनियोगाय नमः
सर्वाङ्गे ॥ ७ ॥ इति ऋष्यादि न्यासः॥
॥ करन्यास ॥
ॐ ह्रां फां अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥ ॐ
ह्रीं फीं तर्जनीभ्यां नमः॥ २ ॥ ॐ ह्रूं फूं मध्यमाभ्यां नमः ॥ ३॥ ॐ ह्रैं फें अनामिकाभ्यां
नमः॥४॥ ॐ ह्रौं फौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः॥ ५॥ ॐ ह्र: फ: करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥६॥
इति करन्यासः ॥
॥ हृदयादिषडंगन्यास ॥
ॐ ह्रां फां हृदयाय नमः॥१॥ ॐ ह्रीं फीं
शिरसे स्वाहा ॥ २ ॥ ॐ ह्रूं फूं शिखायै वषट् ॥३॥ ॐ ह्रैं फें कवचाय हुँ॥४॥ ॐ ह्रौं
फौं नेत्रत्रयाय वौषट् ॥५॥ ॐ ह्र: फ: अस्त्राय फट् ॥६॥ इति हृदयादिषडंगन्यासः ॥
एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत् ॥
अथ ध्यानम् ।
ॐ कल्याणी कमलासनस्थशुभदां गौरी
घनश्यामलाम्
विर्भावितभूषणामभयदामार्द्रैकरक्षै:
शुभैः॥
श्रीं ह्रीं क्लीं वरमंत्रराजसहिता
मानंदपूर्णात्मिकाम्
श्रीशलै भ्रमरांम्बिकां शिवयुतां
चिन्मात्रमूर्ति भजे ॥१॥
इति ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य
सुवासिन्याः कुमार्याः पूजां कृत्वा पश्चाजपं कुर्यात् ।
अस्य पुरश्चरणं
नित्यमेकविंशत्यधिकशतम् ॥१२१॥
जपेन स्त्री पुरुषो वा वश्यो भवति ।
तथा च-एकविंशत्यधिकशतजाप्येन
वशमानयेत् ॥
स्त्री वापि पुरुषो वापि सत्यं
सत्यं न संशयः॥ १ ॥
इस प्रकार ध्यान करके मानसोपचारों
से पूजन करे और सुवासिनी कुमारी की पूजा करने के बाद जप करे। इसका पुरश्चरण
प्रतिदिन एक सौ इक्कीस होता है, इसके जप से
स्त्री या पुरुष वश में होते हैं। यह सत्य है यह सत्य है, इसमें
कोई संशय नहीं है।
राजद्वारे श्मशाने च विवादे
शत्रुसंकटे ॥
शत्रोरुच्चाटने चैव सर्वकार्याणि
साधयेत् ॥
राजद्वार में या श्मशान में,
विवाद में या शत्रुसंकट में तथा शत्रु के उच्चाटन में यह सब कार्यों
को सिद्ध करता है।
इत्यथर्वणागमसंहितोक्तश्रीचंडिकामालामंत्रविधानम्
॥
इंति अथर्वणागमसंहितोक्त
चण्डिकामालामन्त्र विधान।
इति: दुर्गा तंत्र तृतीय भाग ॥
शेष जारी.......दुर्गा तंत्र चौथा भाग नवार्णमंत्रप्रयोग ॥
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