नारद स्तुति
श्रीनिम्बार्काचार्य
द्वारा रचित भगवान् श्रीनारद की यह स्तुति प्राणियों के समस्त अज्ञान समूह को दूर
करने वाला है।
श्रीनारदभगवान् स्तुतिः
Narad stuti
श्रीनारद स्तुति
भवजलनिधिमग्नं
जीवजातं निरीक्ष्य
परमकरुणमूर्तिः
श्रीमुकुन्दो महीयान् ।
कृत मुनिवर
मूर्तिः पञ्चरात्रं वित्तन्वन्
स जयति
गुरुवर्य्यो नारदो नारदाता ॥ १॥
संसार सागर
में निमग्न जीव समूह को देखकर करुणामूर्ति भगवान् मुकुन्द ने देवर्षी श्रीनारद का
अवतार धारण किया और संसार में पाँचरात्र शास्त्र का विस्तार किया । उन भक्त
प्राणियों के अज्ञान को दूर करने वाले गुरुवर्य श्रीनारद भगवान् की जय हो ।
नारन्तमोद्यतिहियः
स्वजनानुकम्पी
नारं च
ज्ञानमखिलं प्रददाति भूरि ।
नारं प्रपन्न
हृदयं प्रददौ दयालु-
स्तं नारदं
गुरुवरं शरणं प्रपद्ये ॥ २॥
जो प्राणियों
के अज्ञान को दूर करते हैं, जिनकी अपने जनों पर सदा अनुकम्पा बनी रहती है,
मानव सम्बन्धी समस्त ज्ञान प्रदान करने में जो समर्थ हैं,
जो परम दयालु हैं तथा जिन्होंने प्रपन्न भक्तों के लिये
कोमल ज्ञान प्रदान किया है, ऐसे गुरुवर्य श्रीनारद भगवान् की हम शरण ग्रहण करते हैं ।
उद्धारणार्थं
स्वपदानुगानां
निबद्धकक्षं
मुनिवर्यरूपम् ।
कारुण्यवात्सल्यदयानिधानं
वीणाधरं
नारदमीशमीडे ॥ ३॥
जिन्होंने
अपने चरणनुगामी भक्तों के उद्धार के लिये कमर कस ली है,
जो कारुण्य, वात्सल्य, तथा कृपा के निधान हैं, जो सदा वीणा पर हरिगुण गायन करते रहते हैं,
ऐसे मुनिश्रेष्ठ गुरुवर श्रीनारद भगवान् की हम स्तुति करते
हैं ।
भक्तिज्ञानविरागान्य
कलिना जर्जरी कृतान् ।
तारुण्यं
प्रापयामास तं श्रीनारदमाश्रये ॥ ४॥
कलिकाल के
प्रभाव से हुए जर्जरीभूत भक्तिज्ञान तथा वैराग्य को जिन्होंने तारुण्य प्रदान किया,
उन श्रीनारद भगवान् का हम आश्रय ग्रहण करते हैं ।
ज्ञात्वा
ज्ञान विरागभक्ति सकलं कालेन जीर्णि कृतं
वात्सल्यादि
गुणार्णवश्च भगवान् देवर्षिरूपं दधत् ।
तारुण्य
प्रददौ दयाख्य सुधया तेभ्यो मुकन्दो गुरुः
तं पारं
प्रकृतेर्व्रजामि शरणं वीणाधरं नारदम् ॥ ५॥
काल के द्वारा
जीर्णता को प्राप्त हुए जानकर वात्सल्यादि गुणों के सागर श्रीहरि ने देवर्षि नारद
का रूप धारण किया और अपनी दया दृष्टि रूपी सुधा वृष्टि के द्वारा उन्हें तारुण्य
वय प्रदान किया । ऐसे प्रकृति पर भगवान् वीणावादन परायण श्रीनारदजी को हम शरण ग्रहण
करते हैं ।
इति श्रीनिम्बार्काचार्यविरचितं श्रीनारदभगवान् स्तुतिः समाप्ता ।
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