दत्तात्रेयतन्त्र पटल १३

दत्तात्रेयतन्त्र पटल १३        

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १२ में आपने यक्षिणी साधन प्रयोग पढ़ा, अब पटल १३ में रसायन प्रयोग बतलाया गया है ।

दत्तात्रेयतन्त्र पटल १३

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् त्रयोदश: पटलः

दत्तात्रेयतन्त्र तेरहवां पटल

दत्तात्रेयतन्त्र पटल १३            

दत्तात्रेयतन्त्र

त्रयोदश पटल

रसायन

ईश्वर उवाच

अथाग्रे कथयिष्यामि रसायनविधि वरम्‌ ।

कुबेरतुल्यो भवति यस्य सिद्धौ नरो भुवि ॥ १॥

शिवजी बोले- (हे दत्तात्रेयजी ! ) अब रसायन की उत्तम विधि को वर्णन करूँगा जिसके साधन करने से मनुष्य सिद्ध होकर कुबेरजी के समान हो जाता है ॥ १ ॥

गोमूत्रं हरितालं च गंधकं च मनश्शिलाम्‌ ।

समं समं गृहीत्वा तु यावच्छुष्कं तु कारयेत्‌ ॥ २ ॥

गोमूत्र, हरताल, गन्धक, मनशिल इनको लाकर जब तक सूखे नहीं खरल करे ॥ २ ॥

गोमूत्रं रक्तवर्णाया गंधकं रक्तवर्णकम्‌ ।

एकादशदिनं यावद्रक्ष्यं यत्नेन वै शुचि ॥। ३ ।।

उपरोक्त प्रयोग में लालवर्ण की गौ का मूत्र और लालरंग का हरताल ले और ग्यारह दिन तक पवित्रता से यत्न के साथ उसे घोटे ॥। ३ ॥।

गोलं कृत्वा द्वादशेऽह्नि रक्तवस्त्रेण वेष्टयेत्‌ ।

चतुरंगुलमानेन मृदं लिप्त्वा विशोषयेत्‌ ।। ४ ॥

बारहवें दिन गोला बनाकर लाल वस्त्र से लपेट उस पर चार अंगुल मट्टी का लेप सुखावे ॥। ४ ॥।

पंचहस्तप्रमाणेन भूमौ गर्त तु कारयेत्‌ ।

पलाशकाष्टलोष्टैस्तु पूरयेद्‌ द्रव्यमध्यगम्‌ ॥ ५ ॥

और पांच हाथ गहरा एक कुंड पृथ्वी में खोदे उसमें ढाक की लकडी जलावे उसी के बीच में इस गोला को रक्खे ।

अग्निं दद्यात्प्रयत्नेन स्वांगशीतं समुद्धरेत्‌ ।

ताम्रपत्रे सुसन्तप्ते तद्भस्म तु प्रदापयेत्‌ ॥ ६ ॥

फिर सावधानी से आंच जलकर शीतल हो जाय तब गोंले को निकाल तपावे हुए तांबे के पत्रे पर उस गोले की भस्म डाले ।। ६ ॥

पुंजैक तत्क्षणात्स्वर्णं जायते ताम्रपत्रकम्‌ ।

अरण्ये निर्जने देशे शिवालयसमीपतः ।। ७ ॥।

वन में वा निर्जन स्थान में अथवा शिवालय के समीप इस क्रिया को करने से घुंघुची के बराबर ताम्रपत्र उसी समय सुवर्ण हो जाता है ।। ७ ।॥।

शुक्लपक्षे सुचन्द्रेऽह्नि प्रयोगं साधयेत्सुधी: ।

त्र्यम्बकेति च मंत्रस्य जपं दशसहस्रकम्‌ ।। ८ ॥

शुक्लपक्ष में जिस दिन चन्द्र बलवान्‌ हो उसी दिन बुद्धिमान्‌ पुरुष त्र्यंबकम्‌ मन्त्र का दश हजार जप कराय इस प्रयोग का आरंभ करे ॥॥८॥

प्रत्यहं कारयेद्विद्वान्भोजयेदुद्रसम्मितान्‌ ।

यावत्‌सिद्धिर्न जायेत तावदेतत्समाचरेत्‌ ॥ ९ ॥

जब तक सिद्धि प्राप्त न हो तब तक ग्यारह ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन करावे ॥ ९ ॥।

द्रव्यमर्द्दनमंत्र:-

ॐ नमो भगवते रुद्राय स्वर्णादीनामीशाय

रसायनस्य सिद्धि कुरु कुरु फट् स्वाहा ।

प्रतिदिनं मर्द्दनसमये अयुतजपात्सिद्धि: ॥ १० ॥

उपरोक्त मर्दनमन्त्र को पढ़ता हुआ खरल में रसायन की सामग्री डालकर घोटे । दश हजार जपने से यन्त्र मन्त्र सिद्ध होता है ॥। १० ॥

इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे दत्तात्रेयेशवरसंवादे रसायनविधिवर्णनं नाम त्रयोदश: पटल: ॥ १३ ॥

आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १४ कालज्ञान ॥

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