दत्तात्रेयतन्त्र पटल १४

दत्तात्रेयतन्त्र पटल १४         

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १३ में आपने रसायन प्रयोग पढ़ा, अब पटल १४ में कालज्ञान प्रयोग बतलाया गया है ।

दत्तात्रेयतन्त्र पटल १४

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् चतुर्दश: पटलः

दत्तात्रेयतन्त्र चौदहवां पटल

दत्तात्रेयतन्त्र पटल १४             

दत्तात्रेयतन्त्र

चतुर्दश पटल

कालज्ञान

ईश्वर उवाच

अथाग्रे संप्रवक्ष्यासि कालज्ञानविनिर्णयम्‌ ।

यस्य विज्ञानमात्रेण कालज्ञानं विधीयते ।। १ ॥

महादेवजी बोले-(हे दत्तात्रयजी !) अब में कालज्ञान का वर्णन करूंगा जिसके ज्ञान होने से काल के ज्ञान को जान लेता है ॥ १॥

न दृष्टा नासिका येन नेत्रं च समलायते ।

षण्मासाभ्यन्तरे मृत्यु: कालज्ञानेन भाषितम्‌ ॥ २ ॥

जिसको अपनी नासिका और नेत्र न दीख पड़े वह छः महीने में मर जाता है ॥ २ ॥

न दृष्टारुन्धती येन सप्तर्षीणां च मध्यतः ।

षण्सासाभ्यन्तरे मृत्युर्यदि रक्षति चेश्वर: ।। ३ ।।

जिसको आकाशमंडल में सप्तर्षियों के बीच अरुन्धती का तारा न दीखे उसकी भगवान से रक्षा पाने पर भी छह मास के बीच में ही मृत्यु हो जाती है ॥ ३ ॥॥

स्नानकालस्य समये मृत्युज्ञानं निरीक्ष्यते ।

उरः शुष्कं भवेद्यस्य षण्सासाभ्यन्तरे मृति: ॥ ४ ॥

स्नान करने के समय यदि हृदय सूख जाय तो जान लो कि छ: महीने के बीच में मृत्यु होगी ॥ ४ ॥

रात्रौ चन्द्रो दिवा सूर्यो मासमेकं निरन्तरम्‌ ।

भवेन्मृत्युश्चनु स्तस्य मासाभ्यन्तरे ध्रुवम्‌ ॥ ५ ॥

रात्रि में चन्द्र (वामस्वर) और दिन में सूर्य (दक्षिणस्वर) एक महीने तक निरन्तर चले तो ६ महीने के भीतर ही मृत्यु हो जाती है ॥। ५ ।।

सम्पूर्ण बहते सूर्य: सोमश्चैव न दृश्यते ।

पक्षेण जायते मृत्यु: कालज्ञै: परिभाषितम्‌ ॥ ६ ॥

जो दिन-रात दाहिना स्वर चले और बाँया न चले तो १५ दिन में उसकी मृत्यु हो जाती है ऐसा काल के जाननेवालों ने कहा है । ६ ।।

मांस चैव तु षण्सासं पक्ष चैव त्रिमासकम्‌ ।

पंचरात्रं बहेच्चैकस्तस्य मृत्यु्र्न संशय: ।। ७ ॥

जिसका एक स्वर महीने, ३ महीने १५ दिन या ५ रात्रि भी निरन्तर चले तो उसकी मृत्यु जानों । ७ ।।

शुक्लपक्षे वहेद्वामं कृष्णपक्षे च दक्षिणम्‌ ।

उभयोश्च त्रिदिवसान्दृश्येते चन्द्रसुर्यकौ ।।८ ॥

शुक्लपक्ष में बांया और कृष्णपक्ष में दाहिना स्वर एवं दोनों पक्षों में दोनों स्वर तीन-तीन दिन चलते है ।। ८ ।।

पंचभूतात्मकं दीपं चन्द्रस्नेहेन पूरितम्‌ ।

रक्षेच्च सुर्य्यवातेन तेन जीव: स्थिरो भवेत्‌ ॥ ९ ॥

इस पंचतत्त्वात्मक शरीररूपी दीपक में तेलरूपी चंद्रस्वर (वामनाडी) है सूयंरूपी दक्षिणस्वर वायु से दीपक की रक्षा करता है जिसमें यह जीव अचल रहे ॥। ९ ॥।

आत्मा दीप: सूर्यज्योतिरायु: स्नेहकालात्मंक: ।

कालकज्जलसंसारे वृत्तिरेषा तनोर्मता ॥ १० ॥

यह आत्मारूपी दीपक में सूर्यरूपी ज्योति आयुरूपी तेल से पूर्ण है सो इसमें कायारूपी काजल पड़ता है मनुष्यों की वृत्ति के समान देह की वृत्ति जानो ॥ १० ॥।

बु्द्धिज्ञानक्रियाहीनो विपरीतस्तु जायते ।

द्विमासेन  भेन्मृत्युनेंत्रभ्रमणकष्टत: ॥ ११ ॥

बुद्धि, ज्ञान, क्रिया की हीनता और विपरीतता होने से और नेत्रों के चलाने में कष्ट का अनुभव होने से दो मास में मृत्यु होती है ॥ ११ ॥।

शशांक चारयेद्रात्रौ दिवा पश्येद्दिवाकरम्‌ ।

इत्यम्यासरतो नित्यं स योगी नात्र संशय: ॥ १२ ।।

जो वास्तव में योगी है वह रात्रि में बांया और दिन में दाहिने स्वर चलाने का अम्यास कर लेते हैं ॥ १२ ॥।

गतौ च पादचलनं खंडितं खंडितं पदम्‌ ।

मासेन मृत्युमाप्नोति ह्यर्धपक्षे विशेषतः ॥ १३ ॥  

चलते समय पैर अटपटे पड़ें एवं धूल में सने दीख पड़ें तो एक मास में निश्चय मृत्यु हो जाती है ॥ १३ ॥।

द्वादशदलचक्रस्थं मृत्युकालं च वीक्षयेत्‌ ।

चैत्रादिमाससंख्याश्च लिखेद्द्वादशके दले ॥ १४ ॥

मेषादिराशय: स्थाप्याः सुर्याद्याश्च ग्रहास्तथा ।

जन्मर्क्ष जन्मराशिश्च वीक्ष्यतां मृत्युकालक: ॥ १५ ।।

१२ दल का एक चक्र बनाय उसमें मृत्यु के समय को देखे, चैत्रादि १२ महीनों को चक्र के १२ दलों में लिखे । फिर मेषादि १२ राशियों को स्थापन कर नवग्रहों को स्थापित करे। पीछे उसमें जन्म की राशि और जन्म के नक्षत्र को मृत्युकालचक्र में देखे ॥ १४-१५ ॥

शनिभौमौ राहुकतू राशिवेधे तु कष्टता ।

ऋक्षविद्धे राशिविद्धे मासे मृत्युर्भविष्यति ॥ १६ ॥

शनि, मङ्गल, राहु, केतु से राशि का वेध होने पर कष्ट होता है, नक्षत्र का वेध और राशि का वेध होने से एक महीने में मृत्यु होती है ॥१६।॥।

सू्र्यविद्धे मनस्तापोबुधे सोख्यं प्रवत्तते ।

जीवे च तोर्थयात्रा स्याच्चन्द्रे सत्रीसुखसंपदः ॥ १७ ॥

सूर्य के वेध से मन को ताप, बुध के वेध से सुख, गुरु के वेध से तीर्थयात्रा और चन्द्र के वेध से स्त्री एवं सुख सम्पत्ति प्राप्त होती है ।। १७ ॥।

अहोरात्र यदैकस्य वहनं मरुतो भवेत्‌ ।

तदा तस्य भवेत्त्वायुः सम्पूर्ण वत्सरत्रयम्‌ ॥ १८ ॥

यदि अहोरात्र एक ही स्वर चले तो मनुष्य की आयु तीन वर्ष की रह जाती है ॥ १८ ॥।

अहोरात्रंद्वयं शश्वत्पिंगलाया: सदागति: ।

तस्य बर्षद्वयं प्रोक्तं जीवितं तत्त्ववेदिभि: ॥ १९ ॥

त्रिरात्रं बहते यस्य वायुरेकपुटे स्थित: ।

संबत्सरं तद्रा चायुः प्रवदन्ति मुनीश्बरा: ॥ २० ।।

जिसकी दो रात-दिन पिंगला नाडी चलें तत्त्व जाननेवालों ने उसकी दो वर्ष की आयु कही है । जिसका तीन रात्रि तक एक ही स्वर चले उसकी मुनिवरों ने एक वर्ष की आयु कही है । १९-२० ॥

छायां विधोर्न ध्रुवमृक्षमालामालोकयेद्यो न च मातृचक्रम्‌ ।

खण्डं पदं यस्य तु कर्दमादौ कफश्च्युतो मज्जति चाम्बुचुम्बी ॥ २१ ॥

जिसे चन्द्र की छाया, ध्रुव, तारा, नक्षत्रमाला, मातृमंडल न दीखे कीच आदि में पैर धरने से खंडित जान पड़े और कफ जल में गिरने से नीचे बैठ जाय तो उसे अरिष्ट जानो ॥ २१ ।।

अतीव तुच्छं बहु चाल्पहेतोरतीतसात्म्य: सदसत्प्रवृत्तौ ।

अप्यंगुलक्रान्तविलोचनान्तो न मेचकं चान्द्रकमीक्षते यः ॥ २२ ॥

जो सहसा कम अधिक भोजन करने लगे, अच्छे वा बुरे काम में प्रवृत्त हो जाय, और नेत्रों को मूंदने पर जिसे चन्द्रिका समेत तिलयुक्त अनुभव सिद्ध मोर न दींखें उसे अनिष्ट जानो ॥ २२ ॥।

अक्षैर्लक्षितलक्षणे च पयसि सूर्येन्दुबिम्बे तथा

प्राची दक्षिणपश्चिमोत्तरदिशां षड्द्वित्रिमासैककम्‌ ।

छिद्रं पश्यति चेत्तदा दशदिनं धूम्राकृतिं पश्चिमे

ज्वालां पश्यति सद्य एव मरणं कालो चितज्ञानिनाम्‌ ॥२३।।

जो रोगी जल में पूर्ण चन्द्रमा और सूर्य के प्रतिबिम्ब में पूर्व की ओर दक्षिण की एवं उत्तर और पश्चिम की ओर छिद्र देखे तो वह क्रमानुसार ६। २। ३ ।१ मास तक जीता है। जो सूर्य और चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को धूघला देखे तो दश दिन में मृत्यु होती है और जो सूर्य चन्द्र प्रतिबिम्ब में ज्वाला देखे तो उसकी शीघ्र मृत्यु होगी यह काल के ज्ञाताओं ने कहा है ॥। २३ ॥

इति श्रीदत्तात्रेयतंत्रे दत्तात्रेयेश्वरसंवादे कालज्ञान कथन नाम चतुदर्श: पटल: ।। १४॥

आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १५ अनाहार ॥

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