प्रश्नोत्तर रत्न मालिका

प्रश्नोत्तर रत्न मालिका

प्रश्नोत्तररत्नमालिका जगद्गुरु भगवान् आदि शङ्कराचार्य के अद्वितीय और सरल ग्रंथों में से एक है। जो एक प्रकरण ग्रंथ है और जिसमे प्रश्नोत्तर अर्थात् प्रश्न और उसके उत्तर प्रत्येक श्लोक में समाहित किये गए है। इसमें कुल ६७ श्लोक हैं जिनमें १८१ - ८२ प्रश्न और उसके उत्तर सम्मिलित हैं। यह रचना वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों को प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत करती है जो देश, काल एवं परिस्थिति से परे है। जीवन के कठिन मार्ग पर चलते हुए ये सभी सिद्धान्त हमें सही पथ दिखाते हुए हमारा जीवन उन्नत करते हैं।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

Prashnottar ratna malika

प्रश्नोत्तर रत्न मालिका

प्रश्न उत्तर रत्न मालिका

कः खलु नालंक्रियते, दृष्टादृष्टार्थसाधनपटीयान् ।

अमुया कण्ठस्थितया, प्रश्नोत्तररक्षमालिकया ॥१॥

प्रश्न- हे गुरुदेव ! कण्ठ में की हुई इस प्रश्नोत्तर – रत्नमालिका से कौन शोभा को नहीं पाता है ?

उत्तर- इस लोक एवं परलोक के विषयभोगों के साधन में कुशल मनुष्य ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

भगवन् किमुपादेयं गुरुवचनं हेयमपि च किमकार्यम् ।

को गुरुरधिगततत्त्वः, शिष्यहितायोद्यतः सततम् ॥२॥

प्रः- हे भगवन् ! · उपादेय ( ग्रहण करने योग्य) क्या है ?

उ:- गुरु का वचन ।

प्रः- (त्याग करने योग्य) क्या है ?

उ:- चुरा कर्म ।

प्रः- गुरु कौन है ?

उः-जिसने परमात्मतत्त्व का साक्षात्कार कर लिया है, एवं जो शिष्यों के कल्याण के लिये निरन्तर यत्नशील रहताहै, वह गुरु है ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

त्वरितं किं कर्तव्यं विदुषां संसारसंततिच्छेदः ।

किं मोक्षतरोर्बीजं सम्यग्ज्ञानं क्रियासिद्धम् ॥३॥

प्रः- विद्वानों को अतिशीघ्र क्या करना चाहिये ?

उ:- संसार के जन्म-मरणरूपी प्रवाह का उच्छेद ( विनाश ) ।

प्रः - मोक्षरूपी वृक्ष का बीज क्या है ?

उ:- निष्ठा ( धारणा ) से युक्त यथार्थ आत्मज्ञान ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कः पथ्यतरो धर्मः कः शुचिरिह यस्य मानसं शुद्धम् ।

कः पण्डितो विवेकी किं विषमवधीरणा गुरुषु ॥ ४॥

प्रः - अतिशय पथ्य ( पालने योग्य ) क्या है ?

उ:- सनातनधर्म ।

प्रः – इस लोक में पवित्र कौन है ?

उ:- जिसका मन शुद्ध है।

प्रः - पण्डित कौन है ?

उ:- जो सत् और असत् का विवेकी है ।

प्रः विष क्या है ?

उ:- गुरुओं में अश्रद्धारूपी तिरस्कार ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

किं संसारे सारं बहुशोऽपि विचिन्त्यमानमिदमेव ।

किं मनुजेष्विष्टतमं स्वपरहितायोद्यतं जन्म ॥५॥

प्रः - इस असार संसार में सार क्या है ?.

उ:- चार वार चिन्तन किया हुआ परमात्मतत्त्व |

प्रः मनुष्यों से अतिशय करके अभिलषित क्या है ?

उ: अपना और अन्य का कल्याण के लिये सदा प्रयत्नशील जीवन ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

मदिरेव मोहजनकः कः स्नेहः के च दस्यवो विषयाः।

का भवबल्ली तृष्णा को वैरी यस्त्वनुद्योगः ॥६॥

प्र. –मदिरा की तरह अचेतन करनेवाला कौन है ?

उ:- शरीर, स्त्री, पुत्र, धनादि में स्नेह ।

प्र. - शत्रु कौन हैं ?

उ:- शब्दादि पांच विषय ।

प्रः संसार की जड़ क्या है ?

उ:- तृष्णा ।

प्र-वैरी कौन है ?

उ.- अपने कल्याण के लिये पुरुषार्थ न करनेवाला ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कस्माद्भयमिह मरणादीशादिंह को विशिष्यतेऽरागी ।

कः शूरो यो ललनालोचनबाणैर्न च व्यथितः ॥७॥

प्र.- किससे भय रखना चाहिये ?

उ.-मरण से एवं ईश्वर से ।

प्र. - इस संसार में श्रेष्ठ कौन है ?

उ- विरक्त ।

प्रः शूर कौन है ? कटाक्षरूपी वाणोंसे व्यथाको प्राप्त न हो ।

उ.- जो स्त्रियों के कटाक्षरूपी वाणों से व्यथा को प्राप्त न हो ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

पातु कर्णान्जलिभिः किममृतमिह युज्यते सदुपदेशः ।

किं गुरुताया मूलं यदेतदप्रार्थनं नाम ॥८॥

प्रः – कौन कानरूपी अञ्जलि से अमृत पान करने योग्य है ?

उ:- यथार्थ उपदेश ।

प्रः- बड़प्पन की जड़ क्या है ?

उ:- किसी से कुछ भी न मांगना ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

किं गहनं स्त्रीचरितं कञ्चतुरोयो न खण्डितस्तेन ।

किं दुःखमसन्तोषः किं लाघवमधमतो याचा ॥९॥

प्र. – गहन  (जानने के लिये असंभव ) क्या है ?

उ:- स्त्रियों का चरित्र ।

प्रः- चतुर (कुशल) कौन है ?

उ.- जो स्त्रियों से खण्डित नहीं हुआ है।

प्रः दुःख क्या है ?

उ:- असंतोष ।

प्र. छोटापन क्या है ?

उ:- अघम-संसारियों से प्रार्थना करना ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

किं जीवितंमनवद्यं किं जाड्य पाठतोऽप्यनभ्यासः ।

को जागर्ति विवेकी का निद्रा मूढता जन्तोः ॥१०॥

प्र. - जीवन क्या है ?

उ:-दोषरहित ।

प्रः - जड़पना क्या है ?

उ:- पढ़ लेने पर भी अभ्यास न करना ।

प्रः - जागता कौन हैं ?

उ:- विवेकी ।

प्रः- प्राणी की निद्रा क्या है ?

उ.- मूढपना ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

नलिनीदलगत जलवत्तरलं किं यौवनं धनं चायुः ।

कथय पुनः के शशिनः किरणसमाः सज्जना एव ॥ ११ ॥

प्रःकमल के पत्ते के ऊपर रहे हुए जल की तरह चंचल कौन है ?

उ:-यौवन, धन और आयु ।

प्रः- चन्द्रमा की किरणों के समान शीतल एवं शान्त कौन हैं ?

उ:- सज्जन महापुरुष ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

को नरकः परवशता किं सौख्यं सर्वसंगविरतिर्या ।

किं सत्यं भूतहितं प्रियं च किं प्राणिनामसवः ॥१२॥

प्रः -नरक क्या है ?

उ:- परतन्त्रता ।

प्रः - सुख क्या है ?

उ:- संसार की तमाम आसक्तियों से वैराग्य होना ।

प्रः - सत्य क्या है ?

उ:-जिससे तमाम प्राणियों का कल्याण हो ।

प्रः- प्राणियों को प्रिय क्या है ?

उ:- प्राण ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कोऽनर्थफलो मानः का सुखदा साधुजनमैत्री ।

सर्वव्यसनविनाशे को दक्षः सर्वथा त्यागी ॥१३॥

प्रः - अनर्थ फलवाला कौन है ?

उ-मान ।

प्रः - सुख देनेवाली कौन है ?

उ.- साधु पुरुषों के साथ मित्रता ।

प्रः- तमाम प्रकार के कामादि व्यसनों के नाश करने में कौन कुशल है ?

उ:- जो हर प्रकार से त्यागी है।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कि मरणं मूर्खत्व किं चानघं यदवसरे दत्तम् ।

आमरणार्तिक शल्यं प्रच्छन्न यत्कृतं पापम् ॥ १४ ॥

प्रः- मरण क्या है ?

उ:- मूर्खतापन ।

प्र:- अमूल्य क्या है ?

उः-समय पर योग्य अधिकारी को कुछ दिया जाय ।

प्रः- मरण पर्यन्त शूल की तरह चुभनेवाला कौन है ?

उ.-छिपकर किया हुआ पापकर्म ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कुत्र विधेय यक्षां विद्याभ्यासे सदौषधे दाने ।

अवधीरणा क्व कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ॥१५॥

प्रः कहाँ प्रयत्न करना चाहिये ?

उ:- विधाभ्यास में, सच्ची औषधि में एवं सत्पात्र के दान में ।

प्रः - उपेक्षा कहाँ करनी चाहिये ?

उ.-खल (दुष्ट) मनुष्यों में, पराई स्त्रियों में तथा अन्य के – धन में ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

काऽहर्निशमनुचिन्त्या संसारासारता न तु प्रमदा ।

का प्रेयसी विधेया करुणा दीनेषु सज्जने मैत्री ॥१६॥

प्रः- दिनरात चिन्तन करने योग्य क्या है ?

उ:- संसार की असारता ।

प्रः - कौन चिन्तन करने योग्य नहीं है ?

उ:- स्त्री ।

प्रः- आनन्द करनेवाली कौन है ?

उ:- दीन दुःखियों के ऊपर की हुई करुणा (दया) और सज्जन महापुरुषों के साथ की हुई मित्रता ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कण्ठगतैरप्यसुभिः कस्य ह्यात्मा न शक्यते जेतुम् ।

मूर्खस्य शंकितस्य च विषादिनो वा कृतघ्नस्य ॥ १७॥

प्रः कण्ठगत प्राण होने पर भी किसके मन का जय नहीं कर सकते हैं ?

उ:- मूर्ख, संशयग्रस्त, खेदयुक्त और कृतघ्न मनुष्यों के मन का ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

कः साधुः सद्वृत्तः कमधममाचक्षते त्वसद्द्वृतम् ।

केन जितं जगदेतत्सत्यतितिक्षावता पुंसा ॥१८॥

प्रः - साधु कौन है ?

उ:- सदाचारी ।

प्रः-अधम (नीच ) किसको कहते हैं ?

उ:- दुराचारी को ।

प्रः - इस जगत्‌ को किसने जीत लिया है ?

उ:- सत्यतत्त्व में निष्ठा रखनेवाला तितिक्षु ( सहनशील ) पुरुष ने ।

कस्मै नमांसि देवाः कुर्वन्ति दयाप्रधानाय ।

कस्मादुद्वेगः स्यात्संसारारण्यतः सुधियः ॥ १९ ॥

प्रः- देवता भी किसको नमस्कार करते हैं ?

उ:- जिसके हृदय में विशेषरूप से दया रहती है, उसको ।

प्रः- बुद्धिमान् विवेकी को किससे उद्वेग (भय) होता है ?

उ:- संसाररूपी जंगल से ।

कस्य वशे प्राणिगणः सत्यप्रियभाषिणो विनीतस्य ।

क्व स्थातव्यं न्याय्ये पथि दृष्टादृष्टलाभाव्ये ॥२०॥

प्रः - तमाम प्राणियों का समुदाय किसके वंश में हो जाता है ?

उ:- सत्य एवं प्रियभाषी, विनयशील महापुरुष के ।

प्रः- कहाँ रहना चाहिये ?

उ:- दृष्टलाभ (कीर्ति आदि ) एवं अदृष्टलाभ ( परमधाम प्राप्ति आदि) से युक्त, न्याय (धर्म) के मार्ग में ।

कोऽन्धो योऽकार्यरतः को बधिरो यो हितानि न शृणोति ।

को मूको यः काले प्रियाणि वक्तुं न जानाति ॥२१॥

प्रः - अन्धा कौन है ?

उ:- पापकर्म में प्रीति करनेवाला ।

प्र:-बहिरा कौन है ?

उ:- जो हितकर वचनों को नहीं सुनता है ।

प्र:- मूक कौन है ?

उ:- जो समय पर प्रिय भाषण करना नहीं जानता है।

किं दानमनाकांक्षं किं मित्रं यो निवारयति पापात् ।

कोऽलंकारः शीलं किं वाचां मण्डनं सत्यम् ॥ २२ ॥

प्रः - प्रदान क्या है ?

उ:- जिसमें प्रत्युपकार की आकांक्षा न हो।

प्रः -मित्र कौन है ?

उ:- जो पाप कर्म से रक्षा करे ।

प्रः - अलंकार क्या है ?

उ:- शील (सरल निष्कपट स्वभाव ) ।

प्रः- वाणी का भूषण क्या है ?

उ:- सत्य भाषण ।

विद्युद्विलसितचपलं किं दुर्जनसंगतिर्युवतयश्च ।

कुलशीलनिष्प्रकंपाः के कलिकालेऽपि सज्जना एव ॥ २३ ॥

प्रः- बिजली के समान चपल क्या है ?

उ:- दुष्टों की संगति और युवती स्त्रियाँ ।

प्रः- घोर कलिकाल में भी कुल से एवं शील से सदा अचल कौन है ?

उ:- सज्जन महापुरुष ।

चिन्तामणिरिव दुर्लभमिह किं कथयामि तच्चतुर्भद्रम् ।

किं तद्वदन्ति भूयो विधुततमसो विशेषेण ॥ २४ ॥

दानं प्रियवाक्सहितं ज्ञानमगर्व क्षमान्वितं शौर्यम् ।

वित्तं त्यागसमेतं दुर्लभमेतच्चतुर्भद्रम् ॥ २५ ॥

प्रः – चिन्तामणि के समान, इस लोक में दुर्लभ क्या है ?

उ:- चतुर्भद्र ।

प्रः- अज्ञान से रहित विद्वान् लोग विशेषरूप से चतुर्भद्र किसको कहते हैं ?

उ:- (१) प्रियवाणी सहित दान (२) गर्व से रहित ज्ञान (३) क्षमा से युक्त शौर्य (४) त्याग से युक्त धन, इन चारों को कल्याण के साधन होने से चतुर्भद्र कहते हैं ।

किं शोच्यं कार्पण्यं सति विभवे किं प्रशस्तमौदार्यम् ।

कः पूज्यो विद्वद्भिः स्वभावतः सर्वदा विनीतो यः ॥ २६ ॥

प्रः- शोक करने योग्य कौन है ?

उ: - वैभव होने पर भी कृपणता ।

प्रः - प्रशंसा करने योग्य कौन है ?

उः- उदारता ।

प्रः- विद्वानों से भी पूजा करने योग्य कौन है ?

उ:- जो स्वभाव से सर्वदा विनयशील है।

कः कुलकमलदिनेशः सत्ति गुणविभवेऽपि यो नम्रः ।

कस्य चशे जगदेतत्प्रियहितवचनस्य धर्मनिरतस्य ॥ २७॥

प्रः- कुलरूपी कमल को सूर्य के समान प्रफुल्लित करनेवाला कौन है ?

उः - विद्या, दया, आदि दैवीगुणरूपी विभव होने पर भी जो नम्र है।

प्रः - यह समस्त जगत् किसके वश में है ?

उ:- जो धर्म में प्रेम करता है और प्रिय एवं हितकरवाणी बोलता हैं, उसके ।

विद्वन्मनोहरा का सत्कविता बोधवनिता च ।

कं न स्पृशति विपत्तिः प्रवृद्धवचनानुवर्तिनं दान्तम् ॥ २८ ॥

प्रः – विद्वानों के भी मन को हरन करनेवाली कौन है ?

उ:- बोधप्रद, ईश्वरमहिमा युक्त, सच्ची कविता और ब्रह्मविद्यारूपी वनिता (स्त्री) ।

प्रः - विपत्ति किसको स्पर्श नहीं करती है ?

उ:- जो जितेन्द्रिय है। यानी संयमी है, और ज्ञानवृद्ध धर्मवृद्ध आदि महापुरुषों के उपदेशों के अनुसार चलनेवाला है, उसको ।

कस्मै स्पृहयति कमला त्वनलसचित्ताय नीतिवृत्ताय ।

त्यजति च कंसहसा द्विजगुरूसुरनिन्दाकरं च सालस्यम् ॥ २९ ॥

प्रः- लक्ष्मी किसकी स्पृहा (इच्छा) करती है ?

छः-जिसके चित्त में आलस नहीं है और जो नीति से युक्त है, उसकी ।

प्रः - लक्ष्मी सहसा किसको छोड़ देती है ?

उ:- जो आलसी है और ब्राह्मण, गुरु तथा देवताओं की निन्दा करता है, उसको ।

कुत्र विधेयो वासः सज्जननिकटेऽथवा काश्याम् ।

कः परिहार्यो देशः पिशुनयुतो लुब्धभूपञ्च ॥ ३० ॥

प्र - कहाँ निवास करना चाहिये ?

उ:-  सज्जन महापुरुषों के समीप में अथवा श्रीकाशीधाम में ।

प्रः- किस देश को छोड़ देना चाहिये ?

उ:- जो पिशुन (चुगलखोर) से युक्त एवं लोभी -कृपण राजा से युक्त देश है, उसको ।

केनाशोच्यः पुरुषः प्रणतकलत्रेण धीरविभवेन ।

इह भुवने कः शोच्यः सत्यपि विभवे न यो दाता ॥ ३१ ॥

प्रः- किससे मनुष्य शोक रहित होता है ?

उ:- नम्र - सरल सतीस्त्री से और अच्छे मार्ग में जानेवाले वैभव से ।

प्रः - इस भुवन में शोचनीय कौन है ?

उ:- वैभव होनेपर भी जो दान नहीं करता है, वह ।

किं लघुतायाः मूलं प्राकृतपुरुषेषु या याञ्चा ।

रामादपि कः शूरः स्मरशरनिहतो न यश्चलति ॥ ३२ ॥

प्र:- छोटेपन की जड़ क्या है ?

उ:- विषयी - पामर मनुष्यों से याचना करना ।

प्रः - भगवान् राम से भी महाशूरवीर कौन है ?

उःजो कामदेव के वाण से ताड़ित होने पर भी चलायमान न हो ।

किमहर्निशमनुचिन्त्यं भगवच्चरणं न संसारः ।

चक्षुष्मन्तोऽप्यन्धाः के स्युर्ये नास्तिका मनुजाः ॥ ३३ ॥

प्रः - दिनरात किसकी चिन्ता करनी चाहिये ?

उः - भगवान्के परम पावन चरण-कमलों की ।

प्रः - किसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिये १

उ:- संसार की ।

प्रः -चक्षु होने पर भी अन्धे कौन हैं ?

उ:- जो नास्तिक (ईश्वर, वेद एवं परलोक में विश्वास नहीं करनेवाले) मनुष्य हैं, वे ।

कः पंगुरिह प्रथितो व्रजतिं न यो वार्धके तीर्थम् ।

कि तीर्थमपि च मुख्यं चित्तमलं यन्निवारयति ॥ ३४ ॥

प्रः - इस संसार में पंगु कौन प्रसिद्ध है ?

उ:- जो वृद्ध होंने पर भी काशी आदि स्थावर तीर्थ, और सन्त-महात्मारूपी जंगम तीर्थ में जाता नहीं है।

प्रः - मुख्य तीर्थ कौन है ?

उ:- जो चित्त के पाप को निवारण करे, वह ।

किं स्मर्तव्यं पुरुषैर्हरिनाम सदा न यावनी भाषा ।

कोहि न वाच्यः सुधिया परदोषश्चानृतं तद्वत् ॥ ३५ ॥

प्रः- मनुष्यों को हरदम किसका स्मरण करना चाहिये ?

उ:- श्रीहरि के नाम का ।

प्रः - किसका स्मरण नहीं करना चाहिये ?

उ:- यवनों की (उर्दू', फारसी, अंग्रेजी आदि ) भाषा का ।

प्रः - बुद्धिमान् मनुष्य से क्या नहीं कहना चाहिये ?.

उ:-  दूसरों का दोष और अनृत (झूठ भाषा) ।

किं संपाद्यं मनुजैर्विद्या वितं बलं यशः पुण्यम् ।

कः सर्वगुणविनाशी लोभः शत्रुश्च कः कामः ॥ ३६ ॥

प्रः – मनुष्यों को क्या सम्पादन करना चाहिये ?

उ:-विद्या,धन,बल, कीर्ति और पुण्य ।

प्रः- सर्व गुणों के विनाश करनेवाला कौन है ?

उ:- लोभ ।

प्रः- शत्रु कौन है ?

उ:- काम ।

का व सभां परिहार्या हीना या वृद्धसचिवेन ।

इह कुत्रावहित. स्यान्मनुजः किल राजसेवायाम् ॥ ३७ ॥

प्रः- किस सभा का त्याग करना चाहिये ?

उ:- जो धर्मवृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध मन्त्री से रहित सभा है, उसका ।

प्रः- मनुष्य को कहाँ विशेषरूप से सावधानी रखनी चाहिये ।

उ:- धार्मिक राजा की सेवा में ।

प्राणादपि को रम्यः कुलधर्मः साधुसंगश्च ।

का संरक्ष्या कीर्तिः प्रतिव्रता नैजवुद्धिश्च ॥ ३८ ॥

प्रः – प्राण से भी अत्यन्त प्यारा कौन है ?

उ:-कुल का धर्म और साधु पुरुषों की संगति ।

प्रः- अति प्रयत्न से कौन रक्षा करने योग्य है ?

उ. - कीर्ति, पतिव्रता स्त्री और अपनी बुद्धि ।

का कल्पलता लोके सच्छिष्यायार्पिता विद्या ।

कोऽक्षयवटवृक्षः स्याद्विधिवत्सत्पात्रदत्तदानंयत् ॥ ३९ ॥

प्रः- इस लोक में कल्पलता क्या है ?

उ:- योग्य शिष्य को दी हुई विद्या ।

प्रः- अक्षयवट वृक्ष क्या है ?

उः - विधिपूर्वक सत्पात्र को दिया हुआ दान ।

किं शस्त्रं सर्वेषां युक्तिर्माता च का धेनुः ।

किं नु बलं यद्वैयं को मृत्युर्यदवधान रहितत्वम् ॥ ४० ॥

प्रः- सभी के लिये शस्त्र क्या है ?

उ:-युक्ति ।

प्रः- माता क्या है ?

उ:-गाय ।

प्रः- वल क्या है ?

उ:- धैर्य ।

प्रः- मृत्यु क्या है ?

उ:- सावघान से नहीं रहना ।

कुत्र विषं दुष्टजने किमिहाशौचं भवेदृणं नृणाम् ।

किमभयमिह वैराग्यं भयमपि किं वित्तमेव सर्वेषाम् ॥ ४१ ॥

प्रः- विष कहाँ है ?

उः - दुष्ट मनुष्य में ।

प्रः- मनुष्यों को अशौच क्या है ?

उः - ऋण ।

प्रः – संसार में अभय क्या है ?

उ:- वैराग्य ।

प्रः- सब के लिये भय क्या है ?

उ:- धन ।

का दुर्लभा नराणां हरिभक्तिः पातकं च किं हिंसा ।

कोहि भगवप्रियः स्याद्योऽन्यं नोड जयेदनुद्विग्नः ॥ ४२ ॥

प्रः मनुष्यों को दुर्लभ क्या है ?

उ:- श्रीहरि की भक्ति ।

प्रः- पाप क्या है ?

उ:- मन से वाणी से एवं शरीर से होनेवाली हिंसा ।

प्रः- भगवान्को प्रिय कौन है ?

उ:- जो स्वयं उद्वेग से रहित है, और अन्य को कदापि उद्विद्म करता नहीं है, वह ।

कस्मात्सिद्धिस्तपसो बुद्धिः क्वनु भूसुरे कुतो बुद्धिः ।

वृद्धोपसेवया के वृद्धा ये धर्मतत्त्वज्ञाः ॥ ४३ ॥

प्रः - किससे सिद्धि होती है ?

उ:- तप से ।

प्र-बुद्धि कहाँ है ?

उ:- भूदेव-ब्राह्मण में ।

प्रः - बुद्धि किससे प्राप्त होती है ?

उ:- वृद्धों की सेवा से ।

प्रः- युद्ध कौन हैं ?

उ:- जो धर्म-तत्त्व को जाननेवाले हैं।

संभावितस्य मरणादधिकं किं दुर्यशो भवति ।

लोके सुखी भवेत्को धनव (न्धनमपि च किं यतचेष्टम् ॥ ४४ ॥

प्रः - संभावित (प्रसिद्ध) मनुष्य को मरण से भी अधिक दुःखदायक क्या है ?

उ:-अपयश ।

प्रः –लोक में लोकदृष्टि से सुखी कौन है ?

उ:- धनवान् ।

प्रः-धन क्या है ?

उ:- संयमपूर्वक आहार-विहार यानी सदाचार ।

सर्वसुखानां बीजं किं पुण्यं दुःखमपि कुतः पापात् ।

कस्यैश्वर्यं यः किल शङ्करमाराधयेद्भक्त्या ।। ४५ ।।

प्रः- तमाम सुखों की जड़ क्या है ?

उ:- पुण्य ।

प्रः - दुःख किससे होता है ?

उ:- पाप से ।

प्रः- ऐश्वर्य किससे होता है ?

उ:- भगवान् श्रीशंकर की, विशुद्ध भक्तिपूर्वक आराधना करने से ।

को वर्धते विनीतः को वा हीयते यो दृप्तः ।

को न प्रत्येतव्यो ब्रूते यचानृतं शश्वत् ॥ ४६ ॥

प्रः- कौन सभी प्रकार से बढ़ता है ?

उ:- विनयशील ।

प्रः - कौन सर्व तरफ से घटता है ?

उ:- अभिमानी ।

प्रः - किसका विश्वास नहीं करना चाहिये ?

उः- जो निरन्तर अनृत भाषण करता है।

कुत्रानृतेऽप्यपापं यच्चोक्तं धर्मरक्षार्थम् ।

को धर्मोऽभिमतो यः शिष्टानां निजकुलीनानाम् ॥ ४७ ॥

प्रः- किस जगह अनृत कहने पर भी पाप नहीं होता है ?

उः- जहाँ धर्म की रक्षा होती हो, वहाँ ।

प्रः- धर्म कौन है ?

उः-जो निजकुल में होनेवाले सदाचारी वृद्ध पुरुषों के अभिमत हो।

साधुबलं किं दैवं कः साधुः सर्वदा तुष्टः ।

दैवं किं यत्सुकृतं कः सुकृती श्लाघ्यते च यः सद्भिः ॥ ४८ ॥

प्रः- साधु-महात्माओं का बल क्या है ?

उः- आराधित देवता ।

प्रः - साधु कौन है ?

उ:- जो सर्वदा सन्तुष्ट हो ।

प्रः -दैव क्या है ?

उ:- धर्म, भक्ति, वैराग्य, ज्ञान आदि से होनेवाला पुण्य ।

प्रः- पुण्यशाली कौन है ?

उः - जिसकी सत्पुरुष भी प्रशंसा करते हो वह ।

गृहमेधिनश्च मित्रं किं भार्या को गृही च यो यजते ।

को यशो यः श्रुत्याविहितः श्रेयस्करो नृणाम् ॥ ४९ ॥

प्रः- गृहस्थ का असली मित्र कौन है ?

उ:- भार्यां ।

प्रः - गृहस्थ कौन है ?

उः-जो पश्चमहायज्ञ के द्वारा विश्वरूप भगवान्‌ का यजन करता है।

प्रः- यज्ञ कौन है ?

उ:- जो वेद ने विधान किया हो, और अनुष्ठान से मनुष्यों का श्रेयः (कल्याण) करनेवाला हो, वह ।

कस्य क्रिया हि सफला यः पुनराचारवान् शिष्टः ।

कः शिष्टो यो वेदप्रमाणवान्को हतः क्रियाभ्रष्टः ॥ ५० ॥

प्रः - किसकी क्रिया फलवाली होती है ?

उ:- जो सदाचारी विचारशील शिष्ट है, उसकी ।

प्रः- शिष्ट कौन है ?

उः - जो वेद को परम प्रामाणिक मानकर वैदिक उपदेश को अपने आचरण में रखता है, वह ।

प्रः- मरा हुआ कौन है ?

उ:- जो क्रिया (सदाचार) से भ्रष्ट है ।

को धन्यः संन्यासी को मान्यः पण्डितः साधुः ।

कः सेव्यो यो दाता को दाता योऽर्थितृप्तिमातनुते ॥ ५१ ॥ ।

प्रः- धन्य कौन है ?

उः- संन्यासी ।

प्रः- मान्य कौन है ?

उ:- सदाचारी विद्वान् ।

प्रः- सेव्य कौन है ?

उ. - दाता ( दानशील )।

प्रः- दाता कौन है ?

उ:- अर्थी को जो तृप्त करता है, वह ।

किं भाग्यं देहवतामारोग्यं कः फली कृषिकृत् ।

कस्य न पापं जपतः कः पूर्णो यः प्रजावान्स्यात् ॥ ५२ ॥

प्रः- देहधारियों का भाग्य क्या है ?

उ:- आरोग्य ।

प्रः- फलवाला कौन है ?

उ:- किसान (खती करनेवाला )।

प्रः - किसको पाप स्पर्श नहीं करता है ?

उ:- जो मन्त्र को जपता रहता है, उसको ।

प्रः- पूर्ण कौन है ?

उ:- जो प्रजावाला है, वह ।

किं दुष्करं नराणां यन्मनसो निग्रहः सततम् ।

को ब्रह्मचर्यवान्स्याद्यश्चास्खलितोर्ध्वरेतस्कः ॥५३॥

प्रः- मनुष्यों के लिये दुष्कर क्या है ?

उ:- निरन्तर मन को स्वाधीन रखना ।

प्रः- ब्रह्मचारी कौन है ?

उ:- जिसका वीर्य कदाचित् स्खलित न हो, किन्तु उर्ध्व -मस्तिष्क में विशेषरूप से वीर्यका धारण हो, वह ।

का च परदेवतोता चिच्छुक्तिः को जगद्भर्ता ।

सूर्यः सवषां को जीवनहेतुः स पर्जन्यः ॥५४॥

प्रः - परदेवता कौन है ?

उ:- सर्वव्यापिनी चेतन शक्ति ।

प्र:- जगत्का भर्ता कौन है ?

उ:- सूर्य भगवान् ।

प्रः- सभी के जीवन का हेतु कौन है ?

उ:- पर्जन्य (बारस) - वृष्टि ।

कः शूरो यो भीतत्राता त्राता च कः स गुरु: ।

को हि जगद्गुरुः शम्भुर्ज्ञानं कुतः शिवादेव ॥ ५५ ॥

प्रः- शूर कौन है ?

उ:- भयभीत मनुष्य की रक्षा करनेवाला ।

प्रः- रक्षक कौन है ?

उ:-गुरु ।

प्र:- जगद्गुरु कौन है ?

उ:- श्रीशङ्कर महादेव ।

प्रः - ज्ञान किससे होता है ?

उ:- जगद्गुरु श्रीशिवजी महाराज की कृपा से ।

मुक्ति लभेत कस्मान्मुकुन्दभके मुकुन्दः कः ।

यस्तारयेदविद्यां का चाविद्या यदात्मनोऽस्फूर्तिः ॥५६॥

प्रः - किससे मुक्ति प्राप्त होती है ?

उः मुकुन्द भगवान्‌ की भक्ति से ।

प्रः - मुकुन्द कौन है ?

उ:- जो अविद्या से तार देवे ।

प्रः - अविद्या क्या है ?

उ:- आत्मा के यथार्थ स्वरूप का भान न होना ।

कस्य न शोको यः स्यादकामः किं सुखं तुष्टिः ।

को राजा रंजनकृत्कन्ध भ्या नीचसेवको यः स्यात् ॥७॥  

प्रः- शोक किसको नहीं होता है ?

उ:- जो कामनाओं से रहित है ।

प्रः -सुख क्या है ?

उ:- संतोष ।

प्रः- राजा कौन है ?

उ:- जो अपनी प्रजा का लालन-पालन द्वारा रञ्जन (हर्ष) करनेवाला हो।

प्रः - कुत्ता कौन है ?

उ:- जो नीच- पामर का सेवक है ।

को मायी परमेशः क इन्द्रजालायते प्रपञ्चोऽयम् ।

कः स्वमनिभो जाग्रद्व्यवहारः सत्यमपि च किं ब्रह्म ॥ ५८ ॥

प्रः - मायावाला कौन है ?

उ:- परमेश्वर ।

प्रः – इन्द्रजाल के समान मिथ्या कौन है ?

उ:- यह नामरूपात्मक द्वैतप्रपञ्च ।

प्रः – स्वपन के समान क्षणभङ्गुर क्या है ?

उ:- जाग्रत् संसार का व्यवहार ।

प्रः - सत्य ( तीन काल में भी अबाधित) क्या है ?

उ:- ब्रह्म ( सर्वव्यापक आत्मा ) ।

किं मिथ्या यद्विद्याविनाश्यं तुच्छं तु शशविषाणादि !

का चानिर्वचनीया माया किं कल्पितं द्वैतम् ॥ ५९ ॥

प्रः - मिथ्या क्या है ?

उ:- जिसका ब्रह्मविद्या से विनाश हो, वह ।

प्रः तुच्छ क्या है ?

उ:- शशशृङ्ग, वन्ध्यापुत्र, आदि ।

प्रः - अनिर्वचनीय क्या है ?

उ:- माया और माया का कार्य संसार ।

प्रः - कल्पित (अध्यस्त ) क्या है ?

उ:- द्वैत-प्रपञ्च ।

किं पारमार्थिकं स्यादद्वैतं चाविद्या कुतोऽनादिः ।

वपुषध पोषकं किं प्रारब्धं चान्नदायि किमायुः ॥ ६० ॥

प्रः - पारमार्थिक तत्त्व क्या हैं ?

उ:- अद्वैत ब्रह्म ।

प्रः - अविद्या किससे हुई ?

उःकिसी से भी नहीं, क्योंकि वह अनादि है, उसका आदि कोई नहीं बतला सकता |

प्रः – शरीर का पोषण करनेवाला कौन है ?

उ:- प्रारब्ध कर्म ।

प्रः - अन्न देनेवाला कौन है ?

उ:-आयु ।

को ब्राह्मणैरुपास्यो गायत्र्यर्काग्निगोचरः शम्भुः ।

गायत्र्यामादित्ये चाग्नौ शम्भौ च किं तु तत्तत्त्वम् ॥ ६१ ॥

प्रः – ब्राह्मणों से उपासना करने योग्य कौन है ?

उ:- गायत्री, सूर्य और अग्नि के अधिष्ठाता भगवान् श्रीशङ्कर ।

प्र:- गायत्री में, सूर्य में अग्नि में और श्रीशङ्कर में कौन तत्त्व है !

उ:- सर्वव्यापक अद्वैत ब्रह्म ।

प्रत्यक्षदेवता का माता पूज्यो गुरुध कस्तातः ।

कः सर्वदेवतात्मा विद्याकर्मान्वितो विप्रः ॥ ६२ ॥

प्रः - प्रत्यक्ष देवता कौन है ?

उ:-माता ।

प्रः -पूज्य गुरु कौन है ?

उ:- पिता ।

प्रः - सर्व देवतास्वरूप कौन है ?

उ:- ज्ञान ( उपासना ) और कर्म से युक्त ब्राह्मण ।

कश्च कुलक्षयहेतुः संतापः सज्जनेषु योऽकारि ।

केषाममोघवचनं ये च पुनः सत्यमौनशमशीलाः ॥ ६३ ॥

प्रः – कुलक्षय का क्या कारण है ?

उ:- सज्जन महात्माओं को पहुँचाया हुआ कष्ट ।

प्रः- किनका अमोघ (यथार्थ) वचन है ?

उ:-जो सत्य, मौन, एवं शम (मन का निग्रह) के स्वाभाववाले हैं।

किं जन्म विषयसंगः किमुत्तरं ब्रह्मबोधः स्यात् ।

कोsपरिहार्यो मृत्युः कुत्र पदं विन्यसेच्च दृक्पूते ॥ ६४ ॥

प्रः - जन्म क्यों होता है ?

उ:- विषयासक्ति होने से ।

प्र:- जन्म से तरना यानी मुक्ति कैसे हो ?

उ:- ब्रह्मज्ञान से ।

प्रः - अपरिहार्य कौन है !

उ:- मृत्यु ( कालदेवता ) ।

प्रः - पाद (पैर) कहाँ रखना चाहिये ?

उ:- दृष्टि से पवित्र किये हुए मार्ग में ।

पात्रं किमन्नदाने क्षुधितं कोऽर्थ्यो हि भगवदवतारः ।

कब्ध भगवान्महेशः शङ्कर-नारायणात्मकः ॥ ६५ ॥

प्रः – अन्नदान का पात्र ( अधिकारी ) कौन है ?

उःजो क्षुधित ( भूखा ) हो ।

प्रः - अर्चा (पूजा) करने योग्य कौन है ?

उ:- भगवदवतार श्रीराम-कृष्णादि ।

प्रः - भगवान् महेश्वर कौन है ?

उ:- श्रीशङ्कर और श्रीनारायण का अभिन्नस्वरूप ।

फलमपि भगवद्भकः किं तदेवखरूपसाक्षात्त्वम् ।

मोक्षश्च को ह्यविद्यास्तमयः कः सर्ववेदभूरथ चोम् ॥ ६६ ॥

प्रः- भगवद्भक्ति का फल क्या है ?

उ:- भगवान् के स्वरूप का साक्षात्कार ।

प्रः - मोक्ष क्या है ?

उ:- अविद्या का अत्यन्ताभाव ।

प्रः – सर्ववेदों का सार क्या है ?

उः - ॐकार ।

प्रश्नोत्तररत्नमालिका

इत्येषा कण्ठस्था प्रश्नोत्तररत्नमालिका येषाम् ।

ते मुक्ताभरणा इव विमलाश्चाभान्ति सत्समाजेषु ॥ ६७ ॥

यह प्रश्नोत्तररत्नमालिका जिनके कण्ठ में स्थित है, वे मुक्ता के आभूषण की तरह सत्पुरुषों के समाज में निर्मल होकर प्रकाशित होवेंगे।

॥ इति श्रीमद् शङ्कराचार्यविरचिता प्रश्नोत्तररत्नमालिका समाप्ता ॥

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