दत्तात्रेयतन्त्र पटल १२
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ११ में
आपने इन्द्रजाल प्रयोग पढ़ा,
अब पटल १२ में यक्षिणी साधन अंतर्गत् महायक्षिणी साधन, सुरसुरन्दरी साधन, मनोहरी साधन,
कनकावती साधन, कामेश्वरी साधन, रतिप्रिया साधन,
पद्मिनीं नटी अनुरागिणी साधन, विशाला साधन, चन्द्रिका साधन, लक्ष्मी
साधन, सोभनासाधन, मदनासाधन प्रयोग
बतलाया गया है ।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् द्वादश: पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र बारहवां पटल
दत्तात्रेयतन्त्र पटल १२
दत्तात्रेयतन्त्र
द्वादश पटल
यक्षिणीसाधन
ईश्वर उवाच
श्रृणु सिद्ध महायोगिन्यक्षिणीमंत्रसाधनम्
।
यस्य साधनमात्रेण नृणां सर्वे
मनोरथा: ॥ १ ॥
शिवजी बोले-हे महायोगिन् !
(दत्तात्रेयजी ) अब यक्षिणी साधन की विधि को सुनो जिसके अनुष्ठान से मनुष्यों के
सम्पूर्ण कार्य सिद्ध होते हैं ॥ १॥
आषाढोपूर्णिमायां च कृत्वा
क्षौरादिका: क्रिया: ।
सितेज्ययोरमौढ्ये तु
साधयेद्यक्षिणीं नरः।॥ २॥
प्रतिपद्दिनमारभ्य श्रावणेन्दुबलान्विते
।
मासमात्रं प्रयोगं तु निर्विघ्नेन
समाचरेत् ॥ ३॥।
आषाढ महीने में पूर्णमासी के दिन
क्षौर आदि कराकर गुरु, शुक्र के उदय में
मनुष्य याक्षणी साधन करे । किसी आचार्य के मत से चद्रमा के बलवान् होने पर श्रावण
वदी प्रतिपदा से यक्षिणी साधन का आरंभ करें और इस प्रयोग को एक मास में विध्न रहित
समाप्त करे ।। २- ३॥
निर्जने बिल्ववृक्षस्य मूले
कुर्याच्छिवार्चनम् ।
षोडशोपचारकैस्तु रुद्रपाठसमन्वितम्
।। ४ ॥
निर्जन स्थान में बेल के वृक्ष की
जड में बैठकर शिवजी का षोडशोपचार से रुद्रपाठ के साथ पूजन करे । ४ ॥।
त्र्यम्बकेत्यस्य मन्त्रस्य जपं
पञ्चसहस्रकम् ।
दिवसे दिवसे कृत्वा कुबेरस्य च
पूजनम् ॥ ५ ॥
'त्रयंबक यजामहे' इस मन्त्र का पांच हजार जप कर और प्रतिदिन कुबेरजी का पूजन करे ।। ५ ॥।
यक्षराज नमस्तुभ्यं शंकरप्रियबांधव
।
एकां में वशगां नित्यं यक्षणीं कुरु
ते नमः ॥ ६ ॥
इति मंत्रं कुबेरस्य जपेदष्टोत्तरं
शतम् ।
ब्रह्मचर्येण मौनेन हविष्याशी भवेद्दिवा
॥ ७ ॥
शंकरजी के प्यारे बन्धु हे यक्षराज
! यम को प्रणाम हो आप कृपा करके एक यक्षिणी को मेरे अधीन कर दो । उपरोक्त छठा श्लोक
कुबेरजी का मन्त्र है । इस मन्त्र को मौन धारणकर ब्रह्मचर्य के साथ एक सौ आठ वार
जपे और दिन में हविष्यान्न को भोजन करे ।। ६-७ ।।
अथ यक्षिण्य:कथ्यन्ते-
१ महायक्षिणी २ सुरसुन्दरी ३ मनोहरी ४ कनकावती ५ कामेश्वरी
६ रतिकरी ७ पद्मिनी ८ नटी ९ अनुरागिणी
१० विशाला
११ चन्द्रिका १२ लक्ष्मी १३ शोभना
१४ मदना
इन्हीं चौदह यक्षिणियों का साधन इस
ग्रन्थ में वर्णन किया है ।
महायक्षिणीसाधन
रात्रेस्तु मध्यमे यामे विनिद्रो
मितभोजन: ।
बिल्ववृक्षं समारुह्या जपेन्मंत्रमिमं
सदा ॥ ८ ॥
मंत्रस्तु-
ओं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं
महायक्षिण्यै सर्वेश्वर्यप्रदात्र्यै नमः ॥
अर्द्धरात्रि में निद्रा को त्याग
अल्प भोजन कर बेल के वृक्ष की जड में आसन लगाय “ओं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं महायक्षिण्यै सर्वेश्वर्यप्रदात्र्यै नमः इस
मन्त्र को निरन्तर जपे ॥ ८ ॥।
इतिमंत्रस्य च जपं सहस्त्रत्रयसंमितम्
।
कुर्याद्विल्वसमारूढो मासमात्रमतंद्रित:
॥। ९ ॥।
मध्वामिषबलिं तत्र कल्पयेत्संस्कृतं
पुरः ।
नानारूपधरा तत्रागमिष्यति च यक्षणी
॥ १० ॥
उपरोक्त मन्त्र को बेल के नीचे बैठ
एक महीने तक निद्रा को त्याग तीन हजार मंत्र जपे और मदिरा मांस की बलि दे,
बलि को पहिले ही से अपने समीप रख लेवे क्योंकि अनेक रूपों को धारण
कर वहाँ पर यक्षिणी आवेगी॥ ९-१० ।॥।
तां दृष्टवा न भयं
कुर्याज्जपेत्संसक्तमानसः ।
यस्मिन्दिनं बलिं भुक्तवा वरं दातु
समर्थयेत् ॥ ११ ॥
तदा वरान्वै वृणुयात्तांस्तान्वै
मनसेप्सितान् ।
चेत्प्रसन्ना यक्षिणी स्यात्सर्व दद्यान्न
संशय: ।। १२ ॥
उस आई यक्षिणी को देख निर्भयता से
जप करता रहे जब वह बलि को ग्रहण कर वर देने को तैयार हो तब जो जो इच्छा हो सो सो
उससे मांग ले, यक्षिणी प्रसन्न होकर नि:सन्देह
सब कुछ देती है ॥ ११-१२ ॥
अशक्तस्तु द्विजै:
कुर्य्यात्प्रयोगं सुरपुजितम् ।
सहायानथ वा गुह्य ब्राह्मणै: साधयेद्व्रतम्
।। १३ ॥
यदि इसका अनुष्ठान करने में समर्थ न
हो तो ब्राह्मणों की सहायता से इसका साधन करो ।। १३ ॥
तिस्र: कुमारिका भोज्या: परमान्नेन
नित्यशः ।। १४ ॥।
सिद्धे धनादिके चैव सदा सत्कर्म
चाचरेत् ।
कुकर्मणि व्ययश्चेत्स्यात्सिद्धिर्गच्छति
नान्यथा ।। १५ ॥।
और प्रतिदिन उत्तम अन्न से तीन
कुमारियों को भोजन करावे यक्षिणी के सिद्ध होने पर जो धन मिले उसे सत्कार्य में
लगावे यदि असत्कार्य में वह धन लगेगा तो सिद्धि जाती रहेगी ॥। १४-१५॥
सुरसुन्दरीसाधन
ॐ ह्रीं आगच्छ सुरसुन्दरि स्वाहा
इति मंत्र: ।
पवित्रगृहं गत्वा पूजनं कृत्वा
गुग्गुलधूपं दत्त्वा त्रिसंध्यं
पूजयेन्त्रिसहस्त्रं नित्यं जपेत्
मासाभ्यन्तरे आगतायै चन्दनोदकेनार्घो देय: ॥
मातृभगिनी भार्य्या कृत्यं करोति ।
यदा माता भवति सिद्धद्रव्याणि
ददाति।
यदि भगिनी भवति तदा ह्यपूर्व॑
वस्त्रं ददाति ।
यदि भार्या भवति तर्हि सर्वेश्वर्य
सर्वेषां परिपुरयेत् ।
वर्ज येदन्यास्त्रिया सह शयनम् ।
अन्यथा विनश्यति ।। १६ ॥
ओं ह्रीं आगच्छ सुरसुन्दरि स्वाहा'
यह सुरसुंदरी का मन्त्र है । पवित्र स्थान में जाय पूजन करे फिर
गूगल की धूप दे तीनों संघ्यांओं में पूजन कर प्रतिदिन तीन हजार मन्त्र का जप करे
तो एक मास के भीतर ही सुंरसुंदरी आती है। आने के समय जल में चन्दन मिलाय उस जल से
अर्ध्य दे । माता, बहिन और स्त्री इन तीन रीति से वह साधक के
संग रहती है। माता बनकर रहने से सिद्ध द्रव्य देती है । बहन बनकर रहने से वह
अपूर्व वस्त्र देती है और स्त्री बनकर रहने से सब प्रकार के ऐश्वर्य देकर साधक का
मनोरथ पूर्ण करती है । जब स्त्री बनकर रहे तब साधक अन्य स्त्री के साथ शयन न करे
करने से मर जाता है ॥ १६ ।।
मनोहरीसाधन
नदीसंगमे गत्वा चन्दनेन मंडल कृत्वा
अगरुधूपं दत्त्वा मासोपरि आगतां
पूजयेत् ।
यदा आगच्छति तदा चन्दनेनार्घों देय:
।
पुष्पफलैरेकचित्तेनार्चनं कर्त्तव्यम्
।
अर्द्धरात्रे नियतमागच्छति ।
आगतायां सत्यामाज्ञां देहि
सुबर्णशतं चर प्रतिदिनं ददाति ॥
ओं आगच्छतु मनोहरि स्वाहा ॥। मंत्र:
।। १७ ॥।
मनोहरी यक्षिणी के साधन करने के
लिये नदी के संगम में जाय चन्दन से मंडल बनाकर अगरु की धूप दे महीने के उपरान्त
यक्षिणी के आने के लिये पूजन करे । जब आवे तब चन्दन का अर्ध दे पुष्प फलादि द्वारा
एकाग्र मन से पूजन करे । आधीरात के समय सुरसुन्दरी आती है आने पर सत्य आज्ञा दे तो
प्रसन्न होकर प्रतिदिन सौ सुवर्णमुद्रा देती है । इसका मंत्र मूल में स्पष्ट लिखा
है ।। १७ ॥।
कनकावतीसाधन
ओं हीं कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा
॥। मंत्र: ।।
बटवृक्षतलं गत्वा मद्यं मांस च
दापयेत् ।
एकसहस्रमन्त्रान् जपेत् ।
एवं सप्तदिनं कुर्यात् ।
अष्टमरात्रौ सा सर्वालंकारयुता
आगच्छति ।
साधकस्य भार्या भवति ।
द्वादशजनानां बस्त्रालंकारभोजनानि
ददाति ॥ १८ ॥
'ओं कनकावति
मैथुनप्रिये स्वाहा' यह कनकावती का
मंत्र है बरगद के वृक्ष के नीचे जाय मद्य मांस की बलि दे और एक हजार मंत्र सात दिन
तक जपे । आठवें दिन की रात्रि में संपूर्ण अलंकारों से युक्त हो कनकावती आती है। और
साधक की भार्या हो जाती है । बारह मनुष्यों को वस्त्र आभूषण और भोजन देती है ।।
१८-।।
कामेश्वरीसाधन
ॐ आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा । इति
मन्त्र: ।
भूर्जपत्रे गोरोचनेन प्रतिमां
विलिख्य तां देवीं पूजयेत् ।
शय्यामारुह्या एकाकी सहस्त्रं जपेत्
।
मासान्तं वा पूजयेत् घृतदीपो देय:
।
पश्चान्मौनी भूत्वा पूजयेत् ।
ततोऽर्द्धरात्रे नियतमागच्छति ।
साधकस्य भार्या भवति ।
प्रतिदिनं शयने दिव्यालङ्कारान्
परित्यज्य गच्छति ।
परस्त्री परिवर्जनीया इति ॥ १९ ॥।
ओं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा'
यह कामेश्वरी यक्षिणी का मन्त्र है। भोजपत्र पर गोरोचन से प्रतिमा
लिख यक्षिणी का पूजन करे, शय्या पर विराजमान होकर एक हजार
मन्त्र महीने भर तक जपे और पूजन करे, घृत का दीपक जलाये फिर
मौन धारण कर पूजन करे अनन्तर आघी रात के समय कामेश्वरी आती हैं। और साधक की 'भार्या हो जाती है एवं प्रतिदिन शयन करके दिव्य अलंकारों को छोडकर चली
जाती है, इस दिशा में साधक अन्य स्त्री को त्याग दे १९ ॥॥
रतिप्रियासाधन
ॐ आगच्छ रतिप्रिये स्वाहा । इति
मन्त्र: ॥
पटे चित्ररूपिणीं लिखित्वा
कनकत्स्त्रांसर्वालंकारभूषिताम्
उत्पलहस्तां कुमारीं जातीफलेन
पूजयेत् ।
यदि भगिनी भवति तदा योजनमात्रास्त्रियमानीय
समर्पयति वस्त्रालंकारभोजनानि ददाति
॥ २० ॥
ओं आगच्छ रतिप्रिये स्वाहा'
यह रतिप्रिया यक्षिणी का मन्त्र है । कपडे पर देवी का चित्र लिख
पीतवस्त्र एवं सम्पूर्ण अलंकारों से अलंकृत कर कमर हाथ में घारे हुए कुमारी का
पूजन कर जायफल निवेदन करे जो भगिनी हो जावें तो ४ कोश से स्त्री को लाकर दें एवं
वस्त्रालंकार भोजन देती है ।। २० ।।
पद्मिनी नटी,
और अनुरागिणियोंका साधन
१ ॐ ह्रीं आगच्छ पद्मिनि स्वाहा । २
ॐ ह्रीं आगच्छ नटि स्वाहा ।
३ ॐ ह्रीं आगच्छ अनुरागिणि स्वाहा ।
मन्त्रा एते कुंकुमेन भूर्ज पत्रे प्रतिमां
विलिख्य गन्धाक्षतपुष्प
धूपदीपविधिना सम्पूज्य त्रिसंध्यं
त्रिसहस्त्र जपेत् मासमेकं यावत् ।
ततः पूर्णिमायां विधिवत् पूजा कर्त्तव्या
घृतदीपं प्रज्वालयेत् ॥
सकलरात्रिपर्यन्तं जपेत् ।
अत्र केवलं मन्त्रभेदः ।
प्रभाते नियतसमये आगच्छति
दिव्यरसायनं ददाति ॥ २१ ॥
ओं ह्रीं आगच्छ पद्मिनि स्वाहा'
यह पद्मिनी यक्षिणी का मन्त्र है । ओं ह्रीं आगच्छ नटि स्वाहा'
यह नटी यक्षिणी का मन्त्र है। ओं ह्रीं आगच्छ अनुरागिणि स्वाहा'
यह अनुरागिणी यक्षिणी का मंत्र है। उपरोक्त तीनों यक्षिणियों का साधन
की एक ही रीति है, केशर से भोजपत्र पर प्रतिमा लिख गन्घ,
पुष्प, अक्षत, धूप,
दीप से भलीभांति पूजन कर तीनों संध्याओं में तीन हजार मन्त्र जपे,
एक मास तक ऐसे ही प्रतिदिन पूजन करे । फिर पूर्णिमा के दिन घृत का दीपक
बाल विधान से पूजा करे और सारी रात निद्रा को त्याग मन्त्र जप प्रभात समय साधक के
समीप यक्षिणी आती और दिव्य रसायन देती है ।
विशालासाधन
ॐ ऐं विशाले त्रां त्रीं क्लीं
स्वाहा । मन्त्र: ।
चिञ्चावृक्षतले लक्षं मन्त्रमावर्तयेच्छुचि:
।
शतपुष्पोद्भवैः पुष्पै:
सघृतेहोममाचरेत् ।।
विशाला च ततस्तुष्टा दत्ते दिव्यं
रसायनम् ॥| २२ ॥॥
ओं ऐं विशाले त्रां त्रीं क्लीं
स्वाहा यह विशाला यक्षिणी का मंत्र है ।
इमली के पेड तले बैठकर पवित्रता के साथ एक लक्ष मन्त्र जपे फिर इमली वा सौंफे के फूलों
को घृत में मिलाय उनसे हवन करे तो विशाला यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दिव्य
रसायन देती है ।। २२ ।।
चन्द्रिकासाधन
ॐ ह्रीं चन्द्रिके हंस: क्रीं क्लीं
स्वाहा । इति मंत्र: ॥
शुक्लपक्षे जपेत्तावद्यावत्सदृश्यते
विधु: ।
प्रतिपत्पूर्वपूर्णान्तं नवलक्षमिदं
जपेत् ।
अमृतं चन्द्रिकादत्तं पीत्वा जीवोऽमरो
भवेत् ॥ २४ ॥
ओं ह्रीं चन्द्रिके हंस: क्रीं क्लीं
स्वाहा' यह
चन्द्रिका यक्षिणी का मन्त्र है। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से जप का आरम्भ करे और जब तक
चन्द्र दीखे तब तक मंत्र जपकर पूर्णमासी तक नौ लाख मंत्र जपे तो चन्द्रिका यक्षिणी
प्रसन्न होकर साधक को अमृत देती है उस अमृत को पीने से साधक अमर हो जाता है ॥ २३
।॥।
लक्ष्मीसाधन
ॐ ऐं लक्ष्मीं श्रीं कमलधारिणीं
कलहंसि स्वाहा ।
स्वगृहे संस्थितो रक्तै:
करवीरप्रसूनकै: ।
लक्षमावर्तयेन्मन्त्रं होमं कुर्याद्दशांशत:
॥ २४ ॥
होमे कृते भवेत्सिद्धा
लक्ष्मीनाम्नी च यक्षिणी ।
रसं रसायनं दिव्यं विधानञ्च
प्रयच्छति ॥ २५ ॥
ओं ऐं लक्ष्मी श्रीं से
स्वाहा' तक
लक्ष्मी यक्षिणी का मंत्र है । अपने घर में बैठकर लाल कनेर के फूलों से पूजन करे
और एक लाख मंत्रों का जप दशांश हवन करे ऐसा करने से लक्ष्मी सिद्ध होकर साधक को
दिव्य रसायन देती है २४-२५ ।॥।
शोभनासाधन
ॐ अशोकपल्लवाकारकरतले शोभनीं श्रीं
क्षः स्वाहा ।
रक्तमालाम्बरो मन्त्रं चतु्दर्शदिनैर्जपेत्
।
ततः सिद्धा भवेद्देवी शोभना
भोगदायिनी ॥ २६ ॥
ओं अशोक'
से 'स्वाहा' तक शोभना
यक्षिणी का मन्त्र है। लालरंग के वस्त्रों को धारण कर लालवर्ण की माला से चतुर्दशी
के दिन मन्त्र जपने से शोभना देवी प्रसन्न होकर साधक को भोग देती है ॥ २६ ॥।
मदनसाधन
ॐ ऐं मदने मदनविद्रावणे अनंगसंगमे
देहि
देहि क्रीं क्रीं स्वाहा ।।
लक्षसंख्यं जपेन्मन्त्र राजद्वारे शुचि:
स्थिर: ।
सक्षीरैर्मालतीपुष्पैघृतहोमो
दशांशतः ॥
मदना यक्षिणी सिद्धा गुटिकां
संप्रयच्छति ।
तया मुखस्थयादृश्यश्चिरस्थायी भवैनर:
॥ २७ ।।
ओं ऐं मदने'
से 'स्वाहा' तक मदना
यक्षिणी का मन्त्र है। पवित्रता से स्थिरचित्त होकर राजद्वार में एक लाख मन्त्र
ज़पे और चमेली के फूल दूध एवं घृत से दशांश हवन करे तो मदना यक्षिणी सिद्ध होकर
गुटिका देती है। उसको मुख में रखने से मनुष्य अदृश्य और चिरस्थायी होता है ॥ २७ ॥।
इति
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रेदत्तात्रेयेश्वरसंवादे यक्षिणीसाधन प्रयोगो नाम द्वादश: पटल:
।। १२ ।।
आगे जारी........
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १३ रसायन ॥
0 Comments