क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १ में
शिव-पार्वती संवाद में षट्कर्म तथा उनके लक्षण को कहा गया है।
क्रियोड्डीश महातन्त्रराजः प्रथमः पटल:
Kriyoddish mahatantraraj Patal 1
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज प्रथम पटल
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पहला पटल
क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजः
प्रथमः पटल:
आनन्दशिखरारूढं पार्वत्या सह
शङ्करम् ।
पप्रच्छ गिरिजा कान्ता पुनर्नत्वा
वृषध्वजम् ।। १ ।।
आनन्दशिखर पर श्रीपार्वतीसहित स्थित
भगवान् श्री शिव को नमस्कार कर भगवती गिरिजा ने श्रीशंकर जी से पूछा ॥१॥
श्रीपार्वत्युवाच
भगवन्सर्वदेवेश ! सर्वज्ञानमय!
प्रभो! ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि क्रियोड्डीशं
विभो वद ।।२।।
श्रीपार्वती जी ने कहा- हे भगवन्!
हे सर्वदेवेश ! हे सर्वज्ञानमय! हे प्रभो! इस समय मेरी क्रियोड्डीश तन्त्र को
सुनने की महती इच्छा है; अतएव कृपा कर आप
उसका वर्णन करें ॥२॥
श्रीश्वर उवाच
शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि उड्डीशं
तन्त्रमुत्तमम् ।
गोपितव्यं प्रयत्नेन मम.
स्वप्राणवल्लभे ।। ३ ।।
श्री ईश्वर ने कहा- हे देवि! श्रवण करो।
तन्त्रों में उत्तम उड्डीश (क्रियोड्डीश) तन्त्र को मैं कहता हूँ। हे प्राणवल्लभे
! यह क्रियोड्डीश तन्त्र सभी प्रकार से प्रयत्नपूर्वक गोपनीय है ॥३॥
शान्त्यादिषट्कर्माणि तेषां लक्षणं
च
स्वदेवतादिक्कालादि ज्ञात्वा
कर्माणि साधयेत् ।
शीतांशुसलिल क्षोणीव्योमवायुहविर्भुजः
।।४।।
एतेषाम्बीजयोगेन प्रथनादिक्रमेण
कर्म साधयेत्-ठं वं लं हं यं वं ।
शान्ति आदि षट्कर्म तथा उनके लक्षण-
स्वदेवता,
दिशा, काल आदि को जानकर कर्मसाधना करनी चाहिए।
चन्द्र, जल, पृथिवी, आकाश, वायु एवं अग्नि। इन छः बीजों के योग से
ग्रथनादि क्रमपूर्वक साधना करनी चाहिए। ठं, वं, लं, हं, यं, वं- यह छः उपर्युक्त छहों देवताओं के बीजमन्त्र हैं ॥४॥
तत्तद्देवता:
रतिर्वाणी रमा ज्येष्ठा मातङ्गी
कुलकामिनी ।
दुर्गा चैव भद्रकाली कर्मादौ ताः
प्रपूजयेत् ॥५॥
वसन्ताद्यूतुकालनियमः ।
रति, वाणी, रमा, ज्येष्ठा, मातंगी, कुलकामिनी, दुर्गा और
भद्रकाली-इन देवियों का प्रारम्भ में पूजन करना चाहिये । वसन्त आदि ऋतु कालनियम
में ग्रहण किये जाते हैं ॥५॥
इति क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजे
देवीश्वर-संवादे प्रथमः पटलः । । १ । ।
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज में
देवी-ईश्वरसंवादात्मक प्रथम पटल पूर्ण हुआ ।। १ ।।
आगे जारी...... क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल 2
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