गोदान विधि
गोदान विधि- गोदान
अथवा गौ दान का अर्थ है गाय का दान करना। प्राचीन समय में गाय को गोधन कहा जाता था
। भारतीय संस्कृति में गाय को एक पवित्र प्राणी माना जाता है और गाय का दान करने
को बहुत बड़ा पुण्य कार्य समझा जाता है। गौ दान दैहिक, दैविक तथा भौतिक पापों का
नाश करता है।यह दान देनेवाले को बैकुण्ठ ले जाता है तथा उसके पितरों को मोक्ष
दिलाता है।
गोदान की विधि
सर्वे देवा गवामङ्गे तीर्थानि
तत्पदेषु च ।
तद्गुह्येषु स्वयं
लक्ष्मीस्तिष्ठत्येव सदा पितः ॥
गोष्पदाक्तमृदा यो हि तिलकं कुरुते
नरः ।
तीर्थस्नातो भवेत् सद्यो जयस्तस्य
पदे पदे ॥
गावस्तिष्ठन्ति यत्रैव तत्तीर्थं
परिकीर्तितम् ।
प्राणांस्त्यक्त्वा नरस्तत्र सद्यो
मुक्तो भवेद् ध्रुवम् ॥
(ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्णजन्म०
२१।९१-९३)
गौ के शरीर में समस्त देवगण निवास
करते हैं और गौ के पैरों में समस्त तीर्थ निवास करते हैं। गौ के गुह्यभाग में
लक्ष्मी सदा रहती हैं। गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक जो मनुष्य अपने
मस्तक में लगाता है, वह तत्काल तीर्थजल में
स्नान करने का पुण्य प्राप्त करता है और उसकी पद-पद पर विजय होती है। जहाँ पर गौएँ
रहती हैं उस स्थान को तीर्थभूमि कहा गया है, ऐसी भूमि में
जिस मनुष्य की मृत्यु होती है वह तत्काल मुक्त हो जाता है, यह
निश्चित है।
महाभारत में गोदान की विधि का वर्णन
करते हुए भीष्म ने कहा- हे युधिष्ठिर ! गोदान से बढकर कुछ भी नहीं है। यदि
न्यायपूर्वक प्राप्त हुई गौ का दान किया जाय तो उससे तत्काल समस्त कुल का उद्धार
होता है। राजन्, ऋषियों ने सत्पुरुषों के लिए
समीचीन भाव से जिस विधि को प्रकट किया है, इन प्रजाजनों के
लिए वही निश्चित किया गया है । इसलिए आदिकाल से प्रचलित गोदान की उत्तम विधि का
मुझसे श्रवण करो ।
पूर्वकाल की बात है,
जब महाराज मांधाता के पास दान के लिए बहुत सी गौएं लायी गई थीं,
तब उन्होंने ‘कैसी गौ का दान करें?’ इस शंका में पडकर बृहस्पतिजी से तुम्हारी ही तरह प्रश्न किया । उस प्रश्न
के उत्तर में बृहस्पतिजी ने कहा, ‘गोदान करने वाले मनुष्य को
चाहिए कि वह नियमपूर्वक व्रत का पालन करके ब्राह्मण को बुलाकर अच्छी तरह उसका
सत्कार करे और कहे, ‘मैं कल प्रातः काल आपको एक गौ दान
करूंगा’ तत्पश्चात गोदान के लिए वह लाल रंग की (रोहिणी) गौ
मंगाए और ‘समंगे बहुले’ कहकर गाय को
संबोधित करे, तत्पश्चात गौओं के मध्य प्रवेश करके
निम्नांकित श्रुति का उच्चारण करे- ‘गौ मेरी माता है। वृषभ
(बैल) मेरा पिता है । वे दोनों मुझे स्वर्ग तथा ऐहिक सुख प्रदान करें । गौ ही मेरा
आधार है ।’ ऐसा कहकर गौओं की शरण ले और उन्हीं के साथ
मौनावलम्बन पूर्वक रात व्यतीत कर सवेरे गोदान काल में ही मौन भंग करे अर्थात बोले
। इस प्रकार गौओं के साथ एक रात रहकर उनके समान व्रत का पालन करते हुए उन्हीं के
साथ एकात्म भाव को प्राप्त होने से मनुष्य तत्काल सब पापों से मुक्त हो जाता है ।
गौ का दान करने के पश्चात मनुष्य
को तीन रात तक गो व्रत का पालन करना चाहिए और गौओं के साथ एक रात रहना चाहिए ।
कामाष्टमी से लेकर तीन रात तक मात्र गोबर और गोदुग्ध का सेवन करना चाहिए । ‘जो पुरुष एक बैल का दान करता है, वह देवव्रती
(सूर्यमण्डल का भेदन करके जाने वाला ब्रह्मचारी) होता है । जो एक गाय और एक बैल
दान करता है उसे वेदों की प्राप्ति होती है तथा जो विधि पूर्वक गो दान यज्ञ करता
है उसे उत्तम लोक मिलते हैं, नौजवान बैलों का दान उन गौओं के
दान से भी अधिक पुण्यदायक होता है ।
गोदान की विधि अथवा गौ दान कब करना
चाहिए-
गौदान को सर्वोच्च दान माना गया है
क्योंकि इससे दानकर्ता को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके पापों का शमन होता
है। गौ दान करने के लिए कुछ विशेष अवसर और समय होते हैं जिन्हें हिंदू धर्म में
शुभ माना जाता है। जैसे कि दिवाली, मकर
संक्रांति, गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया,
एकादशी और पूर्णिमा, सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के दौरान, विशेष संक्रांति के
दिन: माघ, वैशाख और कार्तिक संक्रांति, किसी परिवार के सदस्य
के जन्म, मृत्यु या विशेष उपलब्धि पर जैसे कि महत्वपूर्ण
धार्मिक उत्सव, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु पर श्राद्ध
कर्म में, या धार्मिक यात्राओं के दौरान गौ दान करना शुभ
माना जाता है।
गोदान विधि का महत्व
धर्मशास्त्र के अनुसार मृत्योपरांत
प्रत्येक जीव को परलोक यात्रा के समय एक विशेष वैतरणी नदी पार करनी पडती है जिसमें
जीव अपने कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के कष्ट सहता है । अत: वैतरणी नदी को
सुखपूर्वक पार करने के लिए गोदान का विशेष महत्व है । गोदान व्यक्ति के जीवन में
सुख,
शांति और समृद्धि लाने में भी सहायक है। इसलिए हर व्यक्ति को जीवन
में एक बार गोदान अवश्य करना चाहिए। गोदान से न केवल व्यक्ति के पापों का नाश होता
है, बल्कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है। गौ दान करने
से दानकर्ता को आध्यात्मिक लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है। किन्तु यह भी
महत्वपूर्ण है कि गौ दान करते समय सही विधि और श्रद्धा के साथ किया जाए।
गोदान की विधि
गोदान विधिः - पुण्यकाल में पवित्र
होकर पवित्र स्थान में अपनी धर्मपत्नी के साथ गोदान करना चाहिए। पहले आचमन करके
प्राणायाम करना चाहिए। स्वस्तिवाचन तथा गौरी-गणपति का पूजन कर लेना चाहिये । कोई
प्रतिमा-विग्रह इत्यादि न रहने पर सुपारी पर मौली लपेटकर गणेशजी की प्रतिमा बना ले
तथा किसी पात्र अथवा मिट्टी की प्याली में रख ले। उनके दाहिनी ओर सुपारी के बराबर
गोबर से गौरी बनाकर रख ले। यदि गोबर उपलब्ध न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर उसे
गौरी के निमित्त रख लेना चाहिये। तदनन्तर गोदान करानेवाले पण्डित स्वस्तिवाचन
करें। गोदान करने के लिए व्यक्ति को पहले एक सुंदर और स्वस्थ गाय का चयन करना
चाहिए। इसके बाद गाय को स्नान कराकर उसे सुंदर वस्त्र पहनाने चाहिए। गाय के सींगों
को सजा कर उसके गले में फूलों की माला पहनानी चाहिए। फिर गाय का षोडशोपचार से पूजन
करना चाहिए। पूजन के बाद गाय को ब्राह्मण को दान देना चाहिए। दान करते समय व्यक्ति
को यह संकल्प लेना चाहिए कि मैं अपने सब पापों को दूर करने के लिए,
सभी मनोरथ पूरा करने के लिए वेणीमाधव की प्रसन्नता के लिए गोदान का
संकल्प करता हूं।
अब दाहिने हाथ में त्रिकुश,
जल, अक्षत और पुष्प लेकर प्रतिज्ञा-संकल्प
करे-
प्रतिज्ञा-संकल्प —
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः नमः
परमात्मने पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् विष्णोराज्ञया जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य
ब्रह्मणो द्वितीयपराधे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे क्षेत्रे (यदि काशी हो तो अविमुक्त- वाराणसीक्षेत्रे गौरीमुखे
त्रिकण्टकविराजिते महाश्मशाने भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या गङ्गाया वामभागे )
संवत्सरे उत्तरायणे / दक्षिणायने... ऋतौ ...मासे... पक्षे... तिथौ.... वासरे....
गोत्र:... शर्मा/वर्मा/ गुप्तोऽहम् (यदि प्रतिनिधि हो तो 'अहम्' के स्थान पर ...गोत्रस्य....
नाम्नः पितुः (....नाम्न्या मातुः ) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदीय- इतना और बोले )
अनेकजन्मोपार्जित ज्ञाताज्ञात कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिक- समस्तपापानां
निवृत्त्यर्थं शास्त्रोक्तफलप्राप्त्यर्थं भगवत्प्रीत्यर्थं च सवत्सगवीदानं करिष्ये
कहकर हाथ में लिये जल,
अक्षत को छोड़ दे तथा पुनः जल, अक्षत ले ले।
तदङ्गत्वेनादौ गणेशाम्बिकयोः पूजनं
आवाहितब्रह्मादिदेवता- सहितसवत्सगवीपूजनं ब्राह्मणवरणं गोपुच्छोदकतर्पणञ्च करिष्ये
कहकर जल, अक्षत
तथा पुष्प छोड़ दे।
(पूजा में जो वस्तु विद्यमान न हो
उसके लिये 'मनसा परिकल्प्य समर्पयामि'
कहे। (जैसे – आभूषण के लिये 'आभूषणं मनसा
परिकल्प्य समर्पयामि'।) हाथ में अक्षत लेकर ध्यान करे—
गोदान के लिये
ब्राह्मणवरण - यजमान अपनी दाहिनी ओर आसन पर
ब्राह्मण को ससम्मान उत्तराभिमुख बैठाये और पूर्वाभिमुख स्वयं बैठ जाय। उसके बाद
हाथ में त्रिकुश, जल, अक्षत, पुष्प तथा वरण-द्रव्य लेकर ब्राह्मण का वरण
करे-
वरण- संकल्प
—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ... गोत्र:...शर्मा
/ वर्मा/गुप्तोऽहम् (यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के स्थान पर....गोत्रस्य
(...गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहम्
- इतना बोले) संकल्पितोद्देश्येन
करिष्यमाणसवत्सगवीदानकर्मणि एभिर्वरणद्रव्यैः ...गोत्रं....शर्माणं ब्राह्मणं
भवन्तं गोदानप्रतिग्रहीतृत्वेन वृणे ।
इस प्रकार संकल्पकर द्रव्य आदि
ब्राह्मण को दे दे।
ब्राह्मण-वचन
—
वरण- द्रव्य लेकर ब्राह्मण बोले- 'वृतोऽस्मि'
।
ब्राह्मणपूजन —
यजमान ब्राह्मणदेवता के दोनों चरणों को निम्नलिखित मन्त्र से धोये-
आपद्घनध्वान्तसहस्त्रभानवः समीहितार्थार्पणकामधेनवः
।
अपारसंसारसमुद्रसेतवः पुनन्तु मां
ब्राह्मणपादरेणवः ॥
गोपूजन की विधि
गोपूजन के समय गाय को भूसा,
चूनी तथा गुड़ आदि खिलाना चाहिये।
गौ को प्रणाम कर निम्नलिखित मन्त्र से
उसका प्रोक्षण करे-
ॐ इरावती धेनुमती हि भूतٿ सूयवसिनी मनवे दशस्या ।
व्यस्कभ्ना रोदसी विष्णवेते दाधर्थ
पृथिवीमभितो मयूखैः स्वाहा ॥
इसके बाद गौ के अंगों में
निम्नलिखित मन्त्रों से उन-उन देवताओं का आवाहन करे-
गौ के अंगों में देवताओं का
आवाहन
सींगों की जड़ों में- ॐ
ब्रह्मविष्णुभ्यां नमः, शृङ्गमूलयोर्ब्रह्मविष्णू
आवाहयामि ।
सींगों के अग्रभाग में- ॐ
सर्वतीर्थेभ्यो नमः शृङ्गाग्रे सर्वतीर्थानावाहयामि ।
सिर के बीच में- ॐ महादेवाय नमः,
शिरोमध्ये महादेवमावाहयामि ।
ललाट में- ॐ गौर्यै नमः,
ललाटे गौरीमावाहयामि ।
नासावंश में- ॐ
कम्बलाश्वतराभ्यां नमः, नासापुटयोः
कम्बलाश्वतरौ आवाहयामि ।
कानों में- ॐ अश्विभ्यां नमः,
कर्णयोरश्विनौ आवाहयामि ।
नेत्रों में- ॐ शशिभास्कराभ्यां
नमः, नेत्रयोः शशिभास्करौ आवाहयामि ।
दाँतों में- ॐ सर्ववायवे नमः,
दन्तेषु सर्ववायुमावाहयामि ।
जिह्वा में- ॐ वरुणाय नमः,
जिह्वायां वरुणमावाहयामि ।
हुंकार में- ॐ सरस्वत्यै नमः,
हुंकारे सरस्वतीमावाहयामि ।
दोनों गालों में- ॐ
मासपक्षाभ्यां नमः, गण्डयोर्मासपक्षौ आवाहयामि
।
दोनों ओठों में- ॐ सन्ध्याद्वयाय
नमः, ओष्ठयोः सन्ध्याद्वयमावाहयामि ।
गले में- ॐ इन्द्राय नमः,
ग्रीवायामिन्द्रमावाहयामि ।
गलकम्बल में- ॐ रक्षोगणेभ्यो नमः,
गलकम्बले रक्षोगणानावाहयामि ।
हृदय में - ॐ साध्येभ्यो नमः,
हृदये साध्यानावाहयामि ।
जाँघों में- ॐ धर्माय नमः,
जङ्घयोः धर्ममावाहयामि ।
दोनों खुरों के बीच में- ॐ
गन्धर्वेभ्यो नमः, खुरमध्ये
गन्धर्वानावाहयामि ।
खुरों के अग्रभाग में —
ॐ पन्नगेभ्यो नमः, खुराग्रेषु
पन्नगानावाहयामि ।
खुरों के मूल में- ॐ अप्सरेभ्यो
नमः, खुरमूलेषु अप्सरोगणानावाहयामि ।
पीठ में- ॐ एकादशरुद्रेभ्यो नमः,
पृष्ठे एकादशरुद्रानावाहयामि ।
सभी सन्धियों में- ॐ वसुभ्यो नमः,
सर्वसन्धिषु वसूनावाहयामि ।
कटिभाग में —
ॐ पितृभ्यो नमः, कटिद्वये पितॄनावाहयामि ।
पूँछ में- ॐ सोमाय नमः,
पुच्छे सोममावाहयामि ।
शरीर के अधोभाग में - ॐ
द्वादशादित्येभ्यो नमः, निम्नाङ्गेषु
द्वादशादित्यानावाहयामि ।
केशों में- ॐ सूर्यरश्मिभ्यो नमः,
केशेषु सूर्यरश्मीनावाहयामि ।
गोमूत्र में - ॐ गङ्गायै नमः, गोमूत्रे गङ्गामावाहयामि। ॐ यमुनायै नमः, गोमूत्रे यमुनामावाहयामि ।
गोमयभाग में —
ॐ लक्ष्म्यै नमः, गोमये लक्ष्मीमावाहयामि ।
दूध में- ॐ सरस्वत्यै नमः,
दुग्धे सरस्वतीमावाहयामि ।
दधि में- ॐ नर्मदायै नमः,
दध्नि नर्मदामावाहयामि ।
घी में- ॐ वह्नयै नमः,
घृते वह्निमावाहयामि ।
रोमों में- ॐ
त्रयस्त्रिंशत्कोटिदेवेभ्यो नमः, रोमेषु
त्रयस्त्रिंशत्कोटिदेवानावाहयामि ।
पेट में - ॐ पृथिव्यै नमः,
उदरे पृथिवीमावाहयामि ।
स्तनों में- ॐ चतुर्भ्यः
सागरेभ्यो नमः, स्तनेषु चतुरः
सागरानावाहयामि ।
पूरे शरीर में- ॐ कामधेनवे नमः,
सर्वाङ्गेषु कामधेनुमावाहयामि ।
प्रतिष्ठा
– हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर गाय के अंगों पर छिड़क दे-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं
तनोत्वरिष्टं यज्ञٿ
समिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ
॥
उक्ताः ब्रह्मादिकामधेन्वन्तदेवताः
सुप्रतिष्ठिता भवन्तु, आवाहयामि,
स्थापयामि, पूजयामि ।
विविध उपचारों द्वारा
गोपूजन
आवाहितब्रह्मादिदेवतासहितायै सवत्सायै गवे नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (पुष्पांजलि अर्पित करे।)
आवाहन
ॐ आवाहयाभ्याम् देवीं,
गां त्वां त्रैलोक्यामातरम् ।
यस्यां स्मरणमात्रेण,
सर्वपाप प्रणाशनम् ।।
त्वं देवीं त्वं जगन्माता,
त्वमेवासि वसुन्धरा ।
गायत्री त्वं च सावित्री,
गंगा त्वं च सरस्वती ।।
आगच्छ देवि कल्याणि,
शुभां पूजां गृहाण च ।
वत्सेन सहितां माता,
देवीमावाहयाम्यहम् ।।(पुष्प
प्रदान करे ।)
पाद्य-
सौरभेयि सर्वहिते पवित्रे पापनाशिनि
।
प्रतिगृह्य
मया दत्तं पाद्यं त्रैलोक्यवन्दिते ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
पाद्यं समर्पयामि। (जल चढ़ाये।)
अर्घ-
देहे स्थितासि रुद्राणि शंकरस्य सदा
प्रिये ।
धेनुरूपेण सा देवी मम पापं व्यपोहतु
॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
अर्घं समर्पयामि । (अर्घ प्रदान करे ।)
आचमन-
या लक्ष्मी: सर्वभूतेषु या च
देवेष्ववस्थिता ।
धेनुरूपेण सा देवी मम
पापं व्यपोहतु ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
आचमनीयं जलं समर्पयामि । (जल दे ।)
स्नान-
सर्वदेवमयी मातः सर्वदेवनमस्कृते ।
तोयमेतत् सुखस्पर्शं स्नानार्थं
गृह्ण धेनु ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
स्नानीयं जलं समर्पयामि। (स्नान के लिये जल अर्पित करे।)
स्नानांग आचमन
- स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (जल दे) ।
वस्त्र और उपवस्त्र-
आच्छादनं ददाम्येतत् सम्यक् शुद्धं
सुशोभनम् ।
सुरभे वस्त्रदानेन प्रीयतां
परमेश्वरि ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि । ( गौ को वस्त्र – उपवस्त्र ओढ़ा दे ।)
आचमन
- वस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (जल दे) ।
चन्दन-
सर्वदेवप्रियं देवि चन्दनं
चन्द्रसन्निभम् ।
कस्तूरीकुङ्कुमाढ्यं च प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्
॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
चन्दनानुलेपनं समर्पयामि । (गौ के मस्तक आदि में चन्दन चढ़ाये।)
अक्षत-
अक्षतान् तिलजान् देवि
शुभ्रचन्दनमिश्रितान् ।
गृहाण परमप्रीत्या गौस्त्वं त्रिदिवपूजिते
॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
अक्षतान् समर्पयामि। (अक्षत चढ़ाये ।)
अलंकार, पात्र आदि-
शृङ्गभूषणार्थं स्वर्णशृङ्गम्, चरणभूषणार्थं
रौप्यखुरम्, घण्टाम्, दोहनार्थं
कांस्यपात्रम्, सर्वालङ्कारार्थं च यथाशक्ति द्रव्यं
समर्पयामि ।
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
अलङ्कारादिवस्तूनि समर्पयामि। (गौ के लिये आभूषण प्रदान करे।)
पुष्पमाला-
पुष्पमालां तथा जातिपाटलाचम्पकानि च
।
पुष्पाणि गृह्ण धेनो त्वं
सर्वविघ्नप्रणाशिनि ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
पुष्पाणि समर्पयामि। (पुष्प चढ़ाये ।)
धूप-
देवद्रुमरसोद्भूतं गोघृतेन
समन्वितम् ।
प्रयच्छामि महाभागे धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्
॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः,
धूपमाघ्रापयामि । (धूप दिखाये ।)
दीप-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना
योजितं मया ।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम्
॥
दीपं प्रदर्शयामि । (दीप दिखाये।)
सवत्सायै गवे नमः । हस्तं
प्रक्षाल्य नैवेद्यफलञ्च निधाय जलेनाभ्युक्ष्य तत्र तुलसीदलं प्रक्षिप्य
निवेदयेत्। (हाथ धो ले। नैवेद्य यथास्थान रखकर
जल से प्रोक्षितकर उसमें तुलसीदल छोड़कर निवेदित करे ।)
नैवेद्य-
ॐ ब्रह्मार्पणं
ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं
ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः, नैवेद्यं फलं च समर्पयामि।
(नैवेद्य और फल निवेदित करे ।)
नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं
समर्पयामि। (नैवेद्य के बाद आचमन के लिये जल
दे।)
करोद्वर्तनकं समर्पयामि
(करोद्वर्तनके लिये दोनों हाथों की अनामिका से गन्ध दे।)
ताम्बूलं समर्पयामि
(ताम्बूल निवेदित करे ।)
दक्षिणा-
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं
विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे
॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः, पूजासाद्गुण्यार्थे
द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि। (दक्षिणा अर्पित
करे ।)
गौमाता की आरती
ॐ जय जय गौमाता,
मैया जय जय गौमाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
त्रिभुवन सुख पाता ।। मैया जय ।।
सुख समृद्धि प्रदायनी, गौ की कृपा मिले ।
जो करे गौ की सेवा,
पल में विपत्ति टले ।। मैया जय
।।
आयु ओज विकासिनी,
जन जन की माई ।
शत्रु मित्र सुत जाने,
सब की सुख दाई ।। मैया जय
।।
सुर सौभाग्य विधायिनी,
अमृती दुग्ध दियो ।
अखिल विश्व नर नारी,
शिव अभिषेक कियो ।। मैया जय
।।
ममतामयी मन भाविनी,
तुम ही जग माता ।
जग की पालनहारी,
कामधेनु माता ।। मैया जय ।।
संकट रोग विनाशिनी,
सुर महिमा गायी ।
गौ शाला की सेवा,
संतन मन भायी ।। मैया जय ।।
गौ माँ की रक्षा हित,
हरी अवतार लियो ।
गौ पालक गौपाला,
शुभ सन्देश दियो ।। मैया जय
।।
श्री गौमात की आरती,
जो कोई सुत गावे ।
"पदम्" कहत वे तरणी, भव से तर जावे ।। मैया जय ।।
पुष्पांजलि-
ॐ गोभ्यो यज्ञाः प्रवर्तन्ते गोभ्यो
देवाः समुत्थिताः ।
गोभ्यो वेदाः समुत्कीर्णा
सषडङ्गपदक्रमाः ॥
आवाहितदेवतासहितायै सवत्सायै गवे
नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
(पुष्पांजलि प्रदान करे।)
प्रदक्षिणा-
गवां दृष्ट्वा नमस्कृत्य
कुर्याच्चैव प्रदक्षिणम् ।
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा
वसुन्धरा ।।
मातरः सर्वभूतानां गाव:
सर्वसुखप्रदाः।
वृद्धिमाकाङ्क्षता नित्यं गावः
कार्याः प्रदक्षिणाः ॥
'गोमाता का दर्शन एवं उन्हें
नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करे ऐसा करने से सातों द्वीपसहित भूमण्डल की
प्रदक्षिणा हो जाती है। गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देनेवाली
हैं। वृद्धि को आकांक्षा करनेवाले मनुष्य को नित्य गौओं की प्रदक्षिणा करनी
चाहिये।'
पदे पदे या परिपूजकेभ्यः
सद्योऽश्वमेधादिफलं ददाति ।
तां सर्वपापक्षयहेतुभूतां
प्रदक्षिणान्ते परितः करोमि ॥
आवाहितपूजितसमस्तदेवतासहितायै
सवत्सायै गवे नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि।
(गौ की प्रदक्षिणा करे।
चार प्रदक्षिणा करनी चाहिये अथवा एक
प्रदक्षिणा भी की जा सकती है ।)
नमस्कार
नमस्ते जायमानायै जाताया उत ते नमः
।
बालेभ्यः शफेभ्यो रूपायाघ्न्ये ते
नमः ॥
'हे अवध्य गौ ! उत्पन्न होते समय
तुम्हें नमस्कार और उत्पन्न होने पर भी तुम्हें प्रणाम । तुम्हारे रूप (शरीर),
रोम और खुरों को भी प्रणाम ।'
नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य
एव च ।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो
नमो नमः ॥
'श्रीमती गौओं को नमस्कार।
कामधेनु की संतानों को नमस्कार। ब्रह्माजी की पुत्रियों को नमस्कार। पावन करनेवाली
गौओं को नमस्कार ।'
पञ्च गाव: समुत्पन्ना मथ्यमाने
महोदधौ ।
तासां मध्ये तु या नन्दा तस्यै
देव्यै नमो नमः ॥
सर्वकामदुधे देवि
सर्वतीर्थाभिषेचिनि ।
पावनि सुरभिश्रेष्ठे देवि तुभ्यं
नमो नमः ॥
'क्षीरसमुद्र के मथे जाने पर
उसमें से पाँच गौएँ प्रकट हुई, उनमें से जो नन्दा नाम की
श्रेष्ठ गौ है, उस देवी को बारंबार नमस्कार है। हे श्रेष्ठ
सुरभिदेवी! तुम समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली तथा समस्त तीर्थों में स्नान
करनेवाली हो। अतः हे पवित्र करनेवाली देवि! तुम्हें बार-बार नमस्कार है।'
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत्
स्थावरजङ्गमम् ।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य
मातरम् ॥
'जिस गौ से यह स्थावर-जंगम अखिल
विश्व व्याप्त है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ को मैं सिर
झुकाकर प्रणाम करता हूँ।'
गोपूजन के अनन्तर गोपुच्छोदक से
तर्पण करना चाहिये।
गोदान विधि
गोपुच्छोदकतर्पण
गाय की पूँछ पकड़कर तर्पण करना
चाहिये। सव्य पूर्वाभिमुख होकर दाहिने हाथ में त्रिकुश,
अक्षत, जल और गोपुच्छ लेकर तर्पण करे। तर्पण के
जल को इकट्ठा करने के लिये पूँछ के नीचे जलपात्र को रख ले। हाथ में गोपुच्छ लेने में
कठिनाई हो तो पूँछ में मौली बाँधकर मौली को हाथ में रख ले। तर्पण के समय दूसरा व्यक्ति
हाथमें जल डालता जाय।
देवतर्पण–पूर्वदिशा में मुख करके सव्यावस्था में निम्नलिखित प्रत्येक नाममन्त्र के
बाद 'तृप्यतु' अथवा 'तृप्यताम्' कहकर एक-एक अंजलि जल देवतीर्थ से
देता जाय—
ॐ ब्रह्मा तृप्यतु । ॐ विष्णुस्तृप्यतु।
ॐ रुद्रस्तृप्यतु। ॐ मनवस्तृप्यन्तु (तृप्यन्ताम् ) । ॐ ऋषयस्तृप्यन्तु । ॐ
रुद्रातिपुत्रास्तृप्यन्तु। ॐ साध्यास्तृप्यन्तु। ॐ मरुद्गणास्तृप्यन्तु । ॐ
ग्रहास्तृप्यन्तु । ॐ नक्षत्राणि तृप्यन्तु । ॐ योगास्तृप्यन्तु। ॐ
राशयस्तृप्यन्तु । ॐ वसुधा तृप्यतु । ॐ अश्विनौ तृप्येताम् । ॐ यक्षास्तृप्यन्तु ।
ॐ रक्षांसि तृप्यन्तु। ॐ मातरस्तृप्यन्तु। ॐ रुद्रास्तृप्यन्तु। ॐ
पिशाचास्तृप्यन्तु । ॐ सुपर्णास्तृप्यन्तु । ॐ पशवस्तृप्यन्तु। ॐ दानवास्तृप्यन्तु
। ॐ योगिनस्तृप्यन्तु । ॐ विद्याधरास्तृप्यन्तु । ॐ ओषधयस्तृप्यन्तु । ॐ
दिग्गजास्तृप्यन्तु । ॐ देवगणास्तृप्यन्तु । ॐ देवपल्यस्तृप्यन्तु । ॐ
लोकपालास्तृप्यन्तु । ॐ नारदस्तृप्यतु । ॐ जन्तवस्तृप्यन्तु । ॐ
स्थावरास्तृप्यन्तु। ॐ जङ्गमास्तृप्यन्तु ।
ऋषितर्पण
—
निम्नलिखित मन्त्रों से मरीचि आदि ऋषियों को भी एक-एक अंजलि जल दे-
ॐ मरीचिस्तृप्यताम् । ॐ
अत्रिस्तृप्यताम् । ॐ अङ्गिरास्तृप्यताम् । ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम् । ॐ
पुलहस्तृप्यताम् । ॐ क्रतुस्तृप्यताम्। ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम् । ॐ
प्रचेतास्तृप्यताम् । ॐ भृगुस्तृप्यताम् । ॐ नारदस्तृप्यताम् ।
दिव्य मनुष्यतर्पण
- दिव्य मनुष्यतर्पण में - १. उत्तर दिशा की ओर मुँह करे । २. जनेऊ को कण्ठी की
तरह कर ले। ३. गमछे को भी कण्ठी की तरह कर ले। ४. सीधा बैठे। कोई घुटना जमीन पर न
लगाये । ५. अर्धपात्र में जौ छोड़े। ६. तीनों कुशों को उत्तराग्र रखे । ७.
प्राजापत्य (काय) तीर्थ से अर्थात् कुशों को दाहिने हाथ की कनिष्ठिका के मूलभाग में
रखकर यहीं से जल दे । ८. दो-दो अंजलियाँ जल दे ।
अंजलिदान के मन्त्र
—
ॐ सनकस्तृप्यताम् (२) । ॐ सनन्दनस्तृप्यताम् (२) । ॐ
सनातनस्तृप्यताम् (२) । ॐ कपिलस्तृप्यताम् (२) । ॐ आसुरिस्तृप्यताम् (२) । ॐ वोढुस्तृप्यताम्
(२) । ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम् (२) ।
दिव्य पितृतर्पण
—
पितृतर्पण में - १. दक्षिण दिशा की ओर मुँह करे । २. अपसव्य हो जाय
अर्थात् जनेऊ को दाहिने कन्धे पर रखकर बायें हाथ के नीचे ले जाय।* जिनके पास यज्ञोपवीत नहीं है, उन्हें उत्तरीय (गमछे) के द्वारा तर्पणकार्य
करना चाहिये। ३. गमछे को भी दाहिने कन्धे पर रखे। ४.
बायाँ घुटना जमीन पर लगाकर बैठे । ५. अर्धपात्र में काले तिल छोड़े । ६. कुशों को
बीच से मोड़कर उनकी जड़ और अग्रभाग को दाहिने हाथ में तर्जनी और अँगूठे के बीच में
रखे। ७. पितृतीर्थ से अर्थात् अँगूठे तर्जनी के मध्यभाग से अंजलि दे । ८. तीन-तीन
अंजलियाँ दे । उपर्युक्त नियम से निम्नलिखित तीन-तीन अंजलियाँ एक-एक मन्त्र पढ़कर
दे—
ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।*
ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
ॐ अग्निष्वात्ताः पितरस्तृप्यन्ताम्
इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तेभ्यः स्वधा नमः, तेभ्यः स्वधा नमः, तेभ्यः स्वधा नमः ।
ॐ सोमपाः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं
सतिलं गोपुच्छोदकं तेभ्यः स्वधा नमः, तेभ्यः
स्वधा नमः, तेभ्यः स्वधा नमः ।
ॐ बर्हिषदः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं
सतिलं गोपुच्छोदकं तेभ्यः स्वधा नमः, तेभ्यः
स्वधा नमः, तेभ्यः स्वधा नमः ।
* कुछ पद्धतियों के अनुसार तर्पण में केवल 'स्वधा' का प्रयोग चलता है। परंतु
पारस्करगृह्यसूत्र के हरिहरभाष्य में तर्पण-प्रयोगनिरूपण के अन्तर्गत 'स्वधा नमः' प्रयोग दिया गया है, जिसके अनुसार यहाँ तर्पण में 'स्वधा नमः' का प्रयोग ही उचित है।
चतुर्दश यमतर्पण
- पूर्ववत् इसी प्रकार निम्नलिखित प्रत्येक नाम से यमराज को पितृतीर्थ से ही दक्षिणाभिमुख
तीन-तीन अंजलियाँ दे-
ॐ यमाय नमः (३)। ॐ धर्मराजाय नमः
(३) । ॐ मृत्यवे नमः (३) । ॐ अन्तकाय नमः (३) । ॐ वैवस्वताय नमः (३) । ॐ कालाय नमः
(३) । ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः (३) । ॐ औदुम्बराय नमः (३) । ॐ दध्नाय नमः (३) । ॐ
नीलाय नमः (३) । ॐ परमेष्ठिने नमः (३) । ॐ वृकोदराय नमः (३) । ॐ चित्राय नमः (३) ।
ॐ चित्रगुप्ताय नमः (३) ।
पित्र्यादितर्पण
— दायें हाथ में मोटक, तिल, जल लेकर अपसव्य दक्षिणाभिमुख हो बायाँ घुटना जमीन पर गिराकर पित्र्यादि तर्पण
करे-
१. पिता
–
ॐ अद्य अस्मत्पिता ... गोत्र: ... शर्मा/वर्मा/गुप्तः वसुस्वरूपः इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः । बोलकर पितृतीर्थ से तीन अंजलि
जल दे।
२. पितामह
—
ॐ अद्य अस्मत्पितामहः... गोत्र: ... शर्मा/वर्मा/गुप्तः
रुद्रस्वरूपः इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
बोलकर पितृतीर्थ से तीन अंजलि जल दे ।
३. प्रपितामह—
ॐ अद्य अस्मत् प्रपितामहः... गोत्र: ... शर्मा/वर्मा/गुप्तः
आदित्यस्वरूपः इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः ।
बोलकर पितृतीर्थसे तीन अंजलि जल दे।
४. माता-
ॐ अद्य अस्मन्माता... गोत्रा... देवी वसुस्वरूपा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै
स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः,
तस्यै स्वधा नमः ।
बोलकर पितृतीर्थ से तीन अंजलि जल दे।
५. पितामही-
ॐ अद्य अस्मत्पितामही... गोत्रा... देवी
रुद्रस्वरूपा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः,
तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः ।
बोलकर पितृतीर्थ से तीन अंजलि जल दे।
६. प्रपितामही–ॐ अद्य अस्मत् प्रपितामही... गोत्रा... देवी आदित्यस्वरूपा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै
स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः, तस्यै
स्वधा नमः । बोलकर पितृतीर्थ से तीन अंजलि जल दे।
७.सौतेली माँ
-ॐ अद्य अस्मत् सापत्नमाता... गोत्रा... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः,
तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः ।
बोलकर पितृतीर्थ से तीन अंजलि जल दे।
द्वितीय गोत्रतर्पण-
१. मातामह (नाना)—ॐ अद्य अस्मन्मातामहः... गोत्र: ... शर्मा वसुस्वरूपः इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः । बोलकर पितृतीर्थ से तीन बार
जल दे।
२. प्रमातामह (परनाना)—ॐ अद्य अस्मत् प्रमातामहः... गोत्र: ... शर्मा रुद्रस्वरूपः इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै
स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै
स्वधा नमः। बोलकर पितृतीर्थ से तीन बार जल दे।
३. वृद्धप्रमातामह
(वृद्धपरनाना) —–ॐ अद्य अस्मद् वृद्धप्रमातामहः... गोत्र: ... शर्मा आदित्यस्वरूपः इदं
सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः,
तस्मै स्वधा नमः । बोलकर पितृतीर्थ से तीन
बार जल दे।
४. मातामही (नानी) –
ॐ अद्य अस्मन्मातामही... गोत्रा... देवी वसुस्वरूपा इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः । बोलकर पितृतीर्थ से तीन बार
जल दे।
५. प्रमातामही (परनानी)
- ॐ अद्य अस्मत् प्रमातामही... गोत्रा... देवी रुद्रस्वरूपा इदं सतिलं
गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः, तस्यै
स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः । बोलकर
पितृतीर्थ से तीन बार जल दे।
६. वृद्धप्रमातामही
(वृद्धपरनानी) –
ॐ अद्य अस्मद् वृद्धप्रमातामही... गोत्रा... देवी आदित्यस्वरूपा इदं
सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः, तस्यै स्वधा नमः,
तस्यै स्वधा नमः ।
बोलकर पितृतीर्थ से तीन बार जल दे।
पत्न्यादि - तर्पण*
(एक अंजलि जल दे)
*यहाँ सभी निकटतम
सम्बन्धियों के लिये तर्पण लिखा गया है, जिनको देना हो उनके नाम, गोत्र और अपना सम्बन्ध
बोलकर देना चाहिये। ब्राह्मण के लिये 'शर्मा', क्षत्रिय के लिये 'वर्मा' तथा
वैश्य के लिये 'गुप्त' नाम के आगे जोड़
देना चाहिये।
१. पत्नी
- ॐ अद्य अस्मत् पत्नी... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः १ ।
२. पुत्र
- ॐ अद्य अस्मत् पुत्रः... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः १ ।
३. भाई
—
ॐ अद्य अस्मद् भ्राता... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा
नमः १ ।
४. भाई की स्त्री-
ॐ अद्य अस्मद् भ्रातृपत्नी... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः १ ।
५. भतीजा
- ॐ अद्य अस्मद् भ्रातृपुत्रः... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः १ ।
६. फूफा
- ॐ अद्य अस्मत् पितृष्वसृपतिः... गोत्र: ... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा
नमः १ ।
७. फूआ—
ॐ अद्य अस्मत् पितृष्वसा... गोत्रा... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं
तस्यै स्वधा नमः १ ।
८. फूआ का लड़का
- ॐ अद्य अस्मत् पैतृष्वस्त्रेयः... गोत्र: ... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै
स्वधा नमः १ ।
९. मौसा
- ॐ अद्य अस्मन्मातृष्वसृपतिः... गोत्र: ... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै
स्वधा नमः १ ।
१०. मौसी
- ॐ अद्य अस्मन्मातृष्वसा... गोत्रा... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा
नमः १।
११. मौसीया भाई
- ॐ अद्य अस्मन्मातृष्वस्त्रेयः... गोत्र: ... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै
स्वधा नमः १ ।
१२. मामा
- ॐ अद्य अस्मन्मातुलः... गोत्रः... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः
१ ।
१३. मामी
- ॐ अद्य अस्मन्मातुलानी... गोत्रा... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्यै स्वधा नमः
१ ।
१४. ममियाउत भाई-ॐ
अद्य अस्मन्मातुलानीपुत्रः... गोत्रः... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा
नमः१।
१५. श्वशुर
—
ॐ अद्य अस्मच्छ्वशुरः... गोत्र: ... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं
तस्मै स्वधा नमः १ ।
१६. सासु
—
ॐ अद्य अस्मच्छ्वश्रुः... गोत्रा... देवी इदं सतिलं गोपुच्छोदकं
तस्यै स्वधा नमः १ ।
१७. गुरु
—
ॐ अद्य अस्मद् गुरुः... गोत्रः... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं
तस्मै स्वधा नमः १ ।
१८. मित्र-ॐ
अद्य अस्मन्मित्रम्... गोत्रः... शर्मा इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः १ ।
१९. नौकर-ॐ
अद्य अस्मद् भृत्यः... नामधेयः इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः १ ।
तदनन्तर निम्नलिखित श्लोकोंको बोलते
हुए गोपुच्छोदक से पितृतीर्थ से जलधारा देते हुए तर्पण करे-
मातृपक्षाश्च ये केचिद् ये केचित्
पितृपक्षकाः ।
गुरुश्वशुरबन्धूनां ये कुलेषु
समुद्भवाः ॥
ये मे कुले लुप्तपिण्डाः
पुत्रदारविवर्जिताः ।
क्रियालोपगता ये च जात्यन्धाः
पङ्गवस्तथा ॥
विरूपा आमगर्भाश्च ज्ञाताज्ञातकुले
मम ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु
गोपुच्छोदकतर्पणैः ॥
वृक्षोयोनिगता ये च पर्वतत्वं
गताश्च ये ।
पशुयोनिगता ये च ये च कीटपतङ्गकाः ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु
गोपुच्छोदकतर्पणैः ॥
नरके रौरवे ये च महारौरवसंस्थिताः ।
असिपत्रवने घोरे कुम्भीपाकस्थिताश्च
ये ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु
गोपुच्छोदकतर्पणैः ॥
स्वार्थबद्धा मृता ये च
शस्त्रघातमृताश्च ये ।
ब्रह्महस्तमृता ये च
नारीहस्तमृताश्च ये ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु
गोपुच्छोदकतर्पणैः ॥
पाशमध्ये मृता ये च
स्वल्पमृत्युवशंगताः ।
सर्वे च मानवा नागाः पशवः
पक्षिणस्तथा ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु
गोपुच्छोदकतर्पणैः ॥
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः
।
तृप्यन्तु सर्वदा सर्वे
गोपुच्छोदकतर्पणैः ॥
इसके बाद भीष्मपितामह को निम्न
श्लोक बोलते हुए पितृतीर्थ और कुशों से जल दे-
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च
।
अपुत्राय ददाम्येतज्जलं भीष्माय
वर्मणे ॥
इसके बाद सव्य,
पूर्वाभिमुख होकर निम्नलिखित मन्त्र से देवतीर्थ से जलधारा दे-
देवासुरास्तथा यक्षा नागा गन्धर्वराक्षसाः
।
पिशाचा गुह्यकाः सिद्धाः
कूष्माण्डास्तरवः खगाः ॥
जलेचरा भूनिलया वाय्वाधाराश्च
जन्तवः ।
तृप्तिमेते प्रयान्त्वाशु
मद्दत्तेनाम्बुनाखिलाः ॥
हाथ जोड़कर बोले –
ॐ ब्रह्मणे नमः,
ॐ विष्णवे नमः, ॐ रुद्राय नमः ।
प्रमादात् कुर्वतां कर्म
प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्ण
स्यादिति श्रुतिः ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या
तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो
वन्दे तमच्युतम् ॥
यत्पादपङ्कजस्मरणाद् यस्य नामजपादपि
।
न्यूनं कर्म भवेत् पूर्णं तं वन्दे
साम्बमीश्वरम् ॥
ॐ विष्णवे नमः । ॐ विष्णवे नमः । ॐ
विष्णवे नमः ।
गाय का दान:
गौ दान उन्हीं ब्राह्मण या पुजारी
को करें जो उनकी सेवा-शुश्रूषा भली-भांति कर सके वरना पुण्य के स्थान पर पाप का
भागी होना पड़ सकता है, कहा गया है कि-
गोशुश्रूषा
गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च
सर्वशः।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि
सुदुर्लभान् ॥
द्रुह्येन्न मनसा वापि गोषु नित्यं
सुखप्रदः।
अर्चयेत सदा चैव नमस्कारैश्च
पूजयेत्॥
दान्तः प्रीतमना नित्यं गवां
व्युष्टिं तथाश्नुते ।
'जो पुरुष गौओं की सेवा करता है
और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर
गौएँ उसे अत्यन्त दुर्लभ वर प्रदान करती हैं। गौओं के साथ मन से भी कभी द्वेष न
करें, उन्हें सदा सुख पहुँचाये, उनका
यथोचित सत्कार करे और नमस्कार आदि के द्वारा उनका पूजन करता रहे। जो मनुष्य
जितेन्द्रिय और प्रसन्नचित्त होकर नित्य गौओं की सेवा करता है, वह समृद्धिका भागी होता है।'
अब गाय को सामने लाएं और उसकी पूंछ
पकड़कर उसे दान करने वाले की ओर मोड़ें। गाय के गले में एक नई रस्सी डालें और इसे
प्राप्तकर्ता को सौंप दें। गौ दान के साथ दक्षिणा के रूप में कुछ धन या अन्य
वस्तुएं भी दी जाती हैं।
गोदान का संकल्प
—
त्रिकुश, तिल, जल,
पुष्प और दक्षिणा लेकर गोपुच्छ पकड़कर गोदान का संकल्प करे-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः नमः
परमात्मने पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् अद्वैतस्य अचिन्त्यशक्तेर्महाविष्णोराज्ञया
जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य परार्धद्वयजीविनो ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे
श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे
भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते
प्रजापतिक्षेत्रे ....स्थाने (काशी में करना हो
तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे गौरीमुखे त्रिकण्टकविराजिते महाश्मशाने आनन्दवने
भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या गङ्गायाः पश्चिमे भागे) बौद्धावतारे संवत्सरे....अयने....
ऋतौ.... मासे....पक्षे.... तिथौ.... वासरे.... योगे.... राशिस्थिते सूर्ये....
राशिस्थिते देवगुरौ.... राशिस्थिते चन्द्रे.... शेषेषु भौमादिग्रहेषु यथा
यथाराशिस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ.... गोत्रः....
शर्मा/ वर्मा/गुप्तोऽहम् [ यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के स्थान पर....
गोत्रस्य (....गोत्रायाः ) प्रतिनिधिभूतोऽहम् - इतना बोले]
शास्त्रोक्तफलप्राप्त्यर्थं भगवत्प्रीत्यर्थं च स्वर्णशृङ्गीं रौप्यखुरां
ताम्रपृष्ठीं कांस्योपदोहनां वस्त्राच्छन्नां यथाशक्त्यलङ्कृतां सुपूजितां
सोपस्करां सवत्सां रुद्रदैवतामिमां गां.... गोत्राय सुपूजिताय.... शर्मणे
ब्राह्मणा भवते सम्प्रददे, (प्रतिनिधि
करे तो सम्प्रददामि बोले।) न मम ।
इस प्रकार संकल्प बोलकर
उत्तराभिमुखस्थित वरण किये गये ब्राह्मण के हाथ में गोपुच्छ,
जल तथा अक्षत आदि दे दे।
सांगता-संकल्प—दायें हाथ में त्रिकुश, तिल, जल
तथा द्रव्य लेकर संकल्प करे-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य
पूर्वोक्तगुणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ.... गोत्र: .... शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम्
[यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के
स्थान पर.... गोत्रस्य (....गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहम् - इतना
बोले] संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थं कृतस्य सवत्सगवीदानकर्मणः सांगतासिद्ध्यर्थमिदं
द्रव्यं श्रीमते.... शर्मणे ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे । (प्रतिनिधि करे तो सम्प्रददामि
बोले।) (दान की प्रतिष्ठा के लिये संकल्पजल तथा द्रव्य ब्राह्मण को दे दे।)
इसके बाद दान लेनेवाले ब्राह्मण
बोलें- ॐ स्वस्ति ।'
कोदात् कस्मा अदात् कामोऽदात्
कामायादात् ।
कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता
कामैतत्ते ॥
गवाहार का संकल्प
–
जो लोग गोदान के साथ गाय का आहार एक वर्ष अथवा न्यूनाधिक समय के
लिये देना चाहें, वे निष्क्रयद्रव्य अथवा आहारसामग्री
निम्नलिखित संकल्प के द्वारा दे दें— हाथ में त्रिकुश,
जल, अक्षत लेकर संकल्प करे-
ॐ अद्य गोत्रः....शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम्
[यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्'
के स्थान पर.... गोत्रस्य (....गोत्रायाः ) प्रतिनिधिभूतोऽहम्
- इतना बोले] गवाहारसम्पादनार्थं गवाहारसामग्री / गवाहारनिष्क्रयद्रव्यं
गोत्राय....शर्मणे ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे, (प्रतिनिधि
करे तो सम्प्रददामि बोले।) न मम ।
सांगता-संकल्प- ॐ अद्य गोत्रः....शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम्
[यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के स्थान पर....गोत्रस्य
(....गोत्रायाः ) प्रतिनिधिभूतोऽहम् - इतना बोले] कृतस्य
गवाहारदानकर्मणः प्रतिष्ठासांगतासंसिद्ध्यर्थं दक्षिणाद्रव्यं.... गोत्राय
ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे। (प्रतिनिधि करे तो सम्प्रददामि बोले ।)
कहकर दक्षिणा ब्राह्मण को दे दे।
प्रार्थना-
इसके बाद ब्राह्मणकी प्रार्थना करे-
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय
च ।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो
नमः ॥
इसके बाद गोमतीविद्या गोसूक्त आदि का
पाठ करे-
विष्णुस्मरण-
प्रमादात् कुर्वतां कर्म
प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं
स्यादिति श्रुतिः ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या
तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो
वन्दे तमच्युतम् ॥
अनेन गोदानकर्मणा भगवान् विष्णुः
प्रीयतां न मम ।
ॐ विष्णवे नमः । ॐ विष्णवे नमः । ॐ
विष्णवे नमः ।
ॐ साम्बसदाशिवाय नमः । ॐ
साम्बसदाशिवाय नमः । ॐ साम्बसदाशिवाय नमः ।
समापन और आशीर्वाद:
अब ब्राह्मण से आशीर्वाद प्राप्त
करें। प्रसाद वितरण करें और सभी उपस्थित लोगों को भोजन कराएं।
इति: श्री गोदान विधि: ॥
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