क्रियोड्डीश महातन्त्रराज
क्रियोड्डीशमहातन्त्रराज
तन्त्रशास्त्र का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी बन्थ है। इस ग्रन्थ में किसी
प्रकार के सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया गया है। इसमें विशुद्ध रूप से तन्त्र
के क्रियात्मक पक्ष का वर्णन हुआ है। मन्त्रमहोदधि, मन्त्रमहार्णव आदि की अपेक्षा यह ग्रन्थ अत्यन्त ही लघु है । फिर भी जिस
प्रकार की क्रियाओं का वर्णन इस ग्रन्थ में हुआ है, वैसा
मन्त्रमहोदधि तथा अन्य विशाल ग्रन्थों में भी इन क्रियाओं का वर्णन या विवरण
प्राप्त नहीं होता है। शुक्रोपासित सञ्जीवनी विद्या का वर्णन बहुत ही कम ग्रन्थों
में प्राप्त होता है, किन्तु इस ग्रन्थ में उसका स्पष्ट रूप
से उल्लेख किया गया है। भूतिनी साधन इस ग्रन्थ की अन्य विशेषता है। भूतिनी साधना
का वर्णन फेत्कारिणी तन्त्र में भी प्राप्त होता है और उसकी विधियाँ इस ग्रन्थ की
विधियों से पर्याप्त साम्य भी रखती है। शिवपूजन एवं शाक्ताभिषेक का वर्णन भी इस
ग्रन्थ में किया गया है। दैनिक जीवन में उपयोगी बहुत सी अन्य क्रियाओं का वर्णन भी
इस ग्रन्थ में प्राप्त होता है। इसमें सर्वरोगमुक्तिकवच का वर्णन भी प्राप्त होता
है, जो अत्यत्र दुर्लभ है। इस कवच का प्रयोग करने पर अवश्य
ही रोग का शमन होता है। इन सभी क्रियाओं के अनुष्ठान एवं ज्ञान की दृष्टि से यह
ग्रन्थ सर्वसाधारण के लिये भी अतीव उपयोगी है।
क्रियोड्डीशमहातन्त्रराज
क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल 1
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