क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १०

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १०     

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १०में शाक्ताभिषेक, नयनरञ्जन, प्रकारान्तर ज्वरहरण, सर्वज्वरनिवारण, उदररोगशमन, तृष्णानाश, सर्वापञ्छान्तिकर, महास्वस्त्यन का वर्णन किया गया है। 

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १०

क्रियोड्डीश महातन्त्रराजः दशमः पटल:

Kriyoddish mahatantraraj Patal 10

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १०     

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज दशम पटल

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज दसवाँ पटल

क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजः

अथ दशमः पटल:

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल १० – शाक्ताभिषेकः

शाक्ताभिषेको वन्ध्यामृतवत्सारोगिणीनां शान्तिकरः । 

धनकीर्त्यायुर्वृद्धिः सौभाग्यजननः सर्वाशापूर्णो 

मन्त्रदोषनिवारणोऽभिचारहरो ग्रहदोषनाशनः सर्व-

सिद्धिप्रदोऽभिषेकः ।।

शाक्ताभिषेक- यह वन्ध्या, मृतवत्सा, रोगिणी स्त्रियों के लिये शान्तिकर है। धन-कीर्ति और आयु का वृद्धिकारक, सौभाग्यजनक, सभी प्रकार की आशाओं को पूर्ण करने वाला, मन्त्रदोषनिवारक, अभिचार, ग्रहदोषनिवारक एवं समस्त प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला यह अभिषेक है।

नयनरञ्जनम्

दीपं कृत्वा ताम्रपात्रे कज्जलं पातयेदथ ।

गवां घृतेन चालोड्य चक्षुषी अथ रञ्जयेत् ।

पूर्वे च यादृशं दृष्टं तादृशं च प्रपश्यति ।। १ ।।

दीपक प्रज्ज्वलित कर ताम्रपात्र में काजल बनाकर उसे घी में मथकर नेत्र में लगाने से व्यक्ति पूर्व की ही भाँति देख सकता है॥ १ ॥

प्रकारान्तरे

रक्तचन्दनसंयोगान्मधुना सहरौदुके ।

कियद्दृष्टमञ्जनञ्च तिमिरं हन्ति सुन्दरि ।। २ ।।

अन्य विधि- रक्तचन्दन व मधु को मिश्रित कर धूप में सुखाकर नेत्रों में लगाने पर रतौंधी दूर होती है ।। २।।

अथान्यः

पुनर्नवाघृतं सद्यश्चक्षुस्तेजः करं भवेत् ।।३।।

पुनर्नवा में सिद्ध किया हुआ घी शीघ्र ही नेत्रकान्ति को बढ़ाता है ।। ३ ।।

ज्वरहरणम्

अपामार्गस्य मूलं च कन्यकासूत्रबन्धने ।

स्वात्यां तथा वैष्णवे च ज्वरं हन्ति सुदारुणम् । । ४ । ।

ज्वरहरण - अपामार्ग की जड़ को कुमारी कन्या के हाथ से काते गये सूत में बांधकर स्वाति अथवा विष्णु नक्षत्र में धारण किया जाय तो ज्वर दूर होता है॥ ४ ॥

सर्वज्वरनिवारणम्

रक्तवाट्या मूलमर्कवारे कदलीसूत्रैः 

शय्यायां दापयेत्सर्वज्वरं तापज्वरं हरेत् ।

सर्वज्वरनिवारण - लाल बाडी की जड़ को रविवार के दिन केले के सूत्र में लपेट कर यदि शय्या के एक पाये में बांधा जाय तो ताप आदि सभी प्रकार के ज्वर शान्त हो जाते हैं।

उदररोगप्रशम्

नागेश्वरमूलं मधुना सह पानादुदररोगशान्तिः ।

उदररोग शान्ति - नागेश्वर की जड़ को मधु के साथ सेवन करने से उदर रोग शान्त हो जाते हैं।

तृष्णानाशः

रक्तचन्दनं वर्षयित्वा तोलकं जलसम्मिश्रं 

वामहस्ते गृहीत्वा मनुमष्टोत्तरशतं सञ्जय पिबेत् । 

सप्ताहात्तस्य तृष्णानाशो भवति ।

तृष्णानाश- लाल चन्दन को जल में घिस कर तथा एक तोला पानी मिलाकर बाँये हाथ में लेकर १०८ बार आगे कहे जा रहे मन्त्र के द्वारा अभिमन्त्रित करपान करने से एक सप्ताह में तृष्णा की शान्ति हो जाती है।

मन्त्रः

शब्दबीजद्वयं भद्रे ! नाशय द्वितयं वदेत् ।

तृष्णेति पदमुच्चार्य ततः स्वाहा मनुर्मतः ।

अनेन मनुना देवि! तृष्णानाशो भविष्यति ।।५।।

हे भद्रे! दो शब्द बीज (हुं हुं), नाशय पद दो बार और तृष्णा का उच्चारण करे। इसके पश्चात् स्वाहा पद का उच्चारण करने से हुं हुं नाशय नाशय तृष्णा स्वाहा मन्त्र का निर्माण होता है। हे देवि! इस मन्त्र से अभिमन्त्रित जल का पान करने से तृष्णा नष्ट होती है ॥ ५ ॥

सर्वापच्छान्तिकरं महास्वस्त्ययनम्

अथ वक्ष्ये महेशानि महास्वस्त्ययनं शृणु ।

सर्वसिद्धिकरं पुण्यं सर्वपापविनाशनम् ।।६।।

सर्वोपद्रवशमनं सर्वारिष्टविनाशनम् ।

महाव्याधिप्रशमनमपस्मारविनाशनम् ।।७।।

योगिनीभूतवेतालाः प्रेतकूष्माण्डपन्नगाः ।

तत्र स्थाने न तिष्ठन्ति डाकिन्याद्या विशेषतः ।।८।।

हे महेशानि ! अब मैं महास्वस्त्ययन कह रहा हूँ; श्रवण करो। यह सर्वसिद्धिकर पवित्र एवं सभी प्रकार के पाप, उपद्रव एवं अरिष्ट का नाश करने वाला है। इसके पाठ से महाव्याधि, अपस्मार आदि का नाश होता है। योगिनी, भूत - वेताल, प्रेत- कूष्माण्ड, पन्नग आदि उस स्थान पर निवास नहीं करते; जहाँ पर इस महास्वस्त्ययन का पाठ होता रहता है॥६-८॥

कृत्यामभ्यर्च्चयेद्देवि ! यथाविधि पुरःसरम् ।

षोडषारं लिखेत्पद्मं योनियुग्मं सबिन्दुकम् ।।९।।

तन्मध्येऽष्टदलं लिख्य यकारादीन्न्यसेत्कमात् ।

तन्मध्ये चैव षट्कोणं लिखेन्मूलमनुस्मरन् ।। १० ।।

चन्द्रविम्बं लिखेन्मध्ये असाध्ये पार्थिवं शिवम् ।

तस्य मध्ये न्यसेत् कुम्भं गले स्त्रग्दामभूषितम् ।।११।।

तस्य मध्ये न्यसेत् कृत्यां सर्वलक्षणसंयुताम् ।

पूजयेच्च यथान्यासं पायसन्तु निवेदयेत् ।।१२।।

परितोष्य घटे न्यस्य असिताङ्गादिभैरवान् ।

गन्धपुष्पादिनाभ्यर्च्य तद्वाये क्षेत्रपालकान् ।। १३ ।।

लोकपालं यजेद्देवि! तदग्रे होममाचरेत् ।

जुहुयादाज्यापामार्गेण रक्षतां भिमर्षणौ ।। १४ ।।

दूर्वाग्रखदिराश्वत्थं प्रत्येकन्तु शतादिकम् ।

कुण्डे व स्थण्डिले वापि होमकर्म समाचरेत् ।। १५ ।।

तस्य दक्षिणपार्श्वे तु लक्ष्मीं ध्यायेद्यथाविधि ।

कुण्डमध्ये न्यसेद्देवीं दक्षिणे च श्रियं स्मरेत् ।।१६।।

वामपार्श्वे स्मरेद्देवीं हृल्लेखां परमेश्वरीम् ।

तस्यैव वामपार्श्वे तु पूजयेद्दश नायकम् ।।१७।।

अयुतं मूलमन्त्रञ्च जपेन्मृत्युविनाशनम् ।

अयुतं भ्रूणहत्यायां जपेत् परिमाणं विदुः ।। १८ ।।

महाव्याधिप्रशमनं तावज्जप्त्वाभिषेकतः ।

एवं यः कुरुते मर्त्यः पुण्यां गतिमवाप्नुयात् ।। १९ ।।

तस्यावश्यं न विद्येत व्याधिभ्योऽपि भयं नहि ।। २० ।।

हे देवि! यथाविधि कृत्या देवी का पूजन करे। पोडश कमलदल लिखकर बिन्दुयुक्त योनियुग्म लिखे। उस योनियुग्म के मध्य में अष्टल कमल लिखकर क्रमानुसार यकारादि लिखे और उसके मध्य में षट्कोण यन्त्र लिखकर मूलमन्त्र का ध्यान करे। मध्य में चन्द्रविम्ब लिखे। अक्षम (सामर्थ्यहीन) होने पर पार्थिव शिवलिङ्ग स्थापित करे। उसके मध्य में कुम्भ स्थापित कर उसके कण्ठदेश को पुष्पमाला से भूषित करे। कलश के ऊपर सर्वलक्षण सम्पन्न कृत्या देवी को स्थापित करे । यथा - विधि न्यास-पूजन कर खीर प्रदान करे। कुम्भ के ऊपर न्यास कर असिताङ्ग भैरव का ध्यान कर गन्ध-पुष्पादि प्रदान करे तथा बाह्य प्रदेश में क्षेत्रपाल का पूजन करे। अग्रभाग में लोकपालों का पूजन कर हवन करे। घी एवं अपामार्ग से हवन करते हुये दूर्वा, खदिर तथा अश्वत्थ - प्रत्येक को सौ-सौ की मात्रा में लेकर कुण्ड या स्थण्डिल में होमकर्म करे। उसके दक्षिण भाग में भगवती लक्ष्मी का यथाविधि ध्यान करे। कुण्डमध्य में देवी का न्यास कर दक्षिण में 'श्री' का स्मरण करे। वाम पार्श्व में स्थित हृदय में देवीजी का ध्यान करे। उनके वाम भाग में दस नायकों का पूजन करे। मृत्युनिवारण के लिये मूल मन्त्र का दस हजार जप करे। भ्रूणहत्या- दोषनिवृत्ति के लिये भी दस हजार जप करे। महाव्याधि की शान्ति हेतु दस हजार की संख्या में जप कर अभिषेक करे। यदि साधक ऐसा करता है तो उसे श्रेष्ठ गति प्राप्त होती है। जप करने वाले को किसी प्रकार की भी व्याधि से भय नहीं प्राप्त होता ।। ९ - २० ॥

इति क्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे देवीश्वर-संवादे दशमः पटलः । । १० ।।

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज में देवी-ईश्वरसंवादात्मक दसवाँ पटल पूर्ण हुआ ।। १० ।।

आगे जारी...... क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल 11

About कर्मकाण्ड

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.

0 $type={blogger} :

Post a Comment