क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४-५

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४-५      

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४ में सर्वव्याधिमोचन व ५ में क्रियोपदेश का वर्णन किया गया है।

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४-५

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४ व ५      

Kriyoddish mahatantraraj Patal 4 & 5

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४- सर्वव्याधिमोचनम्    

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज चौथा और पांचवां पटल

क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजः

अथ चतुर्थः पटल:

सर्वव्याधिमोचनम्

शृणु वक्ष्यामि चार्वङ्गि सर्वव्याधिविमोचनम् ।

एकादश पूजयेद्रुद्रान्दशांशं गुग्गुलैर्धृतैः ।

चत्वारः कुम्भाः संस्थाप्याः पञ्चपल्लवसंयुताः ।। १ ।।

उक्तमन्त्रेण रौप्याष्टदलपद्ममध्ये लिङ्गं पूजयेत् ।

प्रतिवासरं सप्तलिङ्गं पूजयेत् लक्षं जप्त्वा ।

पलाशसमिधा होमम् उक्तमन्त्रेण तत्क्रमात् ।। २ ।।

अत्र पीठे यजमानमभिषेचयेत् ।

दक्षिणां दद्याद्गोभूहेमतिलाञ्जलीन्

ब्राह्मणेभ्यः किञ्चिद्देया आचार्याय दद्यात् ।।

हे चार्वङ्गि ! (श्रेष्ठ अङ्गों वाली) अब समस्त व्याधियों से मुक्ति का उपाय कहता हूँ। एकादश रुद्रों की पूजा दशांश गुग्गुल एवं घृत से करनी चाहिये। प्रथमतः पांच पल्लवयुक्त पांच कुम्भ स्थापित करे, फिर तीसरे पटल में कथित मन्त्र से चांदी के आठ दल वाले पद्म में लिङ्ग को स्थापित कर पूजन करे। एक लाख जप करके पलाश की समिधा द्वारा कहे गये मन्त्र से क्रमानुसार होम करे । तत्पश्चात् यजमान का अभिषेक करे। गाय, पृथिवी, स्वर्ण (हेम) एवं तिलांजलि दक्षिणा में दे। इस दक्षिणा में से सामान्य ब्राह्मणों को थोड़ा देकर शेष आचार्य को समर्पित कर दें ।। १-२॥

इति क्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे देवीश्वर-संवादे चतुर्थः पटलः । । ४ । ।

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज में देवी-ईश्वरसंवादात्मक चतुर्थ पटल पूर्ण हुआ ।।४।।

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ४- ५    

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ५- क्रियोपदेश    

अथ पञ्चमः पटल:

क्रियोपदेशः

वशीकरणादिकर्माणि वारतिथिनक्षत्रमण्डलविशेषे कर्त्तव्यानि ।

स्फाटिकी माला सर्वसिद्धिदा ।

क्रियोपदेश का वर्णन - वशीकरण आदि षट्कर्म वार, तिथि, नक्षत्र एवं मण्डलविशेष में ही करना चाहिए। स्फटिक की माला से जप करने से सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

मणिसंख्या-

पञ्चविंशतिभिर्मोक्षं पुष्टौ तु सप्तविंशतिः ।

त्रिंशद्धिर्धनसिद्धिस्तु पञ्चाशन्मन्त्रसिद्धये ॥१॥

पच्चीस दाने की माला से जप करने पर मोक्ष प्राप्त होता है। पौष्टिक कर्म में सत्ताइस दानों की माला प्रयुक्त करनी चाहिए तथा धनसिद्धि के लिए तीस दानों की माला प्रयुक्त करनी चाहिए । मन्त्रसिद्धि हेतु ५० दानों की माला आवश्यक है।

अष्टोत्तरशतैः सर्वसिद्धिः ।

सभी प्रकार की सिद्धियों के लिए सामान्यतः १०८ दानों की माला प्रयुक्त करनी चाहिए ॥ १ ॥

शिवमन्त्रसमायुक्तमौषधं सफलम्भवेत् ।

मूलिकोत्पाटनच्छेदनविधिः पूर्वतन्त्रे कथितः ।

शिवमन्त्र का जप करते हुये यदि औषधि उत्पादन की जाय तो सफल होती है। जड़ के उखाड़ने की विधि कामरत्न आदि अन्य तन्त्रों में कही गयी है।

वन्ध्यादिदोषनिवारणम् ।

स्त्रीणां बाधकमोचनम् ।

रक्तमाद्र्यादि चतुर्विधबाधकदोषनिवारणम् ।

वंध्यादि दोष निवारण के लिये तथा स्त्रियों के बाधानाश के लिये इस मूलिका का प्रयोग करना चाहिए। इससे रक्तमाद्र्यादि चार प्रकार के दोषों का यथार्थ निवारण होता है।

तत्र यन्त्रम्-

त्रिकोणमथ षट्कोणं नवकोणं मण्डलाकृतिः ।

यन्त्राण्येतानि संलिख्य वाहयेन्मन्त्रपूर्वकम् ।।२।।

तन्त्रपूजनात् औषधादि भक्षणाद्दोषशान्तिः ।

यन्त्र को मण्डलाकार, त्रिकोण, षट्कोण एवं नवकोण मन्त्रसहित लिखकर पूजन करने एवं औषधि भक्षण से समस्त प्रकार के रोग शान्त हो जाते हैं ॥ २ ॥

इति क्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे देवीश्वर-संवादे पञ्चमः पटलः ।।५।।

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज में देवी-ईश्वरसंवादात्मक पंचम पटल पूर्ण हुआ ।।५।।

आगे जारी...... क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल 6

About कर्मकाण्ड

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 $type={blogger} :

Post a Comment